भारत में दुनिया के सबसे अनोखे ब्लड ग्रुप CRIB की खोज

रक्ताधान चिकित्सा के क्षेत्र में एक ऐतिहासिक सफलता के रूप में, भारत और ब्रिटेन के वैज्ञानिकों ने बेंगलुरु के निकट कोलार की एक 38 वर्षीय महिला में दुनिया के सबसे दुर्लभ रक्त समूह, CRIB, की पहचान की है। वैश्विक स्वास्थ्य सेवा में एक मील का पत्थर मानी जा रही यह खोज दुनिया भर में गहन देखभाल, प्रसवपूर्व निदान और रक्तदान प्रोटोकॉल में बदलाव ला सकती है।

दुर्लभ खोज

बेंगलुरु के मणिपाल अस्पताल में इलाज करा रही एक महिला में ऐसा रक्त समूह पाया गया जो किसी भी ज्ञात डोनर सैंपल से मेल नहीं खाता था। 20 पारिवारिक सदस्यों के नमूनों की जांच के बावजूद भी कोई उपयुक्त रक्त नहीं मिला।

  • महिला के रक्त में पैनरिएक्टिविटी (Panreactivity) पाई गई — यानी वह हर ज्ञात रक्त सैंपल से असंगत था।
  • परिणामस्वरूप, डॉक्टरों ने बिना रक्त चढ़ाए ही सर्जरी करने का जोखिम भरा निर्णय लिया, जो अत्यंत दुर्लभ होता है।
  • गहन परीक्षण के बाद विशेषज्ञों ने एक नए एंटीजन की पुष्टि की, जिसे अब CRIB रक्त समूह के रूप में वर्गीकृत किया गया है।

CRIB रक्त समूह क्या है?

CRIB एक नया और अत्यंत दुर्लभ रक्त समूह है, जो Cromer रक्त समूह प्रणाली के अंतर्गत आता है। यह अब तक का सबसे दुर्लभ रक्त समूह माना जा रहा है, और पूरी दुनिया में केवल एक ही ज्ञात मामला — यही महिला — सामने आया है।

  • CR का अर्थ है Cromer (रक्त समूह प्रणाली)

  • IB का अर्थ है India और Bengaluru, जहां इसे पहली बार पहचाना गया

  • यह Indian Rare Antigen (INRA) प्रणाली का हिस्सा है, जिसे 2022 में International Society of Blood Transfusion (ISBT) द्वारा मान्यता दी गई थी।

CRIB समूह में वह एंटीजन मौजूद नहीं है, जो लगभग सभी मनुष्यों में पाया जाता है — इसीलिए अनुकूल डोनर ढूंढना लगभग असंभव होता है।

CRIB क्यों है इतना अनोखा?

डॉ. सी. शिवराम (हेड, ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन, मणिपाल अस्पताल) के अनुसार:

  • इंसानी शरीर ABO और Rh के अलावा 47 रक्त समूह प्रणालियों के माध्यम से रक्त पहचानता है।

  • इस महिला के रक्त में Cromer प्रणाली का एक पूरी तरह नया एंटीजन था, जिससे उसका शरीर किसी भी रक्त को स्वीकार नहीं कर सका।

  • यह साबित करता है कि यह एंटीजन इतना अनोखा है कि दुनिया में किसी भी रक्त बैंक में मेल खाने वाला डोनर नहीं है।

आश्चर्य की बात यह है कि महिला को पहले कभी रक्त चढ़ाया नहीं गया था, फिर भी उसके रक्त में ऐसे एंटीबॉडी बन गए जो हर रक्त सैंपल को अस्वीकार करते हैं।

Cromer रक्त समूह प्रणाली

यह प्रणाली कई प्रकार के एंटीजन को समाहित करती है, जिनमें से कुछ सामान्य होते हैं और कुछ अत्यंत दुर्लभ।
इन दुर्लभ एंटीजन के विरुद्ध एंटीबॉडी अक्सर निम्न कारणों से बनती हैं:

  • गर्भावस्था

  • पूर्व रक्त चढ़ाव

  • आनुवंशिक परिवर्तन

वैज्ञानिक और वैश्विक महत्व

CRIB रक्त समूह की खोज का महत्त्व दूरगामी है:

  • यह गंभीर चिकित्सा परिस्थितियों में रक्त की असंगतियों की समझ को बढ़ाता है

  • यह गर्भकालीन और नवजात रक्त रोगों की रोकथाम में सहायक हो सकता है

  • यह दुर्लभ रक्त डोनर रजिस्ट्री के अंतरराष्ट्रीय सहयोग को प्रेरित करेगा

  • यह भारत को दुर्लभ रक्त विज्ञान अनुसंधान में अग्रणी बना सकता है

FIFA ने हैदराबाद में शुरू की महिलाओं के लिए भारत में पहली टैलेंट अकैडमी

भारतीय फ़ुटबॉल के लिए एक ऐतिहासिक क्षण में, अखिल भारतीय फ़ुटबॉल महासंघ (एआईएफएफ) और फीफा ने हैदराबाद, तेलंगाना में लड़कियों के लिए देश की पहली फीफा टैलेंट अकादमी शुरू करने के लिए हाथ मिलाया है। इस पहल का उद्देश्य भारत में महिला फ़ुटबॉल के भविष्य को बदलना है, और उभरती प्रतिभाओं को विश्वस्तरीय बुनियादी ढाँचा, प्रशिक्षण और समग्र विकास के अवसर प्रदान करना है।

महत्वपूर्ण समझौता

  • तेलंगाना स्पोर्ट्स कॉन्क्लेव, हैदराबाद में इस अकादमी के लिए समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किए गए। इस कार्यक्रम में तेलंगाना के मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी और एआईएफएफ (AIFF) के अध्यक्ष कल्याण चौबे उपस्थित रहे।
  • यह अकादमी FIFA की टैलेंट डेवलपमेंट स्कीम (TDS) का हिस्सा है — जो विश्व स्तर पर युवा फुटबॉल प्रतिभाओं को तराशने के लिए शुरू की गई पहल है।
  • हैदराबाद के गाचीबौली स्टेडियम परिसर को अकादमी का आधार बनाया गया है, जहाँ हर वर्ष 30 लड़कों और 30 लड़कियों को आवासीय सुविधा, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, चिकित्सा देखभाल, पोषण एवं मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी सेवाएं प्रदान की जाएंगी।

महिला फुटबॉल के लिए एक बदलावकारी पहल

  • यह अकादमी खासकर लड़कियों के लिए फुटबॉल में एक क्रांतिकारी कदम है।
  • यह न केवल भारत की पहली फीफा प्रतिभा अकादमी है, बल्कि फीफा की TDS योजना के तहत दुनिया भर में भी ऐसी गिनी-चुनी अकादमियों में से एक है।
  • अब तेलंगाना और अन्य राज्यों की प्रतिभाशाली लड़कियों को विश्वस्तरीय बुनियादी ढांचे, शिक्षा और अंतरराष्ट्रीय मंच तक पहुँच का अवसर मिलेगा।
  • इससे युवा खिलाड़ियों को प्रतिस्पर्धात्मक फुटबॉल खेलने और भारत का प्रतिनिधित्व करने की दिशा में प्रेरणा मिलेगी।

AIFF का विजन: FIFA U-17 विश्व कप तक की राह

यह अकादमी भारत के FIFA अंडर-17 पुरुषों और महिलाओं के विश्व कप में क्वालिफाई करने के सपने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
भारत में लड़कियों के लिए पहली और लड़कों के लिए दूसरी फीफा अकादमी की शुरुआत समावेशी फुटबॉल विकास की दिशा में एक ऐतिहासिक मोड़ है। यह पहल देशभर के युवाओं, विशेषकर लड़कियों, की प्रतिभा को पहचानने, तराशने और सशक्त करने की हमारी साझा प्रतिबद्धता को दर्शाती है।

वैश्विक स्तर पर पहल का महत्व

हैदराबाद की यह अकादमी फीफा की TDS योजना के तहत वैश्विक मान्यता प्राप्त कुछ चुनिंदा अकादमियों में शामिल है।
इसकी सफलता से भविष्य में भारत में और भी ऐसी अकादमियों के द्वार खुल सकते हैं, जिससे भारत वैश्विक फुटबॉल परिदृश्य में एक मजबूत दावेदार बन सकेगा।

समग्र विकास की ओर कदम

यह अकादमी केवल फुटबॉल प्रशिक्षण तक सीमित नहीं होगी, बल्कि खेल विज्ञान, पोषण, मानसिक स्वास्थ्य और औपचारिक शिक्षा के समन्वय के साथ एक 360-डिग्री प्रशिक्षण पारिस्थितिकी तंत्र प्रदान करेगी — जो भारत के युवा फुटबॉलरों को विश्वस्तरीय एथलीट में बदलने का मार्ग प्रशस्त करेगी।

आयुष मंत्रालय ने औषधीय पौधों के संरक्षण को बढ़ावा देने हेतु दो ऐतिहासिक समझौते किए

भारत की औषधीय पौधों की समृद्ध विरासत के संरक्षण और उनके लाभों के बारे में ज्ञान के प्रसार की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए, आयुष मंत्रालय के अंतर्गत राष्ट्रीय औषधीय पादप बोर्ड (एनएमपीबी) ने दो महत्वपूर्ण समझौता ज्ञापनों (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए हैं। इस पहल का उद्देश्य न केवल दुर्लभ औषधीय प्रजातियों का संरक्षण करना है, बल्कि स्वास्थ्य सेवा में उनकी भूमिका के बारे में जन जागरूकता भी बढ़ाना है। हस्ताक्षर समारोह नई दिल्ली स्थित निर्माण भवन में केंद्रीय आयुष राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) और स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण राज्य मंत्री प्रतापराव जाधव की उपस्थिति में आयोजित किया गया।

ईशवेद-बायोप्लांट्स वेंचर के साथ समझौता

पहला समझौता राष्ट्रीय औषधीय पादप बोर्ड (एनएमपीबी) और पुणे स्थित ईशवेद-बायोप्लांट्स वेंचर के बीच हुआ। यह समझौता दुर्लभ, संकटग्रस्त और विलुप्तप्राय (RET) औषधीय पौधों के जर्मप्लाज्म के संरक्षण पर केंद्रित है, जिसमें टिशू कल्चर तकनीक का उपयोग किया जाएगा। यह पहल आयुष क्षेत्र के लिए आवश्यक पौधों की दीर्घकालिक उपलब्धता सुनिश्चित करने में मदद करेगी। आधुनिक तकनीकों के माध्यम से, यह परियोजना एक टिकाऊ आपूर्ति श्रृंखला विकसित करने की दिशा में एक बड़ा कदम है।

राष्ट्रीय औषधीय पादप उद्यान के लिए त्रिपक्षीय समझौता

  • दूसरा समझौता एक त्रिपक्षीय एमओयू है, जिसे एनएमपीबी, अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान (AIIA), और एम्स (AIIMS) नई दिल्ली के बीच हस्ताक्षरित किया गया है।
  • इस सहयोग की प्रमुख पहल एम्स परिसर में राष्ट्रीय औषधीय पादप उद्यान की स्थापना है।
  • यह उद्यान रोगियों, छात्रों और आगंतुकों के लिए औषधीय पौधों की उपचारात्मक क्षमताओं को समझने हेतु एक शैक्षिक और जागरूकता केंद्र के रूप में कार्य करेगा।
  • यह जीवंत संसाधन केंद्र पारंपरिक चिकित्सा ज्ञान को आधुनिक स्वास्थ्य प्रणाली के साथ जोड़ने को बढ़ावा देगा।

स्वस्थ और आत्मनिर्भर भारत की ओर

ये समझौते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 2047 तक स्वस्थ और आत्मनिर्भर भारत के विजन के अनुरूप हैं। ये पहल न केवल भारत की समृद्ध औषधीय वनस्पति विरासत को संरक्षित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम हैं, बल्कि आधुनिक स्वास्थ्य प्रणाली में उनके समावेश को भी सशक्त करती हैं।

ICRISAT ने छोटे किसानों के लिए एआई-सक्षम जलवायु सलाह सेवा शुरू की

जलवायु-प्रतिरोधी कृषि को मज़बूत करने की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए, अर्ध-शुष्क उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों के लिए अंतर्राष्ट्रीय फसल अनुसंधान संस्थान (ICRISAT) ने भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) और अन्य सहयोगियों के साथ मिलकर एक नई AI-संचालित जलवायु परामर्श सेवा शुरू की है। हैदराबाद में एक कार्यशाला में शुरू की गई इस पहल का उद्देश्य छोटे किसानों को व्यक्तिगत, वास्तविक समय की जलवायु संबंधी जानकारी प्रदान करके उन्हें सशक्त बनाना है, जिससे उन्हें जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में बेहतर निर्णय लेने में मदद मिल सके।

किसानों के लिए एआई-सक्षम सलाह सेवा

  • इस परियोजना का नाम है “जलवायु-लचीली कृषि के लिए बड़े पैमाने पर संदर्भ-विशिष्ट एग्रोमेट सलाह सेवाओं हेतु एआई-सक्षम प्रणाली”, जिसे भारत सरकार के मानसून मिशन-III के तहत समर्थन मिला है।
  • यह परियोजना कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) और मशीन लर्निंग (ML) तकनीकों का उपयोग कर किसानों को अत्यंत स्थानीय और उपयोगी मौसम संबंधी जानकारी प्रदान करेगी।
  • सलाह सेवाएं आसान डिजिटल प्लेटफॉर्म्स, जैसे कि एआई-सक्षम व्हाट्सएप बॉट, के ज़रिए दी जाएंगी, जिससे दूर-दराज़ ग्रामीण क्षेत्रों के किसान भी इन तक आसानी से पहुंच सकें।

महाराष्ट्र में पायलट परियोजना

  • इस योजना की शुरुआत महाराष्ट्र में होगी, जहां आईसीएआर के एग्रो-मौसमीय फील्ड यूनिट्स (AMFUs) इन सलाहों को छोटे किसानों तक पहुंचाएंगे।
  • पायलट चरण में सलाहों की प्रभावशीलता और किसानों की प्रतिक्रिया को मापा जाएगा, जिससे इसे राष्ट्रीय स्तर पर लागू करने की दिशा में मार्गदर्शन मिलेगा।
  • यह मॉडल भविष्य में अन्य विकासशील देशों के किसानों के लिए साउथ-साउथ सहयोग मॉडल के रूप में भी विस्तारित किया जा सकता है।

जलवायु-लचीली कृषि की दिशा में कदम

बदलते मानसून और जलवायु संकटों को देखते हुए यह पहल कई तरह से किसानों की मदद करेगी:

  • समय पर मौसम चेतावनियों से फसल नुकसान को कम करना

  • बुवाई, सिंचाई और कटाई की बेहतर योजना बनाना

  • डेटा-आधारित निर्णयों के ज़रिए सतत कृषि को बढ़ावा देना

यह पहल भारत में कृषि की जलवायु अनुकूलता को मजबूत बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

हिरोशिमा दिवस 2025: जानें इस काले दिन के बारे में रोचक तथ्य

हर साल 6 अगस्त को, दुनिया द्वितीय विश्व युद्ध के उस विनाशकारी क्षण को याद करने के लिए हिरोशिमा दिवस मनाती है, जब 1945 में संयुक्त राज्य अमेरिका ने जापानी शहर हिरोशिमा पर परमाणु बम गिराया था। इस घटना ने मानवता पर गहरे घाव छोड़े, हज़ारों लोग तुरंत मारे गए और बचे हुए लोग दीर्घकालिक विकिरण प्रभावों से पीड़ित रहे। 2025 में हिरोशिमा दिवस मनाने के साथ, यह न केवल उस अपार क्षति की याद दिलाता है, बल्कि वैश्विक शांति, परमाणु निरस्त्रीकरण और परमाणु विनाश के भय से मुक्त विश्व की तत्काल आवश्यकता की भी याद दिलाता है।

विनाशकारी घटना और उसका प्रभाव
6 अगस्त 1945 को हिरोशिमा पर परमाणु बम गिराए जाने के साथ, मानव इतिहास ने अभूतपूर्व तबाही देखी। तीन दिन बाद नागासाकी पर दूसरा हमला हुआ।

  • इस धमाके में हज़ारों लोग तत्काल मारे गए,

  • और जो बचे उन्हें ‘हिबाकुशा’ कहा गया, जिन्हें जीवनभर विकिरण जनित बीमारियों, मानसिक आघात और स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ा।

यह घटना केवल द्वितीय विश्व युद्ध का अंत नहीं थी, बल्कि इसने परमाणु युग की शुरुआत की, जिसने विश्व राजनीति और सुरक्षा को सदा के लिए बदल दिया।

हिरोशिमा दिवस का उद्देश्य
इस दिवस का उद्देश्य है –

  • शांति, अहिंसा और परमाणु निरस्त्रीकरण के प्रति प्रतिबद्धता को दोहराना।

  • यह दिन लोगों को परमाणु हथियारों की भयावहता के बारे में जागरूक करता है,

  • और पीड़ितों व बचे हुए लोगों को सम्मान देता है।

यह एक वैश्विक मंच बन गया है, जहाँ हम परमाणु युद्ध की कीमत को याद करते हैं और यह सुनिश्चित करने का संकल्प लेते हैं कि ऐसी त्रासदी फिर कभी न हो।

2025 की स्मृति और आयोजन
हिरोशिमा दिवस 2025 पर विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं:

  • हिरोशिमा पीस मेमोरियल पार्क में मौन श्रद्धांजलि,

  • शांति की प्रतीक कागज़ की लालटेन छोड़ना,

  • प्रार्थनाएं,

  • शैक्षिक कार्यक्रम,

  • और प्रदर्शनियां शामिल हैं।

दुनियाभर में छात्र, नीतिनिर्माता, और शांति संगठनों द्वारा परमाणु निरस्त्रीकरण पर चर्चाएं और जागरूकता अभियान भी चलाए जा रहे हैं।

वर्तमान और भविष्य के लिए महत्त्व
हिरोशिमा दिवस 2025 केवल अतीत की याद नहीं है, बल्कि यह एक नैतिक, ऐतिहासिक और राजनीतिक संदेश भी है:

  • यह बढ़ते वैश्विक तनावों के बीच, राष्ट्रों से एकजुट होकर शांति का मार्ग अपनाने की अपील करता है।

  • यह याद दिलाता है कि संवाद और कूटनीति, युद्ध और विनाश से कहीं अधिक शक्तिशाली होते हैं।

यह दिन आने वाली पीढ़ियों के लिए एक सुरक्षित, परमाणु मुक्त भविष्य सुनिश्चित करने का आह्वान करता है।

उत्तरकाशी जिले में बादल फटने से धराली गांव में भारी तबाही

हाल ही में उत्तराखंड के उत्तरकाशी ज़िले के धाराली गाँव में खीर गंगा नदी के ऊपरी जलग्रहण क्षेत्र में बादल फटने से आई भीषण फ्लैश फ्लड (आकस्मिक बाढ़) ने भारी तबाही मचाई। गंगोत्री धाम की तीर्थयात्रा पर जाने वाले यात्रियों के लिए एक महत्वपूर्ण पड़ाव माने जाने वाला यह गाँव, मूसलाधार पानी की चपेट में आ गया, जिससे घरों, दुकानों और सड़कों को भारी नुकसान पहुँचा। बाढ़ के पानी के साथ आई कीचड़, मलबा और विनाश की तस्वीरें गाँव में चारों ओर फैली नजर आईं, जिससे पूरे क्षेत्र में निराशा और भय का माहौल छा गया है।

फ्लैश फ्लड का कारण
प्रारंभिक रिपोर्टों के अनुसार, खीर गंगा नदी के ऊपरी क्षेत्रों में बादल फटने की घटना हुई, जिससे हर्सिल क्षेत्र में खीर गढ़ का जलस्तर अचानक तेज़ी से बढ़ गया। इस अचानक बढ़े जलप्रवाह ने धाराली गाँव में तबाही मचा दी, जिससे भीषण बाढ़ और व्यापक विनाश हुआ।

तबाही की भयावह तस्वीर
तेज़ बहाव वाले बाढ़ के पानी ने धाराली गाँव को तहस-नहस कर दिया।

  • कई घरों, दुकानों और सड़कों को बर्बाद कर दिया गया।

  • होटल और होमस्टे पूरी तरह ध्वस्त हो गए।

  • स्थानीय लोगों को आशंका है कि 10 से 12 मज़दूर मलबे में दबे हो सकते हैं, जो ढह गई इमारतों के नीचे फंसे हैं।

  • घटनास्थल से आई वीडियो और तस्वीरों में प्रकृति की बेकाबू शक्ति साफ देखी जा सकती है।

जीविका को हुआ नुकसान
धाराली के अलावा, बड़कोट तहसील के बनाला पट्टी क्षेत्र में कुड गधेरे के उफान से 18 बकरियां बह गईं, जिससे स्थानीय पशुपालकों को भारी आर्थिक नुकसान हुआ। यह घटना दर्शाती है कि हिमालयी क्षेत्रों में प्राकृतिक आपदाएं मानव जीवन के साथ-साथ ग्रामीण अर्थव्यवस्था को भी गहरा आघात पहुँचाती हैं।

राहत और बचाव कार्य
आपदा के तुरंत बाद:

  • राज्य आपदा प्रतिक्रिया बल (SDRF) की टीमें मौके पर पहुँचीं।

  • सेना की इकाइयों ने भी राहत और निकासी कार्यों में सहयोग शुरू किया।

  • हर्सिल और भटवाड़ी के स्थानीय प्रशासन ने राहत सामग्री और संसाधन जुटाने शुरू किए।

टीमें अब भी मलबे में दबे मज़दूरों को खोजने और बचाने के लिए संघर्ष कर रही हैं, लेकिन खराब मौसम, तेज़ बहाव और दुर्गम भौगोलिक स्थिति कार्य में बाधा बन रही है।

मौसम विभाग की चेतावनी
भारतीय मौसम विभाग (IMD) ने 10 अगस्त तक भारी बारिश की चेतावनी जारी की है। विशेषकर पहाड़ी क्षेत्रों में ज़ोरदार बारिश के चलते भूस्खलन, बाढ़ और सड़क अवरोधों का खतरा बना हुआ है। प्रशासन ने स्थानीय निवासियों और तीर्थयात्रियों से अनावश्यक यात्रा से बचने की अपील की है।

आगे की चुनौतियाँ

  • धाराली की पहुंच में कठिनाई के कारण भारी बचाव उपकरण वहाँ नहीं पहुँच पा रहे हैं।

  • लगातार बारिश राहत कार्यों में रुकावट डाल रही है और द्वितीयक आपदाओं का खतरा बढ़ा रही है।

  • कुछ प्रभावित क्षेत्रों में संचार व्यवस्था ठप हो गई है, जिससे समन्वय में दिक्कतें आ रही हैं।

यह घटना एक बार फिर हिमालयी क्षेत्रों की भौगोलिक संवेदनशीलता और जलवायु जोखिमों को उजागर करती है, जिनसे निपटने के लिए ठोस रणनीति और त्वरित प्रतिक्रिया तंत्र की आवश्यकता है।

भारतीय तीरंदाजी संघ ने तीरंदाजी लीग के पहले सत्र की घोषणा की

भारतीय तीरंदाजी संघ (एएआई) ने देश की पहली फ्रैंचाइज़ी-आधारित तीरंदाजी लीग के शुभारंभ की घोषणा की है, जिसमें कंपाउंड और रिकर्व दोनों तीरंदाज भाग लेंगे। अक्टूबर 2025 में होने वाला यह आयोजन दिल्ली के यमुना स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स में 11 दिनों तक चलेगा, जो भारतीय तीरंदाजी के लिए एक ऐतिहासिक क्षण होगा।

फ्रेंचाइज़ी-आधारित तीरंदाज़ी लीग

भारत में तीरंदाज़ी को नया रूप देने के उद्देश्य से एक नई फ्रेंचाइज़ी-स्टाइल टूर्नामेंट की शुरुआत की जा रही है, जिसमें छह टीमों को शामिल किया जाएगा। प्रत्येक टीम में इन खिलाड़ियों का समावेश होगा:

  • भारत के शीर्ष तीरंदाज़, जिनमें ओलंपिक और राष्ट्रीय पदक विजेता शामिल हैं

  • विदेशी खिलाड़ी, जिनमें कुछ दुनिया की शीर्ष 10 रैंकिंग में शामिल तीरंदाज़ भी होंगे

इस प्रारूप का उद्देश्य घरेलू प्रतिभा को अंतरराष्ट्रीय अनुभव के साथ मिलाकर प्रतिस्पर्धात्मक और मनोरंजक मंच तैयार करना है।

वैश्विक और राष्ट्रीय संस्थाओं का समर्थन

इस पहल को निम्नलिखित संगठनों से मजबूत समर्थन प्राप्त हुआ है:

  • वर्ल्ड आर्चरी (World Archery)

  • वर्ल्ड आर्चरी एशिया (World Archery Asia)

  • भारत का खेल मंत्रालय

यह समर्थन लीग की वैश्विक मान्यता और इसके माध्यम से तीरंदाज़ी खेल की साख बढ़ाने की क्षमता को दर्शाता है।

भारत में तीरंदाज़ी का भविष्य गढ़ना

इस लीग के माध्यम से अंतरराष्ट्रीय अनुभव और मंच उपलब्ध कराकर, इसका उद्देश्य है:

  • भारत के खेल पारिस्थितिकी तंत्र को मज़बूत करना

  • भारतीय तीरंदाज़ों को अधिक दृश्यता और पहचान दिलाना

  • नई पीढ़ी को प्रेरित करना ताकि वे इस खेल को अपनाएं और देश का नाम रोशन करें

यह पहल भारत को वैश्विक तीरंदाज़ी मानचित्र पर एक सशक्त उपस्थिति दिलाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

भारत में पाम तेल का आयात घटा, सोया तेल का आयात तीन साल के उच्चतम स्तर पर

जुलाई महीने में भारत द्वारा आयात होने वाले पाम ऑयल में गिरावट आई है। वहीं सोयाबीन तेल का आयात पिछले तीन साल में उच्चतम स्तर पर है। पाम ऑयल तेल के आयात में गिरावट की वजह इंपोर्ट कॉन्टैक्ट का रद्द होना है। वहीं सोयाबीन तेल का आयात इसलिए बढ़ा है कि जून महीने में आयातित होने वाले तेल में देरी हुई, जो जुलाई में आयात किया है। भारत के आयात में गिरावट का असर इंडोनेशिया और मलेशिया जैसे देशों पर पड़ेगा, जो पाम ऑयल के प्रमुख उत्पादक देश हैं।

रिपोर्ट के अनुमान के अनुसार, जुलाई में पाम ऑयल का आयात 10 फीसदी घटकर 8,58,000 मीट्रिक टन रह गया, जो जून के 11 महीने के उच्चतम स्तर से कम है। वहीं जुलाई में सोयाबीन तेल के आयात में 38 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। पिछले महीने सोयाबीन तेल का आयात बढ़कर 4,95,000 टन हो गया था। गुजरात के कांडला बंदरगाह पर जहाजों की बढ़ती संख्या के कारण सोयाबीन तेल की टैंकर देर से पहुंची है। यही वजह है कि सोयाबीन तेल के आयात में 38 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। सूरजमुखी तेल के आयात में भी 7 फीसदी की गिरावट आई है। यह घटकर 2,01,000 टन रह गया है।

पाम तेल आयात में गिरावट

जुलाई 2025 में भारत का पाम तेल आयात घटकर 8.58 लाख मीट्रिक टन रह गया, जो जून में दर्ज 11 महीनों के उच्चतम स्तर से कम है।
इस गिरावट का प्रमुख कारण आयात अनुबंधों का रद्द होना रहा।

इस कमी के चलते इंडोनेशिया और मलेशिया, जो दुनिया के सबसे बड़े पाम तेल उत्पादक देश हैं, वहां स्टॉक बढ़ने की आशंका है, जिससे मलेशियाई पाम तेल वायदा कीमतों पर दबाव पड़ सकता है।

सोयाबीन तेल आयात में तेज़ उछाल

  • सोयाबीन तेल का आयात जुलाई में 38% बढ़कर 4.95 लाख टन हो गया, जो 2022 के बाद का सबसे उच्च स्तर है।

  • यह वृद्धि इन कारणों से हुई:

    • वैश्विक बाज़ार में प्रतिस्पर्धी मूल्य

    • जून की विलंबित खेपें जो जुलाई में गुजरात के कांडला बंदरगाह पर पहुँचीं

सोयाबीन तेल के इस उछाल ने पाम तेल की गिरावट की भरपाई की और कुल खाद्य तेल आयात को बढ़ावा दिया।

सूरजमुखी तेल का रुझान

  • सूरजमुखी तेल का आयात जुलाई में 7% गिरकर 2.01 लाख टन रह गया।

  • इसकी गिरावट के पीछे कारण रहे:

    • कम मांग

    • और मूल्य प्रतिस्पर्धा की कमी

कुल खाद्य तेल आयात में वृद्धि

  • भारत का कुल खाद्य तेल आयात जुलाई में 1.5% बढ़कर 15.3 लाख टन हो गया।

  • यह नवंबर 2024 के बाद का सबसे ऊँचा स्तर है, जिसका मुख्य कारण सोयाबीन तेल के आयात में तेज़ वृद्धि है।

यह परिदृश्य भारत के तेल बाजार में बदलते आयात स्वरूप और वैश्विक कीमतों व आपूर्ति श्रृंखला के प्रभाव को दर्शाता है।

भारत का चाय उत्पादन जून में नौ प्रतिशत घटकर 13.35 करोड़ किलोग्राम

भारत का चाय उत्पादन जून में सालाना आधार पर नौ प्रतिशत घटकर 13.35 करोड़ किलोग्राम रह गया। भारतीय चाय संघ के अनुसार, उत्पादन में गिरावट प्रतिकूल मौसम और कीटों के हमले के कारण हुई। पश्चिम बंगाल और असम सहित उत्तर भारत में उत्पादन जून में घटकर 11.25 करोड़ किलोग्राम रह गया जबकि पिछले साल जून में यह 12.15 करोड़ किलोग्राम था। दक्षिण भारत में भी उत्पादन जून में घटकर 2.09 करोड़ किलोग्राम रह गया, जबकि 2024 के इसी महीने में यह 2.52 करोड़ किलोग्राम था।

इस गिरावट का मुख्य कारण प्रतिकूल मौसम परिस्थितियाँ और कीट संक्रमण रहा, जिसने उत्तर और दक्षिण भारत के बड़े बागान मालिकों के साथ-साथ छोटे उत्पादकों को भी बुरी तरह प्रभावित किया।

गिरावट के पीछे के कारण

भारत के प्रमुख चाय उत्पादक राज्यों में प्रतिकूल मौसम परिस्थितियों ने चाय बागानों की गतिविधियों को बाधित किया। इसके अलावा, कीट संक्रमण ने फसल की पैदावार को और घटा दिया, विशेष रूप से असम और पश्चिम बंगाल में। इंडियन टी एसोसिएशन ने बताया कि इस गिरावट से बड़े चाय बागान मालिकों और छोटे किसानों, दोनों को नुकसान उठाना पड़ा।

क्षेत्रवार उत्पादन प्रवृत्तियाँ

उत्तर भारत (असम और पश्चिम बंगाल)

  • जून 2025: 112.51 मिलियन किलोग्राम

  • जून 2024: 121.52 मिलियन किलोग्राम

  • गिरावट का सबसे बड़ा हिस्सा, अनियमित मानसून और कीट हमलों के कारण दर्ज किया गया।

दक्षिण भारत (केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक)

  • जून 2025: 20.99 मिलियन किलोग्राम

  • जून 2024: 25.20 मिलियन किलोग्राम

  • यह गिरावट मुख्यतः अत्यधिक वर्षा और पत्तों की बीमारियों के कारण हुई।

उत्पादकों पर प्रभाव

बड़े और संगठित बागान

  • जून 2025 में उत्पादन: 55.21 मिलियन किलोग्राम

  • जून 2024 में उत्पादन: 68.38 मिलियन किलोग्राम

छोटे उत्पादक (Small Growers)

  • जून 2025 में उत्पादन: 68.28 मिलियन किलोग्राम

  • जून 2024 में उत्पादन: 78.34 मिलियन किलोग्राम

प्रभावित चाय की किस्में

  • CTC (क्रश, टीयर, कर्ल): 117.84 मिलियन किलोग्राम (उत्पादन का प्रमुख हिस्सा)

  • ऑर्थोडॉक्स चाय: 13.82 मिलियन किलोग्राम

  • ग्रीन टी: 1.84 मिलियन किलोग्राम

इन तीनों किस्मों के उत्पादन में गिरावट दर्ज की गई, जिससे घरेलू आपूर्ति और निर्यात, दोनों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की आशंका है।

LTIMindtree को आयकर विभाग से मिला ₹811 करोड़ का PAN 2.0 प्रोजेक्ट

भारत की डिजिटल गवर्नेंस को एक बड़ी मजबूती देते हुए, आयकर विभाग ने LTIMindtree Ltd (लार्सन एंड टुब्रो की सहायक कंपनी) को PAN 2.0 परियोजना को क्रियान्वित करने के लिए चुना है। यह परियोजना नवंबर 2024 में कैबिनेट की आर्थिक मामलों की समिति (CCEA) द्वारा मंजूरी दी गई थी। ₹811.5 करोड़ मूल्य की इस परियोजना का उद्देश्य पैन (PAN) और टैन (TAN) सेवाओं को आधुनिक बनाना और अधिक कुशल व पारदर्शी बनाना है। यह परियोजना अगले 18 महीनों के भीतर लागू होने की उम्मीद है।

परियोजना मूल्य और चयन प्रक्रिया

  • प्रस्तावित बोली मूल्य: ₹811.5 करोड़ (करों को छोड़कर)

  • समायोजित बोली मूल्य: ₹792.55 करोड़

  • बोली प्रक्रिया: चार कंपनियों ने भाग लिया था, जिनमें से LTIMindtree ने RFP मूल्यांकन के माध्यम से सफल बोलीदाता के रूप में चयन प्राप्त किया।

क्या है PAN 2.0?

PAN 2.0 परियोजना भारत की स्थायी खाता संख्या (PAN) प्रणाली को एक तकनीकी रूप से उन्नत और आधुनिक ढांचे में परिवर्तित करने की एक डिजिटल पहल है।

मुख्य विशेषताएँ:

  • सभी PAN और TAN सेवाओं के लिए एकीकृत डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म

  • आवेदन और शिकायतों का तेज़ प्रोसेसिंग

  • AI और उन्नत डिजिटल समाधानों के माध्यम से सुरक्षा को बेहतर बनाना

  • आधार से एकीकृत प्रणाली, जिससे त्वरित अपडेट और प्रमाणन संभव हो सके

PAN और TAN का महत्व

PAN (स्थायी खाता संख्या)

  • 10-अंकीय अल्फ़ान्यूमेरिक पहचान संख्या

  • आवश्यक उपयोग:

    • आयकर दाखिल करने

    • बैंक खाता खोलने

    • बड़ी नकद जमा,

    • संपत्ति खरीद

    • शेयर बाजार में निवेश

  • यह संख्या करदाता के सभी वित्तीय लेनदेन को ट्रैक करने में मदद करती है।

TAN (टैक्स डिडक्शन एंड कलेक्शन अकाउंट नंबर)

  • उन संस्थाओं के लिए अनिवार्य जो स्रोत पर टैक्स काटती या जमा करती हैं (TDS/TCS)

  • टैक्स संग्रह और कटौती की निगरानी सुनिश्चित करता है।

वर्तमान आंकड़े

  • 780 मिलियन (78 करोड़) से अधिक PAN कार्ड

  • 73 लाख से अधिक TAN पंजीकरण

PAN 2.0 से अपेक्षित लाभ

  • PAN कार्ड का तेज़ आवंटन और पुनः जारी करने की प्रक्रिया

  • सुधारों और अपडेट्स में अधिक सटीकता

  • आधार-पैन लिंकिंग की रीयल-टाइम सुविधा

  • वित्तीय संस्थाओं के लिए ऑनलाइन PAN प्रमाणीकरण

  • सुरक्षित और तकनीक-संचालित प्रक्रियाओं से बेहतर उपयोगकर्ता अनुभव

  • सरकार के लिए लागत में कमी और सुरक्षा में सुधार

निष्कर्ष:

PAN 2.0 परियोजना भारत की कर व्यवस्थाओं को डिजिटल और आधुनिक बनाने की दिशा में एक क्रांतिकारी कदम है, जिससे न केवल उपयोगकर्ताओं को सुविधा होगी बल्कि सरकार की निगरानी और सेवा दक्षता भी कई गुना बढ़ेगी।

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