फ्रेडरिक मर्ज़ जर्मनी के नए चांसलर बने

जर्मनी में एक महत्वपूर्ण राजनीतिक परिवर्तन के तहत, क्रिश्चियन डेमोक्रेटिक यूनियन (CDU) के नेता फ्रेडरिक मर्ज़ देश के अगले चांसलर बनने जा रहे हैं। उनकी पार्टी ने क्रिश्चियन सोशल यूनियन (CSU) के साथ मिलकर 2025 के संघीय चुनावों में जीत हासिल की है, जिससे ओलाफ शॉल्ज़ के कार्यकाल के बाद जर्मनी के नेतृत्व में बदलाव आया है। 69 वर्ष की आयु में, मर्ज़ 1949 में कोनराड एडेनॉयर के बाद इस पद को संभालने वाले सबसे उम्रदराज़ व्यक्ति होंगे। उनका सत्ता में आना रूढ़िवादी नेतृत्व की वापसी का संकेत देता है, जो जर्मनी की घरेलू शासन और वैश्विक मामलों में उसकी भूमिका को प्रभावित कर सकता है।

फ्रेडरिक मर्ज़ का राजनीतिक सफर और नेतृत्व:

फ्रेडरिक मर्ज़ का राजनीतिक करियर 1989 में यूरोपीय संसद के सदस्य के रूप में शुरू हुआ। 1994 में, वे बुंडेस्टाग के सदस्य बने और CDU में वित्तीय नीति विशेषज्ञ के रूप में पहचाने गए। हालांकि, आंतरिक पार्टी परिवर्तनों, विशेष रूप से एंजेला मर्केल के बढ़ते प्रभाव के कारण, उन्हें 2009 में राजनीति से बाहर होना पड़ा। इस दौरान, मर्ज़ ने कॉर्पोरेट क्षेत्र में मजबूत करियर बनाया, विशेष रूप से 2016 से 2020 तक ब्लैकरॉक जर्मनी के चेयरमैन के रूप में सेवा की।

2021 में उनकी राजनीति में वापसी रणनीतिक थी, और कई प्रयासों के बाद, उन्होंने 2022 में CDU का नेतृत्व संभाला। उनकी नेतृत्व शैली मर्केल के केंद्रवादी दृष्टिकोण से भिन्न है, जो आर्थिक उदारवाद और सख्त आप्रवासन नीतियों पर केंद्रित है। राजनीति और व्यवसाय दोनों में उनके अनुभव ने उन्हें एक मजबूत वित्तीय पृष्ठभूमि वाला नेता बनाया है, जो जर्मनी की आर्थिक दिशा को आकार दे सकता है।

मर्ज़ के नेतृत्व से जुड़े विवाद:

मर्ज़ अपने प्रमुख मुद्दों, विशेष रूप से आप्रवासन और यूरोपीय सुरक्षा पर रूढ़िवादी रुख के लिए जाने जाते हैं। जनवरी 2025 में, उन्होंने एक सख्त आप्रवासन विधेयक को आगे बढ़ाया, जिसे दूर-दराज़ की पार्टी अल्टरनेटिव फॉर जर्मनी (AfD) का अप्रत्यक्ष समर्थन मिला। यह कदम जर्मनी में एक राजनीतिक मानदंड को तोड़ता है, जहां मुख्यधारा की पार्टियां पारंपरिक रूप से चरमपंथी समूहों के साथ सहयोग से बचती हैं। उनका निर्णय AfD के बढ़ते प्रभाव को रोकने के प्रयास के रूप में देखा गया।

इसके अतिरिक्त, मर्ज़ ने रक्षा मामलों में संयुक्त राज्य अमेरिका पर जर्मनी की निर्भरता को कम करने की वकालत की है। वे यूरोपीय सैन्य क्षमताओं को मजबूत करने के पक्षधर हैं, यह तर्क देते हुए कि यूरोप को अधिक आत्मनिर्भर होना चाहिए, न कि नाटो और अमेरिकी नेतृत्व वाले सुरक्षा ढांचे पर अत्यधिक निर्भर। यह रुख आने वाले वर्षों में जर्मनी की रक्षा और विदेश नीति रणनीति को बदल सकता है।

मर्ज़ के नेतृत्व में संभावित परिवर्तन:

मर्ज़ का नेतृत्व विशेष रूप से आर्थिक और विदेशी मामलों में महत्वपूर्ण नीति परिवर्तनों की उम्मीद है। उनका ध्यान नौकरशाही को कम करने और निजी क्षेत्र की वृद्धि को बढ़ावा देने पर है, जो उनकी वित्तीय पृष्ठभूमि के अनुरूप है। उन्होंने व्यापार निवेश को प्रोत्साहित करने के लिए कर नीतियों में संशोधन में भी रुचि व्यक्त की है।

अंतरराष्ट्रीय मोर्चे पर, यूरोपीय संघ और वैश्विक गठबंधनों के प्रति उनका दृष्टिकोण महत्वपूर्ण होगा। हालांकि वे यूरोपीय एकीकरण का समर्थन करते हैं, लेकिन राष्ट्रीय हितों पर उनका जोर जर्मनी की यूरोपीय संघ के भीतर की भूमिका को फिर से परिभाषित कर सकता है। वैश्विक नेताओं, विशेष रूप से अमेरिका और चीन के साथ उनके संबंध, यह निर्धारित करेंगे कि जर्मनी प्रमुख भू-राजनीतिक चुनौतियों को कैसे नेविगेट करता है।

जैसे ही वे सोशल डेमोक्रेट्स (SPD) के साथ गठबंधन सरकार बनाने की तैयारी कर रहे हैं, मर्ज़ को अपने रूढ़िवादी नीतियों और प्रभावी शासन के लिए आवश्यक व्यापक राजनीतिक सहमति के बीच संतुलन बनाना होगा। उनका चांसलर के रूप में कार्यकाल आने वाले वर्षों में जर्मनी की आर्थिक नीतियों, आप्रवासन कानूनों और वैश्विक साझेदारियों को आकार देगा।

प्रमुख पहलू विवरण
क्यों चर्चा में? फ्रेडरिक मर्ज़ CDU/CSU की 2025 चुनावी जीत के बाद जर्मनी के अगले चांसलर बनने जा रहे हैं।
आयु 69 वर्ष (1949 में कोनराड एडेनॉयर के बाद सबसे उम्रदराज़ चांसलर)
राजनीतिक करियर 1989 में यूरोपीय संसद से शुरुआत, 1994 में बुंडेस्टाग के सदस्य बने, 2022 से CDU के नेता।
पिछला पद ब्लैकरॉक जर्मनी के चेयरमैन (2016–2020)
विवाद दूर-दराज़ पार्टी AfD के अप्रत्यक्ष समर्थन से आप्रवासन कानून में सुधार का प्रयास।
प्रमुख नीतियां सख्त आप्रवासन कानून, आर्थिक उदारवाद, यूरोपीय रक्षा स्वायत्तता।
विदेश नीति रुख अमेरिका पर निर्भरता कम करने और यूरोपीय रक्षा को मजबूत करने की वकालत।
संभावित गठबंधन सोशल डेमोक्रेट्स (SPD) के साथ सरकार बनाने की संभावना।
जर्मनी पर प्रभाव रूढ़िवादी नीतियों की ओर रुख, आर्थिक और विदेश नीति में महत्वपूर्ण बदलाव।

विश्व स्तर पर मृत्यु के शीर्ष 10 प्रमुख कारण

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की वर्ल्ड हेल्थ स्टैटिस्टिक्स 2024 रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2021 में हुई कुल 68 मिलियन मौतों में से लगभग 57% (39 मिलियन मौतें) केवल शीर्ष 10 कारणों से हुईं। कोविड-19 महामारी ने वैश्विक मृत्यु दर के पैटर्न को बदल दिया, जिससे संक्रामक बीमारियों का प्रभाव बढ़ा और औसत जीवन प्रत्याशा (life expectancy) में गिरावट आई।

कोविड-19 महामारी का वैश्विक मृत्यु दर पर प्रभाव

WHO के अनुसार, महामारी के कारण:

  • वैश्विक जीवन प्रत्याशा 1.8 वर्ष घटकर 2021 में 71.4 वर्ष हो गई।
  • स्वस्थ जीवन प्रत्याशा (HALE) 1.5 वर्ष कम होकर 61.9 वर्ष रह गई।
  • गैर-संचारी रोगों (NCDs) से होने वाली मौतें 2020 में 70.0% से घटकर 2021 में 65.3% रह गईं।
  • संचारी रोगों (Communicable Diseases) से होने वाली मौतें 2020 में 23.0% से बढ़कर 2021 में 28.1% हो गईं, जो 2005 के बाद सबसे अधिक थी।

वैश्विक स्तर पर शीर्ष 10 मृत्यु के प्रमुख कारण

रैंक मृत्यु का कारण मृत्यु (मिलियन में) कुल मृत्यु का प्रतिशत मुख्य जोखिम कारक
1 इस्केमिक हृदय रोग (IHD) 9.0M 13.2% अस्वस्थ आहार, शारीरिक निष्क्रियता, मोटापा, धूम्रपान, शराब, मधुमेह, उच्च कोलेस्ट्रॉल
2 कोविड-19 8.7M 12.8% वायरस का तेजी से फैलना, बुजुर्गों में जटिलताएँ, हेल्थकेयर संसाधनों की कमी, नए वेरिएंट
3 स्ट्रोक 7.0M 10.2% उच्च रक्तचाप, मधुमेह, धूम्रपान, शराब, मोटापा, हृदय रोग
4 क्रॉनिक ऑब्स्ट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (COPD) 3.5M 5.2% धूम्रपान, वायु प्रदूषण, रसायनों के संपर्क में आना, अनुवांशिक कारक
5 निम्न श्वसन संक्रमण (Lower Respiratory Infections) 2.5M 3.6% कमजोर प्रतिरक्षा तंत्र, वायु प्रदूषण, धूम्रपान, स्वास्थ्य सेवाओं की कमी
6 श्वासनली, ब्रोंकस और फेफड़ों का कैंसर 1.9M 2.7% धूम्रपान, वायु प्रदूषण, कार्सिनोजेन्स का संपर्क
7 अल्ज़ाइमर और अन्य डिमेंशिया 1.8M 2.7% बढ़ती उम्र, आनुवंशिकता, जीवनशैली, हृदय रोग
8 मधुमेह 1.6M 2.4% अस्वस्थ आहार, मोटापा, शारीरिक निष्क्रियता, आनुवंशिक प्रवृत्ति
9 गुर्दे की बीमारियाँ (Kidney Diseases) 1.4M 2.1% मधुमेह, उच्च रक्तचाप, मोटापा, नमक-प्रोटीन युक्त आहार, देर से पहचान
10 क्षय रोग (TB) 1.4M 2.0% एचआईवी/एड्स, कुपोषण, खराब जीवन स्थितियाँ, स्वास्थ्य सेवाओं की कमी

प्रमुख बीमारियों का विश्लेषण

1. इस्केमिक हृदय रोग (IHD) – 9.0M मौतें (13.2%)

हृदय धमनियों में रुकावट के कारण रक्त प्रवाह बाधित हो जाता है, जिससे दिल का दौरा पड़ सकता है। प्रमुख जोखिम कारक:

  • अस्वस्थ आहार (संतृप्त वसा, चीनी और नमक की अधिकता)
  • शारीरिक निष्क्रियता और मोटापा
  • धूम्रपान और शराब सेवन
  • मधुमेह और उच्च कोलेस्ट्रॉल

2. कोविड-19 – 8.7M मौतें (12.8%)

2020 के बाद कोविड-19 महामारी वैश्विक स्तर पर मृत्यु का दूसरा सबसे बड़ा कारण बना। प्रमुख कारण:

  • तेज़ी से फैलने वाला वायरस
  • वृद्ध और अन्य बीमारियों से ग्रसित लोगों में जटिलताएँ
  • वैश्विक स्वास्थ्य सेवा प्रणाली पर अत्यधिक दबाव
  • नए वेरिएंट्स के कारण बढ़ती मृत्यु दर

3. स्ट्रोक – 7.0M मौतें (10.2%)

स्ट्रोक तब होता है जब मस्तिष्क को रक्त आपूर्ति रुक जाती है। प्रमुख कारण:

  • उच्च रक्तचाप
  • मधुमेह और मोटापा
  • धूम्रपान और अत्यधिक शराब सेवन
  • अनियमित हृदय गति (Atrial Fibrillation)

4. क्रॉनिक ऑब्स्ट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (COPD) – 3.5M मौतें (5.2%)

फेफड़ों की दीर्घकालिक बीमारी, जिससे सांस लेने में कठिनाई होती है। प्रमुख कारण:

  • लंबे समय तक वायु प्रदूषण के संपर्क में रहना
  • धूम्रपान
  • हानिकारक रसायनों और धूल के संपर्क में आना
  • आनुवंशिक कारण

5. निम्न श्वसन संक्रमण (2.5M मौतें, 3.6%)

प्रमुख रूप से निमोनिया और ब्रोंकाइटिस जैसी बीमारियाँ, जो कमजोर प्रतिरक्षा वाले लोगों को प्रभावित करती हैं। प्रमुख कारण:

  • वायु प्रदूषण और धूम्रपान
  • टीकाकरण और स्वास्थ्य सेवाओं की कमी

6. फेफड़ों का कैंसर (1.9M मौतें, 2.7%)

विश्व में सबसे घातक कैंसर, जिसका प्रमुख कारण धूम्रपान है। अन्य जोखिम कारक:

  • वायु प्रदूषण (घर के अंदर और बाहर)
  • हानिकारक पदार्थों (जैसे एस्बेस्टस) का संपर्क

7. अल्ज़ाइमर और डिमेंशिया (1.8M मौतें, 2.7%)

मानसिक कार्यों में गिरावट, जो बुजुर्गों को अधिक प्रभावित करती है। प्रमुख कारण:

  • बढ़ती उम्र
  • आनुवंशिक कारक
  • उच्च रक्तचाप और मधुमेह

8. मधुमेह (1.6M मौतें, 2.4%)

2000 से मधुमेह से होने वाली मौतों में 95% की वृद्धि हुई है। प्रमुख कारण:

  • अस्वस्थ आहार और चीनी का अधिक सेवन
  • मोटापा और शारीरिक निष्क्रियता
  • आनुवंशिक प्रवृत्ति

9. गुर्दे की बीमारियाँ (1.4M मौतें, 2.1%)

क्रोनिक किडनी डिजीज (CKD) मृत्यु दर के मामले में 19वें से 9वें स्थान पर आ गया है। प्रमुख कारण:

  • मधुमेह और उच्च रक्तचाप
  • मोटापा
  • असंतुलित आहार और देर से निदान

10. क्षय रोग (TB) – 1.4M मौतें (2.0%)

गरीब और निम्न-आय वाले देशों में यह घातक संक्रमण अधिक आम है। प्रमुख कारण:

  • एचआईवी/एड्स
  • कुपोषण और खराब जीवन परिस्थितियाँ
  • स्वास्थ्य सेवाओं की कमी

निष्कर्ष

इन 10 प्रमुख बीमारियों से वैश्विक स्वास्थ्य को सबसे अधिक नुकसान हो रहा है। महामारी ने जीवन प्रत्याशा को कम कर दिया, जबकि हृदय रोग, मधुमेह और कैंसर जैसी गैर-संचारी बीमारियाँ बढ़ रही हैं। स्वास्थ्य सेवाओं, जीवनशैली में सुधार और नई चिकित्सा तकनीकों से इन बीमारियों से होने वाली मौतों को रोका जा सकता है।

यूएई ने ब्लू वीज़ा पेश किया: विदेशियों के लिए 10 साल का निवास

संयुक्त अरब अमीरात (UAE) ने ब्लू वीजा प्रणाली का पहला चरण पेश किया है, जो पर्यावरणीय स्थिरता में योगदान देने वाले व्यक्तियों को 10 साल की रेजिडेंसी प्रदान करता है। यह पहल विश्व सरकार शिखर सम्मेलन 2025 (11-13 फरवरी, दुबई) के दौरान घोषित की गई थी। इसे जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण मंत्रालय (MoCCAE) और संघीय पहचान, नागरिकता, सीमा शुल्क और बंदरगाह सुरक्षा प्राधिकरण (ICP) द्वारा संयुक्त रूप से लॉन्च किया गया।

ब्लू वीजा के प्रमुख बिंदु

  • उद्देश्य: पर्यावरणीय स्थिरता और जलवायु कार्रवाई में योगदान देने वाले व्यक्तियों को दीर्घकालिक रेजिडेंसी देना।
  • अवधि: 10 वर्षों के लिए निवास परमिट।
  • घोषणा स्थान: विश्व सरकार शिखर सम्मेलन 2025, दुबई।

लॉन्चिंग प्राधिकरण

  • जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण मंत्रालय (MoCCAE)
  • संघीय पहचान, नागरिकता, सीमा शुल्क और बंदरगाह सुरक्षा प्राधिकरण (ICP)

लक्षित समूह

  • पर्यावरणीय नवाचार करने वाले और स्थिरता क्षेत्र के नेता।
  • अंतर्राष्ट्रीय संगठनों और गैर-सरकारी संगठनों (NGO) के सदस्य।
  • पर्यावरण संरक्षण में कार्यरत कॉर्पोरेट नेता।
  • वैश्विक स्थिरता पुरस्कार प्राप्तकर्ता।
  • स्थिरता समाधान पर शोध करने वाले वैज्ञानिक।

प्रारंभिक चरण

  • पहले चरण में 20 स्थिरता विशेषज्ञों को यह वीजा मिलेगा।
  • पात्र व्यक्ति ICP पोर्टल के माध्यम से आवेदन कर सकते हैं या यूएई प्राधिकरणों द्वारा नामांकित किए जा सकते हैं।

आवेदन प्रक्रिया

  • आवेदन प्रक्रिया पूरी तरह डिजिटल होगी और ICP वेबसाइट व मोबाइल ऐप के माध्यम से 24/7 उपलब्ध रहेगी।
  • सरकारी एजेंसियां भी स्थिरता क्षेत्र में कार्यरत योग्य उम्मीदवारों को नामांकित कर सकती हैं।

सरकारी टिप्पणियां

  • डॉ. अमना बिन्त अब्दुल्ला अल दाहाक, जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण मंत्री, ने यूएई की वैश्विक स्थिरता नेतृत्व की प्रतिबद्धता को दोहराया।
  • मेजर जनरल सुहैल सईद अल खैली, ICP के महानिदेशक, ने पुष्टि की कि यह वीजा ICP के डिजिटल प्लेटफार्मों के माध्यम से उपलब्ध होगा।
सारांश/स्थिर जानकारी विवरण
क्यों चर्चा में? UAE ने ब्लू वीजा लॉन्च किया: विदेशियों के लिए 10 साल की रेजिडेंसी
वीजा का नाम ब्लू वीजा
निवास अवधि 10 वर्ष
उद्देश्य पर्यावरणीय स्थिरता और जलवायु कार्रवाई को बढ़ावा देना
घोषणा स्थान विश्व सरकार शिखर सम्मेलन 2025, दुबई
लॉन्चिंग प्राधिकरण जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण मंत्रालय (MoCCAE) और संघीय पहचान, नागरिकता, सीमा शुल्क और बंदरगाह सुरक्षा प्राधिकरण (ICP)
पात्र व्यक्ति स्थिरता क्षेत्र के नेता, शोधकर्ता, कॉर्पोरेट लीडर, NGO सदस्य, पुरस्कार विजेता
आवेदन प्रक्रिया ICP वेबसाइट और मोबाइल ऐप के माध्यम से ऑनलाइन आवेदन
पहले चरण का चयन 20 स्थिरता विशेषज्ञों को वीजा मिलेगा
नामांकन प्रणाली UAE प्राधिकरण योग्य उम्मीदवारों को नामांकित कर सकते हैं
विस्तार किसका? UAE के गोल्डन वीजा और ग्रीन वीजा कार्यक्रम

भारत का पहला हाइपरलूप टेस्ट ट्रैक तैयार

आईआईटी मद्रास ने भारतीय रेलवे के सहयोग से भारत का पहला हाइपरलूप परीक्षण ट्रैक लॉन्च किया है, जो उच्च गति परिवहन में क्रांतिकारी बदलाव की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह 422-मीटर लंबी सुविधा आईआईटी मद्रास परिसर में स्थित है और इससे अल्ट्रा-फास्ट यात्रा को संभव बनाने की उम्मीद है, जिससे लंबी अंतरशहरी यात्राएँ कुछ ही मिनटों में पूरी की जा सकेंगी। हाइपरलूप प्रणाली विद्युत चुम्बकीय रूप से उत्तोलित (मैग्नेटिक लेविटेशन) पॉड्स का उपयोग करती है, जो निर्वात ट्यूबों के अंदर चलते हैं। इस तकनीक से वायु प्रतिरोध काफी कम हो जाता है और पॉड्स हवाई जहाज की गति के समान रफ्तार पकड़ सकते हैं।

हाइपरलूप कैसे काम करता है और इसे क्या खास बनाता है?

हाइपरलूप तकनीक चुंबकीय उत्तोलन के सिद्धांत पर काम करती है, जिसमें पॉड्स निर्वात ट्यूब के अंदर न्यूनतम घर्षण और वायु प्रतिरोध के साथ चलते हैं। इस प्रणाली की अधिकतम गति 1,200 किमी/घंटा तक हो सकती है, जो पारंपरिक रेल नेटवर्क की तुलना में कई गुना तेज़ है। रिपोर्टों के अनुसार, हाइपरलूप से दिल्ली-जयपुर या बेंगलुरु-चेन्नई जैसी दूरी केवल 30 मिनट में तय की जा सकती है। एलन मस्क द्वारा प्रस्तुत इस अवधारणा ने वैश्विक ध्यान आकर्षित किया है, और भारत की यह पहल इस भविष्य की परिवहन प्रणाली को वास्तविकता में बदलने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

इस परियोजना का नेतृत्व कौन कर रहा है और यह कैसे विकसित हो रही है?

यह परियोजना भारत सरकार और अकादमिक जगत के बीच मजबूत साझेदारी का परिणाम है। इस परीक्षण ट्रैक का वित्तपोषण रेलवे मंत्रालय द्वारा किया गया है और इसका उद्देश्य हाइपरलूप तकनीक को बड़े पैमाने पर विकसित करना है। रेलवे मंत्री अश्विनी वैष्णव ने इस शोध और परीक्षण को गति देने के लिए अतिरिक्त $1 मिलियन (लगभग 8.3 करोड़ रुपये) के अनुदान की घोषणा की है। आईआईटी मद्रास की अविष्कार हाइपरलूप टीम, जो वर्षों से इस अवधारणा पर काम कर रही है, इस परियोजना के विकास और पॉड्स के परीक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है।

भारत में हाइपरलूप कब हकीकत बनेगा?

इस परियोजना के अगले चरण में 40-50 किमी की दूरी के लिए एक पूर्ण पैमाने पर हाइपरलूप प्रणाली की पहचान की जाएगी। यदि पायलट परीक्षण सफल होता है, तो भारतीय रेलवे इसे वाणिज्यिक रूप से लागू करने की दिशा में आगे बढ़ेगा। एक बार लागू होने के बाद, यह तकनीक सार्वजनिक परिवहन को तेज़, अधिक कुशल और ऊर्जा-बचत करने वाला बना सकती है। इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, सरकार इस परियोजना को और आगे बढ़ाने के लिए पूरी तरह से तैयार है, ताकि यह निकट भविष्य में एक व्यवहार्य परिवहन साधन बन सके।

भारत का पहला हाइपरलूप परीक्षण ट्रैक परिवहन नवाचार में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है। यदि यह सफल होता है, तो यह देश में यात्रा को पूरी तरह से बदल सकता है, जिससे अंतरशहरी आवागमन तेज़ और अधिक सुविधाजनक हो जाएगा। निरंतर अनुसंधान और निवेश के साथ, हाइपरलूप यात्रा जल्द ही एक वास्तविकता बन सकती है और भारत को भविष्य की परिवहन प्रणालियों के क्षेत्र में अग्रणी बना सकती है।

पहलू विवरण
क्यों खबर में? आईआईटी मद्रास और भारतीय रेलवे ने भारत का पहला हाइपरलूप परीक्षण ट्रैक लॉन्च किया।
स्थान आईआईटी मद्रास परिसर, तमिलनाडु
ट्रैक की लंबाई 422 मीटर
प्रौद्योगिकी निर्वात ट्यूबों में विद्युत चुम्बकीय रूप से उत्तोलित (मैग्नेटिक लेविटेशन) पॉड्स
गति क्षमता 1,200 किमी/घंटा तक
यात्रा पर प्रभाव अंतरशहरी यात्रा को केवल 30 मिनट तक घटा सकता है (जैसे, दिल्ली-जयपुर, बेंगलुरु-चेन्नई)
वित्तपोषण रेलवे मंत्रालय, अतिरिक्त $1 मिलियन (लगभग 8.3 करोड़ रुपये) का अनुदान घोषित
आगे की योजना 40-50 किमी की दूरी के लिए वाणिज्यिक तैनाती की पहचान
महत्व भारत को भविष्य की परिवहन तकनीक में अग्रणी स्थान दिलाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम

जैव विविधता वित्त को बढ़ावा देने हेतु CBD COP16 में कैली फंड लॉन्च किया गया

वैश्विक जैव विविधता संरक्षण के क्षेत्र में 25 फरवरी 2025 को एक महत्वपूर्ण पहल की घोषणा की गई, जब रोम, इटली में जैव विविधता पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (CBD) के 16वें कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज (COP16) में “काली फंड” (Cali Fund) लॉन्च किया गया। यह अंतरराष्ट्रीय कोष उन निजी कंपनियों से वित्तीय योगदान प्राप्त करेगा, जो अपने उद्योगों में आनुवंशिक डेटा (Genetic Data) का उपयोग करती हैं, ताकि वे जैव विविधता संरक्षण प्रयासों में सक्रिय रूप से भाग लें।

काली फंड: जैव विविधता संरक्षण में एक नया कदम
काली फंड एक वैश्विक वित्तीय तंत्र है, जो उन व्यवसायों से धन एकत्र करेगा जो आनुवंशिक डेटा का उपयोग अपने संचालन में करते हैं। इस धन का उपयोग संरक्षण परियोजनाओं, वैज्ञानिक अनुसंधान और उन स्वदेशी समुदायों की सुरक्षा के लिए किया जाएगा, जो प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्र (Ecosystem) की रक्षा करते हैं।

कैसे काम करेगा काली फंड?
काली फंड डिजिटल अनुक्रमण जानकारी (DSI) से लाभ प्राप्त करने वाले उद्योगों से अनिवार्य वित्तीय योगदान लेगा, जिसमें शामिल हैं:

  • फार्मास्यूटिकल्स (Pharmaceuticals)
  • कॉस्मेटिक्स (Cosmetics)
  • कृषि (Agriculture)
  • बायोटेक्नोलॉजी (Biotechnology)

जो कंपनियां आनुवंशिक संसाधनों से आर्थिक लाभ प्राप्त करती हैं, उन्हें अब अपने राजस्व का एक हिस्सा जैव विविधता संरक्षण के लिए देना होगा।

डिजिटल अनुक्रमण जानकारी (DSI) का महत्व
DSI क्या है?
डिजिटल अनुक्रमण जानकारी (Digital Sequence Information) आनुवंशिक अनुक्रमों को डिजिटल स्वरूप में संग्रहित करने की प्रक्रिया है। इसका उपयोग दवा निर्माण, जैव अभियांत्रिकी (Genetic Engineering) और कृषि नवाचारों के लिए किया जाता है।

संरक्षण के लिए DSI क्यों महत्वपूर्ण है?
आनुवंशिक डेटा से कंपनियों को व्यावसायिक लाभ मिलता है, लेकिन जिन समुदायों और पारिस्थितिक तंत्रों से यह संसाधन प्राप्त होते हैं, उन्हें कोई प्रत्यक्ष लाभ नहीं मिलता। काली फंड इस असमानता को दूर करने और संरक्षण प्रयासों के लिए वित्तीय संसाधन प्रदान करने का प्रयास करेगा।

काली फंड का उपयोग: कहां जाएगा यह धन?

  1. जैव विविधता संरक्षण परियोजनाएं – संरक्षित क्षेत्रों और वैश्विक संरक्षण पहलों के लिए वित्त पोषण।
  2. विकासशील देशों को सहायता – जैव विविधता कार्य योजनाओं को लागू करने में मदद।
  3. वैज्ञानिक अनुसंधान और डेटा प्रबंधन – आनुवंशिक डेटा संग्रहण और विश्लेषण में सुधार के लिए वित्त पोषण।
  4. स्वदेशी और स्थानीय समुदायों का सशक्तिकरण – कम से कम 50% धनराशि स्वदेशी समुदायों के लिए निर्धारित, जो पर्यावरण संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

प्रबंधन और संचालन
काली फंड का प्रबंधन संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) और संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) द्वारा किया जाएगा, जबकि मल्टी-पार्टनर ट्रस्ट फंड ऑफिस (MPTFO) प्रशासनिक कार्यों की देखरेख करेगा।

काली फंड: एक ऐतिहासिक उपलब्धि

  1. पहला UN जैव विविधता कोष जिसमें व्यवसायों का प्रत्यक्ष योगदान – यह पहली बार है जब कोई UN जैव विविधता कोष निजी कंपनियों से सीधे वित्तीय योगदान प्राप्त करेगा।
  2. कुनमिंग-मॉन्ट्रियल ग्लोबल बायोडायवर्सिटी फ्रेमवर्क (KMGBF) के अनुरूप – जैव विविधता हानि को 2030 तक रोकने और पुनर्स्थापित करने के लक्ष्य को मजबूत करेगा।
  3. व्यवसायों को उनकी जिम्मेदारी निभाने के लिए प्रेरित करेगा – यह सुनिश्चित करेगा कि जैव विविधता से लाभ प्राप्त करने वाली कंपनियां इसके संरक्षण में भी योगदान दें, जिससे एक सतत वित्तीय मॉडल विकसित हो सके।

काली फंड वैश्विक जैव विविधता संरक्षण प्रयासों को नई दिशा देगा और यह सुनिश्चित करेगा कि आर्थिक विकास और पर्यावरणीय स्थिरता के बीच संतुलन बना रहे।

श्रेणी विवरण
क्यों चर्चा में? 25 फरवरी 2025 को रोम में COP16 में काली फंड लॉन्च किया गया, जिससे जैव विविधता से लाभ उठाने वाली निजी कंपनियां संरक्षण प्रयासों में वित्तीय योगदान देंगी।
काली फंड क्या है? एक वैश्विक जैव विविधता वित्त तंत्र जो डिजिटल अनुक्रमण जानकारी (DSI) का उपयोग करने वाले व्यवसायों से धन एकत्र करेगा और इसे संरक्षण, अनुसंधान और समुदाय समर्थन में लगाएगा।
कौन योगदान देगा? DSI पर निर्भर उद्योग जैसे फार्मास्यूटिकल्स, कॉस्मेटिक्स, कृषि और बायोटेक्नोलॉजी अपने राजस्व का एक हिस्सा योगदान देंगे।
DSI क्यों महत्वपूर्ण है? डिजिटल अनुक्रमण जानकारी (DSI) पौधों, जानवरों और सूक्ष्मजीवों से प्राप्त आनुवंशिक डेटा को संदर्भित करता है, जिसका उपयोग अनुसंधान और उत्पाद विकास में किया जाता है।
धन आवंटन जैव विविधता संरक्षण परियोजनाएं (संरक्षित क्षेत्र, प्रजाति संरक्षण)
विकासशील देश (जैव विविधता कार्य योजनाओं को सहायता)
वैज्ञानिक अनुसंधान (आनुवंशिक डेटा प्रबंधन में सुधार)
स्वदेशी एवं स्थानीय समुदाय (कुल निधि का कम से कम 50%)
प्रबंधन संगठन – संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP)
– संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP)
– मल्टी-पार्टनर ट्रस्ट फंड ऑफिस (MPTFO) (प्रशासनिक कार्यों की देखरेख)
प्रमुख हस्तियां एवं बयान सुसाना मुहामद (COP16 अध्यक्ष): “कोलंबिया को ‘La COP de la Gente’ में काली फंड को अंतिम रूप देने पर गर्व है।”
एस्ट्रिड शोमेकर (CBD कार्यकारी सचिव): “यह जैव विविधता के लिए सामूहिक कार्रवाई का एक नया युग है।”
मार्कोस नेटो (UNDP सतत वित्त हब निदेशक): “यह कोष जैव विविधता संरक्षण प्रयासों के वित्त पोषण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।”
यह ऐतिहासिक क्यों है? – पहला UN जैव विविधता कोष जो व्यवसायों से प्रत्यक्ष योगदान प्राप्त करेगा।
– कुनमिंग-मॉन्ट्रियल वैश्विक जैव विविधता रूपरेखा (KMGBF) के 2030 तक जैव विविधता हानि को रोकने के लक्ष्य को समर्थन देगा।
– आनुवंशिक संसाधनों के लाभों का उचित साझाकरण सुनिश्चित करेगा।

विश्व प्रोटीन दिवस 2025: इतिहास और महत्त्व

विश्व प्रोटीन दिवस, जो हर साल 27 फरवरी को मनाया जाता है, मानव पोषण में प्रोटीन के महत्व के बारे में जागरूकता बढ़ाने का लक्ष्य रखता है। यह पर्याप्त प्रोटीन सेवन के स्वास्थ्य लाभों को उजागर करता है और प्रोटीन की कमी से होने वाली चुनौतियों पर ध्यान केंद्रित करता है। साथ ही, यह पोषण सुरक्षा को मजबूत करने और लोगों के स्वास्थ्य में सुधार करने के लिए प्रोटीन युक्त खाद्य पदार्थों के महत्व को रेखांकित करता है।

विश्व प्रोटीन दिवस का इतिहास

  • इसे यूएस सोयाबीन एक्सपोर्ट काउंसिल (USSEC) द्वारा पोषण और स्वास्थ्य में प्रोटीन के महत्व को समझाने के लिए शुरू किया गया था।
  • इसका उद्देश्य लोगों को पर्याप्त प्रोटीन सेवन के प्रति जागरूक करना और इससे जुड़ी कमियों को दूर करना था।
  • वर्षों में, यह एक वैश्विक अभियान बन गया, जिसमें विभिन्न संगठन, पोषण विशेषज्ञ और आम जनता भाग लेने लगी।
  • भारत में भी राष्ट्रीय प्रोटीन दिवस इसी दिन (27 फरवरी) को मनाया जाता है।

विश्व प्रोटीन दिवस का महत्व

  • प्रोटीन एक आवश्यक पोषक तत्व है, जो मांसपेशियों के विकास, प्रतिरक्षा प्रणाली और हार्मोन संतुलन के लिए जरूरी है।
  • प्रोटीन की कमी कई क्षेत्रों में एक प्रमुख समस्या है, जिससे कुपोषण और अन्य स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं हो सकती हैं।
  • यह अभियान प्रोटीन युक्त खाद्य पदार्थों के सेवन को बढ़ावा देकर कुपोषण और जीवनशैली संबंधी विकारों को रोकने में मदद करता है।
  • इस पहल का उद्देश्य एक स्वस्थ और पोषण-सुरक्षित समाज बनाना है।

कैसे मनाएं विश्व प्रोटीन दिवस 2025

  • प्रोटीन युक्त व्यंजन बनाएं और परिवार व दोस्तों के साथ साझा करें, जिसमें दाल, बीन्स, मछली, चिकन, टोफू और मेवे जैसे विविध स्रोत शामिल हों।
  • प्रोटीन-थीम आधारित भोज (पॉटलक) आयोजित करें और प्रोटीन के दैनिक आहार में महत्व पर चर्चा करें।
  • पोषण विशेषज्ञों के साथ कार्यशाला आयोजित करें ताकि लोग प्रोटीन के स्वास्थ्य लाभों को बेहतर तरीके से समझ सकें।
  • अपने प्रोटीन सेवन को बढ़ाने की चुनौती लें और इसके स्वास्थ्य लाभों पर नजर रखें।
  • डॉक्टरों, डाइटिशियन और फिटनेस ट्रेनरों से बातचीत करें, ताकि वे प्रोटीन के महत्व पर प्रकाश डाल सकें।

प्रोटीन पर प्रेरणादायक उद्धरण

  1. “प्रोटीन मजबूत मांसपेशियों और स्वस्थ शरीर की कुंजी है।”
  2. “अपने दिन की शुरुआत प्रोटीन से करें, अधिक ऊर्जा और बेहतर प्रदर्शन के लिए।”
  3. “प्रोटीन को न छोड़ें, यह जीवन की आधारशिला है।”
  4. “अपने शरीर को संतुलित आहार से पोषण दें, जिसमें प्रोटीन भरपूर हो।”
  5. “प्लांट-बेस्ड या एनिमल-बेस्ड, प्रोटीन का सही चुनाव करें स्वस्थ जीवन के लिए।”
  6. “प्रोटीन: विकास, मरम्मत और रिकवरी के लिए आवश्यक तत्व।”

आपको रोजाना कितनी प्रोटीन की जरूरत है?

  • हार्वर्ड शोध के अनुसार, एक व्यक्ति को 0.8 ग्राम प्रति किलोग्राम शरीर के वजन के हिसाब से प्रोटीन का सेवन करना चाहिए।
  • एक 63 किलोग्राम की निष्क्रिय महिला को लगभग 53 ग्राम प्रोटीन प्रतिदिन की आवश्यकता होती है।
  • गर्भावस्था के दौरान, महिलाओं को 75-100 ग्राम प्रोटीन लेना चाहिए ताकि भ्रूण का विकास, प्लेसेंटा की वृद्धि और रक्त की आपूर्ति बढ़ सके।

प्रोटीन के प्रमुख स्रोत

  • पशु आधारित स्रोत: अंडे, चिकन, मछली, डेयरी उत्पाद।
  • वनस्पति आधारित स्रोत: दालें, चने, सोया उत्पाद, मेवे और बीज।

प्रोटीन के स्वास्थ्य लाभों पर शोध

  • एक डेनिश अध्ययन में पाया गया कि प्रोटीन युक्त नाश्ता तृप्ति (संतोष) और एकाग्रता बढ़ाता है।
  • पोषण विशेषज्ञ विशाल कटारा के अनुसार, प्रोटीन युक्त भोजन अधिक खाने से रोकता है और वजन नियंत्रण में सहायक होता है।
  • सर्वश्रेष्ठ प्रोटीन युक्त नाश्ते के विकल्प: अंडे, ग्रीक योगर्ट, टोफू, मेवे, बीज और प्रोटीन स्मूदी।

विश्व प्रोटीन दिवस स्वस्थ और संतुलित आहार अपनाने का एक बेहतरीन अवसर है। प्रोटीन से भरपूर भोजन का सेवन करके न केवल हम अपने शरीर को मजबूत बना सकते हैं, बल्कि एक स्वस्थ समाज की दिशा में भी योगदान दे सकते हैं।

वित्त वर्ष 2025 और 2026 में भारत की आर्थिक वृद्धि दर 6.4% तक पहुंच जाएगी

भारत की आर्थिक वृद्धि वित्त वर्ष 2025 और वित्त वर्ष 2026 में 6.4% की दर से बढ़ने की संभावना है, जो एसएंडपी ग्लोबल मार्केट इंटेलिजेंस के नवीनतम पूर्वानुमान में सामने आया है। यह अनुमान वैश्विक आर्थिक चुनौतियों और घरेलू नीतिगत बदलावों के बावजूद भारत की स्थिर प्रगति को दर्शाता है। यह आंकड़ा भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के 6.6% के अनुमान के करीब है, लेकिन एसएंडपी ग्लोबल रेटिंग्स के पहले के 6.8% के पूर्वानुमान से थोड़ा कम है। रिपोर्ट में कहा गया है कि मौद्रिक और राजकोषीय नीतियाँ, मुद्रास्फीति की प्रवृत्ति और सरकारी खर्च इस वृद्धि को प्रभावित करेंगे।

भारत की आर्थिक वृद्धि को कैसे बढ़ावा मिल रहा है?

भारत की आर्थिक वृद्धि का एक प्रमुख कारक RBI और सरकार की नीतियों का सहयोगात्मक दृष्टिकोण है। फरवरी 2025 में, RBI ने लगभग पांच वर्षों में पहली बार रेपो दर को 25 आधार अंकों की कटौती के साथ 6.25% कर दिया। इस कदम का उद्देश्य उधारी और निवेश को बढ़ावा देना है, जिससे आर्थिक गतिविधियों को गति मिलेगी।

साथ ही, 2025 के केंद्रीय बजट में कर राहत उपायों को शामिल किया गया, जिससे आम जनता की आय में वृद्धि होगी और उपभोक्ता खर्च को बढ़ावा मिलेगा। एसएंडपी ग्लोबल मार्केट इंटेलिजेंस को उम्मीद है कि अप्रैल 2025 में RBI 25 आधार अंकों की एक और कटौती कर सकता है, जिससे घरेलू मांग को और बढ़ावा मिलेगा। ये नीतिगत प्रयास वैश्विक अस्थिरता के प्रभाव को कम करने और भारतीय अर्थव्यवस्था की स्थिर वृद्धि सुनिश्चित करने में मदद करेंगे।

भारत की आर्थिक वृद्धि को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारक

आर्थिक वृद्धि की गति निर्धारित करने में कई महत्वपूर्ण कारक भूमिका निभाएंगे:

  • मुद्रास्फीति की प्रवृत्ति: मुद्रास्फीति में गिरावट से उपभोक्ताओं की क्रय शक्ति बढ़ेगी, जिससे घरेलू मांग को प्रोत्साहन मिलेगा।
  • मानसून की स्थिति: अनुकूल मानसून कृषि उत्पादन को बढ़ावा देगा, जिससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था और रोजगार में वृद्धि होगी।
  • सरकारी व्यय: सरकार द्वारा बुनियादी ढांचे और सामाजिक योजनाओं पर बढ़ते खर्च से आर्थिक विकास को समर्थन मिलेगा।

इन कारकों के साथ मौद्रिक और राजकोषीय नीतिगत सहयोग भारत की आर्थिक वृद्धि की स्थिरता और मजबूती को निर्धारित करेगा।

वित्त वर्ष 2026 के बाद भारत की अर्थव्यवस्था की दिशा

एसएंडपी ग्लोबल मार्केट इंटेलिजेंस का अनुमान है कि वित्त वर्ष 2027 में भारत की आर्थिक वृद्धि दर मामूली रूप से घटकर 6.2% हो सकती है, लेकिन वित्त वर्ष 2028 में यह पुनः 6.6% तक पहुँच सकती है। यह दर्शाता है कि अल्पकालिक चुनौतियाँ बनी रह सकती हैं, लेकिन दीर्घकालिक संरचनात्मक सुधार, तकनीकी प्रगति और बुनियादी ढांचे में सतत निवेश से भारत की आर्थिक वृद्धि को मजबूती मिलेगी।

वैश्विक चुनौतियों के बावजूद, भारत की आर्थिक वृद्धि स्थिर बनी हुई है। मौद्रिक और राजकोषीय समर्थन, स्थिर होती मुद्रास्फीति और प्रमुख क्षेत्रों में वृद्धि की संभावनाओं के साथ, देश सतत आर्थिक विस्तार की ओर अग्रसर है। आने वाले वर्ष यह तय करेंगे कि ये नीतिगत हस्तक्षेप भारत की आर्थिक गति को लंबे समय तक बनाए रखने में कितने प्रभावी साबित होते हैं।

पहलू विवरण
क्यों चर्चा में? एसएंडपी ग्लोबल मार्केट इंटेलिजेंस ने भारत की जीडीपी वृद्धि दर वित्त वर्ष 2025 और वित्त वर्ष 2026 में 6.4% रहने का अनुमान लगाया।
RBI की भूमिका RBI ने फरवरी 2025 में रेपो दर को 25 आधार अंक घटाकर 6.25% कर दिया ताकि उधारी और निवेश को प्रोत्साहित किया जा सके।
सरकारी उपाय केंद्रीय बजट 2025 में कर राहत दी गई जिससे लोगों की आय और मांग में वृद्धि हो सके।
वृद्धि के कारक 1.     मुद्रास्फीति में गिरावट → उपभोक्ता क्रय शक्ति बढ़ेगी।

2.     अनुकूल मानसून → कृषि और ग्रामीण मांग को बढ़ावा मिलेगा।

3.     सरकारी खर्च में वृद्धि → बुनियादी ढांचे और अर्थव्यवस्था को समर्थन मिलेगा।

Moon’s South Pole: पहला विस्तृत भूवैज्ञानिक मानचित्र जारी

भारतीय वैज्ञानिकों ने चंद्रयान-3 मिशन के डेटा का उपयोग करके चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव का पहला विस्तृत भूवैज्ञानिक मानचित्र तैयार कर ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल की है। यह नया मानचित्र चंद्र सतह की स्थलाकृति, गड्ढों के निर्माण और भूवैज्ञानिक इतिहास के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करता है। इस शोध में भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला (अहमदाबाद), पंजाब विश्वविद्यालय (चंडीगढ़), और इसरो की इलेक्ट्रो-ऑप्टिक्स सिस्टम प्रयोगशाला ने सहयोग किया, जिससे चंद्रमा के विकास को समझने में एक बड़ी सफलता मिली।

नए भूवैज्ञानिक मानचित्र से क्या पता चला?

मानचित्र में चंद्रयान-3 के लैंडिंग स्थल के आसपास के विविध भूभागों को दर्शाया गया है, जिसमें उच्चभूमि और निम्नभूमि के मैदान शामिल हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार, इस क्षेत्र की अनुमानित आयु लगभग 3.7 अरब वर्ष है, जो उस काल से मेल खाती है जब पृथ्वी पर प्रारंभिक सूक्ष्मजीवन विकसित हो रहा था।

इसके अतिरिक्त, वैज्ञानिकों ने शोमबर्गर क्रेटर से निकलने वाले मलबे के संरेखण का अध्ययन किया, जिससे यह पुष्टि होती है कि इस गड्ढे से निकले टुकड़ों ने चंद्रयान-3 के लैंडिंग क्षेत्र की सतह को आकार दिया है। इन गड्ढों के संरेखण को समझने से वैज्ञानिकों को चंद्रमा के प्राचीन प्रभावों (इम्पैक्ट्स) और उसकी भूवैज्ञानिक प्रक्रिया को बेहतर ढंग से समझने में मदद मिलेगी।

यह मानचित्र चंद्र विज्ञान में कैसे सहायक होगा?

चंद्र गड्ढे प्राकृतिक अभिलेख की तरह कार्य करते हैं, जो वैज्ञानिकों को भूवैज्ञानिक संरचनाओं की आयु निर्धारित करने में मदद करते हैं। गड्ढों के वितरण और सतह की संरचना का अध्ययन करके, वैज्ञानिक यह समझ सकते हैं कि चंद्रमा और सौरमंडल के अन्य आंतरिक पिंड अरबों वर्षों में कैसे विकसित हुए। नया भूवैज्ञानिक मानचित्र चंद्रमा के प्रभाव इतिहास को मजबूत करता है और इसके सतह निर्माण की प्रक्रिया को समझने में सहायता करता है।

इसके अलावा, यह मानचित्र भविष्य के चंद्र अभियानों के लिए महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करता है। नासा और इसरो जैसी अंतरिक्ष एजेंसियां चंद्रमा पर अन्वेषण और संभावित मानव बस्तियों की योजना बना रही हैं। ऐसे में दक्षिणी ध्रुव के विस्तृत मानचित्रण से सुरक्षित लैंडिंग स्थलों और संसाधनों की संभावनाओं की पहचान करने में मदद मिलेगी। विशेष रूप से, छायांकित गड्ढों में जमी हुई बर्फ की उपस्थिति के कारण यह क्षेत्र बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि पानी भविष्य के चंद्र अभियानों के लिए एक आवश्यक संसाधन है।

क्या यह अध्ययन ‘मैग्मा परिकल्पना’ की पुष्टि करता है?

चंद्रयान-3 के डेटा से प्राप्त सबसे महत्वपूर्ण निष्कर्षों में से एक चंद्र मैग्मा परिकल्पना की पुष्टि है। अपोलो, सर्वेयर, लूना और चांग’ई-3 जैसे पिछले मिशनों ने चंद्रमा के अंदरूनी भाग में लावा सागर होने के संकेत दिए थे, लेकिन वे चंद्र ध्रुवीय क्षेत्रों से सटीक डेटा प्राप्त करने में सक्षम नहीं थे।

हालांकि, चंद्रयान-3 के प्रज्ञान रोवर ने अल्फा पार्टिकल एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर (APXS) का उपयोग करके चंद्र दक्षिणी ध्रुव पर प्राचीन मैग्मा के संकेत खोजे हैं। यह खोज इस सिद्धांत का मजबूत समर्थन करती है कि चंद्रमा कभी एक विशाल पिघले हुए लावा महासागर से ढका था, जो बाद में ठंडा होकर उसकी वर्तमान चट्टानी सतह में परिवर्तित हो गया।

भविष्य के चंद्र अभियानों की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम

यह नया भूवैज्ञानिक मानचित्र केवल एक वैज्ञानिक उपलब्धि नहीं है, बल्कि अंतरिक्ष अन्वेषण और संसाधन उपयोग की संभावनाओं को भी बढ़ावा देता है। यह भविष्य के चंद्र अभियानों की योजना बनाने में मदद करेगा और चंद्रमा के विकास से जुड़े रहस्यों को उजागर करने में सहायक होगा।

नासा के आर्टेमिस कार्यक्रम और भारत की आने वाली अंतरिक्ष परियोजनाओं के संदर्भ में, यह शोध चंद्र अध्ययन में भारत की महत्वपूर्ण भूमिका को दर्शाता है। वैज्ञानिक अब चंद्रयान-3 के डेटा का गहराई से विश्लेषण कर रहे हैं, जिससे मंगल और अन्य खगोलीय पिंडों पर इसी तरह की भूवैज्ञानिक विशेषताओं की खोज में मदद मिल सकती है।

चंद्र दक्षिणी ध्रुव का विस्तृत मानचित्रण न केवल चंद्रमा की समझ को बढ़ाएगा, बल्कि सौरमंडल के निर्माण से जुड़े महत्वपूर्ण प्रश्नों के उत्तर खोजने में भी मदद करेगा।

पहलू विवरण
क्यों चर्चा में? चंद्रयान-3 के डेटा का उपयोग करके चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव का पहला विस्तृत भूवैज्ञानिक मानचित्र तैयार किया गया।
प्रमुख योगदानकर्ता भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला (अहमदाबाद), पंजाब विश्वविद्यालय (चंडीगढ़), इसरो की इलेक्ट्रो-ऑप्टिक्स सिस्टम प्रयोगशाला।
स्थलाकृतिक विशेषताएँ उच्चभूमि, निम्नभूमि के मैदान, और शोमबर्गर क्रेटर के मलबे से बने द्वितीयक गड्ढे।
आयु अनुमान लगभग 3.7 अरब वर्ष, जो पृथ्वी पर प्रारंभिक सूक्ष्मजीवन युग से मेल खाती है।
वैज्ञानिक प्रभाव चंद्र भूविज्ञान, गड्ढों के निर्माण और ग्रहों के विकास को समझने में मदद।
मैग्मा खोज चंद्रयान-3 के प्रज्ञान रोवर ने प्राचीन मैग्मा के निशान खोजे, जिससे चंद्रमा के कभी पिघले हुए लावा महासागर होने की पुष्टि हुई।
भविष्य की संभावनाएँ भविष्य के चंद्र अभियानों, संसाधन अन्वेषण और संभावित चंद्र निवास योजनाओं में सहायक।

प्रकृति 2025: भारत के कार्बन बाज़ार को आगे बढ़ाना

नई दिल्ली में 24-25 फरवरी 2025 को भारत के पहले अंतरराष्ट्रीय कार्बन बाजार सम्मेलन, प्रकृति 2025 का आयोजन किया गया। यह आयोजन ब्यूरो ऑफ एनर्जी एफिशिएंसी (BEE) द्वारा विद्युत मंत्रालय के तहत किया गया, जिसमें 600 से अधिक प्रतिनिधियों ने भाग लिया। इस सम्मेलन का उद्देश्य भारत में संरचित कार्बन बाजार विकसित करना था, जिससे देश कम-कार्बन अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ सके।

भारत में कार्बन बाजार क्यों महत्वपूर्ण है?

भारत वैश्विक जलवायु लक्ष्यों को पूरा करने के लिए कार्बन उत्सर्जन में कटौती के प्रयास कर रहा है। केंद्रीय विद्युत और आवास एवं शहरी मामलों के मंत्री श्री मनोहर लाल ने सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए भारत की नवीकरणीय ऊर्जा अपनाने की प्रतिबद्धता को दोहराया। उन्होंने भारत की सांस्कृतिक परंपराओं, जैसे गंगा दीप पूजा और गोवर्धन पूजा, को पर्यावरण संरक्षण से जोड़ते हुए पारदर्शी और प्रमाणिक कार्बन कमी तंत्र विकसित करने पर जोर दिया।

भारतीय कार्बन बाजार (ICM) कैसे कार्य करेगा?

श्री आकाश त्रिपाठी, अतिरिक्त सचिव, विद्युत मंत्रालय, ने बताया कि भारतीय कार्बन बाजार (ICM) को चरणबद्ध तरीके से लागू किया जाएगा।

  • लक्ष्य: 2027 तक 40% उत्सर्जन कटौती, और 2030 तक पूर्ण कार्यान्वयन।
  • प्रणाली: कंपनियां कार्बन क्रेडिट का व्यापार कर सकेंगी, जिससे उद्योगों को कम लागत में कार्बन उत्सर्जन कम करने का प्रोत्साहन मिलेगा।
  • सफलता के कारक: स्पष्ट नियम, स्थिर बाजार और उद्योगों की सक्रिय भागीदारी।

वैश्विक चुनौतियां और निजी क्षेत्र की भागीदारी

थॉमस केर, विश्व बैंक के जलवायु परिवर्तन विशेषज्ञ, ने यूरोपीय संघ के कार्बन सीमा समायोजन तंत्र (CBAM) पर चर्चा की, जो भारत के इस्पात और एल्यूमीनियम निर्यात को प्रभावित कर सकता है। उन्होंने भारतीय कंपनियों को घरेलू कार्बन बाजार में भाग लेने की सलाह दी ताकि वे वैश्विक प्रतिस्पर्धा में बने रहें।

पूर्व वित्त सचिव अशोक लवासा ने मापन, रिपोर्टिंग और सत्यापन (MRV) ढांचे की आवश्यकता पर बल दिया ताकि कार्बन व्यापार प्रणाली पारदर्शी और न्यायसंगत हो।

जन भागीदारी और भविष्य की रणनीति

संयुक्त राष्ट्र की गुडविल एंबेसडर और अभिनेत्री दिया मिर्ज़ा ने LiFE (लाइफस्टाइल फॉर एनवायरनमेंट) पहल पर चर्चा की, जो जिम्मेदार उपभोग को प्रोत्साहित करती है।

मुख्य विषय:

  • नवीकरणीय ऊर्जा डेवलपर्स को कार्बन बाजार से कैसे लाभ मिलेगा?
  • पेरिस समझौते के अनुच्छेद 6 का अंतरराष्ट्रीय कार्बन व्यापार पर प्रभाव
  • वैश्विक कार्बन व्यापार में मूल्य पारदर्शिता बढ़ाने की रणनीति
  • नेट-जीरो लक्ष्यों को प्राप्त करने में प्रकृति-आधारित समाधानों की भूमिका

यह सम्मेलन भारत में कार्बन बाजार की आधारशिला रखता है, जिससे उद्योग, सरकार और समुदाय मिलकर जलवायु परिवर्तन के खिलाफ प्रभावी कदम उठा सकें।

प्रमुख पहलू विवरण
क्यों चर्चा में? भारत ने 24-25 फरवरी 2025 को नई दिल्ली में अपना पहला अंतरराष्ट्रीय कार्बन बाजार सम्मेलन, प्रकृति 2025, आयोजित किया।
आयोजक ब्यूरो ऑफ एनर्जी एफिशिएंसी (BEE), विद्युत मंत्रालय के तहत।
मुख्य अतिथि श्री मनोहर लाल, केंद्रीय विद्युत और आवास एवं शहरी मामलों के मंत्री।
मुख्य लक्ष्य भारतीय कार्बन बाजार (ICM) द्वारा 2027 तक 40% उत्सर्जन कटौती और 2030 तक पूर्ण कार्यान्वयन।
वैश्विक प्रभाव यूरोपीय संघ का कार्बन सीमा समायोजन तंत्र (CBAM) भारतीय इस्पात और एल्यूमीनियम निर्यात को प्रभावित कर सकता है।
शासन पर जोर कार्बन बाजारों के लिए मापन, रिपोर्टिंग और सत्यापन (MRV) ढांचे को मजबूत करना और अंतरराष्ट्रीय सहयोग बढ़ाना।
जन भागीदारी संयुक्त राष्ट्र की गुडविल एंबेसडर दिया मिर्ज़ा ने LiFE (लाइफस्टाइल फॉर एनवायरनमेंट) पहल को बढ़ावा दिया।
चर्चा के मुख्य विषय कार्बन मूल्य निर्धारण की भूमिका, पेरिस समझौते के अनुच्छेद 6, नवीकरणीय ऊर्जा के लिए प्रोत्साहन, और कार्बन व्यापार में पारदर्शिता।
परिणाम संरचित और पारदर्शी कार्बन बाजार की नींव रखी गई, जो भारत को कम-कार्बन अर्थव्यवस्था की ओर ले जाएगा।

ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड में ब्रेस्ट कैंसर की दर सबसे ज्यादा

ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड में स्तन कैंसर की दरें विश्व में सबसे अधिक पाई गई हैं, यह एक हालिया अध्ययन में सामने आया है। ऑस्ट्रेलिया और कनाडा के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए इस अध्ययन में 185 देशों में स्तन कैंसर की घटनाओं और मृत्यु दर का विश्लेषण किया गया। रिपोर्ट के अनुसार, वैश्विक स्तर पर हर 20 में से 1 महिला को अपने जीवनकाल में स्तन कैंसर होगा, जबकि 70 में से 1 महिला की इस बीमारी से मृत्यु हो सकती है।

मुख्य निष्कर्ष

स्तन कैंसर के मामले

  • सबसे अधिक घटनाएं: ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड में स्तन कैंसर की दर सबसे अधिक है, इसके बाद उत्तरी अमेरिका और उत्तरी यूरोप आते हैं।
  • सबसे कम घटनाएं: दक्षिण-मध्य एशिया में स्तन कैंसर की दर सबसे कम दर्ज की गई।

आयु-मानकीकृत घटना दर (ASIR) (2022)

  • ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड: 100.3 मामले प्रति 1,00,000 लोग
  • दक्षिण-मध्य एशिया: 26.7 मामले प्रति 1,00,000 लोग

मृत्यु दर (प्रति 1,00,000 लोग)

  • सबसे अधिक मृत्यु दर: मेलानेशिया (26.8 मौतें), इसके बाद पोलिनेशिया और पश्चिमी अफ्रीका।
  • सबसे कम मृत्यु दर: पूर्वी एशिया (6.5 मौतें)।

प्रमुख जोखिम कारक

  • बढ़ती उम्र,
  • शराब का सेवन,
  • शारीरिक गतिविधि की कमी,
  • मोटापा।

देश-विशिष्ट प्रवृत्तियाँ

  • फ्रांस: स्तन कैंसर निदान का सबसे अधिक आजीवन जोखिम।
  • फिजी: स्तन कैंसर से मृत्यु का सबसे अधिक आजीवन जोखिम।

2050 तक अनुमानित वृद्धि

  • नए मामलों में वृद्धि: 38% तक बढ़ने की संभावना।
  • मौतों में वृद्धि: 68% तक बढ़ सकती है, खासकर कम-एचडीआई देशों में।

वैश्विक स्तन कैंसर पहल (GBCI) – WHO (2021)

  • लक्ष्य: स्तन कैंसर मृत्यु दर को हर साल 2.5% तक कम करना।
  • केवल 7 देश (माल्टा, डेनमार्क, बेल्जियम, स्विट्ज़रलैंड, लिथुआनिया, नीदरलैंड और स्लोवेनिया) इस लक्ष्य को प्राप्त कर पाए हैं।
  • ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड ने पिछले दशक में मृत्यु दर 2.1% सालाना घटाई।

आगे की राह

  • विशेषज्ञों ने वैश्विक असमानता को दूर करने की अपील की है।
  • कम-एचडीआई देशों में रोकथाम, शीघ्र पहचान और सुलभ इलाज पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है।
मुख्य पहलू विवरण
क्यों चर्चा में? ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड में वैश्विक स्तर पर स्तन कैंसर दर सबसे अधिक।
सबसे अधिक घटनाएं ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड – 100.3 मामले प्रति 1,00,000 लोग।
सबसे कम घटनाएं दक्षिण-मध्य एशिया – 26.7 मामले प्रति 1,00,000 लोग।
सबसे अधिक मृत्यु दर मेलानेशिया – 26.8 मौतें प्रति 1,00,000 लोग।
सबसे कम मृत्यु दर पूर्वी एशिया – 6.5 मौतें प्रति 1,00,000 लोग।
मुख्य जोखिम कारक उम्र बढ़ना, शराब का सेवन, शारीरिक गतिविधि की कमी, मोटापा।
सबसे अधिक आजीवन निदान जोखिम फ्रांस
सबसे अधिक आजीवन मृत्यु जोखिम फिजी
2050 तक अनुमानित वृद्धि मामले: +38%, मौतें: +68%
WHO लक्ष्य पूरा करने वाले देश 7 देश (माल्टा, डेनमार्क, बेल्जियम, स्विट्ज़रलैंड, लिथुआनिया, नीदरलैंड और स्लोवेनिया)।
ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड में मृत्यु दर में कमी 2.1% वार्षिक (WHO लक्ष्य 2.5% से कम)।

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