WHO–IRCH कार्यशाला की भारत करेगा मेजबानी

भारत 6 से 8 अगस्त, 2025 तक गाजियाबाद स्थित होटल फॉर्च्यून, डिस्ट्रिक्ट सेंटर में WHO–इंटरनेशनल रेगुलेटरी कोऑपरेशन फॉर हर्बल मेडिसिन्स (IRCH) वर्कशॉप की मेज़बानी करेगा। यह प्रतिष्ठित आयोजन आयुष मंत्रालय द्वारा, विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के सहयोग से और भारतीय चिकित्सा एवं होम्योपैथी औषधि संयोजन आयोग (PCIM&H) के समर्थन से आयोजित किया जा रहा है।

इस वर्कशॉप का उद्देश्य है:

  • हर्बल दवाओं के लिए वैश्विक नियामक क्षमताओं को मजबूत करना

  • अंतरराष्ट्रीय सहयोग को प्रोत्साहित करना

  • पारंपरिक चिकित्सा प्रणालियों के मानकीकरण और गुणवत्ता आश्वासन को बढ़ावा देना

यह कार्यक्रम भारत की आयुष नीति और पारंपरिक चिकित्सा के क्षेत्र में बढ़ती वैश्विक भूमिका को भी रेखांकित करता है।

WHO–IRCH वर्कशॉप में वैश्विक सहभागिता 

6 से 8 अगस्त, 2025 तक गाजियाबाद में आयोजित इस अंतरराष्ट्रीय वर्कशॉप का उद्घाटन आयुष मंत्रालय के सचिव वैद्य राजेश कोटेचा और WHO–IRCH की चेयरपर्सन डॉ. किम सुंगचोल द्वारा किया जाएगा। इस कार्यक्रम में विश्वभर से प्रतिनिधि भाग लेंगे। इनमें से कई देश प्रत्यक्ष रूप से शामिल होंगे —

  • भूटान, ब्रुनेई, क्यूबा, घाना, इंडोनेशिया, जापान, नेपाल, पराग्वे, पोलैंड, श्रीलंका, युगांडा और जिम्बाब्वे।
  • जबकि ब्राज़ील, मिस्र और अमेरिका के प्रतिनिधि ऑनलाइन माध्यम से जुड़ेंगे।

वर्कशॉप के प्रमुख उद्देश्य

तीन दिवसीय यह तकनीकी बैठक निम्नलिखित पांच मुख्य उद्देश्यों पर केंद्रित होगी:

  1. हर्बल दवा नियमन में अंतरराष्ट्रीय सहयोग को प्रोत्साहित करना

  2. हर्बल उत्पादों की सुरक्षा और प्रभावकारिता तंत्र को मजबूत करना

  3. विभिन्न देशों में नियामक संगति (regulatory convergence) को बढ़ावा देना

  4. पारंपरिक चिकित्सा प्रणालियों को वैश्विक स्तर पर सशक्त बनाना

  5. हर्बल चिकित्सा को जन स्वास्थ्य प्रणाली में एकीकृत करने को प्रोत्साहन देना

वर्कशॉप की मुख्य झलकियाँ

  • WHO–IRCH वर्किंग ग्रुप 1 और 3 की समीक्षा — जो हर्बल औषधियों की सुरक्षा, नियमन, प्रभावशीलता और उपयोग पर केंद्रित हैं।

  • वैज्ञानिक सत्र, जिनमें शामिल हैं:

    • हर्बल दवाओं में प्री-क्लिनिकल अनुसंधान

    • पारंपरिक चिकित्सा के लिए नियामक ढांचे

    • सुरक्षा संबंधी केस स्टडी, विशेष रूप से अश्वगंधा (Withania somnifera) पर केंद्रित सत्र

  • प्रायोगिक प्रशिक्षण 

    • हर्बल औषधियों की पहचान

    • हेवी मेटल विश्लेषण

    • उच्च-प्रदर्शन पतली परत क्रोमैटोग्राफी (High-Performance Thin Layer Chromatography) के माध्यम से रासायनिक प्रोफाइलिंग – PCIM&H की प्रयोगशालाओं में

आयुष सुरक्षा कार्यक्रम

वर्कशॉप का एक महत्वपूर्ण पहलू आयुष सुरक्षा (फार्माकोविजिलेंस) कार्यक्रम की शुरुआत होगी। यह पहल पारंपरिक औषधियों की सुरक्षा निगरानी को मजबूत करने के लिए है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि हर्बल उपचार सुरक्षित, प्रभावी और हानिकारक तत्वों से मुक्त हों।

भारत के एकीकृत स्वास्थ्य तंत्र का अवलोकन

प्रतिनिधि निम्नलिखित संस्थानों का दौरा भी करेंगे:

  • PCIM&H, गाजियाबाद – गुणवत्ता नियंत्रण और मानकीकरण प्रक्रिया का अनुभव

  • राष्ट्रीय यूनानी चिकित्सा संस्थान (NIUM), गाजियाबाद – यूनानी पद्धति की जानकारी

  • अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान (AIIA), नई दिल्ली – आयुर्वेदिक अनुसंधान और एकीकृत चिकित्सा का प्रमुख केंद्र

वैश्विक महत्व

यह वर्कशॉप हर्बल चिकित्सा के क्षेत्र में नियामकों, वैज्ञानिकों और पारंपरिक चिकित्सा विशेषज्ञों के लिए एक वैश्विक मंच प्रदान करेगी। इसमें सुरक्षा मानकों के समन्वय, सर्वश्रेष्ठ प्रथाओं के आदान-प्रदान, और भविष्य की रणनीतियों पर विमर्श होगा। दुनिया भर में हर्बल उपचारों की बढ़ती लोकप्रियता को देखते हुए, इस तरह का अंतरराष्ट्रीय सहयोग सार्वजनिक स्वास्थ्य और जन विश्वास सुनिश्चित करने के लिए अत्यंत आवश्यक है।

RBI बिना रोलओवर के निपटाएगा 5 अरब डॉलर का स्वैप

भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने घोषणा की है कि वह 4 अगस्त, 2025 को परिपक्व होने वाला 5 अरब डॉलर का डॉलर-रुपया स्वैप बिना किसी रोलओवर विकल्प के प्रदान करेगा। यह निर्णय भारत की बैंकिंग प्रणाली में पर्याप्त तरलता अधिशेष के बीच लिया गया है, जिसका अर्थ है कि अतिरिक्त तरलता सहायता की तत्काल कोई आवश्यकता नहीं है।

डॉलर-रुपया स्वैप को समझना

डॉलर-रुपया स्वैप क्या है?
डॉलर-रुपया स्वैप एक ऐसा लेन-देन है जिसमें भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) अमेरिकी डॉलर के बदले भारतीय रुपये (या इसके विपरीत) का आदान-प्रदान करता है, इस शर्त पर कि भविष्य में एक निर्धारित तिथि पर यह लेन-देन उलटा किया जाएगा। जनवरी 2025 में RBI ने अमेरिकी डॉलर खरीदे थे और बैंकिंग सिस्टम में रुपये की तरलता (liquidity) डाली थी। अब जब यह सौदा परिपक्व हो रहा है, RBI उन डॉलर को बेचेगा और सिस्टम से रुपये वापस लेगा

यह स्वैप क्यों शुरू किया गया था?
यह 6 महीने की अवधि वाला स्वैप, जिसकी कुल राशि $5 अरब थी, जनवरी 2025 में शुरू किया गया था ताकि जनवरी के अंत से मई 2025 के बीच पर्याप्त रुपये की तरलता सुनिश्चित की जा सके। उस समय, आर्थिक गतिविधियों को समर्थन देने और बैंकिंग सिस्टम की सुचारुता बनाए रखने के लिए तरलता डालना आवश्यक था।

इस बार स्वैप को आगे क्यों नहीं बढ़ाया गया?

पर्याप्त तरलता की स्थिति
वर्तमान में भारत की बैंकिंग प्रणाली में ₹3.60 लाख करोड़ से अधिक की तरलता अधिशेष है — जो कि पिछले चार सप्ताहों में सबसे अधिक है। यह अधिशेष कुल जमा (total deposits) का लगभग 1.5% है, जबकि RBI का लक्ष्य सामान्यतः 1% होता है। चूंकि तरलता पहले से ही पर्याप्त है, इसलिए इस स्वैप को आगे बढ़ाने (rollover) की आवश्यकता नहीं है।

मनी मार्केट पर असर
बहुत कम व्यवधान की संभावना
RBI के इस निर्णय से मनी मार्केट (धन बाजार) में किसी बड़ी अस्थिरता की आशंका नहीं है। कैश-टू-टुमॉरो स्वैप दर 0.34/0.35 पैसे (वार्षिक रिटर्न ~5.8%) पर रही, जो इंटरबैंक कॉल रेट के लगभग बराबर है। यह बाजार में विश्वास को दर्शाता है कि सिस्टम इस प्रभाव को आसानी से संभाल सकता है

RBI की तरलता प्रबंधन रणनीति
गवर्नर संजय मल्होत्रा के नेतृत्व में RBI एक संतुलित दृष्टिकोण अपना रहा है, जो इस प्रकार है:

  • अतिरिक्त रुपये को अवशोषित करना ताकि महंगाई का दबाव न बढ़े।

  • वित्तीय स्थिरता बनाए रखना बिना आर्थिक वृद्धि को रोके।

  • मुद्रा विनिमय (foreign exchange operations) करते समय बाजार में झटकों से बचना।

इस स्वैप को रोलओवर किए बिना समाप्त करके, RBI ने मौद्रिक अनुशासन को बनाए रखा है, जिससे ब्याज दरें और महंगाई की अपेक्षाएं स्थिर बनी रहें।

GST Evasion: 5 साल में 7.08 लाख करोड़ की GST चोरी

केंद्रीय जीएसटी के क्षेत्रीय अधिकारियों ने वित्त वर्ष 2024-25 तक पिछले पांच वर्षों में लगभग 7.08 लाख करोड़ रुपये की कर चोरी का पता लगाया है, इसमें लगभग 1.79 लाख करोड़ रुपये की इनपुट टैक्स क्रेडिट (आईटीसी) की धोखाधड़ी भी शामिल है। वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी ने लोकसभा में इससे जुड़े आंकड़े साझा किए। सरकार की ओर से दिए गए आंकड़ों के अनुसार अकेले वित्त वर्ष 2024-25 में, सीजीएसटी फील्ड अधिकारियों की ओर से 2.23 लाख करोड़ रुपये से अधिक की वस्तु व सेवा कर (जीएसटी) चोरी का पता लगाया गया है।

GST चोरी का बड़ा पैमाना

देश में अब तक ₹7 लाख करोड़ की GST चोरी का पता चला है, जिसमें 91,000 से अधिक मामले चिन्हित किए गए हैं। इनमें से करदाताओं द्वारा स्वेच्छा से ₹1.29 लाख करोड़ की राशि जमा की गई है। आंकड़ों से पता चलता है कि GST चोरी में तेज़ी से वृद्धि हुई है — FY21 में ₹49,300 करोड़ से बढ़कर FY25 में ₹2.23 लाख करोड़ तक। इसमें सबसे बड़ा हिस्सा, लगभग ₹1.78 लाख करोड़, फर्जी इनपुट टैक्स क्रेडिट (ITC) से जुड़ा है, जिसमें से केवल 7% राशि ही स्वेच्छा से चुकाई गई है।

चोरी में वृद्धि क्यों हो रही है?

GST चोरी के मामलों में वृद्धि के पीछे एक बड़ा कारण है डेटा संग्रहण और रिपोर्टिंग में आई मजबूती। अधिकारियों के अनुसार, बेहतर निगरानी उपकरण और जोखिम-आधारित ऑडिट के चलते फर्जीवाड़े की पहचान करना अब अधिक प्रभावी हो गया है।

कैसे हो रही है GST चोरी की पहचान?

केंद्र सरकार और GST नेटवर्क (GSTN) ने कई तकनीकी उपाय अपनाए हैं ताकि टैक्स चोरी को रोका जा सके —

  • ई-इनवॉइसिंग, जिससे लेन-देन का डिजिटल रिकॉर्ड सुनिश्चित होता है

  • स्वचालित जोखिम मूल्यांकन प्रणाली, जो संदिग्ध करदाताओं को चिन्हित करती है

  • रिटर्न में विसंगतियों की पहचान करने वाली प्रणाली

  • चेहरा पहचानने की तकनीक, जिससे फर्जी GSTIN की पहचान हो सके

  • ई-वे बिल ट्रैकिंग, जिससे वस्तुओं की आवाजाही पर नजर रखी जा सके

  • व्यवहार विश्लेषण उपकरण, जो करदाताओं की असामान्य गतिविधियों को पहचानते हैं

इन उपायों का उद्देश्य है राजस्व की सुरक्षा, अनुपालन में सुधार और जल्दी टैक्स चोरों की पहचान करना।

प्रभाव का मूल्यांकन करना क्यों चुनौतीपूर्ण है?

हालांकि इन उपायों से ज्यादा मामले सामने आए हैं, लेकिन अधिकारियों के अनुसार इनका सटीक असर मापना कठिन है। इसका कारण है कि वैश्विक आर्थिक हालात, घरेलू उपभोग और कर दरों में बदलाव जैसे अन्य कारक भी राजस्व संग्रहण और चोरी में भूमिका निभाते हैं।

JSW स्टील व जेएफई लगाएंगी 5,845 करोड़ रुपये

जेएसडब्ल्यू स्टील लिमिटेड ने भारत में कोल्ड रोल्ड ग्रेन-ओरिएंटेड (सीआरजीओ) विद्युत इस्पात उत्पादन का उल्लेखनीय विस्तार करने के लिए जापान की जेएफई स्टील कॉर्पोरेशन के साथ साझेदारी में ₹5,845 करोड़ के विशाल निवेश को मंज़ूरी दी है। इस विस्तार का उद्देश्य भारत की विद्युत इस्पात निर्माण क्षमताओं को मज़बूत करना, आयात पर निर्भरता कम करना और उच्च गुणवत्ता वाले विद्युत इस्पात की बढ़ती घरेलू माँग को पूरा करना है।

नासिक संयंत्र में बड़ी क्षमता वृद्धि

JSW स्टील और जापान की JFE स्टील के संयुक्त उद्यम JSW JFE इलेक्ट्रिकल स्टील नासिक प्राइवेट लिमिटेड (J2ESN) — जिसे पहले thyssenkrupp इलेक्ट्रिकल स्टील इंडिया प्राइवेट लिमिटेड के नाम से जाना जाता था — द्वारा संचालित नासिक स्थित CRGO इकाई की उत्पादन क्षमता को 50,000 टन प्रति वर्ष से बढ़ाकर 2,50,000 टन प्रति वर्ष करने के प्रस्ताव को कंपनी के निदेशक मंडल ने मंजूरी दे दी है। इस परियोजना में ₹4,300 करोड़ का निवेश किया जाएगा। J2ESN, JSW स्टील और JFE स्टील के बीच 50:50 का संयुक्त उद्यम है। इस विस्तार के बाद, नासिक भारत के सबसे बड़े CRGO स्टील विनिर्माण केंद्रों में से एक के रूप में उभरेगा।

विजयनगर इकाई का विस्तार

इसके अलावा, कर्नाटक के विजयनगर में स्थित JSW JFE इलेक्ट्रिकल स्टील प्राइवेट लिमिटेड (J2ES) संयंत्र की क्षमता भी बढ़ाई जा रही है।

  • पूर्व क्षमता: 62,000 टन प्रति वर्ष

  • संशोधित क्षमता: 1,00,000 टन प्रति वर्ष

  • अतिरिक्त निवेश: ₹1,545 करोड़

यह विस्तार देशभर में CRGO उत्पादन का संतुलित भौगोलिक वितरण सुनिश्चित करेगा और विभिन्न औद्योगिक क्षेत्रों की मांग को पूरा करेगा।

CRGO स्टील क्यों है महत्वपूर्ण

कोल्ड रोल्ड ग्रेन-ओरिएंटेड (CRGO) स्टील बिजली ट्रांसफॉर्मर और अन्य विद्युत उपकरणों के निर्माण के लिए एक अनिवार्य सामग्री है। भारत वर्तमान में अपनी CRGO आवश्यकताओं का अधिकांश हिस्सा आयात करता है, जिससे विदेशी मुद्रा का भारी बहिर्वाह होता है। घरेलू उत्पादन क्षमता में वृद्धि से आयात पर निर्भरता घटेगी, विद्युत क्षेत्र के विस्तार को समर्थन मिलेगा, और नवीकरणीय ऊर्जा तथा ग्रिड इंफ्रास्ट्रक्चर की तेज़ी से बढ़ती मांग को पूरा किया जा सकेगा।

भारत के स्टील उद्योग के लिए रणनीतिक महत्व

JSW स्टील का यह निवेश ‘मेक इन इंडिया’ पहल के अनुरूप है और यह सुनिश्चित करेगा कि उच्च गुणवत्ता वाला CRGO स्टील अब देश में ही उत्पादित किया जाए। इसके साथ ही यह भारत और जापान के बीच औद्योगिक साझेदारी को और गहरा करता है, जहां JFE स्टील की तकनीकी विशेषज्ञता और JSW स्टील की परिचालन क्षमता का मेल होगा।

भारत में दुनिया के सबसे अनोखे ब्लड ग्रुप CRIB की खोज

रक्ताधान चिकित्सा के क्षेत्र में एक ऐतिहासिक सफलता के रूप में, भारत और ब्रिटेन के वैज्ञानिकों ने बेंगलुरु के निकट कोलार की एक 38 वर्षीय महिला में दुनिया के सबसे दुर्लभ रक्त समूह, CRIB, की पहचान की है। वैश्विक स्वास्थ्य सेवा में एक मील का पत्थर मानी जा रही यह खोज दुनिया भर में गहन देखभाल, प्रसवपूर्व निदान और रक्तदान प्रोटोकॉल में बदलाव ला सकती है।

दुर्लभ खोज

बेंगलुरु के मणिपाल अस्पताल में इलाज करा रही एक महिला में ऐसा रक्त समूह पाया गया जो किसी भी ज्ञात डोनर सैंपल से मेल नहीं खाता था। 20 पारिवारिक सदस्यों के नमूनों की जांच के बावजूद भी कोई उपयुक्त रक्त नहीं मिला।

  • महिला के रक्त में पैनरिएक्टिविटी (Panreactivity) पाई गई — यानी वह हर ज्ञात रक्त सैंपल से असंगत था।
  • परिणामस्वरूप, डॉक्टरों ने बिना रक्त चढ़ाए ही सर्जरी करने का जोखिम भरा निर्णय लिया, जो अत्यंत दुर्लभ होता है।
  • गहन परीक्षण के बाद विशेषज्ञों ने एक नए एंटीजन की पुष्टि की, जिसे अब CRIB रक्त समूह के रूप में वर्गीकृत किया गया है।

CRIB रक्त समूह क्या है?

CRIB एक नया और अत्यंत दुर्लभ रक्त समूह है, जो Cromer रक्त समूह प्रणाली के अंतर्गत आता है। यह अब तक का सबसे दुर्लभ रक्त समूह माना जा रहा है, और पूरी दुनिया में केवल एक ही ज्ञात मामला — यही महिला — सामने आया है।

  • CR का अर्थ है Cromer (रक्त समूह प्रणाली)

  • IB का अर्थ है India और Bengaluru, जहां इसे पहली बार पहचाना गया

  • यह Indian Rare Antigen (INRA) प्रणाली का हिस्सा है, जिसे 2022 में International Society of Blood Transfusion (ISBT) द्वारा मान्यता दी गई थी।

CRIB समूह में वह एंटीजन मौजूद नहीं है, जो लगभग सभी मनुष्यों में पाया जाता है — इसीलिए अनुकूल डोनर ढूंढना लगभग असंभव होता है।

CRIB क्यों है इतना अनोखा?

डॉ. सी. शिवराम (हेड, ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन, मणिपाल अस्पताल) के अनुसार:

  • इंसानी शरीर ABO और Rh के अलावा 47 रक्त समूह प्रणालियों के माध्यम से रक्त पहचानता है।

  • इस महिला के रक्त में Cromer प्रणाली का एक पूरी तरह नया एंटीजन था, जिससे उसका शरीर किसी भी रक्त को स्वीकार नहीं कर सका।

  • यह साबित करता है कि यह एंटीजन इतना अनोखा है कि दुनिया में किसी भी रक्त बैंक में मेल खाने वाला डोनर नहीं है।

आश्चर्य की बात यह है कि महिला को पहले कभी रक्त चढ़ाया नहीं गया था, फिर भी उसके रक्त में ऐसे एंटीबॉडी बन गए जो हर रक्त सैंपल को अस्वीकार करते हैं।

Cromer रक्त समूह प्रणाली

यह प्रणाली कई प्रकार के एंटीजन को समाहित करती है, जिनमें से कुछ सामान्य होते हैं और कुछ अत्यंत दुर्लभ।
इन दुर्लभ एंटीजन के विरुद्ध एंटीबॉडी अक्सर निम्न कारणों से बनती हैं:

  • गर्भावस्था

  • पूर्व रक्त चढ़ाव

  • आनुवंशिक परिवर्तन

वैज्ञानिक और वैश्विक महत्व

CRIB रक्त समूह की खोज का महत्त्व दूरगामी है:

  • यह गंभीर चिकित्सा परिस्थितियों में रक्त की असंगतियों की समझ को बढ़ाता है

  • यह गर्भकालीन और नवजात रक्त रोगों की रोकथाम में सहायक हो सकता है

  • यह दुर्लभ रक्त डोनर रजिस्ट्री के अंतरराष्ट्रीय सहयोग को प्रेरित करेगा

  • यह भारत को दुर्लभ रक्त विज्ञान अनुसंधान में अग्रणी बना सकता है

FIFA ने हैदराबाद में शुरू की महिलाओं के लिए भारत में पहली टैलेंट अकैडमी

भारतीय फ़ुटबॉल के लिए एक ऐतिहासिक क्षण में, अखिल भारतीय फ़ुटबॉल महासंघ (एआईएफएफ) और फीफा ने हैदराबाद, तेलंगाना में लड़कियों के लिए देश की पहली फीफा टैलेंट अकादमी शुरू करने के लिए हाथ मिलाया है। इस पहल का उद्देश्य भारत में महिला फ़ुटबॉल के भविष्य को बदलना है, और उभरती प्रतिभाओं को विश्वस्तरीय बुनियादी ढाँचा, प्रशिक्षण और समग्र विकास के अवसर प्रदान करना है।

महत्वपूर्ण समझौता

  • तेलंगाना स्पोर्ट्स कॉन्क्लेव, हैदराबाद में इस अकादमी के लिए समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किए गए। इस कार्यक्रम में तेलंगाना के मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी और एआईएफएफ (AIFF) के अध्यक्ष कल्याण चौबे उपस्थित रहे।
  • यह अकादमी FIFA की टैलेंट डेवलपमेंट स्कीम (TDS) का हिस्सा है — जो विश्व स्तर पर युवा फुटबॉल प्रतिभाओं को तराशने के लिए शुरू की गई पहल है।
  • हैदराबाद के गाचीबौली स्टेडियम परिसर को अकादमी का आधार बनाया गया है, जहाँ हर वर्ष 30 लड़कों और 30 लड़कियों को आवासीय सुविधा, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, चिकित्सा देखभाल, पोषण एवं मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी सेवाएं प्रदान की जाएंगी।

महिला फुटबॉल के लिए एक बदलावकारी पहल

  • यह अकादमी खासकर लड़कियों के लिए फुटबॉल में एक क्रांतिकारी कदम है।
  • यह न केवल भारत की पहली फीफा प्रतिभा अकादमी है, बल्कि फीफा की TDS योजना के तहत दुनिया भर में भी ऐसी गिनी-चुनी अकादमियों में से एक है।
  • अब तेलंगाना और अन्य राज्यों की प्रतिभाशाली लड़कियों को विश्वस्तरीय बुनियादी ढांचे, शिक्षा और अंतरराष्ट्रीय मंच तक पहुँच का अवसर मिलेगा।
  • इससे युवा खिलाड़ियों को प्रतिस्पर्धात्मक फुटबॉल खेलने और भारत का प्रतिनिधित्व करने की दिशा में प्रेरणा मिलेगी।

AIFF का विजन: FIFA U-17 विश्व कप तक की राह

यह अकादमी भारत के FIFA अंडर-17 पुरुषों और महिलाओं के विश्व कप में क्वालिफाई करने के सपने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
भारत में लड़कियों के लिए पहली और लड़कों के लिए दूसरी फीफा अकादमी की शुरुआत समावेशी फुटबॉल विकास की दिशा में एक ऐतिहासिक मोड़ है। यह पहल देशभर के युवाओं, विशेषकर लड़कियों, की प्रतिभा को पहचानने, तराशने और सशक्त करने की हमारी साझा प्रतिबद्धता को दर्शाती है।

वैश्विक स्तर पर पहल का महत्व

हैदराबाद की यह अकादमी फीफा की TDS योजना के तहत वैश्विक मान्यता प्राप्त कुछ चुनिंदा अकादमियों में शामिल है।
इसकी सफलता से भविष्य में भारत में और भी ऐसी अकादमियों के द्वार खुल सकते हैं, जिससे भारत वैश्विक फुटबॉल परिदृश्य में एक मजबूत दावेदार बन सकेगा।

समग्र विकास की ओर कदम

यह अकादमी केवल फुटबॉल प्रशिक्षण तक सीमित नहीं होगी, बल्कि खेल विज्ञान, पोषण, मानसिक स्वास्थ्य और औपचारिक शिक्षा के समन्वय के साथ एक 360-डिग्री प्रशिक्षण पारिस्थितिकी तंत्र प्रदान करेगी — जो भारत के युवा फुटबॉलरों को विश्वस्तरीय एथलीट में बदलने का मार्ग प्रशस्त करेगी।

आयुष मंत्रालय ने औषधीय पौधों के संरक्षण को बढ़ावा देने हेतु दो ऐतिहासिक समझौते किए

भारत की औषधीय पौधों की समृद्ध विरासत के संरक्षण और उनके लाभों के बारे में ज्ञान के प्रसार की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए, आयुष मंत्रालय के अंतर्गत राष्ट्रीय औषधीय पादप बोर्ड (एनएमपीबी) ने दो महत्वपूर्ण समझौता ज्ञापनों (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए हैं। इस पहल का उद्देश्य न केवल दुर्लभ औषधीय प्रजातियों का संरक्षण करना है, बल्कि स्वास्थ्य सेवा में उनकी भूमिका के बारे में जन जागरूकता भी बढ़ाना है। हस्ताक्षर समारोह नई दिल्ली स्थित निर्माण भवन में केंद्रीय आयुष राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) और स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण राज्य मंत्री प्रतापराव जाधव की उपस्थिति में आयोजित किया गया।

ईशवेद-बायोप्लांट्स वेंचर के साथ समझौता

पहला समझौता राष्ट्रीय औषधीय पादप बोर्ड (एनएमपीबी) और पुणे स्थित ईशवेद-बायोप्लांट्स वेंचर के बीच हुआ। यह समझौता दुर्लभ, संकटग्रस्त और विलुप्तप्राय (RET) औषधीय पौधों के जर्मप्लाज्म के संरक्षण पर केंद्रित है, जिसमें टिशू कल्चर तकनीक का उपयोग किया जाएगा। यह पहल आयुष क्षेत्र के लिए आवश्यक पौधों की दीर्घकालिक उपलब्धता सुनिश्चित करने में मदद करेगी। आधुनिक तकनीकों के माध्यम से, यह परियोजना एक टिकाऊ आपूर्ति श्रृंखला विकसित करने की दिशा में एक बड़ा कदम है।

राष्ट्रीय औषधीय पादप उद्यान के लिए त्रिपक्षीय समझौता

  • दूसरा समझौता एक त्रिपक्षीय एमओयू है, जिसे एनएमपीबी, अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान (AIIA), और एम्स (AIIMS) नई दिल्ली के बीच हस्ताक्षरित किया गया है।
  • इस सहयोग की प्रमुख पहल एम्स परिसर में राष्ट्रीय औषधीय पादप उद्यान की स्थापना है।
  • यह उद्यान रोगियों, छात्रों और आगंतुकों के लिए औषधीय पौधों की उपचारात्मक क्षमताओं को समझने हेतु एक शैक्षिक और जागरूकता केंद्र के रूप में कार्य करेगा।
  • यह जीवंत संसाधन केंद्र पारंपरिक चिकित्सा ज्ञान को आधुनिक स्वास्थ्य प्रणाली के साथ जोड़ने को बढ़ावा देगा।

स्वस्थ और आत्मनिर्भर भारत की ओर

ये समझौते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 2047 तक स्वस्थ और आत्मनिर्भर भारत के विजन के अनुरूप हैं। ये पहल न केवल भारत की समृद्ध औषधीय वनस्पति विरासत को संरक्षित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम हैं, बल्कि आधुनिक स्वास्थ्य प्रणाली में उनके समावेश को भी सशक्त करती हैं।

ICRISAT ने छोटे किसानों के लिए एआई-सक्षम जलवायु सलाह सेवा शुरू की

जलवायु-प्रतिरोधी कृषि को मज़बूत करने की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए, अर्ध-शुष्क उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों के लिए अंतर्राष्ट्रीय फसल अनुसंधान संस्थान (ICRISAT) ने भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) और अन्य सहयोगियों के साथ मिलकर एक नई AI-संचालित जलवायु परामर्श सेवा शुरू की है। हैदराबाद में एक कार्यशाला में शुरू की गई इस पहल का उद्देश्य छोटे किसानों को व्यक्तिगत, वास्तविक समय की जलवायु संबंधी जानकारी प्रदान करके उन्हें सशक्त बनाना है, जिससे उन्हें जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में बेहतर निर्णय लेने में मदद मिल सके।

किसानों के लिए एआई-सक्षम सलाह सेवा

  • इस परियोजना का नाम है “जलवायु-लचीली कृषि के लिए बड़े पैमाने पर संदर्भ-विशिष्ट एग्रोमेट सलाह सेवाओं हेतु एआई-सक्षम प्रणाली”, जिसे भारत सरकार के मानसून मिशन-III के तहत समर्थन मिला है।
  • यह परियोजना कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) और मशीन लर्निंग (ML) तकनीकों का उपयोग कर किसानों को अत्यंत स्थानीय और उपयोगी मौसम संबंधी जानकारी प्रदान करेगी।
  • सलाह सेवाएं आसान डिजिटल प्लेटफॉर्म्स, जैसे कि एआई-सक्षम व्हाट्सएप बॉट, के ज़रिए दी जाएंगी, जिससे दूर-दराज़ ग्रामीण क्षेत्रों के किसान भी इन तक आसानी से पहुंच सकें।

महाराष्ट्र में पायलट परियोजना

  • इस योजना की शुरुआत महाराष्ट्र में होगी, जहां आईसीएआर के एग्रो-मौसमीय फील्ड यूनिट्स (AMFUs) इन सलाहों को छोटे किसानों तक पहुंचाएंगे।
  • पायलट चरण में सलाहों की प्रभावशीलता और किसानों की प्रतिक्रिया को मापा जाएगा, जिससे इसे राष्ट्रीय स्तर पर लागू करने की दिशा में मार्गदर्शन मिलेगा।
  • यह मॉडल भविष्य में अन्य विकासशील देशों के किसानों के लिए साउथ-साउथ सहयोग मॉडल के रूप में भी विस्तारित किया जा सकता है।

जलवायु-लचीली कृषि की दिशा में कदम

बदलते मानसून और जलवायु संकटों को देखते हुए यह पहल कई तरह से किसानों की मदद करेगी:

  • समय पर मौसम चेतावनियों से फसल नुकसान को कम करना

  • बुवाई, सिंचाई और कटाई की बेहतर योजना बनाना

  • डेटा-आधारित निर्णयों के ज़रिए सतत कृषि को बढ़ावा देना

यह पहल भारत में कृषि की जलवायु अनुकूलता को मजबूत बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

हिरोशिमा दिवस 2025: जानें इस काले दिन के बारे में रोचक तथ्य

हर साल 6 अगस्त को, दुनिया द्वितीय विश्व युद्ध के उस विनाशकारी क्षण को याद करने के लिए हिरोशिमा दिवस मनाती है, जब 1945 में संयुक्त राज्य अमेरिका ने जापानी शहर हिरोशिमा पर परमाणु बम गिराया था। इस घटना ने मानवता पर गहरे घाव छोड़े, हज़ारों लोग तुरंत मारे गए और बचे हुए लोग दीर्घकालिक विकिरण प्रभावों से पीड़ित रहे। 2025 में हिरोशिमा दिवस मनाने के साथ, यह न केवल उस अपार क्षति की याद दिलाता है, बल्कि वैश्विक शांति, परमाणु निरस्त्रीकरण और परमाणु विनाश के भय से मुक्त विश्व की तत्काल आवश्यकता की भी याद दिलाता है।

विनाशकारी घटना और उसका प्रभाव
6 अगस्त 1945 को हिरोशिमा पर परमाणु बम गिराए जाने के साथ, मानव इतिहास ने अभूतपूर्व तबाही देखी। तीन दिन बाद नागासाकी पर दूसरा हमला हुआ।

  • इस धमाके में हज़ारों लोग तत्काल मारे गए,

  • और जो बचे उन्हें ‘हिबाकुशा’ कहा गया, जिन्हें जीवनभर विकिरण जनित बीमारियों, मानसिक आघात और स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ा।

यह घटना केवल द्वितीय विश्व युद्ध का अंत नहीं थी, बल्कि इसने परमाणु युग की शुरुआत की, जिसने विश्व राजनीति और सुरक्षा को सदा के लिए बदल दिया।

हिरोशिमा दिवस का उद्देश्य
इस दिवस का उद्देश्य है –

  • शांति, अहिंसा और परमाणु निरस्त्रीकरण के प्रति प्रतिबद्धता को दोहराना।

  • यह दिन लोगों को परमाणु हथियारों की भयावहता के बारे में जागरूक करता है,

  • और पीड़ितों व बचे हुए लोगों को सम्मान देता है।

यह एक वैश्विक मंच बन गया है, जहाँ हम परमाणु युद्ध की कीमत को याद करते हैं और यह सुनिश्चित करने का संकल्प लेते हैं कि ऐसी त्रासदी फिर कभी न हो।

2025 की स्मृति और आयोजन
हिरोशिमा दिवस 2025 पर विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं:

  • हिरोशिमा पीस मेमोरियल पार्क में मौन श्रद्धांजलि,

  • शांति की प्रतीक कागज़ की लालटेन छोड़ना,

  • प्रार्थनाएं,

  • शैक्षिक कार्यक्रम,

  • और प्रदर्शनियां शामिल हैं।

दुनियाभर में छात्र, नीतिनिर्माता, और शांति संगठनों द्वारा परमाणु निरस्त्रीकरण पर चर्चाएं और जागरूकता अभियान भी चलाए जा रहे हैं।

वर्तमान और भविष्य के लिए महत्त्व
हिरोशिमा दिवस 2025 केवल अतीत की याद नहीं है, बल्कि यह एक नैतिक, ऐतिहासिक और राजनीतिक संदेश भी है:

  • यह बढ़ते वैश्विक तनावों के बीच, राष्ट्रों से एकजुट होकर शांति का मार्ग अपनाने की अपील करता है।

  • यह याद दिलाता है कि संवाद और कूटनीति, युद्ध और विनाश से कहीं अधिक शक्तिशाली होते हैं।

यह दिन आने वाली पीढ़ियों के लिए एक सुरक्षित, परमाणु मुक्त भविष्य सुनिश्चित करने का आह्वान करता है।

उत्तरकाशी जिले में बादल फटने से धराली गांव में भारी तबाही

हाल ही में उत्तराखंड के उत्तरकाशी ज़िले के धाराली गाँव में खीर गंगा नदी के ऊपरी जलग्रहण क्षेत्र में बादल फटने से आई भीषण फ्लैश फ्लड (आकस्मिक बाढ़) ने भारी तबाही मचाई। गंगोत्री धाम की तीर्थयात्रा पर जाने वाले यात्रियों के लिए एक महत्वपूर्ण पड़ाव माने जाने वाला यह गाँव, मूसलाधार पानी की चपेट में आ गया, जिससे घरों, दुकानों और सड़कों को भारी नुकसान पहुँचा। बाढ़ के पानी के साथ आई कीचड़, मलबा और विनाश की तस्वीरें गाँव में चारों ओर फैली नजर आईं, जिससे पूरे क्षेत्र में निराशा और भय का माहौल छा गया है।

फ्लैश फ्लड का कारण
प्रारंभिक रिपोर्टों के अनुसार, खीर गंगा नदी के ऊपरी क्षेत्रों में बादल फटने की घटना हुई, जिससे हर्सिल क्षेत्र में खीर गढ़ का जलस्तर अचानक तेज़ी से बढ़ गया। इस अचानक बढ़े जलप्रवाह ने धाराली गाँव में तबाही मचा दी, जिससे भीषण बाढ़ और व्यापक विनाश हुआ।

तबाही की भयावह तस्वीर
तेज़ बहाव वाले बाढ़ के पानी ने धाराली गाँव को तहस-नहस कर दिया।

  • कई घरों, दुकानों और सड़कों को बर्बाद कर दिया गया।

  • होटल और होमस्टे पूरी तरह ध्वस्त हो गए।

  • स्थानीय लोगों को आशंका है कि 10 से 12 मज़दूर मलबे में दबे हो सकते हैं, जो ढह गई इमारतों के नीचे फंसे हैं।

  • घटनास्थल से आई वीडियो और तस्वीरों में प्रकृति की बेकाबू शक्ति साफ देखी जा सकती है।

जीविका को हुआ नुकसान
धाराली के अलावा, बड़कोट तहसील के बनाला पट्टी क्षेत्र में कुड गधेरे के उफान से 18 बकरियां बह गईं, जिससे स्थानीय पशुपालकों को भारी आर्थिक नुकसान हुआ। यह घटना दर्शाती है कि हिमालयी क्षेत्रों में प्राकृतिक आपदाएं मानव जीवन के साथ-साथ ग्रामीण अर्थव्यवस्था को भी गहरा आघात पहुँचाती हैं।

राहत और बचाव कार्य
आपदा के तुरंत बाद:

  • राज्य आपदा प्रतिक्रिया बल (SDRF) की टीमें मौके पर पहुँचीं।

  • सेना की इकाइयों ने भी राहत और निकासी कार्यों में सहयोग शुरू किया।

  • हर्सिल और भटवाड़ी के स्थानीय प्रशासन ने राहत सामग्री और संसाधन जुटाने शुरू किए।

टीमें अब भी मलबे में दबे मज़दूरों को खोजने और बचाने के लिए संघर्ष कर रही हैं, लेकिन खराब मौसम, तेज़ बहाव और दुर्गम भौगोलिक स्थिति कार्य में बाधा बन रही है।

मौसम विभाग की चेतावनी
भारतीय मौसम विभाग (IMD) ने 10 अगस्त तक भारी बारिश की चेतावनी जारी की है। विशेषकर पहाड़ी क्षेत्रों में ज़ोरदार बारिश के चलते भूस्खलन, बाढ़ और सड़क अवरोधों का खतरा बना हुआ है। प्रशासन ने स्थानीय निवासियों और तीर्थयात्रियों से अनावश्यक यात्रा से बचने की अपील की है।

आगे की चुनौतियाँ

  • धाराली की पहुंच में कठिनाई के कारण भारी बचाव उपकरण वहाँ नहीं पहुँच पा रहे हैं।

  • लगातार बारिश राहत कार्यों में रुकावट डाल रही है और द्वितीयक आपदाओं का खतरा बढ़ा रही है।

  • कुछ प्रभावित क्षेत्रों में संचार व्यवस्था ठप हो गई है, जिससे समन्वय में दिक्कतें आ रही हैं।

यह घटना एक बार फिर हिमालयी क्षेत्रों की भौगोलिक संवेदनशीलता और जलवायु जोखिमों को उजागर करती है, जिनसे निपटने के लिए ठोस रणनीति और त्वरित प्रतिक्रिया तंत्र की आवश्यकता है।

Recent Posts

about | - Part 159_12.1