शेख़ हसीना दक्षिण एशिया की प्रमुख राजनीतिक हस्तियों में से एक हैं। उन्होंने लंबे समय तक बांग्लादेश की प्रधानमंत्री के रूप में कार्य किया और देश के विकास को दिशा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनका जीवन राजनीतिक संघर्षों, मज़बूत नेतृत्व और जनसेवा के प्रति समर्पण से भरा रहा है। वे बांग्लादेश के संस्थापक नेता और अपने पिता, शेख़ मुजीबुर रहमान, से गहरे रूप से जुड़ी हुई हैं।
शेख़ हसीना का प्रारंभिक जीवन और पृष्ठभूमि
शेख़ हसीना का जन्म 28 सितंबर 1947 को तुंगीपाड़ा, पूर्वी बंगाल में हुआ था। वे एक सम्मानित राजनीतिक परिवार से थीं। उनके पिता शेख़ मुजीबुर रहमान को बांग्लादेश में राष्ट्रपिता के रूप में जाना जाता है। उनकी माता शेख़ फ़ज़िलतुननेस्सा मुजीब ने कठिन राजनीतिक वर्षों में परिवार को संभाला।
बचपन से ही हसीना ने राजनीतिक तनाव का वातावरण देखा, क्योंकि उनके पिता बांग्लादेश के अधिकारों के लिए संघर्ष कर रहे थे। उनके परिवार में उनके दादा के माध्यम से इराकी-अरब वंश भी है।
शिक्षा और छात्र जीवन
शेख़ हसीना ने ईडेन महिला कॉलेज में पढ़ाई की और बाद में ढाका विश्वविद्यालय से अपनी शिक्षा पूरी की। वे छात्र राजनीति में सक्रिय रहीं और प्रारंभिक नेतृत्व अनुभव प्राप्त किया। 1960–70 के अशांत काल में, उन्हें राजनीतिक हिंसा के कारण कई बार स्थान बदलना पड़ा।
त्रासदी और निर्वासन
1975 में, जब हसीना अपने पति के साथ पश्चिम जर्मनी में थीं, तभी बांग्लादेश में एक सैन्य तख्तापलट हुआ। इस हमले में उनके पिता, माता और अधिकांश परिवारजन मारे गए। हसीना और उनकी बहन विदेश में होने के कारण बच गईं।
हमले के बाद, हसीना को नई दिल्ली, भारत में राजनीतिक शरण मिली। वे वहीं रहीं, जब तक कि 1981 में अवामी लीग की नेता नियुक्त होने के बाद उन्हें बांग्लादेश लौटने की अनुमति नहीं मिल गई।
शेख़ हसीना का व्यक्तिगत जीवन
शेख़ हसीना ने 1968 में एम. ए. वाज़ेद मियां से विवाह किया, जो एक प्रतिष्ठित परमाणु वैज्ञानिक थे। उनका निधन 2009 में हुआ। दंपति के दो बच्चे हैं—
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सजीब वाज़ेद – तकनीकी विशेषज्ञ और राजनीतिक सलाहकार
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साइमा वाज़ेद – ऑटिज़्म और मानसिक स्वास्थ्य कार्यों से जुड़ी मनोवैज्ञानिक
शेख़ हसीना की राजनीतिक यात्रा
पहला कार्यकाल (1996–2001)
हसीना पहली बार 1996 में प्रधानमंत्री बनीं। वे बांग्लादेश की पहली नेता थीं जिन्होंने पूरा पाँच साल का कार्यकाल पूरा किया। इस दौरान उन्होंने भारत के साथ गंगा जल बंटवारा संधि पर हस्ताक्षर किए।
दूसरा कार्यकाल (2009–2014)
2008 के चुनाव जीतकर वे फिर सत्ता में आईं। इस दौरान उन्होंने अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण (ICT) की स्थापना की, जिसने 1971 के मुक्ति युद्ध के अपराधों की जांच की।
तीसरा कार्यकाल (2014–2019)
2014 में फिर जीत दर्ज की, हालांकि चुनाव में हिंसा और विवादों की रिपोर्टें भी आईं।
चौथा कार्यकाल (2019–2024)
2019 में भारी जीत के बाद वे फिर सत्ता में आईं। लेकिन देश में राजनीतिक तनाव बढ़ता गया।
5 अगस्त 2024 को तीव्र छात्र विरोध प्रदर्शनों और अशांति के कारण उन्होंने प्रधानमंत्री पद से इस्तीफ़ा दे दिया।
शेख़ हसीना को मिले प्रमुख पुरस्कार
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1998: मदर टेरेसा अवॉर्ड
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1998: एम. के. गांधी अवॉर्ड (नॉर्वे)
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1999: डॉक्टर ऑफ लॉ (मानद), ढाका विश्वविद्यालय
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2000: पर्ल एस. बक अवॉर्ड
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2009: इंदिरा गांधी पुरस्कार
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2014: यूनेस्को पीस ट्री अवॉर्ड
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2015: लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड
विरासत और प्रभाव
शेख़ हसीना दुनिया की सबसे लंबे समय तक सेवा देने वाली महिला नेताओं में से एक हैं। उन्होंने बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था को मज़बूत किया, शिक्षा और महिलाओं के सशक्तिकरण को बढ़ावा दिया। पद छोड़ने के बाद भी वे देश के राजनीतिक इतिहास की एक अत्यंत महत्वपूर्ण शख्सियत बनी हुई हैं।


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