भारत का थोक मूल्य सूचकांक (WPI) आधारित महंगाई दर जुलाई 2025 में लगातार दूसरे महीने नकारात्मक रही, जो सालाना आधार पर –0.58% दर्ज की गई। यह थोक स्तर पर जारी डिफ्लेशन दर्शाता है कि खाद्य, ऊर्जा और धातु जैसे प्रमुख क्षेत्रों में इनपुट कीमतों में ठंडक का रुझान जारी है। वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के अनुसार, खाद्य पदार्थों, खनिज तेलों, कच्चे पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस और बेसिक मेटल उत्पादों की कीमतों में गिरावट मुख्य कारण रही।
जुलाई 2025 में थोक डिफ्लेशन के प्रमुख कारण
1. खाद्य वस्तुओं में तेज गिरावट
WPI खाद्य सूचकांक –2.15% पर रहा।
सब्जियां, अनाज, खाद्य तेल, दालें और नाशवंत वस्तुएं (जैसे प्याज और टमाटर) सस्ती हुईं।
यह प्रवृत्ति खुदरा महंगाई (CPI) में भी दिखी, जहां अधिशेष आपूर्ति और मौसमी सुधारों से कीमतें घटीं।
2. प्राथमिक वस्तुएं (Primary Articles) और गिरीं
प्राथमिक वस्तुओं में डिफ्लेशन –4.95% तक गहरा गया।
कृषि उत्पादन, खनिज और वन उत्पादों की कीमतों में कमी इसका कारण रही।
3. ईंधन और ऊर्जा क्षेत्र में डिफ्लेशन
अंतरराष्ट्रीय कच्चे तेल के दाम स्थिर रहने और घरेलू मांग मध्यम रहने से ईंधन एवं ऊर्जा सूचकांक –2.43% पर रहा।
विनिर्मित वस्तुओं (Manufactured Goods) में हल्की महंगाई
विनिर्मित उत्पादों में महंगाई 2.05% रही।
कुछ क्षेत्रों में इनपुट लागत सुधार और औद्योगिक मूल्य निर्धारण क्षमता बढ़ने का संकेत।
उपभोक्ता टिकाऊ सामान और पूंजीगत वस्तुओं की स्थिर मांग ने सहारा दिया।
यह दर्शाता है कि थोक स्तर पर डिफ्लेशन व्यापक नहीं है, बल्कि मुख्यतः प्राथमिक और ऊर्जा से जुड़ी वस्तुओं तक सीमित है।
WPI बनाम CPI
WPI: थोक स्तर पर वस्तुओं की औसत कीमत में बदलाव को मापता है।
CPI: खुदरा स्तर पर उपभोक्ताओं द्वारा चुकाई जाने वाली कीमतों को दर्शाता है।
WPI (जुलाई 2025): –0.58%
CPI (जुलाई 2025): 1.55% (पिछले 8 वर्षों में सबसे कम)
दोनों सूचकांकों में गिरावट व्यापक मूल्य नरमी की ओर इशारा करती है, जो भविष्य में मौद्रिक नीतियों को प्रभावित कर सकती है।
आर्थिक असर
सकारात्मक पहलू
उद्योगों के लिए इनपुट लागत का बोझ कम
उपभोक्ताओं के लिए वस्तुएं सस्ती
RBI को ब्याज दरों को सहूलियतपूर्ण बनाए रखने की गुंजाइश
चुनौतियां
उत्पादकों के मुनाफे पर दबाव
कुछ क्षेत्रों में मांग की कमजोरी का संकेत
खाद्य वस्तुओं में लगातार डिफ्लेशन से ग्रामीण आय प्रभावित हो सकती है
भारत के 79वें स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर भारतीय स्टेट बैंक (SBI) ने अग्निवीरों के लिए एक विशेष पर्सनल लोन योजना शुरू की है और साथ ही ऑनलाइन IMPS ट्रांज़ैक्शन शुल्क संरचना में भी बदलाव किया है। ये कदम रक्षा कर्मियों और डिजिटल बैंकिंग उपयोगकर्ताओं दोनों के लिए फायदेमंद साबित होंगे।
1. अग्निवीरों के लिए नया कोलैटरल-फ्री पर्सनल लोन
सारांश SBI ने अपने सैलरी अकाउंट रखने वाले अग्निवीरों के लिए एक विशेष पर्सनल लोन योजना शुरू की है, जिसके तहत उन्हें ₹4 लाख तक का लोन बिना किसी गिरवी (कोलैटरल) और बिना प्रोसेसिंग फीस के मिलेगा।
ब्याज दर और अवधि
फ्लैट ब्याज दर: 10.50% (अब तक रक्षा कर्मियों के लिए सबसे कम)
वैधता: 30 सितम्बर 2025 तक
पुनर्भुगतान अवधि: अग्निपथ योजना की सेवा अवधि के अनुरूप, जिससे अग्निवीरों को नागरिक जीवन में लौटने पर आसानी होगी।
पृष्ठभूमि यह पहल SBI के लंबे समय से चल रहे डिफेन्स सैलरी पैकेज को पूरक बनाती है, जिसमें शामिल हैं:
जीरो-बैलेंस अकाउंट
मुफ्त डेबिट कार्ड
असीमित ATM निकासी
व्यक्तिगत दुर्घटना और वायु दुर्घटना बीमा की पर्याप्त कवरेज
2. ₹25,000 से अधिक के ऑनलाइन IMPS ट्रांसफ़र पर नए शुल्क
नीति बदलाव 15 अगस्त 2025 से SBI ने ₹25,000 से अधिक के ऑनलाइन IMPS ट्रांसफ़र पर मामूली शुल्क लगाने की घोषणा की है। छोटे ट्रांज़ैक्शन (₹25,000 तक) पहले की तरह फ्री रहेंगे।
शुल्क संरचना
₹25,000 तक – कोई शुल्क नहीं
₹25,001 से ₹1 लाख तक – ₹2 + GST
₹1 लाख से ₹2 लाख तक – ₹6 + GST
₹2 लाख से ₹5 लाख तक – ₹10 + GST
छूट (Exemptions) इन पर कोई शुल्क नहीं लगेगा,
SBI शाखाओं के माध्यम से किए गए IMPS ट्रांसफ़र
सैलरी पैकेज अकाउंट होल्डर (जिसमें रक्षा पैकेज अकाउंट शामिल हैं)
विशेष करेंट अकाउंट होल्डर (Gold, Diamond, Platinum, Rhodium), सरकारी विभाग, स्वायत्त और वैधानिक संस्थाएँ
दिल्ली की वर्षों पुरानी ट्रैफिक जाम की समस्या को बड़ी राहत मिली है, क्योंकि अर्बन एक्सटेंशन रोड-II (UER-II) का उद्घाटन हो चुका है। दिल्ली की तीसरी रिंग रोड (NH-344M) का यह अहम हिस्सा राजधानी और एनसीआर के परिवहन ढांचे को बदलने जा रहा है। यह परियोजना तेज़ मार्ग, बेहतर क्षेत्रीय कनेक्टिविटी और यात्रा समय में बड़ी कटौती सुनिश्चित करेगी—विशेषकर इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय (IGI) हवाई अड्डे तक पहुँचने में।
UER-II का रणनीतिक महत्व
क्षेत्रीय एकीकरण UER-II तीन अहम राजमार्गों—NH-44, NH-09 और द्वारका एक्सप्रेसवे—को जोड़ता है, जिससे हरियाणा, पंजाब, जम्मू-कश्मीर और उत्तराखंड से दिल्ली आने वाले वाहनों के लिए एक सहज गलियारा बनेगा।
एयरपोर्ट पहुँच चंडीगढ़ जैसे शहरों से आने वाले यात्री अब IGI हवाई अड्डे तक तेज़ी से पहुँच सकेंगे, क्योंकि उन्हें दिल्ली के भीतरी जाम वाले मार्गों से नहीं गुजरना पड़ेगा।
अंतर्राज्यीय व्यापार और लॉजिस्टिक्स बवाना और दिचाऊं कलां जैसे औद्योगिक हब तक सीधा जुड़ाव माल परिवहन को आसान बनाएगा और एनसीआर की आर्थिक दक्षता को बढ़ाएगा।
UER-II परियोजना की प्रमुख विशेषताएँ
परियोजना के पैकेज
पैकेज 1
लंबाई: 15.7 किमी
मार्ग: NH-44 से कराला-कांझावला रोड
प्रकार: छह-लेन एक्सेस-नियंत्रित हाईवे
पैकेज 2
लंबाई: 13.45 किमी
मार्ग: कराला-कांझावला रोड से नजफगढ़-नांगलोई रोड
प्रकार: छह-लेन कॉरिडोर
पैकेज 4
लंबाई: 29.6 किमी
मार्ग: UER-II से सोनीपत बाईपास (NH-344P) तक
कनेक्टिविटी: बवाना औद्योगिक क्षेत्र और NH-352A को जोड़ता है, जिससे NH-44 का जाम बाईपास होता है।
पैकेज 5
लंबाई: 7.3 किमी
मार्ग: UER-II से बहादुरगढ़ बाईपास (NH-344N) तक
कनेक्टिविटी: दिचाऊं कलां को NH-09 और KMP एक्सप्रेसवे से जोड़ता है।
इन्फ्रास्ट्रक्चर इंटीग्रेशन
इंटरचेंज:
NH-44 (अलीपुर)
NH-09 (मुंडका)
बहादुरगढ़ स्पर
रेल ओवरब्रिज: दिल्ली-बठिंडा रेल लाइन पर
सीधे मार्ग: बहादुरगढ़, सोनीपत और IGI हवाई अड्डे तक
डिकंजेशन लक्ष्य
इनर और आउटर रिंग रोड
मुकरबा चौक
धौला कुआं
NH-09 के जाम बिंदु
पर्यावरण और सतत विकास पर असर
रीसायकल सामग्री का उपयोग: भलस्वा और गाजीपुर लैंडफिल से 10 लाख मीट्रिक टन से अधिक अपशिष्ट सामग्री का उपयोग किया गया, जिससे पर्यावरणीय भार कम हुआ।
ग्रीन इनिशिएटिव्स: 10,000 से अधिक पेड़ों को काटने की बजाय स्थानांतरित किया गया, जिससे पर्यावरण के प्रति संवेदनशील विकास का उदाहरण पेश हुआ।
सामाजिक-आर्थिक लाभ: बेहतर कनेक्टिविटी से दिल्ली के बाहरी और पिछड़े क्षेत्रों में विकास को बढ़ावा मिलेगा, रोज़गार के अवसर बनेंगे, रियल एस्टेट का मूल्य बढ़ेगा और औद्योगिक विकास को सहारा मिलेगा।
हर साल 19 अगस्त को पूरी दुनिया विश्व फ़ोटोग्राफ़ी दिवस मनाती है। यह दिन फ़ोटोग्राफ़ी की कला, विज्ञान और प्रभाव को समर्पित है। 2025 की थीम है – “My Favorite Photo (मेरा पसंदीदा फ़ोटो)”, जो फ़ोटोग्राफ़रों और शौक़ीनों को प्रोत्साहित करती है कि वे अपनी सबसे प्रिय तस्वीर साझा करें और उसके पीछे की कहानी बताएं। यह थीम हमारे जीवन में फ़ोटोग्राफ़ी के व्यक्तिगत जुड़ाव और भावनात्मक शक्ति को रेखांकित करती है।
विश्व फ़ोटोग्राफ़ी दिवस 2025 की थीम
आधिकारिक थीम:“MY FAVORITE PHOTO (मेरा पसंदीदा फ़ोटो)”
प्रतिभागियों से अपेक्षा की जाती है कि वे,
अपनी पसंदीदा तस्वीरें सोशल मीडिया पर साझा करें।
तस्वीर से जुड़ी कहानी या यादें लिखें।
हैशटैग #WorldPhotographyDay और #WorldPhotographyDay2025 का उपयोग करें।
यह थीम दिखाती है कि फ़ोटोग्राफ़ी केवल तकनीक या कौशल नहीं, बल्कि उन क्षणों को कैद करने की कला है, जो हमारे दिल को गहराई से छूते हैं।
विश्व फ़ोटोग्राफ़ी सप्ताह 2025
12 से 26 अगस्त 2025 तक विश्व फ़ोटोग्राफ़ी सप्ताह मनाया जाएगा। इसका उद्देश्य है कि लोग नियमित रूप से अपनी सार्थक तस्वीरें साझा करें और #WorldPhotographyWeek टैग का उपयोग करें।
गतिविधियाँ:
व्यक्तिगत फ़ोटो व उनसे जुड़ी कहानियाँ साझा करना।
विश्वभर के फ़ोटोग्राफ़रों को खोजकर उनका अनुसरण करना।
प्रेरणादायक तस्वीरों को लाइक, कमेंट और प्रोत्साहित करना।
यह पहल वैश्विक समुदाय को जोड़ने और प्रोफ़ेशनल व शौक़ीन दोनों तरह के फ़ोटोग्राफ़रों को मंच देने का प्रयास है।
विश्व फ़ोटोग्राफ़ी दिवस का इतिहास
1826: जोसेफ़ नीसफ़ोर निएप्स ने पहली स्थायी तस्वीर बनाई।
1837: लुई डागुएरे ने डागुएरोटाइप प्रक्रिया विकसित की – पहला व्यावसायिक फ़ोटोग्राफ़ी तरीका।
1839: 19 अगस्त को फ़्रांसीसी सरकार ने इस प्रक्रिया को दुनिया के लिए निःशुल्क उपलब्ध कराया – यही विश्व फ़ोटोग्राफ़ी दिवस की शुरुआत मानी जाती है।
तब से फ़ोटोग्राफ़ी पूरी दुनिया में संवाद, संरक्षण और कला का सार्वभौमिक माध्यम बन गई।
फ़ोटोग्राफ़ी का महत्व
इतिहास का संरक्षण: सभ्यताओं, धरोहरों और घटनाओं को सहेजना।
सामाजिक परिवर्तन: युद्ध, आपदाओं और स्वतंत्रता संग्रामों को दस्तावेज़ करना।
कला का माध्यम: सृजनात्मकता, सुंदरता और भावनाओं की अभिव्यक्ति।
सूचना और संचार: पत्रकारिता, डॉक्यूमेंट्री और सोशल मीडिया में महत्वपूर्ण।
व्यापार और नवाचार: विज्ञापन, फ़ैशन, सिनेमा, पर्यटन और विज्ञान में उपयोगी।
डिजिटल युग में फ़ोटोग्राफ़ी
स्मार्टफ़ोन और डिजिटल कैमरों ने फ़ोटोग्राफ़ी को आम बना दिया।
इंस्टाग्राम, फ़ेसबुक और X (ट्विटर) जैसे सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म ने वैश्विक साझा को संभव किया।
ड्रोन फ़ोटोग्राफ़ी, 360° इमेजिंग और एआई एडिटिंग ने तस्वीर लेने और दिखाने का तरीका बदल दिया।
विश्वभर में गतिविधियाँ
फोटो प्रदर्शनियां, प्रतियोगिताएं और वर्कशॉप्स।
यूनेस्को, नेशनल ज्योग्राफ़िक और कला संस्थानों के विशेष कार्यक्रम।
शौक़ीन और पेशेवर फ़ोटोग्राफ़र अपनी सर्वश्रेष्ठ रचनाएँ साझा करते हैं।
भारत में फ़ोटोग्राफ़ी का योगदान
19वीं सदी: ब्रिटिश शासनकाल में भारत में फ़ोटोग्राफ़ी का आगमन।
प्रमुख हस्तियाँ:
होमाई व्यारावाला – भारत की पहली महिला फोटो पत्रकार।
रघु राय – विश्व प्रसिद्ध फ़ोटोग्राफ़र, मैग्नम फ़ोटोज़ के सदस्य।
आज भारत में फोटो महोत्सव, प्रदर्शनियां और डिजिटल फ़ोटोग्राफ़ी समुदाय सक्रिय हैं, जिससे भारत इस वैश्विक आंदोलन का अहम हिस्सा बन चुका है।
डिजिटल भुगतान की सुरक्षा को और मजबूत बनाने के लिए एक बड़े कदम में, नेशनल पेमेंट्स कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (NPCI) ने घोषणा की है कि यूपीआई (UPI) पर पी2पी ‘कलेक्ट रिक्वेस्ट’ सुविधा 1 अक्टूबर 2025 से बंद कर दी जाएगी। यह निर्णय सभी सदस्य बैंकों और प्रमुख यूपीआई ऐप्स जैसे फोनपे, गूगल पे और पेटीएम पर लागू होगा। उम्मीद है कि इस कदम से यूपीआई नेटवर्क पर होने वाली धोखाधड़ी की घटनाओं में भारी कमी आएगी।
यूपीआई में ‘कलेक्ट रिक्वेस्ट’ क्या है?
‘कलेक्ट रिक्वेस्ट’ यूपीआई की एक सुविधा है, जिसमें कोई उपयोगकर्ता दूसरे को भुगतान अनुरोध भेज सकता है और सामने वाला उसे मंज़ूरी देकर लेनदेन पूरा करता है। इसे पुल ट्रांजैक्शन भी कहा जाता है, जबकि सामान्य लेनदेन पुश ट्रांजैक्शन होते हैं, जिनमें भुगतानकर्ता स्वयं लेनदेन शुरू और पूरा करता है।
वर्तमान में,
प्रति लेनदेन सीमा: ₹2,000
अधिकतम सीमा: 50 सफल लेनदेन प्रतिदिन
इन प्रतिबंधों के बावजूद, धोखेबाज़ इस फीचर का दुरुपयोग कर लोगों को अनजाने में भुगतान स्वीकृत करने के लिए फंसाते रहे हैं, जिससे वित्तीय नुकसान हुआ।
1 अक्टूबर 2025 से क्या बदलेगा?
एनपीसीआई के 29 जुलाई 2025 के सर्कुलर के अनुसार,
सभी बैंक, पेमेंट सर्विस प्रोवाइडर्स (PSPs) और यूपीआई ऐप्स को पी2पी कलेक्ट रिक्वेस्ट बंद करनी होगी
फोनपे, गूगल पे और पेटीएम जैसे ऐप्स पर यह फीचर पूरी तरह निष्क्रिय हो जाएगा
केवल भुगतानकर्ता-प्रारंभ (Push) लेनदेन ही पी2पी भुगतान के लिए मान्य होंगे
इसका अर्थ है कि अब उपयोगकर्ता को खुद क्यूआर कोड स्कैन करना होगा या प्राप्तकर्ता का विवरण दर्ज कर पैसा भेजना होगा, जिससे लेनदेन पर उनका पूरा नियंत्रण होगा और धोखाधड़ी के लिए रास्ता बंद होगा।
एनपीसीआई ने यह कदम क्यों उठाया?
यह बदलाव कलेक्ट रिक्वेस्ट के जरिए बढ़ते यूपीआई फ्रॉड को रोकने के लिए किया गया है। उद्योग जगत ने इस कदम का स्वागत किया—
राहुल जैन (सीएफओ, एनटीटी डेटा पेमेंट सर्विसेज इंडिया): “इस हाई-रिस्क फीचर को हटाने से यूपीआई और अधिक सुरक्षित और भरोसेमंद होगा।”
रीजू दत्ता (सह-संस्थापक, कैशफ्री पेमेंट्स): “यह बदलाव लंबे समय से दुरुपयोग किए जा रहे loophole को बंद करता है और उपयोगकर्ताओं का भरोसा मजबूत करता है।”
2019 में एनपीसीआई ने इस पर कैप लगाया था, लेकिन धोखाधड़ी जारी रही। इसलिए अब इसका पूर्णत: हटाया जाना निर्णायक सुरक्षा कदम माना जा रहा है।
डिजिटल पेमेंट्स के लिए व्यापक प्रभाव
यह कदम एनपीसीआई की इस प्रतिबद्धता को दर्शाता है कि,
उपयोगकर्ताओं की सुरक्षा सुनिश्चित की जाए
यूपीआई को सरल और सुरक्षित बनाए रखते हुए उसका दायरा बढ़ाया जाए
डिजिटल भुगतान प्रणालियों में विश्वास को और मजबूत किया जाए, खासकर जब भारत यूपीआई और सीबीडीसी (केंद्रीय बैंक डिजिटल करेंसी) के एकीकरण की दिशा में आगे बढ़ रहा है
यह भारत के वैश्विक स्तर पर सुरक्षित, समावेशी और स्केलेबल फिनटेक इंफ्रास्ट्रक्चर के लक्ष्य से भी मेल खाता है।
डिजिटल बैंकिंग लेनदेन को प्रभावित करने वाले कदम में, भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) ने अपने आईएमपीएस (इमीडिएट पेमेंट सर्विस) शुल्क ढांचे में संशोधन किया है। 15 अगस्त 2025 से प्रभावी, एसबीआई ₹25,000 से अधिक के ऑनलाइन आईएमपीएस लेनदेन पर मामूली शुल्क लगाएगा। यह बदलाव उन लाखों ग्राहकों को प्रभावित करेगा जो तत्काल धन हस्तांतरण के लिए यूपीआई-लिंक्ड या नेट बैंकिंग सेवाओं का उपयोग करते हैं।
हालांकि, यह परिवर्तन शाखा-आधारित आईएमपीएस लेनदेन या कुछ छूट प्राप्त खातों पर लागू नहीं होगा।
आईएमपीएस शुल्क संशोधित: नया क्या है?
एसबीआई के अद्यतन दिशा-निर्देशों के अनुसार, ऑनलाइन आईएमपीएस ट्रांसफर पर अब लेनदेन राशि के आधार पर सेवा शुल्क लगेगा:
₹25,001 से ₹1 लाख तक → ₹2 (जीएसटी अतिरिक्त)
₹1 लाख से ₹2 लाख तक → ₹6 (जीएसटी अतिरिक्त)
₹2 लाख से ₹5 लाख तक → ₹10 (जीएसटी अतिरिक्त)
ये शुल्क केवल इंटरनेट बैंकिंग, योनो और मोबाइल बैंकिंग से किए गए लेनदेन पर लागू होंगे।
किन्हें मिलेगी छूट?
मुख्य ग्राहक वर्गों को राहत देने के लिए एसबीआई ने पूर्ण शुल्क छूट की घोषणा की है, जिनमें शामिल हैं:
सैलरी पैकेज खाता धारक
कुछ चयनित करेंट अकाउंट, जैसे:
गोल्ड, डायमंड, प्लेटिनम और रोडियम स्तर
सरकारी विभाग और स्वायत्त/वैधानिक निकाय
इससे नियमित वेतनभोगी और प्रीमियम बैंकिंग ग्राहकों को अतिरिक्त लागत से छूट मिलेगी।
कॉरपोरेट ग्राहकों के लिए शुल्क
जहां खुदरा ग्राहकों पर यह शुल्क 15 अगस्त से लागू होगा, वहीं कॉरपोरेट ग्राहकों पर संशोधित शुल्क संरचना 8 सितंबर 2025 से लागू होगी।
एसबीआई ने अभी तक इन शुल्कों का सार्वजनिक विवरण नहीं दिया है, लेकिन उम्मीद है कि यह ढांचा समान होगा, साथ ही बड़े पैमाने पर लेनदेन करने वाले कॉरपोरेट ग्राहकों के लिए कुछ बदलाव हो सकते हैं।
आईएमपीएस: एक झलक
आईएमपीएस (इमीडिएट पेमेंट सर्विस) 24×7 रीयल-टाइम फंड ट्रांसफर की सुविधा देता है और अक्सर एनईएफटी या आरटीजीएस के विकल्प के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। यह खासतौर पर उपयोगी है:
P2P (व्यक्ति से व्यक्ति) भुगतान
बिल और किराया ट्रांसफर
ऑनलाइन खरीदारी भुगतान
अब तक अधिकांश ऑनलाइन आईएमपीएस लेनदेन निःशुल्क थे, जिससे यह मध्यम आकार के डिजिटल ट्रांसफर का पसंदीदा विकल्प बना हुआ था।
यह कदम क्यों महत्वपूर्ण है
एसबीआई का यह फैसला मुख्य रूप से,
रीयल-टाइम डिजिटल भुगतान की परिचालन लागत की वसूली,
उच्च राशि पर बार-बार होने वाले सूक्ष्म लेनदेन को हतोत्साहित करना,
सेवा उपयोगिता और डिजिटल ढांचे के उन्नयन के साथ शुल्क ढांचे को संरेखित करना,
के लिए उठाया गया है। यह ऐसे समय में आया है जब यूपीआई अभी भी P2P ट्रांसफर के लिए पूरी तरह मुफ्त है, जिससे आईएमपीएस अपेक्षाकृत अधिक व्यावसायिक सेवा बन जाती है।
कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) वित्तीय सेवाओं को नए सिरे से गढ़ रही है—धोखाधड़ी की पहचान से लेकर ऋण मूल्यांकन तक। लेकिन यदि इसके लिए स्पष्ट दिशा-निर्देश न हों, तो यह जोखिमों को और बढ़ा सकती है। इस बदलाव को सही दिशा देने के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने दिसंबर 2024 में एक समिति गठित की, ताकि वित्तीय क्षेत्र के लिए फ्रेमवर्क फॉर रिस्पॉन्सिबल एंड एथिकल एनेबलमेंट ऑफ़ एआई (FREE-AI) तैयार किया जा सके। इसका उद्देश्य सरल किंतु महत्वाकांक्षी है: नवाचार को बढ़ावा देना और साथ ही विश्वास, निष्पक्षता एवं स्थिरता की रक्षा करना।
समिति, कार्यादेश और कार्यप्रणाली
यह समिति आईआईटी बॉम्बे के डॉ. पुष्पक भट्टाचार्य की अध्यक्षता में बनी, जिसमें नीति, उद्योग और शिक्षाविद् जगत के विशेषज्ञ शामिल थे। समिति को निम्न कार्य सौंपे गए:
एआई अपनाने की स्थिति का आकलन करना
वैश्विक दृष्टिकोणों की समीक्षा करना
जोखिमों की पहचान करना
भारत के लिए उपयुक्त शासन-ढाँचा सुझाना
समिति ने चार-आयामी कार्यप्रणाली अपनाई:
विभिन्न हितधारकों से व्यापक परामर्श
बैंकों/एनबीएफसी/फिनटेक कंपनियों पर दो राष्ट्रीय सर्वेक्षण (DoS और FTD)
वैश्विक मानकों और कानूनों का अध्ययन
RBI के मौजूदा दिशा-निर्देशों (आईटी, साइबर सुरक्षा, आउटसोर्सिंग, डिजिटल लेंडिंग और उपभोक्ता संरक्षण) की खामियों का विश्लेषण
अवसर: जहाँ एआई मूल्य जोड़ता है
एआई उत्पादकता बढ़ाने का वादा करता है—प्रक्रियाओं के स्वचालन, व्यक्तिगत ग्राहक अनुभव (बहुभाषी चैट/वॉयस), जोखिम विश्लेषण में सुधार, और वैकल्पिक डाटा के ज़रिए वित्तीय समावेशन द्वारा। भारत की विविधता बहुभाषी और क्षेत्र-अनुकूल मॉडल (कुशल SLMs और LTD “त्रिमूर्ति” मॉडल सहित) की माँग करती है, साथ ही सुरक्षित प्रयोगों को तेज़ करने के लिए जेनएआई (GenAI) नवाचार सैंडबॉक्स की ज़रूरत है।
जोखिम परिदृश्य: क्या गलत हो सकता है
रिपोर्ट मॉडल और परिचालन जोखिमों को रेखांकित करती है—पक्षपात, अपारदर्शिता, भ्रमित परिणाम (hallucinations), मॉडल का अस्थिर होना (drift), डाटा में गड़बड़ी (poisoning), प्रतिकूल प्रॉम्प्ट्स, और थर्ड-पार्टी पर अत्यधिक निर्भरता। इसमें प्रणालीगत चिंताएँ (भीड़-चाल, procyclicality) और साइबर सुरक्षा खतरों (स्वचालित फ़िशिंग, डीपफेक्स) का भी उल्लेख है। गैर-निश्चित (non-deterministic) प्रणालियों में दायित्व जटिल होता है और उपभोक्ता संरक्षण के लिए स्पष्ट खुलासा और एआई-आधारित निर्णयों को चुनौती देने की व्यवस्था आवश्यक है।
वैश्विक नीति परिप्रेक्ष्य और भारत की स्थिति
दृष्टिकोण अलग-अलग हैं:
यूरोपीय संघ (EU AI Act): क्षैतिज, जोखिम-आधारित नियम
सिंगापुर: टूलकिट (FEAT/Veritas) और मार्गदर्शन का मिश्रण
यूके/यूएस: सिद्धांत-आधारित दृष्टिकोण
चीन: एआई प्रकार के अनुसार विनियमन
भारत का रुख नवाचार समर्थक लेकिन सुरक्षा-संतुलित है, जिसे IndiaAI मिशन (₹10,372 करोड़) और AI सेफ्टी इंस्टीट्यूट (AISI) का समर्थन प्राप्त है, जो मॉडलों का मूल्यांकन करेगा और सुरक्षित व भरोसेमंद एआई को बढ़ावा देगा।
सात सूत्र (मूल सिद्धांत) और छह रणनीतिक स्तंभ
समिति ने अपनाने के लिए सात सूत्र स्पष्ट किए:
विश्वास (Trust)
लोग पहले (People First)
संयम से अधिक नवाचार (Innovation over Restraint)
निष्पक्षता और समानता (Fairness & Equity)
उत्तरदायित्व (Accountability)
समझने योग्य डिज़ाइन (Understandable by Design)
सुरक्षा, लचीलापन और स्थिरता (Safety, Resilience & Sustainability)
नीति (Policy): आनुपातिक, जोखिम-आधारित मार्गदर्शन; आउटसोर्सिंग व विक्रेता एआई पर स्पष्टता
क्षमता (Capacity): बोर्ड से लेकर स्टाफ तक एआई साक्षरता, उत्कृष्टता केंद्र, साझा प्लेबुक्स
शासन (Governance): बोर्ड-स्वीकृत एआई नीति, जीवनचक्र नियंत्रण, प्रलेखन
संरक्षण (Protection): उपभोक्ता खुलासा, निष्पक्षता परीक्षण, मानव हस्तक्षेप (human-in-the-loop)
आश्वासन (Assurance): साइबर सुरक्षा में वृद्धि, घटना रिपोर्टिंग, स्वतंत्र ऑडिट
छब्बीस सिफ़ारिशें: RBI क्या चाहता है
रिपोर्ट में मुख्य कदम सुझाए गए हैं:
साझा कंप्यूट/डेटा ढाँचा बनाना
GenAI सैंडबॉक्स शुरू करना
देशी वित्तीय-ग्रेड मॉडल को बढ़ावा देना
बोर्ड-स्वीकृत एआई नीतियाँ अनिवार्य करना
उत्पाद अनुमोदन व ऑडिट दायरे में एआई को शामिल करना
एआई-विशिष्ट साइबर सुरक्षा और घटना रिपोर्टिंग को मजबूत करना
ग्राहकों को स्पष्ट बताना कि वे एआई से संवाद कर रहे हैं
सेक्टर की सर्वोत्तम प्रथाओं को साझा करना
कम-जोखिम वाले उपयोगों के लिए अनुपालन सरल बनाना
सर्वेक्षण निष्कर्ष: वर्तमान अपनाना और अंतराल
एआई अपनाना अभी उथला है: केवल 20.8% (127/612) विनियमित संस्थाएँ एआई का उपयोग कर रही हैं या विकसित कर रही हैं।
टियर-1 शहरी सहकारी बैंक (UCBs): 0%
टियर-2/3 UCBs: <10%
एनबीएफसी: 27%
एआरसी: 0%
सामान्य उपयोग:
ग्राहक सहायता (15.6%)
ऋण मूल्यांकन (13.7%)
बिक्री/विपणन (11.8%)
साइबर सुरक्षा (10.6%)
35% ने स्केलेबिलिटी के लिए पब्लिक क्लाउड को प्राथमिकता दी। शासन क्षमता कमज़ोर है:
~1/3 के पास बोर्ड-स्तरीय निगरानी
~1/4 के पास औपचारिक घटना-प्रबंधन तंत्र
नियंत्रण और टूलिंग उपयोग:
SHAP/LIME (15%)
ऑडिट लॉग (18%)
पक्षपात मान्यता (bias validation) 35% (मुख्यतः पूर्व-परिनियोजन)
आवधिक पुनःप्रशिक्षण (37%)
मॉडल ड्रिफ्ट निगरानी (21%)
रीयल-टाइम निगरानी (14%)
मुख्य बाधाएँ: प्रतिभा की कमी, लागत/कंप्यूट सीमाएँ, डेटा गुणवत्ता और कानूनी अस्पष्टता।
इन आँकड़ों का अर्थ
भारत में एआई अर्थव्यवस्था दो गति वाली बन सकती है—जहाँ बड़े बैंक आगे बढ़ेंगे और छोटे UCBs/NBFCs पीछे छूट जाएँगे। यही कारण है कि साझा अवसंरचना, स्पष्ट दिशा-निर्देश और क्षमता निर्माण FREE-AI का केंद्रीय तत्व है।
मौजूदा RBI नियमों से मेल
रिपोर्ट स्पष्ट करती है कि FREE-AI कैसे मेल खाता है:
आउटसोर्सिंग: विक्रेता एआई पर भी RE की ज़िम्मेदारी बनी रहेगी, एआई-विशिष्ट धाराएँ शामिल होंगी
आईटी/साइबर सुरक्षा: मॉडल, डेटा पाइपलाइन, एक्सेस/ऑडिट ट्रेल्स पर भी नियंत्रण बढ़ेगा
डिजिटल लेंडिंग: ऑडिट योग्य, समझने योग्य ऋण मॉडल; डेटा न्यूनतमकरण और सहमति
उपभोक्ता संरक्षण: खुलासा और एआई परिणामों पर शिकायत निवारण
साथ ही, मॉडल रजिस्टर, वंशावली (lineage) और ट्रेसबिलिटी का सुझाव है ताकि पर्यवेक्षण में आसानी हो।
आगे की राह (परीक्षा-उपयोगी बिंदु)
एआई सैंडबॉक्स को कार्यान्वित करना
बोर्ड नीति टेम्पलेट और घटना रिपोर्टिंग प्रारूप जारी करना
बहुभाषी समावेशन मॉडल को बढ़ावा देना
बोर्ड, जोखिम, ऑडिट और तकनीकी स्तर पर प्रशिक्षण बढ़ाना
पारदर्शी, ऑडिट योग्य एआई सुनिश्चित करना—पक्षपात जाँच और मानव अपील विकल्प के साथ
कम-जोखिम उपयोगों (जैसे FAQ चैट) के लिए आनुपातिक अनुपालन मार्ग तेजी से अपनाने को बढ़ा सकता है, बिना सुरक्षा को कम किए।
भारत के इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण क्षेत्र के लिए ऐतिहासिक उपलब्धि के तहत फॉक्सकॉन की नई बेंगलुरु इकाई ने आधिकारिक रूप से काम शुरू कर दिया है। इस संयंत्र में अब आईफोन 17 का उत्पादन हो रहा है। कर्नाटक के देवनहल्ली स्थित यह यूनिट चीन से बाहर फॉक्सकॉन का दूसरा सबसे बड़ा कारखाना है, जो भारत की स्थिति को एप्पल की वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में और मजबूत बनाता है।
यह शुरुआत भारत के उस बड़े लक्ष्य की दिशा में अहम मील का पत्थर है, जिसमें देश को उन्नत इलेक्ट्रॉनिक्स और स्मार्टफोन मैन्युफैक्चरिंग का वैश्विक केंद्र बनाना शामिल है।
भारत में फॉक्सकॉन का विस्तार
फॉक्सकॉन, जो एप्पल का सबसे बड़ा विनिर्माण साझेदार है, लगातार भारत में अपनी मौजूदगी बढ़ा रहा है।
तमिलनाडु के चेन्नई संयंत्र में कई वर्षों से आईफोन का उत्पादन हो रहा है।
बेंगलुरु का नया कारखाना, चीन पर निर्भरता घटाने और भारत में उत्पादन विविधीकरण के लिए एक रणनीतिक निवेश है।
प्रमुख तथ्य
स्थान: देवनहल्ली, बेंगलुरु (कर्नाटक)
निवेश: 2.8 अरब अमेरिकी डॉलर (लगभग ₹25,000 करोड़)
उत्पाद: आईफोन 17 (प्रारंभिक छोटे पैमाने पर उत्पादन शुरू)
महत्त्व: चीन से बाहर फॉक्सकॉन की दूसरी सबसे बड़ी इकाई
यह कदम एप्पल की उस वैश्विक रणनीति के अनुरूप है जिसमें वह चीन पर निर्भरता घटाकर भारत जैसे देशों में उत्पादन का विस्तार कर रहा है।
देवनहल्ली यूनिट का रणनीतिक महत्त्व
यह संयंत्र भविष्य में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा—
एप्पल के एशियाई उत्पादन अड्डों का विविधीकरण
भारत को पसंदीदा इलेक्ट्रॉनिक्स निर्माण गंतव्य के रूप में स्थापित करना
कर्नाटक में रोजगार और उच्च-प्रौद्योगिकी उद्योगों का विकास
वैश्विक निर्यात के लिए ‘मेड इन इंडिया’ आईफोन हब के रूप में उभरना
सरकारी प्रोत्साहन और सहयोग
फॉक्सकॉन की यह पहल भारत सरकार की प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव (PLI) योजना के तहत संभव हुई, जिसका उद्देश्य है—
घरेलू इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण को प्रोत्साहन देना
वैश्विक हार्डवेयर दिग्गजों को भारत में निवेश के लिए आकर्षित करना
निर्यात और रोजगार के अवसर बढ़ाना
कर्नाटक सरकार ने भी देवनहल्ली इंडस्ट्रियल कॉरिडोर में भूमि आवंटन, मंज़ूरियाँ और बुनियादी ढाँचे के विकास में सक्रिय सहयोग दिया।
भारत के टेक सेक्टर के लिए क्या मायने
बेंगलुरु में फॉक्सकॉन की नई इकाई का संचालन दर्शाता है—
वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में भारत का बढ़ता दबदबा
दक्षिण भारत में तेज़ी से बढ़ती तकनीक-आधारित औद्योगिक वृद्धि
भारत में बड़े पैमाने पर विनिर्माण के प्रति निवेशकों का मजबूत विश्वास
यह कदम न केवल भारत में आईफोन 17 की यात्रा की शुरुआत है, बल्कि यह भी दिखाता है कि एप्पल अपने नवीनतम फ्लैगशिप उपकरणों के लिए भारतीय उत्पादन पर भरोसा करता है।
भारत के इलेक्ट्रॉनिक्स निर्यात ने वित्त वर्ष 2025-26 की पहली तिमाही (Q1) में अभूतपूर्व वृद्धि दर्ज की है। वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल के अनुसार, जुलाई–सितंबर अवधि में निर्यात 47% बढ़कर 12.4 अरब डॉलर तक पहुंच गया। यह उछाल ‘मेक इन इंडिया’ पहल की सफलता और भारत के वैश्विक मैन्युफैक्चरिंग हब में बदलने का प्रमाण है, खासकर मोबाइल फोन सेक्टर में।
इलेक्ट्रॉनिक्स निर्यात वृद्धि: एक दशक का बदलाव
भारत का इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योग 2014-15 में 31 अरब डॉलर से बढ़कर 2024-25 में 133 अरब डॉलर तक पहुंच गया।
2014-15 निर्यात: ₹38,000 करोड़
2024-25 निर्यात: ₹3.27 लाख करोड़ (लगभग 8 गुना वृद्धि)
Q1 2025-26: $12.4 अरब (47% वार्षिक वृद्धि)
यह रफ्तार भारत को दुनिया के अग्रणी इलेक्ट्रॉनिक्स निर्यातकों में ला खड़ा करती है।
मोबाइल मैन्युफैक्चरिंग: आयातक से वैश्विक दिग्गज तक
मोबाइल फोन निर्माण ने भारत के इलेक्ट्रॉनिक्स निर्यात को नई ऊँचाइयों तक पहुंचाया है।
2014-15: भारत में बिकने वाले मोबाइलों में से केवल 26% ही घरेलू उत्पादन थे।
2024-25: 99.2% मोबाइल ‘मेड इन इंडिया’।
निर्माण मूल्य: ₹18,900 करोड़ (FY14) → ₹4,22,000 करोड़ (FY24)।
निर्माण इकाइयाँ: 2014 में सिर्फ 2 → अब 300 से अधिक फैक्ट्रियाँ।
भारत आज दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा मोबाइल फोन निर्माता है।
मोबाइल से आगे का विस्तार
भारत का इलेक्ट्रॉनिक्स निर्यात अब सिर्फ मोबाइल तक सीमित नहीं है। अन्य प्रमुख उत्पाद—
सोलर मॉड्यूल
नेटवर्किंग डिवाइस
चार्जर एडॉप्टर
इलेक्ट्रॉनिक पुर्जे और पार्ट्स
ये क्षेत्र न केवल निर्यात बढ़ा रहे हैं बल्कि रोजगार सृजन और सप्लाई चेन को भी मजबूत बना रहे हैं।
नीति प्रोत्साहन और आत्मनिर्भर भारत
भारत की इस सफलता के पीछे सरकार की सक्रिय नीतियाँ अहम हैं—
PLI (प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव) योजना
मैन्युफैक्चरिंग क्लस्टर और ‘ईज ऑफ डूइंग बिज़नेस’ सुधार
आत्मनिर्भर भारत मिशन के तहत महत्वपूर्ण तकनीकी क्षेत्रों में स्वावलंबन
सेमीकंडक्टर और चिप निर्माण को बढ़ावा, ताकि आयात पर निर्भरता घटे
भारत ने महासागर की गहराइयों की खोज में नया इतिहास रच दिया है। ‘डीप ओशन मिशन’ के तहत एक भारतीय एक्वानॉट ने उत्तर अटलांटिक महासागर में 5,002 मीटर की गहराई तक गोता लगाया, जो अब तक की भारत की सबसे गहरी मानव गोताखोरी है। फ्रांस के सहयोग से संपन्न यह उपलब्धि भारत के उन्नत गहरे समुद्री प्रौद्योगिकी निर्माण, संसाधन उपयोग और वैज्ञानिक अनुसंधान की प्रतिबद्धता को दर्शाती है।
रिकॉर्ड तोड़ गोताखोरी
5 और 6 अगस्त 2025 को फ्रांसीसी सबमर्सिबल ‘नॉटील’ (Nautile) से ये गोताखोरियां की गईं—
डॉ. राजू रमेश, वैज्ञानिक (NIOT) – 5 अगस्त को 4,025 मीटर गहराई तक उतरे।
जतिंदर पाल सिंह, सेवानिवृत्त नौसेना कमांडर – 6 अगस्त को 5,002 मीटर तक जाकर नया भारतीय रिकॉर्ड बनाया।
इससे भारत उन चुनिंदा देशों में शामिल हो गया है जो गहरे समुद्र में मानवयुक्त अभियान चला सकते हैं।
भारत-फ्रांस सहयोग और तकनीकी लाभ
यह मिशन भारत-फ्रांस साझेदारी का परिणाम है, जिसमें भारत को—
चरम समुद्री परिस्थितियों का व्यावहारिक अनुभव,
भावी स्वदेशी मिशनों के लिए प्रशिक्षण,
और समुद्री विज्ञान व प्रौद्योगिकी में सहयोग— प्राप्त हुआ।
डीप ओशन मिशन और ‘समुद्रयान’ परियोजना
भारत का डीप ओशन मिशन मानवयुक्त सबमर्सिबल्स, स्वचालित वाहनों और गहरे समुद्री खनन क्षमताओं को बढ़ाने पर केंद्रित है।
‘मत्स्य 6000’ नामक मानवयुक्त सबमर्सिबल 6,000 मीटर की गहराई तक जाने के लिए विकसित किया जा रहा है।
इसका परीक्षण दिसंबर 2027 तक होने की संभावना है।
फोकस क्षेत्रों में खनिज और हाइड्रोकार्बन खोज, जैव विविधता अध्ययन और जलवायु अनुसंधान शामिल हैं।
भारत के लिए महत्व
प्रौद्योगिकी छलांग: गहरे समुद्र की खोज और दबाव-रोधी तकनीक में विशेषज्ञता।
संसाधन खोज: भारत के विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र (EEZ) में खनिज और दुर्लभ तत्वों तक पहुंच।
वैश्विक प्रतिष्ठा: अमेरिका, फ्रांस, रूस और चीन जैसे देशों की श्रेणी में स्थान।
राष्ट्रीय गौरव: अंतरिक्ष की ऊंचाइयों और महासागर की गहराइयों—दोनों पर विजय पाने की क्षमता का प्रमाण।