लोकसभा ने मणिपुर में राष्ट्रपति शासन की अवधि बढ़ाने को मंजूरी दी

लोकसभा ने मणिपुर में राष्ट्रपति शासन की अवधि 13 अगस्त, 2025 से आगे छह महीने के लिए बढ़ाने को मंजूरी देते हुए एक वैधानिक प्रस्ताव पारित किया है। केंद्र सरकार द्वारा समर्थित इस निर्णय का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि पूर्वोत्तर राज्य में शांति और स्थिरता बनी रहे, जिसे अतीत में जातीय तनाव का सामना करना पड़ा है।

सरकार ने मणिपुर में शांति की वापसी पर दिया ज़ोर
संसद में चर्चा के दौरान केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने सदन को आश्वस्त किया कि राष्ट्रपति शासन लागू होने के बाद मणिपुर में शांति लौट रही है। उन्होंने बताया कि पिछले चार महीनों में केवल एक व्यक्ति की मृत्यु हुई है और कोई अन्य गंभीर हिंसा नहीं हुई है, जिससे यह स्पष्ट है कि प्रदेश में स्थिति अब नियंत्रण में है। उन्होंने यह भी बताया कि कानून-व्यवस्था की स्थिति बेहतर हो चुकी है और सरकार दोनों जातीय समुदायों के बीच संवाद और आपसी समझ के ज़रिए मतभेद सुलझाने के प्रयासों में लगी है। सरकार राज्य में स्थायी शांति स्थापित करने के लिए लगातार कार्य कर रही है।

मणिपुर में राष्ट्रपति शासन की पृष्ठभूमि
मणिपुर में कानून-व्यवस्था की स्थिति बिगड़ने के कारण 13 फरवरी 2025 को पहली बार राष्ट्रपति शासन लागू किया गया था। संसद ने 2 अप्रैल 2025 को इसे छह महीने की प्रारंभिक अवधि के लिए मंजूरी दी थी। भारतीय संविधान के अनुसार, ऐसी मंजूरी एक बार में केवल छह महीने के लिए मान्य होती है और इसके बाद संसद को इसे आगे बढ़ाने का निर्णय लेना होता है। नित्यानंद राय द्वारा प्रस्तुत नए प्रस्ताव के अनुसार अब राष्ट्रपति शासन को फरवरी 2026 तक बढ़ा दिया गया है।

लोकसभा अध्यक्ष का बयान
लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला ने पुष्टि की कि सदन ने अप्रैल में राष्ट्रपति शासन की मंजूरी दी थी और अब इस प्रस्ताव के माध्यम से इसे अगले छह महीनों के लिए बढ़ाया गया है।

विस्तार का महत्व
सरकार ने स्पष्ट किया कि राष्ट्रपति शासन का विस्तार आवश्यक है ताकि,
– मणिपुर में कानून और व्यवस्था को और मजबूत किया जा सके,
– जातीय समुदायों के बीच विश्वास बहाल हो,
– हिंसा को रोका जा सके और सामाजिक सद्भाव कायम रहे,
– राज्य में स्थायी शांति और विकास के लिए अनुकूल वातावरण बनाया जा सके।

भारत और संयुक्त अरब अमीरात ने समुद्री सुरक्षा और संरक्षा सहयोग पर समझौते पर हस्ताक्षर किए

द्विपक्षीय समुद्री सहयोग बढ़ाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए, भारतीय तटरक्षक बल (आईसीजी) और संयुक्त अरब अमीरात राष्ट्रीय गार्ड कमान ने नई दिल्ली में समुद्री सुरक्षा और संरक्षा सहयोग पर एक समझौते पर हस्ताक्षर किए। इस समझौते का उद्देश्य क्षेत्र में एक सुरक्षित, संरक्षित और टिकाऊ समुद्री वातावरण सुनिश्चित करते हुए दोनों देशों के बीच संबंधों को मज़बूत करना है।

समझौते के उद्देश्य

हाल ही में हस्ताक्षरित समझौता ज्ञापन (MoU) का उद्देश्य भारत और संयुक्त अरब अमीरात (UAE) के बीच समुद्री खोज और बचाव (Maritime Search and Rescue – M-SAR) में सहयोग को बढ़ाना, अंतरराष्ट्रीय समुद्री अपराधों से निपटने के प्रयासों को मजबूत करना, समुद्री कानून प्रवर्तन (Maritime Law Enforcement – MLE) को सशक्त बनाना, समुद्री प्रदूषण प्रतिक्रिया (Marine Pollution Response – MPR) में बेहतर समन्वय स्थापित करना और प्रशिक्षण व संचालनात्मक सहयोग के माध्यम से संयुक्त क्षमता निर्माण करना है। भारतीय तटरक्षक बल ने इस बात पर जोर दिया कि ये पहल दोनों देशों की समुद्री सुरक्षा को लेकर साझा प्रतिबद्धता को दर्शाती हैं और समुद्री क्षेत्र में संस्थागत संबंधों को प्रगाढ़ करने व सहयोगी प्रयासों को बढ़ावा देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम हैं।

व्यापक सहयोग का हिस्सा

यह समझौता ऐसे दसवें समझौतों में से एक है जिसे भारत ने मित्र विदेशी देशों (Friendly Foreign Countries – FFCs) की तटरक्षक एजेंसियों के साथ किया है। इन पेशेवर संबंधों के विस्तार के माध्यम से भारत समुद्री सुरक्षा साझेदारियों को मजबूत करता जा रहा है, ताकि समुद्री लूटपाट, तस्करी, अवैध मछली पकड़ना और पर्यावरणीय खतरों जैसी आधुनिक चुनौतियों से प्रभावी ढंग से निपटा जा सके।

13वीं संयुक्त रक्षा सहयोग समिति (JDCC) बैठक में हस्ताक्षर समारोह

यह समझौता भारत और यूएई के बीच 13वीं संयुक्त रक्षा सहयोग समिति (Joint Defence Cooperation Committee – JDCC) की बैठक के दौरान औपचारिक रूप से संपन्न हुआ। इस पर भारतीय तटरक्षक बल के महानिदेशक परमेश शिवमणि और यूएई तटरक्षक समूह के कमांडर ब्रिगेडियर स्टाफ खालिद ओबैद शाम्सी ने हस्ताक्षर किए। दोनों अधिकारियों ने क्षेत्रीय समुद्री स्थिरता बनाए रखने और वैश्विक समुद्री व्यापार मार्गों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए अपने-अपने देशों की प्रतिबद्धता को दोहराया, जो अंतरराष्ट्रीय व्यापार के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।

रणनीतिक महत्व

हिन्द महासागर और अरब सागर वैश्विक व्यापार, ऊर्जा परिवहन और क्षेत्रीय सुरक्षा के लिहाज़ से अत्यधिक महत्वपूर्ण क्षेत्र हैं। इस समझौते के माध्यम से भारत और यूएई का उद्देश्य समुद्री डकैती, तस्करी और आतंकवाद जैसी समुद्री चुनौतियों को रोकना, व्यापारी जहाजों और मछली पकड़ने वाली नौकाओं की सुरक्षा के लिए सहयोग को बढ़ावा देना, समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र को प्रदूषण और पर्यावरणीय खतरों से सुरक्षित रखना, और क्षेत्र में दीर्घकालिक समुद्री शांति एवं स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए एक मजबूत साझेदारी को विकसित करना है।

NISAR सैटेलाइट लॉन्च

नासा-इसरो सिंथेटिक अपर्चर रडार (NISAR) सैटेलाइट बुधवार (30 जुलाई 2025) को शाम 5:40 बजे लॉन्‍च किया गया है। जीएसएलवी-एफ 16 रॉकेट ने निसार सैटेलाइट को लेकर श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से उड़ान भरी और सैटेलाइट को सूर्य-समकालिक ध्रुवीय कक्षा में स्थापित करेगा।

संयुक्‍त मिशन

निसार सैटेलाइट नासा और इसरो का संयुक्‍त मिशन है। दोनों स्पेस एजेंसियों ने साथ मिलकर इसे विकसित किया है। यह पूरी धरती पर नजर रखेगा। हालांकि, इसरो ने पहले भी रिसोर्ससैट और रीसेट सहित पृथ्वी पर नजर रखने वाले सैटेलाइट लॉन्‍च किए हैं, लेकिन ये सैटेलाइट केवल भारतीय क्षेत्र की निगरानी करने तक ही सीमित थे।

निसार क्या है?

नासा-इसरो सिंथेटिक अपर्चर रडार (NISAR (निसार)) दुनिया का पहला रडार सैटेलाइट है, जो अंतरिक्ष से पृथ्वी को व्यवस्थित तरीके से मैप करेगा। इतना ही नहीं, यह पहला ऐसा सैटेलाइट है, जो दोहरे रडार बैंड (एल-बैंड और एस-बैंड) का यूज करता है ताकि यह अलग-अलग तरह की पर्यावरणीय और भूवैज्ञानिक परिस्थितियों की निगरानी कर सकता है। अंतरिक्ष में पहुंचने के बाद यह सैटेलाइट निम्न पृथ्वी कक्षा (Low Earth Orbit – LEO) में चक्कर लगाएगा। निसार तीन साल तक अंतरिक्ष में रहकर पृथ्वी की निगरानी करेगा।

ये बैंड क्या हैं?

बैंड यानी रडार सिस्‍टम में रेडियो वेव की आवृत्ति (frequency) या तरंगदैर्ध्य (wavelength) को दर्शाते हैं। हर बैंड अलग-अलग फ्रीक्वेंसी  और वेवलैंथ पर काम करता है, जिससे तय होता है कि कितनी दूर तक की  चीजों को स्पष्ट देखा जा सकता है।

  • L-बैंड  यानी 1.25 GHz, 24 सेमी तरंगदैर्ध्य:  जमीन के भीतर झांकने में सक्षम, जंगलों और बर्फ के नीचे का डाटा दे सकता है। ग्लेशियर दरकने, जमीन धंसने, ज्वालामुखी धधकने और भूकंप संबंधी गतिविधि को ट्रैक करने का काम करेगा। यह रडार नासा ने दिया है।
  • S-बैंड यानी 3.20 GHz, 9.3 सेमी तरंगदैर्ध्य:  सतह की बारीक से बारीक गतिविधियों को पहचानने में सक्षम है। खेती-किसानी की निगरानी करने, सतह की नमी, फसलें और इंफ्रास्‍ट्रक्‍चर ( ब्रिज, डैम और रेलवे ट्रैक) की मूवमेंट को ट्रैक करने का काम करेगा। यह रडार इसरो ने खुद बनाया है।

बता दें कि निसार सैटेलाइट का निर्माण और एकीकरण जनवरी 2024 में ही हो चुका था। इसका लॉन्‍च मार्च, 2024 में होना था, लेकिन हार्डवेयर अपग्रेड और अतिरिक्त परीक्षण के चलते इसका लॉन्च जुलाई, 2025 तक के लिए टाल दिया गया था।

NISAR में किस तकनीक का यूज हुआ है?

निसार में स्वीप सिंथेटिक अपर्चर रडार (SAR) तकनीक का यूज किया गया है। इस तकनीक के जरिए बड़े से बड़े क्षेत्र को हाई रिजॉल्‍यूशन (5-10 मीटर) के साथ स्कैन करके एकदम क्लियर तस्वीरें ली जा सकती हैं। खास बात यह है कि SAR के चलते निसार बादलों और अंधेरे में भी डेटा जुटा सकता है, जिससे  24/7 पृथ्वी की निगरानी की जा सकती है।

IGNCA गीता एवं नाट्यशास्त्र के यूनेस्को मान्यता पर संगोष्ठी का आयोजन करेगा

इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (आईजीएनसीए) 30-31 जुलाई 2025 को नई दिल्ली में ‘शाश्वत ग्रंथ एवं सार्वभौमिक शिक्षाएं: यूनेस्को स्मृति विश्व अंतर्राष्ट्रीय रजिस्टर में भगवद् गीता एवं नाट्यशास्त्र का अंकन’ शीर्षक से दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन करेगा। इस संगोष्ठी का आयोजन दो आधारभूत भारतीय ग्रंथों भगवद् गीता एवं नाट्यशास्त्र को प्रतिष्ठित यूनेस्को मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड इंटरनेशनल रजिस्टर में शामिल किए जाने अवसर पर किया जा रहा है, जिसमें उनके वैश्विक महत्व एवं स्थायी प्रासंगिकता को मान्यता प्रदान की गई है।

अंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर में उद्घाटन सत्र

इस राष्ट्रीय संगोष्ठी का उद्घाटन सत्र 30 जुलाई 2025 को शाम 4:00 बजे नई दिल्ली स्थित अंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर में आयोजित किया जाएगा।

मुख्य अतिथि:

श्री गजेन्द्र सिंह शेखावत, माननीय संस्कृति और पर्यटन मंत्री, भारत सरकार।

अध्यक्षता:

श्री राम बहादुर राय, पद्म भूषण सम्मानित एवं इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र ट्रस्ट के अध्यक्ष।

विशिष्ट अतिथि:

  • स्वामी ज्ञानानंद जी महाराज, संस्थापक — G.I.E.O. गीता एवं गीता ज्ञान संस्थानम्, कुरुक्षेत्र।

  • डॉ. सोनल मानसिंह, पद्म विभूषण से सम्मानित और पूर्व राज्यसभा सांसद।

यह सत्र भगवद्गीता और नाट्यशास्त्र जैसे प्राचीन ग्रंथों की सार्वभौमिक शिक्षाओं और सांस्कृतिक धरोहर पर चर्चा की आधारभूमि तैयार करेगा।

समापन सत्र – इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (IGNCA), जनपथ

समापन सत्र 31 जुलाई 2025 को शाम 5:00 बजे नई दिल्ली स्थित IGNCA, जनपथ के ‘संवेत ऑडिटोरियम’ में आयोजित किया जाएगा।

मुख्य अतिथि:

श्री विवेक अग्रवाल, सचिव, संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार।

विशिष्ट अतिथि:

प्रो. श्रीनिवास वरखेड़ी, कुलपति, केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय।

अध्यक्षता:

डॉ. सच्चिदानंद जोशी, सदस्य सचिव, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (IGNCA)।

सारांश प्रस्तुति:

प्रो. (डॉ.) रमेश सी. गौड़ संगोष्ठी के विचार-विमर्श का संक्षिप्त सार प्रस्तुत करेंगे।

संगोष्ठी का उद्देश्य और महत्व

यह संगोष्ठी निम्नलिखित उद्देश्यों की पूर्ति के लिए आयोजित की गई है—

वैश्विक मान्यता का उत्सव:
भगवद्गीता और नाट्यशास्त्र को यूनेस्को ‘मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड’ रजिस्टर में शामिल किए जाने का अभिनंदन करना, जो मानवता की सबसे मूल्यवान दस्तावेज़ी धरोहरों को संरक्षित करता है।

शाश्वत प्रासंगिकता की पुनर्पुष्टि:
गीता की सार्वभौमिक ज्ञान परंपरा एवं नाट्यशास्त्र की कलात्मक और सांस्कृतिक गहराई को आधुनिक संदर्भ में समझना।

विद्वत् संवाद को प्रोत्साहन:
देश-विदेश के विद्वानों, सांस्कृतिक विचारकों, और धरोहर विशेषज्ञों को एक मंच पर लाकर इन ग्रंथों की समकालीन उपयोगिता पर विमर्श करना।

परंपरा और आधुनिकता का संगम:
इन शास्त्रों की शिक्षाओं द्वारा आधुनिक चिंतन, प्रदर्शन कला, और नैतिक मूल्यों पर पड़ने वाले प्रभाव को रेखांकित करना।

भगवद्गीता और नाट्यशास्त्र के बारे में

भगवद्गीता, महाभारत का एक भाग है, जिसे जीवन, धर्म और नैतिकता पर गहन दृष्टिकोण प्रदान करने वाला आध्यात्मिक और दार्शनिक मार्गदर्शक ग्रंथ माना जाता है। यह संवाद अर्जुन और श्रीकृष्ण के बीच हुआ, जिसमें कर्म, भक्ति और ज्ञान के मार्गों की व्याख्या की गई है।

नाट्यशास्त्र, महान ऋषि भरत मुनि द्वारा रचित एक प्राचीन संस्कृत ग्रंथ है, जो नाट्य, नृत्य और संगीत जैसे प्रदर्शन कलाओं के सिद्धांतों का विशद वर्णन करता है। इसे भारतीय शास्त्रीय कलाओं की आधारशिला माना जाता है।

इन दोनों ग्रंथों को यूनेस्को ‘मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड रजिस्टर’ में दर्ज किया जाना न केवल उनके पांडुलिपियों और सांस्कृतिक महत्व की सुरक्षा सुनिश्चित करता है, बल्कि यह भारत के वैश्विक ज्ञान परंपरा में योगदान को भी पुनः स्थापित करता है।

IMF: भारत में 2025-26 में आर्थिक वृद्धि दर 6.4 फीसदी रहने का अनुमान

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) ने भारत की आर्थिक वृद्धि दर का पूर्वानुमान बढ़ाकर 2025 और 2026 दोनों के लिए 6.4 प्रतिशत कर दिया है। यह संशोधित अनुमान एक बार फिर भारत को दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्था के रूप में स्थापित करता है। यह नया अनुमान IMF की अप्रैल 2025 की वर्ल्ड इकोनॉमिक आउटलुक रिपोर्ट से बेहतर है, जिसमें भारत की 2025 के लिए 6.2 प्रतिशत और 2026 के लिए 6.3 प्रतिशत वृद्धि दर का अनुमान लगाया गया था।

ऊर्ध्व संशोधन के पीछे कारण

IMF ने भारत की आर्थिक वृद्धि दर के बेहतर पूर्वानुमान को पहले की तुलना में अनुकूल वैश्विक परिस्थितियों से जोड़ा है। इस संशोधन में कई वैश्विक और घरेलू कारकों की भूमिका रही है:

  • वैश्विक टैरिफ का अपेक्षाकृत कम प्रभाव, जिससे व्यापार पर दबाव कम हुआ।

  • कमजोर अमेरिकी डॉलर, जिससे उभरती अर्थव्यवस्थाओं जैसे भारत पर वित्तीय दबाव घटा।

  • वैश्विक वित्तीय परिस्थितियों में सुधार, जिससे निवेश और विकास के लिए अनुकूल वातावरण बना।

IMF ने स्पष्ट किया है कि उसके आंकड़े कैलेंडर वर्ष के अनुसार हैं। वित्त वर्ष के अनुसार, भारत की वृद्धि दर FY2025 में 6.7% और FY2026 में 6.4% रहने की उम्मीद है।

वैश्विक परिप्रेक्ष्य में भारत की वृद्धि

IMF के नवीनतम अनुमानों से पता चलता है कि भारत अभी भी सभी प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं से आगे है:

  • भारत: 2025 और 2026 में 6.4% वृद्धि।

  • चीन: 2025 में 4.8% और 2026 में 4.2% की अपेक्षित वृद्धि, जो भारत की तुलना में धीमी है।

  • संयुक्त राज्य अमेरिका: 2025 में 1.9% और 2026 में 2.0% की वृद्धि, जो स्थिर लेकिन सीमित है।

  • वैश्विक अर्थव्यवस्था: 2025 में 3.0% और 2026 में 3.1% की वृद्धि, जो मध्यम पुनर्प्राप्ति को दर्शाती है।

यह अनुमान दर्शाता है कि भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्था बना रहेगा, और अन्य बड़ी अर्थव्यवस्थाओं से उसका अंतर बना रहेगा।

भारत की अर्थव्यवस्था पर प्रभाव

इस संशोधित वृद्धि अनुमान के कई महत्वपूर्ण प्रभाव हैं:

  • निवेशक विश्वास में वृद्धि: बेहतर पूर्वानुमान से भारत एक आकर्षक निवेश गंतव्य बनता है।

  • सरकारी सुधारों को समर्थन: यह अनुमान बुनियादी ढांचा विकास, आर्थिक सुधारों और डिजिटल परिवर्तन की दिशा में सरकार की नीतियों को मजबूती देता है।

  • रोजगार सृजन और मांग में वृद्धि: निरंतर उच्च विकास से रोजगार के अवसर बढ़ने और घरेलू उपभोग को बल मिलने की उम्मीद है।

  • वैश्विक चुनौतियों के बीच लचीलापन: वैश्विक व्यापार में अनिश्चितता के बावजूद, भारत की मजबूत घरेलू मांग और संरचनात्मक सुधार उसे आर्थिक दृष्टि से सक्षम बनाए हुए हैं।

इंटरनेशनल फ्रेंडशिप डे 2025: इतिहास और महत्व

मित्रता मानव जीवन के सबसे अनमोल और प्रिय रिश्तों में से एक है — एक ऐसा संबंध जो विश्वास, प्रेम, निष्ठा और सहयोग की नींव पर टिका होता है। फ्रेंडशिप डे 2025 हमें इन अनमोल संबंधों को मनाने का अवसर देता है, अपने मित्रों की सराहना करने और उनके जीवन में होने के लिए आभार प्रकट करने की याद दिलाता है। जीवन के उतार-चढ़ाव में साथ निभाना, भावनात्मक सहारा देना और खुशियों व दुःखों को साझा करना — यही सच्ची मित्रता की पहचान है। मित्रों की उपस्थिति हमारे जीवन को अधिक सार्थक और आनंदमय बनाती है।

फ्रेंडशिप डे 2025 की तिथि

दुनियाभर में फ्रेंडशिप डे अलग-अलग तिथियों पर मनाया जाता है:

  • संयुक्त राष्ट्र (UN) हर वर्ष 30 जुलाई को  इंटरनेशनल फ्रेंडशिप डे  के रूप में मान्यता देता है।

  • भारत सहित कई देशों में यह दिन अगस्त के पहले रविवार को मनाया जाता है।

  • इस वर्ष, भारत में फ्रेंडशिप डे 3 अगस्त 2025 (रविवार) को मनाया जाएगा।

इतिहास और महत्व

 फ्रेंडशिप डे की शुरुआत

20वीं शताब्दी की शुरुआत में हॉलमार्क कार्ड्स के संस्थापक जॉयस हॉल ने मित्रता को समर्पित एक विशेष दिन मनाने का विचार रखा। यह विचार धीरे-धीरे दुनियाभर में लोकप्रिय हो गया।

संयुक्त राष्ट्र की मान्यता

2011 में, संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 30 जुलाई को  इंटरनेशनल फ्रेंडशिप डे घोषित किया। इसका उद्देश्य यह दर्शाना था कि विभिन्न समुदायों, संस्कृतियों और देशों के बीच मित्रता, शांति, सद्भावना और आपसी सम्मान को बढ़ावा देती है।

व्यक्तिगत महत्व

वैश्विक संदेश से परे, मित्रता दिवस हमें यह याद दिलाता है कि हम अपने दोस्तों के साथ अपने संबंधों को मूल्य दें, संवारें और मनाएं। जीवन के उतार-चढ़ाव में दोस्त अक्सर एक मजबूत सहारा बनते हैं, और उनका साथ जीवन को और भी खास बना देता है।

मित्रता दिवस 2025 के उत्सव

पारंपरिक तरीक़े

  • फ्रेंडशिप बैंड और ग्रीटिंग कार्ड्स: मित्रता दिवस पर सबसे आम परंपरा होती है अपने दोस्तों की कलाई पर फ्रेंडशिप बैंड बांधना या उन्हें ग्रीटिंग कार्ड्स देना, जो मित्रता के बंधन का प्रतीक होते हैं।

  • उपहारों का आदान-प्रदान: दोस्त अक्सर एक-दूसरे को छोटे-छोटे उपहार देकर अपनी सराहना व्यक्त करते हैं।

  • समय बिताना: इस दिन को यादगार बनाने के लिए लोग दोस्तों के साथ आउटिंग, पिकनिक या किसी मनोरंजक गतिविधि की योजना बनाते हैं।

आधुनिक तरीक़े

आज के डिजिटल युग में सोशल मीडिया और इंटरनेट ने मित्रता दिवस के उत्सव को और भी व्यापक बना दिया है:

  • डिजिटल शुभकामनाएं और ऑनलाइन संदेशों के माध्यम से लोग अपने दूर बैठे दोस्तों को याद करते हैं।

  • वर्चुअल मीटिंग्स और वीडियो कॉल्स के ज़रिए दोस्त जुड़ते हैं और साथ समय बिताते हैं, भले ही वे भौगोलिक रूप से दूर हों।

इस प्रकार, मित्रता दिवस 2025 आधुनिकता और परंपरा दोनों के रंगों में दोस्तों के लिए खास बनने जा रहा है।

फिलिस्तीन को देश की मान्यता दे सकता है ब्रिटेन

ब्रिटेन के प्रधानमंत्री कीयर स्टारमर ने घोषणा की है कि यदि इज़राइल गाज़ा में जारी संघर्ष को समाप्त करने के लिए तुरंत कदम नहीं उठाता, तो ब्रिटेन फ़िलिस्तीन को एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में मान्यता देगा। हमास के साथ लगभग दो वर्षों से जारी युद्ध के कारण गाज़ा में भीषण मानवीय संकट उत्पन्न हो गया है, जिसमें व्यापक भूखमरी और बर्बादी देखी गई है। यह घोषणा इज़राइल-फ़िलिस्तीन संघर्ष को लेकर ब्रिटेन की विदेश नीति में संभावित बदलाव की ओर संकेत करती है।

इज़राइल के लिए स्टारमर की शर्तें
ब्रिटेन द्वारा फ़िलिस्तीन को मान्यता देने का निर्णय कुछ विशेष शर्तों पर आधारित है, जिन्हें इज़राइल को पूरा करना होगा ताकि इस क़दम को टाला जा सके। इन शर्तों में शामिल हैं:

  • गाज़ा में युद्धविराम: सैन्य कार्रवाई को तत्काल समाप्त करने के लिए ठोस कदम उठाना।

  • वेस्ट बैंक के विलय की योजनाओं पर रोक: वेस्ट बैंक को मिलाने की किसी भी योजना को बंद करने की प्रतिबद्धता।

  • शांति प्रक्रिया में भागीदारी: दो-राष्ट्र समाधान के उद्देश्य से एक सार्थक और ईमानदार शांति प्रक्रिया में शामिल होना।

यदि इज़राइल इन शर्तों को पूरा नहीं करता है, तो ब्रिटेन आगामी संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) सत्र से पहले फ़िलिस्तीन को मान्यता देने की दिशा में आगे बढ़ेगा।

गाज़ा में मानवीय संकट
यह घोषणा एक गहराते मानवीय संकट की पृष्ठभूमि में की गई है:

  • गाज़ा में भूखमरी और खाद्य संकट लगातार फैल रहा है।

  • सैन्य कार्रवाई के चलते आम नागरिकों की मौतें लगातार बढ़ रही हैं।

  • अंतरराष्ट्रीय राहत एजेंसियों ने चेतावनी दी है कि यदि यह संघर्ष जल्द नहीं रुका, तो गाज़ा में मानवीय ढांचा पूरी तरह से ढह सकता है।

वैश्विक परिप्रेक्ष्य और अंतरराष्ट्रीय मान्यता
ब्रिटेन की यह स्थिति उस वैश्विक आंदोलन के अनुरूप है जो फ़िलिस्तीनी राज्य की मान्यता का समर्थन कर रहा है:

  • लगभग 140 देश पहले ही फ़िलिस्तीन को एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में मान्यता दे चुके हैं।

  • हाल ही में फ्रांस ने भी इसी संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) सत्र में फ़िलिस्तीन को मान्यता देने का समर्थन करने का वादा किया है।

  • यह इस बात का संकेत है कि दो-राष्ट्र समाधान को अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्थायी शांति का एकमात्र रास्ता माना जा रहा है।

ब्रिटेन की विदेश नीति पर प्रभाव
स्टारमर की यह घोषणा ब्रिटेन की विदेश नीति में एक संभावित बदलाव को दर्शाती है:

  • फ़िलिस्तीनी राज्य की मान्यता देकर, ब्रिटेन इज़राइल पर युद्धविराम के लिए कूटनीतिक दबाव बढ़ा रहा है।

  • यह निर्णय मानवाधिकार और मानवीय सहायता के प्रति ब्रिटेन की प्रतिबद्धता को दर्शाता है, और गाज़ा में पीड़ित फ़िलिस्तीनियों के प्रति एकजुटता का संकेत देता है।

  • हालांकि, यह कदम ब्रिटेन और इज़राइल के द्विपक्षीय संबंधों में तनाव पैदा कर सकता है, वहीं यह अरब और मुस्लिम-बहुल देशों के साथ संबंधों को मज़बूत कर सकता है।

भारत में पिछले 6 सालों में हुए ₹12 हजार लाख करोड़ से अधिक के डिजिटल लेनदेन

पिछले छह वर्षों में भारत ने डिजिटल अर्थव्यवस्था की दिशा में उल्लेखनीय प्रगति की है। सरकार के अनुसार, वित्त वर्ष 2019 से वित्त वर्ष 2025 के बीच देश में 65,000 करोड़ से अधिक डिजिटल भुगतान लेनदेन दर्ज किए गए, जिनका कुल मूल्य ₹12,000 ट्रिलियन (लाख करोड़) से अधिक रहा।इस तेज़ वृद्धि का मुख्य कारण यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (UPI) और सरकार द्वारा शुरू की गई लक्षित नीतियां हैं। इन पहलों ने वित्तीय समावेशन को व्यापक रूप से बढ़ावा दिया है, जिससे छोटे शहरों, गांवों और वंचित समुदायों तक डिजिटल भुगतान की पहुंच सुनिश्चित हो पाई है।

डिजिटल लेनदेन का विस्तार और प्रभाव

वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी ने लोकसभा में लिखित उत्तर में बताया कि डिजिटल लेनदेन अब महानगरों तक ही सीमित नहीं हैं, बल्कि उन्होंने दूर-दराज़ के क्षेत्रों और लाखों छोटे दुकानदारों व ग्रामीण उपयोगकर्ताओं को औपचारिक अर्थव्यवस्था से जोड़ा है।

  • वित्त वर्ष 2019 से 2025 के बीच 65,000 करोड़ डिजिटल लेनदेन दर्ज हुए।

  • इनका कुल मूल्य ₹12,000 ट्रिलियन रहा।

  • इससे नकदी पर निर्भरता घटी और भारत की औपचारिक वित्तीय व्यवस्था सशक्त हुई।

सरकारी और संस्थागत प्रयास

डिजिटल भुगतान को बढ़ावा देने में सरकार, भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI), नेशनल पेमेंट्स कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया (NPCI), फिनटेक कंपनियों, बैंकों और राज्य सरकारों की सामूहिक भूमिका रही है।

पेमेंट्स इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट फंड (PIDF)

  • RBI द्वारा 2021 में शुरू किया गया, विशेष रूप से छोटे शहरों, पूर्वोत्तर, जम्मू-कश्मीर और दूरदराज़ इलाकों में डिजिटल भुगतान अवसंरचना को बढ़ावा देने हेतु।

  • 31 मई 2025 तक, देशभर में 4.77 करोड़ डिजिटल टच-प्वाइंट स्थापित किए गए।

RBI का डिजिटल पेमेंट्स इंडेक्स (DPI)

  • मार्च 2018 को आधार मानकर शुरू किया गया (इंडेक्स = 100)।

  • सितंबर 2024 तक यह इंडेक्स 465.33 तक पहुंच गया, जो देश में डिजिटल भुगतान की प्रगति को दर्शाता है।

MSME और छोटे व्यापारियों को समर्थन

सरकार, RBI और NPCI ने छोटे व्यवसायों और सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों (MSMEs) को डिजिटल भुगतान अपनाने में सहायता के लिए कई पहलें शुरू कीं:

  • छोटे व्यापारियों में कम मूल्य के BHIM-UPI लेनदेन पर प्रोत्साहन योजनाएं

  • TReDS दिशानिर्देश, जिससे MSMEs अपने चालान प्रतिस्पर्धी दरों पर छूटवा सकें

  • डेबिट कार्ड लेनदेन पर मर्चेंट डिस्काउंट रेट (MDR) का युक्तिकरण, जिससे छोटे व्यापारियों की लागत कम हुई

वित्तीय समावेशन पर प्रभाव

डिजिटल भुगतान ने विशेष रूप से वंचित और दूरस्थ समुदायों के लिए वित्तीय पहुंच को पूरी तरह से बदल दिया है:

  • UPI जैसे प्लेटफार्मों के माध्यम से व्यक्ति और छोटे व्यवसाय अब आसान, पारदर्शी और विश्वसनीय लेनदेन कर पा रहे हैं।

  • डिजिटल लेनदेन इतिहास के ज़रिए बैंकों को वैकल्पिक डेटा मिल रहा है, जिससे बिना पारंपरिक दस्तावेज़ों वाले ग्राहकों को भी ऋण की पहुंच संभव हो रही है।

  • यह सब भारत को एक समावेशी और सशक्त डिजिटल वित्तीय पारिस्थितिकी तंत्र की ओर ले जा रहा है।

वित्त वर्ष 2021-2025 में कम बैंक बैलेंस के लिए 11 सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने कितना जुर्माना वसूला?

वित्त वर्ष 2020-21 से 2024-25 के बीच, भारत के ग्यारह सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (PSBs) ने बचत खातों में न्यूनतम शेष राशि बनाए न रखने पर ग्राहकों से लगभग ₹9,000 करोड़ का जुर्माना वसूला। यह जानकारी वित्त मंत्रालय ने राज्यसभा में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे द्वारा पूछे गए एक प्रश्न के उत्तर में साझा की। इस खुलासे ने इस जुर्माने की न्यायसंगतता को लेकर फिर से बहस छेड़ दी है, खासकर जब इसका सीधा असर अर्ध-शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के ग्राहकों पर पड़ता है।

न्यूनतम शेष राशि पर जुर्माना समाप्त करने की पहल

जिन प्रमुख बैंकों ने शुल्क हटाए
भारतीय स्टेट बैंक (SBI) ने मार्च 2020 में ही औसत मासिक न्यूनतम शेष राशि पर जुर्माना लगाना बंद कर दिया था। इसके बाद, केनरा बैंक, बैंक ऑफ बड़ौदा, पंजाब नेशनल बैंक, इंडियन बैंक, बैंक ऑफ इंडिया, सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया और यूनियन बैंक ऑफ इंडिया ने भी FY26 की दूसरी तिमाही से यह शुल्क समाप्त कर दिया। हालांकि, निजी क्षेत्र के बैंक, जो सार्वजनिक बैंकों की तुलना में अधिक शुल्क वसूलते हैं, अब तक इस जुर्माने को माफ नहीं कर पाए हैं।

जुर्माने के पीछे का तर्क
कुछ बैंक मासिक औसत शेष राशि न बनाए रखने पर शुल्क लगाते थे, जबकि अन्य तिमाही आधार पर दंड वसूलते थे। हालांकि, कुछ खातों को न्यूनतम शेष राशि से छूट दी गई थी, जैसे:

  • प्रधानमंत्री जन धन योजना (PMJDY) खाते

  • बेसिक सेविंग बैंक डिपॉज़िट अकाउंट्स (BSBDA)

  • वेतन खाते

  • अन्य विशेष श्रेणियों के खाते

सरकार का रुख और परामर्श
राज्यसभा में उत्तर देते हुए वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी ने बताया कि वित्तीय सेवा विभाग (DFS) ने बैंकों को जुर्माने के शुल्क को युक्तिसंगत बनाने की सलाह दी है, खासकर अर्ध-शहरी और ग्रामीण ग्राहकों को राहत देने पर जोर दिया गया है। 11 में से 7 सार्वजनिक बैंकों ने इस सलाह को लागू कर दिया है, जबकि शेष 4 जल्द ही इसका पालन करेंगे।

RBI की दिशानिर्देश
भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने इन शुल्कों को लेकर दिशानिर्देश बनाए हैं। बैंक अपने बोर्ड द्वारा स्वीकृत नीति के अनुसार जुर्माने का निर्धारण कर सकते हैं। यह शुल्क, खाते में न्यूनतम आवश्यक राशि और वास्तविक शेष राशि के बीच के अंतर के आधार पर एक निश्चित प्रतिशत के रूप में वसूलना चाहिए। RBI ने यह भी कहा है कि ग्राहक सेवा में पारदर्शिता और निष्पक्षता सुनिश्चित की जानी चाहिए।

ग्राहकों पर प्रभाव

इन जुर्मानों को लेकर काफी विवाद रहा है —
शहरी ग्राहकों के लिए न्यूनतम शेष राशि बनाए रखना आमतौर पर संभव होता है,
लेकिन अर्ध-शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के ग्राहकों के लिए यह एक अतिरिक्त वित्तीय बोझ बन जाता है।
DFS की सलाह और RBI के दिशा-निर्देश इन कमजोर वर्गों की रक्षा करते हुए, बैंकों को सेवा लागत की वसूली का संतुलन बनाए रखने में मदद करते हैं।

निजी क्षेत्र वित्त वर्ष 28 तक थर्मल पावर में ₹77,000 करोड़ का निवेश करेगा: क्रिसिल

भारत के ऊर्जा क्षेत्र के लिए एक अहम विकास के रूप में, थर्मल पावर उद्योग में वित्त वर्ष 2026 से 2028 के बीच निजी क्षेत्र की कंपनियों द्वारा ₹77,000 करोड़ का निवेश किया जाएगा। यह जानकारी क्रिसिल रेटिंग्स की एक रिपोर्ट में सामने आई है। यह बदलाव खास है क्योंकि अदानी पावर, टाटा पावर, JSW एनर्जी और वेदांता पावर जैसी निजी कंपनियाँ अब देश की थर्मल पावर क्षमता को मज़बूत करने में अग्रणी भूमिका निभा रही हैं। अधिकांश परियोजनाएँ ब्राउनफील्ड मॉडल पर आधारित होंगी, जिससे भूमि अधिग्रहण जैसी जटिलताओं से बचा जा सकेगा और परियोजनाओं को तेजी से क्रियान्वित किया जा सकेगा।

थर्मल पावर निवेश में दोगुनी वृद्धि

आगामी तीन वर्षों में सार्वजनिक और निजी परियोजनाओं सहित थर्मल पावर क्षेत्र में कुल निवेश बढ़कर ₹2.3 लाख करोड़ होने की उम्मीद है।
अब तक जहां निजी क्षेत्र की हिस्सेदारी सिर्फ 7–8% थी, वह अब बढ़कर कुल निवेश का लगभग एक-तिहाई हो जाएगी।
यह कोयला-आधारित परियोजनाओं में एक दशक की सुस्ती के बाद निजी क्षेत्र की वापसी और रुचि को दर्शाता है।

निजी क्षेत्र की भागीदारी बढ़ने के मुख्य कारण

1. दीर्घकालिक विद्युत खरीद समझौते (PPAs):

  • 10 वर्षों में पहली बार, चार राज्य वितरण कंपनियों (Discoms) ने निजी थर्मल उत्पादकों के साथ 25 वर्षीय PPA पर हस्ताक्षर किए हैं।

  • ये समझौते निवेशकों के लिए वित्तीय जोखिम कम करते हैं।

  • इससे स्थिर राजस्व सुनिश्चित होता है और थर्मल परियोजनाओं की व्यवहार्यता बेहतर होती है।

2. बिजली की बढ़ती मांग:

  • भारत की बिजली मांग वर्ष 2031–32 तक 366 गीगावॉट (GW) तक पहुँचने की संभावना है।

  • सौर और पवन जैसे नवीकरणीय स्रोत इस मांग का लगभग 70% पूरा करेंगे, लेकिन इनकी अंतराल प्रकृति (intermittency) के कारण 24×7 आपूर्ति के लिए थर्मल पावर जरूरी होगा।

  • सरकार ने 2032 तक 80 GW नई कोयला आधारित थर्मल क्षमता की योजना बनाई है, जिसमें से 60 GW की पहल पहले ही हो चुकी है।

निजी क्षेत्र की मुख्य भागीदारी

ब्राउनफील्ड परियोजनाओं पर फोकस:

  • अधिकांश नई क्षमता ब्राउनफील्ड विस्तार के रूप में विकसित की जाएगी, जिससे:

    • भूमि अधिग्रहण में देरी से बचा जा सकेगा।

    • मौजूदा बुनियादी ढांचे और कोयला स्रोतों से जुड़ाव (pit-head linkages) का उपयोग होगा, जिससे तेजी से कार्यान्वयन संभव होगा।

मुख्य कंपनियाँ:

  • अदानी पावर, टाटा पावर, JSW एनर्जी और वेदांता पावर इस विस्तार के प्रमुख खिलाड़ी हैं।

  • ये कंपनियाँ वित्तीय व्यवहार्यता और परिचालन दक्षता को ध्यान में रखते हुए परियोजनाओं में निवेश कर रही हैं।

वेदांता पावर की रणनीतिक योजना

विभाजन (Demerger) और विस्तार योजना:

  • वेदांता पावर एक स्वतंत्र इकाई के रूप में संचालन के लिए डिमर्जर की तैयारी कर रही है।

  • दीर्घकालिक योजना के तहत 15 GW क्षमता जोड़ने की योजना है, मुख्यतः ब्राउनफील्ड परियोजनाओं के ज़रिए।

मौजूदा पोर्टफोलियो का पुनर्जीवन:

  • 2,200 मेगावाट (MW) की परियोजनाओं को फिर से सक्रिय किया जा रहा है:

    • 1,200 MW – छत्तीसगढ़ थर्मल पावर प्लांट (पूर्व में एथेना)।

    • 1,000 MW – मीनाक्षी संयंत्र, दोनों में कोयला निकटता (pit-head advantage) और मौजूदा सप्लाई लिंक है।

वित्तीय दृष्टिकोण:

  • आगामी परियोजनाएँ ₹5.5–₹5.8 प्रति यूनिट की टैरिफ संरचना पर संचालित होंगी।

  • दो-भागीय टैरिफ प्रणाली में:

    • 60% भाग तय शुल्क (fixed charge) के रूप में होगा, जिससे स्थिर रिटर्न सुनिश्चित हो सकेगा।

    • शेष लागत-आधारित मूल्य निर्धारण पर आधारित होगा।

  • इन परियोजनाओं से 15% का आंतरिक प्रतिफल (IRR) प्राप्त होने की संभावना है, जिससे ये आकर्षक और समय पर निष्पादन योग्य बनती हैं।

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