भारतीय चुनाव आयोग (ईसीआई) ने हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय में दाखिल एक हलफनामे में स्पष्ट किया है कि मतदाता सूची में नाम शामिल करने की पात्रता स्थापित करने के लिए आधार, मतदाता पहचान पत्र और राशन कार्ड को स्वतंत्र दस्तावेज़ नहीं माना जा सकता। यह स्पष्टीकरण बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) और इस प्रक्रिया की चल रही न्यायिक जाँच के बीच आया है।
पृष्ठभूमि
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग (ECI) से यह स्पष्टीकरण मांगा था कि क्या आधार कार्ड, वोटर आईडी और राशन कार्ड को विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision – SIR) अभ्यास के दौरान मतदाता पात्रता का वैध प्रमाण माना जा सकता है। अदालत ने मसौदा मतदाता सूची को अंतिम रूप देने की प्रक्रिया पर अस्थायी रोक लगाई और आयोग से दस्तावेज़ों की स्वीकार्यता के दायरे को व्यापक बनाने का आग्रह किया। इसके जवाब में, चुनाव आयोग ने संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत अपनी संवैधानिक शक्तियों का हवाला देते हुए कहा कि उसे चुनावों की निगरानी करने और मतदाता पात्रता हेतु दस्तावेजों की सूची तय करने का पूर्ण अधिकार प्राप्त है।
संवैधानिक अधिकार और कानूनी आधार
संविधान के अनुच्छेद 324 के अंतर्गत चुनाव आयोग को चुनावों का संचालन, निगरानी और मतदाता सूचियों का प्रबंधन करने का अधिकार प्राप्त है। अपने हलफनामे में ECI ने यह स्पष्ट किया कि यदि कोई दस्तावेज़—जैसे आधार या वोटर आईडी—नागरिकता का पर्याप्त प्रमाण नहीं है, तो आयोग को उसे अस्वीकार करने का अधिकार है, क्योंकि अनुच्छेद 326 के अनुसार, भारतीय नागरिकता ही मतदाता बनने की मूल पात्रता है।
दस्तावेज़ नीति पर स्पष्टता
आयोग ने स्पष्ट किया कि यद्यपि EPIC (वोटर आईडी), आधार और राशन कार्ड आमतौर पर लोगों के पास होते हैं, ये भारतीय नागरिकता की गारंटी नहीं देते, जो मतदाता पंजीकरण के लिए आवश्यक है। हालांकि, आयोग ने यह भी स्पष्ट किया कि वर्तमान में स्वीकृत 11 दस्तावेजों की सूची “दर्शनीय (illustrative), न कि अंतिम (exhaustive)” है, जिसका अर्थ है कि प्रक्रिया में लचीलापन बरता जा सकता है।
बिहार में मतदाता सूची संशोधन
बिहार में विशेष गहन पुनरीक्षण एक व्यापक अभ्यास है जिसका उद्देश्य मतदाता सूची को स्वच्छ और अद्यतन बनाना है। चुनाव आयोग के अनुसार, 18 जुलाई तक 7.11 करोड़ (90.12%) मतदाताओं से फॉर्म प्राप्त हो चुके थे, और मृत्यु तथा प्रवास को ध्यान में रखते हुए यह कवरेज 94.68% तक पहुँच चुकी है। आयोग ने स्पष्ट किया कि यह प्रक्रिया बहिष्करण नहीं, बल्कि समावेशन (inclusionary) पर केंद्रित है, ताकि मतदाता सूचियाँ अधिक शुद्ध और सटीक बनाई जा सकें।
आरोपों पर प्रतिक्रिया और राजनीतिक रुख
ECI ने SIR के खिलाफ दायर याचिकाओं को “अकालपूर्व” और “मीडिया रिपोर्टों पर आधारित, तथ्यों से रहित” बताया। आयोग ने यह भी कहा कि सभी राजनीतिक दलों ने इस प्रक्रिया का समर्थन किया और इसके क्रियान्वयन में सहयोग दिया। आयोग ने यह पुनः स्पष्ट किया कि पंजीकरण से इनकार नागरिकता की समाप्ति नहीं है, और यह चिंता गलत है कि इससे नागरिकों को मतदाता सूची से बाहर किया जा रहा है।
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