भारत का थोक मूल्य सूचकांक (WPI) आधारित महंगाई दर जुलाई 2025 में लगातार दूसरे महीने नकारात्मक रही, जो सालाना आधार पर –0.58% दर्ज की गई। यह थोक स्तर पर जारी डिफ्लेशन दर्शाता है कि खाद्य, ऊर्जा और धातु जैसे प्रमुख क्षेत्रों में इनपुट कीमतों में ठंडक का रुझान जारी है। वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के अनुसार, खाद्य पदार्थों, खनिज तेलों, कच्चे पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस और बेसिक मेटल उत्पादों की कीमतों में गिरावट मुख्य कारण रही।
जुलाई 2025 में थोक डिफ्लेशन के प्रमुख कारण
1. खाद्य वस्तुओं में तेज गिरावट
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WPI खाद्य सूचकांक –2.15% पर रहा।
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सब्जियां, अनाज, खाद्य तेल, दालें और नाशवंत वस्तुएं (जैसे प्याज और टमाटर) सस्ती हुईं।
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यह प्रवृत्ति खुदरा महंगाई (CPI) में भी दिखी, जहां अधिशेष आपूर्ति और मौसमी सुधारों से कीमतें घटीं।
2. प्राथमिक वस्तुएं (Primary Articles) और गिरीं
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प्राथमिक वस्तुओं में डिफ्लेशन –4.95% तक गहरा गया।
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कृषि उत्पादन, खनिज और वन उत्पादों की कीमतों में कमी इसका कारण रही।
3. ईंधन और ऊर्जा क्षेत्र में डिफ्लेशन
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अंतरराष्ट्रीय कच्चे तेल के दाम स्थिर रहने और घरेलू मांग मध्यम रहने से ईंधन एवं ऊर्जा सूचकांक –2.43% पर रहा।
विनिर्मित वस्तुओं (Manufactured Goods) में हल्की महंगाई
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विनिर्मित उत्पादों में महंगाई 2.05% रही।
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कुछ क्षेत्रों में इनपुट लागत सुधार और औद्योगिक मूल्य निर्धारण क्षमता बढ़ने का संकेत।
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उपभोक्ता टिकाऊ सामान और पूंजीगत वस्तुओं की स्थिर मांग ने सहारा दिया।
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यह दर्शाता है कि थोक स्तर पर डिफ्लेशन व्यापक नहीं है, बल्कि मुख्यतः प्राथमिक और ऊर्जा से जुड़ी वस्तुओं तक सीमित है।
WPI बनाम CPI
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WPI: थोक स्तर पर वस्तुओं की औसत कीमत में बदलाव को मापता है।
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CPI: खुदरा स्तर पर उपभोक्ताओं द्वारा चुकाई जाने वाली कीमतों को दर्शाता है।
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WPI (जुलाई 2025): –0.58%
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CPI (जुलाई 2025): 1.55% (पिछले 8 वर्षों में सबसे कम)
दोनों सूचकांकों में गिरावट व्यापक मूल्य नरमी की ओर इशारा करती है, जो भविष्य में मौद्रिक नीतियों को प्रभावित कर सकती है।
आर्थिक असर
सकारात्मक पहलू
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उद्योगों के लिए इनपुट लागत का बोझ कम
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उपभोक्ताओं के लिए वस्तुएं सस्ती
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RBI को ब्याज दरों को सहूलियतपूर्ण बनाए रखने की गुंजाइश
चुनौतियां
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उत्पादकों के मुनाफे पर दबाव
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कुछ क्षेत्रों में मांग की कमजोरी का संकेत
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खाद्य वस्तुओं में लगातार डिफ्लेशन से ग्रामीण आय प्रभावित हो सकती है


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