भारत सरकार की लेटरल एंट्री योजना (पार्श्व प्रवेश योजना) को 2018 में शुरू किया गया था। इसका उद्देश्य निजी क्षेत्र के विशेषज्ञों को प्रशासनिक सेवाओं में शामिल करके सुशासन और दक्षता में सुधार करना था। इस योजना के तहत संयुक्त सचिव, निदेशक और उप-सचिव जैसे महत्वपूर्ण पदों पर बाहरी पेशेवरों की नियुक्ति की गई। हालांकि, समय के साथ इस योजना को राजनीतिक और व्यावहारिक चुनौतियों का सामना करना पड़ा, जिससे इसके मूल स्वरूप में बदलाव की जरूरत महसूस की गई। आइए इसके विकास, चुनौतियों और अनिश्चित भविष्य पर एक नज़र डालते हैं।
लेटरल एंट्री योजना का मूल उद्देश्य क्या था?
इस योजना का मुख्य उद्देश्य सरकारी तंत्र में नई विशेषज्ञता को शामिल करना था। इसके तहत निजी क्षेत्र के अनुभवी पेशेवरों को सरकार में तीन से पाँच वर्षों के अनुबंध या प्रतिनियुक्ति के आधार पर नियुक्त किया जाता था। यह पहल इसलिए लाई गई थी ताकि प्रशासन में नवीनता और आधुनिक दृष्टिकोण को शामिल किया जा सके।
हालांकि, यह योजना उतनी प्रभावी नहीं रही, जितनी उम्मीद थी। 2018 से अब तक केवल 63 नियुक्तियाँ ही की गईं, और यह योजना निजी क्षेत्र के बजाय सार्वजनिक क्षेत्र (PSUs) के अधिकारियों को अधिक आकर्षित करती दिखी। इस अपेक्षा और वास्तविकता के बीच के अंतर ने योजना की प्रासंगिकता पर सवाल खड़े कर दिए।
योजना को राजनीतिक विरोध क्यों झेलना पड़ा?
अगस्त 2024 में, भारत सरकार को लेटरल एंट्री के तहत 45 नए अधिकारियों की भर्ती के फैसले को वापस लेना पड़ा। कारण था – विपक्षी दलों द्वारा सामाजिक न्याय और आरक्षण प्रणाली की अनदेखी के आरोप।
कई राजनीतिक दलों और सामाजिक संगठनों ने सरकार पर आरोप लगाया कि यह योजना आरक्षित वर्गों के हक को नजरअंदाज कर रही है। इस विरोध के बाद केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने यह स्पष्ट किया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भविष्य में लेटरल एंट्री के तहत होने वाली सभी नियुक्तियों में जाति आधारित आरक्षण लागू करने का आश्वासन दिया है। यह कदम सरकार द्वारा विशेषज्ञता और सामाजिक न्याय के बीच संतुलन स्थापित करने का प्रयास माना जा रहा है।
लेटरल एंट्री योजना का भविष्य क्या होगा?
वर्तमान में, इस योजना की समीक्षा चल रही है, और इसके मूल स्वरूप में वापसी की संभावना कम है। सरकार इसे पुनर्गठित करने पर विचार कर रही है, ताकि यह अधिक प्रतिभाओं को आकर्षित कर सके और साथ ही न्यायसंगत प्रतिनिधित्व को भी सुनिश्चित कर सके।
संभावित बदलावों में आरक्षण व्यवस्था का समावेश, चयन प्रक्रिया में सुधार, और अधिक संविधान-संगत नीति बनाना शामिल हो सकता है। हालांकि, इस योजना के भविष्य को लेकर अनिश्चितता बनी हुई है।
लेटरल एंट्री योजना का भारतीय प्रशासन पर प्रभाव
लेटरल एंट्री योजना सरकार की एक महत्वाकांक्षी पहल थी, जिसका उद्देश्य प्रशासनिक सेवाओं को नए विचारों और आधुनिक विशेषज्ञता से सशक्त बनाना था। लेकिन राजनीतिक दबाव और न्यायसंगत भर्ती प्रक्रिया को लेकर उठे सवालों के कारण यह योजना गंभीर चुनौतियों का सामना कर रही है।
सरकार का यह निर्णय कि इसे संशोधित किया जाएगा, यह दर्शाता है कि वह विशेषज्ञता को बढ़ावा देने के साथ-साथ सामाजिक न्याय के सिद्धांतों को बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध है। इसलिए, जब तक योजना को एक नए और संतुलित स्वरूप में नहीं लाया जाता, तब तक इसका क्रियान्वयन अनिश्चित बना रहेगा।
समाचार में क्यों? | मुख्य बिंदु |
लेटरल एंट्री योजना – पुनर्गठन और राजनीतिक विरोध | सरकार ने इस योजना के तहत 45 मिड-लेवल नौकरशाहों की भर्ती को रद्द कर दिया, क्योंकि विपक्ष ने जाति आधारित आरक्षण न होने पर आलोचना की। |
योजना शुरू होने का वर्ष | इस योजना को 2018 में लॉन्च किया गया था, ताकि निजी क्षेत्र के विशेषज्ञों को प्रशासनिक पदों पर लाया जा सके। |
अब तक हुई नियुक्तियाँ | योजना शुरू होने के बाद से अब तक 63 नियुक्तियाँ की गई हैं। |
वर्तमान स्थिति | यह योजना समीक्षा के अधीन है, और राजनीतिक व व्यावहारिक चुनौतियों के कारण इसका भविष्य अनिश्चित बना हुआ है। |
संबंधित प्रमुख मंत्री | केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने बताया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भविष्य की नियुक्तियों में आरक्षण लागू करने का आश्वासन दिया है। |
योजना का उद्देश्य | संयुक्त सचिव, निदेशक और उप-सचिव जैसे पदों पर निजी क्षेत्र के पेशेवरों को संविदा/प्रतिनियुक्ति के आधार पर नियुक्त करना। |
आरक्षण से जुड़ा विवाद | लेटरल एंट्री नियुक्तियों में जाति आधारित आरक्षण न होने के कारण राजनीतिक विरोध झेलना पड़ा। |
आरक्षण का कार्यान्वयन | भविष्य की लेटरल एंट्री नियुक्तियों में आरक्षित वर्गों के लिए आरक्षण शामिल किया जाएगा। |