केंद्र सरकार ने भारत की जनगणना 2027 कराने की योजना को मंजूरी दी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने भारत की जनगणना 2027 कराने के प्रस्ताव को मंजूरी दी है। इस पर कुल ₹11,718.24 करोड़ की लागत आएगी। यह भारत की 16वीं राष्ट्रीय जनगणना और स्वतंत्रता के बाद 8वीं होगी। खास बात यह है कि जनगणना 2027 पूरी तरह डिजिटल होगी, जिससे डेटा संग्रह, भंडारण और साझा करने की प्रक्रिया में बड़ा बदलाव आएगा। इसका उद्देश्य नीति-निर्माण के लिए तेज़, स्वच्छ और अधिक सुलभ डेटा उपलब्ध कराना है।

जनगणना 2027: दो-चरणीय योजना

यह निर्णय दुनिया के सबसे बड़े प्रशासनिक और सांख्यिकीय अभ्यास की शुरुआत की दिशा में एक बड़ा कदम है।
जनगणना दो चरणों में कराई जाएगी—

  1. गृहसूचीकरण एवं आवास जनगणना: अप्रैल से सितंबर 2026

  2. जनसंख्या गणना (Population Enumeration): फरवरी 2027

हालांकि, लद्दाख, जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड जैसे बर्फबारी वाले क्षेत्रों में जनसंख्या गणना सितंबर 2026 में पहले कराई जाएगी।
इस राष्ट्रीय अभियान में लगभग 30 लाख फील्ड कर्मी भाग लेंगे।

जनगणना की पृष्ठभूमि

जनगणना 2027, भारत की 16वीं जनगणना होगी और यह गांव, कस्बा और वार्ड स्तर पर प्राथमिक आंकड़ों का सबसे महत्वपूर्ण स्रोत है। इससे निम्नलिखित जानकारियां प्राप्त होती हैं—

  • घरेलू स्थिति

  • सुविधाएं और संपत्तियां

  • जनसांख्यिकी विवरण

  • धर्म

  • अनुसूचित जाति/जनजाति (SC/ST) जनसंख्या

  • भाषा और साक्षरता

  • प्रवासन के रुझान

  • आर्थिक गतिविधियां

  • प्रजनन दर और सामाजिक प्रवृत्तियां

कानूनी आधार:
इस पूरी प्रक्रिया के लिए जनगणना अधिनियम, 1948 और जनगणना नियम, 1990 कानूनी ढांचा प्रदान करते हैं।

कार्यान्वयन रणनीति

जनगणना के दौरान हर घर का दौरा किया जाएगा और दोनों चरणों के लिए अलग-अलग प्रश्नावलियां होंगी।
गणना कार्य मुख्य रूप से सरकारी स्कूल शिक्षकों द्वारा किया जाएगा, जिनके साथ पर्यवेक्षक और जिला स्तरीय अधिकारी भी होंगे।

  • लगभग 30 लाख जनगणना कर्मी फील्ड संचालन संभालेंगे

  • पर्यवेक्षकों और मास्टर ट्रेनर्स सहित कुल 30 लाख (3 मिलियन) से अधिक कर्मी डेटा संग्रह और निगरानी में सहयोग करेंगे

  • सभी कर्मियों को मानदेय दिया जाएगा, क्योंकि जनगणना कार्य उनकी नियमित जिम्मेदारियों के अतिरिक्त है

जनगणना 2027 की पहली बार होने वाली विशेषताएं

  • भारत की पहली डिजिटल जनगणना: डेटा संग्रह Android और iOS मोबाइल ऐप के जरिए होगा, जिससे गति और सटीकता बढ़ेगी।

  • Census Management & Monitoring System (CMMS): एक समर्पित ऑनलाइन पोर्टल, जो पूरी प्रक्रिया की रीयल-टाइम निगरानी करेगा।

  • हाउस-लिस्टिंग ब्लॉक क्रिएटर वेब मैप एप्लिकेशन: गृहसूचीकरण ब्लॉकों की मैपिंग और संगठन में सहायक।

  • स्व-गणना (Self-Enumeration): पहली बार नागरिक डिजिटल प्लेटफॉर्म के माध्यम से स्वयं अपनी जानकारी दर्ज कर सकेंगे।

  • मजबूत डिजिटल सुरक्षा: व्यक्तिगत डेटा की सुरक्षा के लिए उन्नत साइबर सुरक्षा उपाय।

  • राष्ट्रीय जन-जागरूकता अभियान: जनता की भागीदारी और सही जानकारी सुनिश्चित करने के लिए देशव्यापी अभियान।

  • जाति गणना शामिल: अप्रैल 2025 में राजनीतिक मामलों की कैबिनेट समिति के निर्णय के अनुसार, जनगणना 2027 में जाति से संबंधित डेटा को इलेक्ट्रॉनिक रूप से जनसंख्या गणना चरण में एकत्र किया जाएगा।

जनगणना 2027 के लाभ

  • भारत की पूरी जनसंख्या को इस अभ्यास में शामिल किया जाएगा।

  • डिजिटल पद्धति से डेटा स्वच्छ, मशीन-रीडेबल और आसानी से उपलब्ध होगा।

  • Census as a Service (CAAS) के माध्यम से मंत्रालयों को नीति-निर्माण योग्य डेटा मिलेगा।

  • डेटा प्रसार तेज़ और उपयोगकर्ता-अनुकूल होगा, जिससे गांव/वार्ड स्तर तक जानकारी उपलब्ध हो सकेगी।

रोजगार सृजन और आर्थिक प्रभाव

जनगणना 2027 से स्थानीय रोजगार और कौशल विकास को भी बढ़ावा मिलेगा—

  • लगभग 18,600 तकनीकी कर्मियों की तैनाती लगभग 550 दिनों के लिए

  • कुल मिलाकर लगभग 1.02 करोड़ मानव-दिवस (10.2 million man-days) का रोजगार सृजन

इन कर्मियों को डिजिटल डेटा हैंडलिंग, निगरानी और समन्वय का अनुभव मिलेगा, जिससे उनके भविष्य के रोजगार अवसर बेहतर होंगे। साथ ही, जिला और राज्य स्तर पर डिजिटल क्षमता भी मजबूत होगी।

मुख्य बिंदु

  • केंद्रीय मंत्रिमंडल ने ₹11,718.24 करोड़ की लागत से जनगणना 2027 को मंजूरी दी।

  • दो चरणों में आयोजन:

    • गृहसूचीकरण जनगणना (अप्रैल–सितंबर 2026)

    • जनसंख्या गणना (फरवरी 2027)

  • भारत की पहली पूर्णतः डिजिटल जनगणना

  • जाति गणना को जनसंख्या गणना चरण में इलेक्ट्रॉनिक रूप से शामिल किया जाएगा।

  • 30 लाख फील्ड कर्मी, कुल मिलाकर लगभग 30 लाख से अधिक कर्मचारी शामिल।

  • लगभग 1.02 करोड़ मानव-दिवस का रोजगार सृजन।

  • डेटा गांव/वार्ड स्तर तक तेज़, सुलभ और मशीन-रीडेबल होगा।

  • प्रमुख डिजिटल टूल: CMMS पोर्टल और HLB क्रिएटर ऐप

केंद्र सरकार ने ‘कोलसेतु’ विंडो को मंजूरी दी, कोयले का औद्योगिक उपयोग और निर्यात होगा आसान

केंद्रीय मंत्रिमंडल की आर्थिक मामलों की समिति (CCEA) ने भारत की कोयला आवंटन प्रणाली में पारदर्शिता, निष्पक्षता और दक्षता बढ़ाने के उद्देश्य से कोलसेतु नामक एक नई नीति को मंजूरी दी है। इस नीति के तहत मौजूदा NRS (Non-Regulated Sector) लिंकज नीति में एक नया “कोलसेतु विंडो” जोड़ा गया है। इसका उद्देश्य दीर्घकालिक नीलामी तंत्र के माध्यम से किसी भी औद्योगिक उपयोग और निर्यात के लिए कोयला उपलब्ध कराना है।

कोलसेतु क्या है?

  • 2016 की NRS लिंकज नीलामी नीति में एक अलग नीलामी विंडो जोड़ी जा रही है।

  • कोलसेतु विंडो के माध्यम से कोयले की आवश्यकता रखने वाला कोई भी घरेलू औद्योगिक उपभोक्ता दीर्घकालिक लिंकज के लिए नीलामी में भाग ले सकता है।

  • कोकिंग कोयला इस विंडो के अंतर्गत उपलब्ध नहीं होगा।

  • एंड-यूज़ (उपयोग) श्रेणियों पर पहले से लगी पाबंदियां हटाई गई हैं।

  • अब उद्योग किसी एक तय क्षेत्र तक सीमित नहीं रहेंगे; कोयले का उपयोग विभिन्न औद्योगिक गतिविधियों या निर्यात के लिए किया जा सकेगा।

पृष्ठभूमि

  • मौजूदा NRS लिंकज नीति के तहत सीमेंट, स्पंज आयरन, स्टील (कोकिंग), एल्यूमिनियम और उनके कैप्टिव पावर प्लांट्स जैसे क्षेत्रों को नीलामी के माध्यम से कोयला लिंकज दी जाती रही है।

  • पहले ये लिंकज निर्धारित एंड-यूज़र तक सीमित थीं।

  • कोयला बाजार में बदलाव और कारोबार को आसान बनाने की आवश्यकता को देखते हुए सरकार ने अधिक लचीलापन देने की जरूरत महसूस की।

  • चूंकि वाणिज्यिक खनन (Commercial Mining) में पहले से ही एंड-यूज़ की पाबंदी नहीं है, इसलिए अब लिंकज नीति को भी उसी के अनुरूप उदार बनाया जा रहा है।

कोलसेतु विंडो की प्रमुख विशेषताएं

  • कोयला लिंकज का आवंटन दीर्घकालिक नीलामी के आधार पर होगा।

  • कोई भी औद्योगिक उपभोक्ता भाग ले सकता है, लेकिन ट्रेडर्स (व्यापारी) पात्र नहीं होंगे।

  • कोकिंग कोयला शामिल नहीं होगा।

  • मौजूदा निर्दिष्ट एंड-यूज़र उप-क्षेत्र भी इसमें भाग ले सकेंगे।

  • कोयले का उपयोग स्व-उपभोग, निर्यात, कोयला धुलाई (Coal Washing) या अन्य स्वीकृत उद्देश्यों के लिए किया जा सकेगा,
    लेकिन भारत के भीतर पुनः बिक्री (Resale) की अनुमति नहीं होगी।

  • लिंकज धारक अपने आवंटित कोयले का अधिकतम 50% तक निर्यात कर सकेंगे।

  • ग्रुप कंपनियां इस विंडो के तहत प्राप्त कोयले को लचीले ढंग से साझा कर सकेंगी।

ये प्रावधान कोयला क्षेत्र को अधिक खुला, पारदर्शी और दक्ष बनाने की दिशा में हैं।

नीति की आवश्यकता और संदर्भ

भारत की बढ़ती ऊर्जा मांग और औद्योगिक विस्तार के लिए कोयले का कुशल उपयोग अत्यंत आवश्यक है। पहले की पाबंदियों के कारण कई उद्योगों को आयातित कोयले पर निर्भर रहना पड़ता था।
कोलसेतु के माध्यम से सरकार का उद्देश्य है—

  • घरेलू कोयले के उपयोगकर्ताओं का दायरा बढ़ाना

  • आयात निर्भरता कम करना

  • ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस में सुधार

  • मौजूदा कोयला भंडार के उपयोग में तेजी

  • लिंकज नीतियों को वाणिज्यिक खनन सुधारों के अनुरूप बनाना

इससे उद्योगों के लिए समान अवसर पैदा होंगे और नियमित कोयला आपूर्ति की आवश्यकता को बेहतर ढंग से पूरा किया जा सकेगा।

मुख्य बिंदु

  • मंत्रिमंडल ने कोलसेतु को मंजूरी दी—NRS लिंकज नीति में नया विंडो।

  • दीर्घकालिक नीलामी के जरिए किसी भी औद्योगिक उपयोग और निर्यात के लिए कोयला लिंकज।

  • कोकिंग कोयला बाहर, ट्रेडर्स पात्र नहीं।

  • लिंकज धारक 50% तक कोयले का निर्यात कर सकते हैं।

  • मौजूदा एंड-यूज़र सेक्टर भी नए विंडो में भाग ले सकेंगे।

केंद्र सरकार MGNREGA का नाम बदलेगी, रोज़गार गारंटी 100 से बढ़ाकर 125 दिन

केंद्र सरकार ने ग्रामीण रोजगार से जुड़ी देश की सबसे बड़ी योजना मनरेगा को नया रूप देने का फैसला कर लिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम का नाम बदलने वाला बिल मंजूर किया गया। सरकार का कहना है कि यह बदलाव ग्रामीण रोजगार और विकास को नई दिशा देने के लिए किया जा रहा है। रिपोर्ट के मुताबिक, इस योजना का नाम अब ‘पूज्य बापू ग्रामीण रोजगार योजना’ कर दिया जाएगा और इसके तहत काम के दिनों की संख्या भी 100 दिनों से बढ़ाकर 125 दिन कर दी जाएगी।

मनरेगा या नरेगा का मकसद ग्रामीण इलाकों में परिवारों की आजीविका सुरक्षा बढ़ाना है। इसके तहत एक पात्र परिवार को एक वित्त वर्ष में कम से कम 100 दिनों की रोजगार गारंटी दी जाती है। इस योजना को 2005 में लागू किया गया था। राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम 2005 (एनआरईजीए), जिसका नाम बाद में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (एमजीएनआरईजीए) के रूप में बदल दिया गया, एक श्रम कानून और सामाजिक सुरक्षा उपाय है जिसका उद्देश्य “काम के अधिकार” की गारंटी देना है। इसका उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में आजीविका सुरक्षा को बढ़ाना है।

केंद्रीय मंत्रिमंडल के प्रमुख निर्णय

  • MGNREGS का नया नाम: पूज्य बापू ग्रामीण रोजगार योजना
    (पहले NREGS → 2009 में MGNREGS)

  • गारंटीकृत रोजगार: 100 दिन से बढ़ाकर 125 दिन

  • राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (NREGA), 2005 में संशोधन को मंजूरी

  • औपचारिक अधिसूचना जारी होना शेष

पृष्ठभूमि: NREGA से MGNREGA तक

  • अधिनियम लागू: 25 अगस्त 2005

  • ग्रामीण वयस्क परिवारों को 100 दिनों के रोजगार की कानूनी गारंटी

  • मुख्य उद्देश्य:

    • ग्रामीण क्रय शक्ति में वृद्धि

    • आजीविका सुरक्षा प्रदान करना

    • ग्रामीण संकट और गरीबी को कम करना

    • टिकाऊ सामुदायिक परिसंपत्तियों का निर्माण

  • 2009: नाम बदला गया—महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम/योजना (MGNREGA)

बदलाव का महत्व

इस अद्यतन के आर्थिक और सामाजिक दोनों स्तरों पर महत्वपूर्ण प्रभाव हैं—

  • ग्रामीण परिवारों के लिए मजबूत आय समर्थन

  • विशेषकर कृषि के कमजोर मौसम में अधिक सुनिश्चित रोजगार

  • ग्रामीण क्षेत्रों में खपत और खर्च बढ़ने से स्थानीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा

  • कम आय वाले परिवारों के लिए बेहतर सामाजिक सुरक्षा जाल

  • योजना के मूल उद्देश्य—गरीबी उन्मूलन और आय असमानता में कमी—को मजबूती

प्रमुख स्थिर (Static) तथ्य

  • मूल अधिनियम: NREGA, 2005

  • नाम परिवर्तन:

    • 2009: MGNREGA

    • 2025: पूज्य बापू ग्रामीण रोजगार योजना

  • गारंटीकृत कार्यदिवस: पहले 100, अब 125 दिन

  • औसत वास्तविक कार्यदिवस (2024–25): 50.24 दिन

  • प्रशासक मंत्रालय: ग्रामीण विकास मंत्रालय (MRD)

राष्ट्रीय ऊर्जा संरक्षण दिवस 2025: इतिहास और महत्व

भारत में राष्ट्रीय ऊर्जा संरक्षण दिवस हर वर्ष 14 दिसंबर को मनाया जाता है। इसका उद्देश्य ऊर्जा दक्षता और ऊर्जा संरक्षण के महत्व के बारे में जागरूकता फैलाना है। यह दिवस नागरिकों—विशेषकर छात्रों और युवाओं—को यह समझने के लिए प्रेरित करता है कि आज ऊर्जा की बचत करने से भविष्य सुरक्षित और सतत बनता है। बढ़ती ऊर्जा मांग के दौर में मौजूदा संसाधनों का संरक्षण एक राष्ट्रीय प्राथमिकता बन चुका है।

राष्ट्रीय ऊर्जा संरक्षण दिवस क्या है और 2025 में कब मनाया जाएगा?

  • राष्ट्रीय ऊर्जा संरक्षण दिवस पूरे देश में जिम्मेदार ऊर्जा उपयोग को बढ़ावा देने के लिए मनाया जाता है।
  • 2025 में यह दिवस रविवार, 14 दिसंबर को मनाया जाएगा।
  • इसका आयोजन ऊर्जा दक्षता ब्यूरो (BEE) के मार्गदर्शन में किया जाता है, जो विद्युत मंत्रालय, भारत सरकार के अंतर्गत कार्य करता है। यह दिवस ऊर्जा की बर्बादी कम करने और दीर्घकालिक विकास लक्ष्यों को समर्थन देने की आवश्यकता की याद दिलाता है।
  • वर्ष 2025 में भी युवाओं और छात्रों की भागीदारी पर विशेष जोर रहेगा, ताकि वे अपने स्कूलों और समुदायों में ऊर्जा संरक्षण के दूत बन सकें।

राष्ट्रीय ऊर्जा संरक्षण दिवस का इतिहास और पृष्ठभूमि

राष्ट्रीय ऊर्जा संरक्षण दिवस 1991 से प्रतिवर्ष मनाया जा रहा है। इसकी शुरुआत भारत में ऊर्जा सुरक्षा को लेकर बढ़ती चिंताओं और बढ़ती खपत के संदर्भ में की गई थी। यह आयोजन ऊर्जा के कुशल प्रबंधन और सतत विकास को बढ़ावा देने वाली सरकारी नीतियों के अनुरूप है।

ऊर्जा दक्षता ब्यूरो (BEE) की भूमिका

ऊर्जा दक्षता ब्यूरो इस दिवस में केंद्रीय भूमिका निभाता है। यह—

  • जन-जागरूकता अभियान तैयार करता है

  • ऊर्जा-कुशल तकनीकों को बढ़ावा देता है

  • राष्ट्रीय ऊर्जा संरक्षण पुरस्कार के माध्यम से उत्कृष्ट कार्यों को सम्मानित करता है

इस दिन उद्योगों, स्कूलों, संस्थानों और व्यक्तियों को नवोन्मेषी ऊर्जा-बचत प्रयासों के लिए सम्मानित किया जाता है।

राष्ट्रीय ऊर्जा संरक्षण दिवस का महत्व

  • यह दिवस पर्यावरणीय, आर्थिक और शैक्षिक—तीनों स्तरों पर अत्यंत महत्वपूर्ण है।
  • यह बिजली और ईंधन के विवेकपूर्ण उपयोग को प्रोत्साहित करता है, कार्बन उत्सर्जन को कम करता है, भारत के ऊर्जा सुरक्षा और स्थिरता के लक्ष्यों का समर्थन करता है और जिम्मेदार उपभोग की संस्कृति विकसित करता है।
  • छात्रों के लिए यह दिवस सैद्धांतिक ज्ञान को वास्तविक जीवन के प्रयोग से जोड़ता है, जिससे सीखना अधिक सार्थक बनता है।

छात्रों के लिए राष्ट्रीय ऊर्जा संरक्षण दिवस का महत्व

छात्र भविष्य की ऊर्जा आदतों को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। यह दिवस—

  • नवीकरणीय ऊर्जा और दक्षता जैसे विषयों के माध्यम से वैज्ञानिक सोच विकसित करता है

  • पर्यावरणीय जिम्मेदारी और नागरिक चेतना को मजबूत करता है

  • परियोजनाओं, प्रतियोगिताओं और नवाचार गतिविधियों में भागीदारी को बढ़ावा देता है

  • यह समझने में मदद करता है कि छोटे दैनिक कदम कैसे बड़े राष्ट्रीय प्रभाव पैदा करते हैं

ये मूल्य समग्र शिक्षा और परीक्षा-उन्मुख जागरूकता के लिए आवश्यक हैं।

राष्ट्रीय ऊर्जा संरक्षण दिवस पर गतिविधियाँ और अभ्यास

यह कोई पारंपरिक त्योहार नहीं है, बल्कि कार्य-आधारित सहभागिता पर केंद्रित दिवस है।

सामान्य गतिविधियाँ

  • ऊर्जा ऑडिट और शपथ: स्कूल और संस्थान सरल ऊर्जा ऑडिट कर ऊर्जा बचत की शपथ लेते हैं।

  • पुरस्कार और प्रतियोगिताएँ: निबंध लेखन, पोस्टर निर्माण, प्रश्नोत्तरी और वाद-विवाद प्रतियोगिताएँ आयोजित की जाती हैं; विजेताओं को जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित किया जाता है।

  • कार्यशालाएँ और जागरूकता अभियान: एलईडी, ऊर्जा-कुशल उपकरणों और नवीकरणीय ऊर्जा पर व्यावहारिक जानकारी दी जाती है।

क्षेत्रीय आयोजन और स्थानीय पहल

देशभर में समान संदेश के साथ राज्यों द्वारा स्थानीय रंग जोड़ा जाता है।

  • महाराष्ट्र और गुजरात: समुदाय तक पहुँच के लिए छात्र-नेतृत्व वाले ऊर्जा क्लब

  • तमिलनाडु और केरल: नवीकरणीय ऊर्जा और ग्रामीण विद्युतीकरण पर कॉलेज सेमिनार

  • पूर्वोत्तर राज्य: लोकनाट्य और नुक्कड़ नाटकों के माध्यम से जागरूकता
    कई क्षेत्रों में इसे स्थानीय भाषाओं में अनौपचारिक रूप से “ऊर्जा बचाओ दिवस” भी कहा जाता है।

छात्र कैसे भाग ले सकते हैं?

छात्र सरल लेकिन प्रभावी तरीकों से योगदान दे सकते हैं—

  • उपयोग में न होने पर लाइट, पंखे और इलेक्ट्रॉनिक उपकरण बंद करना

  • पोस्टर, क्विज़ और वाद-विवाद प्रतियोगिताओं में भाग लेना

  • घर या स्कूल में सरल ऊर्जा ऑडिट करना

  • सोशल मीडिया या छोटे वीडियो के माध्यम से ऊर्जा-बचत संदेश साझा करना

  • स्थानीय जागरूकता अभियानों या रैलियों में स्वयंसेवक बनना

पर्यावरण-अनुकूल सुझाव और जिम्मेदार आयोजन

जिम्मेदार आयोजन से संरक्षण का संदेश और मजबूत होता है—

  • एकल-उपयोग सजावट से बचें; डिजिटल प्रस्तुतियाँ अपनाएँ

  • गतिविधियाँ सुरक्षित, समावेशी और सुव्यवस्थित रखें

  • रीसाइक्लिंग और कचरा पृथक्करण को बढ़ावा दें

  • टीमवर्क के माध्यम से पढ़ाई और पर्यावरणीय पहल में संतुलन बनाएँ

  • केवल 14 दिसंबर ही नहीं, हर दिन ऊर्जा संरक्षण का अभ्यास करें

बीमा संशोधन विधेयक 2025: कैबिनेट ने भारतीय बीमा कंपनियों में 100% FDI को मंज़ूरी दी

भारत के वित्तीय क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण सुधार के तहत, केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बीमा संशोधन विधेयक 2025 को मंजूरी दे दी है। इस विधेयक के माध्यम से भारतीय बीमा कंपनियों में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) की सीमा 74% से बढ़ाकर 100% करने का प्रस्ताव है। इस कदम से विदेशी पूंजी का प्रवाह बढ़ने, सेवाओं की गुणवत्ता में सुधार और बीमा बाजार में प्रतिस्पर्धा मजबूत होने की उम्मीद है। यह विधेयक संसद के शीतकालीन सत्र में पेश किया जा सकता है।

पृष्ठभूमि

  • भारत का बीमा क्षेत्र मुख्य रूप से बीमा अधिनियम, 1938, एलआईसी अधिनियम, 1956 और IRDAI अधिनियम, 1999 द्वारा शासित है।

  • समय के साथ, सरकार ने क्षेत्र के विकास और आधुनिकीकरण के लिए विदेशी निवेश को धीरे-धीरे उदार बनाया है।

  • बीमा क्षेत्र में FDI की सीमा पहले 26%, फिर 49%, और बाद में 2021 में 74% की गई।

  • अब तक इस क्षेत्र में लगभग ₹82,000 करोड़ का विदेशी निवेश आया है।

  • इसके बावजूद, वैश्विक मानकों की तुलना में भारत में बीमा पैठ (Insurance Penetration) अभी भी कम है, जिससे गहन सुधारों की आवश्यकता महसूस की गई।

100% FDI सुधार का महत्व

FDI भारत के बीमा उद्योग में पूंजी, नवाचार, बेहतर कॉर्पोरेट गवर्नेंस और वैश्विक विशेषज्ञता लाने में अहम भूमिका निभाता है।
अब तक ₹82,000 करोड़ का निवेश आने के बाद भी, 100% FDI की अनुमति से अपेक्षा है कि—

  • बड़ी मात्रा में नया विदेशी निवेश आएगा

  • बीमा कंपनियों की सॉल्वेंसी और वित्तीय मजबूती बढ़ेगी

  • वैश्विक बीमा कंपनियों को भारत में अपने परिचालन विस्तार का अवसर मिलेगा

  • ग्राहक सेवा, डिजिटल क्षमताओं और उत्पाद नवाचार में सुधार होगा

  • ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में बीमा पहुंच बढ़ेगी

यह सुधार भारत के वित्तीय क्षेत्र को आधुनिक बनाने और ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस सुधारने की व्यापक रणनीति का हिस्सा है।

प्रमुख प्रावधान

  • बीमा कंपनियों में FDI सीमा 100% तक बढ़ाई जाएगी, जिससे पूर्ण विदेशी स्वामित्व संभव होगा।

  • बीमा अधिनियम, 1938 के कुछ प्रावधानों में संशोधन कर अनुपालन प्रक्रियाओं को सरल बनाया जाएगा।

  • समग्र (Composite) लाइसेंस की व्यवस्था, जिससे बीमाकर्ता एक ही लाइसेंस के तहत विभिन्न श्रेणियों का बीमा प्रदान कर सकेंगे।

  • नए और छोटे खिलाड़ियों के लिए चुकता पूंजी (Paid-up Capital) की आवश्यकता कम की जाएगी।

  • LIC अधिनियम, 1956 में संशोधन कर एलआईसी बोर्ड को शाखाएं खोलने और कर्मचारियों की भर्ती जैसे संचालन संबंधी निर्णयों में अधिक स्वायत्तता दी जाएगी।

  • IRDAI अधिनियम, 1999 में बदलाव कर नियामकीय प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित और निगरानी को अधिक प्रभावी बनाया जाएगा।

इन प्रावधानों का उद्देश्य बीमा नियमन को आधुनिक बनाना और एक अधिक प्रतिस्पर्धी व निवेशक-अनुकूल वातावरण तैयार करना है।

100% FDI बढ़ाने के प्रभाव

इस निर्णय से व्यापक स्तर पर प्रभाव पड़ने की उम्मीद है—

  • बीमा कंपनियों में बड़े पैमाने पर विदेशी निवेश

  • प्रतिस्पर्धा में वृद्धि, जिससे बेहतर ग्राहक सेवा और अधिक उत्पाद विकल्प

  • अधिक पूंजी उपलब्ध होने से बीमाकर्ताओं की वित्तीय स्थिरता मजबूत

  • अंडरराइटिंग, दावा निपटान और डिजिटल प्रक्रियाओं में दक्षता

  • वितरण, ग्राहक सेवा, दावे, डेटा एनालिटिक्स और एक्चुरियल क्षेत्रों में रोजगार सृजन

  • ग्रामीण और वंचित क्षेत्रों में बीमा कवरेज का विस्तार

मुख्य बिंदु (Key Takeaways)

  • केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बीमा संशोधन विधेयक 2025 को मंजूरी दी।

  • बीमा कंपनियों में 100% FDI की अनुमति का प्रस्ताव।

  • बीमा अधिनियम 1938, LIC अधिनियम 1956 और IRDAI अधिनियम 1999 में महत्वपूर्ण संशोधन।

  • विदेशी पूंजी, तकनीक और सेवा गुणवत्ता बढ़ाने पर जोर।

  • 2047 तक सभी के लिए बीमा (Insurance for All by 2047) के राष्ट्रीय लक्ष्य को समर्थन।

कोपरा जलाशय छत्तीसगढ़ का पहला रामसर साइट घोषित

छत्तीसगढ़ ने पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में एक ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल की है। बिलासपुर जिले के कोपरा जलाशय को राज्य का पहला रामसर स्थल घोषित किया गया है। इस मान्यता के साथ छत्तीसगढ़ अब अंतरराष्ट्रीय महत्व की आर्द्रभूमियों (Wetlands) के वैश्विक मानचित्र पर शामिल हो गया है। यह उपलब्धि जैव विविधता संरक्षण, सतत जल प्रबंधन और जलवायु सहनशीलता के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को और मजबूत करती है।

कोपरा जलाशय को रामसर मान्यता

12 दिसंबर 2025 को कोपरा जलाशय को आधिकारिक रूप से रामसर स्थल घोषित किया गया। यह उपलब्धि राज्य आर्द्रभूमि प्राधिकरण, वन विभाग के अधिकारियों, पर्यावरण विशेषज्ञों, शोधकर्ताओं और स्थानीय समुदायों के संयुक्त प्रयासों का परिणाम है।

कोपरा जलाशय की विशेषताएँ

  • यह एक मीठे पानी की आर्द्रभूमि प्रणाली है

  • प्राकृतिक और मानव-निर्मित दोनों विशेषताओं का समावेश

  • मुख्य रूप से वर्षा पर आधारित (Rain-fed)

  • छोटी मौसमी धाराओं से पोषित

  • अर्ध-ग्रामीण क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण जल स्रोत

इन सभी विशेषताओं ने कोपरा जलाशय को रामसर कन्वेंशन के मानदंडों के अनुरूप बनाया।

कोपरा जलाशय का पारिस्थितिक महत्व

कोपरा जलाशय केवल एक जलाशय नहीं, बल्कि एक समृद्ध पारिस्थितिक केंद्र (Ecological Hotspot) है।

मुख्य पारिस्थितिक विशेषताएँ

  • मछलियों, उभयचरों, सरीसृपों और कीटों सहित जलीय जैव विविधता का संरक्षण

  • जलीय वनस्पतियों की प्रचुर वृद्धि

  • आसपास के क्षेत्र में पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखने में सहायक

  • स्थानीय जलवायु और जल चक्र को नियंत्रित करने में प्राकृतिक भूमिका

इन्हीं कारणों से कोपरा जलाशय ने रामसर मानकों को सफलतापूर्वक पूरा किया।

स्थानीय समुदाय और आजीविका में भूमिका

पारिस्थितिकी के साथ-साथ कोपरा जलाशय का स्थानीय लोगों के जीवन में भी अत्यंत महत्व है।

आसपास के गांवों को लाभ

  • पीने के पानी की आपूर्ति

  • कृषि भूमि के लिए सिंचाई सुविधा

  • खाद्य सुरक्षा और ग्रामीण आजीविका को समर्थन

  • मौसमी जल संकट से निपटने में मदद

यह मानव आवश्यकताओं और प्राकृतिक पारिस्थितिकी सेवाओं के संतुलन को दर्शाता है, जो रामसर दर्शन का मूल सिद्धांत है।

प्रवासी और दुर्लभ पक्षियों का प्रमुख आवास

कोपरा जलाशय को रामसर मान्यता दिलाने में पक्षी जैव विविधता की भूमिका भी अहम रही।

प्रमुख पक्षी प्रजातियाँ

  • रिवर टर्न (River Tern)

  • कॉमन पोचार्ड (Common Pochard)

  • मिस्री गिद्ध (Egyptian Vulture)

यह जलाशय प्रवासी पक्षियों के लिए शीतकालीन पड़ाव के रूप में कार्य करता है और वैश्विक प्रवासन मार्गों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। दुर्लभ एवं संकटग्रस्त प्रजातियों की उपस्थिति ने इसकी अंतरराष्ट्रीय महत्ता को और मजबूत किया।

छत्तीसगढ़ अंजर (Anjor) विजन 2047

अंजर विजन 2047 के अंतर्गत छत्तीसगढ़ सरकार ने पर्यावरण संरक्षण के लिए महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किए हैं।

मुख्य लक्ष्य

  • वर्ष 2030 तक 20 आर्द्रभूमियों को रामसर स्थल का दर्जा दिलाना

कोपरा जलाशय का रामसर सूची में शामिल होना इस दिशा में पहला और महत्वपूर्ण कदम है, जो राज्य की प्रतिबद्धता को दर्शाता है:

  • वैश्विक पर्यावरण मानकों के प्रति

  • आर्द्रभूमि संरक्षण के लिए

  • जलवायु अनुकूलन रणनीतियों को अपनाने की दिशा में

कोलकाता में लियोनेल मेस्सी की 70 फुट ऊंची लोहे की मूर्ति का अनावरण किया गया

भारत की फुटबॉल राजधानी कहे जाने वाले कोलकाता ने खेल इतिहास में एक और गौरवपूर्ण अध्याय जोड़ते हुए फुटबॉल महानायक लियोनेल मेसी की 70 फुट ऊँची लोहे की प्रतिमा स्थापित की है। माना जा रहा है कि यह दुनिया की सबसे बड़ी मेसी प्रतिमा है। यह भव्य प्रतिमा श्रीभूमि स्पोर्टिंग क्लब, लेक टाउन, साउथ दमदम में स्थापित की गई है और इसके अनावरण को लेकर प्रशंसकों में भारी उत्साह है।

मेसी को समर्पित रिकॉर्ड-तोड़ श्रद्धांजलि

यह विशाल प्रतिमा लियोनेल मेसी को फीफा विश्व कप ट्रॉफी उठाते हुए दर्शाती है, जो अर्जेंटीना के साथ उनके ऐतिहासिक 2022 फीफा विश्व कप विजय का प्रतीक है।

मुख्य विशेषताएँ

  • ऊँचाई: 70 फुट

  • सामग्री: लोहा (Iron)

  • स्थान: श्रीभूमि स्पोर्टिंग क्लब, लेक टाउन, साउथ दमदम, कोलकाता

  • दावा: विश्व की सबसे बड़ी लियोनेल मेसी प्रतिमा

  • निर्माण समय: मात्र 40 दिन

प्रतिमा का अंतिम सतही कार्य मोंटी पॉल और उनकी टीम द्वारा किया जा रहा है, साथ ही अनावरण समारोह के लिए आसपास के क्षेत्र को भी सजाया जा रहा है।

कोलकाता के लिए इस प्रतिमा का महत्व

पश्चिम बंगाल के मंत्री एवं क्लब अध्यक्ष सुजीत बोस ने इस उपलब्धि पर उत्साह व्यक्त करते हुए कहा:

“यह बहुत बड़ी प्रतिमा है, जिसकी ऊँचाई 70 फुट है। दुनिया में मेसी की इतनी बड़ी कोई और प्रतिमा नहीं है। मेसी कोलकाता आ रहे हैं और यहाँ उनके असंख्य प्रशंसक हैं।”

कोलकाता की फुटबॉल संस्कृति अत्यंत समृद्ध रही है और यह शहर पहले भी कई वैश्विक फुटबॉल सितारों का स्वागत कर चुका है, जिनमें शामिल हैं:

  • डिएगो माराडोना

  • एमिलियानो मार्टिनेज

  • रोनाल्डिन्हो गाउचो

अब इस सूची में लियोनेल मेसी भी — कम से कम स्मारक रूप में — शामिल हो गए हैं।

13 दिसंबर को होगा वर्चुअल उद्घाटन

सुरक्षा और कानून-व्यवस्था कारणों से लियोनेल मेसी व्यक्तिगत रूप से उपस्थित नहीं हो पाएंगे। इसके बजाय वे 13 दिसंबर को इस प्रतिमा का वर्चुअल उद्घाटन करेंगे।
इस कार्यक्रम में बंगाल भर से भारी संख्या में प्रशंसकों के जुड़ने की उम्मीद है।

2026 फीफा विश्व कप के निकट आते समय यह श्रद्धांजलि फुटबॉल प्रेमियों के लिए और भी अधिक भावनात्मक व प्रतीकात्मक बन गई है।

वाराणसी में पहले स्वदेशी हाइड्रोजन फ्यूल सेल पोत का शुभारंभ

भारत ने हरित नौवहन (Green Maritime Mobility) के क्षेत्र में ऐतिहासिक कदम बढ़ाते हुए अपनी पहली पूरी तरह स्वदेशी हाइड्रोजन फ्यूल सेल यात्री नौका का शुभारंभ कर दिया है। यह नौका वाराणसी के नमो घाट से व्यावसायिक रूप से संचालित होना शुरू हुई, जिसे केंद्रीय मंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने हरी झंडी दिखाकर रवाना किया।
यह भारत की स्वच्छ, टिकाऊ और आत्मनिर्भर जल यातायात प्रणाली की दिशा में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है।

नौका के बारे में: स्वदेशी, पर्यावरण-अनुकूल और आधुनिक तकनीक का समावेश

यह नौका कोचीन शिपयार्ड लिमिटेड (CSL) द्वारा निर्मित है और आंतरिक जलमार्ग प्राधिकरण (IWAI) के स्वामित्व में है। इसमें लो टेम्परेचर प्रोटॉन एक्सचेंज मेम्ब्रेन (PEM) आधारित हाइड्रोजन फ्यूल सेल प्रणाली लगी है, जो हाइड्रोजन को बिजली में परिवर्तित करती है और इसका एकमात्र उप-उत्पाद पानी है।

मुख्य विशेषताएँ

  • 24-मीटर कैटामरैन डिजाइन → अधिक स्थिरता

  • यात्री क्षमता: 50 (एयर-कंडीशन्ड केबिन)

  • सेवा गति: 6.5 नॉट्स

  • एक बार हाइड्रोजन भरने पर 8 घंटे संचालन

  • हाइब्रिड प्रणाली: हाइड्रोजन फ्यूल सेल + बैटरी + सोलर पावर

  • शून्य प्रदूषण: न धुआँ, न शोर, केवल जल उत्सर्जन

  • प्रमाणित: इंडियन रजिस्टर ऑफ शिपिंग

इस तरह वाराणसी दुनिया के उन चुनिंदा शहरों में शामिल हो गया है, जहां हाइड्रोजन-चालित यात्री परिवहन की तैनाती की गई है।

पायलट तैनाती और सुरक्षा ढांचा

FCV Pilot-01 के संचालन के लिए IWAI, CSL और Inland & Coastal Shipping Ltd. के बीच त्रिपक्षीय समझौता किया गया है, जिसमें शामिल हैं:

  • तकनीकी पर्यवेक्षण

  • सुरक्षा प्रक्रियाएँ

  • वित्तीय प्रावधान

  • निगरानी व निरीक्षण व्यवस्था

इन उपायों से यह सुनिश्चित होगा कि नौका वास्तविक परिस्थितियों में सुरक्षित और कुशलतापूर्वक चल सके तथा भविष्य के विस्तार के लिए महत्वपूर्ण डेटा प्राप्त हो सके।

वाराणसी और अंतर्देशीय जलमार्गों के लिए लाभ

यह हाइड्रोजन-चालित नौका गंगा पर यात्रा को अधिक स्वच्छ, शांत और प्रभावी बनाएगी।

यात्री व पर्यावरण लाभ

  • शून्य-उत्सर्जन यात्रा

  • तीर्थयात्रियों व यात्रियों के लिए शांत, शोर-रहित सफर

  • सड़कों पर वाहनों का दबाव कम होगा

  • आधुनिक और पर्यावरण-अनुकूल परिवहन से पर्यटन को बढ़ावा

इससे वाराणसी एक फ्यूचरिस्टिक और सतत तकनीक अपनाने वाले वैश्विक शहर के रूप में अपनी पहचान और मजबूत करेगा।

पहली व्यावसायिक यात्रा: नमो घाट से ललिता घाट तक

नौका की पहली व्यावसायिक यात्रा (5 किमी मार्ग) नमो घाट से ललिता घाट तक आयोजित की गई, जिसमें उपस्थित थे:

  • केंद्रीय मंत्री सर्बानंद सोनोवाल

  • राज्यमंत्री रविंद्र जायसवाल

  • यूपी मंत्री दयाशंकर सिंह व डॉ. दयाशंकर मिश्रा

  • वाराणसी नगर निगम की मेयर

  • वरिष्ठ IAS अधिकारी व IWAI के शीर्ष अधिकारी

यह आयोजन इस अत्याधुनिक नौका की क्षमता को प्रदर्शित करता है और इसके सार्वजनिक संचालन की औपचारिक शुरुआत का प्रतीक है।

मैरिटाइम इंडिया विज़न 2030 व अमृत काल विज़न 2047 का प्रमुख स्तंभ

यह हाइड्रोजन फ्यूल सेल नौका IWAI की दीर्घकालिक रणनीति का हिस्सा है, जिसका उद्देश्य है:

  • अंतर्देशीय जल परिवहन का डी-कार्बोनाइजेशन

  • हाईब्रिड व इलेक्ट्रिक नौकाओं का विस्तार

  • नदी-आधारित यात्री परिवहन का आधुनिकीकरण

  • ऊर्जा-कुशल समुद्री संचालन को बढ़ावा

Maritime India Vision (MIV) 2030 और
Maritime Amrit Kaal Vision (MAKV) 2047
के तहत भारत भविष्य के लिए तैयार, जलवायु-संवेदनशील समुद्री इकोसिस्टम का निर्माण कर रहा है।

मंगल ग्रह का चक्कर लगा रहे मावेन अंतरिक्ष यान से नासा का संपर्क टूटा

NASA ने पुष्टि की है कि उसके मार्स ऑर्बिटर MAVEN (Mars Atmosphere and Volatile Evolution Mission) से अचानक संपर्क टूट गया है। यह घटना उस समय हुई जब MAVEN मंगल ग्रह के पीछे गया और दोबारा सामने आने पर ग्राउंड स्टेशन से लिंक नहीं कर पाया।

क्या हुआ MAVEN के साथ?

  • मंगल के पीछे जाने से पहले MAVEN सामान्य रूप से काम कर रहा था

  • दोबारा संपर्क स्थापित नहीं हुआ

  • NASA ने तत्काल इंजीनियरिंग जांच शुरू की

  • अभी तक किसी तकनीकी खराबी या नुकसान की पुष्टि नहीं

MAVEN 10+ वर्षों से मंगल की कक्षा में सक्रिय था और यह मिशन NASA के सबसे महत्वपूर्ण वैज्ञानिक अभियानों में से एक है।

MAVEN मिशन क्या है?

2013 में लॉन्च और 2014 में मंगल की कक्षा में प्रवेश, MAVEN का मुख्य उद्देश्य था:

मुख्य वैज्ञानिक लक्ष्य

  • मंगल के ऊपरी वायुमंडल का अध्ययन

  • सौर पवन (Solar Wind) से होने वाली वायुमंडलीय हानि को समझना

  • यह जानना कि मंगल कैसे एक गर्म, जल-समृद्ध ग्रह से ठंडे, बंजर ग्रह में बदल गया

इसके निष्कर्षों से वैज्ञानिकों ने पुष्टि की कि सूर्य की सौर पवन ने अरबों वर्षों में मंगल का वायुमंडल खत्म कर दिया

मंगल मिशनों के लिए संचार रिले की भूमिका

MAVEN केवल विज्ञान मिशन नहीं था—यह एक उच्च-ऊंचाई संचार रिले भी था।

यह किन मिशनों को डेटा भेजने में मदद करता था?

  • क्यूरियोसिटी रोवर 
  • पर्सिवरेंस रोवर

इसके बंद होने से NASA के मंगल संचार नेटवर्क पर दबाव बढ़ गया है।

NASA के अन्य सक्रिय मार्स ऑर्बिटर

अंतरिक्षयान प्रक्षेपण वर्ष स्थिति
Mars Reconnaissance Orbiter 2005 सक्रिय
Mars Odyssey 2001 सक्रिय

ये दोनों NASA के सबसे पुराने और अभी भी चालू मंगल उपग्रह हैं।

अब आगे क्या?

NASA MAVEN के अंतिम सिग्नल का विश्लेषण कर रहा है। संभावित कारणों में शामिल हैं:

  • सेफ-मोड में जाना

  • एंटीना का गलत दिशा में हो जाना

  • सॉफ्टवेयर/कम्युनिकेशन सिस्टम की खराबी

  • पावर सिस्टम में समस्या

फिलहाल MAVEN की स्थिति अनिश्चित है। NASA संपर्क बहाल करने की कोशिश जारी रखे हुए है।

महाराष्ट्र सरकार ने महाक्राइमओएस एआई लॉन्च करने के लिए माइक्रोसॉफ्ट के साथ पार्टनरशिप की

महाराष्ट्र सरकार ने AI-ड्रिवन पुलिसिंग में एक बड़ी छलांग लगाई है। इसके लिए उसने माइक्रोसॉफ्ट के साथ पार्टनरशिप की है। यह एक एडवांस्ड प्लेटफॉर्म है जिसे पूरे राज्य में साइबर क्राइम की जांच को मॉडर्न बनाने और तेज करने के लिए बनाया गया है। इस प्लेटफॉर्म को माइक्रोसॉफ्ट के चेयरमैन और CEO सत्या नडेला ने मुंबई में माइक्रोसॉफ्ट AI टूर के दौरान लॉन्च किया।

साइबरआई ने MARVEL (महाराष्ट्र का AI गवर्नेंस के लिए स्पेशल पर्पस व्हीकल) और माइक्रोसॉफ्ट इंडिया डेवलपमेंट सेंटर (IDC) के साथ मिलकर इसे डेवलप किया है। MahaCrimeOS AI, भारतीय कानून लागू करने वाली एजेंसियों में सबसे बड़े AI बदलावों में से एक है।

MahaCrimeOS AI क्या है?

MahaCrimeOS AI एक AI- और Azure-पावर्ड डिजिटल इन्वेस्टिगेशन प्लेटफ़ॉर्म है, जिसे साइबर अपराध मामलों की प्रोसेसिंग को तेज़, मानकीकृत और डिजिटल बनाने के लिए तैयार किया गया है।

वर्तमान में यह नागपुर के 23 पुलिस स्टेशनों में लागू है, जहाँ इसने उल्लेखनीय परिणाम दिए हैं।

मुख्य उपलब्धियाँ

  • 80% तेज़ी से जांच पूरी

  • लगभग 100% मामलों का डिजिटल रजिस्ट्रेशन

  • सभी स्टेशनों में AI-चालित मानकीकृत वर्कफ़्लो

ये शुरुआती सफलताएँ इसके पूरे राज्य में बड़े प्रभाव की क्षमता को दर्शाती हैं।

1,100 पुलिस स्टेशनों में विस्तार

मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के अनुसार, सरकार इसे महाराष्ट्र के सभी 1,100 पुलिस थानों में लागू करने की योजना बना रही है।

इसके बाद हर पुलिस स्टेशन:

  • साइबर अपराध का डिजिटल रजिस्ट्रेशन कर सकेगा

  • एआई टूल्स के साथ जांच कर सकेगा

  • मानकीकृत प्रक्रियाओं का पालन करेगा

  • तेज़, सटीक और पारदर्शी जांच सुनिश्चित करेगा

फडणवीस ने कहा कि एआई शासन की प्रक्रिया को “मूल रूप से बदल देगा” और यह सार्वजनिक सेवाओं के लिए एक बड़ा बदलाव होगा।

MahaCrimeOS AI की प्रमुख विशेषताएँ

1. त्वरित केस निर्माण

ऑटोमेटेड डेटा एंट्री के साथ तुरंत केस फ़ाइल तैयार होती है।

2. बहुभाषी डेटा एक्सट्रैक्शन

एआई कई स्रोतों और भाषाओं से डेटा निकाल सकता है।

3. कानूनी सहायता (RAG आधारित)

भारत के आपराधिक कानूनों तक एआई-पावर्ड RAG तकनीक से तुरंत, संदर्भ-सटीक कानूनी मदद मिलती है।

4. OSINT इंटीग्रेशन

ओपन-सोर्स इंटेलिजेंस के माध्यम से डिजिटल सबूत जोड़ने, पैटर्न पहचानने और अपराधियों का पता लगाने में मदद।

5. एआई-पावर्ड सबूत विश्लेषण

मैनुअल मेहनत कम करके जांच की गति बढ़ाता है।

6. सुरक्षित और अनुपालन-आधारित सिस्टम

Microsoft IDC ने सुनिश्चित किया कि यह प्लेटफ़ॉर्म सुरक्षा और डेटा गवर्नेंस मानकों के अनुरूप हो।

इस नवाचार के पीछे की साझेदारी

  • CyberEye – AI इन्वेस्टिगेशन टूल्स का विकास

  • MARVEL – गवर्नेंस और इंटीग्रेशन फ्रेमवर्क

  • Microsoft IDC – पुलिसिंग आवश्यकताओं के अनुसार कस्टमाइजेशन

  • महाराष्ट्र पुलिस – फील्ड इनसाइट्स और टेस्टिंग

यह सहयोग सुनिश्चित करता है कि प्लेटफ़ॉर्म तकनीकी रूप से उन्नत होने के साथ-साथ व्यावहारिक और वास्तविक परिस्थितियों के अनुकूल भी है।

MahaCrimeOS AI क्यों महत्वपूर्ण है?

यह एआई-नेतृत्व वाली पहल:

  • महाराष्ट्र की साइबर अपराध प्रतिक्रिया को मजबूत करेगी

  • जांच में होने वाली देरी को कम करेगी

  • नागरिकों के भरोसे और सेवा गुणवत्ता में सुधार करेगी

  • पुलिस संचालन को आधुनिक बनाएगी

  • एआई आधारित सुशासन के लिए राष्ट्रीय मानक स्थापित करेगी

बढ़ते साइबर खतरों के युग में ऐसे डिजिटल टूल सरकारों को तेज़ और प्रभावी प्रतिक्रिया देने की क्षमता प्रदान करते हैं।

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