प्रत्येक वर्ष 11 सितम्बर को भारत में ‘दिग्विजय दिवस’ मनाया जाता है, जो स्वामी विवेकानंद के शिकागो विश्व धर्म संसद में दिए गए ऐतिहासिक भाषण की गूंज को स्मरण कराता है। यह दिवस विशेष रूप से प्रतियोगी परीक्षा के अभ्यर्थियों के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह भारत की आध्यात्मिक और सांस्कृतिक पहचान के उस क्षण को याद दिलाता है जिसने पूरे विश्व का ध्यान आकर्षित किया।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
11 सितम्बर 1893 को स्वामी विवेकानंद ने शिकागो में आयोजित प्रथम विश्व धर्म संसद में अपने प्रसिद्ध संबोधन की शुरुआत इन शब्दों से की – “अमेरिका के बहनों और भाइयों”। यह आत्मीय अभिवादन सुनकर पूरा सभागार खड़ा हो गया और तालियों से गूंज उठा।
इस भाषण के माध्यम से उन्होंने भारत की गहन दार्शनिक परंपरा को दुनिया के सामने प्रस्तुत किया। विवेकानंद ने धर्म की सार्वभौमिकता, सम्प्रदायवाद और कट्टरता का विरोध तथा सर्वधर्म समभाव का संदेश दिया। उन्होंने भगवद्गीता से उद्धरण करते हुए बताया कि पवित्रता, दान और करुणा किसी धर्म-सीमा में बंधी नहीं होतीं।
दिग्विजय दिवस का महत्व
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सार्वभौमिक भाईचारे का उत्सव
इसे सार्वभौमिक भाईचारा दिवस भी कहा जाता है, जो विवेकानंद के एकता और सहिष्णुता के संदेश को स्मरण कराता है। -
भारत की आध्यात्मिक और सांस्कृतिक पहचान
इस भाषण ने भारत को विश्व पटल पर एक आध्यात्मिक दूत के रूप में स्थापित किया, जिसने राष्ट्रीय पहचान, शिक्षा, राजनीति और युवा चेतना को गहराई से प्रभावित किया। -
युवा प्रेरणा और आत्म-खोज
स्वामी विवेकानंद के विचार आत्मविश्वास, सेवा और नैतिक शक्ति के प्रतीक बने। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित अनेक नेताओं ने विवेकानंद को अपनी आत्म-यात्रा का प्रेरक माना है। -
अनन्त मूल्य
आज जब विश्व में संघर्ष और विभाजन बढ़ रहे हैं, विवेकानंद का “विविधता में एकता” का संदेश और आध्यात्मिक राष्ट्रवाद की भावना अधिक प्रासंगिक हो गई है।
परीक्षाओं के लिए प्रमुख तथ्य
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तिथि: 11 सितम्बर (1893 के शिकागो भाषण की वर्षगांठ)
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थीम: आध्यात्मिक समावेशिता, धार्मिक सहिष्णुता, अंतरधार्मिक संवाद
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विरासत: भारत के आध्यात्मिक पुनर्जागरण का उत्प्रेरक; युवाओं को सशक्त बनाने और वैश्विक एकता को प्रोत्साहित करने वाला


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