PM Kisan 19th Installment 2025: पीएम किसान की 19वीं किस्त रिलीज

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2019 में प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि (PM-KISAN) योजना की शुरुआत की थी, जिसका उद्देश्य छोटे और सीमांत किसानों को आर्थिक सहायता प्रदान करना है। इस योजना के तहत किसानों को वार्षिक ₹6,000 की सहायता तीन किस्तों में (₹2,000 प्रति किस्त) सीधे बैंक खातों में दी जाती है।

PM-KISAN 19वीं किस्त की तिथि और समय

तिथि: 24 फरवरी 2025
स्थान: भागलपुर, बिहार में आयोजित एक भव्य समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा धनराशि जारी की जाएगी। यह तिथि महत्वपूर्ण है क्योंकि इस दिन PM-KISAN योजना की छठी वर्षगांठ भी मनाई जाएगी।

PM-KISAN eKYC प्रक्रिया

PM-KISAN की 19वीं किस्त प्राप्त करने के लिए किसानों को eKYC प्रक्रिया पूरी करनी होगी:

  1. PM-KISAN पोर्टल पर जाएं: pmkisan.gov.in पर जाएं।
  2. OTP आधारित eKYC: आधार नंबर दर्ज करें और मोबाइल पर प्राप्त OTP से सत्यापन करें।
  3. बायोमेट्रिक eKYC: नजदीकी कॉमन सर्विस सेंटर (CSC) पर जाकर बायोमेट्रिक सत्यापन पूरा करें।

PM-KISAN लाभार्थी स्थिति कैसे जांचें?

  1. आधिकारिक वेबसाइट पर जाएं: pmkisan.gov.in
  2. ‘Beneficiary Status’ पर क्लिक करें।
  3. विवरण दर्ज करें: आधार नंबर, मोबाइल नंबर या बैंक खाता संख्या डालें।
  4. ‘Get Data’ पर क्लिक करें।

PM-KISAN लाभार्थी सूची कैसे देखें?

  1. PM-KISAN पोर्टल पर जाएं।
  2. ‘Beneficiary List’ पर क्लिक करें।
  3. राज्य, जिला, तहसील, ब्लॉक और गांव का चयन करें।
  4. ‘Get Report’ पर क्लिक करके सूची देखें।

PM-KISAN पात्रता मानदंड

  • लाभार्थी के नाम पर कृषि योग्य भूमि होनी चाहिए।
  • वह छोटे या सीमांत किसान होने चाहिए।
  • ₹10,000 से अधिक मासिक पेंशन पाने वाले या इनकम टैक्स देने वाले किसान पात्र नहीं हैं।

PM-KISAN 19वीं किस्त के वित्तीय विवरण

  • इस किस्त में ₹22,000 करोड़ सीधे 9.8 करोड़ किसानों को ट्रांसफर किए जाएंगे।
  • प्रत्येक पात्र किसान को ₹2,000 प्राप्त होंगे।
  • योजना की शुरुआत से अब तक ₹3.46 लाख करोड़ से अधिक की राशि किसानों को दी जा चुकी है।

PM-KISAN योजना का प्रभाव और महत्व

PM-KISAN योजना ने किसानों की आर्थिक स्थिरता को बढ़ावा दिया है, जिससे वे कृषि और घरेलू खर्चों को सुगमता से पूरा कर सकते हैं। 19वीं किस्त सरकार की किसानों को सशक्त बनाने और कृषि उत्पादकता बढ़ाने की प्रतिबद्धता को और मजबूत करती है।

प्रसिद्ध ओडिसी नृत्यांगना मायाधर राउत का 92 वर्ष की उम्र में निधन

प्रसिद्ध ओडिशी नृत्याचार्य मयाधर राउत, जिन्हें “ओडिशी नृत्य के जनक” के रूप में जाना जाता है, का 22 फरवरी 2025 को दिल्ली स्थित अपने आवास पर 92 वर्ष की आयु में निधन हो गया। उनके परिवार ने पुष्टि की कि वृद्धावस्था के कारण उन्होंने शांति से अंतिम सांस ली। पद्म श्री से सम्मानित मयाधर राउत ने 1950 के दशक में ओडिशी नृत्य के पुनरुद्धार और मानकीकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने संचारी भाव, मुद्रा विनियोग और रस सिद्धांत को ओडिशी में शामिल किया, जिससे यह एक संगठित शास्त्रीय नृत्य रूप में विकसित हुआ।

मयाधर राउत के प्रमुख योगदान एवं जीवन उपलब्धियां

प्रारंभिक जीवन और प्रशिक्षण

  • जन्म: 6 जुलाई 1933, ओडिशा।
  • गोटीपुआ नृत्य (ओडिशी का पूर्ववर्ती रूप) में 7 वर्ष की आयु में प्रशिक्षण प्रारंभ
  • 1944 में पहली बार गोटीपुआ को मंच पर प्रस्तुत किया

ओडिशी नृत्य का पुनरुद्धार

  • ओडिशी नृत्य को शास्त्रीय सिद्धांतों के आधार पर पुनर्गठित किया।
  • 1952 में कटक में ‘कला विकास केंद्र’ की स्थापना, जो ओडिशी नृत्य सिखाने वाला भारत का पहला संस्थान बना।
  • 1959 में ‘जयंतिका संघ’ की स्थापना की, जिसने ओडिशी नृत्य के लिए एक संगठित ढांचा तैयार किया।
  • संचारी भाव, मुद्रा विनियोग और रस सिद्धांत को ओडिशी में शामिल किया।
  • शृंगार रस पर आधारित गीता गोविंद की अष्टपदियों का पहली बार नृत्य रचना की।

महत्वपूर्ण पद एवं नृत्य रचनाएं

  • 1970 से 1995 तक श्रीराम भारतीय कला केंद्र, दिल्ली में ओडिशी विभाग के प्रमुख रहे।
  • 1971 में दिल्ली के कमानी सभागार के उद्घाटन के अवसर पर गीता गोविंद की नृत्य प्रस्तुति की।
  • रामणी रंजन जेना, अलोका पनिकर और गीता महालिक जैसे प्रसिद्ध ओडिशी नृत्यांगनों को प्रशिक्षण दिया।

प्रमुख पुरस्कार एवं सम्मान

  • ओडिशा संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार (1977)
  • साहित्य कला परिषद पुरस्कार (1984)
  • संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार (1985)
  • राजीव गांधी सद्भावना पुरस्कार (2003)
  • उपेन्द्र भंज सम्मान (2005)
  • टैगोर अकादमी रत्न (2011)
  • पद्म श्री सम्मान (ओडिशी नृत्य में उनके अतुलनीय योगदान के लिए)

व्यक्तिगत जीवन एवं निधन

  • उनके परिवार में बेटी मधुमिता राउत (ओडिशी नृत्यांगना) और बेटे मनोज राउत व मन्मथ राउत हैं।
  • उनकी पत्नी ममता राउत का 2017 में निधन हो गया था।
  • 22 फरवरी 2025 को दिल्ली स्थित अपने आवास में वृद्धावस्था के कारण उनका निधन हुआ।
  • अंतिम संस्कार लोधी रोड श्मशान घाट में संपन्न हुआ।

दुनिया के इन 10 देशों का है सबसे अधिक रक्षा बजट: रिपोर्ट

अंतर्राष्ट्रीय सामरिक अध्ययन संस्थान (IISS) की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, 2024 में वैश्विक रक्षा खर्च 2.46 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंच गया, जो 2023 के 2.24 ट्रिलियन डॉलर की तुलना में उल्लेखनीय वृद्धि दर्शाता है। वैश्विक जीडीपी में रक्षा खर्च का औसत हिस्सा बढ़कर 1.9% हो गया है। यह वृद्धि मुख्य रूप से यूरोप, मध्य पूर्व, उत्तरी अफ्रीका (MENA) और एशिया में बढ़ते सुरक्षा खतरों और भू-राजनीतिक तनाव के कारण हुई है।

2025 में वैश्विक सैन्य खर्च की प्रवृत्तियां

सुरक्षा चुनौतियों के चलते विभिन्न देशों ने अपनी सेनाओं के आधुनिकीकरण और सैन्य तकनीक के उन्नयन पर जोर दिया है। ग्लोबल फायरपावर रैंकिंग 2025 के अनुसार, रक्षा बजट के मामले में शीर्ष दस देश निम्नलिखित हैं:

रैंक देश रक्षा बजट (अमेरिकी डॉलर में)
1 संयुक्त राज्य अमेरिका $895 अरब
2 चीन $266.85 अरब
3 रूस $126 अरब
4 भारत $75 अरब
5 सऊदी अरब $74.76 अरब
6 यूनाइटेड किंगडम $71.5 अरब
7 जापान $57 अरब
8 ऑस्ट्रेलिया $55.7 अरब
9 फ्रांस $55 अरब
10 यूक्रेन $53.7 अरब

प्रमुख निष्कर्ष

  • अमेरिका $895 अरब के बजट के साथ शीर्ष पर बना हुआ है।
  • चीन ने अपनी सैन्य शक्ति को बढ़ाने के लिए $266.85 अरब का बजट आवंटित किया है।
  • रूस ने चल रहे संघर्षों के कारण अपना रक्षा बजट बढ़ाकर $126 अरब कर दिया है।
  • भारत चौथे स्थान पर है और $75 अरब के रक्षा बजट के साथ मजबूत सैन्य उपस्थिति बनाए हुए है।
  • रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते यूक्रेन भी शीर्ष 10 रक्षा व्यय वाले देशों में शामिल हो गया है।

भारत का रक्षा खर्च 2025: विस्तृत विश्लेषण

भारत की वैश्विक सैन्य रैंकिंग

भारत ग्लोबल फायरपावर इंडेक्स 2025 में 0.1184 पावर स्कोर के साथ चौथे स्थान पर है। देश लगातार अपने रक्षा बजट में वृद्धि कर रहा है ताकि सुरक्षा खतरों से निपटने के लिए अपनी सैन्य क्षमताओं को मजबूत कर सके।

केंद्रीय बजट 2025: रक्षा आवंटन

भारत सरकार ने वित्त वर्ष 2025 के केंद्रीय बजट में रक्षा मंत्रालय के लिए ₹6.81 लाख करोड़ आवंटित किए हैं, जो कुल बजट का 13.45% है। यह सभी मंत्रालयों में सबसे अधिक आवंटन है, जो राष्ट्रीय सुरक्षा के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।

भारत के रक्षा बजट में मुख्य निवेश क्षेत्र

  • लड़ाकू विमान, युद्धपोत और पनडुब्बियों की खरीद
  • ‘मेक इन इंडिया’ पहल के तहत स्वदेशी रक्षा तकनीक का विकास
  • साइबर सुरक्षा और अंतरिक्ष रक्षा क्षमताओं को मजबूत करना
  • चीन और पाकिस्तान से लगी सीमाओं पर सैन्य बुनियादी ढांचे का उन्नयन

रक्षा खर्च में वृद्धि के प्रमुख कारण

1. भू-राजनीतिक तनाव

  • रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण यूरोपीय देशों का सैन्य खर्च बढ़ा।
  • दक्षिण चीन सागर में चीन-ताइवान विवाद और क्षेत्रीय संघर्षों से एशिया में सुरक्षा चिंताएं बढ़ीं।
  • नाटो के विस्तार और बढ़ती सैन्य गतिविधियों के चलते रूस और चीन की प्रतिक्रियाएं तेज हुईं।

2. युद्ध तकनीक में नवाचार

  • कई देश AI-आधारित सैन्य तकनीक, साइबर युद्ध, और हाइपरसोनिक मिसाइलों में निवेश कर रहे हैं।
  • न्यूक्लियर डिटरेंस और अंतरिक्ष रक्षा क्षमताओं को उन्नत करने के लिए वैश्विक रक्षा बजट बढ़ रहा है।

3. सामरिक गठबंधनों को मजबूत करना

  • देशों के बीच गठबंधन बढ़ने से रक्षा खर्च में वृद्धि हुई है।
  • भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया का क्वाड गठबंधन सामरिक सुरक्षा को प्राथमिकता दे रहा है।

भविष्य की रक्षा खर्च प्रवृत्तियां

  • बढ़ती सुरक्षा चुनौतियों के कारण वैश्विक सैन्य खर्च आने वाले वर्षों में और बढ़ने की संभावना है
  • नई पीढ़ी के हथियारों का विकास, सैन्य गठबंधनों का विस्तार, और साइबर युद्ध की बढ़ती धमकियां रक्षा बजट को आकार देंगी।
  • भारत रक्षा उत्पादन में आत्मनिर्भरता की दिशा में आगे बढ़ रहा है, जिससे आयात पर निर्भरता घटेगी और देश की सैन्य शक्ति और मजबूत होगी।

भारत की आर्थिक वृद्धि दर 2025 में धीमी होकर 6.4 प्रतिशत रहेगी

भारत की आर्थिक वृद्धि दर 2025 में घटकर 6.4% रहने का अनुमान है, जो 2024 में 6.6% थी। यह आंकड़ा मूडीज एनालिटिक्स की हालिया रिपोर्ट में सामने आया है। रिपोर्ट के अनुसार, वैश्विक व्यापार तनाव, अमेरिका के नए टैरिफ, और कमजोर वैश्विक मांग भारतीय निर्यात को प्रभावित कर सकते हैं। एशिया-प्रशांत क्षेत्र भी मंदी का सामना कर रहा है, जहां चीन की जीडीपी वृद्धि दर 2024 में 5% से घटकर 2025 में 4.2% रहने की संभावना है।

भारतीय जीडीपी में गिरावट के प्रमुख कारण

1. व्यापार तनाव और निर्यात पर असर

  • अमेरिका के नए टैरिफ भारतीय निर्यात को कम प्रतिस्पर्धी बना सकते हैं।
  • वैश्विक मांग कमजोर होने से भारतीय उत्पादों की मांग घट सकती है।
  • निर्यात क्षेत्र की सुस्ती भारत की कुल आर्थिक वृद्धि को प्रभावित कर सकती है।

2. क्षेत्रीय आर्थिक मंदी का प्रभाव

  • एशिया-प्रशांत क्षेत्र में आर्थिक गतिविधियां धीमी हो रही हैं।
  • चीन की जीडीपी में गिरावट आपूर्ति श्रृंखला और व्यापार पैटर्न को प्रभावित कर सकती है।
  • चीन और भारत के व्यापारिक संबंधों में सुस्ती भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक नई चुनौती बन सकती है।

3. मुद्रा और निवेश से जुड़ी चुनौतियां

  • रुपये में गिरावट से आयात महंगा हो सकता है, जिससे व्यापार घाटा बढ़ सकता है।
  • विदेशी निवेश (FDI) में कमी आने से विनिर्माण और प्रौद्योगिकी क्षेत्रों की वृद्धि प्रभावित हो सकती है।
  • मुद्रास्फीति की अस्थिरता उपभोक्ताओं की क्रय शक्ति को प्रभावित कर सकती है।

सरकार की रणनीति: मंदी से निपटने के उपाय

1. वित्तीय और मौद्रिक नीति सुधार

  • मुद्रास्फीति नियंत्रण, रुपये की मजबूती, और विदेशी निवेश आकर्षित करने पर जोर।
  • मौद्रिक नीतियों में संतुलन बनाए रखने की आवश्यकता।
  • आर्थिक स्थिरता के लिए सरकारी खर्च और कर नीतियों में सुधार।

2. घरेलू मांग को बढ़ावा देने के लिए बजटीय समर्थन

  • आगामी केंद्रीय बजट में बुनियादी ढांचे, रोजगार सृजन, और आर्थिक प्रोत्साहन योजनाओं को प्राथमिकता।
  • वित्तीय घाटे को जीडीपी के 4.5% से नीचे लाने का लक्ष्य।

3. निजी उपभोग और निवेश को प्रोत्साहन

  • खुदरा, सेवा और प्रौद्योगिकी क्षेत्रों में मजबूत उपभोक्ता मांग बनी रहने की उम्मीद।
  • भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक बना रहेगा।

वैश्विक अर्थव्यवस्था की तुलना में भारत की स्थिति

  • संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, वैश्विक अर्थव्यवस्था 2025 में केवल 2.8% की दर से बढ़ेगी।
  • अमेरिका और चीन में मंदी का प्रभाव उभरती अर्थव्यवस्थाओं पर पड़ सकता है।
  • फिर भी, भारत की 6.4% जीडीपी वृद्धि दर कई विकसित देशों की तुलना में अधिक रहेगी।
  • डिजिटल अर्थव्यवस्था और मध्यम वर्ग का विस्तार दीर्घकालिक वृद्धि में मदद करेगा।

भविष्य की संभावनाएं

  • भारत ने 2024 में 6.6% जीडीपी वृद्धि दर्ज की थी, जो ग्रामीण मांग, औद्योगिक विस्तार, और सेवा क्षेत्र की मजबूती से प्रेरित थी।
  • रोजगार सृजन, कौशल विकास, और घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देकर उच्च वृद्धि दर बनाए रखना जरूरी।
  • दीर्घकालिक वृद्धि के लिए श्रम उत्पादकता, निवेश प्रवाह, और नवाचार को समर्थन देने वाली नीतियां आवश्यक होंगी।

ग्लोबल रेप्यूटेशन रैंकिंग में भारत के चार संस्थानों ने बनाई जगह

टाइम्स हायर एजुकेशन (THE) वर्ल्ड रेपुटेशन रैंकिंग 2025 विश्वभर के प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों का आकलन करती है, जिसमें शैक्षणिक उत्कृष्टता और वैश्विक मान्यता को प्राथमिकता दी जाती है। इस वर्ष भी हार्वर्ड विश्वविद्यालय लगातार 14वें वर्ष शीर्ष स्थान पर बना हुआ है, जबकि ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय और मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (MIT) ने संयुक्त रूप से दूसरा स्थान प्राप्त किया है। इस साल भारत के चार प्रमुख संस्थान इस सूची में शामिल हुए, लेकिन सभी की रैंकिंग में गिरावट दर्ज की गई। इसके अलावा, ओडिशा का शिक्ष ‘ओ’ अनुसंधान (Shiksha ‘O’ Anusandhan) पहली बार 201-300 रैंकिंग समूह में शामिल हुआ।

मुख्य बिंदु

वैश्विक रैंकिंग

  • हार्वर्ड विश्वविद्यालय लगातार 14वें वर्ष शीर्ष स्थान पर बना हुआ है।
  • ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय और MIT ने संयुक्त रूप से दूसरा स्थान प्राप्त किया।
  • यूके का केवल एक विश्वविद्यालय (ऑक्सफोर्ड) शीर्ष 7 में शामिल है, जबकि अमेरिकी विश्वविद्यालयों का दबदबा है।
  • इस सूची में 38 देशों के 300 संस्थानों को स्थान मिला है।

भारतीय विश्वविद्यालयों का प्रदर्शन

  • भारतीय विज्ञान संस्थान (IISc), बेंगलुरु 2023 में 101-125 रैंकिंग बैंड में था, लेकिन अब 201-300 बैंड में आ गया है।
  • आईआईटी दिल्ली 151-175 बैंड से गिरकर 201-300 बैंड में पहुंच गया।
  • आईआईटी मद्रास 176-200 बैंड से नीचे गिरकर 201-300 बैंड में आ गया।
  • आईआईटी बॉम्बे जो पहले 151-175 बैंड में था, इस साल की सूची से पूरी तरह बाहर हो गया।
  • शिक्ष ‘ओ’ अनुसंधान (Shiksha ‘O’ Anusandhan), भुवनेश्वर पहली बार 201-300 रैंकिंग बैंड में शामिल हुआ।

वर्ल्ड रेपुटेशन रैंकिंग 2025 की पद्धति

इस रैंकिंग को निर्धारित करने के लिए छह प्रमुख मानदंडों का उपयोग किया जाता है:

  1. अनुसंधान वोट काउंट – अनुसंधान में अकादमिक प्रतिष्ठा।
  2. शिक्षण वोट काउंट – शिक्षण में उत्कृष्टता की प्रतिष्ठा।
  3. अनुसंधान जोड़ी तुलना – संस्थानों के अनुसंधान की सीधी तुलना।
  4. शिक्षण जोड़ी तुलना – संस्थानों के शिक्षण की सीधी तुलना।
  5. अनुसंधान मतदाता विविधता – अनुसंधान में मतदान करने वाले विशेषज्ञों की विविधता।
  6. शिक्षण मतदाता विविधता – शिक्षण में भाग लेने वाले संकाय सदस्यों की विविधता।

यह रैंकिंग वैश्विक स्तर पर विश्वविद्यालयों की प्रतिष्ठा को दर्शाती है और भारत के संस्थानों के लिए सुधार की आवश्यकता को इंगित करती है।

क्यों खबर में? वैश्विक विश्वविद्यालय प्रतिष्ठा रैंकिंग 2025: अमेरिका शीर्ष पर, भारत की स्थिति कैसी?
रैंक 1 हार्वर्ड विश्वविद्यालय / अमेरिका
संयुक्त रैंक 2 ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय / यूके
संयुक्त रैंक 2 मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (MIT)
कुल संस्थान 38 देशों के 300 विश्वविद्यालय शामिल
रैंकिंग में भारतीय संस्थान IISc बेंगलुरु, IIT दिल्ली, IIT मद्रास, शिक्ष ‘ओ’ अनुसंधान
रैंकिंग से बाहर हुआ IIT बॉम्बे
भारत से नया प्रवेश शिक्ष ‘ओ’ अनुसंधान (SOA), भुवनेश्वर
भारतीय संस्थानों की रैंकिंग में गिरावट IISc, IIT दिल्ली, IIT मद्रास 201-300 बैंड में पहुंचे
रैंकिंग पद्धति अनुसंधान और शिक्षण प्रतिष्ठा, सहकर्मी तुलना, मतदाता विविधता

उत्तराखंड सरकार ने पेश किया 1 लाख करोड़ रुपये का बजट

उत्तराखंड सरकार ने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के नेतृत्व में वित्त वर्ष 2025-26 के लिए ₹1,01,175.33 करोड़ का बजट पेश किया। वित्त मंत्री प्रेम चंद्र अग्रवाल द्वारा देहरादून में राज्य विधानसभा में प्रस्तुत इस बजट का मुख्य उद्देश्य बुनियादी ढांचे, जनकल्याण और आर्थिक विकास को बढ़ावा देना है, साथ ही वित्तीय स्थिरता सुनिश्चित करना है। यह वित्तीय खाका ‘ज्ञान’ (गरीब, युवा, अन्नदाता और नारी) मॉडल पर आधारित है, जिसमें गरीबों, युवाओं, किसानों और महिलाओं पर विशेष ध्यान दिया गया है। बजट में कृषि, उद्योग, ऊर्जा, सड़क, कनेक्टिविटी, पर्यटन, आयुष और सामाजिक सुरक्षा जैसे प्रमुख क्षेत्रों के लिए बड़े पैमाने पर आवंटन किया गया है, जिससे राज्य के समग्र विकास को गति मिलेगी।

उत्तराखंड बजट 2025-26 की प्रमुख बातें

1. बजट आवंटन और राजस्व अनुमान

  • कुल बजट: ₹1,01,175.33 करोड़
  • कुल प्राप्तियां: ₹1,01,034.75 करोड़
  • राजस्व प्राप्तियां: ₹62,540.54 करोड़
  • पूंजीगत प्राप्तियां: ₹38,494.21 करोड़
  • कर राजस्व अनुमान: ₹39,917.74 करोड़
  • गैर-कर राजस्व अनुमान: ₹22,622.80 करोड़

2. बजट के प्रमुख फोकस क्षेत्र

  • बुनियादी ढांचा और कनेक्टिविटी
  • कृषि और ग्रामीण विकास
  • उद्योग और स्टार्टअप
  • पर्यटन और सांस्कृतिक विकास
  • जल संसाधन और सिंचाई
  • पर्यावरणीय स्थिरता
  • सामाजिक सुरक्षा और कल्याण

3. प्रमुख क्षेत्रों में बड़े आवंटन

A. बुनियादी ढांचा विकास
  • नई सड़क निर्माण: 220 किमी
  • सड़कों का पुनर्निर्माण: 1,000 किमी
  • मौजूदा सड़कों का नवीनीकरण: 1,550 किमी
  • सड़क सुरक्षा: ₹1,200 करोड़
  • 37 नए पुलों का निर्माण
  • प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना (PMGSY): ₹1,065 करोड़
  • बस अड्डों का निर्माण: ₹15 करोड़
  • नागरिक उड्डयन विकास: ₹36.88 करोड़
B. उद्योग और स्टार्टअप
  • MSME विकास: ₹50 करोड़
  • मेगा इंडस्ट्री पॉलिसी: ₹35 करोड़
  • स्टार्टअप प्रमोशन: ₹30 करोड़
  • मेगा प्रोजेक्ट योजना: ₹500 करोड़
C. जल संसाधन और सिंचाई
  • जमरानी डैम: ₹625 करोड़
  • सोंग डैम: ₹75 करोड़
  • लखवाड़ परियोजना: ₹285 करोड़
  • जल जीवन मिशन: ₹1,843 करोड़
  • शहरी जल आपूर्ति: ₹100 करोड़
  • विशेष पूंजीगत सहायता: ₹1,500 करोड़
D. पर्यटन और सांस्कृतिक विकास
  • टिहरी झील विकास: ₹100 करोड़
  • मानसखंड योजना: ₹25 करोड़
  • वाइब्रेंट विलेज योजना: ₹20 करोड़
  • चारधाम सड़क नेटवर्क: ₹10 करोड़
  • नए पर्यटन स्थलों का विकास: ₹10 करोड़
E. पर्यावरण एवं स्थिरता
  • CAMPA योजना: ₹395 करोड़
  • जलवायु परिवर्तन न्यूनीकरण: ₹60 करोड़
  • स्प्रिंग एवं रिवर रीजूवनेशन अथॉरिटी (SARA): ₹125 करोड़
  • सार्वजनिक वन क्षेत्र वनीकरण: ₹10 करोड़
F. सामाजिक सुरक्षा और कल्याण
  • कुल सामाजिक सुरक्षा आवंटन: ₹1,811.66 करोड़
  • कल्याणकारी योजनाओं पर सब्सिडी: ₹918.92 करोड़
  • खाद्य सुरक्षा योजना: ₹600 करोड़
  • प्रधानमंत्री आवास योजना (ग्रामीण): ₹207.18 करोड़
  • प्रधानमंत्री आवास योजना (शहरी): ₹54.12 करोड़
  • आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) आवास अनुदान: ₹25 करोड़
  • रसोई गैस सब्सिडी: ₹55 करोड़
  • पर्यावरण मित्र बीमा: ₹2 करोड़
  • निम्न-आय वर्ग के लिए राज्य बसों में मुफ्त यात्रा: ₹40 करोड़
  • राज्य खाद्यान्न योजना: ₹10 करोड़
  • अंत्योदय राशन धारकों के लिए सस्ता नमक: ₹34.36 करोड़

यह बजट उत्तराखंड के आर्थिक विकास, बुनियादी ढांचे के विस्तार और सामाजिक कल्याण के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान देगा, जिससे राज्य के नागरिकों को व्यापक लाभ मिलेगा।

सारांश/स्थिर विवरण विवरण
क्यों खबरों में? उत्तराखंड सरकार ने ₹1.01 लाख करोड़ का बजट पेश किया, जिसमें बुनियादी ढांचे और जनकल्याण को प्राथमिकता दी गई।
बजट आकार ₹1,01,175.33 करोड़
कुल प्राप्तियां ₹1,01,034.75 करोड़ (राजस्व: ₹62,540.54 करोड़, पूंजीगत: ₹38,494.21 करोड़)
बुनियादी ढांचा 220 किमी नई सड़कें, 1,550 किमी नवीनीकरण, सड़क सुरक्षा के लिए ₹1,200 करोड़, पीएमजीएसवाई के तहत ₹1,065 करोड़
उद्योग और स्टार्टअप MSMEs के लिए ₹50 करोड़, मेगा इंडस्ट्री पॉलिसी के लिए ₹35 करोड़, मेगा प्रोजेक्ट योजना के लिए ₹500 करोड़
जल संसाधन और सिंचाई जमरानी डैम के लिए ₹625 करोड़, जल जीवन मिशन के लिए ₹1,843 करोड़, लखवाड़ परियोजना के लिए ₹285 करोड़
पर्यटन विकास टिहरी झील के लिए ₹100 करोड़, मानसखंड योजना के लिए ₹25 करोड़, नए पर्यटन स्थलों के लिए ₹10 करोड़
पर्यावरणीय स्थिरता CAMPA योजना के लिए ₹395 करोड़, जलवायु परिवर्तन न्यूनीकरण के लिए ₹60 करोड़, नदी पुनर्जीवन के लिए ₹125 करोड़
सामाजिक सुरक्षा और कल्याण कल्याणकारी योजनाओं के लिए ₹1,811.66 करोड़, खाद्य सुरक्षा के लिए ₹600 करोड़, रसोई गैस सब्सिडी के लिए ₹55 करोड़

भारत 2047 तक बनेगा उच्च आय वाला देश

भारत 2047 तक एक उच्च आय वाले राष्ट्र बनने की राह पर है, जहां इसकी जीडीपी (GDP) 23 ट्रिलियन डॉलर से 35 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंचने की संभावना है। बेन एंड कंपनी और नैसकॉम की एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार, सेवा क्षेत्र (60% योगदान) और विनिर्माण क्षेत्र (32% योगदान) भारत की आर्थिक वृद्धि में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे। इस परिवर्तन को गति देने में प्रौद्योगिकी, कार्यबल विस्तार और प्रमुख क्षेत्रों में रणनीतिक निवेश अहम साबित होंगे।

कैसे भारत का कार्यबल आर्थिक विकास को आकार देगा?

आने वाले दो दशकों में भारत की कार्यबल संख्या 200 मिलियन तक बढ़ने की उम्मीद है, जिससे रोजगार सृजन और आर्थिक विस्तार को बल मिलेगा। हालांकि, रिपोर्ट में 2030 तक 50 मिलियन कुशल कार्यबल की संभावित कमी की चेतावनी दी गई है, यदि कौशल विकास और STEM शिक्षा (विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित) को प्राथमिकता नहीं दी गई। इस अंतर को पाटने के लिए, सरकार और निजी क्षेत्र को व्यावसायिक प्रशिक्षण, डिजिटल साक्षरता और उद्योग-विशिष्ट कौशल विकास पर ध्यान देना होगा, ताकि भारत वैश्विक नौकरी बाजार में प्रतिस्पर्धी बना रहे।

प्रौद्योगिकी और विनिर्माण की क्या भूमिका होगी?

एआई, टचलेस मैन्युफैक्चरिंग और चिप डिजाइन जैसी तकनीकी प्रगति भारत के भविष्य की कुंजी होंगी। रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है कि विनिर्माण क्षेत्र का निर्यात योगदान 24% से बढ़कर 2047 तक 45%-50% हो सकता है, जबकि जीडीपी में योगदान 3% से बढ़कर 8%-10% होने की उम्मीद है। इसके अलावा, नवीकरणीय ऊर्जा का कुल ऊर्जा उत्पादन में हिस्सा 2023 में 24% से बढ़कर 2047 तक 70% तक पहुंच सकता है।

किन क्षेत्रों से भारत की उच्च आय स्थिति को बढ़ावा मिलेगा?

रिपोर्ट में पांच प्रमुख उद्योगों को भारत की रणनीतिक वृद्धि के मुख्य चालक के रूप में पहचाना गया है:

  • इलेक्ट्रॉनिक्स
  • ऊर्जा
  • रसायन उद्योग
  • ऑटोमोटिव
  • सेवा क्षेत्र

विशेष रूप से, ऑटो-कंपोनेंट निर्यात क्षेत्र के 2047 तक $200-250 बिलियन तक पहुंचने की उम्मीद है, जो इलेक्ट्रिक वाहनों (EVs) की ओर बदलाव से प्रेरित होगा। इसके अलावा, आईटी, वित्त और स्वास्थ्य सेवा सेवा क्षेत्र की रीढ़ बने रहेंगे। भारत को इस क्षमता को अधिकतम करने के लिए सार्वजनिक-निजी भागीदारी को मजबूत करने, सेक्टर-विशिष्ट निवेश रोडमैप तैयार करने और वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं पर निर्भरता कम करने की आवश्यकता होगी

चुनौतियाँ और आगे की राह

हालांकि, भारत की आर्थिक वृद्धि के लिए कई चुनौतियाँ भी बनी हुई हैं:

  • अवसंरचना (इन्फ्रास्ट्रक्चर) विकास की जरूरत
  • कौशल और नवाचार अंतर (स्किल और इनोवेशन गैप) को कम करना
  • परिवहन, डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर और अनुसंधान एवं विकास (R&D) में निवेश बढ़ाना

2047 के लक्ष्य की ओर बढ़ते हुए, भारत को एक संतुलित रणनीति अपनानी होगी, जो कार्यबल विकास, प्रौद्योगिकी और औद्योगिक वृद्धि को एकीकृत करे, ताकि यह एक वैश्विक आर्थिक शक्ति के रूप में उभर सके।

प्रमुख पहलू विवरण
क्यों चर्चा में? भारत 2047 तक उच्च आय वाला देश बनने की राह पर है, जिसमें सेवा क्षेत्र प्रमुख भूमिका निभाएगा।
जीडीपी अनुमान 2047 तक $23 ट्रिलियन – $35 ट्रिलियन तक पहुंचने की संभावना।
मुख्य विकास चालक सेवा क्षेत्र जीडीपी में 60% योगदान देगा, जबकि विनिर्माण क्षेत्र 32% तक पहुंचेगा।
कार्यबल वृद्धि 200 मिलियन लोग कार्यबल में शामिल होंगे; 2030 तक 50 मिलियन कुशल श्रमिकों की कमी संभव।
प्रौद्योगिकी प्रभाव एआई, चिप डिजाइन, टचलेस मैन्युफैक्चरिंग और नवीकरणीय ऊर्जा दक्षता को बढ़ाएंगे।
विनिर्माण निर्यात 24% से बढ़कर 2047 तक 45%-50% होने की संभावना।
नवीकरणीय ऊर्जा वृद्धि कुल ऊर्जा उत्पादन में हिस्सेदारी 2023 में 24% से बढ़कर 2047 तक 70% होगी।
विकास के प्रमुख क्षेत्र इलेक्ट्रॉनिक्स, ऊर्जा, रसायन, ऑटोमोटिव और सेवा क्षेत्र।
चुनौतियाँ अवसंरचना की कमी, कौशल की कमी और नवाचार की जरूरतें।
आगे की राह डिजिटल अवसंरचना, अनुसंधान एवं विकास (R&D), और कार्यबल विकास में निवेश आवश्यक।

Bisleri और ASI ने विरासत जल निकायों को पुनर्स्थापित करने के लिए समझौता किया

बिसलेरी इंटरनेशनल ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के साथ ‘एडॉप्ट ए हेरिटेज 2.0 प्रोग्राम’ के तहत एक समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किए हैं। इस साझेदारी का उद्देश्य भारत के ऐतिहासिक स्थलों पर जल निकायों के पुनरोद्धार और संरक्षण को बढ़ावा देना है। यह पहल बिसलेरी के CSR कार्यक्रम ‘नई उम्मीद’ का हिस्सा है, जो जल संरक्षण और धरोहर संरक्षण को एक साथ जोड़ता है। इस परियोजना की शुरुआत चार ऐतिहासिक जल निकायों के पुनरोद्धार से होगी, जिससे पारिस्थितिक पुनरुद्धार को बढ़ावा मिलेगा और पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा

मुख्य बिंदु:

साझेदारी और उद्देश्य:

  • बिसलेरी और ASI ने ‘एडॉप्ट ए हेरिटेज 2.0 प्रोग्राम’ के तहत ऐतिहासिक स्थलों पर जल संरक्षण के लिए साझेदारी की है।
  • यह परियोजना पर्यावरणीय पुनर्स्थापन और सतत विकास लक्ष्यों से मेल खाती है।
  • यह पहल बिसलेरी के ‘नई उम्मीद’ CSR कार्यक्रम के अंतर्गत आती है, जो जल संरक्षण पर केंद्रित है।

पुनरोद्धार के लिए चयनित ऐतिहासिक जल निकाय:

प्रारंभिक चरण में चार महत्वपूर्ण ऐतिहासिक जल निकायों को पुनर्जीवित किया जाएगा—

  1. चांद बावड़ी (आभानेरी, राजस्थान)
  2. नीमराना की बावड़ी (राजस्थान)
  3. पद्मा और रानी तालाब (रणथंभौर किला, राजस्थान)
  4. बुद्धा-बुढ़ी तालाब (कालिंजर किला, उत्तर प्रदेश)

संरक्षण और पुनरोद्धार योजना:

  • गाद और मलबे की सफाई: जल निकायों से जमा हुई गाद और कचरे को हटाना।
  • पारिस्थितिक पुनरुद्धार: जैव विविधता को बढ़ाना और जल की गुणवत्ता सुधारना।
  • पर्यावरणीय सौंदर्यीकरण: आस-पास के क्षेत्रों का सौंदर्यीकरण कर पर्यटन अनुभव को बेहतर बनाना।
  • सूचनात्मक साइनबोर्ड: पर्यटकों और स्थानीय समुदायों के लिए ऐतिहासिक और पर्यावरणीय जागरूकता बढ़ाना।
  • चरणबद्ध क्रियान्वयन: धरोहर स्थलों की संरचनात्मक अखंडता बनाए रखते हुए न्यूनतम हस्तक्षेप के साथ कार्य करना।

बिसलेरी नेतृत्व की प्रतिक्रिया:

बिसलेरी इंटरनेशनल के CEO, एंजेलो जॉर्ज ने कहा कि यह सहयोग बिसलेरी की सतत विकास और धरोहर संरक्षण के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाता है। उन्होंने इसे पर्यावरणीय संरक्षण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम बताया, जिससे ऐतिहासिक जल निकायों को भविष्य की पीढ़ियों के लिए संरक्षित किया जा सके।

प्रभाव और महत्व:

  • यह परियोजना सांस्कृतिक और पारिस्थितिक धरोहर को पुनर्जीवित करेगी, जिससे ये स्थल अधिक सुलभ और टिकाऊ बनेंगे।
  • यह स्थानीय समुदायों को जागरूक करने और जल संरक्षण के प्रति संवेदनशील बनाने में मदद करेगा।
  • भारत की दीर्घकालिक पर्यावरणीय और सांस्कृतिक संरक्षण पहलों को मजबूती प्रदान करेगा।
सारांश/स्थिर जानकारी विवरण
क्यों चर्चा में? बिसलेरी और ASI ने मिलकर विरासत जल निकायों के पुनरोद्धार के लिए समझौता किया
साझेदारी बिसलेरी इंटरनेशनल और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI)
कार्यक्रम ‘एडॉप्ट ए हेरिटेज 2.0’ और बिसलेरी का CSR अभियान ‘नई उम्मीद’
उद्देश्य ऐतिहासिक स्थलों पर पुरातन जल निकायों का पुनरोद्धार और संरक्षण
पुनरोद्धार के लिए चयनित जल निकाय चांद बावड़ी (आभानेरी), नीमराना की बावड़ी, पद्मा और रानी तालाब (रणथंभौर किला), बुद्धा-बुढ़ी तालाब (कालिंजर किला)
संरक्षण गतिविधियाँ गाद और मलबे की सफाई, पारिस्थितिक पुनरोद्धार, सौंदर्यीकरण, सूचना पट्टों की स्थापना
क्रियान्वयन रणनीति चरणबद्ध रूप से कार्यान्वयन, जिससे धरोहर स्थलों की संरचनात्मक अखंडता बनी रहे
अपेक्षित प्रभाव पर्यटन में वृद्धि, पारिस्थितिक संतुलन, जल संरक्षण और धरोहर संरक्षण को बढ़ावा
बिसलेरी की दृष्टि जल संरक्षण और पर्यावरणीय सुरक्षा को बढ़ावा देने वाली स्थायी पहल

मोपा हवाई अड्डे ने प्रतिष्ठित ‘सर्वश्रेष्ठ सुरक्षा पुरस्कार’ जीता

मनोहर अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा (GOX), जिसे जीएमआर गोवा अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा लिमिटेड (GGIAL) द्वारा विकसित और संचालित किया गया है, ने इतिहास रच दिया है। यह भारत का पहला हवाई अड्डा बन गया है जिसे राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद (NSCI) सुरक्षा पुरस्कार 2024 के तहत ‘सेवा क्षेत्र’ श्रेणी में प्रतिष्ठित “सर्वश्रेष्ठ सुरक्षा पुरस्कार (स्वर्ण ट्रॉफी)” से सम्मानित किया गया है। यह पुरस्कार मुंबई के ‘द ललित’ में आयोजित एक भव्य समारोह के दौरान प्रदान किया गया।

यह सम्मान मनोहर अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के व्यावसायिक सुरक्षा और स्वास्थ्य (OSH) के उत्कृष्ट प्रदर्शन, कार्यस्थल पर चोटों को कम करने की प्रतिबद्धता और सर्वोत्तम सुरक्षा प्रथाओं को अपनाने की सराहना करता है। हवाई अड्डे की सक्रिय सुरक्षा उपायों और शून्य-घटना रिकॉर्ड ने इस प्रतिष्ठित पुरस्कार को हासिल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

मुख्य बिंदु:

  • पहला भारतीय हवाई अड्डा, जिसे ‘सेवा क्षेत्र’ श्रेणी में स्वर्ण ट्रॉफी प्राप्त हुई।
  • राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद (NSCI) द्वारा सम्मानित, जो श्रम मंत्रालय, भारत सरकार के तहत कार्यरत है।
  • पुरस्कार मान्यता: व्यावसायिक सुरक्षा और स्वास्थ्य (OSH) में उत्कृष्ट प्रदर्शन, कार्यस्थल पर चोटों को कम करने और सर्वोत्तम सुरक्षा प्रथाओं को अपनाने के लिए।
  • समारोह का आयोजन: जनवरी 2025, ‘द ललित’, मुंबई।

राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद (NSCI) पुरस्कार के बारे में:

स्थापना: श्रम मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा।

उद्देश्य: व्यावसायिक सुरक्षा और स्वास्थ्य (OSH) को बढ़ावा देना।

पुरस्कार मान्यता:

  • सर्वोत्तम सुरक्षा पद्धतियों का कार्यान्वयन।
  • कार्यस्थल पर चोटों और खतरों को कम करना।
  • सुरक्षा उपायों में निरंतर सुधार।
  • कर्मचारियों के स्वास्थ्य और सुरक्षा के प्रति प्रतिबद्धता।

पुरस्कार के लिए मूल्यांकन मानदंड:

  • सुरक्षा प्रदर्शन: कार्यस्थल पर दुर्घटनाओं और सुरक्षा प्रबंधन की प्रभावशीलता।
  • सुरक्षा आँकड़े: शून्य घातक दुर्घटनाएँ, कोई स्थायी विकलांगता नहीं।
  • सुरक्षा प्रतिबद्धता: नेतृत्व द्वारा सख्त सुरक्षा नीतियों का पालन।
  • सुरक्षा जागरूकता और प्रशिक्षण: कर्मचारियों के लिए नियमित प्रशिक्षण और अभ्यास।
  • सुरक्षा नवाचार: नवीनतम सुरक्षा तकनीकों और जोखिम प्रबंधन रणनीतियों का उपयोग।

पुरस्कार प्राप्त करने के प्रमुख कारण:

  • शून्य दुर्घटना रिकॉर्ड: कोई घातक, गैर-घातक या स्थायी विकलांगता के मामले नहीं।
  • सक्रिय सुरक्षा योजना: सख्त सुरक्षा प्रोटोकॉल और जोखिम प्रबंधन प्रणालियाँ।
  • कर्मचारी प्रशिक्षण: नियमित वर्कशॉप, सेफ्टी ड्रिल्स और अनुपालन प्रशिक्षण।
  • मजबूत सुरक्षा संस्कृति: GMR समूह की उच्चतम सुरक्षा मानकों को बनाए रखने की प्रतिबद्धता।

GMR गोवा अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा (MOPA) के लिए इस पुरस्कार का महत्व:

  • भारत के विमानन क्षेत्र में सुरक्षा मानकों को और मजबूत करता है।
  • अन्य हवाई अड्डों को विश्व स्तरीय सुरक्षा उपाय अपनाने के लिए प्रेरित करता है।
  • हवाई अड्डे की प्रतिष्ठा को वैश्विक स्तर पर सुरक्षित और कुशल संचालन के रूप में स्थापित करता है।
  • GMR समूह के “सुरक्षा और सुरक्षा में उत्कृष्टता” के दृष्टिकोण को सुदृढ़ करता है।

यह सम्मान मनोहऱ अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे की समर्पित टीम के प्रयासों और सुरक्षा संस्कृति के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को दर्शाता है।

HAL और DIAT ने एयरोस्पेस नवाचार के लिए सहयोग किया

हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) ने उद्योग और अकादमिक जगत के बीच सहयोग को मजबूत करने के लिए पुणे स्थित डिफेंस इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस्ड टेक्नोलॉजी (DIAT) के साथ एक समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किए हैं। इस साझेदारी का उद्देश्य एयरोस्पेस प्रौद्योगिकी में अनुसंधान, कौशल विकास और नवाचार को बढ़ावा देना है। HAL की प्रमुख प्रशिक्षण संस्था HAL मैनेजमेंट एकेडमी (HMA) इस सहयोग में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी, जिससे HAL के अधिकारी उच्च शिक्षा, अनुसंधान और अत्याधुनिक एयरोस्पेस तकनीकों में प्रशिक्षण प्राप्त कर सकेंगे।

HAL-DIAT सहयोग के मुख्य बिंदु

साझेदारी का उद्देश्य:

  • एयरोस्पेस उद्योग और शिक्षा के बीच तालमेल को बढ़ावा देना।
  • रक्षा और विमानन क्षेत्र में अनुसंधान एवं विकास को आगे बढ़ाना।
  • नवीन तकनीकों और कौशल विकास को सशक्त बनाना।

समझौते की मुख्य विशेषताएँ:

  • उच्च शिक्षा के अवसर – HAL के अधिकारी DIAT में मास्टर्स और पीएचडी कार्यक्रम कर सकेंगे।
  • विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रम – HAL के कर्मियों को नवीन एयरोस्पेस तकनीकों पर केंद्रित प्रशिक्षण दिया जाएगा।
  • फैकल्टी और छात्र विनिमय कार्यक्रम – HAL और DIAT के बीच ज्ञान-साझाकरण कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे।
  • संयुक्त सम्मेलन और सेमिनार – उद्योग-केंद्रित अकादमिक आयोजनों का संचालन किया जाएगा।
  • संयुक्त अनुसंधान परियोजनाएँ – HAL और DIAT रणनीतिक अनुसंधान और विकास (R&D) परियोजनाओं पर मिलकर कार्य करेंगे।

सहयोग का प्रभाव:

  • एयरोस्पेस नवाचार को बढ़ावाभारत के एयरोस्पेस अनुसंधान पारिस्थितिकी तंत्र को नई तकनीकों से सशक्त बनाना।
  • कौशल विकास – उन्नत एयरोस्पेस इंजीनियरिंग ज्ञान से नए प्रतिभाशाली पेशेवरों की पीढ़ी तैयार करना।
  • रक्षा क्षेत्र को मजबूतीआत्मनिर्भर भारत पहल के तहत विमानन और रक्षा तकनीक को सशक्त बनाना।
  • वैश्विक प्रतिस्पर्धा में वृद्धि – भारत को एयरोस्पेस और रक्षा नवाचार में वैश्विक नेतृत्व की ओर ले जाना।
क्यों चर्चा में? HAL और DIAT का एयरोस्पेस नवाचार के लिए सहयोग
संबंधित संगठन HAL (हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड), DIAT (डिफेंस इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस्ड टेक्नोलॉजी)
उद्देश्य उद्योग और अकादमिक जगत के बीच तालमेल बनाना, एयरोस्पेस नवाचार को बढ़ावा देना
मुख्य विशेषताएँ उच्च शिक्षा, प्रशिक्षण, फैकल्टी और छात्र विनिमय, संयुक्त अनुसंधान
HAL अधिकारियों को लाभ मास्टर्स और पीएचडी कार्यक्रम, एयरोस्पेस तकनीक में विशेष प्रशिक्षण
संयुक्त पहल रक्षा और विमानन क्षेत्र में सम्मेलन, सेमिनार, अनुसंधान परियोजनाएँ
प्रभाव अनुसंधान और विकास (R&D) को बढ़ावा, कौशल विकास, भारत के रक्षा क्षेत्र को मजबूती

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