Haryana में भव्य स्तर पर मानाया जाएगा अंतरराष्ट्रीय सरस्वती महोत्सव

गीता जयंती समारोह की सफलता के बाद, अंतरराष्ट्रीय सरस्वती महोत्सव 2025 को हरियाणा में भव्य स्तर पर मनाने की तैयारी है। हरियाणा सरस्वती विरासत विकास बोर्ड के उपाध्यक्ष धूमन सिंह किरमच ने प्रेस वार्ता में घोषणा की कि यह महोत्सव 29 जनवरी से 4 फरवरी 2025 तक पिहोवा सरस्वती तीर्थ स्थल में आयोजित किया जाएगा। हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी इस महोत्सव का उद्घाटन आदिबद्री से करेंगे।

यह आयोजन हरियाणा की समृद्ध संस्कृति, शिल्पकला और पारंपरिक विरासत का अनूठा संगम होगा, जिसमें राज्य और राष्ट्रीय स्तर के अनेक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाएगा। यह महोत्सव पर्यटन को बढ़ावा देने के साथ-साथ स्थानीय कारीगरों और शिल्पकारों को वैश्विक मंच प्रदान करेगा।

महोत्सव 2025 की प्रमुख विशेषताएँ

  1. भव्य आयोजन और अवधि
    • यह महोत्सव 7 दिनों तक चलेगा (29 जनवरी – 4 फरवरी 2025)।
    • गीता जयंती की तर्ज पर इसे बड़े पैमाने पर मनाने की योजना है।
    • मुख्य स्थल पिहोवा सरस्वती तीर्थ स्थल होगा, लेकिन कार्यक्रम आदिबद्री से पिहोवा तक आयोजित किए जाएंगे।
  2. उद्घाटन एवं नेतृत्व
    • हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी आदिबद्री से महोत्सव का उद्घाटन करेंगे।
    • आयोजन हरियाणा सरस्वती विरासत विकास बोर्ड के मार्गदर्शन में किया जा रहा है।
  3. सांस्कृतिक एवं पारंपरिक प्रस्तुतियाँ
    • हरियाणा की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत, परंपराओं और कलाओं को प्रदर्शित किया जाएगा।
    • 100 से अधिक शिल्पकार अपनी पारंपरिक कला एवं शिल्पकला का प्रदर्शन करेंगे।
    • 25 स्टॉल हरियाणा की सांस्कृतिक विरासत को दर्शाने के लिए लगाए जाएंगे।
  4. सरकारी एवं जन भागीदारी
    • केंद्र और राज्य सरकार के 15 से अधिक विभागों के स्टॉल लगाए जाएंगे।
    • हरियाणा के पारंपरिक व्यंजनों को प्रदर्शित करने के लिए 10 फूड कोर्ट स्टॉल लगाए जाएंगे।
  5. पर्यटन एवं आर्थिक विकास
    • हरियाणा की सांस्कृतिक धरोहर को बढ़ावा देने और पर्यटन को प्रोत्साहित करने का लक्ष्य।
    • स्थानीय कलाकारों और शिल्पकारों को वैश्विक मंच प्रदान किया जाएगा।
    • यह महोत्सव हरियाणा की सांस्कृतिक पहचान को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मजबूत करेगा।
क्यों चर्चा में? हरियाणा में अंतरराष्ट्रीय सरस्वती महोत्सव का आयोजन
आयोजन का नाम अंतरराष्ट्रीय सरस्वती महोत्सव 2025
स्थान पिहोवा सरस्वती तीर्थ स्थल, हरियाणा
अवधि 29 जनवरी – 4 फरवरी 2025
उद्घाटन मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी (आदिबद्री से)
मुख्य आकर्षण सांस्कृतिक कार्यक्रम, कला एवं शिल्प प्रदर्शनी, विरासत स्टॉल
कारीगरों की भागीदारी 100+ शिल्पकार पारंपरिक हस्तकला प्रदर्शित करेंगे
सरकारी स्टॉल केंद्र और राज्य सरकार के 15+ स्टॉल
खाद्य स्टॉल 10 समर्पित फूड कोर्ट स्टॉल
कुल स्टॉल 25 स्टॉल हरियाणा की सांस्कृतिक विरासत प्रदर्शित करेंगे
उद्देश्य हरियाणा की विरासत को बढ़ावा देना, पर्यटन को प्रोत्साहित करना, स्थानीय कलाकारों का समर्थन करना

सरकार की लेटरल एंट्री योजना, जानें सबकुछ

भारत सरकार की लेटरल एंट्री योजना (पार्श्व प्रवेश योजना) को 2018 में शुरू किया गया था। इसका उद्देश्य निजी क्षेत्र के विशेषज्ञों को प्रशासनिक सेवाओं में शामिल करके सुशासन और दक्षता में सुधार करना था। इस योजना के तहत संयुक्त सचिव, निदेशक और उप-सचिव जैसे महत्वपूर्ण पदों पर बाहरी पेशेवरों की नियुक्ति की गई। हालांकि, समय के साथ इस योजना को राजनीतिक और व्यावहारिक चुनौतियों का सामना करना पड़ा, जिससे इसके मूल स्वरूप में बदलाव की जरूरत महसूस की गई। आइए इसके विकास, चुनौतियों और अनिश्चित भविष्य पर एक नज़र डालते हैं।

लेटरल एंट्री योजना का मूल उद्देश्य क्या था?

इस योजना का मुख्य उद्देश्य सरकारी तंत्र में नई विशेषज्ञता को शामिल करना था। इसके तहत निजी क्षेत्र के अनुभवी पेशेवरों को सरकार में तीन से पाँच वर्षों के अनुबंध या प्रतिनियुक्ति के आधार पर नियुक्त किया जाता था। यह पहल इसलिए लाई गई थी ताकि प्रशासन में नवीनता और आधुनिक दृष्टिकोण को शामिल किया जा सके।

हालांकि, यह योजना उतनी प्रभावी नहीं रही, जितनी उम्मीद थी। 2018 से अब तक केवल 63 नियुक्तियाँ ही की गईं, और यह योजना निजी क्षेत्र के बजाय सार्वजनिक क्षेत्र (PSUs) के अधिकारियों को अधिक आकर्षित करती दिखी। इस अपेक्षा और वास्तविकता के बीच के अंतर ने योजना की प्रासंगिकता पर सवाल खड़े कर दिए।

योजना को राजनीतिक विरोध क्यों झेलना पड़ा?

अगस्त 2024 में, भारत सरकार को लेटरल एंट्री के तहत 45 नए अधिकारियों की भर्ती के फैसले को वापस लेना पड़ा। कारण था – विपक्षी दलों द्वारा सामाजिक न्याय और आरक्षण प्रणाली की अनदेखी के आरोप।

कई राजनीतिक दलों और सामाजिक संगठनों ने सरकार पर आरोप लगाया कि यह योजना आरक्षित वर्गों के हक को नजरअंदाज कर रही है। इस विरोध के बाद केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने यह स्पष्ट किया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भविष्य में लेटरल एंट्री के तहत होने वाली सभी नियुक्तियों में जाति आधारित आरक्षण लागू करने का आश्वासन दिया है। यह कदम सरकार द्वारा विशेषज्ञता और सामाजिक न्याय के बीच संतुलन स्थापित करने का प्रयास माना जा रहा है।

लेटरल एंट्री योजना का भविष्य क्या होगा?

वर्तमान में, इस योजना की समीक्षा चल रही है, और इसके मूल स्वरूप में वापसी की संभावना कम है। सरकार इसे पुनर्गठित करने पर विचार कर रही है, ताकि यह अधिक प्रतिभाओं को आकर्षित कर सके और साथ ही न्यायसंगत प्रतिनिधित्व को भी सुनिश्चित कर सके।

संभावित बदलावों में आरक्षण व्यवस्था का समावेश, चयन प्रक्रिया में सुधार, और अधिक संविधान-संगत नीति बनाना शामिल हो सकता है। हालांकि, इस योजना के भविष्य को लेकर अनिश्चितता बनी हुई है।

लेटरल एंट्री योजना का भारतीय प्रशासन पर प्रभाव

लेटरल एंट्री योजना सरकार की एक महत्वाकांक्षी पहल थी, जिसका उद्देश्य प्रशासनिक सेवाओं को नए विचारों और आधुनिक विशेषज्ञता से सशक्त बनाना था। लेकिन राजनीतिक दबाव और न्यायसंगत भर्ती प्रक्रिया को लेकर उठे सवालों के कारण यह योजना गंभीर चुनौतियों का सामना कर रही है।

सरकार का यह निर्णय कि इसे संशोधित किया जाएगा, यह दर्शाता है कि वह विशेषज्ञता को बढ़ावा देने के साथ-साथ सामाजिक न्याय के सिद्धांतों को बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध है। इसलिए, जब तक योजना को एक नए और संतुलित स्वरूप में नहीं लाया जाता, तब तक इसका क्रियान्वयन अनिश्चित बना रहेगा।

समाचार में क्यों? मुख्य बिंदु
लेटरल एंट्री योजना – पुनर्गठन और राजनीतिक विरोध सरकार ने इस योजना के तहत 45 मिड-लेवल नौकरशाहों की भर्ती को रद्द कर दिया, क्योंकि विपक्ष ने जाति आधारित आरक्षण न होने पर आलोचना की।
योजना शुरू होने का वर्ष इस योजना को 2018 में लॉन्च किया गया था, ताकि निजी क्षेत्र के विशेषज्ञों को प्रशासनिक पदों पर लाया जा सके।
अब तक हुई नियुक्तियाँ योजना शुरू होने के बाद से अब तक 63 नियुक्तियाँ की गई हैं।
वर्तमान स्थिति यह योजना समीक्षा के अधीन है, और राजनीतिक व व्यावहारिक चुनौतियों के कारण इसका भविष्य अनिश्चित बना हुआ है।
संबंधित प्रमुख मंत्री केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने बताया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भविष्य की नियुक्तियों में आरक्षण लागू करने का आश्वासन दिया है।
योजना का उद्देश्य संयुक्त सचिव, निदेशक और उप-सचिव जैसे पदों पर निजी क्षेत्र के पेशेवरों को संविदा/प्रतिनियुक्ति के आधार पर नियुक्त करना।
आरक्षण से जुड़ा विवाद लेटरल एंट्री नियुक्तियों में जाति आधारित आरक्षण न होने के कारण राजनीतिक विरोध झेलना पड़ा।
आरक्षण का कार्यान्वयन भविष्य की लेटरल एंट्री नियुक्तियों में आरक्षित वर्गों के लिए आरक्षण शामिल किया जाएगा।

जानें कब पेश किया गया था भारत का पहला मिनी बजट, देखें इतिहास

जैसे ही वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण 1 फरवरी 2025 को अपना लगातार आठवां केंद्रीय बजट प्रस्तुत करने की तैयारी कर रही हैं, यह भारत के बजट से जुड़े ऐतिहासिक तथ्यों और महत्वपूर्ण घटनाओं को याद करने का सही अवसर है। इन्हीं में से एक प्रमुख घटना थी 1956 में भारत का पहला मिनी बजट।

मिनी बजट क्या होता है?

मिनी बजट एक विशेष परिस्थिति में पेश किया जाने वाला बजटीय प्रस्ताव होता है, जो वार्षिक बजट चक्र के बाहर प्रस्तुत किया जाता है। इसे आमतौर पर विशेष आर्थिक परिस्थितियों या राजनीतिक परिदृश्यों के कारण पेश किया जाता है। उदाहरण के लिए, चुनावी वर्षों में, निवर्तमान सरकार अंतरिम बजट प्रस्तुत करती है, और जब नई सरकार सत्ता में आती है, तो वह अतिरिक्त वित्तीय उपायों को लागू करने के लिए मिनी बजट ला सकती है।

भारत का पहला मिनी बजट (1956)

भारत का पहला मिनी बजट 30 नवंबर 1956 को पेश किया गया था। इसे टी. टी. कृष्णामाचारी ने प्रस्तुत किया, जो उस समय भारत के चौथे वित्त मंत्री थे। उन्होंने अपने बजट भाषण में लगभग 5,000 शब्दों का विस्तृत विवरण दिया, जिसमें भारत की आर्थिक चुनौतियों और सरकार की नीतियों पर चर्चा की गई थी।

1956 में मिनी बजट की आवश्यकता क्यों पड़ी?

1956 का मिनी बजट भारत की गंभीर आर्थिक चुनौतियों के बीच प्रस्तुत किया गया था। उस समय देश को निम्नलिखित समस्याओं का सामना करना पड़ रहा था:

  • बढ़ती महंगाई: भारतीय अर्थव्यवस्था उच्च मुद्रास्फीति (महंगाई दर) से जूझ रही थी।
  • विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट: भारत का विदेशी मुद्रा भंडार लगातार कम हो रहा था, जिससे आर्थिक स्थिरता खतरे में पड़ गई थी।

इन चुनौतियों का सामना करने के लिए, टी. टी. कृष्णामाचारी ने नए कर प्रस्तावों की घोषणा की, जो वित्त विधेयकों के माध्यम से लागू किए गए। इन उपायों का उद्देश्य भारतीय अर्थव्यवस्था को स्थिर करना और आर्थिक संतुलन बहाल करना था।

टी. टी. कृष्णामाचारी का पतन

हालांकि, वित्तीय मामलों में अपनी गहरी समझ के बावजूद, टी. टी. कृष्णामाचारी का कार्यकाल विवादों से घिरा रहा। फरवरी 1958 में, न्यायमूर्ति चागला आयोग की रिपोर्ट में उन्हें भ्रष्टाचार का दोषी पाया गया, जिसके चलते उन्हें वित्त मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा।

नेहरू का वित्त मंत्री के रूप में बजट पेश करना (1958-59)

कृष्णामाचारी के इस्तीफे के बाद, तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने स्वयं वित्त मंत्रालय का कार्यभार संभाला। इस दौरान, वित्त मंत्री के बिना, नेहरू ने स्वयं 1958-59 का केंद्रीय बजट प्रस्तुत किया। यह उनकी बहुमुखी नेतृत्व क्षमता को दर्शाता है।

दूसरा मिनी बजट: टी. टी. कृष्णामाचारी की वापसी (1965)

हालांकि भ्रष्टाचार के आरोपों के कारण टी. टी. कृष्णामाचारी को इस्तीफा देना पड़ा था, लेकिन एक दशक से भी कम समय में, वे दोबारा वित्त मंत्री बने। अपने दूसरे कार्यकाल में, उन्होंने अगस्त 1965 में दूसरा मिनी बजट प्रस्तुत किया।

टी. टी. कृष्णामाचारी की विरासत

अपने पूरे कार्यकाल में, टी. टी. कृष्णामाचारी ने कुल छह बजट प्रस्तुत किए, जिनमें से दो मिनी बजट थे।
हालांकि उनका कार्यकाल विवादों से घिरा रहा, लेकिन उन्होंने भारत की वित्तीय नीतियों को आकार देने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

1956 का मिनी बजट न केवल भारत की अर्थव्यवस्था के लिए एक ऐतिहासिक घटना थी, बल्कि इसने भविष्य में वित्तीय नीतियों को निर्धारित करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

केंद्रीय बजट 2025: ‘बही खाता’ क्या है?

2019 में, भारत की पहली पूर्णकालिक महिला वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बजट प्रस्तुति के दिन पारंपरिक ब्रीफकेस की जगह ‘बही खाता’ लेकर एक ऐतिहासिक कदम उठाया। यह परिवर्तन सिर्फ एक प्रतीकात्मक बदलाव नहीं था, बल्कि यह भारत की सांस्कृतिक विरासत, वित्तीय समावेशन और औपनिवेशिक परंपराओं से अलग होने का महत्वपूर्ण संकेत था।

‘बही खाता’ क्या है?

बही खाता पारंपरिक भारतीय लेखा-बही है, जिसका उपयोग व्यापारिक लेन-देन और वित्तीय रिकॉर्ड रखने के लिए किया जाता है। यह एक कपड़े में लिपटी हुई बंधी हुई किताब होती है, जिसमें हाथ से लिखे गए खाते दर्ज होते हैं। ‘बही’ का अर्थ ‘पुस्तक’ और ‘खाता’ का अर्थ ‘लेखांकन’ से है।

निर्मला सीतारमण द्वारा बजट के दौरान प्रस्तुत किया गया बही खाता लाल कपड़े में लिपटा हुआ था, जो भारतीय संस्कृति में समृद्धि और सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है। यह पारंपरिक लेखा-पद्धति भारत की आर्थिक आकांक्षाओं और सांस्कृतिक पहचान का प्रतीक बन गया।

औपनिवेशिक विरासत और ब्रीफकेस की परंपरा

दशकों तक, भारत के वित्त मंत्री संसद के बाहर बजट दस्तावेजों को चमड़े के ब्रीफकेस में लेकर खड़े होते थे। यह परंपरा ब्रिटिश शासन से चली आ रही थी और पश्चिमी नौकरशाही का प्रतीक बन गई थी।

2019 में ‘बही खाता’ का उपयोग औपनिवेशिक परंपराओं से अलग होकर भारतीय पहचान को अपनाने की दिशा में एक बड़ा कदम माना गया।

ब्रीफकेस से ‘बही खाता’ की ओर बदलाव क्यों?

इस बदलाव का उद्देश्य केवल एक प्रतीकात्मक परिवर्तन नहीं था, बल्कि यह भारत की बदलती पहचान और प्राथमिकताओं को दर्शाता है। इसके पीछे कई महत्वपूर्ण कारण हैं:

  1. औपनिवेशिक परंपराओं से दूर जाने की दिशा में एक कदम
    • ‘बही खाता’ अपनाना भारतीय शासन प्रणाली में विदेशी प्रभावों को कम करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रयास है।
    • यह भारत की स्वदेशी परंपराओं और आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ने की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
  2. भारतीय सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक
    • भारत में लेखा-बही की परंपरा सदियों पुरानी है।
    • यह पारंपरिक लेखांकन प्रणाली और आर्थिक प्रबंधन की गहरी जड़ों को दर्शाता है।
  3. वित्तीय समावेशन का प्रतीक
    • ब्रीफकेस आमतौर पर उच्च वर्गीय नौकरशाहों और कॉर्पोरेट अधिकारियों से जुड़ा होता है।
    • इसके विपरीत, ‘बही खाता’ आम व्यापारियों, छोटे व्यवसायों और परिवारिक उद्यमों से जुड़ा हुआ है, जो भारत की अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं।
    • यह बदलाव सभी वर्गों के लिए आर्थिक समावेशन और सरकार की नीतियों को व्यापक स्तर पर पहुंचाने के संकल्प को दर्शाता है।
  4. परंपरा और आधुनिकता का समावेश
    • ‘बही खाता’ पारंपरिक लेखा प्रणाली का हिस्सा होते हुए भी आधुनिक वित्तीय नीतियों और योजनाओं का प्रतिनिधित्व करता है।
    • यह संकेत देता है कि भारत अपनी जड़ों से जुड़ा रहकर भी प्रगति की राह पर आगे बढ़ सकता है।

आधुनिक लेखांकन में ‘बही खाता’ की प्रासंगिकता

आज के डिजिटल युग में अधिकांश व्यवसाय कंप्यूटर आधारित लेखांकन प्रणाली, सॉफ्टवेयर और डिजिटल टूल्स का उपयोग करते हैं। हालांकि, छोटे व्यापारी और पारंपरिक व्यवसाय आज भी बही खाते का उपयोग करते हैं।

बजट प्रस्तुति में ‘बही खाता’ का उपयोग इस यात्रा का प्रतीक है कि भारत पारंपरिक लेखा प्रणालियों से आधुनिक डिजिटल अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ रहा है, लेकिन अपनी जड़ों को नहीं भूला है।

आधुनिक भारत में ‘बही खाता’ का महत्व

आज के संदर्भ में, ‘बही खाता’ भारत के वार्षिक बजट का प्रतीक बन चुका है। यह दर्शाता है:

  • आर्थिक समृद्धि – लाल कपड़े में लिपटा ‘बही खाता’ समृद्धि और सौभाग्य का प्रतीक है।
  • संस्कृतिक पहचान – यह भारतीय परंपराओं और स्वदेशी आर्थिक प्रणालियों के महत्व को उजागर करता है।
  • समावेशी शासन – यह उन छोटे व्यापारियों और आम नागरिकों से जुड़ता है जो भारतीय अर्थव्यवस्था की नींव रखते हैं।

निष्कर्ष

‘बही खाता’ का उपयोग सिर्फ एक परंपरा का पुनरुत्थान नहीं, बल्कि यह भारत की आर्थिक और सांस्कृतिक पहचान को दोबारा स्थापित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह आधुनिक आर्थिक नीतियों और पारंपरिक मूल्यों के संतुलन को दर्शाता है और आत्मनिर्भर भारत के दृष्टिकोण को मजबूत करता है।

गणतंत्र दिवस परेड 2025: सर्वश्रेष्ठ मार्चिंग दस्तों और झांकियों के परिणाम घोषित

कर्तव्य पथ, दिल्ली में गणतंत्र दिवस परेड भारत की सैन्य शक्ति, सांस्कृतिक विविधता और ऐतिहासिक विरासत का भव्य प्रदर्शन है। 2025 की गणतंत्र दिवस परेड में अनुशासन, परंपरा और कलात्मकता की शानदार झलक देखने को मिली, जहां मार्चिंग टुकड़ियों और झांकियों ने सर्वोत्तम प्रदर्शन के लिए प्रतिस्पर्धा की। परिणाम तीन विशेषज्ञ पैनलों द्वारा घोषित किए गए, और MyGov पोर्टल पर हुए ऑनलाइन जनमत संग्रह ने ‘लोकप्रिय पसंद’ (पॉपुलर च्वाइस) विजेताओं का निर्धारण किया।

सर्वश्रेष्ठ मार्चिंग टुकड़ियाँ: अनुशासन और उत्कृष्टता का प्रदर्शन

रक्षा कर्मियों, अर्धसैनिक बलों और पुलिस की मार्चिंग टुकड़ियों ने अनुकरणीय समन्वय, सटीकता और देशभक्ति का प्रदर्शन किया। विजेता इस प्रकार रहे:

न्यायाधीशों की पसंद:

  • सेनाओं में सर्वश्रेष्ठ मार्चिंग टुकड़ी: जम्मू एवं कश्मीर रायफल्स
  • CAPFs/अन्य सहायक बलों में सर्वश्रेष्ठ मार्चिंग टुकड़ी: दिल्ली पुलिस मार्चिंग टुकड़ी

लोकप्रिय पसंद (MyGov जनमत संग्रह):

  • सेनाओं में सर्वश्रेष्ठ मार्चिंग टुकड़ी: सिग्नल्स टुकड़ी
  • CAPFs/अन्य सहायक बलों में सर्वश्रेष्ठ मार्चिंग टुकड़ी: CRPF मार्चिंग टुकड़ी

जम्मू एवं कश्मीर रायफल्स टुकड़ी ने अनुशासित और समन्वित मार्चिंग से जूरी को प्रभावित किया, जबकि दिल्ली पुलिस टुकड़ी ने उत्कृष्ट परेड ड्रिल का प्रदर्शन किया। जनमत संग्रह में सिग्नल्स टुकड़ी और CRPF टुकड़ी को जनता ने सर्वाधिक पसंद किया।

भारत की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत को दर्शाती शीर्ष झांकियाँ

गणतंत्र दिवस परेड का सबसे प्रतीक्षित हिस्सा झांकी प्रदर्शन होता है, जहां विभिन्न राज्य, केंद्र शासित प्रदेश और केंद्रीय मंत्रालय अपनी विशिष्ट विरासत, उपलब्धियों और परंपराओं को भव्य रूप से प्रस्तुत करते हैं।

राज्य/केंद्र शासित प्रदेशों की सर्वश्रेष्ठ झांकियाँ (न्यायाधीशों की पसंद):

  • उत्तर प्रदेश“महाकुंभ 2025 – स्वर्णिम भारत: विरासत और विकास”
    • यह झांकी महाकुंभ 2025 की भव्यता को दर्शाती है, जो दुनिया के सबसे बड़े धार्मिक आयोजनों में से एक है। इसमें कुंभ मेले के आध्यात्मिक, ऐतिहासिक और आर्थिक महत्व को प्रस्तुत किया गया।
  • त्रिपुरा“शाश्वत श्रद्धा: त्रिपुरा में 14 देवताओं की पूजा – खारची पूजा”
    • यह झांकी खारची पूजा को प्रदर्शित करती है, जो त्रिपुरा का पारंपरिक त्योहार है। इसने आदिवासी और हिंदू परंपराओं के अद्वितीय संगम को उजागर किया।
  • आंध्र प्रदेश“एतिकोप्पका बोम्मालु – पर्यावरण अनुकूल लकड़ी के खिलौने”
    • यह झांकी एतिकोप्पका लकड़ी के खिलौनों की उत्कृष्ट कारीगरी को दर्शाती है, जो अपनी जैविक लाह तकनीक और सांस्कृतिक महत्व के लिए जानी जाती है।

केंद्रीय मंत्रालयों/विभागों की सर्वश्रेष्ठ झांकी (न्यायाधीशों की पसंद):

  • जनजातीय कार्य मंत्रालय“जनजातीय गौरव वर्ष”
    • इस झांकी ने भारत की जनजातीय समुदायों की विरासत को प्रदर्शित किया और उनके कल्याण के लिए सरकार की पहल को उजागर किया।

विशेष पुरस्कार:

  • केंद्रीय लोक निर्माण विभाग (CPWD)“भारत के संविधान के 75 वर्ष”
    • इस झांकी ने भारतीय संविधान की यात्रा को दर्शाया, जिसमें डॉ. बी.आर. अंबेडकर की दृष्टि और संविधान के तहत प्राप्त महत्वपूर्ण उपलब्धियों को प्रदर्शित किया गया।
  • ‘जयति जय मम भारतम’ नृत्य दल
    • इस नृत्य प्रदर्शन को भारत की सांस्कृतिक जीवंतता और देशभक्ति को दर्शाने के लिए विशेष मान्यता दी गई।

लोकप्रिय पसंद (MyGov जनमत संग्रह) में विजेता झांकियाँ

सरकार ने MyGov पोर्टल पर 26 से 28 जनवरी 2025 तक ऑनलाइन मतदान आयोजित किया, जिसमें जनता ने अपनी पसंदीदा झांकियों को चुना। परिणाम इस प्रकार रहे:

  • गुजरात“स्वर्णिम भारत: विरासत और विकास”
    • इस झांकी ने भारत की समृद्ध विरासत और तीव्र विकास को प्रदर्शित किया, जिससे भारत की वैश्विक शक्ति बनने की यात्रा उजागर हुई।
  • उत्तर प्रदेश“महाकुंभ 2025 – स्वर्णिम भारत: विरासत और विकास”
    • यह झांकी जनता के बीच भी अत्यधिक लोकप्रिय रही और जनमत संग्रह में दूसरा स्थान प्राप्त किया।
  • उत्तराखंड“उत्तराखंड: सांस्कृतिक विरासत और साहसिक खेल”
    • इस झांकी ने उत्तराखंड की आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और साहसिक पर्यटन क्षमता को प्रस्तुत किया, जो इसे धार्मिक और एडवेंचर टूरिज्म के लिए महत्वपूर्ण बनाती है।

केंद्रीय मंत्रालयों/विभागों की सर्वश्रेष्ठ झांकी (लोकप्रिय पसंद):

  • महिला एवं बाल विकास मंत्रालय“महिला और बच्चों की बहुआयामी यात्रा”
    • इस झांकी ने महिला और बच्चों की प्रगति को दर्शाया, जिसमें स्वास्थ्य, शिक्षा और सशक्तिकरण से जुड़ी सरकारी योजनाओं की उपलब्धियों को प्रदर्शित किया गया।

निष्कर्ष

गणतंत्र दिवस परेड 2025 ने भारत की सैन्य शक्ति, सांस्कृतिक विविधता और ऐतिहासिक धरोहर को भव्यता से प्रदर्शित किया। सेना, पुलिस और अर्धसैनिक बलों की अनुशासित मार्चिंग टुकड़ियों से लेकर विभिन्न राज्यों और मंत्रालयों की आकर्षक झांकियों तक, यह आयोजन भारत की एकता और गौरवशाली परंपराओं का प्रतीक बना। जनता और न्यायाधीशों दोनों की पसंद को मान्यता देने से यह परेड और भी खास बन गई।

कैबिनेट ने 16,300 करोड़ रुपये के राष्ट्रीय महत्वपूर्ण खनिज मिशन को मंजूरी दी

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने राष्ट्रीय क्रिटिकल मिनरल मिशन (CMM) को मंजूरी दे दी है, जिसमें 16,300 करोड़ रुपये का बजट आवंटित किया गया है। यह पहल उन खनिजों की महत्वपूर्ण आवश्यकता को पूरा करने के लिए शुरू की गई है जो प्रमुख तकनीकों और रक्षा उत्पादन के लिए आवश्यक हैं। इस मिशन का उद्देश्य आवश्यक खनिजों के घरेलू उत्पादन को बढ़ाना, आयात पर निर्भरता कम करना, और भारत की संसाधन सुरक्षा को मजबूत करना है। इसमें स्थलीय और अपतटीय दोनों प्रकार की खनन गतिविधियों को प्रोत्साहित किया जाएगा।

मिशन के प्रमुख उद्देश्य

  • महत्वपूर्ण खनिजों का अन्वेषण: स्थलीय और अपतटीय क्षेत्रों में खोज कार्य को बढ़ावा देना।
  • नियामक प्रक्रियाओं को सरल बनाना: खनन परियोजनाओं की शीघ्र मंजूरी के लिए त्वरित अनुमोदन प्रणाली विकसित करना।
  • वित्तीय प्रोत्साहन: अन्वेषण गतिविधियों को प्रोत्साहित करने के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करना।
  • खनन क्षमताओं को बढ़ावा देना: भारत के बाहर भी महत्वपूर्ण खनिज संपत्तियों के अधिग्रहण को समर्थन देना।
  • राष्ट्रीय भंडार निर्माण: दीर्घकालिक संसाधन सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण खनिजों का भंडार बनाना।
  • आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देना: स्थानीय खनन गतिविधियों को प्रोत्साहित करके आयात निर्भरता को कम करना।
  • सार्वजनिक और निजी क्षेत्र की भागीदारी: सरकार और उद्योग जगत के बीच सहयोग को बढ़ावा देना।

राष्ट्रीय क्रिटिकल मिनरल मिशन के प्रमुख कदम

  1. अन्वेषण: भारत और इसके समुद्री क्षेत्रों में महत्वपूर्ण खनिजों की खोज।
  2. नियामक सरलीकरण: खनन परियोजनाओं को त्वरित मंजूरी देने के लिए प्रक्रियाओं का सरलीकरण।
  3. अन्वेषण के लिए प्रोत्साहन: अन्वेषण गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए वित्तीय सहायता।
  4. खनिज पुनर्प्राप्ति: खदानों के अपशिष्ट और अवशेषों से महत्वपूर्ण खनिज निकालने पर ध्यान केंद्रित करना।
  5. अंतरराष्ट्रीय सहयोग: अन्य देशों से महत्वपूर्ण खनिज संपत्तियों का अधिग्रहण कर भारत की खनिज सुरक्षा को मजबूत करना।
  6. राष्ट्रीय भंडार निर्माण: आपूर्ति की निरंतरता सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण खनिजों का राष्ट्रीय भंडार तैयार करना।

उद्योग जगत की भागीदारी

  • सरकार सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों (PSU) और निजी कंपनियों को विदेशों में महत्वपूर्ण खनिज संपत्तियों का अधिग्रहण करने के लिए प्रोत्साहित कर रही है।
  • यह मिशन उद्योगों को सरकार की आत्मनिर्भर भारत योजना के तहत खनिज संसाधनों में आत्मनिर्भर बनाने में मदद करेगा।
  • सरकार ने 48 महत्वपूर्ण खनिज ब्लॉकों की सफल नीलामी की है, जिनमें से 24 ब्लॉक आवंटित किए जा चुके हैं और उद्योग जगत की भागीदारी बढ़ाने के लिए नए ब्लॉकों की पेशकश जारी है।

क्रिटिकल मिनरल्स की परिभाषा

  • ये खनिज आर्थिक विकास और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए आवश्यक हैं।
  • यदि ये खनिज केवल कुछ देशों में केंद्रित हों, तो आपूर्ति श्रृंखला में रुकावट और अस्थिरता आ सकती है।

क्रिटिकल मिनरल्स की वैश्विक घोषणाएँ

  • अमेरिका ने 50 खनिजों को राष्ट्रीय सुरक्षा और आर्थिक कारणों से महत्वपूर्ण घोषित किया है।
  • जापान ने 31 खनिजों को क्रिटिकल मिनरल्स की सूची में रखा है।
  • यूनाइटेड किंगडम ने 18 खनिजों को महत्वपूर्ण माना है।
  • यूरोपीय संघ ने 34 खनिजों, और कनाडा ने 31 खनिजों की सूची जारी की है।

भारत के लिए क्रिटिकल मिनरल्स का महत्व

आर्थिक विकास

  • उच्च तकनीक इलेक्ट्रॉनिक्स, दूरसंचार, परिवहन और रक्षा उद्योगों के लिए आवश्यक।
  • सौर पैनल, पवन टर्बाइन, बैटरियां और इलेक्ट्रिक वाहनों जैसी हरित प्रौद्योगिकियों के लिए अपरिहार्य।
  • इन क्षेत्रों में विकास से रोजगार सृजन, आय वृद्धि और नवाचार को बढ़ावा मिलेगा।

राष्ट्रीय सुरक्षा

  • रक्षा, अंतरिक्ष, परमाणु और एयरोस्पेस अनुप्रयोगों के लिए उच्च गुणवत्ता वाली सामग्री आवश्यक।
  • इन खनिजों से अत्यधिक तापमान और कठोर परिस्थितियों में काम करने वाले उपकरण बनाए जाते हैं।

पर्यावरणीय स्थिरता

  • भारत को नवीकरणीय ऊर्जा की ओर स्थानांतरित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे।
  • जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम करके ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कटौती करेंगे।
  • भारत के 2030 तक 450 GW नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता के लक्ष्य को पूरा करने में सहायक।

भारत के सामने क्रिटिकल मिनरल्स से जुड़ी चुनौतियाँ

  1. रूस-यूक्रेन संघर्ष का प्रभाव – वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में अस्थिरता।
  2. सीमित घरेलू भंडार – भारत में कई महत्वपूर्ण खनिजों का भंडार सीमित मात्रा में उपलब्ध है।
  3. खनिजों की बढ़ती मांग – भारत की इलेक्ट्रॉनिक्स, ऑटोमोबाइल और रक्षा क्षेत्र की वृद्धि के कारण क्रिटिकल मिनरल्स की मांग लगातार बढ़ रही है।

राष्ट्रीय क्रिटिकल मिनरल मिशन इन सभी चुनौतियों से निपटने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा और भारत को खनिज संसाधनों में आत्मनिर्भर बनाने के लिए एक मजबूत नींव तैयार करेगा।

सारांश/स्थिर जानकारी विवरण
समाचार में क्यों? कैबिनेट ने राष्ट्रीय क्रिटिकल मिनरल मिशन के लिए 16,300 करोड़ रुपये की मंजूरी दी।
क्रिटिकल मिनरल अन्वेषण स्थलीय और अपतटीय क्षेत्रों में महत्वपूर्ण खनिजों की खोज पर जोर।
नियामक प्रक्रिया खनन परियोजनाओं के लिए त्वरित अनुमोदन प्रणाली स्थापित करना।
वित्तीय प्रोत्साहन अन्वेषण गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करना।
खनिज पुनर्प्राप्ति ओवरबर्डन और अवशेषों से महत्वपूर्ण खनिजों की पुनर्प्राप्ति पर ध्यान केंद्रित करना।
सार्वजनिक-निजी भागीदारी सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों (PSU), निजी क्षेत्र और सरकार के बीच सहयोग को बढ़ावा देना।
अपतटीय खनन आयात निर्भरता कम करने के लिए अपतटीय खनन नीलामी शुरू करना।
राष्ट्रीय भंडार महत्वपूर्ण खनिजों का राष्ट्रीय भंडार बनाना।
खनिजों में आत्मनिर्भरता स्थानीय उत्पादन बढ़ाकर आयात पर निर्भरता कम करना।
क्रिटिकल मिनरल्स आर्थिक विकास और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए आवश्यक; सीमित उपलब्धता या कुछ क्षेत्रों में खनन केंद्रित होने से आपूर्ति जोखिम बढ़ता है।
विभिन्न देशों की क्रिटिकल मिनरल सूची अमेरिका (50), जापान (31), ब्रिटेन (18), यूरोपीय संघ (34), कनाडा (31)।
भारत के लिए महत्व आर्थिक वृद्धि, राष्ट्रीय सुरक्षा और स्वच्छ ऊर्जा प्रौद्योगिकियों के माध्यम से पर्यावरणीय स्थिरता।
चुनौतियाँ सीमित घरेलू भंडार, आयात पर निर्भरता (लिथियम, निकेल), भू-राजनीतिक अस्थिरता (रूस-यूक्रेन संघर्ष), खनिजों की बढ़ती मांग।

‘बीटिंग रिट्रीट’ समारोह क्या है?

बीटिंग रिट्रीट समारोह की शुरुआत 1950 के दशक में भारतीय सेना के मेजर रॉबर्ट्स द्वारा की गई थी। इसकी जड़ें यूरोपीय सैन्य परंपराओं में देखी जा सकती हैं, जहाँ सूर्यास्त के समय युद्धविराम की घोषणा की जाती थी, सैनिक अपने हथियार रख देते थे और शिविरों में लौट जाते थे।

भारत में पहली बार बीटिंग रिट्रीट समारोह 1950 के दशक में ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ और प्रिंस फिलिप के सम्मान में आयोजित किया गया था। इसके बाद से, यह एक वार्षिक परंपरा बन गई, जिसमें भारतीय सशस्त्र बलों के शौर्य और बलिदान को सम्मानित किया जाता है।

समारोह का महत्व

बीटिंग रिट्रीट केवल एक संगीत कार्यक्रम नहीं है, बल्कि यह भारतीय सशस्त्र बलों की अनुशासन, एकता और गौरवशाली परंपराओं का प्रतीक भी है। इस भव्य आयोजन में भारत के राष्ट्रपति, जो सशस्त्र बलों के सर्वोच्च कमांडर होते हैं, अन्य गणमान्य व्यक्तियों, रक्षा कर्मियों और आम जनता की उपस्थिति होती है। समारोह के अंत में राष्ट्रीय ध्वज को सम्मानपूर्वक उतारा जाता है, जिससे गणतंत्र दिवस समारोह का आधिकारिक समापन होता है।

समारोह का स्थान और तिथि

यह समारोह प्रत्येक वर्ष 29 जनवरी को, गणतंत्र दिवस के तीन दिन बाद, नई दिल्ली के विजय चौक पर आयोजित किया जाता है। इस दौरान, भव्य राष्ट्रपति भवन (राष्ट्रपति भवन) की पृष्ठभूमि में यह आयोजन और भी शानदार प्रतीत होता है।

संगीत प्रस्तुतियां और अन्य कार्यक्रम

समारोह की सबसे आकर्षक विशेषता भारतीय सशस्त्र बलों के संयुक्त बैंड द्वारा प्रस्तुत की जाने वाली मनमोहक संगीत धुनें होती हैं। यह कार्यक्रम देशभक्ति गीतों, लोक संगीत और शास्त्रीय धुनों से सजीव होता है। कुछ प्रमुख आकर्षण इस प्रकार हैं:

  1. संयुक्त बैंड प्रस्तुति
    • भारतीय सेना, नौसेना, वायु सेना, CAPF और दिल्ली पुलिस के बैंड एक साथ मिलकर मधुर धुनें प्रस्तुत करते हैं।
    • ‘सारे जहाँ से अच्छा’, ‘कदम-कदम बढ़ाए जा’, और ‘अबाइड विद मी’ जैसी पारंपरिक सैन्य धुनें अक्सर इस आयोजन का हिस्सा होती हैं।
  2. राष्ट्रीय ध्वज उतारने की रस्म
    • जैसे-जैसे संगीत अपनी चरम सीमा पर पहुँचता है, भारतीय राष्ट्रीय ध्वज को धीरे-धीरे सम्मानपूर्वक उतारा जाता है, जिससे गणतंत्र दिवस समारोह का आधिकारिक समापन होता है।
  3. ड्रोन और लाइट शो (नवीनतम जोड़)
    • हाल के वर्षों में, इस ऐतिहासिक समारोह में ड्रोन शो और लेजर लाइट शो को शामिल किया गया है, जिससे इस पारंपरिक आयोजन में आधुनिक तकनीक का समावेश हुआ है।

बीटिंग रिट्रीट समारोह भारतीय संस्कृति और सैन्य परंपराओं का जीवंत प्रतीक है, जो हर वर्ष देशवासियों के हृदय में राष्ट्रप्रेम की भावना को और प्रबल कर देता है।

 

Khelo India Winter Games 2025: लद्दाख शीर्ष पर रहा; सेना ने जीता आइस हॉकी खिताब

खेलो इंडिया विंटर गेम्स (KIWG) 2025 के पहले चरण का समापन लेह, लद्दाख में हुआ, जहां लद्दाख ने शानदार प्रदर्शन करते हुए पदक तालिका में शीर्ष स्थान हासिल किया। इस प्रतियोगिता में आइस हॉकी और स्केटिंग जैसे रोमांचक खेलों का आयोजन हुआ, जिसमें लद्दाख, तमिलनाडु और महाराष्ट्र के खिलाड़ियों ने उल्लेखनीय प्रदर्शन किया।

मुख्य आकर्षण

1. लद्दाख की शानदार जीत

लद्दाख ने कुल 7 पदक (4 स्वर्ण सहित) जीतकर पदक तालिका में पहला स्थान हासिल किया। राज्य के खिलाड़ियों ने मिश्रित रिले और महिला आइस हॉकी में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया।

2. आइस हॉकी में भारतीय सेना की बादशाहत

भारतीय सेना ने आईटीबीपी को 2-1 से हराकर आइस हॉकी का खिताब बरकरार रखा। फाइनल मैच में जबरदस्त संघर्ष देखने को मिला, जिसमें अंतिम पलों में गोल दागे गए।

3. तमिलनाडु की स्केटिंग में सफलता

तमिलनाडु ने स्केटिंग में खुद को उभरते हुए प्रतिभा केंद्र के रूप में स्थापित किया। राज्य ने तीन स्वर्ण पदक जीते, जिसमें महिला 500 मीटर लॉन्ग ट्रैक में यशश्री की जीत सबसे उल्लेखनीय रही।

4. महाराष्ट्र का प्रदर्शन

महाराष्ट्र ने कुल 10 पदक जीतकर सबसे अधिक पदक अर्जित किए, लेकिन केवल 2 स्वर्ण पदक जीतने के कारण वह पदक तालिका में तीसरे स्थान पर रहा।

5. महिला आइस हॉकी में लद्दाख का बदला

लद्दाख की महिला आइस हॉकी टीम ने आईटीबीपी को 4-0 से हराकर पिछले साल की हार का बदला लिया और राउंड-रॉबिन लीग में शीर्ष स्थान हासिल किया।

6. आगामी चरण

खेलो इंडिया विंटर गेम्स 2025 का दूसरा चरण गुलमर्ग, जम्मू-कश्मीर में 22 से 25 फरवरी तक आयोजित होगा।

मुख्य बिंदु विवरण
क्यों खबर में? लद्दाख ने खेलो इंडिया विंटर गेम्स 2025 में पहला स्थान हासिल किया; सेना ने आइस हॉकी खिताब बरकरार रखा
कुल विजेता लद्दाख (7 पदक, 4 स्वर्ण)
दूसरा स्थान तमिलनाडु (5 पदक, 3 स्वर्ण)
तीसरा स्थान महाराष्ट्र (10 पदक, 2 स्वर्ण)
लद्दाख का शीर्ष प्रदर्शन मिश्रित रिले स्वर्ण (लद्दाख – 3:02.19 सेकंड)
स्केटिंग चैंपियन (तमिलनाडु) यशश्री (महिला 500 मीटर लॉन्ग ट्रैक, 00:58.00 सेकंड)
महिला आइस हॉकी विजेता लद्दाख (आईटीबीपी को 4-0 से हराया)
पुरुष आइस हॉकी विजेता भारतीय सेना

सिक्किम टैक्स-फ्री क्यों है?

सिक्किम, भारत के उत्तर-पूर्वी क्षेत्र में स्थित एक सुरम्य राज्य, अपनी खूबसूरत वादियों, समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और विशिष्ट कर-नीतियों के लिए प्रसिद्ध है। अन्य भारतीय राज्यों की तुलना में सिक्किम को विशेष कर-मुक्त स्थिति प्राप्त है, जो इसे अद्वितीय बनाती है। इस लेख में सिक्किम की कर-मुक्त स्थिति के ऐतिहासिक, कानूनी और सामाजिक-आर्थिक पहलुओं पर प्रकाश डाला गया है।

सिक्किम कर-मुक्त क्यों है?

1. एक स्वतंत्र राज्य के रूप में सिक्किम

सिक्किम, भारत में विलय से पहले, नामग्याल वंश द्वारा शासित एक स्वतंत्र साम्राज्य था। इसका अपना प्रशासनिक एवं कर प्रणाली थी, जो भारत के अन्य राज्यों से भिन्न थी।

2. भारत-सिक्किम संधि, 1950

भारत की स्वतंत्रता के बाद, 1950 में भारत और सिक्किम के बीच एक संधि हुई, जिससे सिक्किम को भारत का एक संरक्षित राज्य (प्रोटेक्टरट) बना दिया गया। इस संधि के तहत, सिक्किम को आंतरिक स्वायत्तता दी गई, जबकि भारत ने इसकी रक्षा, विदेशी मामलों और संचार व्यवस्था को नियंत्रित किया।

3. 1975 में भारत में विलय

1975 में एक जनमत संग्रह (रेफरेंडम) के बाद, सिक्किम आधिकारिक रूप से भारत का 22वां राज्य बन गया। हालांकि, इस विलय की शर्तें विशेष थीं। 36वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1975 के माध्यम से भारतीय संविधान में अनुच्छेद 371F जोड़ा गया, जिसमें सिक्किम की विशिष्ट पहचान, कानूनी व्यवस्थाओं और कर छूट जैसे विशेष अधिकारों को बनाए रखा गया।

कानूनी आधार: अनुच्छेद 371F और कर छूट

1. भारतीय संविधान का अनुच्छेद 371F

यह अनुच्छेद सिक्किम की विशिष्ट पहचान को सुरक्षित रखता है और यह सुनिश्चित करता है कि सिक्किम के मौजूदा कानून और विशेषाधिकार जारी रहें, जिसमें कर छूट भी शामिल है।

2. सिक्किम आयकर नियमावली, 1948

सिक्किम का कर ढांचा पहले से ही 1948 की सिक्किम आयकर नियमावली द्वारा संचालित था। भारत में विलय के बाद, इसे धीरे-धीरे राष्ट्रीय कानूनों के अनुरूप लाया गया, लेकिन स्थानीय सिक्किमी निवासियों के लिए विशेष कर छूट जारी रखी गई।

2008 में कर कानून में बदलाव: धारा 10(26AAA)

2008 के केंद्रीय बजट में आयकर अधिनियम की धारा 10 (26AAA) जोड़ी गई, जिससे सिक्किम के निवासियों के लिए कर छूट को औपचारिक रूप दिया गया।

धारा 10 (26AAA) के प्रमुख प्रावधान:

  • आयकर छूट: सिक्किम के निवासी राज्य के भीतर अर्जित आय, लाभांश और प्रतिभूतियों (securities) से प्राप्त ब्याज पर आयकर से मुक्त हैं।
  • SEBI छूट: सिक्किम के निवासियों को भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) द्वारा निवेश के लिए पैन कार्ड की आवश्यकता से मुक्त कर दिया गया।

सर्वोच्च न्यायालय का ऐतिहासिक निर्णय और प्रभाव

1. पुराने भारतीय निवासियों का अपवर्जन (Exclusion of Old Indian Settlers)

शुरुआत में, धारा 10 (26AAA) ने 1975 से पहले सिक्किम में बसे भारतीय नागरिकों को कर छूट से बाहर रखा था। इसके खिलाफ सिक्किम के पुराने भारतीय निवासियों के संघ (AOSS) ने याचिका दायर की, जिसमें इसे भेदभावपूर्ण बताया गया।

2. सर्वोच्च न्यायालय का ऐतिहासिक फैसला

सर्वोच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में कहा कि सिक्किम के सभी निवासियों को कर छूट का लाभ मिलना चाहिए, चाहे वे पुराने भारतीय निवासी हों या वे महिलाएं जिन्होंने 1 अप्रैल 2008 के बाद गैर-सिक्किमी पुरुषों से विवाह किया हो। कोर्ट ने अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार), 15 (भेदभाव निषेध) और 21 (जीवन का अधिकार) का हवाला देते हुए इस अपवर्जन को असंवैधानिक करार दिया।

वर्तमान स्थिति और कर-मुक्त स्थिति के लाभ

1. कर छूट का सार्वभौमिक विस्तार

सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के बाद, कर छूट का लाभ सभी पात्र सिक्किम निवासियों को दिया जा रहा है, जिसमें शामिल हैं:

  • आयकर छूट: सिक्किम के भीतर अर्जित आय पर कोई कर नहीं।
  • निवेश लाभ: भारतीय प्रतिभूति बाजार में निवेश के लिए पैन कार्ड की अनिवार्यता समाप्त

2. सामाजिक-आर्थिक प्रभाव

सिक्किम की कर-मुक्त स्थिति से राज्य के आर्थिक विकास और सामाजिक कल्याण में वृद्धि हुई है। यह नीति:

  • निवेश को आकर्षित करती है
  • पर्यटन को बढ़ावा देती है
  • अधोसंरचना (इंफ्रास्ट्रक्चर) के विकास में सहायक होती है

निष्कर्ष

सिक्किम की कर-मुक्त स्थिति ऐतिहासिक, कानूनी और सामाजिक कारणों से स्थापित की गई है। अनुच्छेद 371F और धारा 10 (26AAA) के तहत, सिक्किम को विशिष्ट कर लाभ दिए गए हैं, जिससे राज्य की आर्थिक और सामाजिक प्रगति को गति मिली है। सर्वोच्च न्यायालय के हालिया निर्णय ने समानता और निष्पक्षता को सुनिश्चित करते हुए इस नीति को और अधिक समावेशी बना दिया है।

भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में उल्लेखनीय गिरावट

भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में उल्लेखनीय गिरावट दर्ज की गई है, जो देश की मौजूदा आर्थिक चुनौतियों को दर्शाती है। 10 जनवरी 2025 तक भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 625.87 अरब डॉलर रह गया, जो पिछले सप्ताह के 634.59 अरब डॉलर से घटा है।

भंडार में गिरावट के कारण क्या हैं?

भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) रुपये को स्थिर रखने के लिए विदेशी मुद्रा बाजार में हस्तक्षेप कर रहा है, जिससे भंडार में कमी आई है। इसके अलावा, डॉलर के मुकाबले रुपये के अवमूल्यन ने भी इन हस्तक्षेपों की आवश्यकता को बढ़ा दिया है।

पिछले स्तरों की तुलना में यह स्थिति कैसी है?

सितंबर 2024 में भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 704.89 अरब डॉलर के रिकॉर्ड स्तर पर था। हालांकि, इसके बाद लगातार गिरावट जारी है, और कुछ ही महीनों में भंडार लगभग 79 अरब डॉलर घट चुका है।

भारतीय अर्थव्यवस्था पर प्रभाव

विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट से RBI की मुद्रा स्थिरता बनाए रखने और बाहरी आर्थिक झटकों से निपटने की क्षमता प्रभावित होती है। साथ ही, निवेशक विश्वास पर असर पड़ सकता है और भारत के चालू खाता घाटे (CAD) के वित्तपोषण की क्षमता प्रभावित हो सकती है। RBI ने संकेत दिया है कि मौजूदा भंडार का सावधानीपूर्वक उपयोग किया जाएगा ताकि आर्थिक चुनौतियों का प्रभावी रूप से सामना किया जा सके।

मुख्य बिंदु विवरण
क्यों खबर में? 10 जनवरी 2025 तक भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 625.87 अरब डॉलर रह गया, जो पिछले सप्ताह के 634.59 अरब डॉलर से कम है। यह गिरावट रुपये को स्थिर रखने के लिए RBI के हस्तक्षेप और वैश्विक आर्थिक चुनौतियों के कारण हुई है।
सर्वाधिक विदेशी मुद्रा भंडार (2024) 704.89 अरब डॉलर (सितंबर 2024)
अब तक की कुल गिरावट 79 अरब डॉलर
गिरावट के मुख्य कारण RBI का हस्तक्षेप, रुपये का अवमूल्यन, वैश्विक आर्थिक अस्थिरता
आर्थिक प्रभाव RBI की मुद्रा स्थिरता बनाए रखने और चालू खाता घाटे (CAD) के वित्तपोषण की क्षमता प्रभावित
नियामक संस्था भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI)
भारत का चालू खाता घाटा व्यापार असंतुलन बढ़ने के कारण और खराब हुआ
पिछले वर्षों की तुलना कोविड-19 के निम्न स्तर (600 अरब डॉलर से कम) से अधिक, लेकिन 2024 के शिखर स्तर से कम

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