भारत निर्वाचन आयोग (ECI) भारतीय संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत स्थापित एक संवैधानिक निकाय है। इसका दायित्व देश में स्वतंत्र, निष्पक्ष और पारदर्शी चुनाव कराना है। यह आयोग वर्ष 1950 में गठित किया गया था और तब से अब तक इसने भारत — जो विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है — में लोकतांत्रिक व्यवस्था को मज़बूत बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। प्रारंभ में निर्वाचन आयोग एक एकल-सदस्यीय निकाय था जिसमें केवल मुख्य निर्वाचन आयुक्त (CEC) होते थे, लेकिन वर्ष 1993 से यह एक बहु-सदस्यीय निकाय के रूप में कार्य कर रहा है जिसमें एक मुख्य निर्वाचन आयुक्त और दो निर्वाचन आयुक्त शामिल होते हैं।
संरचना (Composition of ECI)
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आयोग में मुख्य निर्वाचन आयुक्त (CEC) और दो निर्वाचन आयुक्त (ECs) होते हैं।
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इनकी नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।
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कार्यकाल 6 वर्ष या 65 वर्ष की आयु, इनमें से जो पहले पूरा हो, तक होता है।
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सभी आयुक्तों के समान अधिकार होते हैं और निर्णय बहुमत से लिए जाते हैं।
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मुख्य निर्वाचन आयुक्त (CEC) को केवल सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश की तरह प्रक्रिया अपनाकर ही हटाया जा सकता है, जिससे उसकी स्वतंत्रता सुनिश्चित होती है।
निर्वाचन आयोग की शक्तियाँ (Powers of ECI)
निर्वाचन आयोग को चुनावों की शुचिता सुनिश्चित करने के लिए व्यापक शक्तियाँ दी गई हैं:
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चुनावों का पर्यवेक्षण और नियंत्रण – अनुच्छेद 324 के तहत संसद, राज्य विधानसभाओं और राष्ट्रपति एवं उपराष्ट्रपति के चुनाव कराने का सर्वोच्च अधिकार।
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आदर्श आचार संहिता (Model Code of Conduct – MCC) – चुनावों के दौरान राजनीतिक दलों और प्रत्याशियों के आचरण को नियंत्रित करना।
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सलाहकारी शक्तियाँ – राष्ट्रपति या राज्यपाल को सांसदों और विधायकों की अयोग्यता से संबंधित मामलों में परामर्श देना (संविधान और जनप्रतिनिधित्व अधिनियम के अंतर्गत)।
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अर्ध-न्यायिक शक्तियाँ – राजनीतिक दलों की मान्यता और चुनाव चिह्न आवंटन से जुड़े विवादों का निपटारा।
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अनुशासनात्मक शक्तियाँ – चुनाव नियम तोड़ने पर दलों और प्रत्याशियों को चेतावनी देना, फटकारना या उनकी मान्यता रद्द करना।
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आपात शक्तियाँ – यदि हिंसा, प्राकृतिक आपदा या अन्य अनियमितताओं के कारण चुनाव कराना संभव न हो, तो चुनाव स्थगित या रद्द करना।
निर्वाचन आयोग के कार्य (Functions of ECI)
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चुनावों का आयोजन – लोकसभा, राज्यसभा, राज्य विधानसभाओं, राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनाव कराना।
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मतदाता सूची तैयार करना – मतदाता सूची की तैयारी, संशोधन और अद्यतन कराना।
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राजनीतिक दलों का पंजीकरण – राजनीतिक दलों को मान्यता देना और चुनाव चिह्न आवंटित करना।
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चुनावी खर्च की निगरानी – प्रत्याशियों के खर्च पर नज़र रखना ताकि धनबल का दुरुपयोग न हो।
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स्वतंत्र और निष्पक्ष मतदान सुनिश्चित करना – पर्यवेक्षकों की नियुक्ति, ईवीएम और अब वीवीपैट मशीनों का उपयोग कर पारदर्शिता लाना।
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मतदाता शिक्षा और जागरूकता – SVEEP (Systematic Voters’ Education and Electoral Participation) जैसे अभियान चलाकर मतदान प्रतिशत बढ़ाना।
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प्रौद्योगिकी का उपयोग – ईवीएम, ऑनलाइन मतदाता पंजीकरण और डिजिटल पहल के माध्यम से चुनावों को सुचारु बनाना।


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