राष्ट्रीय गीत ‘वंदे मातरम’ के 150 साल, PM मोदी साल भर चलने वाले समारोह की करेंगे शुरुआत

भारत का राष्ट्रीय गीत “वंदे मातरम्” केवल एक रचना नहीं, बल्कि देशभक्ति, गर्व और एकता का प्रतीक है। बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय द्वारा लिखित यह गीत भारत के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान करोड़ों भारतीयों के लिए प्रेरणा का स्रोत बना और आज भी मातृभूमि के प्रति समर्पण की भावना को जागृत करता है।

वंदे मातरम् के 150 वर्ष: ऐतिहासिक उत्सव

वर्ष 2025 में भारत “वंदे मातरम्” के 150 वर्ष पूरे करेगा — यह एक ऐतिहासिक पड़ाव है जो इस गीत की अमर विरासत और भारत की राष्ट्रीय अस्मिता से उसके गहरे भावनात्मक संबंध का उत्सव मनाता है।

उद्घाटन समारोह के विवरण

तिथि: 7 नवम्बर 2025
स्थान: इंदिरा गांधी इंडोर स्टेडियम, नई दिल्ली
आयोजक: संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार
मुख्य अतिथि: प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी

यह भव्य उद्घाटन समारोह 7 नवम्बर 2025 से 7 नवम्बर 2026 तक चलने वाले वर्षभर के राष्ट्रव्यापी उत्सव का शुभारंभ करेगा, जिसमें “वंदे मातरम्” के सशक्त संदेश और संगीत-परंपरा का सम्मान किया जाएगा।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

  • “वंदे मातरम्” की रचना 7 नवम्बर 1875 को अक्षय नवमी के दिन बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय ने की थी।

  • यह पहली बार बांग्ला साहित्यिक पत्रिका “बंगदर्शन” में उनके प्रसिद्ध उपन्यास “आनंदमठ” के हिस्से के रूप में प्रकाशित हुआ और 1882 में पुस्तक रूप में आया।

  • ब्रिटिश शासन के दौर में यह गीत भारत के जागरण, शक्ति और स्वतंत्रता की भावना का प्रतीक बना।

  • गीत में भारत माता को देवी स्वरूप में प्रस्तुत किया गया, जिसने असंख्य स्वतंत्रता सेनानियों को प्रेरित किया।

  • 24 जनवरी 1950 को भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने घोषणा की कि “वंदे मातरम्”, जिसने स्वतंत्रता आंदोलन में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, को राष्ट्रीय गान “जन गण मन” के समान सम्मान दिया जाएगा।

उत्सव की मुख्य झलकियाँ

  • 7 नवम्बर 2025, सुबह 10:00 बजे देशभर में “वंदे मातरम्” का सामूहिक गान किया जाएगा।

  • विद्यार्थी, शिक्षक, सरकारी कर्मचारी, पुलिसकर्मी, डॉक्टर और आम नागरिक — सभी इस राष्ट्रभक्ति आयोजन में भाग लेंगे।

उद्घाटन समारोह के प्रमुख आकर्षण

  • भारत की पारंपरिक कला और संगीत को प्रदर्शित करने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रम

  • “वंदे मातरम्” के 150 वर्षों की यात्रा पर आधारित विशेष प्रदर्शनी

  • विश्व प्रसिद्ध वायलिन वादक डॉ. मैसूर मंजीनाथ के नेतृत्व में 75 कलाकारों द्वारा लाइव संगीत प्रस्तुति — “वंदे मातरम्: नाद एकम्, रूपम् अनेकम्”

  • “वंदे मातरम्” पर आधारित लघु वृत्तचित्र (डॉक्युमेंट्री) का प्रदर्शन।

  • इस अवसर पर स्मारक डाक टिकट और सिक्के का विमोचन

  • प्रधानमंत्री का विशेष संबोधन और अन्य गणमान्य व्यक्तियों के वक्तव्य।

  • कार्यक्रम का समापन देशव्यापी सामूहिक “वंदे मातरम्” गान से होगा।

देशव्यापी सहभागिता

  • सभी राज्य, केंद्र शासित प्रदेश, मंत्रालय और सरकारी विभाग अपने-अपने कार्यालय परिसरों में सुबह 10 बजे एक साथ गीत का सामूहिक गान करेंगे।

  • प्रधानमंत्री का संबोधन देशभर के विद्यालयों, महाविद्यालयों और संस्थानों में सीधा प्रसारित होगा।

  • इस समवेत आयोजन का उद्देश्य प्रत्येक नागरिक को राष्ट्रीय गौरव और एकता की भावना से जोड़ना है।

डिजिटल अभियान और जनसहभागिता

इस आयोजन को अधिक समावेशी बनाने हेतु संस्कृति मंत्रालय ने एक विशेष वेबसाइट — www.vandemataram150.in — प्रारंभ की है।

इस वेबसाइट पर उपलब्ध हैं:

  • आधिकारिक पोस्टर, बैनर और प्रचार सामग्री

  • गीत के ऑडियो और पूरे बोल सामूहिक गायन के लिए।

  • विशेष फीचर — “Karaoke with Vande Mataram”, जिसके माध्यम से नागरिक अपनी आवाज़ में गीत रिकॉर्ड कर अपलोड कर सकते हैं।

  • लघु फिल्में और प्रदर्शनी, जो गीत के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व को दर्शाती हैं।

विद्यालयों के छात्र, युवा, पेशेवर और नागरिक — सभी को इस अभियान में भाग लेने और मातृभूमि के प्रति प्रेम व्यक्त करने के लिए प्रोत्साहित किया गया है।

150वीं वर्षगाँठ का महत्व

यह आयोजन केवल एक गीत का उत्सव नहीं, बल्कि भारतीय एकता, विविधता और देशभक्ति की भावना का श्रद्धांजलि समारोह है।
“वंदे मातरम्” ने पीढ़ियों को राष्ट्र सेवा, साहस और समर्पण की प्रेरणा दी है।

इस ऐतिहासिक रचना के 150 वर्ष पूरे होने पर, भारत उस गीत की भावना को नमन कर रहा है जो आज भी स्वतंत्रता, सम्मान और राष्ट्रीय गौरव के आदर्शों को जीवित रखता है।

इंडियन नेवी में शामिल होगा ‘इक्षक’ युद्धपोत

भारतीय नौसेना 6 नवंबर 2025 को एस.वी.एल. इक्षक (SVL Ikshak) को नौसैनिक अड्डा कोच्चि (Naval Base Kochi) में औपचारिक रूप से शामिल करने जा रही है — जो भारत की समुद्री और हाइड्रोग्राफिक क्षमताओं में एक बड़ा कदम है। यह Survey Vessel (Large) वर्ग का तीसरा पोत है और दक्षिणी नौसैनिक कमान (Southern Naval Command) में आधारित होने वाला पहला सर्वे पोत होगा। इक्षक (Ikshak) भारत के बढ़ते समुद्री क्षेत्रीय जागरूकता (Maritime Domain Awareness) और स्वदेशी रक्षा उत्पादन (Indigenous Defence Production) पर दिए जा रहे बल का प्रतीक है।

निर्माण और स्वदेशी गौरव

इक्षक का निर्माण गार्डन रीच शिपबिल्डर्स एंड इंजीनियर्स (GRSE), कोलकाता द्वारा किया गया है। इसमें 80% से अधिक स्वदेशी उपकरण और प्रणालियाँ प्रयुक्त की गई हैं, जो ‘आत्मनिर्भर भारत (Aatmanirbhar Bharat)’ की भावना को सशक्त रूप से दर्शाती हैं। इसका कमीशन होना भारत की रणनीतिक आत्मनिर्भरता (Strategic Self-Reliance) और समुद्री प्रौद्योगिकी उत्कृष्टता (Technological Excellence) की दिशा में एक निर्णायक उपलब्धि है।

रणनीतिक महत्त्व

हाइड्रोग्राफिक सर्वे पोत समुद्र की गहराइयों का नक्शा तैयार करने, सुरक्षित नौवहन सुनिश्चित करने और नौसैनिक व वाणिज्यिक गतिविधियों को समर्थन देने में अत्यंत महत्वपूर्ण होते हैं।
भारत की विशाल तटीय रेखा और बढ़ते समुद्री हितों को देखते हुए एक आधुनिक सर्वे बेड़े की आवश्यकता लंबे समय से महसूस की जा रही थी — इक्षक इसी कमी को पूरा करेगा।

यह पोत भारत की निम्न क्षमताओं को और मजबूत करेगा —

  • विस्तृत तटीय और गहरे समुद्री सर्वेक्षण करना

  • बंदरगाह विकास और नौवहन सुरक्षा में सहयोग देना

  • समुद्री सुरक्षा ढाँचा सुदृढ़ करना

  • आपदा राहत और पर्यावरण निगरानी में योगदान देना

डिज़ाइन, क्षमताएँ और भूमिका

इक्षक शब्द संस्कृत से लिया गया है, जिसका  हिंदी अर्थ ‘मार्गदर्शक’ या ‘गाइड’ होता है.यह नाम इसके उद्देश्य को पूरी तरह दर्शाता है। जहाज का काम समुद्र की गहराइयों, बंदरगाहों और तटीय इलाकों का सर्वे करना है, ताकि जहाजों के लिए सुरक्षित रास्ते तय किए जा सकें। इस सर्वे से मिलने वाला डाटा समुद्री सुरक्षा और नौवहन (navigation) को और मजबूत बनाएगा।

एक बहुउद्देश्यीय हाइड्रोग्राफिक पोत के रूप में इक्षाक में कई अत्याधुनिक तकनीकें शामिल हैं —

  • मल्टी-बीम इको साउंडर (Multi-Beam Echo Sounder) – समुद्र तल का विस्तृत मानचित्र तैयार करने हेतु

  • स्वायत्त जलमग्न वाहन (Autonomous Underwater Vehicle – AUV) – बिना चालक के डाटा संग्रह हेतु

  • रिमोटली ऑपरेटेड वाहन (ROV) – जलमग्न निरीक्षण के लिए

  • चार सर्वे मोटर बोट्स (SMBs) – उथले जल क्षेत्रों के सर्वेक्षण में सहायता हेतु

  • हेलीकॉप्टर डेक – विस्तारित रेंज और त्वरित तैनाती के लिए

इसकी द्वि-उपयोगी क्षमता (Dual-use capability) इसे मानवीय सहायता और आपदा राहत (HADR) अभियानों में भी प्रयोग योग्य बनाती है, जिससे भारतीय नौसेना की समुद्री तत्परता और प्रतिक्रिया क्षमता में उल्लेखनीय वृद्धि होगी।

स्वदेशी रक्षा शक्ति का प्रतीक

  • इक्षक भारतीय नौसेना और घरेलू रक्षा उद्योग (Domestic Defence Industry) के सहयोग का उत्कृष्ट उदाहरण है।

  • 80% से अधिक स्वदेशी प्रणालियों के साथ यह भारत की उन्नत नौसैनिक निर्माण क्षमता को प्रदर्शित करता है।

  • इसमें सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSMEs) की सक्रिय भागीदारी ने स्थानीय नवाचार और रोजगार को बढ़ावा दिया है।

बिहार के प्रशासनिक प्रभाग – प्रभाग, जिले और मुख्यालय

पूर्वी भारत में स्थित बिहार (Bihar) एक ऐसा राज्य है जो अपनी प्राचीन सभ्यता, समृद्ध परंपराओं और जीवंत संस्कृति के लिए प्रसिद्ध है। सुशासन और संतुलित विकास सुनिश्चित करने के लिए बिहार को प्रशासनिक प्रभागों (Administrative Divisions) और जिलों (Districts) में बाँटा गया है। ये प्रभाग न केवल प्रशासनिक सुगमता प्रदान करते हैं बल्कि राज्य की सांस्कृतिक और क्षेत्रीय विविधता को भी दर्शाते हैं।

बिहार की प्रशासनिक संरचना का अवलोकन

बिहार का प्रशासन इस तरह संगठित है कि सरकारी सेवाएँ राज्य के हर हिस्से तक पहुँच सकें।

सन् 2025 तक बिहार में हैं —

  • 9 प्रशासनिक प्रभाग (Administrative Divisions)

  • 38 जिले (Districts)

हर प्रभाग में कई जिले शामिल हैं, और प्रत्येक जिले को आगे छोटे इकाइयों में बाँटा गया है ताकि स्थानीय प्रशासन प्रभावी रूप से संचालित हो सके।

बिहार के प्रशासनिक स्तर

  1. राज्य स्तर (State Level) – सर्वोच्च शासन स्तर, जिसका संचालन राज्य सरकार करती है।

  2. प्रभाग (Division) – जिलों का समूह, जिसकी देखरेख प्रमंडलीय आयुक्त (Divisional Commissioner) करते हैं।

  3. जिला (District) – प्रमुख प्रशासनिक इकाई, जिसका नेतृत्व जिलाधिकारी (District Magistrate – DM) करते हैं।

  4. उप-विभाग (Sub-Division) – जिले के भीतर छोटे प्रशासनिक खंड।

  5. प्रखंड (Block) – ग्रामीण विकास कार्यक्रमों की मुख्य इकाई।

  6. पंचायत (Panchayat) – गाँव स्तर की सबसे छोटी स्वशासी संस्था।

यह बहु-स्तरीय ढांचा बेहतर समन्वय, सेवा वितरण और क्षेत्रीय विकास को सुनिश्चित करता है।

बिहार के प्रभाग और जिले

बिहार में सुचारू शासन और विकास के लिए कुल 9 प्रशासनिक प्रभाग और 38 जिले हैं।
प्रत्येक प्रभाग के अंतर्गत आने वाले जिले अपनी अलग सांस्कृतिक और ऐतिहासिक पहचान रखते हैं।

  • पटना (Patna) – राज्य की राजधानी और सबसे बड़ा शहर।

  • गया (Gaya) – बौद्ध और हिन्दू तीर्थस्थल।

  • भागलपुर (Bhagalpur) – रेशम उद्योग के लिए प्रसिद्ध।

  • दरभंगा (Darbhanga) – मिथिला संस्कृति का केंद्र।

सबसे बड़ा और सबसे छोटा जिला

  • सबसे बड़ा जिला (क्षेत्रफल के आधार पर): पश्चिम चंपारण (West Champaran)5,229 वर्ग किमी

  • सबसे छोटा जिला (क्षेत्रफल के आधार पर): शिवहर (Sheohar)443 वर्ग किमी

हालाँकि शिवहर आकार में छोटा है, फिर भी यह कृषि और स्थानीय व्यापार में अहम भूमिका निभाता है।

आर्थिक और सांस्कृतिक महत्त्व

बिहार के प्रत्येक प्रभाग का राज्य की अर्थव्यवस्था और संस्कृति में अपना विशिष्ट योगदान है —

  • कृषि: बिहार देश के प्रमुख धान, गेहूँ और मक्का उत्पादक राज्यों में से एक है।

  • हस्तशिल्प और बुनाई: भागलपुर अपने रेशम (silk) के लिए और मधुबनी अपनी चित्रकला (Madhubani painting) के लिए प्रसिद्ध है।

  • पर्यटन: गया, राजगीर, वैशाली और नालंदा जैसे स्थल धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व रखते हैं।

  • त्योहार: छठ पूजा, सोनपुर मेला और बिहार दिवस राज्य की सांस्कृतिक एकता को उजागर करते हैं।

विकास और आधुनिकता की दिशा

बिहार में विशेष आर्थिक क्षेत्र (Special Economic Zones – SEZs), औद्योगिक गलियारों (industrial corridors) और सड़क व शिक्षा बुनियादी ढाँचे के विकास के साथ राज्य तेजी से आर्थिक आधुनिकीकरण की ओर बढ़ रहा है —
लेकिन साथ ही, यह अपनी परंपराओं और सांस्कृतिक विरासत को भी जीवंत बनाए हुए है।

संक्षेप में:
बिहार एक ऐसा राज्य है जहाँ इतिहास और आधुनिकता, संस्कृति और विकास एक साथ आगे बढ़ रहे हैं — यह भारत की सभ्यता की जड़ और नए भारत की प्रगति का प्रतीक दोनों है।

गूगल अंतरिक्ष में बनाएगी AI डाटा सेंटर, जानिए सबकुछ

विज्ञान-कथा जैसी लगने वाली परंतु अत्याधुनिक नवाचार से जुड़ी एक ऐतिहासिक पहल में, गूगल (Google) ने “प्रोजेक्ट सनकैचर (Project Suncatcher)” की घोषणा की है — एक महत्वाकांक्षी शोध परियोजना, जिसका उद्देश्य अंतरिक्ष में एआई डेटा सेंटर (AI Data Centres) स्थापित करना है।

इस परियोजना के तहत, सौर ऊर्जा (solar-powered) से संचालित उपग्रहों पर उच्च-प्रदर्शन एआई हार्डवेयर जैसे TPUs (Tensor Processing Units) लगाए जाएंगे, जो पृथ्वी की कक्षा में घूमते हुए डेटा प्रोसेसिंग करेंगे।
इसका लक्ष्य है — ऊर्जा और स्थिरता की सीमाओं को पार करना, जिनसे पृथ्वी-आधारित डेटा सेंटर वर्तमान में जूझ रहे हैं, विशेषकर एआई की बढ़ती ऊर्जा मांगों के बीच।

क्यों ज़रूरी हैं अंतरिक्ष-आधारित एआई डेटा सेंटर?

आधुनिक एआई डेटा सेंटर अत्यधिक ऊर्जा और पानी की खपत करते हैं, विशेषकर सर्वर कूलिंग के लिए।
अंतरिक्ष में इन्हें स्थापित करने से कई फायदे मिल सकते हैं —

  • सौर ऊर्जा की लगातार और निर्बाध उपलब्धता

  • कूलिंग के लिए पानी की आवश्यकता नहीं

  • कम कार्बन उत्सर्जन के साथ अधिक कंप्यूटिंग दक्षता

  • पृथ्वी के सीमित संसाधनों पर दबाव घटाना

गूगल के अनुसार, अंतरिक्ष में लगे सोलर पैनल पृथ्वी की तुलना में आठ गुना अधिक कुशल हो सकते हैं, जिससे लगभग निरंतर ऊर्जा आपूर्ति संभव है — यह भविष्य के डेटा-प्रधान युग के लिए एक सतत (sustainable) समाधान है।

प्रोजेक्ट सनकैचर: कैसे करेगा काम

गूगल इस परियोजना के तहत कई उपग्रहों का एक नक्षत्र (constellation) तैयार करेगा, जिनमें निम्नलिखित सुविधाएँ होंगी —

  • TPUs (Trillium v6e चिप्स) – उच्च प्रदर्शन वाले एआई प्रोसेसर

  • सौर पैनल – निरंतर ऊर्जा आपूर्ति के लिए

  • फ्री-स्पेस ऑप्टिकल कम्युनिकेशन सिस्टम – प्रति सेकंड दसों टेराबिट की डेटा गति

ये उपग्रह मिलकर एक वितरित कंप्यूटिंग नेटवर्क (distributed computing network) बनाएंगे — बिल्कुल वैसे ही जैसे SpaceX का Starlink, लेकिन यह विशेष रूप से एआई डेटा प्रोसेसिंग के लिए अनुकूलित होगा।
सभी उपग्रह उच्च गति के ऑप्टिकल लिंक के माध्यम से जुड़े होंगे और करीबी कक्षा (tight orbital formation) में, लगभग एक किलोमीटर से कम दूरी पर संचालित होंगे।

तकनीकी चुनौतियाँ और अवरोध

हालाँकि यह विचार क्रांतिकारी है, लेकिन इसके सामने कई बड़ी इंजीनियरिंग चुनौतियाँ हैं —

  1. उच्च गति उपग्रह संचार (High-Speed Communication):
    कक्षा में उपग्रहों के बीच मल्टी-टेराबिट वायरलेस संचार बनाए रखना अत्यंत जटिल है।
    शुरुआती परीक्षणों में 1.6 Tbps द्विदिश गति प्राप्त हुई है, लेकिन कक्षा में स्थिरता सिद्ध नहीं हुई है।

  2. उपग्रह निकटता और स्थिति नियंत्रण (Station-Keeping):
    उपग्रहों को सैकड़ों मीटर की सटीक दूरी बनाए रखनी होगी,
    जिसके लिए अत्याधुनिक नियंत्रण तकनीक आवश्यक है ताकि टकराव या ड्रीफ्ट से बचा जा सके।

  3. विकिरण सहनशीलता (Radiation Resistance):
    गूगल के TPUs को 67 MeV प्रोटॉन बीम से परीक्षण किया गया, जिसमें 15 krad(Si) तक कोई गंभीर खराबी नहीं मिली।
    लेकिन दीर्घकालिक अंतरिक्ष विकिरण प्रभाव अब भी चिंता का विषय है।

  4. हार्डवेयर अनुकूलन (Hardware Adaptation):
    पृथ्वी पर उपयोग होने वाला अधिकांश एआई हार्डवेयर रिक्ति (vacuum), अत्यधिक तापमान, और कॉस्मिक रेडिएशन के लिए तैयार नहीं होता।
    इसलिए इसे अंतरिक्ष उपयोग के लिए पुनः डिज़ाइन करना होगा।

  5. लागत और प्रक्षेपण (Cost & Launch):
    उपग्रह प्रक्षेपण अभी भी महँगा है, लेकिन गूगल को उम्मीद है कि 2030 तक लागत $200/kg तक घट जाएगी।
    पहला प्रोटोटाइप सेटेलाइट 2027 की शुरुआत तक लॉन्च किया जा सकता है।

रणनीतिक महत्व

  1. विस्तार क्षमता (Scalability):
    अंतरिक्ष डेटा सेंटर पृथ्वी की सीमित भूमि और संसाधनों की बाधाओं को दूर कर सकते हैं।

  2. सततता (Sustainability):
    यह एआई की बढ़ती ऊर्जा मांगों को कम उत्सर्जन के साथ पूरा करने का मार्ग प्रदान करता है।

  3. तकनीकी प्रतिस्पर्धा (Geopolitical Tech Race):
    यह गूगल को अंतरिक्ष-आधारित डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर की दौड़ में प्रमुख स्थान देता है।

  4. आपदा स्थायित्व (Disaster Resilience):
    यदि पृथ्वी पर नेटवर्क ढाँचा विफल हो जाए, तो कक्षीय नेटवर्क (orbital networks) बैकअप के रूप में काम कर सकते हैं।

भारतीय मूल के हाशमी वर्जीनिया के लेफ्टिनेंट गवर्नर चुने गए

भारतीय प्रवासी समुदाय और अमेरिकी राजनीति — दोनों के लिए एक ऐतिहासिक क्षण में, भारतीय मूल की डेमोक्रेट नेता ग़ज़ाला हाशमी (Ghazala Hashmi) को वर्जीनिया की उपराज्यपाल (Lieutenant Governor of Virginia) चुना गया है। वह इस पद को संभालने वाली पहली मुस्लिम और पहली दक्षिण एशियाई-अमेरिकी (South Asian American) महिला बन गई हैं।

61 वर्षीय हाशमी ने निर्णायक जीत दर्ज की — उन्होंने 14,65,634 वोट (54.2%) हासिल किए, जबकि रिपब्लिकन प्रतिद्वंद्वी जॉन रीड (John Reid) को 12,32,242 वोट मिले।

पृष्ठभूमि और प्रारंभिक जीवन

  • ग़ज़ाला हाशमी का जन्म भारत में हुआ और बचपन अमेरिका के जॉर्जिया राज्य में बीता, जहाँ उनके पिता अंतरराष्ट्रीय संबंधों (International Relations) में PhD कर रहे थे।

  • उन्होंने शिक्षा में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया —

    • जॉर्जिया सदर्न यूनिवर्सिटी से स्नातक (BA),

    • और एमोरी यूनिवर्सिटी (Emory University) से अमेरिकन लिटरेचर में PhD प्राप्त की।

  • 1991 में वह वर्जीनिया में बस गईं और लगभग तीन दशकों तक शिक्षण कार्य से जुड़ी रहीं —

    • यूनिवर्सिटी ऑफ रिचमंड और रेनॉल्ड्स कम्युनिटी कॉलेज में अध्यापन किया।

  • उन्होंने सेंटर फॉर एक्सीलेंस इन टीचिंग एंड लर्निंग (CETL) की स्थापना की, जो शिक्षा के क्षेत्र में उनके समर्पण को दर्शाता है।

राजनीतिक सफर की प्रमुख उपलब्धियाँ

  • 2019: वर्जीनिया स्टेट सीनेट (Virginia State Senate) के लिए चुनी गईं, और एक लंबे समय से रिपब्लिकन के कब्जे वाली सीट को पलटकर डेमोक्रेटिक बहुमत लाने में अहम भूमिका निभाई।

  • 2024: सीनेट एजुकेशन एंड हेल्थ कमिटी (Senate Education & Health Committee) की अध्यक्ष नियुक्त हुईं — यह उनकी नीति-निर्माण क्षमता और नेतृत्व का प्रतीक था।

  • 2025: वर्जीनिया की उपराज्यपाल चुनी गईं —
    एक मुस्लिम, प्रवासी, महिला और दक्षिण एशियाई-अमेरिकी के रूप में उन्होंने कई ऐतिहासिक बाधाएँ तोड़ीं।

उनकी सफलता भारतीय-अमेरिकी समुदाय की बढ़ती राजनीतिक भागीदारी और अमेरिकी लोकतंत्र में विविध प्रतिनिधित्व (diverse representation) के नए युग को दर्शाती है।

चुनाव 2025: एक ऐतिहासिक जीत

ग़ज़ाला हाशमी का चुनाव अभियान प्रगतिशील (progressive) मुद्दों पर केंद्रित था, जैसे —

  • सार्वजनिक शिक्षा और शिक्षकों का समर्थन

  • सस्ती स्वास्थ्य सेवाएँ और महिलाओं के प्रजनन अधिकार (reproductive rights)

  • बंदूक हिंसा की रोकथाम (gun violence prevention)

  • मताधिकार और लोकतंत्र की रक्षा (voting rights & democracy protection)

  • पर्यावरण न्याय (environmental justice) और आवास समानता (housing equity)

79% वोटों की गिनती तक, हाशमी ने पूरे चुनाव में सुविधाजनक बढ़त बनाए रखी।
यह चुनाव वर्जीनिया के सबसे चर्चित राज्यव्यापी मुकाबलों में से एक था, जिसने अमेरिका में प्रतिनिधित्व, अधिकारों और सुधारों पर व्यापक राष्ट्रीय विमर्श को भी प्रोत्साहित किया।

युद्ध और सशस्त्र संघर्ष में पर्यावरण के शोषण को रोकने के लिए अंतर्राष्ट्रीय दिवस 2025

हर वर्ष 6 नवंबर को विश्वभर में “युद्ध और सशस्त्र संघर्षों में पर्यावरण के शोषण की रोकथाम हेतु अंतरराष्ट्रीय दिवस” (International Day for Preventing the Exploitation of the Environment in War and Armed Conflict) मनाया जाता है। यह संयुक्त राष्ट्र द्वारा घोषित दिवस है, जो यह याद दिलाता है कि युद्ध न केवल मानव जीवन को बल्कि पर्यावरण को भी गहराई से प्रभावित करता है।

संघर्षों के दौरान पर्यावरण अक्सर “मौन पीड़ित” बन जाता है — नष्ट, प्रदूषित और कई बार अपूरणीय क्षति झेलता हुआ। यह दिवस संदेश देता है कि शांति और स्थिरता तभी संभव है जब पर्यावरण संरक्षण को भी प्राथमिकता दी जाए, चाहे परिस्थितियाँ युद्ध की ही क्यों न हों।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

  • 5 नवंबर 2001 को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने प्रस्ताव A/RES/56/4 पारित कर 6 नवंबर को आधिकारिक रूप से इस दिवस के रूप में घोषित किया।

  • यह पहल इसलिए शुरू की गई क्योंकि युद्धों के दौरान होने वाले पर्यावरणीय नुकसान को अक्सर नज़रअंदाज़ किया जाता था

  • बाद में, 27 मई 2016 को संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण सभा (UNEA) ने प्रस्ताव UNEP/EA.2/Res.15 को अपनाया, जिसने इस प्रतिबद्धता को और मजबूत किया।

  • इसने यह मान्यता दी कि स्वस्थ पारिस्थितिकी तंत्र और सतत संसाधन प्रबंधन संघर्षों की रोकथाम और युद्धोत्तर पुनर्निर्माण में अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।

  • इसने साथ ही संयुक्त राष्ट्र के 2030 सतत विकास एजेंडा (Agenda 2030) के प्रति प्रतिबद्धता को भी दोहराया।

युद्ध के दौरान पर्यावरण: एक “मौन हानि”

युद्ध केवल मानव और आर्थिक क्षति नहीं पहुँचाता, बल्कि —

  • पारिस्थितिकी तंत्र और वन्यजीव आवासों का विनाश करता है।

  • विस्फोटक पदार्थों और रासायनिक हथियारों से हवा, पानी और मिट्टी को प्रदूषित करता है।

  • विस्थापन और सैन्य अभियानों के कारण वनों की कटाई और भूमि का क्षरण बढ़ाता है।

  • जलस्रोतों को दूषित कर देता है, जिससे युद्ध समाप्त होने के बाद भी नागरिकों का स्वास्थ्य प्रभावित रहता है।

पर्यावरण संरक्षण के माध्यम से शांति

प्राकृतिक संसाधन — जैसे जल, खनिज, वन — अक्सर संघर्षों की जड़ में होते हैं।
यदि इनका न्यायसंगत और सतत प्रबंधन किया जाए, तो यह —

  • संसाधनों पर होने वाले विवादों को रोक सकता है,

  • संवाद और सहयोग को प्रोत्साहित कर सकता है,

  • और युद्धोत्तर पुनर्निर्माण और स्थिरता को समर्थन दे सकता है।

सतत विकास लक्ष्य (SDGs) से संबंध

यह दिवस निम्नलिखित सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) से गहराई से जुड़ा है —

  • SDG 16: शांति, न्याय और सशक्त संस्थान

  • SDG 13: जलवायु कार्रवाई

  • SDG 15: स्थलीय जीवन (Life on Land)

  • SDG 6: स्वच्छ जल और स्वच्छता

युद्ध के समय पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा करना सिर्फ संरक्षण का मुद्दा नहीं है —
यह मानव अस्तित्व, अधिकार और गरिमा का भी प्रश्न है।

वैश्विक कार्रवाई का आह्वान

यह दिवस विश्व समुदाय से आह्वान करता है कि —

  • सरकारें, गैर-सरकारी संगठन (NGOs), शैक्षणिक संस्थान और नागरिक

    • सर्वोत्तम प्रथाओं (best practices) को साझा करें,

    • पर्यावरणीय क्षति का दस्तावेजीकरण और मूल्यांकन करें,

    • अंतरराष्ट्रीय कानूनों और जवाबदेही को सख्ती से लागू करें,

    • और पर्यावरणीय शांति निर्माण (environmental peacebuilding) में निवेश करें।

IndQA: ओपनएआई का पहला सांस्कृतिक बेंचमार्क भारतीय भाषाओं के साथ शुरू हुआ

OpenAI ने आधिकारिक रूप से IndQA (इंडक्यूए) नामक एक नया बहुभाषी और संस्कृति-संवेदनशील बेंचमार्क लॉन्च किया है, जो यह मूल्यांकन करने के लिए बनाया गया है कि एआई मॉडल भारतीय भाषाओं और सांस्कृतिक संदर्भों में आधारित प्रश्नों को कितनी प्रभावी ढंग से समझ और विश्लेषण कर सकते हैं।

यह पहल 4 नवंबर 2025 को जारी की गई और यह OpenAI का पहला क्षेत्र-विशिष्ट (region-specific) बेंचमार्क है। इसका उद्देश्य भारत की भाषाई विविधता, सांस्कृतिक सूक्ष्मताओं और संदर्भगत समझ को मापना है। भारत, ChatGPT के लिए OpenAI का दूसरा सबसे बड़ा उपयोगकर्ता बाजार है।

IndQA क्या है?

IndQA का पूरा नाम Indian Question-Answering Benchmark है।
इसमें फिलहाल 2,278 प्रश्न शामिल हैं, जो 11 भारतीय भाषाओं में तैयार किए गए हैं —

हिन्दी, हिंग्लिश, गुजराती, पंजाबी, कन्नड़, उड़िया, मराठी, मलयालम, तमिल, बंगाली और तेलुगु।

यह बेंचमार्क 10 सांस्कृतिक क्षेत्रों (domains) को कवर करता है —

  1. कानून और नैतिकता

  2. वास्तुकला और डिजाइन

  3. भोजन और पाक-परंपरा

  4. दैनिक जीवन

  5. धर्म और आध्यात्मिकता

  6. खेल और मनोरंजन

  7. साहित्य और भाषाविज्ञान

  8. मीडिया और मनोरंजन

  9. कला और संस्कृति

  10. इतिहास

IndQA का विकास 261 विशेषज्ञों — जिनमें विद्वान, पत्रकार, भाषाविद, कलाकार और विषय-विशेषज्ञ शामिल थे — की सहभागिता से किया गया है।

IndQA कैसे काम करता है?

IndQA का मूल्यांकन एक रूब्रिक-आधारित (rubric-based) ग्रेडिंग सिस्टम पर आधारित है।

  • प्रत्येक प्रश्न के लिए विशेषज्ञों द्वारा परिभाषित मानदंड तय किए गए हैं।

  • हर मानदंड को उसकी प्रासंगिकता और महत्व के अनुसार अंक (weighted points) दिए जाते हैं।

  • एक मॉडल-आधारित ग्रेडर एआई मॉडल के उत्तरों की तुलना इन मानदंडों से करता है और अंतिम स्कोर निर्धारित करता है।

सभी प्रश्नों का परीक्षण OpenAI के सबसे शक्तिशाली मॉडलों — GPT-4o, GPT-4.5, GPT-5 और OpenAI o3 — पर किया गया, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि बेंचमार्क adversarial robustness (चुनौतीपूर्ण प्रश्नों के प्रति मजबूती) रखता है।

बेंचमार्क प्रदर्शन: प्रमुख एआई मॉडलों की तुलना

मॉडल कुल प्रदर्शन (%)
GPT-5 (Thinking High) 34.9 (सर्वोच्च)
Gemini 2.5 Pro Thinking 34.3
Gemini 2.5 Flash Thinking 29.7
Grok 4 28.5
OpenAI o3 High 28.1
GPT-4o 20.3
GPT-4 Turbo 12.1

भाषा-वार प्रदर्शन

  • सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन: हिन्दी (45%) और हिंग्लिश (44%) में GPT-5 ने किया।

  • सबसे कम प्रदर्शन: बंगाली और तेलुगु, जो इन लिपियों में मौजूदा एआई मॉडलों की सीमाओं को दर्शाता है।

OpenAI ने स्पष्ट किया है कि IndQA कोई क्रॉस-लैंग्वेज लीडरबोर्ड नहीं है, क्योंकि हर भाषा के प्रश्न अलग हैं। बल्कि यह एक within-model benchmark है, जिसका उपयोग समय के साथ एक ही मॉडल की प्रगति मापने के लिए किया जाएगा।

महाराष्ट्र स्टारलिंक के साथ गठजोड़ करने वाला पहला भारतीय राज्य बना

डिजिटल समावेशन की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए महाराष्ट्र एलन मस्क की सैटेलाइट इंटरनेट कंपनी Starlink (स्टारलिंक) के साथ औपचारिक समझौता करने वाला भारत का पहला राज्य बन गया है। राज्य सरकार ने Starlink Satellite Communications Pvt. Ltd. के साथ एक Letter of Intent (LoI) पर हस्ताक्षर किए हैं, जिसके तहत महाराष्ट्र के सबसे दूरस्थ और पिछड़े क्षेत्रों में सैटेलाइट-आधारित इंटरनेट सेवाएं शुरू की जाएंगी।

साझेदारी का दायरा

महाराष्ट्र-स्टारलिंक समझौते का उद्देश्य उच्च गति और कम विलंबता (low-latency) वाली सैटेलाइट इंटरनेट सेवाएं निम्नलिखित क्षेत्रों तक पहुँचाना है —

  • सरकारी संस्थान

  • सार्वजनिक अवसंरचना (public infrastructure)

  • ग्रामीण और आदिवासी समुदाय

  • आकांक्षी जिले (Aspirational Districts)

लक्ष्यित जिले हैं —
गढ़चिरोली, नंदुरबार, Washim (वाशीम), और धाराशिव।
इन क्षेत्रों में कठिन भौगोलिक परिस्थितियों और सीमित अवसंरचना के कारण पारंपरिक इंटरनेट कनेक्टिविटी अक्सर बाधित रहती है। Starlink की Low-Earth Orbit (LEO) सैटेलाइट तकनीक इससे निपटने के लिए एक प्रभावी समाधान प्रदान करती है।

रणनीतिक महत्व

1. डिजिटल महाराष्ट्र मिशन को बल

  • यह साझेदारी “Digital Maharashtra Mission” का हिस्सा है, जिसका उद्देश्य राज्य के हर नागरिक को डिजिटल रूप से सशक्त बनाना है।

  • स्टारलिंक की सैटेलाइट ब्रॉडबैंड सेवा ग्रामीण ई-गवर्नेंस, टेलीमेडिसिन, स्मार्ट कृषि और ऑनलाइन शिक्षा जैसे क्षेत्रों में मौजूदा प्रयासों को और मजबूत करेगी।

2. आपदा एवं आपातकालीन तैयारी

  • विश्वसनीय सैटेलाइट कनेक्टिविटी महाराष्ट्र की आपदा प्रबंधन प्रणाली को सशक्त बनाएगी, खासकर बाढ़-प्रवण और दूरस्थ इलाकों में जहां परंपरागत संचार प्रणाली विफल हो जाती है।

3. राज्य की प्रमुख परियोजनाओं में एकीकरण

Starlink सेवाएं निम्नलिखित प्रमुख कार्यक्रमों को भी समर्थन देंगी —

  • ईवी मोबिलिटी (EV Mobility) अवसंरचना

  • तटीय लचीलापन और ब्लू इकोनॉमी (Coastal resilience & Blue Economy)

  • स्मार्ट गांव एवं सीमा क्षेत्र विकास परियोजनाएं

स्टारलिंक के बारे में

  • SpaceX द्वारा संचालित, Starlink वर्तमान में दुनिया का सबसे बड़ा संचार सैटेलाइट समूह (constellation) संचालित करता है।

  • यह LEO सैटेलाइट्स के माध्यम से ब्रॉडबैंड इंटरनेट प्रदान करता है, जो कठिन भौगोलिक इलाकों में भी काम करता है।

  • 2025 तक, Starlink 70 से अधिक देशों में सक्रिय है, और अब भारत इसका नया विस्तार केंद्र बनने जा रहा है।

यह समझौता न केवल महाराष्ट्र के डिजिटल परिवर्तन में नई गति लाएगा, बल्कि भारत को सैटेलाइट इंटरनेट क्रांति के अग्रणी देशों में भी शामिल करेगा।

केंद्र ने सुरक्षित, नैतिक तकनीकी नवाचार के लिए एआई गवर्नेंस फ्रेमवर्क का अनावरण किया

भारत जल्द ही अपने सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम (Information Technology Act, 2000) में संशोधन करने जा रहा है ताकि कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) प्रणालियों को औपचारिक रूप से परिभाषित किया जा सके। इसके साथ ही सरकार AI जोखिम मूल्यांकन ढाँचा (AI Risk Assessment Framework) और राष्ट्रीय AI घटनाक्रम डेटाबेस (National AI Incident Database) तैयार कर रही है। ये सभी पहलें भारत की नई “AI शासन दिशानिर्देशों (AI Governance Guidelines)” का हिस्सा हैं, जो अगले वर्ष फरवरी में होने वाले IndiaAI Impact Summit 2025 से पहले देश की राष्ट्रीय AI दृष्टि (National AI Vision) की नींव रखती हैं।

AI के लिए IT अधिनियम में संशोधन क्यों ज़रूरी है?

भारत का मौजूदा IT Act, 2000 उस समय बनाया गया था जब AI तकनीक अस्तित्व में नहीं थी। यह अधिनियम “इंटरमीडियरी” (मध्यस्थ) शब्द को बहुत व्यापक रूप में परिभाषित करता है — जिसमें टेलीकॉम सेवा प्रदाता, सर्च इंजन और साइबर कैफे जैसे संस्थान शामिल हैं।
लेकिन आज की AI प्रणालियाँ अपने आप डेटा उत्पन्न या संशोधित कर सकती हैं, इसलिए इन्हें पारंपरिक डिजिटल कानूनों के तहत समायोजित करना मुश्किल है।

👉 नए संशोधन का उद्देश्य है —

  • AI डेवलपर्स, प्लेटफॉर्म मालिकों और उपयोगकर्ताओं की जवाबदेही स्पष्ट करना,

  • और यह निर्धारित करना कि यदि कोई AI प्रणाली नुकसान पहुँचाती है तो कानूनी जिम्मेदारी किसकी होगी

इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY) के सचिव एस. कृष्णन ने कहा है कि सरकार डिजिटल कानूनों को मज़बूत बनाने के उपायों पर काम कर रही है और आवश्यकता पड़ने पर संशोधन लाएगी।

AI शासन दिशानिर्देशों की प्रमुख विशेषताएँ

नवीन दिशानिर्देशों में कई बड़े सुधार प्रस्तावित किए गए हैं:

  1. एआई जोखिम मूल्यांकन ढांचा

    • भारत-केंद्रित मॉडल जो वास्तविक सामाजिक हानि, संवेदनशील समूहों और महत्वपूर्ण अनुप्रयोगों पर ध्यान देगा।

  2. राष्ट्रीय एआई घटना डेटाबेस

    • एक राष्ट्रीय केंद्रीय प्रणाली, जो देशभर में होने वाली AI-संबंधी घटनाओं को दर्ज और विश्लेषित करेगी।

    • इससे नीति निर्माण, सुरक्षा और निगरानी में मदद मिलेगी।

  3. एआई गवर्नेंस समूह

    • एक अंतर-मंत्रालयी निकाय, जो सभी सरकारी एजेंसियों के बीच नीति समन्वय सुनिश्चित करेगा।

  4. एआई सुरक्षा संस्थान

    • हाल ही में स्थापित संस्थान जो भारत में सुरक्षित और भरोसेमंद AI उपयोग को बढ़ावा देगा।

दस्तावेज़ नियामक सैंडबॉक्स को भी प्रोत्साहित करता है – नियंत्रित परीक्षण वातावरण जो सीमित कानूनी प्रतिरक्षा के तहत नवीन एआई समाधानों को विकसित करने की अनुमति देते हैं। इसके अतिरिक्त, एआई का उपयोग करने वाले संगठनों से शिकायत अपीलीय समिति प्रक्रिया के तहत सुलभ शिकायत निवारण तंत्र प्रदान करने की अपेक्षा की जाएगी।

डीपफेक्स और कॉपीराइट पर भारत का रुख

डीपफेक्स के बढ़ते खतरे को देखते हुए, MeitY ने IT नियमों में संशोधन का प्रस्ताव दिया है:

  • उपयोगकर्ताओं को यह घोषित करना होगा कि उनकी सामग्री AI द्वारा निर्मित या संशोधित है।

  • सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को तकनीकी सत्यापन उपाय अपनाने होंगे।

कॉपीराइट कानूनों को भी अपडेट करने की सिफारिश की गई है ताकि AI मॉडल प्रशिक्षण में उपयोग किए जाने वाले डेटा का कानूनी और नैतिक उपयोग सुनिश्चित हो सके।
इसके अलावा, यह भी सुझाव दिया गया है कि डिजिटल प्लेटफॉर्म की नई श्रेणियाँ (AI-driven classifications) बनाई जाएँ ताकि AI कार्यक्षमता को समायोजित किया जा सके।

वैश्विक स्तर पर भारत की स्थिति

भारत के इन दिशानिर्देशों को तैयार करने से पहले अमेरिका, यूरोपीय संघ और चीन की नीतियों का अध्ययन किया गया।
सरकार चाहती है कि यह ढाँचा ग्लोबल साउथ (Global South) के लिए एक मॉडल फ्रेमवर्क बने, जहाँ कई देशों के पास AI नियमन के लिए संसाधन सीमित हैं।

  • उच्चस्तरीय सलाहकार समूह (Advisory Group) की अध्यक्षता 2023 में डॉ. अजय सूद (Principal Scientific Advisor) को सौंपी गई थी।

  • बाद में आईआईटी मद्रास के प्रोफेसर बालारमन रविंद्रन के नेतृत्व में एक उपसमिति ने दिशानिर्देशों का मसौदा तैयार किया।

  • इस प्रक्रिया में 2,500 से अधिक सुझाव सरकार, विश्वविद्यालयों, थिंक टैंक्स और उद्योग विशेषज्ञों से प्राप्त किए गए।

सरकार 2025 के IndiaAI Impact Summit में इस ढाँचे को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रस्तुत करने की योजना बना रही है।

भारत के AI भविष्य के लिए इसका क्या अर्थ है?

संक्षेप में, ये दिशानिर्देश भारत का पहला बड़ा प्रयास हैं जिसमें नवाचार (innovation) और जवाबदेही (accountability) के बीच संतुलन स्थापित किया गया है।

सरकार का उद्देश्य है कि —

  • कानूनी सुधार,

  • संस्थागत निगरानी, और

  • तकनीकी सुरक्षा उपायों के माध्यम से
    AI का विकास सुरक्षित, नैतिक और मानव-केंद्रित (human-centric) बनाया जाए।

यदि ये सिफारिशें कानून का रूप लेती हैं, तो भारत AI शासन (AI Governance) में विश्व का अग्रणी देश बन सकता है — विशेषकर उन उभरती अर्थव्यवस्थाओं के लिए जो AI की शक्ति का उपयोग करना चाहती हैं बिना सार्वजनिक विश्वास और सुरक्षा से समझौता किए।

ब्रिक्स, जी7 की तुलना में तेजी से क्यों बढ़ रहा है?

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के नवीनतम वर्ल्ड इकोनॉमिक आउटलुक अपडेट के अनुसार, विस्तारित ब्रिक्स (BRICS) समूह—जिसमें अब सऊदी अरब, मिस्र, यूएई, इथियोपिया, इंडोनेशिया और ईरान भी शामिल हैं—2025 में वैश्विक आर्थिक वृद्धि का प्रमुख इंजन बनने जा रहा है।

इन देशों में इथियोपिया 7.2% की अनुमानित दर के साथ सबसे आगे है, जबकि भारत 6.6% की वृद्धि दर के साथ दूसरा सबसे तेज़ उभरता हुआ अर्थतंत्र बना हुआ है। चीन और यूएई दोनों की अनुमानित वृद्धि दर 4.8% है। तेल आधारित अर्थव्यवस्थाएँ जैसे सऊदी अरब (4.0%) और मिस्र (4.3%) भी मजबूत रफ्तार बनाए हुए हैं।
वहीं, ब्राज़ील (2.4%), रूस (0.6%), और ईरान (0.6%) की वृद्धि दर अपेक्षाकृत कम रहने की संभावना है।

कुल मिलाकर, ब्रिक्स देशों की औसत जीडीपी वृद्धि दर 3.8% रहने का अनुमान है—जो G7 देशों (1.0%) की तुलना में लगभग चार गुना अधिक है। यह दर्शाता है कि उभरती अर्थव्यवस्थाएँ अब वैश्विक आर्थिक पुनरुद्धार की प्रमुख चालक बन रही हैं, जबकि विकसित देश मुद्रास्फीति, वृद्ध होती जनसंख्या और उत्पादकता की मंदी से जूझ रहे हैं।

G7 अर्थव्यवस्थाएँ क्यों पिछड़ रही हैं?

दूसरी ओर, G7 देशों—कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, यूके और अमेरिका—की औसत वृद्धि दर 2025 में केवल 1.0% रहने की संभावना है।

  • अमेरिका (2.0%) इस समूह में सबसे आगे है।

  • यूके (1.3%), कनाडा (1.2%), और जापान (1.1%) इसके बाद आते हैं।

  • यूरोज़ोन की प्रमुख अर्थव्यवस्थाएँ संघर्ष कर रही हैं — फ्रांस (0.7%), इटली (0.5%), और जर्मनी (0.2%) सबसे कमजोर प्रदर्शन करेंगे।

IMF की रिपोर्ट के अनुसार, कठोर मौद्रिक नीतियाँ, कम मांग, और भू-राजनीतिक तनाव इन देशों की विकास दर को सीमित कर रहे हैं। उच्च ब्याज दरें और सुस्त उपभोग के कारण अधिकांश विकसित अर्थव्यवस्थाओं में विस्तार सीमित रहेगा।

2025 के लिए जीडीपी वृद्धि पूर्वानुमान

ब्रिक्स देश

देश अनुमानित जीडीपी वृद्धि दर (%)
ब्राज़ील 2.4
रूस 0.6
भारत 6.6
चीन 4.8
दक्षिण अफ्रीका 1.1
सऊदी अरब 4.0
मिस्र 4.3
यूएई 4.8
इथियोपिया 7.2
इंडोनेशिया 4.9
ईरान 0.6
औसत (Average) 3.8

G7 देश

देश अनुमानित जीडीपी वृद्धि दर (%)
कनाडा 1.2
फ्रांस 0.7
जर्मनी 0.2
इटली 0.5
जापान 1.1
यूनाइटेड किंगडम 1.3
संयुक्त राज्य अमेरिका 2.0
औसत (Average) 1.0

(स्रोत: IMF World Economic Outlook, अक्टूबर 2025 अपडेट)

इसका वैश्विक अर्थव्यवस्था पर क्या प्रभाव होगा?

ब्रिक्स (3.8%) और G7 (1.0%) के बीच यह बड़ा अंतर वैश्विक आर्थिक शक्ति संतुलन में परिवर्तन को दर्शाता है।

  • उभरती अर्थव्यवस्थाएँ घरेलू बाजारों के विस्तार, डिजिटल नवाचार और औद्योगिक विविधीकरण के माध्यम से वृद्धि कर रही हैं।

  • इसके विपरीत, विकसित अर्थव्यवस्थाएँ जनसंख्या वृद्धावस्था, मुद्रास्फीति नियंत्रण, और कम उत्पादकता के कारण धीमी गति में हैं।

उदाहरण के तौर पर —

  • भारत (6.6%) दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्था बनी हुई है।

  • इथियोपिया (7.2%) सभी विकासशील देशों में शीर्ष पर है।

  • चीन (4.8%) की वृद्धि दर भले कम हो, लेकिन यह अब भी अधिकांश G7 देशों से कहीं अधिक है।

2025: वैश्विक अर्थव्यवस्था का पुनर्संतुलन

यदि ये अनुमान सही साबित होते हैं, तो 2025 वह वर्ष बन सकता है जब वैश्विक आर्थिक केंद्र एशिया और अफ्रीका की ओर शिफ्ट हो जाएगा।
ब्रिक्स देश, जो दुनिया की लगभग आधी जनसंख्या का प्रतिनिधित्व करते हैं, वैश्विक वृद्धि का सबसे बड़ा योगदान देंगे।
वहीं, G7 देश मुद्रास्फीति नियंत्रण और स्थिर रोजगार बनाए रखने पर ध्यान केंद्रित करेंगे।

IMF की रिपोर्ट का मुख्य संदेश स्पष्ट है —

“दुनिया की विकास गति अब पश्चिम नहीं, बल्कि पूर्व और दक्षिण की ओर झुक रही है।”

यह दशक संभवतः पारंपरिक आर्थिक शक्तियों का नहीं, बल्कि ब्रिक्स देशों का दशक होगा — जहाँ उपभोग, बुनियादी ढाँचा और प्रौद्योगिकी, परिवर्तन की नई धारा को आगे बढ़ा रहे हैं।

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