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विश्वनाथ कार्तिकेय 7 चोटियों पर विजय पाने वाले सबसे कम उम्र के भारतीय

हैदराबाद के 16 वर्षीय विश्‍वनाथ कार्तिकेय पदकांति ने इतिहास रच दिया है। वह अब भारत के सबसे कम उम्र के और दुनिया के दूसरे सबसे कम उम्र के पर्वतारोही बन गए हैं, जिन्होंने प्रतिष्ठित 7 समिट्स चैलेंज को पूरा किया है। इसका अर्थ है कि उन्होंने सातों महाद्वीपों की सबसे ऊँची चोटियों पर चढ़ाई की है — जो दुनिया भर के पर्वतारोहियों का एक बड़ा सपना होता है।

माउंट एवरेस्ट की चढ़ाई

विश्‍वनाथ ने 27 मई को अपनी अंतिम चढ़ाई पूरी की, जब उन्होंने 8,848 मीटर ऊँची माउंट एवरेस्ट की चोटी पर सफलता पूर्वक कदम रखा। विश्‍वनाथ ने कहा, “एवरेस्ट की चोटी पर खड़ा होना और 7 समिट्स को पूरा करना मेरे लिए एक सपना सच होने जैसा है। इस यात्रा ने मुझे हर रूप में – शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक रूप से – परखा है।”

उनकी यात्रा की शुरुआत कैसे हुई?

उनकी पर्वतारोहण की रुचि कोविड-19 महामारी के दौरान, वर्ष 2020 में शुरू हुई। उस समय उनकी बहन वैश्‍नवी एक ट्रेक की योजना बना रही थीं और विश्‍वनाथ भी उसमें शामिल होना चाहते थे। तब उनकी उम्र सिर्फ 11 साल थी और उनके परिवार को शक था कि क्या वह ऐसा कर पाएंगे। उनका पहला ट्रेक असफल रहा, लेकिन उसी अनुभव ने उन्हें पूरी तरह बदल दिया। उसी क्षण से उन्हें पहाड़ों से प्रेम हो गया।

प्रशिक्षण और कठिन परिश्रम

विश्‍वनाथ ने नेहरू पर्वतारोहण संस्थान (Nehru Institute of Mountaineering) में पाँच महीने का कठिन प्रशिक्षण लिया। वर्ष 2021 में उन्होंने पहली बार माउंट एल्ब्रुस (Mount Elbrus) पर चढ़ने की कोशिश की थी, लेकिन वह प्रयास सफल नहीं हो पाया। फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी। समय के साथ उन्होंने कई बड़ी चोटियों पर चढ़ाई की, जैसे:

  • अकोंकागुआ (दक्षिण अमेरिका)

  • डेनाली (उत्तरी अमेरिका)

  • किलिमंजारो (अफ्रीका)

  • एल्ब्रुस (यूरोप)

  • विन्सन (अंटार्कटिका)

  • कोसिअसको (ऑस्ट्रेलिया)

मेंटरों से मिला मार्गदर्शन

उन्हें भरत और लेफ्टिनेंट रोमिल बर्थवाल (पूर्व भारतीय सेना अधिकारी) का मार्गदर्शन मिला। दोनों ने विश्‍वनाथ की अनुशासन, शक्ति और विनम्रता की प्रशंसा की। वे मानते हैं कि विश्‍वनाथ इस बात का बेहतरीन उदाहरण हैं कि यदि युवाओं को सही समर्थन और सोच मिले, तो वे असंभव को भी संभव बना सकते हैं।

परिवार का प्यार और समर्थन

विश्‍वनाथ के माता-पिता और दादा-दादी हमेशा उनके साथ खड़े रहे। उनकी माँ लक्ष्मी पदकांति ने बताया कि कैसे उनका बेटा एक आलसी बच्चे से ज़िम्मेदार और फोकस्ड युवा में बदल गया। पहाड़ों पर चढ़ाई के दौरान भी उसने पढ़ाई में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया — इंटरमीडिएट प्रथम वर्ष में 92% अंक हासिल किए।

संदेह और सवालों का सामना

हर किसी ने उनके फैसलों का समर्थन नहीं किया। कुछ दूतावासों (Embassies) में लोगों ने सवाल उठाया कि इतना छोटा बच्चा इतनी कठिन यात्राओं पर क्यों जा रहा है। कुछ लोगों ने तो यहाँ तक पूछ लिया कि क्या वह गोद लिया गया है। लेकिन लक्ष्मी ने इन बातों की परवाह नहीं की। उन्होंने अपने बेटे के सपनों पर भरोसा किया और हमेशा उसका समर्थन करती रहीं।

विश्‍वनाथ का अगला लक्ष्य क्या है?

अब जब कि 7 समिट्स चैलेंज पूरा हो चुका है, विश्‍वनाथ अपने भविष्य की योजनाओं के बारे में सोच रहे हैं। उनकी माँ के अनुसार, उन्हें भारतीय सेना (Indian Army) में शामिल होने में रुचि है। वह चाहे जो भी रास्ता चुनें, उनका परिवार पूरी तरह से उनके साथ खड़ा है।

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