राष्ट्रीय उत्पादकता दिवस 2025: थीम, इतिहास और महत्व

भारत में हर वर्ष 12 फरवरी को राष्ट्रीय उत्पादकता दिवस मनाया जाता है, जिसका उद्देश्य आर्थिक विकास, सतत स्थिरता और नवाचार में उत्पादकता की महत्वपूर्ण भूमिका के प्रति जागरूकता बढ़ाना है। यह दिन राष्ट्रीय उत्पादकता परिषद (NPC) के मार्गदर्शन में आयोजित किया जाता है और 12 से 18 फरवरी तक चलने वाले राष्ट्रीय उत्पादकता सप्ताह की शुरुआत का प्रतीक है।

इस दिन का उद्देश्य केवल उत्पादन बढ़ाना नहीं है, बल्कि पर्यावरणीय स्थिरता, मानव संसाधन विकास और गुणवत्ता सुधार को भी बढ़ावा देना है। 2025 की थीम— “विचारों से प्रभाव तक: प्रतिस्पर्धी स्टार्टअप्स के लिए बौद्धिक संपदा की सुरक्षा”— स्टार्टअप्स को बौद्धिक संपदा (IP) की रक्षा करने और नवाचार को व्यावसायिक सफलता में बदलने के लिए प्रेरित करती है।

राष्ट्रीय उत्पादकता दिवस 2025 के प्रमुख पहलू

1. राष्ट्रीय उत्पादकता दिवस का इतिहास

  • यह दिवस राष्ट्रीय उत्पादकता परिषद (NPC) की स्थापना की स्मृति में मनाया जाता है।
  • NPC की स्थापना 12 फरवरी 1958 को सोसाइटीज रजिस्ट्रेशन एक्ट, 1960 के तहत की गई थी।
  • यह एक स्वायत्त संगठन है जो भारत में उत्पादकता बढ़ाने की संस्कृति को प्रोत्साहित करता है।

2. 2025 की थीम

  • थीम: “विचारों से प्रभाव तक: प्रतिस्पर्धी स्टार्टअप्स के लिए बौद्धिक संपदा की सुरक्षा”
  • नवाचार को बढ़ावा देने में बौद्धिक संपदा अधिकार (IPR) की भूमिका को उजागर करता है।
  • स्टार्टअप्स को अपने अद्वितीय विचारों की सुरक्षा और उन्हें प्रभावी समाधान में बदलने के लिए प्रोत्साहित करता है।

3. राष्ट्रीय उत्पादकता दिवस का महत्व

भारत जैसे विकासशील देश में, जहां स्टार्टअप और उद्यमिता तेजी से बढ़ रही है, उत्पादकता महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह दिवस संगठनों, व्यवसायों और सरकारों को उत्पादकता आधारित रणनीतियाँ अपनाने के लिए प्रेरित करता है, जिससे—

  • आर्थिक विकास को बढ़ावा मिलता है।
  • प्रतिस्पर्धी उद्योगों का निर्माण होता है।
  • नवाचार को प्रोत्साहन मिलता है।
  • बौद्धिक संपदा की सुरक्षा को बल मिलता है।
  • NPC का लक्ष्य आधुनिक उत्पादकता उपकरणों, सर्वोत्तम प्रथाओं और नवाचार को अपनाकर भारत को वैश्विक उत्पादकता नेता बनाना है।

4. राष्ट्रीय उत्पादकता दिवस पर आयोजित कार्यक्रम

  • व्यावसायिक संगठनों, स्टार्टअप्स और शिक्षण संस्थानों द्वारा कार्यशालाएँ, सेमिनार और व्याख्यान।
  • उत्पादकता सुधार पर वेबिनार और प्रतियोगिताएँ।
  • उत्कृष्ट उत्पादकता और नवाचार में योगदान देने वाले व्यक्तियों और संगठनों को पुरस्कार और सम्मान।
  • संसाधन अनुकूलन, समय प्रबंधन और तकनीकी उन्नति पर जागरूकता फैलाने पर जोर।

5. उत्पादकता बढ़ाने के मुख्य कारक

समय, ऊर्जा और ध्यान— उत्पादकता के तीन स्तंभ माने जाते हैं।
उत्पादकता संगठनों और व्यवसायों को यह लाभ देती है—

  • समान या कम संसाधनों के साथ अधिक उत्पादन करने की क्षमता।
  • लाभप्रदता, निवेश और रोजगार सृजन में वृद्धि।
  • दीर्घकालिक आर्थिक विकास और समृद्धि को बढ़ावा।

राष्ट्रीय उत्पादकता दिवस भारतीय अर्थव्यवस्था को अधिक कुशल, प्रतिस्पर्धी और नवाचार-संचालित बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

पहलू विवरण
क्यों चर्चा में? राष्ट्रीय उत्पादकता दिवस 2025, तिथि, थीम, महत्व
तिथि 12 फरवरी 2025
किसके द्वारा मनाया जाता है? भारत
आयोजक संगठन राष्ट्रीय उत्पादकता परिषद (NPC)
इतिहास NPC की स्थापना 12 फरवरी 1958 को हुई थी
2025 की थीम विचारों से प्रभाव तक: प्रतिस्पर्धी स्टार्टअप्स के लिए बौद्धिक संपदा की सुरक्षा”
उद्देश्य आर्थिक विकास, नवाचार और स्थिरता के लिए उत्पादकता को बढ़ावा देना
मुख्य फोकस क्षेत्र बौद्धिक संपदा संरक्षण, नवाचार को बढ़ावा, स्टार्टअप विकास, प्रतिस्पर्धी उद्योग
गतिविधियाँ कार्यशालाएँ, सेमिनार, प्रतियोगिताएँ, पुरस्कार, जागरूकता अभियान
महत्व आर्थिक वृद्धि को बढ़ावा, औद्योगिक प्रतिस्पर्धा में सुधार, दक्षता को प्रोत्साहन
उत्पादकता के स्तंभ समय, ऊर्जा और ध्यान
आर्थिक प्रभाव उच्च उत्पादन, लाभप्रदता में वृद्धि, रोजगार सृजन और राष्ट्रीय समृद्धि

मोदी ने फ्रांस के राष्ट्रपति और प्रथम महिला को भारतीय परंपराओं को दर्शाने वाले उपहार दिए

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने फ्रांस की दो दिवसीय यात्रा के दौरान राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों और प्रथम महिला ब्रिजिट मैक्रों को भारत की समृद्ध सांस्कृतिक और कलात्मक विरासत को दर्शाने वाले विशेष उपहार भेंट किए। ये उपहार भारत की पारंपरिक शिल्पकला, ऐतिहासिक धरोहर और कलात्मक विविधता को उजागर करने के लिए चुने गए थे।

राष्ट्रपति मैक्रों के लिए डोकरा कला – जनजातीय हस्तकला का प्रतीक

प्रधानमंत्री मोदी ने फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों को विशेष रूप से निर्मित डोकरा कलाकृति भेंट की। यह अद्वितीय धातु शिल्प पारंपरिक भारतीय लोक संस्कृति की झलक पेश करता है, जिसमें संगीतकारों को गतिशील मुद्राओं में दर्शाया गया है।

डोकरा कला क्या है?

  • डोकरा कला 4,000 साल पुरानी धातु ढलाई तकनीक है।
  • यह छत्तीसगढ़ से उत्पन्न हुई है और इसे ‘लॉस्ट-वैक्स कास्टिंग’ तकनीक से बनाया जाता है।
  • इस कला में आमतौर पर संगीतकारों, नर्तकों, पशुओं और देवताओं को दर्शाया जाता है।
  • इसे मोम, मिट्टी और पिघली हुई धातु से तैयार किया जाता है, जिससे सूक्ष्म और जटिल डिज़ाइन उभरते हैं।
  • डोकरा कलाकृति भारतीय जनजातीय विरासत को सम्मान देती है और पारंपरिक संगीत की अहमियत को दर्शाती है।

प्रथम महिला ब्रिजिट मैक्रों के लिए चांदी की नक्काशीदार शीशा – शाही सुंदरता का प्रतीक

फ्रांस की प्रथम महिला ब्रिजिट मैक्रों को राजस्थान में निर्मित हाथ से उकेरा गया चांदी का टेबल मिरर उपहार में दिया गया।

इस दर्पण की विशेषताएँ:

  • दर्पण की चांदी की रूपरेखा पर सुंदर पुष्प और मोर की आकृतियाँ उकेरी गई हैं, जो सौंदर्य, प्रकृति और शांति का प्रतीक हैं।
  • मोर, जो भारत का राष्ट्रीय पक्षी है, प्रेम, आध्यात्मिक जागरूकता और शाही भव्यता को दर्शाता है।
  • यह दर्पण हाथ से तराशा गया है और चमकदार पॉलिश के साथ इसकी सुंदरता को निखारा गया है।
  • यह राजस्थान की पारंपरिक धातु कला का बेहतरीन उदाहरण है, जो पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है।

अमेरिकी उपराष्ट्रपति जे.डी. वेंस के परिवार के लिए उपहार

पीएम मोदी ने अमेरिकी उपराष्ट्रपति जे.डी. वेंस के दो बेटों और बेटी के लिए भी विशेष उपहार प्रदान किए। हालांकि, इन उपहारों के बारे में विस्तृत जानकारी नहीं दी गई, लेकिन ये भी भारतीय संस्कृति और परंपरा को ध्यान में रखकर चुने गए थे।

भारत की कूटनीतिक उपहार परंपरा

अंतरराष्ट्रीय नेताओं को हस्तशिल्प उपहार देना भारत की कूटनीतिक परंपरा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। प्रत्येक उपहार को उसकी कलात्मक विशेषताओं और सांस्कृतिक महत्व को ध्यान में रखकर चुना जाता है। इन उपहारों के माध्यम से प्रधानमंत्री मोदी ने भारत की पारंपरिक शिल्पकला, जनजातीय और लोक कला को वैश्विक मंच पर प्रदर्शित किया।

इन कलात्मक उपहारों ने भारत और फ्रांस के बीच सांस्कृतिक जुड़ाव को और मजबूत किया और वैश्विक संबंधों में भारतीय कला की महत्ता को स्थापित किया।

पहलू विवरण
क्यों चर्चा में? फ्रांस की दो दिवसीय यात्रा के दौरान, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों और प्रथम महिला ब्रिजिट मैक्रों को भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को प्रदर्शित करने वाले पारंपरिक उपहार भेंट किए।
राष्ट्रपति मैक्रों के लिए उपहार संगीतकारों को दर्शाने वाली डोकरा कलाकृति, जिसमें जड़ित पत्थर का सुंदर कार्य किया गया है।
डोकरा कला क्या है? – 4,000 साल पुरानी प्राचीन धातु ढलाई तकनीक।
– छत्तीसगढ़ में उत्पन्न हुई।
– ‘लॉस्ट-वैक्स कास्टिंग’ तकनीक से बनाई जाती है।
– इसमें संगीतकारों, नर्तकों, पशुओं और देवी-देवताओं की आकृतियाँ उकेरी जाती हैं।
– मोम, मिट्टी और पिघली हुई धातु से सूक्ष्म और जटिल डिज़ाइन तैयार की जाती है।
उपहार का महत्व यह कलाकृति भारत की जनजातीय विरासत, भारतीय संस्कृति में संगीत के महत्व और उत्कृष्ट शिल्प कौशल को दर्शाती है।
प्रथम महिला ब्रिजिट मैक्रों के लिए उपहार राजस्थान की पारंपरिक धातु कला से निर्मित हाथ से नक्काशीदार चांदी का टेबल मिरर, जिसमें पुष्प और मोर की आकृतियाँ उकेरी गई हैं।
प्रतीकात्मकता और शिल्पकला – पुष्प और मोर की आकृतियाँ सुंदरता, प्रकृति और सौम्यता का प्रतीक हैं।
– मोर (भारत का राष्ट्रीय पक्षी) शाही गरिमा और प्रेम का प्रतीक है।
– हस्तनिर्मित और चमकदार पॉलिश की गई उत्कृष्ट कलाकृति।
– राजस्थान की धातु नक्काशी कला की समृद्ध परंपरा को दर्शाता है।
अमेरिकी उपराष्ट्रपति जे.डी. वेंस के परिवार के लिए उपहार पीएम मोदी ने अमेरिकी उपराष्ट्रपति जे.डी. वेंस के दो बेटों और एक बेटी के लिए भी विशेष उपहार भेंट किए, लेकिन उनके बारे में विस्तृत जानकारी उपलब्ध नहीं है।
भारत की कूटनीतिक उपहार परंपरा – हस्तशिल्प उपहार भारत की वैश्विक संबंधों को मजबूत करने की प्रतिबद्धता को दर्शाते हैं।
– भारतीय शिल्प और सांस्कृतिक धरोहर को बढ़ावा देते हैं।
– कलात्मक आदान-प्रदान के माध्यम से अंतरराष्ट्रीय संबंधों को सुदृढ़ करते हैं।

गवर्नर संजय मल्होत्रा के हस्ताक्षर वाले 50 रुपये के नोट जारी होंगे: RBI

भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने नए ₹50 मूल्यवर्ग के बैंकनोट जारी करने की घोषणा की है, जिन पर नए नियुक्त गवर्नर संजय मल्होत्रा के हस्ताक्षर होंगे। मल्होत्रा ने दिसंबर 2024 में 26वें RBI गवर्नर के रूप में कार्यभार संभाला, उन्होंने शक्तिकांत दास का स्थान लिया। ये नए बैंकनोट महात्मा गांधी (नए) श्रृंखला के वर्तमान डिज़ाइन को बनाए रखेंगे, जिससे देश की मुद्रा प्रणाली में स्थिरता बनी रहेगी। महत्वपूर्ण रूप से, पहले जारी किए गए ₹50 के सभी नोट वैध रहेंगे और कानूनी रूप से मान्य होंगे, जैसा कि RBI ने पुष्टि की है।

कौन हैं संजय मल्होत्रा, नए RBI गवर्नर?

संजय मल्होत्रा ने दिसंबर 2024 में RBI गवर्नर का पदभार संभाला, जब शक्तिकांत दास का विस्तारित कार्यकाल समाप्त हुआ। केंद्रीय बैंक में नियुक्ति से पहले, मल्होत्रा वित्त मंत्रालय में विभिन्न महत्वपूर्ण पदों पर कार्यरत थे और उन्होंने बैंकिंग व वित्तीय नीतियों के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनकी नियुक्ति ऐसे समय में हुई है जब RBI मुद्रास्फीति नियंत्रण, आर्थिक स्थिरता और डिजिटल बैंकिंग के विस्तार पर ध्यान केंद्रित कर रहा है।

नए ₹50 बैंकनोट में क्या बदलाव होंगे?

नए ₹50 बैंकनोट महात्मा गांधी (नए) श्रृंखला के मौजूदा डिज़ाइन को बनाए रखेंगे। यह श्रृंखला जालसाजी रोकने और मुद्रा की सुरक्षा सुविधाओं को बेहतर बनाने के लिए शुरू की गई थी। नोट के अग्रभाग पर महात्मा गांधी का चित्र प्रमुख रूप से बना रहेगा और पिछले डिज़ाइन में कोई बड़ा बदलाव नहीं किया जाएगा, केवल गवर्नर संजय मल्होत्रा के हस्ताक्षर जोड़े जाएंगे। इससे जनता के लिए मुद्रा में निरंतरता बनी रहेगी और सुरक्षा मानकों को बनाए रखा जाएगा।

क्या पुराने ₹50 के नोट अब भी मान्य रहेंगे?

हाँ, RBI ने पुष्टि की है कि पहले जारी किए गए ₹50 के सभी नोट कानूनी रूप से मान्य रहेंगे। इसका अर्थ है कि संजय मल्होत्रा के हस्ताक्षर वाले नए नोट जारी होने के बावजूद, पूर्व गवर्नरों द्वारा हस्ताक्षरित पुराने नोट भी प्रचलन में रहेंगे। यह RBI की नीति के अनुरूप है, जिससे जनता और व्यवसायों को किसी प्रकार की असुविधा न हो और मुद्रा प्रणाली सुचारू रूप से कार्य करती रहे।

RBI गवर्नर के हस्ताक्षर क्यों बदले जाते हैं?

बैंकनोट पर RBI गवर्नर का हस्ताक्षर बदलना एक नियमित प्रक्रिया है। जब भी नया गवर्नर पदभार ग्रहण करता है, RBI उनके हस्ताक्षर वाले नए नोट जारी करता है, जबकि पुराने नोट भी वैध रहते हैं। उदाहरण के लिए, 2016 में उर्जित पटेल के हस्ताक्षर वाले ₹50 नोट जारी किए गए थे, और इससे पहले 2004 में वाई.वी. रेड्डी के हस्ताक्षर वाले नोट प्रचलन में आए थे। यह प्रक्रिया आधिकारिक रिकॉर्ड को अद्यतन बनाए रखने और मुद्रा प्रणाली में स्थिरता बनाए रखने में मदद करती है।

RBI द्वारा संजय मल्होत्रा के हस्ताक्षर वाले ₹50 के बैंकनोट जारी करना मुद्रा प्रबंधन की एक नियमित प्रक्रिया है। डिज़ाइन में निरंतरता बनाए रखते हुए और मौजूदा नोटों की कानूनी वैधता सुनिश्चित करके, केंद्रीय बैंक भारत की मौद्रिक प्रणाली को स्थिर और प्रभावी बनाए रखता है।

विषय विवरण
क्यों चर्चा में? RBI ने ₹50 के नए बैंकनोट जारी करने की घोषणा की, जिन पर गवर्नर संजय मल्होत्रा के हस्ताक्षर होंगे। डिज़ाइन महात्मा गांधी (नए) श्रृंखला के तहत अपरिवर्तित रहेगा। पुराने ₹50 के नोट वैध रहेंगे।
नए RBI गवर्नर संजय मल्होत्रा (26वें गवर्नर, दिसंबर 2024 में पदभार ग्रहण किया, शक्तिकांत दास के उत्तराधिकारी)।
पूर्व RBI गवर्नर शक्तिकांत दास (दिसंबर 2018 से दिसंबर 2024 तक सेवा दी)।
बैंकनोट श्रृंखला महात्मा गांधी (नए) श्रृंखला।
डिज़ाइन में बदलाव कोई बदलाव नहीं, केवल गवर्नर के हस्ताक्षर अपडेट किए गए।
कानूनी वैधता पुराने ₹50 के बैंकनोट मान्य रहेंगे।
पूर्व गवर्नर जिन्होंने ₹50 नोट जारी किए उर्जित पटेल (2016), वाई. वी. रेड्डी (2004)।
RBI की स्थापना 1 अप्रैल 1935।
RBI मुख्यालय मुंबई, महाराष्ट्र।
RBI अधिनियम भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934।

केनरा बैंक ने माधवनकुट्टी जी को मुख्य अर्थशास्त्री नियुक्त किया

केनरा बैंक ने जनवरी 2025 से डॉ. माधवकुट्टी जी को अपना नया मुख्य अर्थशास्त्री नियुक्त किया है। आर्थिक अनुसंधान, बैंकिंग और कॉर्पोरेट क्षेत्र में दो दशकों से अधिक अनुभव रखने वाले डॉ. माधवकुट्टी बैंक की आर्थिक रणनीति तैयार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे। वैश्विक आर्थिक परिवेश में बदलावों को ध्यान में रखते हुए, उनकी विशेषज्ञता बैंक के निर्णय लेने की प्रक्रिया को मजबूत बनाएगी।

नियुक्ति के प्रमुख बिंदु

नई नेतृत्व भूमिका

  • डॉ. माधवकुट्टी जी को कैनेरा बैंक के मुख्य अर्थशास्त्री के रूप में नियुक्त किया गया।
  • वे बैंक प्रबंधन को रणनीतिक आर्थिक विश्लेषण और नीतिगत सिफारिशें प्रदान करेंगे।

व्यावसायिक पृष्ठभूमि

  • वरिष्ठ अर्थशास्त्री के रूप में बैंक ऑफ इंडिया, आदित्य बिड़ला ग्रुप और टाइम्स ग्रुप में कार्य किया।
  • आर्थिक अनुसंधान, बैंकिंग और वित्तीय क्षेत्र में 20+ वर्षों का अनुभव।

मुख्य जिम्मेदारियाँ

  • घरेलू और वैश्विक आर्थिक रुझानों का विश्लेषण कर वित्तीय योजनाओं में सहायता।
  • मौद्रिक नीतियों, आर्थिक दृष्टिकोण और वित्तीय रणनीतियों पर मार्गदर्शन।
  • बैंक की आर्थिक अनिश्चितताओं से निपटने की क्षमता को सुदृढ़ बनाना।

कैनेरा बैंक का वित्तीय प्रदर्शन (Q3 FY 2024-25)

  • शुद्ध लाभ: ₹4,014 करोड़ (12.25% वार्षिक वृद्धि)
  • संचालन लाभ: ₹7,837 करोड़ (15.15% वार्षिक वृद्धि)
  • वैश्विक जमा: ₹13,69,465 करोड़ (8.44% वार्षिक वृद्धि)
  • सकल अग्रिम: ₹10,49,706 करोड़ (10.45% वार्षिक वृद्धि)
  • कुल वैश्विक व्यवसाय: ₹24,19,171 करोड़ (9.30% वार्षिक वृद्धि)
  • घरेलू जमा: ₹12,57,426 करोड़ (7.76% वार्षिक वृद्धि)
  • घरेलू सकल अग्रिम: ₹9,87,591 करोड़ (9.55% वार्षिक वृद्धि)

डॉ. माधवकुट्टी जी की नियुक्ति से बैंक को आर्थिक रणनीति और नीतिगत निर्णयों में महत्वपूर्ण दिशा मिलेगी, जिससे बैंक के भविष्य के प्रदर्शन को मजबूती मिलेगी।

क्यों चर्चा में? कैनेरा बैंक ने डॉ. माधवकुट्टी जी को मुख्य अर्थशास्त्री नियुक्त किया
नई नियुक्ति डॉ. माधवकुट्टी जी को मुख्य अर्थशास्त्री बनाया गया
प्रभावी तिथि जनवरी 2025
पूर्व अनुभव बैंक ऑफ इंडिया, आदित्य बिड़ला ग्रुप, टाइम्स ग्रुप में वरिष्ठ अर्थशास्त्री
मुख्य जिम्मेदारियाँ आर्थिक विश्लेषण, वित्तीय रणनीति, नीतिगत परामर्श
शुद्ध लाभ (Q3 FY25) ₹4,014 करोड़ (12.25% वार्षिक वृद्धि)
संचालन लाभ ₹7,837 करोड़ (15.15% वार्षिक वृद्धि)
वैश्विक जमा ₹13,69,465 करोड़ (8.44% वार्षिक वृद्धि)
कुल वैश्विक व्यवसाय ₹24,19,171 करोड़ (9.30% वार्षिक वृद्धि)

लोकसभा ने संसद में 6 नई भाषाओं में ट्रांसलेशन सेवाओं की घोषणा की

लोकसभा में भाषाई समावेशन को बढ़ावा देने के लिए, लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला ने बोड़ो, डोगरी, मैथिली, मणिपुरी, संस्कृत और उर्दू को अनुवाद सेवाओं में शामिल करने की घोषणा की। इस विस्तार का उद्देश्य सांसदों के लिए संसदीय कार्यवाही को अधिक सुगम बनाना और लोकतांत्रिक भागीदारी को सुदृढ़ करना है। यह पहल भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में सूचीबद्ध 22 भाषाओं के लिए अनुवाद सेवाएं प्रदान करने की व्यापक योजना का हिस्सा है। हालाँकि, संस्कृत को शामिल किए जाने पर विवाद भी हुआ, क्योंकि इसकी संवाद क्षमता और आधिकारिक राज्य भाषा के रूप में स्थिति पर सवाल उठाए गए।

मुख्य बिंदु

अनुवाद सेवाओं का विस्तार

  • लोकसभा में बोड़ो, डोगरी, मैथिली, मणिपुरी, संस्कृत और उर्दू के लिए अनुवाद सेवाएं जोड़ी गईं।

पहले से उपलब्ध भाषाएं

  • अब तक 10 भाषाओं में अनुवाद सेवाएं उपलब्ध थीं – असमिया, बंगाली, गुजराती, कन्नड़, मलयालम, मराठी, उड़िया, तमिल, तेलुगु, हिंदी और अंग्रेज़ी।

भविष्य की योजनाएँ

  • लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला ने कहा कि संसाधनों की उपलब्धता के अनुसार आठवीं अनुसूची की सभी 22 भाषाओं में अनुवाद सेवाएं शुरू करने का प्रयास किया जाएगा।

वैश्विक मान्यता

  • भारत की संसद दुनिया की एकमात्र लोकतांत्रिक संस्था है जो विभिन्न भाषाओं में एक साथ अनुवाद सेवाएं प्रदान करती है, जिसे वैश्विक मंचों पर सराहा गया है।

संस्कृत पर विवाद

  • डीएमके सांसद दयानिधि मारन ने संस्कृत को शामिल किए जाने का विरोध किया, इसे एक बोली जाने वाली भाषा के रूप में अप्रासंगिक बताया।
  • उन्होंने 2011 की जनगणना का हवाला दिया, जिसमें संस्कृत बोलने वालों की संख्या केवल 73,000 दर्ज की गई थी।
  • लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला ने संस्कृत को शामिल करने के फैसले का बचाव करते हुए इसकी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्ता पर जोर दिया।
  • संसद में सत्तारूढ़ और विपक्षी दलों के बीच इस मुद्दे पर तीखी बहस हुई।
क्यों चर्चा में? लोकसभा ने 6 और भाषाओं के लिए अनुवाद सेवाओं का विस्तार किया
नई जोड़ी गई भाषाएँ बोड़ो, डोगरी, मैथिली, मणिपुरी, संस्कृत, उर्दू
पहले से उपलब्ध भाषाएँ असमिया, बंगाली, गुजराती, कन्नड़, मलयालम, मराठी, उड़िया, तमिल, तेलुगु, हिंदी, अंग्रेज़ी
कुल समर्थित भाषाएँ अब 16 (भविष्य में आठवीं अनुसूची की सभी 22 भाषाओं तक विस्तार किया जाएगा)
अध्यक्ष का औचित्य लोकसभा में समावेशन और सुगमता बढ़ाने का प्रयास
वैश्विक मान्यता भारत की संसद दुनिया की एकमात्र संसद है जो कई भाषाओं में रीयल-टाइम अनुवाद सेवाएं प्रदान करती है
संस्कृत पर विवाद डीएमके सांसद ने इसके सीमित बोलने वालों और किसी राज्य में आधिकारिक दर्जा न होने पर आपत्ति जताई
अध्यक्ष की प्रतिक्रिया ओम बिड़ला ने संस्कृत को भारत की मूल भाषा बताते हुए इसके समावेशन का बचाव किया

AIIMS Delhi ने बायोमेडिकल अपशिष्ट प्रबंधन के लिए ‘सृजनम’ का अनावरण किया

भारत ने बायोमेडिकल कचरा प्रबंधन में एक बड़ा कदम उठाया है। एम्स दिल्ली में ‘सृजनम्’ (Srjanam) के रूप में देश की पहली स्वचालित बायोमेडिकल कचरा परिवर्तक प्रणाली शुरू की गई है। विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने 10 फरवरी 2025 को इस स्वदेशी नवाचार का उद्घाटन किया। इसे सीएसआईआर-एनआईआईएसटी, तिरुवनंतपुरम ने विकसित किया है। ‘सृजनम्’ पारंपरिक विधियों की तुलना में पर्यावरण के अनुकूल और किफायती समाधान प्रदान करता है।

‘सृजनम्’ बायोमेडिकल कचरा प्रबंधन में कैसे क्रांति लाएगा?

भारत में प्रतिदिन लगभग 743 टन बायोमेडिकल कचरा उत्पन्न होता है, जो अस्पतालों और चिकित्सा संस्थानों के लिए एक बड़ी चुनौती है। परंपरागत निस्तारण विधियां, विशेषकर दहन (incineration), प्रदूषण और पर्यावरणीय जोखिम बढ़ाती हैं। ‘सृजनम्’ इन खतरों को कम करते हुए खून, मूत्र, बलगम और लैब डिस्पोजेबल्स जैसे अपशिष्ट पदार्थों को निष्क्रिय करता है, वह भी बिना किसी ऊर्जा-गहन प्रक्रिया के।

एम्स दिल्ली भारत का पहला अस्पताल बन गया है, जहां इस अत्याधुनिक तकनीक को लागू किया गया है। यह प्रणाली गंध नियंत्रण के साथ स्वचालित रूप से कचरे को संसाधित करती है, जिससे इसका संचालन अधिक सुरक्षित और प्रभावी हो जाता है।

‘सृजनम्’ की प्रमुख विशेषताएं

  • स्वचालित कचरा निष्क्रियकरण – यह प्रणाली बिना किसी हानिकारक उत्सर्जन के बायोमेडिकल कचरे को प्रभावी रूप से निष्क्रिय करती है
  • गंध नियंत्रण तकनीक – पारंपरिक कचरा प्रबंधन प्रणालियों की तुलना में यह प्रणाली दुर्गंध को खत्म करती है, जिससे अस्पतालों के लिए कचरा प्रबंधन अधिक सुरक्षित बनता है।
  • स्केलेबल क्षमता – वर्तमान में यह प्रणाली 10 किलोग्राम प्रतिदिन बायोडिग्रेडेबल मेडिकल कचरा संसाधित कर सकती है। भविष्य में यह 400 किलोग्राम प्रतिदिन तक बढ़ने की क्षमता रखती है।

भारत के स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए क्या मायने रखता है ‘सृजनम्’?

डॉ. जितेंद्र सिंह ने इस पहल को “विकसित भारत 2047” दृष्टि के अनुरूप बताया। सरकार पर्यावरण-अनुकूल नवाचारों का समर्थन कर रही है, जिससे अस्पतालों की बायोमेडिकल कचरा प्रबंधन क्षमता में सुधार होगा।

एम्स दिल्ली में ‘सृजनम्’ की सफलता से इसे देशभर के अस्पतालों में लागू किया जा सकता है। उचित अनुमोदन और वित्त पोषण के साथ, यह प्रणाली सुरक्षित और टिकाऊ बायोमेडिकल कचरा निस्तारण के लिए एक नया मानक स्थापित कर सकती है।

इस पहल से अस्पतालों की सुरक्षा और स्वच्छता मानकों में वृद्धि होगी और भारत में स्वच्छ व पर्यावरण-संवेदनशील चिकित्सा अपशिष्ट निपटान प्रणाली विकसित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित होगा।

श्रेणी विवरण
क्यों चर्चा में है? एम्स दिल्ली ने 10 फरवरी 2025 को ‘सृजनम्’ (Srjanam) लॉन्च किया, जो भारत की पहली स्वचालित बायोमेडिकल कचरा परिवर्तक प्रणाली है। इसे डॉ. जितेंद्र सिंह ने उद्घाटित किया और सीएसआईआर-एनआईआईएसटी, तिरुवनंतपुरम द्वारा विकसित किया गया। यह प्रणाली दहन (incineration) के बिना खतरनाक कचरे को निष्क्रिय करती है।
विकसित किया गया सीएसआईआर-एनआईआईएसटी (वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद – राष्ट्रीय अंतर्विषयक विज्ञान और प्रौद्योगिकी संस्थान), तिरुवनंतपुरम
उद्घाटन किया डॉ. जितेंद्र सिंह, केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री
स्थापित किया गया एम्स दिल्ली (अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान)
उद्देश्य बायोमेडिकल कचरे को गैर-खतरनाक सामग्री में बदलना, बिना दहन तकनीक का उपयोग किए
प्रसंस्करण क्षमता वर्तमान में: 10 किग्रा/दिन; भविष्य में: 400 किग्रा/दिन (अनुमोदन के बाद)
विशेष विशेषताएँ गंध नियंत्रण तकनीक, ऊर्जा-कुशल कचरा उपचार प्रणाली
भारत में बायोमेडिकल कचरा उत्पादन 743 टन प्रति दिन
एम्स दिल्ली – स्थिर तथ्य स्थापना: 1956; स्थान: नई दिल्ली
सीएसआईआर – स्थिर तथ्य स्थापना: 1942; मुख्यालय: नई दिल्ली
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह

वॉरिकन और मूनी जनवरी के लिए आईसीसी प्लेयर ऑफ़ मंथ

अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (ICC) ने जनवरी 2025 के प्लेयर ऑफ द मंथ पुरस्कारों की घोषणा की, जिसमें जोमेल वॉरिकन (वेस्टइंडीज) और बेथ मूनी (ऑस्ट्रेलिया) को उनके शानदार प्रदर्शन के लिए सम्मानित किया गया। वॉरिकन की घातक स्पिन गेंदबाजी ने वेस्टइंडीज को पाकिस्तान के खिलाफ ऐतिहासिक टेस्ट जीत दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिससे उन्हें आईसीसी पुरुष प्लेयर ऑफ द मंथ का खिताब मिला। वहीं, मूनी की विस्फोटक बल्लेबाजी ने ऑस्ट्रेलिया को एशेज जीतने में मदद की, जिसके चलते उन्हें आईसीसी महिला प्लेयर ऑफ द मंथ का पुरस्कार मिला।

मुख्य बिंदु

जोमेल वॉरिकन – आईसीसी पुरुष प्लेयर ऑफ द मंथ

  • वेस्टइंडीज के बाएं हाथ के स्पिनर जोमेल वॉरिकन को पहली बार आईसीसी पुरुष प्लेयर ऑफ द मंथ का पुरस्कार मिला।
  • वेस्टइंडीज की पाकिस्तान में ऐतिहासिक टेस्ट जीत में अहम भूमिका निभाई, जो 1990 के बाद वहां उनकी पहली जीत थी।
  • दो टेस्ट मैचों में 19 विकेट लिए, अविश्वसनीय 9.00 की औसत से।

पहला टेस्ट (मुल्तान)

  • 10 विकेट झटके, जिसमें दूसरी पारी में करियर का सर्वश्रेष्ठ 7/32 का प्रदर्शन शामिल था।
  • पाकिस्तान की दूसरी पारी के 10 में से 9 विकेट में योगदान दिया।

दूसरा टेस्ट

  • 95 रनों की अंतिम विकेट साझेदारी में 36 नाबाद रन बनाए।
  • पहली पारी में 4 विकेट और दूसरी पारी में 5 विकेट लेकर वेस्टइंडीज को 120 रन से जीत दिलाई।
  • अपने हरफनमौला प्रदर्शन के लिए प्लेयर ऑफ द सीरीज चुने गए।
  • गुडाकेश मोती (मई 2024) के बाद पहले वेस्टइंडियन खिलाड़ी बने जिन्होंने यह पुरस्कार जीता।

बेथ मूनी – आईसीसी महिला प्लेयर ऑफ द मंथ

  • ऑस्ट्रेलियाई बल्लेबाज बेथ मूनी ने इंग्लैंड के खिलाफ एशेज में शानदार प्रदर्शन कर यह सम्मान जीता।
  • शुरुआत में धीमी लय में रहीं, लेकिन वनडे और टी20 में मैच जिताने वाली पारियां खेलीं।

तीसरा वनडे

  • 64 गेंदों में 50 रन बनाकर ऑस्ट्रेलिया को 59/4 की मुश्किल स्थिति से उबारा, जिससे टीम ने 308 रन बनाए।
  • ऑस्ट्रेलिया ने इंग्लैंड के खिलाफ वनडे सीरीज 3-0 से जीती।

टी20 सीरीज

  • 213 रन बनाए, स्ट्राइक रेट 146.89 रहा।
  • 75 और 44 रन की पारियां खेलीं, फिर एडिलेड में करियर का सर्वश्रेष्ठ 94 रन (63 गेंदों में) बनाए।
  • करिश्मा रामहरक (वेस्टइंडीज) और गोंगड़ी तृषा (भारत U19) को पछाड़कर पुरस्कार जीता।
  • अनाबेल सदरलैंड (दिसंबर 2024) के बाद ऑस्ट्रेलिया की ओर से लगातार दूसरा विजेता बनीं।
सारांश/स्थिर विवरण
क्यों चर्चा में? वॉरिकन और मूनी ने आईसीसी प्लेयर ऑफ द मंथ का खिताब जीता।
पुरुष प्लेयर ऑफ द मंथ जोमेल वॉरिकन (वेस्टइंडीज) – 2 टेस्ट में 19 विकेट, जिसमें करियर का सर्वश्रेष्ठ 7/32 शामिल। वेस्टइंडीज की पाकिस्तान में ऐतिहासिक टेस्ट जीत में अहम भूमिका निभाई। बल्लेबाजी में भी 36 रन* का योगदान दिया।
महिला प्लेयर ऑफ द मंथ बेथ मूनी (ऑस्ट्रेलिया) – टी20 में 213 रन बनाए, स्ट्राइक रेट 146.89 रहा। एशेज जीत में अहम भूमिका निभाई, सर्वश्रेष्ठ स्कोर *94 (63 गेंदों में)**। वनडे सीरीज में भी 50 रन की महत्वपूर्ण पारी खेली।

विश्व रेडियो दिवस 2025: 13 फ़रवरी

विश्व रेडियो दिवस प्रतिवर्ष 13 फरवरी को मनाया जाता है, जिससे रेडियो के संचार, सूचना प्रसार और मनोरंजन में महत्त्व को स्वीकार किया जाता है। यह दिन संवाद को बढ़ावा देने, लोकतांत्रिक मूल्यों को सुदृढ़ करने और विविध समुदायों की आवाज़ को सुनिश्चित करने के लिए रेडियो की भूमिका को रेखांकित करता है। यूनेस्को (UNESCO) ने 2011 में इसकी स्थापना की थी, जिसे संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 2013 में औपचारिक रूप से अपनाया।

रेडियो का विकास

रेडियो प्रौद्योगिकी का जन्म

रेडियो तकनीक की यात्रा 19वीं शताब्दी के अंत में शुरू हुई, जिसमें कई वैज्ञानिकों ने योगदान दिया। गुग्लिएल्मो मारकोनी को 1895 में पहली सफल रेडियो तरंग संचार करने का श्रेय दिया जाता है, हालांकि, जगदीश चंद्र बोस ने इससे पहले ही नवंबर 1895 में रेडियो तरंगों के सिद्धांत का प्रदर्शन किया था।

रेडियो का प्रसार और लोकप्रियता

  • 1920 के दशक: व्यावसायिक रेडियो प्रसारण की शुरुआत।
  • 1950 के दशक: रेडियो वैश्विक स्तर पर सूचना और मनोरंजन का प्रमुख स्रोत बना।
  • आधुनिक युग: डिजिटल तकनीक के बावजूद रेडियो आज भी व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है।

रेडियो कैसे काम करता है?

रेडियो विद्युत चुम्बकीय (Electromagnetic) तरंगों के प्रसारण पर आधारित है। इसके दो मुख्य घटक होते हैं:

  1. रेडियो ट्रांसमीटर: ध्वनि को विद्युत चुम्बकीय तरंगों में बदलकर प्रसारित करता है।
  2. रेडियो रिसीवर: प्रसारित तरंगों को पकड़कर ध्वनि में परिवर्तित करता है।

रेडियो तरंगों की प्रमुख विधियाँ:

  • AM (एम्प्लीट्यूड मॉडुलेशन): कम गुणवत्ता वाली लेकिन लंबी दूरी तक प्रसारित होती है (kHz में)।
  • FM (फ्रीक्वेंसी मॉडुलेशन): उच्च गुणवत्ता वाली ध्वनि लेकिन सीमित क्षेत्र में प्रसारित होती है (MHz में)।

आधुनिक समाज में रेडियो की भूमिका

संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, रेडियो की महत्ता आज भी बनी हुई है:

  • विविधता को बढ़ावा: विभिन्न भाषाओं और संस्कृतियों के लिए मंच प्रदान करता है।
  • सूचना का प्रसार: समाचार, शिक्षा और आपातकालीन सूचनाओं का प्रसारण करता है।
  • समुदायों को जोड़ना: दूरस्थ और ग्रामीण क्षेत्रों तक पहुंच सुनिश्चित करता है।
  • सशक्तिकरण: उपेक्षित समुदायों को आवाज़ देता है।

भारत में रेडियो प्रसारण का इतिहास

प्रारंभिक विकास

  • भारत में पहला रेडियो प्रसारण 1923 में बॉम्बे रेडियो क्लब द्वारा किया गया।
  • इसके बाद इंडियन ब्रॉडकास्टिंग कंपनी (IBC) की स्थापना हुई।

ऑल इंडिया रेडियो (AIR) का विकास

  • 1956 में ऑल इंडिया रेडियो (AIR) की स्थापना हुई, जो अब दुनिया के सबसे बड़े रेडियो नेटवर्कों में से एक है।
  • AIR विभिन्न भाषाओं और बोलियों में कार्यक्रम प्रसारित करता है।

एफएम रेडियो का आगमन

  • 1977 में चेन्नई में भारत में पहली बार एफएम प्रसारण शुरू हुआ।
  • 1993 तक रेडियो प्रसारण पर AIR का एकाधिकार था।
  • पहला निजी एफएम रेडियो स्टेशन, रेडियो सिटी बैंगलोर, 2001 में लॉन्च हुआ।
  • भारत में निजी एफएम चैनलों को समाचार प्रसारित करने की अनुमति नहीं है।

रेडियो के आविष्कार का श्रेय किसे?

जगदीश चंद्र बोस का योगदान

नवंबर 1895 में, बोस ने कलकत्ता टाउन हॉल में अपने प्रयोग का प्रदर्शन किया:

  • 75 फीट की दूरी पर तरंगों को भेजा।
  • दीवारों से तरंगें पार कराकर घंटी बजाई।
  • विद्युत चुम्बकीय तरंगों से गनपाउडर जलाया।

उन्हें “वायरलेस संचार का जनक” माना जाता है।

गुग्लिएल्मो मारकोनी की उपलब्धियाँ

  • 1890 के दशक में पहली लंबी दूरी की रेडियो संचार सफलतापूर्वक की।
  • 1909 में नोबेल पुरस्कार प्राप्त किया।

रेडियो की प्रासंगिकता आज भी क्यों बनी हुई है?

  • सुलभता: इंटरनेट और स्मार्टफोन के बिना भी सुगम।
  • विश्वसनीयता: आपात स्थितियों में भी कार्यरत रहता है।
  • सस्ती तकनीक: न्यूनतम बुनियादी ढांचे के साथ संचालन योग्य।

रेडियो, संचार और सूचना का एक शक्तिशाली और स्थायी माध्यम बना हुआ है, जो हर वर्ग तक अपनी पहुंच बनाए रखता है।

वर्ग विवरण
क्यों चर्चा में? विश्व रेडियो दिवस प्रतिवर्ष 13 फरवरी को मनाया जाता है, जो संचार, सूचना प्रसार और मनोरंजन के प्रभावी माध्यम के रूप में रेडियो की भूमिका को रेखांकित करता है।
स्थापना यूनेस्को (UNESCO) द्वारा 2011 में स्थापित, संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा 2013 में अपनाया गया।
महत्त्व संवाद को बढ़ावा देने, लोकतंत्र को सुदृढ़ करने और विविध समुदायों की आवाज़ सुनिश्चित करने में रेडियो की भूमिका को मान्यता देता है।
रेडियो तकनीक का जन्म गुग्लिएल्मो मारकोनी ने 1895 में पहली सफल रेडियो तरंग संचार किया, लेकिन जगदीश चंद्र बोस ने नवंबर 1895 में पहले ही रेडियो तरंग प्रसारण का प्रदर्शन किया था।
रेडियो का विकास 1920 के दशक में व्यावसायिक रेडियो प्रसारण शुरू हुआ।
1950 के दशक तक रेडियो वैश्विक सूचना और मनोरंजन का प्रमुख स्रोत बन गया।
रेडियो कैसे काम करता है? रेडियो ट्रांसमीटर: ध्वनि को विद्युत चुम्बकीय तरंगों में बदलता है।
रेडियो रिसीवर: प्रसारित तरंगों को पकड़कर पुनः ध्वनि में परिवर्तित करता है।
रेडियो प्रसारण के प्रकार AM (एम्प्लीट्यूड मॉडुलेशन): kHz आवृत्ति का उपयोग करता है, व्यापक कवरेज लेकिन कम ध्वनि गुणवत्ता।
FM (फ्रीक्वेंसी मॉडुलेशन): MHz आवृत्ति का उपयोग करता है, उच्च ध्वनि गुणवत्ता लेकिन सीमित कवरेज।
समाज में रेडियो की भूमिका विविधता को बढ़ावा: विभिन्न संस्कृतियों और भाषाओं के लिए मंच।
सूचना का प्रसार: समाचार, शिक्षा और आपातकालीन सूचनाओं का प्रसारण।
समुदायों को जोड़ना: ग्रामीण और दूरस्थ क्षेत्रों तक पहुंच।
सशक्तिकरण: उपेक्षित समूहों को आवाज़ देना।
भारत में रेडियो 1923 में बॉम्बे रेडियो क्लब द्वारा पहला प्रसारण किया गया।
1956 में ऑल इंडिया रेडियो (AIR) की स्थापना हुई, जो अब दुनिया के सबसे बड़े रेडियो नेटवर्कों में से एक है।
23 जुलाई 1977 को चेन्नई में एफएम प्रसारण शुरू हुआ।
2001 में निजी एफएम चैनलों की शुरुआत हुई, लेकिन इन्हें समाचार प्रसारित करने की अनुमति नहीं है।
रेडियो का आविष्कार किसने किया? जगदीश चंद्र बोस (1895): विद्युत चुम्बकीय तरंगों का प्रदर्शन किया, दीवारों के पार तरंगें भेजीं, दूरस्थ रूप से गनपाउडर जलाया।
गुग्लिएल्मो मारकोनी: पहला व्यावहारिक रेडियो ट्रांसमीटर विकसित किया, लंबी दूरी तक संचार किया, 1909 में नोबेल पुरस्कार जीता।
आज भी रेडियो की प्रासंगिकता सुलभ: इंटरनेट और स्मार्टफोन के बिना भी कार्य करता है।
विश्वसनीय: आपातकाल में भी कार्यशील रहता है।
सस्ता: न्यूनतम ढांचे में भी प्रभावी संचार सुनिश्चित करता है।

इजरायली शोधकर्ताओं ने ऑटिज्म से संबंधित मस्तिष्क गतिविधि की खोज की

हाइफ़ा विश्वविद्यालय के इज़राइली शोधकर्ताओं की एक टीम ने मस्तिष्क में उन तंत्रों की खोज की है जो दूसरों की भावनात्मक स्थितियों को पहचानने में मदद करते हैं। उनकी यह खोज, जो Current Biology पत्रिका में प्रकाशित हुई है, मीडियल प्रीफ्रंटल कॉर्टेक्स (mPFC) की भूमिका को उजागर करती है, जो भावनात्मक पहचान और सामाजिक व्यवहार को नियंत्रित करता है। यह शोध ऑटिज़्म जैसे सामाजिक विकारों के उपचार के लिए महत्वपूर्ण हो सकता है, जहाँ व्यक्तियों को सामाजिक बातचीत और भावनाओं की पहचान में कठिनाई होती है।

अध्ययन के प्रमुख निष्कर्ष

1. mPFC की भूमिका

  • मीडियल प्रीफ्रंटल कॉर्टेक्स (mPFC) भावनाओं को पहचानने और सामाजिक व्यवहार को नियंत्रित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

2. ऑटिज़्म और भावनात्मक पहचान

  • ऑटिज़्म सामाजिक संचार की कठिनाइयों और दोहराव वाली गतिविधियों की विशेषता वाला विकार है।
  • ऑटिज़्म से प्रभावित व्यक्तियों के लिए भावनाओं को पहचानना और उन पर प्रतिक्रिया देना चुनौतीपूर्ण होता है।

3. पशु मॉडल का उपयोग

  • शोधकर्ताओं ने चूहों पर प्रयोग करके भावनात्मक पहचान की न्यूरल प्रक्रियाओं को समझने की कोशिश की।

4. उन्नत तकनीकों का उपयोग

  • इस अध्ययन में आनुवंशिक (Genetic) हेरफेर और रियल-टाइम न्यूरल माप तकनीकों का उपयोग किया गया।
  • वैज्ञानिकों ने mPFC के प्रीलिम्बिक न्यूरॉन्स की गतिविधियों का अवलोकन किया।

5. चूहों में अवलोकन

  • mPFC न्यूरॉन्स अलग-अलग तरीके से तनावग्रस्त और शांत चूहों पर प्रतिक्रिया दे रहे थे।
  • चूहों ने तनावग्रस्त चूहों के पास रहना पसंद किया, जो उनके भावनात्मक पहचान की क्षमता को दर्शाता है।
  • जब mPFC न्यूरल गतिविधि को बाधित किया गया, तो चूहे भावनाओं में अंतर करने में असमर्थ हो गए।

6. ऑटिज़्म के लिए संभावित प्रभाव

  • यदि mPFC की न्यूरल गतिविधि ठीक से काम नहीं करती है, तो यह ऑटिज़्म से प्रभावित व्यक्तियों में भावनात्मक पहचान की समस्याओं को स्पष्ट कर सकता है।

7. भविष्य के शोध की दिशा

  • वैज्ञानिक अब ऐसे चूहों पर अध्ययन करेंगे, जिनमें ऑटिज़्म से संबंधित आनुवंशिक उत्परिवर्तन (Genetic Mutations) हैं, ताकि यह समझा जा सके कि न्यूरल परिवर्तनों का सामाजिक व्यवहार पर क्या प्रभाव पड़ता है।
मुख्य बिंदु विवरण
क्यों खबर में? इज़राइली शोधकर्ताओं ने ऑटिज़्म से जुड़ी मस्तिष्क गतिविधि की खोज की
अध्ययन का फोकस भावनात्मक पहचान के लिए मस्तिष्क तंत्र
प्रकाशित पत्रिका Current Biology
प्रमुख शोधकर्ता हाइफ़ा विश्वविद्यालय, इज़राइल
अध्ययन किया गया मस्तिष्क क्षेत्र मीडियल प्रीफ्रंटल कॉर्टेक्स (mPFC)
प्रयोग मॉडल चूहे
उपयोग की गई तकनीकें आनुवंशिक हेरफेर, रियल-टाइम न्यूरल माप
मुख्य निष्कर्ष mPFC न्यूरॉन्स भावनात्मक अवस्थाओं पर प्रतिक्रिया देते हैं, जो सामाजिक व्यवहार के लिए आवश्यक है
ऑटिज़्म संबंध mPFC की गड़बड़ी सामाजिक कठिनाइयों का कारण हो सकती है
अगला शोध कदम ऑटिज़्म से जुड़े आनुवंशिक उत्परिवर्तन का चूहों में अध्ययन

नीति आयोग ने राज्य उच्च शिक्षा पर रिपोर्ट जारी की

नीति आयोग ने ‘राज्यों और राज्य सार्वजनिक विश्वविद्यालयों के माध्यम से गुणवत्तापूर्ण उच्च शिक्षा का विस्तार’ नामक नीति रिपोर्ट जारी की है। इस रिपोर्ट को नीति आयोग के उपाध्यक्ष सुमन बेरी ने उच्च शिक्षा विभाग (DHE) के प्रमुख अधिकारियों के साथ लॉन्च किया। यह रिपोर्ट पहली बार विशेष रूप से राज्य सार्वजनिक विश्वविद्यालयों (SPUs) पर केंद्रित है और पिछले एक दशक में उच्च शिक्षा की गुणवत्ता, वित्तपोषण, शासन और रोजगार क्षमता से संबंधित एक व्यापक विश्लेषण प्रस्तुत करती है। इसमें लगभग 80 नीतिगत सिफारिशें और एक रणनीतिक रोडमैप शामिल है, जो नई शिक्षा नीति (NEP 2020) और विकसित भारत 2047 के लक्ष्यों के अनुरूप है।

रिपोर्ट के मुख्य बिंदु

  1. रिपोर्ट का लॉन्च और प्रमुख हितधारक
    • रिपोर्ट को नीति आयोग के उपाध्यक्ष सुमन बेरी, सदस्य डॉ. विनोद कुमार पॉल, सीईओ बी.वी.आर. सुब्रह्मण्यम, DHE सचिव विनीत जोशी, और एआईयू महासचिव डॉ. पंकज मित्तल द्वारा जारी किया गया।
    • यह पहली नीति दस्तावेज़ है जो विशेष रूप से राज्यों और राज्य सार्वजनिक विश्वविद्यालयों पर केंद्रित है।
    • इसमें 50 से अधिक SPUs के कुलपतियों, राज्य उच्च शिक्षा परिषदों और राज्य सरकार के अधिकारियों के साथ व्यापक परामर्श किया गया है।
  2. राज्य सार्वजनिक विश्वविद्यालयों की भूमिका
    • भारत में 80% उच्च शिक्षा राज्य सार्वजनिक विश्वविद्यालयों (SPUs) में होती है।
    • SPUs को सिर्फ शिक्षा की पहुंच बढ़ाने के बजाय विश्वस्तरीय शिक्षा प्रदान करने की दिशा में आगे बढ़ने की आवश्यकता है।
    • नई शिक्षा नीति (NEP 2020) के अनुसार, 2035 तक SPUs में नामांकन बढ़कर 7 करोड़ तक पहुंचने का अनुमान है।
  3. राज्य सार्वजनिक विश्वविद्यालयों में प्रमुख चुनौतियां
    • वित्तीय सीमाएं – अधिक निवेश और बेहतर वित्तीय प्रबंधन की आवश्यकता।
    • शासन संबंधी समस्याएं – प्रशासनिक सुधार और नेतृत्व क्षमता निर्माण की जरूरत।
    • क्षमता निर्माण – कुलपतियों, शिक्षकों और कर्मचारियों के प्रशिक्षण की आवश्यकता।
  4. नीतिगत सिफारिशें और प्रमुख रणनीतियां
    • गुणवत्ता सुधार – अनुसंधान, शिक्षण पद्धति और पाठ्यक्रम विकास में सुधार।
    • वित्तीय सुधार – संस्थानों की वित्तीय क्षमता को मजबूत करना।
    • शासन सुधार – उत्तरदायित्व बढ़ाने के लिए प्रशासनिक संरचनाओं को उन्नत करना।
    • उद्योग और शिक्षा संस्थानों का जुड़ाव – रोजगार क्षमता बढ़ाने के लिए उद्योगों से सहयोग।
  5. वित्तीय प्रतिबद्धताएं और सरकारी पहलें
    • PM-USHA योजना के तहत ₹13,000 करोड़ (2023-26) का आवंटन SPUs के लिए।
    • प्रत्येक SPU को ₹100 करोड़ का अनुदान बहुविषयक शिक्षा एवं अनुसंधान विश्वविद्यालय (MERU) में बदलने के लिए।
    • 10,000 PMRF शोधकर्ता, 6,500 नए IIT सीटें, और भारतीय भाषा पाठ्यपुस्तक योजना उच्च शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए।
  6. राष्ट्रीय लक्ष्यों के साथ संरेखण
    • NEP 2020 के कार्यान्वयन को समर्थन और भारत को ज्ञान हब बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान।
    • मानव संसाधन विकास और विकसित भारत 2047 के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए आवश्यक पहल।
मुख्य बिंदु विवरण
क्यों चर्चा में? नीति आयोग ने राज्य उच्च शिक्षा पर रिपोर्ट जारी की
रिपोर्ट का शीर्षक राज्यों और राज्य सार्वजनिक विश्वविद्यालयों के माध्यम से गुणवत्तापूर्ण उच्च शिक्षा का विस्तार
जारी करने वाला संगठन नीति आयोग (उपाध्यक्ष सुमन बेरी, डॉ. विनोद कुमार पॉल, बी.वी.आर. सुब्रह्मण्यम, विनीत जोशी, डॉ. पंकज मित्तल)
मुख्य फोकस क्षेत्र गुणवत्ता, वित्तपोषण, प्रशासन, रोजगार क्षमता
राज्य सार्वजनिक विश्वविद्यालयों की प्रमुख चुनौतियाँ सीमित वित्तीय संसाधन, प्रशासनिक समस्याएँ, क्षमता निर्माण की कमी
नीतिगत सिफारिशें 80+ सिफारिशें, अल्पकालिक-मध्यमकालिक-दीर्घकालिक रणनीतियाँ
वित्तीय सहायता एवं सरकारी योजनाएँ ₹13,000 करोड़ पीएम-उषा योजना, प्रत्येक SPU के लिए ₹100 करोड़ (MERUs हेतु), IIT सीटों का विस्तार एवं PMRF फेलोशिप
उच्च शिक्षा का दृष्टिकोण NEP 2020 के अनुरूप, 2035 तक नामांकन दोगुना करने का लक्ष्य, विकसित भारत 2047 का समर्थन
रणनीतिक महत्त्व SPUs की वैश्विक प्रतिस्पर्धात्मकता में सुधार और भारत को ज्ञान केंद्र (Knowledge Hub) बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण

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