G7 राष्ट्र अमेरिकी कंपनियों को वैश्विक न्यूनतम कर से छूट देने पर सहमत हुए

एक महत्वपूर्ण नीतिगत बदलाव में, ग्रुप ऑफ सेवन (G7) देशों ने अमेरिकी बहुराष्ट्रीय कंपनियों को वैश्विक न्यूनतम कर ढांचे से छूट देने पर सहमति व्यक्त की है, जिससे उन्हें एक विशेष “साइड-बाय-साइड” कराधान समाधान की पेशकश की गई है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के प्रशासन द्वारा आगे बढ़ाई गई यह व्यवस्था यह सुनिश्चित करेगी कि अमेरिकी निगमों पर घरेलू और विदेशी दोनों तरह के मुनाफ़े पर केवल संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा कर लगाया जाए, जो संभवतः 2021 से OECD ढांचे के तहत बातचीत की गई वैश्विक कर संरचना को नया रूप दे सकता है।

समाचार में क्यों?

28 जून 2025 को G7 देशों ने एक संयुक्त वक्तव्य जारी कर अमेरिकी बहुराष्ट्रीय कंपनियों को 15% वैश्विक न्यूनतम कर व्यवस्था से छूट देने पर सहमति जताई है। यह निर्णय कैनेडा की अध्यक्षता में हुई G7 बैठक के बाद सामने आया। यह छूट अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के नेतृत्व वाली सरकार की पहल पर आधारित है और OECD द्वारा 2021 में स्थापित वैश्विक कर समझौते से बड़ा विचलन दर्शाती है।

पृष्ठभूमि: OECD का वैश्विक कर ढांचा (2021 समझौता)

  • पिलर 1: बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के कर अधिकारों का पुनर्वितरण
  • पिलर 2: 15% का वैश्विक न्यूनतम कॉर्पोरेट टैक्स, ताकि टैक्स चोरी और कर-आधार क्षरण रोका जा सके
  • अमेरिका, विशेषकर ट्रंप शासन के दौरान, इस समझौते के कुछ हिस्सों का विरोध करता रहा है, इसे संप्रभुता और प्रतिस्पर्धा के विरुद्ध मानते हुए।

G7 करार के मुख्य बिंदु

“साइड-बाय-साइड” मॉडल:
अब अमेरिकी बहुराष्ट्रीय कंपनियों पर केवल अमेरिका में ही कर लगाया जाएगा, न कि उन देशों में जहां वे कारोबार करती हैं।

इस छूट से अमेरिकी कंपनियों को मिलेगा:

  • कर स्थिरता और कम अनुपालन बोझ

  • दोहरे कराधान से बचाव

  • विदेशी निवेश में वृद्धि की संभावना

अभी अंतिम मंजूरी नहीं:
OECD को इस छूट पर अंतिम स्वीकृति देनी बाकी है।

ट्रंप की नीति पहल: “One Big Beautiful Bill”

यह अमेरिका का बड़ा घरेलू विधेयक है, जिसमें अंतरराष्ट्रीय कर संबंधी प्रमुख संशोधन शामिल हैं। इसमें एक विवादास्पद धारा 899 है:

धारा 899 विवाद:

  • अमेरिका को यह अधिकार देता है कि वह उन विदेशी निवेशकों पर कर लगाए, जिनके देश अमेरिकी कंपनियों पर “अनुचित कर” लगाते हैं।

  • इसे “बदला कर” (revenge tax) कहा जा रहा है, जिससे प्रतिशोधात्मक व्यापार नीतियाँ लागू हो सकती हैं।

वैश्विक प्रभाव

  • वैश्विक कर सहयोग के प्रयासों को कमज़ोर कर सकता है

  • अन्य देश भी एकतरफा छूट या समान नीतियाँ लागू कर सकते हैं

  • इससे दोहरी वैश्विक कर प्रणाली का जोखिम पैदा हो सकता है

  • न्यायपूर्ण प्रतिस्पर्धा और कर पारदर्शिता को नुकसान हो सकता है

स्थिर तथ्य 

G7 सदस्य:
कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, ब्रिटेन और अमेरिका

आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (OECD):
आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (Organisation for Economic Co-operation and Development) – 38 सदस्य देशों वाला समूह जो वैश्विक आर्थिक नीतियों और मानकों पर कार्य करता है।

निष्कर्ष

G7 द्वारा अमेरिकी कंपनियों को दी गई यह कर छूट अंतरराष्ट्रीय कर व्यवस्था में ऐतिहासिक बदलाव का संकेत है। यदि OECD इसे मंजूरी देता है, तो इससे वैश्विक टैक्स समानता और सहयोग की दिशा में अब तक के प्रयासों को गहरा झटका लग सकता है। भारत जैसे विकासशील देशों के लिए भी यह नीति-निर्धारण का नई चुनौती पेश कर सकती है।

अदाणी ग्रीन ने 15,000 मेगावाट रिन्यूएबल एनर्जी क्षमता को किया पार

अदाणी ग्रीन एनर्जी लिमिटेड (एजीईएल) ने बताया कि कंपनी ने 15,000 मेगावाट (मेगावाट) की परिचालन क्षमता को पार कर एक महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की है, जो कि अब 15,539.9 मेगावाट तक पहुंच गई है। यह उपलब्धि भारत में अब तक की सबसे तेज और बड़ी क्षमता वृद्धि को दर्शाती है। भारत की सबसे बड़ी रिन्यूएबल एनर्जी कंपनी ने कहा कि परिचालन पोर्टफोलियो में 11,005.5 मेगावाट सोलर, 1,977.8 मेगावाट विंड और 2,556.6 मेगावाट विंड-सोलर हाइब्रिड क्षमता शामिल है।

समाचार में क्यों?

अदाणी ग्रीन एनर्जी लिमिटेड (AGEL) ने जून 2025 तक 15 गीगावाट (GW) से अधिक स्थापित नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता हासिल कर ली है। 15,539.9 मेगावाट (MW) की कुल परिचालन क्षमता के साथ AGEL न केवल भारत की सबसे बड़ी नवीकरणीय ऊर्जा कंपनी बन गई है, बल्कि यह विश्व की शीर्ष 10 स्वतंत्र विद्युत उत्पादक कंपनियों में भी शामिल हो गई है। यह उपलब्धि भारत की हरित ऊर्जा (Green Energy) में तेज़ प्रगति का संकेत देती है और अदाणी समूह के 2030 तक 50 GW के लक्ष्य की दिशा में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है।

प्रमुख आँकड़े और विवरण

कुल स्थापित क्षमता (जून 2025):
15,539.9 MW

बिजली से लाभान्वित घरों की संख्या:
लगभग 79 लाख परिवार

वार्षिक कार्बन उत्सर्जन में कटौती:
28.6 मिलियन टन CO₂

पर्यावरणीय तुल्यता:

  • 6.3 मिलियन कारों को सड़क से हटाने के बराबर

  • 1.36 बिलियन पेड़ लगाने के बराबर

क्षमता विभाजन:

  • सौर ऊर्जा: 11,005.5 MW

  • पवन ऊर्जा: 1,977.8 MW

  • हाइब्रिड (सौर+पवन): 2,556.6 MW

हालिया उपलब्धियाँ:

  • FY25 में 3,309 MW जोड़ा गया — किसी भी भारतीय कंपनी द्वारा एक वर्ष में सबसे अधिक।

  • यह पूरी क्षमता ग्रीनफील्ड विकास (नई परियोजनाएं, अधिग्रहण नहीं) से प्राप्त की गई है।

प्रमुख परियोजनाएँ:

  • कमुथी सोलर प्लांट (तमिलनाडु): 648 MW – FY16 में चालू

  • जैसलमेर हाइब्रिड प्रोजेक्ट (राजस्थान): 2,140 MW – FY23

खवड़ा परियोजना (कच्छ, गुजरात):

  • लक्ष्य: 30,000 MW (2030 तक)

  • अब तक चालू: 5,355.9 MW

  • क्षेत्रफल: 538 वर्ग किलोमीटर

  • विश्व की सबसे बड़ी नवीकरणीय ऊर्जा परियोजना बनने की दिशा में अग्रसर

भविष्य के लक्ष्य:

  • 2030 तक लक्ष्य: 50 GW स्थापित क्षमता

  • वार्षिक पूंजीगत व्यय (Capex) योजना: $20 बिलियन (आंतरिक स्रोत + ऋण के माध्यम से)

  • अदाणी समूह का बड़ा लक्ष्य: 2030 तक 100 GW कुल विद्युत उत्पादन क्षमता

भारत का विदेशी ऋण 10 प्रतिशत बढ़कर 736.3 अरब डॉलर पर: RBI Data

भारतीय रिजर्व बैंक ने कहा कि भारत का बाह्य यानी विदेशी ऋण मार्च 2025 के अंत तक 10 प्रतिशत बढ़कर 736.3 अरब डॉलर हो गया, जबकि एक साल पहले इसी अवधि में यह 668.8 अरब डॉलर था। जीडीपी के प्रतिशत के रूप में बाह्य ऋण एक साल पहले के 18.5 प्रतिशत से बढ़कर 2024-25 के अंत तक 19.1 प्रतिशत हो गया। आरबीआई ने कहा कि समीक्षाधीन वित्त वर्ष में मुद्रा बाजारों में कुछ उतार-चढ़ाव देखा गया, और रुपये तथा अन्य मुद्राओं के मुकाबले अमेरिकी डॉलर के मूल्य में वृद्धि के कारण ‘मूल्यांकन प्रभाव’ 5.3 अरब डॉलर रहा।

समाचार में क्यों?

भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा जारी ताजा आंकड़ों के अनुसार, मार्च 2025 के अंत तक भारत का बाह्य ऋण $736.3 बिलियन तक पहुँच गया है, जो पिछले वर्ष ($668.8 बिलियन) की तुलना में $67.5 बिलियन (10%) की वृद्धि को दर्शाता है। इस वृद्धि के साथ बाह्य ऋण-से-GDP अनुपात भी FY24 के 18.5% से बढ़कर FY25 में 19.1% हो गया है, जो वैश्विक वित्तीय परिस्थितियों, ऋण की बढ़ती मांग और मुद्रा विनिमय दरों का असर दिखाता है।

प्रमुख आँकड़े 

कुल बाह्य ऋण (मार्च 2025):

$736.3 बिलियन

पिछला वर्ष (मार्च 2024):
$668.8 बिलियन

वार्षिक वृद्धि:

$67.5 बिलियन (10%)

बाह्य ऋण-से-GDP अनुपात:

FY24: 18.5% → FY25: 19.1%

मूल्यांकन प्रभाव (Valuation Effect):

अमेरिकी डॉलर की मजबूती के कारण $5.3 बिलियन का मूल्य प्रभाव

मूल्य प्रभाव को छोड़कर, वास्तविक ऋण वृद्धि होती $72.9 बिलियन

उधारकर्ता के अनुसार ऋण वितरण

  • गैर-वित्तीय निगम: $261.7 बिलियन

  • सरकार: $168.4 बिलियन

  • जमा-स्वीकार करने वाले निगम (बिना RBI): $202.1 बिलियन

ऋण की परिपक्वता संरचना

दीर्घकालिक ऋण (> 1 वर्ष):

  • $601.9 बिलियन (वार्षिक वृद्धि: $60.6 बिलियन)

अल्पकालिक ऋण (≤ 1 वर्ष):

  • कुल ऋण में हिस्सेदारी: 19.1% → 18.3%
  • लेकिन विदेशी मुद्रा भंडार के प्रतिशत में वृद्धि: 19.7% → 20.1%

मुद्रा के अनुसार ऋण

  • अमेरिकी डॉलर: 54.2%

  • भारतीय रुपया: 31.1%

  • जापानी येन: 6.2%

  • स्पेशल ड्राइंग राइट्स: 4.6%

  • यूरो: 3.2%

ऋण के साधनों के अनुसार वितरण 

  • ऋण: 34%

  • मुद्रा एवं जमा: 22.8%

  • व्यापारिक ऋण एवं अग्रिम: 17.8%

  • ऋण प्रतिभूतियाँ: 17.7%

RBI ने AEPS से जुड़ी सेवाओं पर सख्त निगरानी के निर्देश जारी किए

डिजिटल बैंकिंग को सुरक्षित बनाने की दिशा में बड़ा कदम उठाते हुए भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने आधार आधारित भुगतान प्रणाली (AEPS) से जुड़ी सेवाओं पर सख्त निगरानी के निर्देश जारी किए हैं। अब अंगूठा लगाकर बैंक से पैसे निकालने वाली प्रक्रिया में कड़े नियम लागू होंगे। RBI ने बैंकों से कहा है कि AEPS सेवाएं देने वाले ऑपरेटरों को सिस्टम में जोड़ने से पहले उनकी अच्छी तरह से जांच-पड़ताल की जाए, ताकि फ्रॉड और पहचान की चोरी जैसी घटनाओं पर रोक लगाई जा सके।

समाचार में क्यों?

भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने आधार सक्षम भुगतान प्रणाली (AePS) के माध्यम से हो रही धोखाधड़ी गतिविधियों में वृद्धि के मद्देनज़र नए सख्त परिचालन दिशा-निर्देश जारी किए हैं। ये नियम 1 जनवरी 2026 से प्रभावी होंगे और सभी संबंधित पक्षों को तीन माह के भीतर इन्हें लागू करना होगा। यह कदम ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में बैंकिंग लेन-देन की सुरक्षा, पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ाने के उद्देश्य से उठाया गया है।

उद्देश्य और लक्ष्य

  • AePS लेन-देन की सुरक्षा और विश्वसनीयता को मज़बूत करना
  • पहचान की चोरी, डेटा दुरुपयोग और धोखाधड़ी को रोकना
  • बैंक मित्रों और बिजनेस कॉरेस्पॉन्डेंट्स (BCs) की जवाबदेही बढ़ाना
  • बैंकों और ऑपरेटरों के बीच नियंत्रण और समन्वय सुनिश्चित करना

प्रमुख दिशानिर्देश

KYC और ड्यू डिलिजेंस

  • ऑनबोर्डिंग के समय अधिग्रहणकर्ता बैंकों को पूर्ण KYC करना होगा (RBI के KYC मास्टर दिशा-निर्देश, 2016 के अनुसार)।

  • 6 महीने से निष्क्रिय ऑपरेटरों को फिर से सक्रिय करने से पहले KYC पुन: सत्यापन अनिवार्य होगा।

“एक ऑपरेटर–एक बैंक” नियम

  • प्रत्येक AePS टचपॉइंट ऑपरेटर केवल एक अधिग्रहणकर्ता बैंक के साथ ही कार्य कर सकेगा।

  • इस नियम के प्रवर्तन और निगरानी की जिम्मेदारी NPCI और बैंकों की होगी।

ऑपरेटर गतिविधि निगरानी

  • बैंक को ऑपरेटर के लेन-देन की निरंतर निगरानी करनी होगी।

  • ऑपरेटर को जोखिम प्रोफ़ाइल के आधार पर लेन-देन सीमा निर्धारित की जाएगी।

  • लेन-देन का स्थान, पंजीकृत पते से मेल खाना अनिवार्य होगा।

रीयल-टाइम अनियमितता पहचान प्रणाली

  • स्थान विसंगति, संदिग्ध गतिविधियाँ, या अनधिकृत पहुँच की तत्काल पहचान की व्यवस्था की जाएगी।

  • यह व्यवस्था चोरी या क्लोन किए गए आधार डेटा से होने वाली धोखाधड़ी को रोकने में सहायक होगी।

अनिवार्य अनुपालन

  • सभी संबंधित इकाइयों को NPCI के AePS दिशानिर्देशों का अनिवार्य रूप से पालन करना होगा।

  • यह भुगतान एवं निपटान प्रणाली अधिनियम, 2007 के तहत आता है।

पृष्ठभूमि

AePS प्रणाली के तहत आधार प्रमाणीकरण के माध्यम से ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में लोग बैलेंस पूछताछ, नकद निकासी, आदि जैसे बुनियादी बैंकिंग लेन-देन कर सकते हैं। हालांकि, ढीली KYC प्रक्रियाएँ और एकाधिक बैंक ऑपरेटर सेटअप के चलते धोखाधड़ी की घटनाओं में वृद्धि देखी जा रही थी।

भारत ने भूमि और समुद्री बंदरगाहों के माध्यम से बांग्लादेश से जूट आयात पर प्रतिबंध लगाया

भारत ने बांग्लादेश से भूमि मार्ग से कुछ जूट उत्पादों और बुने हुए कपड़ों के आयात पर प्रतिबंध लगा दिया है। हालांकि, विदेश व्यापार महानिदेशालय (डीजीएफटी) ने एक अधिसूचना में कहा कि इसकी अनुमति केवल न्हावा शेवा बंदरगाह के माध्यम से दी गई है। 17 मई को भारत ने बांग्लादेश से रेडीमेड कपड़ों और प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों जैसी कुछ वस्तुओं के आयात पर बंदरगाह प्रतिबंध लगा दिया था। इन प्रतिबंधों के अंतर्गत आने वाले उत्पादों में जूट उत्पाद, एकल सन यार्न, जूट का एकल यार्न, बुने हुए कपड़े या फ्लेक्स तथा जूट के बिना साफ किए बुने हुए कपड़े शामिल हैं।

समाचार में क्यों?

भारत सरकार ने बांग्लादेश से आने वाले जूट और उससे संबंधित उत्पादों पर नई बंदरगाह प्रतिबंध नीति लागू की है। यह निर्णय 27 जून 2025 से प्रभावी हो गया है। इसके तहत सभी थल और समुद्री बंदरगाहों पर इन उत्पादों के प्रवेश पर रोक लगा दी गई है, मुंबई स्थित न्हावा शेवा बंदरगाह को छोड़कर। यह निर्णय विदेश व्यापार महानिदेशालय (DGFT) की अधिसूचना के माध्यम से जारी किया गया। इस कदम का उद्देश्य भारतीय जूट उद्योग को सस्ती और सब्सिडी युक्त आयातित जूट से हो रहे नुकसान से बचाना है।

नई व्यापारिक पाबंदी के उद्देश्य:

  • भारतीय जूट उद्योग की रक्षा करना, जिसमें लगभग 4 लाख श्रमिक कार्यरत हैं।
  • बांग्लादेश द्वारा दी जा रही सब्सिडी और डंपिंग प्रथाओं के प्रभाव को रोकना।
  • भारतीय किसानों और जूट मिल कर्मचारियों की आजीविका सुरक्षा सुनिश्चित करना।
  • निष्पक्ष व्यापार (Fair Trade) को बनाए रखना।

प्रमुख विशेषताएँ:

प्रभावी तिथि: 27 जून 2025 से लागू

जिन उत्पादों पर प्रतिबंध लागू है:

  • फ्लैक्स टोह और वेस्ट (धागा वेस्ट सहित)

  • जूट व अन्य बास्ट फाइबर

  • सिंगल यार्न ऑफ जूट

  • बुने हुए / बिना ब्लीच किए गए जूट के कपड़े

प्रतिबंधित प्रवेश बिंदु:

  • भारत-बांग्लादेश के सभी ज़मीनी बॉर्डर पोर्ट्स

  • सभी समुद्री बंदरगाह, न्हावा शेवा (मुंबई) को छोड़कर

भौगोलिक और क्षेत्रीय प्रभाव:

प्रभावित राज्य:

  • पश्चिम बंगाल, बिहार, असम, ओडिशा, आंध्र प्रदेश, त्रिपुरा, मेघालय

प्रभावित क्षेत्र:

  • संगठित जूट मिलें

  • मूल्य संवर्धित जूट उत्पाद इकाइयाँ

  • किसान और ग्रामीण श्रमिक वर्ग

पृष्ठभूमि और तर्क:

  • भारत ने पहले भी एंटी-डंपिंग शुल्क लगाया था, फिर भी बांग्लादेश से जूट आयात बढ़ता रहा।

  • बांग्लादेश द्वारा निर्यात पर दी जा रही सब्सिडी, भारत के अनुसार, निष्पक्ष बाज़ार पहुंच नियमों का उल्लंघन है।

  • सस्ती जूट आयात से हुआ नुकसान:

    • भारतीय मिलों की उत्पादन क्षमता कम उपयोग हो रही है

    • ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोजगारी बढ़ रही है

    • किसानों की आय में गिरावट आई है

सरकारी वक्तव्य:

“भारत द्वारा सद्भावना में दी गई बाज़ार पहुंच की अनुमति का दुरुपयोग भारत के आर्थिक हितों को नुकसान नहीं पहुँचा सकती। बांग्लादेश को ऐसी अनुचित व्यापारिक प्रथाओं की अनुमति नहीं दी जा सकती जो हमारे किसानों और श्रमिकों की आजीविका को खतरे में डालें।” — सरकारी स्रोत

अब पोस्ट ऑफिस में भी कर पाएंगे UPI पेमेंट

डाक विभाग ने घोषणा की है कि अगस्त 2025 तक भारत के सभी डाकघरों में काउंटर पर डिजिटल भुगतान स्वीकार किए जाएंगे। यह परिवर्तन आईटी 2.0 (IT 2.0) नामक एक सशक्त तकनीकी उन्नयन के माध्यम से संभव हो रहा है, जो UPI से जुड़े डायनामिक क्यूआर कोड के माध्यम से भुगतान को अधिक सुरक्षित और उपभोक्ता-अनुकूल बनाएगा।

समाचार में क्यों?

  • यह घोषणा डिजिटल सेवाओं को ग्रामीण और अर्ध-शहरी आबादी तक पहुंचाने की दिशा में एक बड़ा कदम है।

  • इसका आधार कर्नाटक के मैसूर और बागलकोट जिलों में किए गए पायलट प्रोजेक्ट की सफलता है, जिसने प्रणाली की प्रभावशीलता और विस्तार क्षमता को सिद्ध किया।

  • यह पहल डिजिटल इंडिया और कैशलेस इकोनॉमी के राष्ट्रीय दृष्टिकोण के अनुरूप है।

इस पहल की प्रमुख विशेषताएँ

कार्यान्वयन तिथि:
अगस्त 2025 तक पूरे भारत में लागू।

प्रयुक्त तकनीक:
आईटी 2.0 सिस्टम अपग्रेड के तहत डायनामिक UPI लिंक्ड QR कोड

पायलट प्रोजेक्ट:
मैसूर और बागलकोट के मुख्य और शाखा डाकघरों में सफलतापूर्वक लागू।

पूर्व प्रयास:
पहले स्थैतिक क्यूआर कोड का उपयोग किया गया था, लेकिन ग्राहक शिकायतों और तकनीकी दिक्कतों के कारण बंद कर दिया गया था।

सेवाओं की सीमा:
डाक शुल्क भुगतान, पार्सल बुकिंग, बचत जमा और अन्य सेवाओं पर डिजिटल भुगतान की सुविधा।

ग्राहक सहायता:
डाकघर कर्मचारी ग्राहकों को डिजिटल भुगतान प्रक्रिया में सहायता करेंगे।

उद्देश्य और महत्व

  • डाक सेवाओं में कैशलेस लेन-देन को बढ़ावा देना
  • वित्तीय संचालन में पारदर्शिता और दक्षता बढ़ाना
  • ग्रामीण और अर्ध-शहरी नागरिकों को डिजिटल भुगतान का सशक्त साधन प्रदान करना
  • नकद लेन-देन पर निर्भरता और उससे जुड़े जोखिमों को कम करना

पृष्ठभूमि

  • भारत का डाक नेटवर्क दुनिया का सबसे बड़ा नेटवर्क है, जिसमें 1.5 लाख से अधिक डाकघर हैं, जिनमें से अधिकांश ग्रामीण क्षेत्रों में स्थित हैं।

  • यह नेटवर्क वित्तीय समावेशन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, विशेष रूप से इंडिया पोस्ट पेमेंट्स बैंक (IPPB) के माध्यम से।

  • नया डिजिटल भुगतान सिस्टम डाकघरों और आधुनिक डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर के बीच की खाई को पाटेगा।

स्थैतिक सामान्य ज्ञान तथ्य 

डाक विभाग:
संचार मंत्रालय के अधीन कार्य करता है।
मुख्यालय: नई दिल्ली

डिजिटल इंडिया मिशन:
2015 में शुरू किया गया ताकि सरकारी सेवाएँ नागरिकों को इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से उपलब्ध कराई जा सकें।

UPI (यूपीआई):
नेशनल पेमेंट्स कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (NPCI) द्वारा विकसित एक डिजिटल भुगतान प्रणाली, जो बैंक-टू-बैंक, पर्सन-टू-मर्चेंट और पियर-टू-पियर लेन-देन को सरल बनाती है।

अमित शाह ने निजामाबाद में हल्दी बोर्ड मुख्यालय का उद्घाटन किया

गृह मंत्री अमित शाह ने 30 जून 2025 को तेलंगाना के निजामाबाद में राष्ट्रीय हल्दी बोर्ड के मुख्यालय का उद्घाटन किया। यह पहल हल्दी उत्पादन, ब्रांडिंग, अनुसंधान और वैश्विक व्यापार को प्रोत्साहित करने के लिए सरकार की प्रतिबद्धता को दर्शाती है। केंद्र सरकार ने इसके लिए ₹200 करोड़ का समर्थन दिया है और 2030 तक हल्दी निर्यात को $1 बिलियन तक पहुँचाने का लक्ष्य रखा है। यह बोर्ड भारत की मसाला अर्थव्यवस्था को नया स्वरूप देने में सहायक साबित हो सकता है।

समाचार में क्यों?

  • निजामाबाद में राष्ट्रीय हल्दी बोर्ड के मुख्यालय का उद्घाटन स्थानीय किसानों की लंबे समय से चली आ रही माँग को पूरा करता है।

  • यह भाजपा द्वारा 2019 के चुनावों में किए गए एक प्रमुख चुनावी वादे की पूर्ति है।

  • केंद्र सरकार का उद्देश्य भारतीय मसालों को वैश्विक मंच पर स्थापित करना है।

उद्देश्य और लक्ष्य

  • 2030 तक हल्दी निर्यात को $1 बिलियन तक पहुँचाना

  • किसानों को लाभकारी मूल्य सुनिश्चित करना

  • ब्रांडिंग, पैकेजिंग और विपणन को बढ़ावा देना

  • गुणवत्ता सुधार हेतु अनुसंधान और विकास (R&D) को प्रोत्साहित करना

पृष्ठभूमि और संदर्भ

  • निजामाबाद, तेलंगाना का एक प्रमुख हल्दी उत्पादक क्षेत्र है।

  • किसानों की वर्षों से एक समर्पित हल्दी बोर्ड की माँग थी।

  • भाजपा सांसद डी. अरविंद ने 2019 में यह वादा किया था और इस मुद्दे पर के. चंद्रशेखर राव की बेटी के. कविता को हराया था।

  • प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पहले ही बोर्ड की घोषणा की थी, अब इसे औपचारिक रूप से प्रारंभ किया गया है।

स्थैतिक तथ्य

  • भारत दुनिया का सबसे बड़ा हल्दी उत्पादक और निर्यातक देश है।

  • निजामाबाद, भारत के कुल हल्दी उत्पादन में महत्वपूर्ण योगदान देता है।

  • राष्ट्रीय हल्दी बोर्ड का मुख्यालय अब निजामाबाद, तेलंगाना में स्थित है।

  • ₹200 करोड़ की राशि फसल की गुणवत्ता सुधार, R&D और किसानों के कल्याण के लिए स्वीकृत की गई है।

महत्त्व

  • ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती और कृषि निर्यात को बढ़ावा

  • तेलंगाना में प्रमुख चुनावी वादे की पूर्ति

  • भारत को वैश्विक मसाला हब बनाने के लक्ष्य के अनुरूप

  • मूल्य संवर्धित उत्पादों के निर्यात को प्रोत्साहन

भारत की चालू खाता स्थिति में बड़ा सुधार: FY25 की चौथी तिमाही में $13.5 बिलियन अधिशेष

भारत के बाह्य क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण सुधार दर्ज करते हुए, देश ने वित्त वर्ष 2024-25 की चौथी तिमाही (Q4 FY25) में $13.5 बिलियन का चालू खाता अधिशेष (जो GDP का 1.3% है) दर्ज किया है। भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, यह पिछले वित्तीय तिमाही (Q3 FY25) में दर्ज $11.3 बिलियन के घाटे से एक बड़ा मोड़ दर्शाता है। साथ ही, यह Q4 FY24 में दर्ज $4.6 बिलियन के अधिशेष की तुलना में भी उल्लेखनीय सुधार को दर्शाता है। यह बदलाव भारत के सेवाओं के निर्यात, रेमिटेंस, और प्राथमिक आय में संतुलन की दिशा में एक सकारात्मक संकेत है, जो देश की बाहरी स्थिरता को मज़बूत करता है।

समाचार में क्यों?

भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने 28 जून 2025 को FY25 की चौथी तिमाही (Q4) के लिए बैलेंस ऑफ पेमेंट्स (BoP) डेटा जारी किया, जिसमें भारत ने $13.5 बिलियन (GDP का 1.3%) का चालू खाता अधिशेष दर्ज किया। यह पिछली तिमाही (Q3 FY25) के $11.3 बिलियन घाटे (1.1% GDP) से बड़ा बदलाव है और FY24 की समान तिमाही के $4.6 बिलियन अधिशेष (0.5% GDP) की तुलना में भी उल्लेखनीय सुधार है।

यह अधिशेष ऐसे समय पर सामने आया है जब वैश्विक वित्तीय अनिश्चितताओं के बीच नीतिनिर्माता भारत की बाहरी क्षेत्रीय स्थिरता पर गहरी नजर रखे हुए हैं।

RBI Q4 FY25 डेटा की प्रमुख झलकियाँ

चालू खाता संतुलन (Current Account Balance):

  • $13.5 बिलियन अधिशेष (GDP का 1.3%)

  • Q3 FY25 में $11.3 बिलियन का घाटा

  • Q4 FY24 में $4.6 बिलियन का अधिशेष (0.5%)

मर्चेंडाइज़ व्यापार घाटा :

  • Q4 FY25 में $59.5 बिलियन

  • Q3 FY25 से बेहतर ($79.3 बिलियन), पर Q4 FY24 से अधिक ($52 बिलियन)

नेट सेवाओं से प्राप्ति :

  • $53.3 बिलियन (Q4 FY25) — Q4 FY24 से वृद्धि ($42.7 बिलियन)

  • मुख्य योगदान: कंप्यूटर सेवाएँ और बिज़नेस सेवाएँ

प्राथमिक आय प्रवाह:

  • घटकर $11.9 बिलियन (Q4 FY25)

  • Q4 FY24 में था $14.8 बिलियन

  • इसमें भारत में विदेशी निवेश पर भुगतान शामिल है

व्यक्तिगत स्थानांतरण (प्रवासी रेमिटेंस):

  • बढ़कर $33.9 बिलियन (Q4 FY25)

  • Q4 FY24 में $31.3 बिलियन

  • चालू खाते के अधिशेष में अहम योगदान

प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI):

  • शुद्ध प्रवाह $0.4 बिलियन (Q4 FY25)

  • Q4 FY24 में $2.3 बिलियन था

स्थैतिक अवधारणाएँ 

चालू खाता:
माल, सेवाएँ, प्राथमिक आय (जैसे निवेश पर भुगतान), और स्थानांतरण (जैसे रेमिटेंस) का कुल लेन-देन।

अधिशेष:
जब कोई देश निर्यात और स्थानांतरण से जितना कमाता है, वह उसके आयात और भुगतान से अधिक होता है।

महत्त्व:
चालू खाता अधिशेष बाहरी ऋण पर निर्भरता घटाता है, रुपये की स्थिरता को मज़बूत करता है और विदेशी मुद्रा भंडार को बेहतर बनाता है।

RBI की भूमिका:
हर तिमाही में बैलेंस ऑफ पेमेंट्स डेटा प्रकाशित करता है, जिससे भारत की बाहरी आर्थिक स्थिति का आकलन किया जा सके।

जानें कौन हैं पराग जैन? सरकार ने बनाया RAW का नया चीफ

केंद्र सरकार ने पंजाब कैडर के 1989 बैच के आईपीएस अधिकारी पराग जैन को रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (RAW) का नया प्रमुख नियुक्त किया है। पराग, रवि सिन्हा की जगह लेंगे, जिनका मौजूदा कार्यकाल 30 जून को समाप्त हो रहा है। जैन 1 जुलाई 2025 को दो साल के निश्चित कार्यकाल के लिए पदभार ग्रहण करेंगे।

पृष्ठभूमि: ऑपरेशन सिंदूर और इसकी रणनीतिक महत्ता

पराग जैन की नियुक्ति ऐसे समय में हुई है जब भारत ने एक उच्च-स्तरीय खुफिया और सैन्य अभियान “ऑपरेशन सिंदूर” को अंजाम दिया। यह अभियान 22 अप्रैल 2025 को जम्मू-कश्मीर के पर्यटन स्थल पहलगाम में हुए एक भीषण आतंकी हमले के बाद शुरू किया गया था, जिसमें 26 निर्दोष नागरिकों की जान चली गई थी। भारतीय एजेंसियों ने हमले का संबंध पाकिस्तान के “डीप स्टेट” द्वारा समर्थित आतंकी संगठनों से जोड़ा।

भारत ने इस हमले के जवाब में पाक-अधिकृत क्षेत्रों में गहराई तक सटीक हमले किए, जो पूरी तरह से रियल-टाइम खुफिया जानकारी, हवाई निगरानी और ज़मीनी समन्वय पर आधारित थे। ऑपरेशन सिंदूर एक गोपनीय, बहु-एजेंसी प्रतिउत्तर था जिसका उद्देश्य स्पष्ट लेकिन सीमित सैन्य कार्रवाई के माध्यम से सख्त संदेश देना था, ताकि पूर्ण युद्ध से बचा जा सके।

10 मई 2025 को चार दिनों की तीव्र सीमा-पार झड़पों के बाद संघर्षविराम समझौता हुआ। खुफिया सूत्रों के अनुसार, पराग जैन ने इस अभियान के दौरान खुफिया समन्वय और संचालन में पर्दे के पीछे से महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिससे उनकी विश्वसनीयता और नेतृत्व क्षमता प्रमाणित हुई और रॉ प्रमुख के रूप में उनकी नियुक्ति को बल मिला।

पराग जैन: नए रॉ प्रमुख की प्रोफ़ाइल

आईपीएस पृष्ठभूमि और करियर यात्रा

पराग जैन 1989 बैच के भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) अधिकारी हैं और पंजाब कैडर से आते हैं। अपने तीन दशक से अधिक लंबे विशिष्ट सेवा काल में उन्होंने रणनीतिक सोच, संचालन नेतृत्व, और रणनीतिक खुफिया के क्षेत्र में एक मजबूत पहचान बनाई है। अपने करियर के प्रारंभिक वर्षों में उन्होंने पंजाब के आतंकवाद-प्रभावित क्षेत्रों में विभिन्न महत्वपूर्ण जिलों में कार्य किया, जहाँ उन्होंने वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (SSP) और उप महानिरीक्षक (DIG) जैसे महत्वपूर्ण पदों पर रहते हुए जमीनी अनुभव अर्जित किया। इन कठिन परिस्थितियों में कार्य करते हुए पराग जैन ने संकट प्रबंधन और सुरक्षा संचालन में अपनी दक्षता सिद्ध की।

रॉ में कार्यकाल और प्रमुख जिम्मेदारियाँ

पराग जैन ने रॉ (RAW) में 20 वर्षों से अधिक समय तक सेवाएं दी हैं, जिसके दौरान उन्होंने भारत की बाह्य खुफिया प्रणाली की गहराई से समझ विकसित की। वे विशेष रूप से पाकिस्तान डेस्क पर अपने कार्य के लिए जाने जाते हैं, जहाँ उन्होंने सीमा-पार जासूसी, आतंकी वित्त पोषण की निगरानी और आतंक-रोधी खुफिया संचालन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

उनकी विदेशों में रणनीतिक तैनातियाँ भी उल्लेखनीय रही हैं। उन्होंने भारत के श्रीलंका और कनाडा स्थित मिशनों में सेवाएं दीं। कनाडा में तैनाती के दौरान, पराग जैन ने खालिस्तानी आतंक नेटवर्क की पहचान और उसे निष्क्रिय करने में अहम योगदान दिया, जो प्रवासी भारतीय समुदाय में पुनः उभरती अलगाववादी गतिविधियों के संदर्भ में अत्यंत संवेदनशील कार्य था।

वर्तमान भूमिका: एविएशन रिसर्च सेंटर (ARC)

रॉ प्रमुख बनने से पहले पराग जैन ने एविएशन रिसर्च सेंटर (ARC) का नेतृत्व किया, जो रॉ का एक अत्यंत महत्वपूर्ण अंग है। यह केंद्र हवाई निगरानी, सिग्नल इंटरसेप्शन, और उपग्रह चित्र विश्लेषण के लिए जिम्मेदार है। उनके कार्यकाल में ARC ने हवाई टोही तकनीकों में उल्लेखनीय प्रगति की, जिसका ऑपरेशन सिंदूर के दौरान रियल-टाइम निगरानी और योजना निर्माण में अहम योगदान रहा।

स्थानांतरण और कार्यकाल

पराग जैन 1 जुलाई 2025 से रॉ (RAW) के नए प्रमुख के रूप में कार्यभार संभालेंगे। वे रवि सिन्हा का स्थान लेंगे, जिनका कार्यकाल 30 जून 2025 को समाप्त हो रहा है। उच्च सरकारी सूत्रों के अनुसार, पराग जैन का प्रारंभिक कार्यकाल दो वर्षों का होगा, जिसे प्रदर्शन और राष्ट्रीय सुरक्षा की आवश्यकताओं के आधार पर आगे बढ़ाया जा सकता है।

नियुक्ति के रणनीतिक प्रभाव

पराग जैन की नियुक्ति ऐसे समय पर हुई है जब वैश्विक खुफिया युद्ध, क्षेत्रीय अस्थिरता, और अंतरराष्ट्रीय आतंकी नेटवर्कों से खतरा बढ़ता जा रहा है। उनकी मैदान स्तर की व्यापक अनुभव, पाकिस्तान की गुप्त रणनीतियों की गहरी समझ, और प्रवासी समुदाय से जुड़े उग्रवाद की जानकारी उन्हें RAW को इन उभरते खतरों से निपटने में सक्षम बनाती है।

इसके अतिरिक्त, ड्रोन आधारित निगरानी और एआई आधारित खतरा मैपिंग जैसे तकनीकी खुफिया प्लेटफ़ॉर्मों में जैन की विशेषज्ञता, भारत सरकार की तकनीक-सक्षम खुफिया प्रणाली की दिशा में पहल के अनुरूप है। यह नियुक्ति आने वाले समय में भारत की खुफिया क्षमताओं को अधिक उन्नत और प्रतिक्रियाशील बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।

राष्ट्रीय सांख्यिकी दिवस 2025: इतिहास और महत्व

भारत में हर वर्ष 29 जून को राष्ट्रीय सांख्यिकी दिवस मनाया जाता है, जो आधुनिक भारतीय सांख्यिकी के जनक प्रोफेसर प्रशांत चंद्र महालनोबिस की जयंती के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। प्रो. महालनोबिस ने सांख्यिकी के क्षेत्र में कई क्रांतिकारी योगदान दिए, जिनमें “महालनोबिस दूरी” (Mahalanobis Distance) की अवधारणा और भारत की पंचवर्षीय योजनाओं के निर्माण में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका शामिल है। यह दिवस भारत में आर्थिक योजना, डेटा विज्ञान और संस्थागत विकास जैसे क्षेत्रों में उनके अतुलनीय योगदान को सम्मान देने का एक माध्यम है। उन्होंने भारतीय सांख्यिकी संस्थान (ISI) और राष्ट्रीय सैंपल सर्वे (NSS) जैसी महत्वपूर्ण संस्थाओं की स्थापना कर भारत को सांख्यिकी के क्षेत्र में वैश्विक स्तर पर प्रतिष्ठा दिलाई।

राष्ट्रीय सांख्यिकी दिवस: पृष्ठभूमि और उद्देश्य

भारत सरकार ने वर्ष 2007 में 29 जून को आधिकारिक रूप से राष्ट्रीय सांख्यिकी दिवस के रूप में घोषित किया। इस दिन को मनाने का मुख्य उद्देश्य यह है कि राष्ट्र निर्माण, नीतिनिर्धारण और विकासात्मक योजना में सांख्यिकी की भूमिका को लेकर जन-जागरूकता बढ़ाई जाए। इसके साथ ही, स्वास्थ्य, शिक्षा, कृषि और पर्यावरण जैसे क्षेत्रों में डेटा-आधारित निर्णय प्रक्रिया को प्रोत्साहित करना भी इसका अहम उद्देश्य है। यह दिवस इस बात की याद दिलाता है कि पारदर्शी और प्रभावी शासन के लिए सटीक आंकड़े और सांख्यिकीय विश्लेषण अत्यंत आवश्यक हैं।

राष्ट्रव्यापी आयोजन और विषयगत गतिविधियाँ

सांख्यिकी और कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय (MoSPI) द्वारा इस दिन विभिन्न शैक्षणिक और जन-जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। इनमें सेमिनार, कार्यशालाएँ, व्याख्यान और पैनल चर्चा शामिल होती हैं, जिनमें नीति-निर्माता, सांख्यिकीविद, विद्यार्थी और शोधकर्ता भाग लेते हैं। हर वर्ष किसी महत्वपूर्ण राष्ट्रीय विषय पर आधारित एक विशेष थीम घोषित की जाती है, जो आंकड़ों और सांख्यिकी से संबंधित होती है। भारत के विभिन्न संस्थानों में प्रतियोगिताएँ, प्रदर्शनी और पुरस्कार समारोह आयोजित किए जाते हैं, ताकि युवाओं में सांख्यिकी की समझ और रूचि को बढ़ाया जा सके।

शासन में सांख्यिकी का महत्व

सांख्यिकी भारत की सार्वजनिक नीतियों को आकार देने में अहम भूमिका निभाती है। बेरोज़गारी दर, स्वास्थ्य सूचकांक, सकल घरेलू उत्पाद (GDP) और जनगणना जैसे आँकड़ों के माध्यम से सरकार विकास योजनाओं को सटीक रूप से तैयार, लागू और मूल्यांकन कर पाती है। प्रमाण-आधारित शासन (evidence-based governance) पारदर्शिता, जवाबदेही और संसाधनों के कुशल आवंटन को सुनिश्चित करता है। राष्ट्रीय सांख्यिकी दिवस यह सुनिश्चित करता है कि समावेशी और सतत विकास के लिए समय पर और सटीक डेटा का उपयोग आवश्यक है।

भविष्य की दृष्टि

आगे की दिशा में, राष्ट्रीय सांख्यिकी दिवस यह संदेश देता है कि विशेष रूप से युवाओं में सांख्यिकीय सोच की संस्कृति को बढ़ावा देना समय की मांग है। डेटा प्रणाली को सुदृढ़ करना, आधुनिक विश्लेषणात्मक तकनीकों का समावेश करना और डेटा की सुलभता व नैतिक उपयोग को सुनिश्चित करना प्रमुख लक्ष्य हैं। भारत, डेटा विज्ञान और सांख्यिकीय शिक्षा को बढ़ावा देकर एक ऐसी नई पीढ़ी तैयार करना चाहता है, जो प्रमाण-आधारित नीति निर्माण में देश की प्रगति में सहायक हो सके।

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