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चांदीपुरा वायरस क्या है, जानें सबकुछ

चांदीपुरा वायरस क्या है, जानें सबकुछ |_3.1

गुजरात में चांदीपुरा वायरस लगातार खतरनाक होता जा रहा है। वहीं, गुजरात में चांदीपुरा वायरस से एक चार साल की बच्ची की मौत हुई है। इसकी पुष्टि राष्ट्रीय विषाणु विज्ञान संस्थान (एनआईवी) ने की है। एक स्वास्थ्य अधिकारी ने कहा कि राज्‍य का स्‍वास्‍थ्‍य विभाग चांदीपुरा वायरस को लेकर पूरी तरह अलर्ट है।

गुजरात के स्वास्थ्य मंत्री ऋषिकेश पटेल का कहना है कि राज्य में चांदीपुरा वायरस के 14 संदिग्ध मामले दर्ज किए गए हैं। इनमें से आठ मरीजों की मौत हुई है। सभी के नमूनों की पुष्टि के लिए पुणे स्थित एनआईवी भेजे गए हैं।

संक्रमण के बढ़ते मामलों को देखते हुए राज्य सरकार लोगों की स्क्रीनिंग कर रही है। गुजरात के स्वास्थ्य मंत्री ऋषिकेश पटेल ने बताया कि वायरस के कारण जिन संदिग्ध लोगों की मौत हुई है, उनके सैंपल को नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी में भेजा गया है। वहीं, अब तक 44 हजार लोगों की स्क्रीनिंग की जा चुकी है।

क्या है चांदीपुरा वायरस और ये कैसे फैलता है?

CHPV वायरस Rhabdoviridae फैमिली का वायरस है। Rhabdoviridae फैमिली में वो वायरस भी आते हैं, जिनसे रेबीज होता है। CHPV वायरस मक्खियों और मच्छरों की कुछ प्रजातियों (जैसे, डेंगू वाले एडीज एजिप्टी मच्छर) से फैलता है। वायरस इन मक्खी-मच्छरों की लार ग्रंथि में रहता है और इन मक्खी-मच्छरों के काटने से इंसान इस वायरस से संक्रमित हो सकता है और उसे इंसेफेलाइटिस यानी दिमाग के एक्टिव टिश्यूज में इन्फ्लेमेशन हो सकता है।

चांदीपुरा वायरस संक्रमण के लक्षण क्या हैं?

वायरस के संक्रमण से बुखार, सिरदर्द, शरीर में दर्द और ऐंठन, दस्त जैसे लक्षण देखने को मिलते हैं। इसके अलावा सांस की समस्या, खून निकला या खून की कमी जैसे लक्षण भी सामने आते हैं। स्टडीज के मुताबिक, इंसेफेलाइटिस के बाद संक्रमण तेजी से बढ़ता है और अस्पताल में भर्ती होने के 24-48 घंटों के बीच मरीज की मौत तक हो सकती है। ये संक्रमण आम तौर पर 15 साल से कम उम्र के बच्चों में ही फैलता है। इस वायरस के इलाज के लिए अभी कोई वैक्सीन नहीं है।

चांदीपुरा वायरस कहां से आया?

रिपोर्ट के अनुसार साल 1965 में महाराष्ट्र के भंडारा जिले के चांदीपुरा गांव में इस तरह के संक्रमण का पहला मामला सामने आया था। इसलिए इसे चांदीपुरा वायरस नाम दिया गया। इस पहले मामले की जांच के बाद पता चला था कि यह वायरस रेत में घूम रही एक मक्खी के कारण फैला था। वायरस के कारण दिमाग में सूजन और तेज बुखार के लक्षण दिखाई देते हैं।

रिपोर्ट्स बताती हैं कि इस वायरस का सबसे बुरा प्रभाव 2003-04 में देखने को मिला था। तब संक्रमण के कारण महाराष्ट्र, उत्तरी गुजरात और आंध्र प्रदेश में 300 से ज्यादा बच्चों की मौत हुई थी। रिपोर्ट के मुताबिक, 2004 में जब ये वायरस फैला था तब आंध्र प्रदेश में संक्रमण के कारण 78 फीसदी मृत्यु दर रिकॉर्ड किया गया था।