भारतीय और नेपाली संस्कृत विद्वान, संस्कृत भाषा के अनुसंधान और शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए संयुक्त रूप से काम करने पर सहमत हुए हैं। नेपाल की राजधानी काठमांडू में आयोजित तीन दिवसीय नेपाल-भारत अंतर्राष्ट्रीय संस्कृत सम्मेलन के अंत में यह निर्णय लिया गया।
तीन दिवसीय सम्मेलन का आयोजन नीति अनुसंधान प्रतिष्ठान , केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, दिल्ली और इंडिया फाउंडेशन, दिल्ली के सहयोग से किया गया था। सम्मेलन में दोनों पड़ोसी देशों के 120 से अधिक संस्कृत विद्वानों, प्रोफेसरों और सरकारी अधिकारियों ने भाग लिया। अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन का मुख्य उद्देश्य नेपाल-भारत संबंधों को मजबूत करना तथा नेपाल और भारत में संस्कृत शिक्षा को बढ़ावा देना था।
मुख्य बिंदु
- तीन दिवसीय नेपाल-भारत अंतर्राष्ट्रीय संस्कृत कॉन्क्लेव के अंत में एक पांच सूत्री प्रस्ताव अपनाया गया जिसमें संस्कृत भाषा में अनुसंधान और शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए उठाए जाने वाले कदमों की रूपरेखा दी गई।
- प्रत्येक वर्ष एक अंतर्राष्ट्रीय संस्कृत सम्मेलन का आयोजन प्रस्तावित है। प्रस्ताव में विशेष रूप से नेपाल के संस्कृत ग्रंथों पर शोध करने और उन्हें प्रकाशित करने के लिए एक अध्ययन केंद्र स्थापित करने का भी प्रस्ताव किया गया है। नेपाल के पुरातत्व विभाग की एक रिपोर्ट के अनुसार उसके पास लगभग पाँच लाख अप्रकाशित संस्कृत पांडुलिपियाँ हैं।
- महर्षि सांदीपनि वेद विद्या प्रतिष्ठान, उज्जैन नेपाल के नीति अनुसंधान प्रतिष्ठान को नेपाल में गुरुकुलों के विकास के लिए सहायता प्रदान करेगा।
- नीति अनुसंधान प्रतिष्ठान नेपाल को नेपाल-भारत संस्कृत अध्ययन केंद्र के प्रधान कार्यालय के रूप में नामित किया गया है। प्रस्तावित केंद्र नेपाल में पाए जाने वाले संस्कृत पांडुलिपियों का संयुक्त अनुसंधान और अध्ययन करेगा। यह नेपाल और भारत दोनों से संस्कृत ग्रंथों के प्रकाशन की भी व्यवस्था करेगा।
- प्रस्ताव के अनुसार भारत नेपाल के संस्कृत छात्रों के लिए विषय सीखने के कौशल को बढ़ाने के लिए एक प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करेगा।
- केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, दिल्ली, नेपाल में गुरुकुलों के पुस्तकालयों को आवश्यक पुस्तकें प्रदान करेगा और नेपाल में संस्कृत शिक्षण संस्थानों को प्रदान करेगा।
- सम्मेलन में संस्कृत, पाली और प्राकृत भाषाओं के संरक्षण के साथ-साथ नेपाल और भारत के धर्म, संस्कृति, दर्शन, इतिहास और पुरातत्व को बढ़ावा देने का संकल्प भी अपनाया गया।
संस्कृत भाषा: एक नजर में
- संस्कृत भारत की एक प्राचीन भाषा है। इसे 2005 में भारत सरकार द्वारा शास्त्रीय भाषा का दर्जा दिया गया था। यह भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में उल्लिखित 22 भाषाओं में से एक है।
- भारतीय परंपरा में संस्कृत को एक दैवीय भाषा माना जाता है जिसका प्रयोग सबसे पहले वेदों में किया गया था।
- पाणिनी ने संस्कृत के व्याकरण को संक्षिप्त कर ,अष्टाध्यायी नामक व्याकरण की मास्टर पुस्तक लिखी। आधुनिक संस्कृत भाषा पाणिनि की अष्टाध्यायी पर आधारित है।
- संस्कृत को इंडो-आर्यन या इंडो जर्मनिक भाषा परिवार से संबंधित माना जाता है जिसमें ग्रीक, लैटिन और अन्य समान भाषाएं शामिल हैं।
- भारत में बाद की भाषाओं और साहित्य का स्रोत संस्कृत रही है। सबसे पहले पाली और प्राकृत भाषा का विकास संस्कृत से हुआ। बौद्ध विचारों की अभिव्यक्ति के लिए पाली को साधन के रूप में इस्तेमाल किया गया और जैन सिद्धांतों के प्रसार के लिए प्राकृत का उपयोग किया गया। अधिकांश बौद्ध साहित्य पाली में और जैन पंथ का प्राकृत में लिखा गया है।
- रामायण , महाभारत जैसे महान महाकाव्यों की रचना संस्कृत में हुई है । संस्कृत भाषा के अन्य महत्वपूर्ण कवि कालिदास, अश्वघोष, भारवि, भट्टी, कुमारदास और माघ आदि हैं।