अगले पांच वर्षों में वैश्विक तापमान 1.5°C को पार कर जाने की संभावना

विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) ने जलवायु परिवर्तन को लेकर एक गंभीर चेतावनी जारी की है। हाल ही में जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, 2025 से 2029 के बीच वैश्विक तापमान के 1.5ºC की सीमा को पार करने की 70% संभावना है।

1.5ºC की सीमा क्या है?

पेरिस जलवायु समझौते (2015) में विश्व नेताओं ने यह तय किया था कि औद्योगिक क्रांति (1850-1900) से पहले के स्तर की तुलना में पृथ्वी के तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक न बढ़ने देने का प्रयास किया जाएगा।
अगर यह सीमा पार होती है तो इसके परिणाम होंगे:

  • भीषण गर्मी की लहरें

  • भयंकर बाढ़ और सूखा

  • समुद्र का बढ़ता जल स्तर

  • पृथ्वी के पारिस्थितिकी तंत्र को गहरा नुकसान

यह रिपोर्ट क्यों महत्वपूर्ण है?

WMO की रिपोर्ट “ग्लोबल एनुअल टू डिकेडल क्लाइमेट अपडेट (2025-2029)” के अनुसार:

  • 2025 से 2029 के बीच औसत वैश्विक तापमान 1.2ºC से 1.9ºC के बीच हो सकता है।

  • 2024 अब तक का सबसे गर्म वर्ष रहा, लेकिन 2025 से 2029 के बीच किसी एक साल के और गर्म होने की 80% संभावना है।

  • ये आँकड़े वर्तमान जलवायु प्रवृत्तियों पर आधारित हैं।

देशों की धीमी जलवायु कार्रवाई

  • संयुक्त राष्ट्र जलवायु समूह के 195 में से 180 देश अभी तक अपने नए जलवायु कार्ययोजनाएं (NDCs) 2031-2035 के लिए नहीं दे पाए हैं।

  • ये योजनाएं ग्रीनहाउस गैसों को कम करने और तापमान वृद्धि को नियंत्रित करने में मदद करती हैं।

  • COP30 नामक अगला बड़ा जलवायु सम्मेलन जल्द ही होने वाला है — सभी देशों से अपेक्षा है कि वे तेजी से कार्य करें।

संभावित भविष्य के प्रभाव

अगर पृथ्वी इसी तरह गर्म होती रही, तो:

  • हीटवेव, बाढ़ और सूखा और ज़्यादा गंभीर होंगे

  • बर्फ की चादरें और ग्लेशियर तेजी से पिघलेंगे

  • समुद्र का स्तर और तेजी से बढ़ेगा

  • समुद्रों का तापमान बढ़ेगा

  • भारत जैसे देशों में वायु प्रदूषण और खराब हो सकता है

  • यहां तक कि 2030 से पहले किसी एक वर्ष में तापमान 2ºC तक पहुँच सकता है (1% संभावना), जो बेहद गंभीर स्थिति होगी।

आर्कटिक और मानसून में बदलाव

  • आर्कटिक क्षेत्र बाकी दुनिया की तुलना में अधिक तेजी से गर्म हो रहा है

  • 2025-2029 के बीच सर्दियों में आर्कटिक का तापमान हाल की औसत तुलना में 2.4ºC ज्यादा हो सकता है, जिससे Barents Sea और Bering Sea में समुद्री बर्फ तेजी से पिघलेगी।

  • दक्षिण एशिया, जिसमें भारत भी शामिल है, में 2029 तक औसतन अधिक बारिश की संभावना जताई गई है।

  • हालांकि, हर मानसून का मौसम ऐसा नहीं हो सकता।

जलवायु निगरानी क्यों जरूरी है?

WMO की डिप्टी सेक्रेटरी जनरल को बैरेट (Ko Barrett) ने कहा कि: “यह रिपोर्ट किसी सकारात्मक संकेत को नहीं दर्शाती, और यह आर्थिक, प्राकृतिक और दैनिक जीवन पर भारी प्रभाव डाल सकती है।”

उन्होंने कहा कि:

  • जलवायु की लगातार निगरानी

  • सटीक मौसम भविष्यवाणी

  • और सूचित निर्णय लेने की क्षमता
    बहुत जरूरी है ताकि हम आने वाले खतरों से समय रहते निपट सकें।

निष्कर्ष:
जलवायु परिवर्तन अब भविष्य की नहीं, वर्तमान की गंभीर चुनौती है। इस रिपोर्ट को गंभीरता से लेना हम सभी की जिम्मेदारी है, ताकि आने वाली पीढ़ियों के लिए एक सुरक्षित और संतुलित पर्यावरण सुनिश्चित किया जा सके।

अहिल्याबाई होल्कर की 300वीं जयंती: 31 मई 2025

हर वर्ष 31 मई को अहिल्याबाई होलकर जयंती मनाई जाती है, जो भारत की महानतम महिला शासकों में से एक को श्रद्धांजलि देने का दिन है। वर्ष 2025 में यह दिन विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह उनकी 300वीं जयंती है। यह दिन पूरे देश में, विशेषकर मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में, गर्व और सम्मान के साथ मनाया जाएगा, जहाँ उन्हें उनके न्यायप्रिय शासन और जनकल्याण कार्यों के लिए अत्यंत आदर के साथ स्मरण किया जाता है।

अहिल्याबाई होलकर कौन थीं?

अहिल्याबाई होलकर का जन्म 31 मई 1725 को महाराष्ट्र के चोंडी गाँव में एक मराठी हिंदू परिवार में हुआ था। वे 18वीं शताब्दी में इंदौर की रानी बनीं, जब उनके ससुर मल्हारराव होलकर का निधन हो गया।

अपने पति खांडेराव होलकर, पुत्र मालेराव और ससुर के निधन के बाद भी उन्होंने साहस और विवेक से शासन संभाला। उनके देवर तुकोजीराव होलकर ने उन्हें सैन्य मामलों में सहयोग दिया।

अहिल्याबाई होलकर के कार्य और योगदान

अहिल्याबाई को जनहितकारी शासन, धार्मिक स्थलों के निर्माण और जनसेवा के लिए जाना जाता है। उनके कुछ प्रमुख कार्य:

  • काशी विश्वनाथ मंदिर, वाराणसी का पुनर्निर्माण

  • दशाश्वमेध घाट, बनारस का विकास

  • गौरी सोमनाथ मंदिर, चोला में निर्माण

  • इंदौर का व्यापक विकास: व्यापार, शिक्षा और आधारभूत सेवाओं को बढ़ावा दिया

अहिल्याबाई होलकर जयंती कैसे मनाई जाती है?

यह जयंती विशेष रूप से इंदौर, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में मनाई जाती है। इसमें आयोजित होते हैं:

  • सांस्कृतिक कार्यक्रम

  • जनसभाएँ व भाषण

  • श्रद्धांजलि समारोह

  • उनके न्याय, महिला सशक्तिकरण और सामाजिक सुधारों को याद किया जाता है।

उनके नाम पर सम्मान

  • 1996 में एक डाक टिकट जारी किया गया

  • इंदौर हवाई अड्डा का नाम: देवी अहिल्याबाई होलकर हवाई अड्डा

  • विश्वविद्यालय और संस्थान भी उनके नाम पर हैं

2025 में विशेष आयोजन – 300वीं जयंती

300वीं जयंती के अवसर पर: महाराष्ट्र सरकार ने ₹681 करोड़ की लागत से “पुण्यश्लोक अहिल्याबाई होलकर स्मारक स्थल” परियोजना की घोषणा की है। यह स्मारक स्थल उनकी विरासत और प्रेरणा को भावी पीढ़ियों तक पहुँचाने का माध्यम बनेगा।

अहिल्याबाई होलकर आज भी नारी शक्ति, न्याय और जनसेवा की प्रतीक हैं। उनकी जयंती केवल स्मरण का अवसर नहीं, बल्कि उनके आदर्शों को अपनाने की प्रेरणा भी है।

विश्व तंबाकू निषेध दिवस 2025: थीम, इतिहास और महत्व

विश्व तंबाकू निषेध दिवस हर साल 31 मई को मनाया जाता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के नेतृत्व में इस वैश्विक पहल का उद्देश्य तंबाकू के उपयोग के हानिकारक प्रभावों के बारे में जागरूकता बढ़ाना है। यह वैश्विक स्तर पर तंबाकू की खपत को कम करने के लिए व्यापक उपायों को भी बढ़ावा देता है। यह दिन व्यक्तियों, समुदायों और सरकारों को तंबाकू मुक्त दुनिया की दिशा में कदम उठाने के लिए भी प्रोत्साहित करता है।

विश्व तंबाकू निषेध दिवस 2025 की थीम है ‘उज्ज्वल उत्पाद. काले इरादे. अपील को उजागर करना’, जो आकर्षक स्वाद और पैकेजिंग में आने वाले तंबाकू उत्पादों के छिपे खतरों को सामने लाने पर केंद्रित है।

विश्व तंबाकू निषेध दिवस क्यों मनाया जाता है?

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा शुरू किया गया यह अभियान हर साल 31 मई को मनाया जाता है। इसका उद्देश्य है:

  • तंबाकू के उपयोग से होने वाले गंभीर स्वास्थ्य खतरों के बारे में जागरूकता फैलाना

  • लोगों को तंबाकू और धूम्रपान छोड़ने के लिए प्रेरित करना

  • सरकारों को तंबाकू नियंत्रण कानूनों को सख्ती से लागू करने के लिए सहयोग देना

  • युवाओं और कमजोर समुदायों को तंबाकू उद्योग की चालों से बचाना

WHO के अनुसार, हर साल 8 मिलियन (80 लाख) से अधिक लोग तंबाकू से जुड़ी बीमारियों से मर जाते हैं — यह दुनिया में रोकी जा सकने वाली मौतों का सबसे बड़ा कारण है।

विश्व तंबाकू निषेध दिवस 2025: तिथि और विषय

  • तारीख: 31 मई 2025

  • विषय: “’उज्ज्वल उत्पाद. काले इरादे. अपील को उजागर करना’
    यह विषय तंबाकू कंपनियों द्वारा अपनाई जा रही धोखाधड़ीपूर्ण मार्केटिंग रणनीतियों को उजागर करता है, जो विशेष रूप से युवाओं को लुभाने के लिए बनाए जाते हैं। यह नीति-निर्माताओं और आम जनता से कड़े नियम और पारदर्शिता की मांग करता है।

इतिहास

विश्व तंबाकू निषेध दिवस की शुरुआत 1987 में WHO द्वारा की गई थी। पहली बार इसे 1988 में आधिकारिक रूप से मनाया गया, जब लोगों को 24 घंटे तक तंबाकू से दूर रहने का आग्रह किया गया।

हर साल यह दिवस अलग-अलग विषयों पर ध्यान केंद्रित करता है, जैसे:

  • युवा और तंबाकू विज्ञापन

  • तंबाकू खेती का पर्यावरणीय प्रभाव

  • भ्रामक तंबाकू पैकेजिंग

  • सेकंड-हैंड धुएं का खतरा

वैश्विक तंबाकू संकट

तंबाकू के उपयोग से जुड़ी बीमारियाँ:

  • फेफड़ों का कैंसर

  • हृदय रोग

  • स्ट्रोक

  • श्वसन रोग

WHO का अनुमान है:

13 से 15 वर्ष के लगभग 3.7 करोड़ बच्चे दुनिया भर में किसी न किसी रूप में तंबाकू का सेवन कर रहे हैं। यह भावी पीढ़ी के स्वास्थ्य पर सीधा खतरा है।

इस दिवस का महत्व

  • जनस्वास्थ्य जागरूकता

  • नीति-निर्माण में समर्थन

  • युवाओं को शिक्षित करना

  • तंबाकू छोड़ने वालों को समर्थन देना

सरकार, नागरिक समाज, डॉक्टर और आम जनता मिलकर तंबाकू उद्योग के विरुद्ध एकजुट होते हैं। इस दिन पर कार्यशालाएं, सेमिनार, रैलियां, और सोशल मीडिया अभियानों का आयोजन होता है।

निकोटीन छोड़ने की कठिनाई और समाधान

निकोटीन एक तीव्र रूप से नशे की लत लगाने वाला पदार्थ है। तंबाकू छोड़ते समय व्यक्ति को:

  • चिड़चिड़ापन

  • बेचैनी

  • मानसिक असहजता

का सामना करना पड़ता है।

ऐसे प्राकृतिक आहार जो तंबाकू छोड़ने में सहायक हैं

1. हल्दी और अदरक – प्राकृतिक उपचारक

  • सूजन कम करें

  • फेफड़ों को शुद्ध करें

  • निकोटीन को शरीर से बाहर निकालने में मदद करें

2. मेवे और बीज – तनाव कम करें

  • सूरजमुखी के बीज, बादाम, अखरोट

  • मानसिक स्थिरता और शांति प्रदान करें

  • निकोटीन की लालसा को घटाएं

3. पानी और हर्बल चाय – विषहरण के सहायक

  • शरीर को हाइड्रेट रखें

  • विषैले तत्वों को बाहर निकालें

  • कैमोमाइल, पुदीना और अदरक की चाय से मन शांत करें

4. खट्टे फल – स्वाद में बाधा डालें

  • संतरा, नींबू, मौसंबी

  • सिगरेट का स्वाद खराब करें

  • शरीर में विटामिन C की पूर्ति करें और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाएं

5. मुलेठी – एक स्वस्थ विकल्प

  • चबाने से हाथ-मुंह की आदत पूरी होती है

  • गले को राहत देता है

  • मीठा स्वाद देता है, बिना नुकसान के

 

उल्लास के तहत गोवा पूर्ण साक्षर घोषित

गोवा के 39वें राज्यत्व दिवस के शुभ अवसर पर, मुख्यमंत्री डॉ. प्रमोद सावंत ने गोवा को ULLAS – नव भारत साक्षरता कार्यक्रम (Nav Bharat Saaksharta Karyakram) के अंतर्गत पूर्ण साक्षर राज्य घोषित किया। इस उपलब्धि के साथ गोवा, भारत का दूसरा राज्य बन गया है जिसने राष्ट्रीय रूप से निर्धारित 95% साक्षरता मानक को पार कर लिया है, और शिक्षा के क्षेत्र में अग्रणी राज्य के रूप में अपनी पहचान फिर से साबित की है।

राष्ट्रीय साक्षरता मानक को पार करने वाला राज्य

यह महत्वपूर्ण घोषणा पणजी स्थित दीनानाथ मंगेशकर कला मंदिर में आयोजित एक भव्य समारोह के दौरान की गई, जिसमें उपस्थित थे:

  • राज्य के मंत्रीगण

  • गोवा के मुख्य सचिव

  • श्रीमती अर्चना शर्मा अवस्थी, संयुक्त सचिव, स्कूली शिक्षा एवं साक्षरता विभाग, शिक्षा मंत्रालय

  • अन्य गणमान्य व्यक्ति और राज्य के नागरिक

पीरियॉडिक लेबर फोर्स सर्वे (PLFS) 2023-24 के अनुसार, गोवा की साक्षरता दर 93.60% थी, जो पहले ही देश में सर्वोच्च में से एक थी। लेकिन राज्य के आंतरिक सर्वेक्षण के अनुसार यह आंकड़ा पार कर पूर्ण साक्षरता हासिल कर ली गई है।

संपूर्ण सरकारी सहभागिता: सहयोग का आदर्श मॉडल

इस उल्लेखनीय सफलता के पीछे था Whole-of-Government Approach, जिसमें अनेक विभागों ने मिलकर कार्य किया, जैसे:

  • पंचायत निदेशालय

  • नगर प्रशासन निदेशालय

  • समाज कल्याण निदेशालय

  • योजना एवं सांख्यिकी निदेशालय

  • महिला एवं बाल विकास निदेशालय

इन विभागों ने अशिक्षित नागरिकों की पहचान कर उन्हें साक्षरता कार्यक्रमों से जोड़ने में अहम भूमिका निभाई।

सामुदायिक सहभागिता: ‘जन-जन साक्षर’ की भावना का उदाहरण

गोवा की साक्षरता यात्रा में समुदाय की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण रही:

  • स्वयंपूर्ण मित्रों ने जनजागरूकता अभियान चलाए, शिक्षार्थियों को प्रमाणपत्र दिलवाए, और उन्हें औपचारिक शिक्षा से जोड़ा।

  • समाज कल्याण विभाग के फील्ड वर्कर्स ने अशिक्षितों की पहचान और नामांकन में विशेष योगदान दिया।

यह स्वयंसेवी आधारित मॉडल, ULLAS योजना की जन-जन साक्षर भावना को जीवंत करता है और यह दर्शाता है कि जमीनी स्तर पर सहभागिता से कैसे स्थायी सफलता प्राप्त की जा सकती है।

गोवा की शिक्षा टीम को बधाई

इस उपलब्धि के पीछे था:

  • गोवा शिक्षा विभाग

  • राज्य शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (SCERT)

  • स्थानीय प्रशासन

  • स्कूल प्रमुख

  • हजारों स्वयंसेवक

इन सभी की प्रतिबद्धता इस बात को रेखांकित करती है कि जनकेंद्रित और समन्वित प्रयासों से राष्ट्रीय साक्षरता लक्ष्यों को पाया जा सकता है।

ULLAS – नव भारत साक्षरता कार्यक्रम

ULLAS योजना, जिसे 2022 में शिक्षा मंत्रालय द्वारा शुरू किया गया, भारत को 2030 तक पूर्ण साक्षर बनाने के उद्देश्य से चलाई जा रही केंद्रीय प्रायोजित योजना है। यह राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 के अनुरूप है।

इस योजना के 5 प्रमुख घटक हैं:

  1. मूलभूत साक्षरता और गणना कौशल

  2. जीवन उपयोगी महत्वपूर्ण कौशल

  3. मूलभूत शिक्षा

  4. व्यावसायिक कौशल

  5. निरंतर शिक्षा

यह कार्यक्रम मुख्य रूप से 15 वर्ष से अधिक उम्र के वयस्कों को लक्षित करता है, जिन्होंने औपचारिक शिक्षा प्राप्त नहीं की है।

ULLAS योजना का राष्ट्रीय प्रभाव

  • 2.40 करोड़ से अधिक शिक्षार्थी और 41 लाख स्वयंसेवी शिक्षक ULLAS मोबाइल ऐप पर पंजीकृत हैं।

  • 1.77 करोड़ से अधिक शिक्षार्थियों ने FLNAT (Foundational Literacy and Numeracy Assessment Test) में भाग लिया है।

गोवा की सफलता: सुशासन और जनभागीदारी का प्रकाश स्तंभ

गोवा की यह ऐतिहासिक उपलब्धि दर्शाती है कि यदि मजबूत प्रशासन, जनभागीदारी, और नवोन्मेषी क्रियान्वयन साथ आएं, तो कोई भी सामाजिक लक्ष्य असंभव नहीं है।

राष्ट्रपति मुर्मू ने 15 नर्सों को राष्ट्रीय फ्लोरेंस नाइटिंगेल पुरस्कार प्रदान किए

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने राष्ट्रपति भवन में आयोजित एक समारोह में 15 नर्सों को वर्ष 2025 के लिए राष्ट्रीय फ्लोरेंस नाइटिंगेल पुरस्कार प्रदान किए। राष्ट्रीय फ्लोरेंस नाइटिंगेल पुरस्कार की शुरूआत स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने उत्कृष्ट नर्सिंग कर्मियों द्वारा की गई सराहनीय सेवाओं को सम्मानित करने के लिए की थी।

भारत की स्वास्थ्य प्रणाली की रीढ़ को सम्मान

इस समारोह में केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री श्री जगत प्रकाश नड्डा, राज्य मंत्री श्री प्रतापराव जाधव और श्रीमती अनुप्रिया पटेल भी उपस्थित रहे। इन विशिष्ट अतिथियों की उपस्थिति सरकार की स्वास्थ्य कर्मियों के योगदान को मान्यता देने की प्रतिबद्धता को दर्शाती है।

राष्ट्रीय फ्लोरेंस नाइटिंगेल पुरस्कार के बारे में

स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा स्थापित यह पुरस्कार पंजीकृत नर्सों, दाइयों (मिडवाइव्स), सहायक नर्स-दाई (ANM) और लेडी हेल्थ विजिटर्स (LHV) को प्रदान किया जाता है, जो सार्वजनिक व स्वैच्छिक क्षेत्रों में सेवाएं दे रही हैं।

यह पुरस्कार उन पेशेवरों को सम्मानित करता है जिन्होंने रोगी देखभाल, सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा और सामुदायिक कल्याण में असाधारण समर्पण दिखाया है।

प्रत्येक पुरस्कार में शामिल हैं:

  • प्रशस्ति पत्र

  • ₹1,00,000 की नकद राशि

  • पदक, जो देश की कृतज्ञता का प्रतीक है

राष्ट्रीय फ्लोरेंस नाइटिंगेल पुरस्कार 2025 विजेता

इस वर्ष, देश के विभिन्न राज्यों और स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़ी 15 नर्सों को यह सम्मान मिला। इनका विविध सामाजिक और भौगोलिक पृष्ठभूमि भारत की स्वास्थ्य प्रणाली की व्यापकता को दर्शाता है।

श्रेणी नाम राज्य
ANM श्रीमती रेबा रानी सरकार अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह
ANM श्रीमती वलीवेति शुभावती आंध्र प्रदेश
ANM श्रीमती सरोज फकीरभाई पटेल दादरा नगर हवेली व दमन दीव
ANM श्रीमती रज़िया बेगम पी. बी. लक्षद्वीप
ANM श्रीमती सुजाता अशोक बगुल महाराष्ट्र
LHV श्रीमती बीना पाणी डेका असम
नर्स श्रीमती कीजुम सोरा कारगा अरुणाचल प्रदेश
नर्स सुश्री डिंपल अरोड़ा दिल्ली
नर्स मेजर जनरल शीना पी. डी. दिल्ली
नर्स डॉ. बानु एम. आर. कर्नाटक
नर्स श्रीमती लैमपोकपम रंजीता देवी मणिपुर
नर्स श्रीमती वी. लाल्हमांगईही मिजोरम
नर्स श्रीमती एल. एस. मणिमोझी पुडुचेरी
नर्स श्रीमती अलमेलु मंगयरकरासी के. तमिलनाडु
नर्स श्रीमती डोली बिस्वास पश्चिम बंगाल

प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत सरकार नर्सिंग और मिडवाइफरी क्षेत्र को मजबूत करने के लिए कई ठोस कदम उठा रही है।

प्रमुख पहलें:

  • राष्ट्रीय नर्सिंग एवं मिडवाइफरी आयोग अधिनियम – नर्सिंग शिक्षा के आधुनिकीकरण और नियमन के लिए ऐतिहासिक सुधार

  • 157 नर्सिंग कॉलेजों की स्थापना – ये कॉलेज मौजूदा मेडिकल कॉलेजों के साथ स्थापित किए जा रहे हैं ताकि भविष्य के लिए दक्ष नर्सिंग बल तैयार हो सके

यह नीतिगत सुधार नर्सों को न केवल सशक्त करते हैं बल्कि भारत की स्वास्थ्य व्यवस्था को अधिक समावेशी और सशक्त बनाने में सहायक हैं।

फ्लोरेंस नाइटिंगेल की प्रेरणा को समर्पित

यह पुरस्कार आधुनिक नर्सिंग की संस्थापक फ्लोरेंस नाइटिंगेल की सेवा भावना, संवेदनशीलता और साहस को समर्पित हैं। 2025 के विजेता इन मूल्यों को जीवन के कठिन हालातों में भी जीवंत बनाए रखते हैं।

इनका सम्मान सिर्फ प्रतीकात्मक नहीं, बल्कि समाज से यह आह्वान है कि वह इस महत्वपूर्ण और समर्पित पेशे को उचित सम्मान और सहयोग दे। भारत की हर नर्स को सलाम, जो निस्वार्थ सेवा के माध्यम से देश का स्वास्थ्य संभाल रही है।

वरिष्ठ तमिल अभिनेता राजेश का 75 वर्ष की आयु में निधन

चेन्नई, 29 मई 2025 – तमिल फिल्मों के जाने-माने अभिनेता राजेश का गुरुवार को चेन्नई में अचानक दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया। वे 75 वर्ष के थे। उनके निधन से भारतीय फिल्म इंडस्ट्री, विशेष रूप से तमिल सिनेमा, में गहरा शोक व्याप्त है। राजेश अपने पीछे बेटी दिव्या और बेटे दीपक को छोड़ गए हैं। उनकी पत्नी जोआन सिल्विया का पहले ही निधन हो चुका था। उनका पार्थिव शरीर अंतिम दर्शन के लिए रामापुरम, चेन्नई स्थित उनके निवास पर रखा गया है।

शिक्षक से सिल्वर स्क्रीन के नायक तक

राजेश का जन्म 20 दिसंबर 1949 को मन्नारगुडी (जिला तिरुवरूर, तमिलनाडु) में हुआ था। उन्होंने अपने करियर की शुरुआत एक स्कूल टीचर के रूप में की थी। लेकिन जल्द ही उन्हें फिल्मों की दुनिया में पहचान मिली। उनकी फिल्म यात्रा की शुरुआत के. बालाचंदर द्वारा निर्देशित फिल्म “अवल ओरु थोड़रकथै” (1974) से हुई। उनकी पहली मुख्य भूमिका फिल्म “कन्नीपरुवथिले” (1979) में आई, जिसका निर्माण राजकन्नु ने किया था।

लगभग पाँच दशकों का सिने करियर

करीब 50 वर्षों के फिल्मी करियर में राजेश ने 150 से अधिक फिल्मों में अभिनय किया, जिनमें तमिल, तेलुगु और मलयालम फिल्में शामिल थीं। वे चरित्र भूमिकाओं और मुख्य नायक दोनों ही प्रकार की भूमिकाओं में सहज अभिनय के लिए पहचाने जाते थे।
उनकी प्रमुख फिल्मों में शामिल हैं:

  • अंधा एऴु नाट्कल

  • सत्य

  • पायनंगल मुदिवाथिल्लै

  • विरुमांडी

  • महानदी

उनकी अंतिम फिल्म “मेरी क्रिसमस” थी, जिसमें वे विजय सेतुपति और कैटरीना कैफ के साथ नजर आए।

फिल्म अवसंरचना में अग्रदूत

राजेश ने 1985 में चेन्नई के केके नगर के पास तमिलनाडु के पहले शूटिंग बंगले का निर्माण करवाया। यह स्थान खासतौर पर फिल्म निर्माण के लिए बनाया गया था। इसका उद्घाटन तत्कालीन मुख्यमंत्री एम.जी. रामचंद्रन ने किया था। यह तमिल फिल्म उद्योग के लिए एक ऐतिहासिक पहल थी।

अभिनय से परे – एक बहुमुखी व्यक्तित्व

राजेश सिर्फ एक सफल अभिनेता ही नहीं थे, बल्कि वे लेखक, डबिंग कलाकार और टेलीविजन का भी जाना-पहचाना चेहरा थे। अपने करियर के उत्तरार्ध में उन्होंने होटल व्यवसाय और रियल एस्टेट क्षेत्र में भी कदम रखा और अपनी उद्यमशीलता का परिचय दिया।

सिनेमा के दिग्गजों के साथ करीबी संबंध

अपने शानदार करियर में राजेश ने के. बालाचंदर और कमल हासन जैसे तमिल सिनेमा के महान हस्तियों के साथ व्यावसायिक और व्यक्तिगत संबंध बनाए रखे। इन सहयोगों से उन्होंने कई यादगार प्रदर्शन किए।

एक युग का अंत

राजेश का निधन तमिल फिल्म उद्योग के लिए एक युग के अंत जैसा है। उन्होंने सिनेमा को एक नई ऊंचाई दी और अपने बहुआयामी कौशल से दर्शकों का दिल जीता। उनकी यादें, फिल्में और योगदान आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करती रहेंगी।

भारत-मंगोलिया संयुक्त सैन्य अभ्यास नोमैडिक एलीफेंट 2025 उलानबटार में शुरू हुआ

भारतीय सेना का एक दल ‘नोमैडिक एलिफेंट’ अभ्यास के 17वें संस्करण में भाग लेने के लिए आधिकारिक रूप से मंगोलिया के उलानबाटर रवाना हो चुका है। यह संयुक्त सैन्य अभ्यास 31 मई से 13 जून 2025 तक आयोजित होगा। यह अभ्यास भारत और मंगोलिया के बीच गहरे सैन्य सहयोग और रणनीतिक साझेदारी को दर्शाता है, जिसका उद्देश्य दोनों सेनाओं के बीच युद्ध कौशल और संचालनात्मक समन्वय को बेहतर बनाना है।

वार्षिक रक्षा सहयोग: रणनीतिक विश्वास का प्रतीक

‘नोमैडिक एलिफेंट’ भारत और मंगोलिया के बीच प्रतिवर्ष आयोजित होने वाला द्विपक्षीय सैन्य अभ्यास है, जो दोनों देशों में बारी-बारी से होता है। इसका पिछला संस्करण जुलाई 2024 में मेघालय के उमरोई में सफलतापूर्वक संपन्न हुआ था। प्रत्येक संस्करण दोनों देशों की सेनाओं को पेशेवर अनुभव, सैन्य प्रशिक्षण और संचालनात्मक समन्वय के लिए एक मंच प्रदान करता है, खासकर ऐसे इलाकों में जो दोनों सेनाओं के लिए प्रासंगिक हैं।

भारतीय दल: अरुणाचल स्काउट्स की अगुवाई

इस वर्ष भारतीय सेना की ओर से 45 सैनिकों का दल भाग ले रहा है, जिसमें अधिकांश जवान अरुणाचल स्काउट्स से हैं। यह एक विशिष्ट इन्फैंट्री रेजीमेंट है, जो ऊँचाई और पर्वतीय युद्ध कौशल में प्रशिक्षित है। इनकी कठोरता और अनुकूलनशीलता इस अभ्यास को महत्वपूर्ण अनुभव प्रदान करेगी।

मंगोलियाई दल: 150 स्पेशल फोर्स के जवान

मंगोलिया की ओर से 150 विशेष बल (स्पेशल फोर्स) के सैनिक इस अभ्यास में भाग लेंगे। यह मंगोलिया की ओर से पेशेवर प्रतिबद्धता और सहयोग को बढ़ावा देने की इच्छा को दर्शाता है।

उद्देश्य: संयुक्त राष्ट्र के अधीन संचालन में समन्वय

अभ्यास का मुख्य उद्देश्य संयुक्त टास्क फोर्स के रूप में अर्द्ध-परंपरागत संचालन (semi-conventional operations) में इंटरऑपरेबिलिटी (आपसी सहयोग और समझ) को बढ़ाना है, विशेषकर अर्ध-शहरी और पर्वतीय क्षेत्रों में, और वह भी संयुक्त राष्ट्र के जनादेश के तहत। यह दोनों देशों की शांति स्थापना और क्षेत्रीय स्थिरता की प्रतिबद्धता को भी दर्शाता है।

प्रशिक्षण गतिविधियाँ और सामरिक अभ्यास

इस संस्करण का स्वरूप एक प्लाटून-स्तरीय फील्ड ट्रेनिंग एक्सरसाइज (FTX) का है, जिसमें सैनिक निम्नलिखित सामरिक अभ्यासों से गुजरेंगे:

  • धैर्य और सहनशक्ति प्रशिक्षण (Endurance Training)

  • त्वरित निशानेबाजी (Reflex Shooting)

  • कमरे में प्रवेश की तकनीक (Room Intervention Techniques)

  • छोटी टीम की रणनीतियाँ (Small Team Tactics)

  • चट्टानों पर चढ़ाई और पर्वतीय युद्ध प्रशिक्षण (Rock Craft and Mountain Warfare)

इन अभ्यासों को आधुनिक असममित युद्ध की वास्तविक परिस्थितियों के अनुरूप डिजाइन किया गया है।

साइबर युद्ध प्रशिक्षण: एक आधुनिक रणनीतिक पहल

इस वर्ष के अभ्यास में साइबर युद्ध (Cyber Warfare) को भी शामिल किया गया है। यह इस बात को रेखांकित करता है कि आधुनिक सैन्य अभियानों में साइबर डोमेन कितना महत्वपूर्ण होता जा रहा है। इससे सैनिकों को साइबर खतरों की पहचान, प्रबंधन, और जवाबी रणनीति में प्रशिक्षण मिलेगा।

आपसी सीख और सांस्कृतिक समझ का मंच

‘नोमैडिक एलिफेंट’ केवल सैन्य अभ्यास नहीं, बल्कि यह सांस्कृतिक आदान-प्रदान और रणनीतिक सोच का भी मंच है। इस दौरान दोनों देशों के सैनिक संचालनात्मक अनुभव साझा करेंगे, नए दृष्टिकोण सीखेंगे, और एक-दूसरे की संस्कृति को गहराई से समझ पाएंगे।

भारत-मंगोलिया रक्षा सहयोग को सशक्त करना

यह अभ्यास भारत और मंगोलिया के साझा दृष्टिकोण को रेखांकित करता है – क्षेत्रीय शांति, स्थिरता और सुरक्षा बनाए रखना। यह संबंध एशिया में रणनीतिक साझेदारी को और मजबूत करने की दिशा में एक ठोस कदम है।

मित्रता और साझेदारी का प्रतीक

नोमैडिक एलिफेंट 2025 भारत और मंगोलिया के बीच स्थायी मित्रता, पारस्परिक विश्वास, और साझा मूल्यों का सशक्त प्रतीक है। यह दोनों देशों की सेनाओं के बीच व्यावसायिक सैन्य सहयोग, रणनीतिक एकजुटता, और भविष्य के लिए तैयारी को उजागर करता है।

अंतर्राष्ट्रीय एवरेस्ट दिवस 2025: तिथि, इतिहास और महत्व

अंतर्राष्ट्रीय एवरेस्ट दिवस हर साल 29 मई को मनाया जाता है। यह दिन 1953 में न्यूज़ीलैंड के सर एडमंड हिलेरी और नेपाल के तेनजिंग नोर्गे शेरपा द्वारा माउंट एवरेस्ट की पहली सफल चढ़ाई की स्मृति में मनाया जाता है। यह दिन उनके साहस, शक्ति और साहसिक भावना को सम्मानित करता है। दुनियाभर में खासकर पर्वतारोहियों और ट्रेकर्स द्वारा यह दिन उत्साहपूर्वक मनाया जाता है।

अंतर्राष्ट्रीय एवरेस्ट दिवस 2025 – तिथि

29 मई 2025 को अंतर्राष्ट्रीय एवरेस्ट दिवस मनाया जाएगा। यह दिन हिलेरी और नोर्गे की ऐतिहासिक उपलब्धि को याद करता है और लोगों को साहसिकता के प्रति प्रेरित करता है।

इतिहास

1953 से पहले कई लोगों ने माउंट एवरेस्ट चढ़ने की कोशिश की थी, लेकिन कोई भी शिखर तक नहीं पहुंच पाया था। अंततः 29 मई 1953 को एडमंड हिलेरी और तेनजिंग नोर्गे ने नेपाल की ओर से चढ़ाई कर इसे सफल किया।

2008 में सर एडमंड हिलेरी के निधन के बाद, नेपाल सरकार ने 29 मई को ‘अंतर्राष्ट्रीय एवरेस्ट दिवस’ घोषित किया। यह दिन नेपाल और न्यूजीलैंड के बीच मित्रता और शेरपा गाइडों के योगदान को भी सम्मानित करता है।

सर एडमंड हिलेरी की याद में

माउंट एवरेस्ट फतह करने के बाद सर एडमंड हिलेरी विश्व भर में प्रसिद्ध हो गए। लेकिन उन्होंने नेपाल के लिए भी बहुत कार्य किए।

  • 1960 में उन्होंने ‘हिमालयन ट्रस्ट’ की स्थापना की

  • उन्होंने स्कूल, अस्पताल, और सड़कें बनवाने में मदद की

  • नेपाल की जनता ने उन्हें गहरा सम्मान और प्रेम दिया

तेन्जिंग नोर्गे शेरपा की विरासत

तेन्जिंग नोर्गे एक कुशल शेरपा पर्वतारोही थे। माउंट एवरेस्ट की चोटी पर पहुंचने के बाद उन्हें वैश्विक पहचान मिली।

  • 1954 में उन्होंने दार्जिलिंग में ‘हिमालयन माउंटेनियरिंग इंस्टिट्यूट’ की स्थापना की

  • 1978 में एक ट्रेकिंग कंपनी शुरू की

  • उन्होंने शेरपाओं के लिए सम्मान और सुविधाएं बढ़ाने का प्रयास किया

माउंट एवरेस्ट का महत्व

माउंट एवरेस्ट दुनिया का सबसे ऊँचा पर्वत है, जिसकी ऊँचाई 8,848 मीटर (29,029 फीट) है। इसे चढ़ना एक बहुत बड़ी उपलब्धि मानी जाती है।

  • यह मानव इच्छाशक्ति और साहस का प्रतीक है

  • यहां चढ़ाई करना कठिन होता है – कड़ाके की ठंड, तेज़ हवाएं, और ऑक्सीजन की कमी के बावजूद पर्वतारोही प्रयास करते हैं

एवरेस्ट की स्थिति और नामकरण

  • एवरेस्ट नेपाल और तिब्बत (चीन) की सीमा पर स्थित है

  • चढ़ाई का सबसे लोकप्रिय मार्ग नेपाल की ओर से है

  • 1856 में इसे ‘पीक XV’ के नाम से मापा गया था

  • 1865 में इसका नाम ‘माउंट एवरेस्ट’ रखा गया, ब्रिटिश सर्वेक्षक सर जॉर्ज एवरेस्ट के नाम पर

एवरेस्ट ट्रेकिंग का रोमांच

माउंट एवरेस्ट पर चढ़ाई करना कठिन है, लेकिन एवरेस्ट बेस कैंप तक ट्रेकिंग करना भी एक बेहद लोकप्रिय और सुंदर अनुभव है।

  • हर साल हजारों लोग इस ट्रेक पर जाते हैं

  • ट्रेक के दौरान वे शेरपा गाँव, खूबसूरत पहाड़, और खुम्बू ग्लेशियर देखते हैं

  • यह एवरेस्ट की भावना को महसूस करने का एक शानदार तरीका है

अंतर्राष्ट्रीय एवरेस्ट दिवस का महत्व

  • यह दिन हिलेरी और नोर्गे की महान सफलता की याद दिलाता है

  • यह सभी साहसी पर्वतारोहियों को सम्मान देता है

  • यह दिन हमें प्रकृति की देखभाल, सुरक्षित पर्यटन, और पर्यावरण संरक्षण का संदेश देता है

  • युवाओं को यह दिन बड़े सपने देखने, शेरपाओं से सीखने, और प्राकृतिक विरासत को सम्मान देने के लिए प्रेरित करता है

सेमीकंडक्टर नवाचार को बढ़ावा देने हेतु IIT खड़गपुर और सिंगापुर के IME ने समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर

सेमीकंडक्टर तकनीक के क्षेत्र में वैश्विक सहयोग की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) खड़गपुर और सिंगापुर के इंस्टीट्यूट ऑफ माइक्रोइलेक्ट्रॉनिक्स (IME) — जो एजेंसी फॉर साइंस, टेक्नोलॉजी एंड रिसर्च (A*STAR) के अंतर्गत कार्यरत एक प्रमुख अनुसंधान संस्था है — ने एक सहयोग ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किए हैं। यह साझेदारी SEMICON Southeast Asia 2025 जैसे प्रतिष्ठित कार्यक्रम के दौरान घोषित की गई, जिसमें सेमीकंडक्टर क्षेत्र के शीर्ष विशेषज्ञ और नवोन्मेषक एकत्रित हुए।

सेमीकंडक्टर अनुसंधान के लिए उन्नत ढांचा

इस MoU का उद्देश्य सेमीकंडक्टर तकनीकों के क्षेत्र में सहयोगात्मक अनुसंधान और मानव संसाधन विकास को बढ़ावा देना है। दोनों संस्थान मिलकर कई उच्च-प्रभाव वाले क्षेत्रों में अनुसंधान करेंगे, जैसे:

  • पोस्ट-CMOS (Complementary Metal-Oxide-Semiconductor) तकनीकें

  • उन्नत ट्रांजिस्टर तकनीक

  • हेटेरोजीनियस इंटीग्रेशन और चिप पैकेजिंग

  • AI-आधारित हार्डवेयर एक्सेलेरेटर

  • क्वांटम डिवाइसेज़ और फोटॉनिक सिस्टम्स

  • थर्मल प्रबंधन और विश्वसनीयता परीक्षण

यह बहुविषयक दृष्टिकोण सेमीकंडक्टर उद्योग में मौलिक और व्यावहारिक दोनों प्रकार के नवाचारों को बढ़ावा देगा।

रणनीतिक महत्व

IIT खड़गपुर के मैकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर आनंदरूप भट्टाचार्य ने इसे एक “परिवर्तनकारी पहल” बताया। उन्होंने कहा कि भारत एक सेमीकंडक्टर विनिर्माण शक्ति बनने की ओर अग्रसर है और इस दिशा में वैश्विक सहयोग बेहद आवश्यक है। यह समझौता भारत की वैश्विक तकनीकी नेतृत्व की महत्वाकांक्षा को और बल देता है।

प्रमुख पहल और कार्यक्रम

अनुसंधान के अलावा, यह साझेदारी मानव संसाधन विकास के लिए निम्नलिखित पहलों को भी बढ़ावा देगी:

  • अनुसंधानकर्ताओं, इंजीनियरों और छात्रों के लिए द्विपक्षीय आदान-प्रदान कार्यक्रम

  • नवीनतम सेमीकंडक्टर तकनीकों पर आधारित विशेष प्रशिक्षण कार्यशालाएं

  • संयुक्त कार्यशालाएं और संगोष्ठियाँ

इन पहलों का उद्देश्य वैश्विक मांगों को पूरा करने के लिए नई पीढ़ी के सेमीकंडक्टर पेशेवरों को तैयार करना है।

दोनों संस्थानों की प्रतिक्रियाएं

A*STAR में इनोवेशन और एंटरप्राइज के डिप्टी चीफ एग्जीक्यूटिव प्रोफेसर येओ यी चिया ने कहा, “सिंगापुर की सेमीकंडक्टर में प्रगति का मूल आधार अनुसंधान, उद्योग और सरकार के बीच सहयोग है। Innovate Together जैसे प्लेटफॉर्म के ज़रिए हम साझा चुनौतियों के समाधान और सार्थक नवाचार को बढ़ावा देना चाहते हैं।”

संस्थानों की पृष्ठभूमि

IIT खड़गपुर, जिसकी स्थापना 1951 में हुई थी, भारत के अग्रणी विज्ञान और प्रौद्योगिकी संस्थानों में से एक है, जो माइक्रोइलेक्ट्रॉनिक्स और मटेरियल रिसर्च में अग्रणी भूमिका निभा रहा है। इसका सेमीकंडक्टर अनुसंधान “मेक इन इंडिया” पहल को मजबूती देता है।

IME (सिंगापुर), A*STAR के अंतर्गत कार्यरत एक अग्रणी संस्थान है जो माइक्रोइलेक्ट्रॉनिक्स में वैश्विक स्तर पर अग्रणी अनुसंधान करता है। IME सिंगापुर को दक्षिण-पूर्व एशिया के सेमीकंडक्टर हब के रूप में स्थापित करने में प्रमुख भूमिका निभा रहा है।

आगे की दिशा: वैश्विक नवाचार का नया अध्याय

IIT खड़गपुर और IME के बीच यह साझेदारी वैश्विक सेमीकंडक्टर सहयोग के एक नए युग की शुरुआत है। जैसे-जैसे वैश्विक सेमीकंडक्टर उद्योग अधिक जटिल और प्रतिस्पर्धी बन रहा है, इस प्रकार की भागीदारी नवाचार को गति देने, प्रतिभाशाली पेशेवर तैयार करने और साझा चुनौतियों से निपटने में अहम भूमिका निभाएगी।

यह सहयोग न केवल दोनों संस्थानों की अनुसंधान क्षमताओं को बढ़ाएगा बल्कि भारत और सिंगापुर के सेमीकंडक्टर इकोसिस्टम को भी वैश्विक मंच पर और मजबूत करेगा।

विश्वनाथ कार्तिकेय 7 चोटियों पर विजय पाने वाले सबसे कम उम्र के भारतीय

हैदराबाद के 16 वर्षीय विश्‍वनाथ कार्तिकेय पदकांति ने इतिहास रच दिया है। वह अब भारत के सबसे कम उम्र के और दुनिया के दूसरे सबसे कम उम्र के पर्वतारोही बन गए हैं, जिन्होंने प्रतिष्ठित 7 समिट्स चैलेंज को पूरा किया है। इसका अर्थ है कि उन्होंने सातों महाद्वीपों की सबसे ऊँची चोटियों पर चढ़ाई की है — जो दुनिया भर के पर्वतारोहियों का एक बड़ा सपना होता है।

माउंट एवरेस्ट की चढ़ाई

विश्‍वनाथ ने 27 मई को अपनी अंतिम चढ़ाई पूरी की, जब उन्होंने 8,848 मीटर ऊँची माउंट एवरेस्ट की चोटी पर सफलता पूर्वक कदम रखा। विश्‍वनाथ ने कहा, “एवरेस्ट की चोटी पर खड़ा होना और 7 समिट्स को पूरा करना मेरे लिए एक सपना सच होने जैसा है। इस यात्रा ने मुझे हर रूप में – शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक रूप से – परखा है।”

उनकी यात्रा की शुरुआत कैसे हुई?

उनकी पर्वतारोहण की रुचि कोविड-19 महामारी के दौरान, वर्ष 2020 में शुरू हुई। उस समय उनकी बहन वैश्‍नवी एक ट्रेक की योजना बना रही थीं और विश्‍वनाथ भी उसमें शामिल होना चाहते थे। तब उनकी उम्र सिर्फ 11 साल थी और उनके परिवार को शक था कि क्या वह ऐसा कर पाएंगे। उनका पहला ट्रेक असफल रहा, लेकिन उसी अनुभव ने उन्हें पूरी तरह बदल दिया। उसी क्षण से उन्हें पहाड़ों से प्रेम हो गया।

प्रशिक्षण और कठिन परिश्रम

विश्‍वनाथ ने नेहरू पर्वतारोहण संस्थान (Nehru Institute of Mountaineering) में पाँच महीने का कठिन प्रशिक्षण लिया। वर्ष 2021 में उन्होंने पहली बार माउंट एल्ब्रुस (Mount Elbrus) पर चढ़ने की कोशिश की थी, लेकिन वह प्रयास सफल नहीं हो पाया। फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी। समय के साथ उन्होंने कई बड़ी चोटियों पर चढ़ाई की, जैसे:

  • अकोंकागुआ (दक्षिण अमेरिका)

  • डेनाली (उत्तरी अमेरिका)

  • किलिमंजारो (अफ्रीका)

  • एल्ब्रुस (यूरोप)

  • विन्सन (अंटार्कटिका)

  • कोसिअसको (ऑस्ट्रेलिया)

मेंटरों से मिला मार्गदर्शन

उन्हें भरत और लेफ्टिनेंट रोमिल बर्थवाल (पूर्व भारतीय सेना अधिकारी) का मार्गदर्शन मिला। दोनों ने विश्‍वनाथ की अनुशासन, शक्ति और विनम्रता की प्रशंसा की। वे मानते हैं कि विश्‍वनाथ इस बात का बेहतरीन उदाहरण हैं कि यदि युवाओं को सही समर्थन और सोच मिले, तो वे असंभव को भी संभव बना सकते हैं।

परिवार का प्यार और समर्थन

विश्‍वनाथ के माता-पिता और दादा-दादी हमेशा उनके साथ खड़े रहे। उनकी माँ लक्ष्मी पदकांति ने बताया कि कैसे उनका बेटा एक आलसी बच्चे से ज़िम्मेदार और फोकस्ड युवा में बदल गया। पहाड़ों पर चढ़ाई के दौरान भी उसने पढ़ाई में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया — इंटरमीडिएट प्रथम वर्ष में 92% अंक हासिल किए।

संदेह और सवालों का सामना

हर किसी ने उनके फैसलों का समर्थन नहीं किया। कुछ दूतावासों (Embassies) में लोगों ने सवाल उठाया कि इतना छोटा बच्चा इतनी कठिन यात्राओं पर क्यों जा रहा है। कुछ लोगों ने तो यहाँ तक पूछ लिया कि क्या वह गोद लिया गया है। लेकिन लक्ष्मी ने इन बातों की परवाह नहीं की। उन्होंने अपने बेटे के सपनों पर भरोसा किया और हमेशा उसका समर्थन करती रहीं।

विश्‍वनाथ का अगला लक्ष्य क्या है?

अब जब कि 7 समिट्स चैलेंज पूरा हो चुका है, विश्‍वनाथ अपने भविष्य की योजनाओं के बारे में सोच रहे हैं। उनकी माँ के अनुसार, उन्हें भारतीय सेना (Indian Army) में शामिल होने में रुचि है। वह चाहे जो भी रास्ता चुनें, उनका परिवार पूरी तरह से उनके साथ खड़ा है।

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