भारत की थोक मुद्रास्फीति फरवरी में 2.38% पर स्थिर रही

फरवरी 2024 में भारत की थोक महंगाई दर में मामूली वृद्धि दर्ज की गई, जो 2.38% पर पहुंच गई, जबकि जनवरी में यह 2.31% थी। वाणिज्य मंत्रालय द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, निर्मित खाद्य उत्पादों, वस्त्रों और गैर-खाद्य वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि के कारण महंगाई में यह उछाल आया। हालांकि, खाद्य सूचकांक में गिरावट से कुछ राहत मिली।

थोक महंगाई और WPI का महत्व

थोक महंगाई को थोक मूल्य सूचकांक (WPI) के माध्यम से मापा जाता है, जो उपभोक्ताओं तक पहुंचने से पहले वस्तुओं की कीमतों की गति को दर्शाता है। इसके विपरीत, उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) खुदरा स्तर पर वस्तुओं और सेवाओं की कीमतों को ट्रैक करता है। WPI डेटा नीति निर्माताओं, व्यवसायों और विश्लेषकों के लिए महत्वपूर्ण होता है क्योंकि यह औद्योगिक लागत दबावों की जानकारी देता है और खुदरा महंगाई के संभावित रुझानों का संकेतक होता है।

फरवरी 2024 की प्रमुख झलकियां

  • महंगाई दर: फरवरी में थोक महंगाई 2.38% रही, जो जनवरी में 2.31% थी।
  • मुख्य कारण: निर्मित खाद्य उत्पाद, वस्त्र, गैर-खाद्य वस्तुएं और अन्य विनिर्माण श्रेणियां।
  • खाद्य सूचकांक में गिरावट: जनवरी में 7.47% से घटकर फरवरी में 5.94% हो गया, जिससे खाद्य पदार्थों की कीमतों में कुछ राहत मिली।
  • ऐतिहासिक प्रवृत्ति: सितंबर 2022 तक WPI महंगाई लगातार 18 महीनों तक दोहरे अंकों में रही। अप्रैल 2023 और जुलाई 2020 में यह नकारात्मक भी हुई थी।

फरवरी में थोक महंगाई को प्रभावित करने वाले कारक

1. प्रमुख उद्योगों में कीमतों में वृद्धि

  • निर्मित खाद्य उत्पाद: कच्चे माल की बढ़ती लागत और आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधान से खाद्य प्रसंस्करण उत्पाद महंगे हुए।
  • प्राथमिक खाद्य वस्तुएं: खाद्य सूचकांक में गिरावट के बावजूद, अनाज और दालों की कीमतें बढ़ीं।
  • वस्त्र उद्योग: कच्चे माल की कीमतों में वृद्धि के कारण वस्त्रों की लागत बढ़ी।
  • गैर-खाद्य वस्तुएं: कपास, तिलहन और रबर जैसी औद्योगिक कच्ची सामग्री की कीमतों में उतार-चढ़ाव आया।

2. खाद्य महंगाई में गिरावट

फलों, सब्जियों, खाद्य तेलों और वसा की कीमतों में गिरावट से खाद्य सूचकांक 7.47% से घटकर 5.94% पर आ गया, जिससे महंगाई के दबाव में कमी आई।

3. मौद्रिक नीति का प्रभाव

  • भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) मौद्रिक नीति के माध्यम से महंगाई को नियंत्रित करता है।
  • रेपो रेट को लगभग 5 वर्षों तक 6.5% पर बनाए रखा गया ताकि महंगाई पर काबू पाया जा सके।
  • हाल ही में, RBI ने रेपो रेट में 25 बेसिस पॉइंट की कटौती की, जिससे आर्थिक वृद्धि को प्रोत्साहन मिलने की संभावना है।

महंगाई का अर्थव्यवस्था पर प्रभाव

1. विनिर्माण और व्यापार क्षेत्र

  • WPI महंगाई में मामूली वृद्धि मांग वृद्धि का संकेत देती है, जिससे उत्पादन बढ़ाने के लिए निर्माताओं को प्रोत्साहन मिलता है।
  • हालांकि, उच्च उत्पादन लागत से कंपनियों के लाभ मार्जिन पर असर पड़ सकता है, जिससे उपभोक्ताओं के लिए कीमतों में वृद्धि हो सकती है।

2. उपभोक्ता कीमतें और खुदरा महंगाई

  • थोक खाद्य महंगाई में गिरावट से खुदरा खाद्य कीमतों में कमी आने की संभावना है, जिससे आम उपभोक्ताओं को राहत मिलेगी।
  • हालांकि, विनिर्माण क्षेत्र में महंगाई जारी रहने से उपभोक्ता वस्तुओं की कीमतें ऊंची बनी रह सकती हैं।

3. सरकारी नीतियां और आर्थिक स्थिरता

  • सरकार हर महीने WPI महंगाई के आंकड़े प्रकाशित करती है और नीति निर्माता इन आंकड़ों के आधार पर उचित नीतिगत निर्णय लेते हैं।
  • थोक महंगाई की निगरानी से आर्थिक स्थिरता बनाए रखने और उचित नीतियां लागू करने में मदद मिलती है।
श्रेणी विवरण
क्यों खबर में? भारत में WPI महंगाई फरवरी 2024 में बढ़कर 2.38% हो गई, जो जनवरी में 2.31% थी।
मुख्य कारण निर्मित खाद्य उत्पाद, वस्त्र और गैर-खाद्य वस्तुओं की बढ़ती कीमतें।
खाद्य सूचकांक प्रवृत्ति जनवरी में 7.47% से घटकर फरवरी में 5.94% हो गया, जिससे खाद्य महंगाई में राहत मिली।
WPI का ऐतिहासिक रुझान सितंबर 2022 तक 18 महीनों तक दोहरे अंकों में रहा; अप्रैल 2023 में नकारात्मक हुआ।
RBI की मौद्रिक नीति आर्थिक वृद्धि और उपभोग को बढ़ावा देने के लिए रेपो दर में 25 बेसिस पॉइंट की कटौती।
अर्थव्यवस्था पर प्रभाव विनिर्माण उत्पादन को प्रोत्साहन, लेकिन उपभोक्ता कीमतों में वृद्धि की संभावना।
सरकारी उपाय आर्थिक नीतियों को दिशा देने के लिए WPI महंगाई डेटा का मासिक प्रकाशन।
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vikash

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