अनुराधा ठाकुर RBI केंद्रीय निदेशक मंडल में निदेशक के रूप में नामित

केंद्र सरकार ने आर्थिक मामलों के विभाग (DEA) की सचिव अनुराधा ठाकुर को भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) के केंद्रीय निदेशक मंडल में निदेशक के रूप में नामित किया है। वह अजय सेठ का स्थान लेंगी। यह नियुक्ति ऐसे समय पर हुई है जब आरबीआई मूल्य स्थिरता बनाए रखने, बैंकिंग विनियमन को सुदृढ़ करने और आगामी मौद्रिक नीति समिति (MPC) की बैठक (4 से 6 अगस्त 2025) की तैयारियों पर विशेष ध्यान केंद्रित कर रहा है।

पृष्ठभूमि

भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) का केंद्रीय निदेशक मंडल इसकी सर्वोच्च शासी इकाई है, जिसमें आधिकारिक निदेशक (जैसे कि गवर्नर, डिप्टी गवर्नर और सरकार द्वारा नामित सदस्य) तथा विभिन्न क्षेत्रों से गैर-आधिकारिक निदेशक शामिल होते हैं। यह बोर्ड आरबीआई के सामान्य पर्यवेक्षण और संचालन की ज़िम्मेदारी निभाता है। अनुराधा ठाकुर की नामांकन से सरकार की यह मंशा झलकती है कि वह केंद्रीय बैंक स्तर पर आर्थिक नीति-निर्माण को और सशक्त बनाना चाहती है।

नियुक्ति का महत्त्व

  • नीतिगत समन्वय को मजबूती: वित्त मंत्रालय और आरबीआई की नीतियों के बीच बेहतर तालमेल सुनिश्चित होता है।

  • आर्थिक मामलों का अनुभव: आरबीआई के निर्णय-निर्माण में प्रशासकीय एवं नीतिगत विशेषज्ञता का योगदान मिलेगा।

  • समयबद्ध नियुक्ति: मौद्रिक नीति समिति (MPC) की आगामी बैठक से पहले यह नियुक्ति निरंतरता बनाए रखने में सहायक होगी।

  • मूल्य स्थिरता पर फोकस: मुद्रास्फीति प्रबंधन और आर्थिक विकास के बीच संतुलन बनाए रखने में आरबीआई के प्रयासों को समर्थन मिलेगा।

आरबीआई केंद्रीय बोर्ड के प्रमुख उद्देश्य

  • आर्थिक स्थिरता बनाए रखने के लिए मौद्रिक नीतियों का निर्माण।

  • सुदृढ़ और लचीली वित्तीय प्रणाली सुनिश्चित करने हेतु बैंकिंग नियमन की निगरानी।

  • मूल्य स्थिरता की रक्षा करते हुए विकास को बढ़ावा देना।

  • वित्तीय और वास्तविक क्षेत्रों में कॉर्पोरेट स्वामित्व से उत्पन्न हितों के टकराव का समाधान।

  • वैश्विक चुनौतियों के अनुरूप भारत की वित्तीय प्रणाली के लिए रणनीतिक योजना का मार्गदर्शन।

आरबीआई की हालिया प्राथमिकताएं

  • मूल्य स्थिरता: गवर्नर संजय मल्होत्रा ने दोहराया कि मुद्रास्फीति नियंत्रण आरबीआई की “प्राथमिक चुनौती” है।

  • मौद्रिक नीति में संतुलित दृष्टिकोण: MPC वर्तमान और भविष्य के आंकड़ों के आधार पर लचीला निर्णय लेगी।

  • बैंकिंग नियमन की निगरानी: NBFCs और बैंकों में सुदृढ़ प्रथाओं को सुनिश्चित करना।

  • हितों के टकराव का समाधान: उन व्यावसायिक समूहों की निगरानी जो वित्तीय और वास्तविक अर्थव्यवस्था दोनों क्षेत्रों में सक्रिय हैं।

केंद्र सरकार ने 2028 में COP-33 के लिए पैनल का गठन किया

भारत ने 2028 में 33वें संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (COP33) की मेज़बानी की तैयारी शुरू कर दी है, जो उसके जलवायु नेतृत्व प्रयासों में एक महत्वपूर्ण कदम है। केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने इस वैश्विक आयोजन की आवश्यकताओं के प्रबंधन के लिए एक समर्पित COP33 प्रकोष्ठ की स्थापना की है।

पृष्ठभूमि

कॉन्फ्रेंस ऑफ द पार्टीज़ (COP) संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन रूपरेखा कन्वेंशन (UNFCCC) की सर्वोच्च निर्णय लेने वाली संस्था है, जिसे 1992 में अपनाया गया था। इन वार्षिक बैठकों का उद्देश्य जलवायु परिवर्तन से निपटने की वैश्विक प्रगति की समीक्षा करना है, विशेष रूप से 2015 के पेरिस समझौते के बाद, जिसका लक्ष्य वैश्विक तापमान वृद्धि को औद्योगीकरण-पूर्व स्तर से 1.5°C तक सीमित करना है।

महत्व

COP33 की मेज़बानी भारत को अंतरराष्ट्रीय जलवायु वार्ताओं में एक प्रमुख भूमिका निभाने का अवसर देगी। यह भारत को अपने जलवायु प्रयासों, नवीकरणीय ऊर्जा में प्रगति और सतत विकास के प्रति प्रतिबद्धता को वैश्विक मंच पर प्रस्तुत करने का मौका देगा, साथ ही वैश्विक नीतिगत दिशा को प्रभावित करने का भी अवसर मिलेगा।

उद्देश्य

COP33 की मेज़बानी का मुख्य उद्देश्य जलवायु कार्रवाई पर बहुपक्षीय सहयोग के लिए एक मंच प्रदान करना है। इसका लक्ष्य प्रतिबद्धताओं को सक्रिय करना, जवाबदेही को बढ़ाना और विश्व स्तर पर निम्न-कार्बन, जलवायु-प्रतिरोधी अर्थव्यवस्थाओं की ओर संक्रमण को तेज़ करना है।

मुख्य विशेषताएं

  • इस आयोजन की निगरानी पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) के जलवायु परिवर्तन प्रभाग के तहत गठित COP33 सेल द्वारा की जाएगी।

  • यह सेल 11 सदस्यों का है, जिसमें संयुक्त सचिव (जलवायु परिवर्तन), निदेशकगण और सलाहकार शामिल हैं।

  • भारत की COP33 मेज़बानी की दावेदारी को 17वें ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में ब्रिक्स देशों का पूर्ण समर्थन प्राप्त हुआ।

  • मेज़बान देश का चयन संयुक्त राष्ट्र की क्षेत्रीय घूर्णन प्रणाली के अनुसार होता है, जिसमें भारत एशिया-प्रशांत क्षेत्र से एक मजबूत उम्मीदवार बनकर उभरा है।

प्रभाव

यदि भारत को COP33 की मेज़बानी मिलती है, तो यह देश की वैश्विक प्रतिष्ठा को नई ऊँचाई देगा, अंतरराष्ट्रीय सहयोग के नए अवसर खोलेगा और घरेलू जलवायु-अनुकूल निवेश को प्रोत्साहन देगा। यह मंच भारत को अपनी नवीकरणीय ऊर्जा महत्वाकांक्षाएं, वनीकरण कार्यक्रम और सतत विकास पहलों को विश्व समुदाय के सामने प्रस्तुत करने का महत्वपूर्ण अवसर प्रदान करेगा।

भारत, मालदीव के बीच टूना उद्योग, जलीय कृषि को बढ़ावा देने के लिए मत्स्य पालन समझौता

भारत और मालदीव ने मत्स्य पालन और जलीय कृषि के क्षेत्रों में सहयोग को सुदृढ़ करने के लिए एक समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किए हैं, जो द्विपक्षीय संबंधों में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह समझौता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मालदीव की राजकीय यात्रा के दौरान छह समझौता ज्ञापनों के तहत हस्ताक्षरित हुआ। इस MoU का उद्देश्य सतत मत्स्य पालन, जलीय कृषि विकास, इको-पर्यटन और वैज्ञानिक अनुसंधान को बढ़ावा देना है, जिससे खाद्य सुरक्षा, रोजगार सृजन और क्षेत्रीय आर्थिक विकास में योगदान मिलेगा।

पृष्ठभूमि

  • भारत के मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय के अंतर्गत आने वाला मत्स्य पालन विभाग और मालदीव का मत्स्य और महासागरीय संसाधन मंत्रालय इस समझौता ज्ञापन (MoU) के कार्यान्वयन के लिए नोडल एजेंसियां हैं।
  • मालदीव की अर्थव्यवस्था और आजीविका में मत्स्य पालन एक प्रमुख स्तंभ है, वहीं भारत की लंबी समुद्री सीमा इसे समुद्री संसाधनों के सतत विकास में एक महत्त्वपूर्ण भागीदार बनाती है।
  • दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक और भौगोलिक निकटता के चलते मत्स्य क्षेत्र में सहयोग स्वाभाविक साझेदारी का क्षेत्र बनता है।

MoU का महत्व

  • द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करना: समुद्री संसाधनों में रणनीतिक साझेदारी के ज़रिए भारत-मालदीव मित्रता को और गहराई मिलती है।

  • सतत संसाधन प्रबंधन: पर्यावरण-सम्मत मछली पकड़ने की पद्धतियों को बढ़ावा देना, विशेषकर टूना और गहरे समुद्री मत्स्य पालन में।

  • आर्थिक विकास: मछली प्रसंस्करण, जलीय कृषि उत्पादन और इको-पर्यटन को बढ़ावा देकर स्थानीय अर्थव्यवस्था को सशक्त बनाना।

  • कौशल विकास: जलजीव स्वास्थ्य, प्रशीतन (रिफ्रिजरेशन) और समुद्री अभियंत्रण जैसे क्षेत्रों में प्रशिक्षण देकर युवाओं को रोजगार योग्य बनाना।

  • क्षेत्रीय खाद्य सुरक्षा: दोनों देशों में मछलियों की उपलब्धता बढ़ाकर और जलीय कृषि प्रजातियों में विविधता लाकर पोषण सुरक्षा को सुदृढ़ करना।

MoU के उद्देश्य

  • सतत मत्स्य पालन और जलीय कृषि को प्रोत्साहित करना।

  • मत्स्य क्षेत्र में मूल्य श्रृंखला और व्यापार सुविधा को विकसित करना।

  • मालदीव में मछली प्रसंस्करण और शीत भंडारण अवसंरचना को बढ़ाना।

  • अनुसंधान, नवाचार और ज्ञान-विनिमय को बढ़ावा देना।

  • तकनीकी और प्रबंधकीय कौशलों में प्रशिक्षण के माध्यम से मानव संसाधन क्षमता का निर्माण करना।

समझौते की प्रमुख विशेषताएं

  • मुख्य क्षेत्र: मूल्य श्रृंखला विकास, समुद्री कृषि (mariculture), इको-पर्यटन, व्यापार सुविधा।

  • अवसंरचना विकास: कोल्ड स्टोरेज, हैचरी और प्रोसेसिंग यूनिट्स में निवेश।

  • कौशल प्रशिक्षण: जैव-सुरक्षा परीक्षण, जलीय कृषि फार्म प्रबंधन, प्रशीतन और समुद्री अभियंत्रण में विशेष प्रशिक्षण।

  • नवाचार और अनुसंधान: मत्स्य पालन में उत्पादकता और स्थिरता बढ़ाने के लिए संयुक्त कार्यक्रम।

  • इको-पर्यटन: संसाधनों के संरक्षण के साथ-साथ आमदनी उत्पन्न करने के लिए मत्स्य आधारित इको-पर्यटन को बढ़ावा।

तन्वी और वेन्नला ने रचा इतिहास – भारत की बैडमिंटन में सुनहरी जीत!

भारतीय बैडमिंटन ने बैडमिंटन एशिया जूनियर चैंपियनशिप 2025 में एक ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल की है, जहां तन्वी शर्मा और वेन्नला कलगोटला पहली ऐसी भारतीय जोड़ी बनीं जिन्होंने टूर्नामेंट के एक ही संस्करण में महिला एकल वर्ग में दो पदक जीतकर इतिहास रच दिया। यह अद्वितीय उपलब्धि भारतीय बैडमिंटन इतिहास में उनके नाम दर्ज करती है और एशियाई मंच पर भारत की जूनियर महिला खिलाड़ियों की बढ़ती ताकत को दर्शाती है।

पृष्ठभूमि

बैडमिंटन एशिया जूनियर चैंपियनशिप एक वार्षिक टूर्नामेंट है जिसमें पूरे एशिया के सर्वश्रेष्ठ अंडर-19 खिलाड़ी भाग लेते हैं। ऐतिहासिक रूप से भारत ने इस प्रतियोगिता में व्यक्तिगत और टीम स्पर्धाओं में सफलता पाई है, लेकिन एक ही संस्करण में महिला एकल वर्ग में दो पदक कभी नहीं जीते थे। पीवी सिंधु, समीर वर्मा और लक्ष्य सेन जैसे खिलाड़ी इस टूर्नामेंट में भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए पहले पदक जीत चुके हैं, लेकिन महिला एकल में डबल पोडियम पहली बार संभव हो पाया है — और यह रिकॉर्ड अब टूट चुका है।

तन्वी शर्मा का स्वर्णिम सफ़र

  • टूर्नामेंट में दूसरी वरीयता प्राप्त और जूनियर वर्ल्ड नंबर 1 तन्वी शर्मा ने क्वार्टर फाइनल में इंडोनेशिया की थालिता रामधानी विर्यावान को 21-19, 21-14 से सीधे गेम में हराकर शानदार प्रदर्शन किया।
  • इससे पहले तन्वी ने चीन की शी सी चेन और थाईलैंड की फन्नाचेट पासा-ऑर्न जैसी शीर्ष खिलाड़ियों को भी सीधे सेटों में हराया था।
  • तन्वी हाल ही में सुर्खियों में रही थीं जब वह यूएस ओपन 2025 में बीडब्ल्यूएफ वर्ल्ड टूर इवेंट की सबसे कम उम्र की भारतीय फाइनलिस्ट बनीं।

वेन्नला कलागोटला की ऐतिहासिक उपलब्धि

  • विश्व रैंकिंग में 103वें स्थान पर काबिज वेन्नला कलागोटला ने थाईलैंड की जन्यापोर्न मीपंथोंग को रोमांचक तीन गेमों के मुकाबले में 21-18, 17-21, 21-17 से हराया।
  • इससे पहले उन्होंने मलेशिया की लर ची एंग और चाइनीज़ ताइपे की वेन शु-यू जैसी खिलाड़ियों को भी कठिन मुकाबलों में मात दी।
  • वेन्नला की दृढ़ता और लंबी रैलियों में संयम ने अंतरराष्ट्रीय मंच पर उनके बढ़ते कौशल का प्रमाण दिया।

उपलब्धि का महत्व

  • यह पहली बार है जब भारत ने बैडमिंटन एशिया जूनियर चैंपियनशिप के एक ही संस्करण में महिला एकल वर्ग में दो पदक जीते हैं।
  • यह उपलब्धि भारत की उभरती महिला बैडमिंटन प्रतिभा की गहराई और विविधता को दर्शाती है।
  • यह सफलता इन जूनियर सितारों के लिए सीनियर अंतरराष्ट्रीय स्पर्धाओं में संक्रमण का मार्ग प्रशस्त करती है, जिससे भविष्य में विश्व स्तर पर भारत की पदक संभावनाओं को बल मिलेगा।

भारत की बीते वर्षों की सफलता

  • 2011 में भारत ने पीवी सिंधु के कांस्य और समीर वर्मा के रजत सहित तीन पदकों के साथ वापसी की थी।
  • 2012 में सिंधु ने इस प्रतियोगिता में भारत के लिए पहला स्वर्ण पदक जीता।
  • 2018 में लक्ष्य सेन ने दूसरा स्वर्ण पदक दिलाया।
  • हालांकि पहले भी व्यक्तिगत सफलताएं रही हैं, लेकिन 2025 में महिला एकल वर्ग में दो पदकों के साथ भारत ने एक ऐतिहासिक कीर्तिमान स्थापित किया है।

FISU World University Games 2025: तीरंदाजी में भारत ने जीता स्वर्ण

भारत ने जर्मनी के राइन-रुहर में आयोजित FISU वर्ल्ड यूनिवर्सिटी गेम्स 2025 में गर्व का क्षण दर्ज किया, जब तीरंदाज परनीत कौर और कुशल दलाल ने कंपाउंड मिक्स्ड टीम आर्चरी इवेंट में देश के लिए पहला स्वर्ण पदक जीता। यह उपलब्धि न केवल भारत की खेल जगत में बढ़ती सफलता को दर्शाती है, बल्कि यह भी साबित करती है कि विश्व स्तर पर भारतीय विश्वविद्यालयों के खिलाड़ी अब गैर-पारंपरिक ओलंपिक खेलों, जैसे कंपाउंड आर्चरी, में भी अपना परचम लहरा रहे हैं।

पृष्ठभूमि

FISU वर्ल्ड यूनिवर्सिटी गेम्स, जिसे अक्सर यूनिवर्सिएड कहा जाता है, एक प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय खेल आयोजन है, जिसे हर दो साल में इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी स्पोर्ट्स फेडरेशन (FISU) द्वारा आयोजित किया जाता है। 2025 संस्करण 16 से 27 जुलाई तक जर्मनी के छह शहरों में आयोजित हो रहा है। इस प्रतियोगिता में भारत के लगभग 300 खिलाड़ी विभिन्न खेलों में भाग ले रहे हैं।

आर्चरी, विशेष रूप से कंपाउंड फॉर्मेट, वैश्विक स्तर पर तेजी से लोकप्रिय हो रहा है। विशेष बात यह है कि कंपाउंड आर्चरी को पहली बार लॉस एंजेलेस 2028 ओलंपिक में शामिल किया जाएगा, जिससे इस श्रेणी में भाग ले रहे खिलाड़ियों के लिए यह अवसर और भी महत्वपूर्ण और प्रतिस्पर्धात्मक बन गया है।

राइन-रुहर 2025 में तीरंदाजी में भारत का पदक प्रदर्शन

स्वर्ण पदक

  • इवेंट: कंपाउंड मिक्स्ड टीम

  • विजेता: पारनीत कौर और कुशल दलाल

  • फाइनल स्कोर: भारत (157) ने दक्षिण कोरिया (154) को हराया

रजत पदक

  • इवेंट: कंपाउंड पुरुष टीम

  • टीम: कुशल दलाल, साहिल राजेश जाधव, हृतिक शर्मा

  • परिणाम: तुर्की से बेहद कड़े मुकाबले में हार (232–231)

कांस्य पदक

  • इवेंट: कंपाउंड महिला टीम

  • टीम: पारनीत कौर, अवनीत कौर, मधुरा धमंगांवकर

  • परिणाम: ग्रेट ब्रिटेन को हराया (232–224)

इन तीनों पदकों की जीत एक ही दिन में हुई, जिससे भारत की कुल पदक संख्या 2025 खेलों में अब तक पाँच हो गई है।

उपलब्धि का महत्व

  • गैर-ओलंपिक खेलों को बढ़ावा: कंपाउंड तीरंदाजी जैसे अभी तक व्यापक पहचान न पाने वाले खेल को इस तरह की उपलब्धियों से नई पहचान और लोकप्रियता मिल रही है।

  • एलए 2028 का मार्ग प्रशस्त: अब जब कंपाउंड तीरंदाजी को ओलंपिक में शामिल कर लिया गया है, भारतीय तीरंदाजों के पास शीर्ष स्तर पर प्रतिस्पर्धा करने का सशक्त अवसर है।

  • खेलों में महिला भागीदारी: पारनीत कौर की टीम और व्यक्तिगत दोनों स्पर्धाओं में सफलता, तीरंदाजी में महिलाओं की बढ़ती भागीदारी और उत्कृष्टता को दर्शाती है।

  • विश्वविद्यालय स्तर की प्रतिभा: यह प्रदर्शन भारतीय विश्वविद्यालयों में मौजूद गहराई वाली खेल प्रतिभा को दर्शाता है, जो दीर्घकालिक खेल विकास के लिए बेहद अहम है।

विश्व मैंग्रोव दिवस: प्रकृति के तटीय संरक्षकों का संरक्षण

विश्व मैंग्रोव दिवस, जो हर वर्ष 26 जुलाई को मनाया जाता है, एक महत्वपूर्ण पर्यावरणीय जागरूकता दिवस है जिसका उद्देश्य मैंग्रोव पारिस्थितिक तंत्रों की सुरक्षा और संरक्षण को बढ़ावा देना है। यूनेस्को द्वारा 2015 में आधिकारिक मान्यता प्राप्त यह दिवस, मैंग्रोव वनों के विशाल पारिस्थितिक मूल्य की याद दिलाता है — ये तटीय आपदाओं से प्राकृतिक ढाल की तरह काम करते हैं और जलवायु परिवर्तन से लड़ने में मदद करते हुए कार्बन सिंक की भूमिका निभाते हैं। चिंता की बात यह है कि 1980 के बाद से दुनिया के लगभग आधे मैंग्रोव वन नष्ट हो चुके हैं, जिससे इनका संरक्षण और पुनर्स्थापन अब पहले से कहीं अधिक जरूरी हो गया है।

मैंग्रोव क्या हैं?

मैंग्रोव एक विशेष प्रकार के वृक्ष और झाड़ियाँ होती हैं, जो उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में नमकीन या खारे पानी वाले तटीय क्षेत्रों में उगती हैं। इनकी जटिल जड़ प्रणालियाँ इन्हें अत्यधिक लवणता, ऑक्सीजन की कमी और नियमित ज्वार-भाटे जैसी कठिन परिस्थितियों में भी जीवित रहने में सक्षम बनाती हैं। दुनिया भर में लगभग 110 प्रजातियाँ मैंग्रोव की पाई जाती हैं। इन वृक्षों की विशेष संरचना तटों को कटाव से बचाने और जलीय जीवों के प्रजनन स्थल प्रदान करने में सहायक होती है।

विश्व मैंग्रोव दिवस का इतिहास और उत्पत्ति

विश्व मैंग्रोव दिवस को यूनेस्को द्वारा जुलाई 2015 में अपनी महासभा के दौरान घोषित किया गया था। यह दिन कोलंबियाई पर्यावरणविद गुइलेर्मो कैनो इसाज़ा की स्मृति में मनाया जाता है, जिन्होंने मैन्ग्रोव वनों की रक्षा करते हुए अपने प्राण गंवाए थे। इस दिवस की शुरुआत, मैंग्रोव वनों की तेज़ी से हो रही कटाई — जो मुख्यतः जलीय कृषि, शहरीकरण और लकड़ी की कटाई के कारण हो रही थी — के प्रति वैश्विक चिंता के रूप में हुई थी। इसका उद्देश्य लोगों में जागरूकता फैलाना, स्थानीय स्तर पर संरक्षण कार्यों को प्रेरित करना, और वैश्विक नीतियों को प्रोत्साहित करना है, जिससे मैन्ग्रोव पारिस्थितिकी तंत्र का सतत उपयोग सुनिश्चित किया जा सके।

मैंग्रोव पारिस्थितिकी तंत्र का महत्व

प्राकृतिक आपदाओं से रक्षा:

मैंग्रोव पेड़ सुनामी, तूफान और ज्वार की लहरों से रक्षा करने वाली प्राकृतिक दीवार की तरह काम करते हैं। उदाहरणस्वरूप, तमिलनाडु का एक गांव 2004 की सुनामी के दौरान लगभग सुरक्षित रहा क्योंकि उसके चारों ओर घने मैन्ग्रोव थे।

‘ब्लू कार्बन’ भंडारण:
मैंग्रोव वन एक हेक्टेयर में उष्णकटिबंधीय वनों की तुलना में पांच गुना अधिक कार्बन डाइऑक्साइड संग्रहित करते हैं। ये जलवायु परिवर्तन से लड़ने में अहम भूमिका निभाते हैं।

जैव विविधता के केंद्र:
इनकी जटिल जड़ प्रणाली मछलियों, केकड़ों, झींगों, घोंघों और यहां तक कि बाघों और मगरमच्छों जैसे संकटग्रस्त जीवों के लिए आदर्श प्रजनन स्थल है।

आजीविका का साधन:
स्थानीय समुदायों को शहद, रेशम और समुद्री भोजन जैसे संसाधन मैन्ग्रोव से प्राप्त होते हैं जिन्हें स्थायी और जिम्मेदार तरीके से संग्रह किया जा सकता है।

मैंग्रोव वनों को खतरे

झींगा पालन और जलीय कृषि:
झींगा तालाब बनाने के लिए मैंग्रोव की कटाई होती है, जिससे मिट्टी की गुणवत्ता गिरती है और रासायनिक प्रदूषण होता है।

ईंधन और लकड़ी के लिए कटाई:
मैंग्रोव लकड़ी निर्माण और ईंधन के लिए कीमती मानी जाती है, जिससे अवैध कटाई आम हो गई है।

शहरीकरण और बुनियादी ढांचा:

नदी मोड़ना, सड़क निर्माण और औद्योगिक परियोजनाएँ मैंग्रोव के प्राकृतिक आवास को नष्ट करती हैं।

जलवायु परिवर्तन:
समुद्र स्तर में वृद्धि और लवणता में बदलाव से मैंग्रोव का पारिस्थितिक संतुलन बिगड़ सकता है।

विश्व मैंग्रोव दिवस कैसे मनाएँ?

मैंग्रोव पौधा लगाएँ:
यदि आप तटीय क्षेत्र में रहते हैं या जा रहे हैं, तो स्थानीय प्रजातियों का पौधारोपण करें।

शिक्षा और जागरूकता फैलाएँ:
स्कूलों, कॉलेजों या सोशल मीडिया पर मैंग्रोव की महत्ता पर कार्यक्रम आयोजित करें।

हरित आजीविका का समर्थन करें:
स्थायी रूप से एकत्रित शहद, मछली जैसे उत्पादों को बढ़ावा दें और स्थानीय व्यापार को समर्थन दें।

जलवायु के प्रति सजग बनें:
प्लास्टिक कम करें, पैदल चलें या साइकिल का प्रयोग करें, ताकि समुद्री पारिस्थितिकी की रक्षा हो सके।

मैंग्रोव से जुड़े रोचक तथ्य

प्राचीन इतिहास:
मैंग्रोव के जीवाश्म बताते हैं कि ये 7.5 करोड़ साल पहले भी अस्तित्व में थे।

सुनदर्शन – विश्व का सबसे बड़ा मैंग्रोव वन:
पश्चिम बंगाल स्थित यह वन यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल है।

लवण निस्सारण क्षमता:
मैंग्रोव पेड़ पत्तियों या छाल के माध्यम से अतिरिक्त नमक बाहर निकाल देते हैं।

ऑक्सीजन प्रदाता:
कठिन परिस्थितियों के बावजूद ये पेड़ ऑक्सीजन उत्पन्न करते हैं और वायु की गुणवत्ता सुधारते हैं।

कोरल के मित्र:
मैंग्रोव गाद को छानकर और कोरल के बच्चों को आश्रय देकर कोरल को सफेद होने से बचाते हैं।

ब्रिटेन में किंग चार्ल्स से मिले PM मोदी, ‘एक पेड़ मां के नाम’ अभियान के तहत भेंट किया खास पौधा

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यूनाइटेड किंगडम की अपनी आधिकारिक यात्रा के दौरान सैंड्रिंघम हाउस में किंग चार्ल्स तृतीय से मुलाकात की। मुलाकात के दौरान उन्होंने किंग चार्ल्स तृतीय को शरद ऋतु में लगाए जाने वाले एक पेड़ का उपहार दिया। ये पौधा “एक पेड़ मां के नाम” पर्यावरण पहल के तहत भेंट किया गया है। इसका उद्देश्य माताओं के सम्मान में वृक्षारोपण को बढ़ावा देना है।

पृष्ठभूमि

‘एक पेड़ मां के नाम’ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा शुरू की गई एक हरित पहल है, जिसका उद्देश्य लोगों को अपनी माताओं की स्मृति या सम्मान में वृक्षारोपण के लिए प्रेरित करना है। यह अभियान पर्यावरणीय उत्तरदायित्व और प्रकृति से व्यक्तिगत भावनात्मक जुड़ाव को प्रोत्साहित करता है। यह भारत के जलवायु कार्रवाई और पारिस्थितिकीय स्थिरता की व्यापक कोशिशों का हिस्सा है।

महत्व

प्रधानमंत्री द्वारा भेंट किया गया यह पौधा भारत की ग्रीन डिप्लोमेसी के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाता है और वैश्विक नेताओं को पर्यावरणीय मुद्दों में सहभागी बनाने का प्रयास भी है। किंग चार्ल्स तृतीय स्वयं लंबे समय से सतत जीवनशैली, जैविक खेती और जलवायु कार्रवाई के समर्थक रहे हैं, जिससे यह एक अर्थपूर्ण और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध प्रतीक बना। इस कदम ने वैश्विक मंच पर भारत के सांस्कृतिक मूल्यों और सॉफ्ट पावर को भी उजागर किया।

उद्देश्य:

इस पहल का मुख्य उद्देश्य है—

  • नागरिकों को प्रेरित करना कि वे वृक्षारोपण के माध्यम से हरित अभियान में भाग लें।

  • सतत विकास से भावनात्मक जुड़ाव को प्रोत्साहित करना।

  • भारत के हरित अभियानों के प्रति वैश्विक जागरूकता बढ़ाना।

  • पर्यावरण संरक्षण में समान विचारधारा वाले देशों के साथ सहयोग को मजबूत करना।

भेंट किए गए पौधे की प्रमुख विशेषताएं:

  • उपहार में दिया गया पौधा डेविडिया इनवोलुक्रेटा ‘सोनोमा’ है, जिसे सोनोमा डव ट्री या रूमाल ट्री के नाम से भी जाना जाता है।
  • यह एक सजावटी प्रजाति है, जिसकी विशेषता इसके सफेद पंखुड़ीनुमा ब्रैक्ट्स हैं, जो उड़ते हुए रूमाल या कपोतों (doves) जैसे प्रतीत होते हैं।

  • यह पेड़ 2–3 वर्षों में जल्दी खिलने लगता है।

  • इसे शरद ऋतु में सैंडरिंघम एस्टेट पर रोपा जाएगा।

प्रभाव:

इस भेंट ने भारत–ब्रिटेन के संबंधों को केवल पर्यावरण के क्षेत्र में ही नहीं, बल्कि भारत–यूके मुक्त व्यापार समझौता (CETA), योग और आयुर्वेद सहयोग, तथा खेल कूटनीति के माध्यम से युवा जुड़ाव जैसे क्षेत्रों में भी मजबूती दी। यह पौधा भारत और ब्रिटेन के बीच दीर्घकालिक हरित साझेदारी का प्रतीक है और जलवायु उत्तरदायित्व के क्षेत्र में भारत की अंतरराष्ट्रीय छवि को भी सुदृढ़ करता है।

मध्य प्रदेश ने बेरोजगार युवाओं के लिए मासिक सहायता की शुरुआत की

मध्य प्रदेश सरकार ने बेरोजगार युवाओं को कौशल विकास में सहयोग देने के उद्देश्य से एक नई पहल शुरू की है, जिसके तहत औद्योगिक इंटर्नशिप के दौरान युवाओं को मासिक वजीफा दिया जाएगा — महिलाओं को ₹6,000 और पुरुषों को ₹5,000। यह योजना राज्य की मौजूदा लाड़ली बहना योजना का विस्तार मानी जा रही है, जिसमें अब पुरुष लाभार्थियों को भी ‘लाड़ली भाइयों’ के अनौपचारिक नाम से शामिल किया गया है। यह पहल न केवल युवाओं को आर्थिक सहायता प्रदान करेगी, बल्कि उन्हें उद्योगों से जोड़कर व्यावसायिक प्रशिक्षण और रोजगार के अवसरों को भी सुलभ बनाएगी।

पृष्ठभूमि

मध्य प्रदेश में युवाओं की बड़ी जनसंख्या है — जिनमें 1.5 करोड़ से अधिक युवा शामिल हैं, और इनमें से लगभग 1.53 करोड़ की उम्र 20 से 30 वर्ष के बीच है। बेरोजगारी और कौशल असंतुलन की समस्या राज्य के लिए लंबे समय से चिंता का विषय रही है। इससे पहले युवा स्वाभिमान रोजगार योजना (2019) के तहत शहरी युवाओं को ₹4,000 मासिक वजीफे के साथ रोजगार गारंटी दी जाती थी, लेकिन प्रशासनिक बदलावों के कारण योजना को बंद कर दिया गया था।

उद्देश्य

इस नई पहल के मुख्य उद्देश्य हैं:

  • बेरोजगार युवाओं को आर्थिक सहायता प्रदान करना।

  • उद्योगों में इंटर्नशिप को प्रोत्साहित करना, जिससे व्यावहारिक कौशल में सुधार हो।

  • एक प्रशिक्षित कार्यबल तैयार कर औद्योगिक पारिस्थितिकी तंत्र को मजबूत बनाना।

मुख्य विशेषताएं

  • मासिक वजीफा: महिलाओं को ₹6,000 और पुरुषों को ₹5,000।

  • योजना में पंजीकृत उद्योगों में इंटर्नशिप करने वाले युवाओं के लिए खुला।

  • लाड़ली बहना योजना के साथ एकीकृत — लाभार्थी महिलाओं को अब दिवाली के बाद ₹1,500/माह मिलेंगे, जो 2028 तक बढ़कर ₹3,000 हो जाएंगे।

  • त्योहारों के अवसर पर विशेष प्रोत्साहन की व्यवस्था।

  • भोपाल के पास अचारपुरा औद्योगिक क्षेत्र को एक विशेष औद्योगिक हब के रूप में विकसित किया जा रहा है।

महत्व

यह पहल लैंगिक-संवेदनशील कल्याण दृष्टिकोण को दर्शाती है, जो महिलाओं की कार्यबल में भागीदारी को प्रोत्साहित करती है। उद्योगों को इस योजना में शामिल कर रोजगार को आर्थिक विकास से जोड़ा गया है, जिससे युवा ऑन-द-जॉब ट्रेनिंग के साथ-साथ आय भी प्राप्त कर सकेंगे।

इसरो प्रमुख डॉ. वी नारायणन को जीपी बिड़ला मेमोरियल पुरस्कार से सम्मानित किया गया

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के वर्तमान अध्यक्ष और अंतरिक्ष विभाग के सचिव डॉ. वी. नारायणन को हाल ही में वर्ष 2025 का प्रतिष्ठित जी.पी. बिड़ला मेमोरियल अवॉर्ड प्रदान किया गया। यह सम्मान उन्हें भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम में उनके उत्कृष्ट योगदान और अत्याधुनिक अंतरिक्ष प्रौद्योगिकियों को आगे बढ़ाने में उनके नेतृत्व के लिए दिया गया है। यह पुरस्कार भारत के प्रमुख वैज्ञानिक सम्मानों में से एक है, जो विज्ञान, शिक्षा और संस्कृति के क्षेत्रों में गहरा प्रभाव डालने वाले व्यक्तियों को मान्यता देता है।

पृष्ठभूमि

जी.पी. बिड़ला मेमोरियल अवॉर्ड, जिसे पहले लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड के नाम से जाना जाता था, प्रसिद्ध उद्योगपति और समाजसेवी घनश्यामदास (जी.पी.) बिड़ला की स्मृति में दिया जाता है। यह सम्मान जी.पी. बिड़ला पुरातत्वीय, खगोलविज्ञान और वैज्ञानिक संस्थान द्वारा प्रदान किया जाता है, जिसकी अध्यक्षता निर्मला बिड़ला करती हैं। यह पुरस्कार विज्ञान, शिक्षा, खगोलशास्त्र और जनसेवा के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान देने वाले राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय हस्तियों को दिया जाता है।

डॉ. वी. नारायणन के बारे में

डॉ. नारायणन ने इसरो में एक लंबा और प्रभावशाली करियर बिताया है, विशेष रूप से क्रायोजेनिक प्रणोदन तकनीक (cryogenic propulsion) के क्षेत्र में। इसरो के अध्यक्ष बनने से पहले, वे लिक्विड प्रोपल्शन सिस्टम्स सेंटर (LPSC) के निदेशक के रूप में कार्यरत थे। उनके नेतृत्व में भारत ने गगनयान, चंद्रयान-3, और आदित्य-एल1 जैसे मिशनों में जटिल प्रणोदन प्रणालियों का सफल परीक्षण और एकीकरण किया।

सम्मान का महत्व

यह पुरस्कार भारत की अंतरिक्ष अनुसंधान और विकास में बढ़ती क्षमता को मान्यता देता है और इस यात्रा में डॉ. नारायणन की महत्वपूर्ण भूमिका को उजागर करता है। यह उन्हें डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम, डॉ. कस्तूरीरंगन और डॉ. वेंकटरमण रामकृष्णन जैसी प्रतिष्ठित हस्तियों की श्रेणी में रखता है, और भारत की वैज्ञानिक विरासत को वैश्विक स्तर पर जोड़ता है। साथ ही, यह इसरो की वैश्विक अंतरिक्ष अभियानों और वैज्ञानिक कूटनीति में बढ़ती रणनीतिक भूमिका को भी रेखांकित करता है।

पूर्व विजेता

अब तक यह पुरस्कार 32 नोबेल पुरस्कार विजेताओं सहित अनेक प्रतिष्ठित वैज्ञानिकों को दिया जा चुका है, जिनमें शामिल हैं:

  • डॉ. वेंकटरमण रामकृष्णन (रसायन विज्ञान में नोबेल पुरस्कार)

  • प्रो. जोगेश पाटी (सैद्धांतिक भौतिक विज्ञानी)

  • डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम (भारत के पूर्व राष्ट्रपति)

  • डॉ. कस्तूरीरंगन (पूर्व इसरो अध्यक्ष)

प्रोफेसर उमा कांजीलाल बनीं IGNOU की पहली महिला कुलपति

इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय में नए कुलपति का नियुक्ति हो गई है। प्रोफेसर उमा कांजीलाल को यह कमान सौंपी गई है। इसी के साथ उन्हें इग्नू की पहली महिला कुलपति बनने का गौरव हासिल हुआ। ओपन और डिस्टेंस लर्निंग (ODL), डिजिटल शिक्षा और अकादमिक नेतृत्व में तीन दशकों से अधिक के अनुभव के साथ, उनका इस प्रतिष्ठित पद पर आसीन होना समावेशी और प्रौद्योगिकी-प्रेरित उच्च शिक्षा पर भारत के बढ़ते फोकस को दर्शाता है।

पृष्ठभूमि

इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय (इग्नू), जिसकी स्थापना 1985 में हुई थी, विश्व का सबसे बड़ा मुक्त विश्वविद्यालय है, जो लाखों शिक्षार्थियों को समावेशी और लचीली शिक्षा प्रदान करता है। स्थापना से ही यह ओपन एंड डिस्टेंस लर्निंग (ODL) मॉडल का अग्रणी रहा है। कई प्रतिष्ठित विद्वानों के नेतृत्व के बावजूद, प्रोफेसर उमा कंजारिलाल इग्नू की 40 वर्षीय इतिहास में पहली महिला कुलपति बनी हैं।

प्रो. कंजारिलाल ने 2003 में इग्नू में पुस्तकालय एवं सूचना विज्ञान विभाग में प्रोफेसर के रूप में कार्यभार संभाला था और इसके बाद उन्होंने विभिन्न शैक्षणिक और प्रशासनिक पदों पर कार्य किया। मार्च 2021 से जुलाई 2024 तक उन्होंने प्रो-वाइस चांसलर के रूप में सेवा दी, और जुलाई 2024 से जुलाई 2025 तक कार्यकारी कुलपति के रूप में कार्यरत रहीं। जुलाई 2025 में उन्हें औपचारिक रूप से कुलपति नियुक्त किया गया।

नियुक्ति का महत्व

कांच की दीवार को तोड़ना: प्रो. उमा कंजारिलाल की नियुक्ति इग्नू की पहली महिला कुलपति के रूप में भारतीय शैक्षणिक क्षेत्र में लैंगिक प्रतिनिधित्व के लिए एक ऐतिहासिक उपलब्धि है।

ओपन एंड डिस्टेंस लर्निंग (ODL) नेतृत्व: ओडीएल क्षेत्र में 36 से अधिक वर्षों के अनुभव के साथ, उनके नेतृत्व से इग्नू की वैश्विक अकादमिक साख को और मजबूती मिलने की अपेक्षा है।

डिजिटल शिक्षा में विशेषज्ञता: भारत की ऑनलाइन शिक्षा पहल की प्रमुख हस्ती के रूप में, वह डिजिटल सामग्री वितरण और व्यापक पहुँच के क्षेत्र में गहन अंतर्दृष्टि प्रदान करती हैं, जो इग्नू को तकनीक-संचालित शिक्षा के अगले चरण तक ले जा सकती है।

मुख्य योगदान

SWAYAM और SWAYAM PRABHA की राष्ट्रीय समन्वयक: शिक्षा मंत्रालय की इन पहलों के तहत, प्रो. कंजिलाल ने गुणवत्तापूर्ण ऑनलाइन और टेलीविज़न शिक्षा को निःशुल्क रूप में देशभर में पहुँचाने का कार्य किया।

नेतृत्व भूमिकाएँ: उन्होंने इग्नू की कई प्रमुख इकाइयों का नेतृत्व किया, जिनमें शामिल हैं –

  • सेंटर फॉर ऑनलाइन एजुकेशन

  • इंटर-यूनिवर्सिटी कंसोर्टियम फॉर टेक्नोलॉजी एनैबल्ड फ्लेक्सिबल एजुकेशन

  • एडवांस्ड सेंटर फॉर इनफॉर्मेटिक्स एंड इनोवेटिव लर्निंग

फुलब्राइट फेलोशिप: 1999–2000 में अमेरिका के यूनिवर्सिटी ऑफ इलिनॉय, अर्बाना-शैंपेन में फेलोशिप के दौरान उन्हें वैश्विक शैक्षणिक दृष्टिकोण प्राप्त हुआ।

अंतरराष्ट्रीय अनुभव: जॉर्डन में UNRWA (संयुक्त राष्ट्र राहत एवं कार्य एजेंसी) के साथ कार्य कर अंतरराष्ट्रीय शैक्षणिक परियोजनाओं में योगदान दिया।

मुख्य फोकस क्षेत्र और दृष्टिकोण

  • समावेशी शिक्षा: ओपन लर्निंग सिस्टम के माध्यम से हाशिए पर रहने वाले समुदायों को शिक्षा तक पहुँच प्रदान करना।

  • प्रौद्योगिकी एकीकरण: ICT-सक्षम पुस्तकालयों, ई-लर्निंग उपकरणों और MOOCs के ज़रिए डिजिटल शिक्षा को बढ़ावा देना।

  • वैश्विक सहयोग: ओपन एजुकेशन में अंतरराष्ट्रीय साझेदारियों को मजबूत करना।

  • क्षमता निर्माण: शिक्षकों के प्रशिक्षण और शिक्षार्थियों के समर्थन तंत्र को सुदृढ़ बनाना।

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