ऋद्धिमान साहा ने क्रिकेट के सभी प्रारूपों से लिया संन्यास

पूर्व भारतीय विकेटकीपर-बल्लेबाज रिद्धिमान साहा ने सभी प्रारूपों से संन्यास की घोषणा कर दी है। 40 वर्षीय साहा, जो अपनी असाधारण विकेटकीपिंग और धैर्यशील बल्लेबाजी के लिए जाने जाते हैं, ने रणजी ट्रॉफी एलीट 2024-25 ग्रुप सी मुकाबले में बंगाल बनाम पंजाब मैच के दौरान अपना आखिरी मैच खेला। साहा ने इससे पहले नवंबर 2024 में अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से संन्यास लिया था। उन्होंने अपने परिवार, कोचों और क्रिकेट संगठनों का पूरे करियर में समर्थन देने के लिए आभार व्यक्त किया।

रिद्धिमान साहा के करियर की प्रमुख झलकियां

संन्यास की घोषणा

  • साहा ने 3 फरवरी 2025 को सभी प्रारूपों से संन्यास लेने की घोषणा की।
  • उन्होंने रणजी ट्रॉफी 2024-25 सीजन में पंजाब के खिलाफ बंगाल के लिए अपना आखिरी मैच खेला।
  • बंगाल टीम ने उन्हें उनकी अंतिम पारी में गार्ड ऑफ ऑनर दिया।

घरेलू और अंतरराष्ट्रीय करियर

  • साहा ने 2007 में प्रथम श्रेणी क्रिकेट में पदार्पण किया।
  • 142 प्रथम श्रेणी मैचों में 7,169 रन बनाए, 41.43 की औसत से, जिसमें 14 शतक और 44 अर्धशतक शामिल हैं।
  • भारत के लिए 40 टेस्ट मैच खेले, जिसमें 1,353 रन बनाए, तीन शतक और छह अर्धशतक लगाए।
  • भारत के लिए 5 वनडे मैच भी खेले।
  • 2014 में एमएस धोनी के टेस्ट क्रिकेट से संन्यास के बाद भारतीय टीम के प्रमुख विकेटकीपर बने।

यादगार उपलब्धियां

  • आईपीएल फाइनल में शतक लगाने वाले पहले भारतीय खिलाड़ी (2014, किंग्स इलेवन पंजाब के लिए)।
  • भारत की टेस्ट टीम के महत्वपूर्ण सदस्य रहे, खासकर विदेशी दौरों पर।
  • बंगाल की घरेलू क्रिकेट में सफलता में अहम योगदान दिया।
  • किंग्स इलेवन पंजाब, सनराइजर्स हैदराबाद और गुजरात टाइटंस जैसी टीमों के लिए आईपीएल में खेले।

फेयरवेल संदेश

  • साहा ने बीसीसीआई, क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ बंगाल और त्रिपुरा क्रिकेट एसोसिएशन को धन्यवाद दिया।
  • अपने बचपन के कोच जयंत भौमिक का विशेष रूप से आभार व्यक्त किया।
  • परिवार, साथी खिलाड़ियों, आलोचकों और प्रशंसकों का उनके करियर को आकार देने के लिए धन्यवाद दिया।
  • संन्यास के बाद अपने परिवार और व्यक्तिगत जीवन को अधिक समय देने की योजना बनाई।

रिद्धिमान साहा का करियर संघर्ष, समर्पण और उत्कृष्ट विकेटकीपिंग कौशल का प्रतीक रहा है। उनके योगदान को भारतीय क्रिकेट हमेशा याद रखेगा।

संक्षिप्त जानकारी विस्तृत विवरण
क्यों चर्चा में? एक युग का अंत: रिद्धिमान साहा ने क्रिकेट से संन्यास लिया
अंतरराष्ट्रीय पदार्पण 2010 (टेस्ट), 2014 (वनडे)
कुल टेस्ट मैच 40
टेस्ट शतक/अर्धशतक 3 शतक, 6 अर्धशतक
वनडे मैच 5
प्रथम श्रेणी मैच 142
प्रथम श्रेणी रन 7,169
आईपीएल टीमें किंग्स इलेवन पंजाब (KXIP), सनराइजर्स हैदराबाद (SRH), गुजरात टाइटंस
विशेष उपलब्धि आईपीएल फाइनल में शतक लगाने वाले पहले भारतीय खिलाड़ी (2014)
अंतिम मैच रणजी ट्रॉफी 2024-25 (बंगाल बनाम पंजाब)
विशेष सम्मान बंगाल टीम द्वारा गार्ड ऑफ ऑनर

केंद्रीय बजट 2025-26 परमाणु ऊर्जा क्षेत्र को क्या मिलेगा?

केंद्रीय बजट 2025-26 भारत की परमाणु ऊर्जा रणनीति में एक महत्वपूर्ण कदम है। सरकार ने नवीकरणीय और स्वच्छ ऊर्जा के रूप में परमाणु शक्ति को प्राथमिकता दी है और इसे दीर्घकालिक ऊर्जा सुरक्षा का आधार बनाया है। विकसित भारत (Viksit Bharat) परमाणु ऊर्जा मिशन के तहत, भारत ने 2047 तक 100 गीगावाट (GW) परमाणु ऊर्जा क्षमता प्राप्त करने का लक्ष्य रखा है। यह पहल जीवाश्म ईंधन (Fossil Fuels) पर निर्भरता कम करने, ऊर्जा सुरक्षा मजबूत करने और पर्यावरणीय प्रतिबद्धताओं को पूरा करने की दिशा में एक बड़ा कदम है। इस मिशन में घरेलू परमाणु क्षमताओं का विकास, निजी क्षेत्र की भागीदारी और उन्नत परमाणु प्रौद्योगिकियों जैसे कि स्मॉल मॉड्यूलर रिएक्टर्स (SMRs) का अनुसंधान शामिल होगा।

केंद्रीय बजट 2025-26 में परमाणु ऊर्जा से जुड़ी प्रमुख घोषणाएँ

1. विकसित भारत के लिए परमाणु ऊर्जा मिशन

  • सरकार ने परमाणु ऊर्जा मिशन शुरू किया है, जिसका उद्देश्य परमाणु ऊर्जा उत्पादन बढ़ाकर भारत को ऊर्जा सुरक्षा और स्थिरता प्रदान करना है।
  • 2047 तक 100 GW परमाणु ऊर्जा उत्पादन का लक्ष्य रखा गया है।
  • इस मिशन के तहत नीतिगत सुधार, विधायी संशोधन और बुनियादी ढांचे में रणनीतिक निवेश किया जाएगा।

2. स्मॉल मॉड्यूलर रिएक्टर्स (SMRs) का अनुसंधान और विकास

  • सरकार ने ₹20,000 करोड़ का बजट SMRs के अनुसंधान और निर्माण के लिए आवंटित किया है।
  • 2033 तक पाँच स्वदेशी रूप से विकसित SMRs को चालू करने का लक्ष्य रखा गया है।
  • SMRs की उत्पादन क्षमता 30 MWe से 300+ MWe तक होगी, जिससे स्थानीय स्तर पर ऊर्जा उत्पादन संभव होगा और जीवाश्म ईंधनों पर निर्भरता कम होगी।
  • यह तकनीक भूमि की कमी, कार्बन उत्सर्जन में कटौती और दूरस्थ क्षेत्रों में ऊर्जा आपूर्ति के लिए महत्वपूर्ण साबित होगी।

3. निजी क्षेत्र की भागीदारी और विधायी सुधार

  • सरकार परमाणु ऊर्जा अधिनियम (Atomic Energy Act) और परमाणु क्षति हेतु सिविल दायित्व अधिनियम (Civil Liability for Nuclear Damage Act) में संशोधन करने जा रही है।
  • निजी कंपनियों को “भारत स्मॉल रिएक्टर्स” (BSRs) के विकास में भाग लेने की अनुमति दी जाएगी।
  • इन सुधारों से निजी निवेश को बढ़ावा मिलेगा और भारत के परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में नवाचार और प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा मिलेगा।

4. भारत स्मॉल रिएक्टर्स (BSRs) की स्थापना

  • 220 MWe के प्रेसराइज्ड हैवी वाटर रिएक्टर्स (PHWRs) विकसित किए जाएंगे, जो औद्योगिक क्षेत्रों की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करेंगे।
  • यह स्टील, एल्युमीनियम और धातु उद्योगों के लिए उपयुक्त होंगे।
  • निजी कंपनियाँ भूमि, शीतलन जल (Cooling Water) और पूंजी निवेश प्रदान करेंगी, जबकि परमाणु ऊर्जा निगम (NPCIL) डिज़ाइन, गुणवत्ता नियंत्रण और संचालन की निगरानी करेगा।

5. अन्य उन्नत परमाणु प्रौद्योगिकियों का विकास

  • भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (BARC) नए प्रकार के परमाणु रिएक्टरों पर काम कर रहा है, जिनमें शामिल हैं:
    • हाई-टेम्परेचर गैस-कूल्ड रिएक्टर्स (HTGRs): हाइड्रोजन उत्पादन के लिए विकसित किए जा रहे हैं।
    • मोल्टन साल्ट रिएक्टर्स (MSRs): थोरियम पर आधारित हैं और भारत के समृद्ध थोरियम संसाधनों का उपयोग करने में सहायक होंगे।
  • ये उन्नत रिएक्टर भारत की ऊर्जा सुरक्षा को मजबूत करने और वैश्विक जलवायु लक्ष्यों में योगदान देने के लिए आवश्यक हैं।

6. परमाणु क्षमता का विस्तार

  • भारत की परमाणु ऊर्जा क्षमता 8,180 MW से बढ़ाकर 22,480 MW करने की योजना बनाई गई है, जिसे 2031-32 तक पूरा किया जाएगा।
  • गुजरात, राजस्थान, तमिलनाडु, हरियाणा, कर्नाटक और मध्य प्रदेश में कुल 10 नए रिएक्टर (8,000 MW क्षमता) स्थापित किए जाएंगे।
  • आंध्र प्रदेश के कोव्वाडा (Kovvada) प्रोजेक्ट के तहत अमेरिका के सहयोग से 1,208 MW के छह रिएक्टर स्थापित किए जाएंगे।

7. परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में हाल की उपलब्धियाँ

  • 19 सितंबर, 2024 को राजस्थान परमाणु ऊर्जा परियोजना (RAPP-7) की यूनिट-7 ने क्रिटिकलिटी प्राप्त की, जो स्वदेशी परमाणु प्रौद्योगिकी के लिए एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है।
  • झाड़गुड़ा खदानों (Jaduguda Mines) में नए यूरेनियम भंडार की खोज हुई है, जिससे यह संसाधन अगले 50 वर्षों तक उपलब्ध रहेगा।
  • काकरापार (गुजरात) में 700 MWe PHWR रिएक्टर की पहली दो इकाइयों वाणिज्यिक रूप से चालू हो चुकी हैं।

8. सुरक्षा और पर्यावरणीय प्रतिबद्धता

  • भारत के परमाणु संयंत्र कड़े सुरक्षा मानकों और अंतरराष्ट्रीय निगरानी के तहत संचालित होते हैं, जिससे सार्वजनिक स्वास्थ्य और पर्यावरण संरक्षण सुनिश्चित किया जाता है।
  • सरकार का लक्ष्य “नेट-जीरो” उत्सर्जन प्राप्त करना और स्वच्छ, सुरक्षित और स्थायी ऊर्जा उत्पादन को बढ़ावा देना है।

 

क्या है अमेरिकी मिशन Blue Ghost?

ब्लू घोस्ट लैंडर एक अत्याधुनिक अंतरिक्ष यान है, जिसे फायरफ्लाई एयरोस्पेस (Firefly Aerospace) द्वारा विकसित किया गया है। इसका मुख्य उद्देश्य चंद्रमा की सतह पर वैज्ञानिक पेलोड पहुंचाना और चंद्र अनुसंधान को आगे बढ़ाना है। यह लैंडर नासा के लूनर सरफेस ऑपरेशंस प्रोग्राम (Lunar Surface Operations Program) और आर्टेमिस मिशन (Artemis Mission) का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जिसका लक्ष्य चंद्रमा पर मानव उपस्थिति स्थापित करना और वहां दीर्घकालिक खोज के लिए आधार तैयार करना है।

ब्लू घोस्ट लैंडर क्या है?

ब्लू घोस्ट लैंडर चंद्र अन्वेषण के क्षेत्र में एक बड़ा कदम है। यह न केवल चंद्रमा की सतह पर उतरने में सक्षम है, बल्कि वैज्ञानिक उपकरणों और प्रयोगों को वहां तैनात करने का भी कार्य करेगा। यह मिशन चंद्रमा के संसाधनों, भूविज्ञान और सतह की परिस्थितियों के बारे में मूल्यवान जानकारी प्रदान करेगा। साथ ही, यह चंद्र अन्वेषण में निजी कंपनियों की बढ़ती भूमिका को भी दर्शाता है, जिससे भविष्य में और अधिक वाणिज्यिक कंपनियां अंतरिक्ष अभियानों में भाग ले सकेंगी।

ब्लू घोस्ट लैंडर की प्रमुख विशेषताएँ

1. लैंडिंग तकनीक

यह लैंडर उन्नत लैंडिंग तकनीकों से लैस है, जिससे यह चंद्रमा की सतह पर सुरक्षित और सटीक लैंडिंग कर सके। चंद्रमा की कठिन और विषम भू-भाग वाली सतह पर उतरने के लिए उच्च-सटीकता वाली नेविगेशन प्रणाली का उपयोग किया गया है, ताकि वैज्ञानिक उपकरणों को सुरक्षित रूप से उतारा जा सके।

2. पेलोड क्षमता

ब्लू घोस्ट लैंडर कई वैज्ञानिक उपकरणों को ले जाने की क्षमता रखता है। इसमें रोवर्स, अनुसंधान उपकरण, और तकनीकी परीक्षणों के लिए आवश्यक भार ले जाने की सुविधा है। यह विभिन्न प्रकार के अनुसंधान और प्रयोगों के लिए एक बहुप्रयोजी अंतरिक्ष यान के रूप में काम करेगा।

3. स्वायत्तता (Autonomy)

यह लैंडर पूरी तरह से स्वायत्त (Autonomous) रूप से संचालित हो सकता है, यानी चंद्रमा पर उतरने के बाद यह बिना किसी मानवीय हस्तक्षेप के अपने कार्य कर सकता है। यह स्वायत्त नेविगेशन और निर्णय लेने की क्षमताओं से लैस है, जिससे यह पेलोड की तैनाती, डेटा संग्रहण और अन्य मिशन-आधारित कार्यों को स्वतः पूरा कर सकता है।

4. वैज्ञानिक उपकरण

ब्लू घोस्ट लैंडर चंद्रमा की सतह, भूगर्भ और संसाधनों का अध्ययन करने के लिए विशेष वैज्ञानिक उपकरणों से सुसज्जित है। यह चंद्रमा के पर्यावरण को समझने के लिए महत्वपूर्ण डेटा एकत्र करेगा, जिससे भविष्य के मानव मिशनों की आधारशिला रखी जा सकेगी।

ब्लू घोस्ट लैंडर के मुख्य उद्देश्य

1. नासा के आर्टेमिस कार्यक्रम का समर्थन

इस मिशन का प्राथमिक उद्देश्य नासा के आर्टेमिस कार्यक्रम को समर्थन देना है, जो चंद्रमा पर मानव को वापस भेजने और एक स्थायी मानव उपस्थिति स्थापित करने के लिए काम कर रहा है। यह लैंडर वैज्ञानिक उपकरणों को वितरित करके और महत्वपूर्ण डेटा एकत्र करके इन प्रयासों में योगदान देगा।

2. तकनीकी परीक्षण और नवाचार

यह लैंडर एक तकनीकी प्रदर्शन (Technological Demonstration) के रूप में भी कार्य करेगा, जिससे यह साबित होगा कि निजी कंपनियाँ भी उच्च-सटीकता वाले चंद्र अभियानों को सफलतापूर्वक अंजाम दे सकती हैं। इससे अंतरिक्ष अन्वेषण में वाणिज्यिक भागीदारी को बढ़ावा मिलेगा।

3. चंद्र विज्ञान को बढ़ावा देना

ब्लू घोस्ट लैंडर का एक अन्य महत्वपूर्ण उद्देश्य चंद्रमा की सतह और पर्यावरण का विस्तृत अध्ययन करना है। इससे चंद्रमा की संरचना, संसाधनों और सतह की स्थितियों के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होगी, जो भविष्य में चंद्र मिशनों के लिए सहायक होगी।

ब्लू घोस्ट लैंडर का महत्व

1. चंद्र अनुसंधान को बढ़ावा

इस लैंडर के माध्यम से वैज्ञानिकों को चंद्रमा की भूगर्भीय विशेषताओं, संसाधनों और जलवायु परिस्थितियों पर महत्वपूर्ण डेटा मिलेगा। इससे भविष्य में मानव मिशनों को सुगम बनाने और चंद्रमा पर स्थायी मानव बस्तियाँ बसाने में मदद मिलेगी।

2. भविष्य के चंद्र मिशनों के लिए आधार तैयार करना

इस मिशन की सफलता से भविष्य के चंद्र अभियानों का मार्ग प्रशस्त होगा। यह न केवल वैज्ञानिक उद्देश्यों की पूर्ति करेगा, बल्कि वाणिज्यिक कंपनियों को भी चंद्र अन्वेषण में भाग लेने के लिए प्रेरित करेगा।

3. निजी क्षेत्र की भागीदारी को बढ़ावा

ब्लू घोस्ट लैंडर अंतरिक्ष अन्वेषण में निजी कंपनियों की बढ़ती भूमिका को दर्शाता है। यह साबित करता है कि वाणिज्यिक कंपनियाँ भी चंद्र अभियानों जैसी जटिल और उन्नत अंतरिक्ष मिशनों को सफलतापूर्वक अंजाम दे सकती हैं। इससे अंतरिक्ष क्षेत्र में नवाचार और प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा मिलेगा, जिससे नए अवसर पैदा होंगे।

निष्कर्ष

ब्लू घोस्ट लैंडर चंद्र अन्वेषण के क्षेत्र में एक क्रांतिकारी कदम है। यह न केवल वैज्ञानिक अनुसंधान को नई ऊँचाइयों पर ले जाएगा, बल्कि चंद्रमा पर मानव बसाहट की दिशा में भी एक महत्वपूर्ण आधार तैयार करेगा। साथ ही, यह मिशन अंतरिक्ष में निजी कंपनियों की बढ़ती भागीदारी और नवाचार क्षमता को भी प्रदर्शित करता है। इसके सफल प्रक्षेपण से भविष्य में चंद्रमा और अन्य ग्रहों की खोज के लिए नए द्वार खुलेंगे, जिससे अंतरिक्ष में दीर्घकालिक मानव उपस्थिति के सपने को साकार करने में मदद मिलेगी।

गोपाल विट्टल को जीएसएमए बोर्ड का कार्यवाहक अध्यक्ष नियुक्त किया गया

भारती एयरटेल के उपाध्यक्ष और प्रबंध निदेशक गोपाल विट्टल ने 3 फरवरी 2025 को GSMA बोर्ड के कार्यवाहक अध्यक्ष का पदभार संभाला। यह नियुक्ति टेलीफोनिका के अध्यक्ष और सीईओ जोस मारिया अल्वारेज़-पैलेटे के इस्तीफे के बाद हुई, जिन्होंने टेलीफोनिका से अपने प्रस्थान के कारण यह पद छोड़ा। यह बदलाव वैश्विक दूरसंचार उद्योग में हो रहे गतिशील परिवर्तनों और इसके नेतृत्व की महत्वपूर्ण भूमिकाओं को दर्शाता है।

गोपाल विट्टल की नियुक्ति GSMA के लिए क्या मायने रखती है?
गोपाल विट्टल की नियुक्ति को GSMA के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ के रूप में देखा जा रहा है। GSMA एक वैश्विक संगठन है, जो दूरसंचार क्षेत्र की 1,100 से अधिक कंपनियों का प्रतिनिधित्व करता है। विट्टल के पास टेलीकॉम उद्योग का व्यापक अनुभव और गहरी समझ है, जो वैश्विक बाजार में संगठन की चुनौतियों और अवसरों को दिशा देने में मदद करेगा। उनकी नियुक्ति GSMA बोर्ड में एक नया दृष्टिकोण लाएगी, खासकर भारतीय और वैश्विक दूरसंचार परिदृश्य की उनकी व्यापक समझ के कारण।

GSMA में गोपाल विट्टल की पिछली भूमिकाएँ
कार्यवाहक अध्यक्ष बनने से पहले, गोपाल विट्टल GSMA के साथ लंबे समय से जुड़े रहे हैं। उन्हें 2025-2026 के कार्यकाल के लिए GSMA बोर्ड के उपाध्यक्ष के रूप में फिर से चुना गया था, जो दूरसंचार उद्योग में उनकी स्थायी प्रभावशीलता को दर्शाता है। 2019-2020 की अवधि में भी वे GSMA बोर्ड के एक महत्वपूर्ण सदस्य के रूप में कार्य कर चुके हैं। उनकी निरंतर नेतृत्वकारी भूमिका से यह स्पष्ट होता है कि वे संगठन को प्रभावी रूप से आगे ले जाने के लिए तैयार हैं।

GSMA क्या है और इसका वैश्विक दूरसंचार उद्योग पर क्या प्रभाव है?
GSMA (ग्लोबल सिस्टम फॉर मोबाइल कम्युनिकेशंस एसोसिएशन) दूरसंचार उद्योग में एक प्रमुख वैश्विक संगठन है, जो दूरसंचार सेवा प्रदाताओं, मोबाइल उपकरण निर्माताओं, सॉफ्टवेयर डेवलपर्स और इंटरनेट कंपनियों का प्रतिनिधित्व करता है। 1,100 से अधिक कंपनियों के साथ, GSMA नीतियों को आकार देने, नई तकनीकों को विकसित करने और उद्योग में सहयोग को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। संगठन 5G अपनाने, डिजिटल नवाचार और अन्य जटिल चुनौतियों से निपटने में अपने सदस्यों का समर्थन करता है और दूरसंचार उद्योग में प्रमुख परिवर्तन लाने में अग्रणी बना हुआ है।

समाचार में क्यों? मुख्य बिंदु
गोपाल विट्टल 3 फरवरी 2025 को GSMA बोर्ड के कार्यवाहक अध्यक्ष नियुक्त नाम: गोपाल विट्टल
जोस मारिया अल्वारेज़-पैलेटे के इस्तीफे के बाद पदभार ग्रहण किया पद: उपाध्यक्ष और प्रबंध निदेशक, भारती एयरटेल
नया पद GSMA बोर्ड के कार्यवाहक अध्यक्ष
इस्तीफा जोस मारिया अल्वारेज़-पैलेटे, अध्यक्ष और सीईओ, टेलीफोनिका ने पद छोड़ा
GSMA बोर्ड की भूमिका 2025-2026 कार्यकाल के लिए डिप्टी चेयर चुने गए
GSMA प्रतिनिधित्व वैश्विक स्तर पर 1,100+ कंपनियों का प्रतिनिधित्व करता है
GSMA का प्रभाव दूरसंचार उद्योग में नीतियों को आकार देना, नवाचार को बढ़ावा देना
कार्यकाल 2025-2026 कार्यकाल के लिए डिप्टी चेयर के रूप में पुनर्निर्वाचित
GSMA सदस्यता दूरसंचार सेवा प्रदाता, मोबाइल उपकरण निर्माता, सॉफ्टवेयर कंपनियां, इंटरनेट कंपनियां
पूर्व भूमिका 2019-2020 कार्यकाल के दौरान GSMA बोर्ड में सेवा दी
GSMA की भूमिका वैश्विक दूरसंचार नीतियों और तकनीकों में सहयोग व समर्थन

भारत ने पहली फेरेट अनुसंधान सुविधा के साथ जैव चिकित्सा अनुसंधान को मजबूत किया

भारत ने बायोमेडिकल अनुसंधान को बढ़ावा देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है। हरियाणा के फरीदाबाद स्थित ट्रांसलेशनल हेल्थ साइंस एंड टेक्नोलॉजी इंस्टीट्यूट (THSTI) में देश की पहली फेरेट रिसर्च फैसिलिटी का उद्घाटन किया गया है। यह केंद्र संक्रामक और गैर-संक्रामक रोगों पर अनुसंधान को मजबूत करने की दिशा में एक बड़ा कदम है। बायोटेक्नोलॉजी रिसर्च एंड इनोवेशन काउंसिल के महानिदेशक और जैव प्रौद्योगिकी विभाग के सचिव डॉ. राजेश गोखले ने इस अनुसंधान केंद्र का उद्घाटन किया। यह नया शोध केंद्र टीकों और उपचारों के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा और उभरते रोगों के लिए भारत की तैयारी को भी मजबूत करेगा।

फेरेट रिसर्च फैसिलिटी की भूमिका क्या है?

नव स्थापित फेरेट रिसर्च फैसिलिटी एक उच्च स्तरीय अनुसंधान केंद्र है, जो उन्नत बायोसेफ्टी मानकों से लैस है। यह केंद्र टीकों और चिकित्सीय हस्तक्षेपों के विकास सहित विभिन्न बीमारियों पर महत्वपूर्ण अध्ययन करने के लिए एक प्लेटफार्म प्रदान करेगा। इस केंद्र के माध्यम से भारत उन चुनिंदा देशों में शामिल हो गया है, जिनके पास ऐसी उन्नत अनुसंधान सुविधाएं हैं। यह वैश्विक बायोमेडिकल अनुसंधान परिदृश्य में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है।

फेरेट मॉडल विशेष रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि फेरेट को श्वसन संबंधी बीमारियों पर अनुसंधान के लिए एक आदर्श पशु मॉडल माना जाता है। यह इन्फ्लूएंजा, कोरोनावायरस और अन्य श्वसन रोगजनकों से संबंधित अध्ययनों के लिए उपयोग किया जाता है। इस समर्पित अनुसंधान केंद्र के माध्यम से, भारत न केवल मौजूदा बल्कि उभरती हुई संक्रामक बीमारियों के लिए भी नए टीकों और उपचारों के विकास में योगदान देगा, जिससे महामारी से निपटने की देश की क्षमता में सुधार होगा।

गर्भ-INI-दृष्टि डेटा रिपॉजिटरी का महत्व क्या है?

फेरेट रिसर्च फैसिलिटी के साथ ही, भारत ने गर्भ-INI-दृष्टि डेटा रिपॉजिटरी भी लॉन्च की है। यह व्यापक डेटा संग्रहालय 12,000 से अधिक गर्भवती महिलाओं, नवजात शिशुओं और प्रसवोत्तर माताओं के नैदानिक डेटा, छवियों और जैव-नमूनों का विशाल संग्रह है। यह दक्षिण एशिया के सबसे बड़े मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य डेटाबेस में से एक है।

गर्भ-INI-दृष्टि डेटा रिपॉजिटरी मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य अनुसंधान को उन्नत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी। इस डेटा के माध्यम से बेहतर स्वास्थ्य रणनीतियों और समाधानों का विकास संभव होगा, जिससे विशेष रूप से ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्रों में माताओं और शिशुओं के स्वास्थ्य परिणामों में सुधार होगा। यह पहल सार्वजनिक स्वास्थ्य अनुसंधान क्षमता को मजबूत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

प्रौद्योगिकी हस्तांतरण समझौता सार्वजनिक स्वास्थ्य को कैसे लाभ पहुंचाएगा?

फेरेट रिसर्च फैसिलिटी और गर्भ-INI-दृष्टि डेटा रिपॉजिटरी के अलावा, THSTI ने संड्योता न्यूमंडिस प्रोबायोस्यूटिकल्स प्राइवेट लिमिटेड के साथ एक प्रौद्योगिकी हस्तांतरण समझौता भी किया है। इस साझेदारी के तहत, एक नए खोजे गए सिंथेटिक माइक्रोबियल समूह Lactobacillus crispatus का व्यावसायीकरण किया जाएगा। यह माइक्रोबियल स्ट्रेन गर्भ-INI समूह की महिलाओं के प्रजनन पथ से अलग किया गया है और यह महिलाओं के स्वास्थ्य में सुधार के लिए अत्यधिक प्रभावी साबित हो सकता है।

यह माइक्रोबियल समूह न्यूट्रास्यूटिकल अनुप्रयोगों में उपयोग किया जाएगा, जो मानव माइक्रोबायोम को प्रभावित करके स्वास्थ्य को बढ़ावा देने में मदद करेगा। यह समझौता आधुनिक स्वास्थ्य सेवा में माइक्रोबायोम-आधारित हस्तक्षेपों के बढ़ते महत्व को दर्शाता है। यह सहयोग इस बात का उदाहरण है कि कैसे अनुसंधान को वास्तविक स्वास्थ्य समाधान में बदला जा सकता है। साथ ही, यह भारत की बायोमेडिकल अनुसंधान में नवाचार को बढ़ावा देने और सार्वजनिक स्वास्थ्य के सुधार के प्रति प्रतिबद्धता को भी दर्शाता है।

समाचार में क्यों? मुख्य बिंदु
भारत की पहली फेरेट अनुसंधान सुविधा फरीदाबाद, हरियाणा के ट्रांसलेशनल हेल्थ साइंस एंड टेक्नोलॉजी इंस्टीट्यूट (THSTI) में उद्घाटन
मुख्य व्यक्तित्व डॉ. राजेश गोखले, जैव प्रौद्योगिकी अनुसंधान और नवाचार परिषद के महानिदेशक, जिन्होंने उद्घाटन का नेतृत्व किया
सुविधा का उद्देश्य संक्रामक रोगों पर अनुसंधान, वैक्सीन विकास और चिकित्सीय परीक्षण
सहयोगी समझौता THSTI ने संड्योता न्यूमंडिस प्रोबायोस्यूटिकल्स प्रा. लि. के साथ Lactobacillus crispatus के व्यावसायीकरण के लिए समझौता किया
गर्भ-INI-दृष्टि डेटा रिपॉजिटरी 12,000+ गर्भवती महिलाओं, नवजात शिशुओं और प्रसवोत्तर माताओं का डेटा संग्रह
डेटा का अनुप्रयोग मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य अनुसंधान के लिए, बेहतर स्वास्थ्य देखभाल परिणामों हेतु
सुविधा का स्थान ट्रांसलेशनल हेल्थ साइंस एंड टेक्नोलॉजी इंस्टीट्यूट (THSTI), फरीदाबाद, हरियाणा
भारत में नया अनुसंधान फेरेट मॉडल का उपयोग श्वसन रोग अनुसंधान और महामारी की तैयारी के लिए

रेपो दर और रिवर्स रेपो दर क्या है?

रेपो दर और रिवर्स रेपो दर भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) द्वारा मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने, अर्थव्यवस्था को स्थिर करने और वित्तीय स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए उपयोग किए जाने वाले दो महत्वपूर्ण उपकरण हैं। ये दरें वाणिज्यिक बैंकों के लिए उधारी की लागत को प्रभावित करती हैं, जो बदले में ब्याज दरों, मुद्रा आपूर्ति और समग्र आर्थिक गतिविधि को प्रभावित करती हैं। इन दरों में बदलाव के माध्यम से, RBI तरलता को नियंत्रित कर सकता है और वित्तीय प्रणाली में फंड के प्रवाह को प्रभावित कर सकता है, जिससे ये भारत की मौद्रिक नीति ढांचे के प्रमुख तत्व बन जाते हैं।

रेपो दर

परिभाषा:
रेपो दर वह दर है जिस पर केंद्रीय बैंक वाणिज्यिक बैंकों को संक्षिप्त अवधि के लिए पैसा उधार देता है।
बैंकों को इन ऋणों के बदले सरकारी सिक्योरिटीज़ की गिरवी रखनी होती है।

मैकेनिज़्म:

  • उधारी चरण: जब वाणिज्यिक बैंकों को तरलता की कमी होती है, तो वे RBI से सरकारी सिक्योरिटीज़ के बदले उधारी लेते हैं।
  • पुनर्खरीद चरण: बैंकों द्वारा उधार ली गई रकम को चुकाने के बाद वे सिक्योरिटीज़ को उच्च मूल्य पर पुनः खरीदते हैं, जो RBI द्वारा लगाए गए ब्याज को दर्शाता है।

उद्देश्य:

  • मुद्रा आपूर्ति नियंत्रण: रेपो दर को कम करने से बैंकों के लिए उधारी सस्ती हो जाती है, जिससे तरलता बढ़ती है और आर्थिक गतिविधि को बढ़ावा मिलता है।
  • मुद्रास्फीति नियंत्रण: उच्च रेपो दर उधारी को महंगा बनाती है, जिससे खर्च घटता है और मुद्रास्फीति पर नियंत्रण होता है।
  • वित्तीय स्थिरता: रेपो दर वित्तीय संकट के समय में तरलता प्रदान करने में मदद करती है, जिससे वित्तीय प्रणाली की स्थिरता बनी रहती है।

प्रभाव:

  • ब्याज दरें: रेपो दर सीधे तौर पर वाणिज्यिक बैंकों द्वारा प्रस्तावित ऋण और जमा दरों को प्रभावित करती है।
  • निवेश और खपत: कम रेपो दर उधारी को बढ़ावा देती है, जिससे निवेश और खपत को प्रोत्साहन मिलता है।
  • मुद्रा दरें: रेपो दर में बदलाव पूंजी प्रवाह को प्रभावित करता है, जो घरेलू मुद्रा के मूल्य को प्रभावित कर सकता है।

रिवर्स रेपो दर

परिभाषा:
रिवर्स रेपो दर वह ब्याज दर है जिस पर RBI वाणिज्यिक बैंकों से संक्षिप्त अवधि के लिए पैसा उधार लेता है।
यह रेपो दर का उलट है।

मैकेनिज़्म:

  • उधार चरण: वाणिज्यिक बैंक अपनी अतिरिक्त तरलता को RBI को उधार देते हैं।
  • चुकाने का चरण: RBI बैंकों को ब्याज देता है और तय की गई अवधि के बाद उधार ली गई रकम चुकता करता है।

उद्देश्य:

  • तरलता प्रबंधन: रिवर्स रेपो दर बाजार में अधिक तरलता को नियंत्रित करने में मदद करती है, क्योंकि यह बैंकों को अपनी अतिरिक्त रकम RBI के पास पार्क करने के लिए प्रोत्साहित करती है।
  • मुद्रा आपूर्ति नियंत्रण: रिवर्स रेपो दर को बढ़ाकर RBI मुद्रा की आपूर्ति को घटा सकता है, जिससे मुद्रास्फीति की दबावों को नियंत्रित किया जा सकता है।
  • वित्तीय स्थिरता: यह बैंकों को उच्च तरलता के समय अपने फंड्स को सुरक्षित रूप से पार्क करने का एक स्थान प्रदान करती है।

प्रभाव:

  • ब्याज दरें: रिवर्स रेपो दर में बदलाव से छोटी अवधि की ब्याज दरों और मुद्रा बाजार उपकरणों जैसे ट्रेजरी बिल्स पर प्रभाव पड़ता है।
  • मौद्रिक नीति प्रसारण: रिवर्स रेपो दर में बदलाव से केंद्रीय बैंक अपनी मौद्रिक नीति निर्णयों को व्यापक वित्तीय प्रणाली तक पहुंचाता है।

रेपो दर और रिवर्स रेपो दर के बीच अंतर

मानदंड रेपो दर रिवर्स रेपो दर
परिभाषा ब्याज दर जिस पर RBI वाणिज्यिक बैंकों को उधार देता है ब्याज दर जिस पर RBI वाणिज्यिक बैंकों से उधार लेता है
भूमिका RBI उधारदाता के रूप में कार्य करता है RBI उधारीकर्ता के रूप में कार्य करता है
संलिप्त पक्ष RBI (उधारदाता) और वाणिज्यिक बैंक (उधारीकर्ता) RBI (उधारीकर्ता) और वाणिज्यिक बैंक (उधारदाता)
उद्देश्य मुद्रा आपूर्ति नियंत्रित करना, मुद्रास्फीति प्रबंधित करना, उधारी की लागत पर प्रभाव डालना अतिरिक्त तरलता का प्रबंधन करना, बैंकों से अधिशेष फंड अवशोषित करना
आर्थ‍िक प्रभाव रेपो दर घटाने से उधारी को बढ़ावा मिलता है, बढ़ाने से उधारी कम होती है उच्च रिवर्स रेपो दर तरलता घटाती है, उधारी दरें बढ़ाती हैं
ब्याज अर्जन RBI बैंकों को दी गई उधारी पर ब्याज प्राप्त करता है RBI बैंकों से ली गई उधारी पर ब्याज चुकता करता है
वित्तीय बाजारों में भूमिका वित्तीय तनाव के दौरान तरलता प्रदान करता है बाजार से अधिशेष तरलता अवशोषित करता है
मौद्रिक नीति में भूमिका आर्थिक गतिविधि को उत्तेजित करने के लिए विस्तारात्मक उपकरण अतिरिक्त तरलता अवशोषित करने और मुद्रास्फीति नियंत्रण के लिए संकुचनात्मक उपकरण

GMR एयरपोर्ट्स संयुक्त राष्ट्र ग्लोबल कॉम्पैक्ट पहल में शामिल हुआ

GMR एयरपोर्ट्स लिमिटेड (GAL) ने संयुक्त राष्ट्र ग्लोबल कॉम्पैक्ट (UNGC) में शामिल होकर अपने सतत विकास और जिम्मेदार व्यापार प्रथाओं के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को मजबूत किया है। इस साझेदारी के माध्यम से GAL ने UNGC के दस सिद्धांतों जैसे मानव अधिकारों, श्रम मानकों, पर्यावरण संरक्षण और भ्रष्टाचार विरोधी नियमों के साथ अपने संचालन को संरेखित करने का संकल्प लिया है। इसके साथ ही GAL यह सुनिश्चित करना चाहता है कि वह वैश्विक सततता एजेंडे में योगदान दे सके।

GMR एयरपोर्ट्स की सतत विकास के प्रति प्रतिबद्धता का क्या अर्थ है?

UNGC में शामिल होकर, GMR एयरपोर्ट्स ने संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को और मजबूत किया है। कंपनी ने UN के दस सिद्धांतों को अपनी व्यावसायिक प्रक्रियाओं में शामिल करने का वादा किया है, ताकि वह वैश्विक सततता मानकों को पूरा कर सके। नोएडा इंटरनेशनल एयरपोर्ट के CEO, क्रिस्टोफ श्नेलमैन ने इस कदम को एक विश्व स्तरीय और सततता-प्रेरित एयरपोर्ट बनाने के उनके दीर्घकालिक मिशन से जोड़ा।

GMR एयरपोर्ट्स पर्यावरणीय सततता को कैसे सुनिश्चित करता है?

पर्यावरणीय सततता GAL के संचालन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। सभी GMR-प्रबंधित एयरपोर्ट्स को प्रतिष्ठित संगठनों जैसे US ग्रीन बिल्डिंग काउंसिल (USGBC) और इंडियन ग्रीन बिल्डिंग काउंसिल (IGBC) से ग्रीन बिल्डिंग प्रमाणपत्र प्राप्त हुए हैं। इसके अलावा, कंपनी ऊर्जा-कुशल प्रणालियों, अपशिष्ट कम करने के कार्यक्रमों और पर्यावरण-मित्र डिज़ाइन में निवेश कर रही है।

GMR एयरपोर्ट्स वैश्विक विस्तार कैसे कर रहा है?

GMR एयरपोर्ट्स FY24 में 121 मिलियन से अधिक यात्रियों की सेवा कर रहा है। इसके अलावा, कंपनी दिल्ली, हैदराबाद, गोवा और मेदन (इंडोनेशिया) में प्रमुख एयरपोर्ट्स का संचालन करती है और आगे विस्तार करने की योजना बना रही है। GAL भोगपुरम (विशाखापत्तनम) और क्रीट (ग्रीस) में नए एयरपोर्ट्स का विकास कर रहा है और मकटन सेबू इंटरनेशनल एयरपोर्ट (फिलीपींस) को तकनीकी सेवाएं प्रदान कर रहा है।

यह कदम GAL की भविष्य-निरंतर दृष्टिकोण को दर्शाता है, जो वैश्विक सततता मानकों के साथ अपने संचालन को संरेखित करके पर्यावरणीय और सामाजिक रूप से जिम्मेदार विमानन क्षेत्र का समर्थन करता है।

समाचार में क्यों है मुख्य बिंदु
GMR एयरपोर्ट्स लिमिटेड (GAL) ने यूनाइटेड नेशंस ग्लोबल कॉम्पैक्ट (UNGC) में शामिल होने की घोषणा की GAL ने मानवाधिकार, श्रम, पर्यावरण और भ्रष्टाचार विरोधी मामलों पर UNGC के दस सिद्धांतों को स्वीकार किया।
सतत विकास की प्रतिबद्धता GAL ने व्यवसाय संचालन में UN के दस सिद्धांतों को एकीकृत करने का वचन दिया।
नोएडा इंटरनेशनल एयरपोर्ट के CEO क्रिस्टोफ स्नेलमैन ने सतत विकास-प्रेरित लक्ष्यों के साथ तालमेल बनाने पर जोर दिया।
ग्रीन बिल्डिंग प्रमाणन GMR एयरपोर्ट्स को US ग्रीन बिल्डिंग काउंसिल (USGBC) और भारतीय ग्रीन बिल्डिंग काउंसिल (IGBC) से प्रमाणित किया गया।
यात्री वृद्धि GAL ने FY24 में 121 मिलियन से अधिक यात्रियों की सेवा की।
अंतरराष्ट्रीय संचालन GAL दिल्ली, हैदराबाद, गोवा, मेडन (इंडोनेशिया) में एयरपोर्ट संचालित करता है; विस्तार की योजना है भोगापुरम (विशाखापत्तनम) और क्रीट (ग्रीस) में।
तकनीकी सेवाएं GAL मक्तान सेबू इंटरनेशनल एयरपोर्ट (फिलीपीन्स) को सेवाएं प्रदान करता है।

साउथ इंडियन बैंक ने उद्यमियों के लिए स्टार्टअप चालू खाते शुरू किए

दक्षिण भारतीय बैंक (SIB) ने भारत में तेजी से बढ़ते स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र का समर्थन करने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है। बैंक ने दो विशिष्ट स्टार्टअप करंट अकाउंट उत्पाद लॉन्च किए हैं, जिनमें SIB बिजनेस स्टार्टअप करंट अकाउंट और SIB कॉर्पोरेट स्टार्टअप करंट अकाउंट शामिल हैं। ये अकाउंट्स उद्यमियों की विशेष आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए डिज़ाइन किए गए हैं और स्टार्टअप्स के लिए बैंकिंग को सरल बनाने में मदद करते हैं, ताकि वे अपने व्यापार को बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित कर सकें।

ये अकाउंट्स स्टार्टअप्स को महत्वपूर्ण सेवाएं प्रदान करते हैं, जिससे वे प्रशासनिक समस्याओं के बजाय व्यापार में वृद्धि पर ध्यान केंद्रित कर सकते हैं। इन खातों की कुछ प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:

  1. तीन वर्षों तक शून्य न्यूनतम बैलेंस: ये अकाउंट्स शुरुआती वित्तीय संकटों के समय स्टार्टअप्स के लिए बैलेंस बनाए रखने की चिंता के बिना काम करने की सुविधा प्रदान करते हैं।
  2. असीमित नि:शुल्क RTGS/NEFT लेन-देन: ये खाते स्टार्टअप्स को डिजिटल चैनलों के माध्यम से अनलिमिटेड फ्री RTGS और NEFT ट्रांजेक्शन की सुविधा देते हैं।
  3. प्रीमियम डेबिट कार्ड: इन खातों के धारकों को प्रीमियम डेबिट कार्ड मिलता है, जिसमें एयरपोर्ट लाउंज जैसी विशेष सुविधाएँ शामिल हैं।

इस पहल का उद्देश्य भारत के स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र का समर्थन करना और SIB को उन व्यवसायों के लिए एक प्रमुख बैंक के रूप में स्थापित करना है जो कुशल और लागत-कुशल बैंकिंग समाधान की तलाश में हैं।

UNHRC से अलग हुआ अमेरिका

राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक कार्यकारी आदेश पर हस्ताक्षर किए, जिसका प्रभाव संयुक्त राष्ट्र (यू.एन.) के विभिन्न निकायों में अमेरिकी भागीदारी पर पड़ा, जिसमें यू.एन. मानवाधिकार परिषद और यूएनआरडब्ल्यूए (पैलेस्टीनियों को मानवीय सहायता प्रदान करने वाली एजेंसी) शामिल हैं। इस कदम में यू.एन. और इसके संबंधित संगठनों के लिए अमेरिकी वित्तीय योगदान की समीक्षा करने की बात भी की गई। ट्रंप का इन अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं से पीछे हटने और अमेरिकी वित्तीय योगदान की समीक्षा करने का निर्णय उनके प्रशासन द्वारा संयुक्त राष्ट्र की प्रभावशीलता पर निरंतर आलोचना का हिस्सा था, विशेष रूप से वैश्विक संघर्षों के समाधान में।

मुख्य बिंदु

संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों में अमेरिकी वित्तपोषण और भागीदारी पर कार्यकारी आदेश
ट्रंप ने यू.एन. एजेंसियों में अमेरिकी वित्तपोषण और भागीदारी की समीक्षा करने के लिए एक आदेश पर हस्ताक्षर किए। इस समीक्षा में यू.एन. मानवाधिकार परिषद, यूनेस्को और यूएनआरडब्ल्यूए जैसी संस्थाएं शामिल हैं।

यू.एन. मानवाधिकार परिषद से अमेरिकी निकासी
अमेरिका ने ट्रंप के पहले कार्यकाल के दौरान आधिकारिक रूप से मानवाधिकार परिषद से बाहर निकलने का निर्णय लिया। ट्रंप ने परिषद पर इजराइल के खिलाफ पक्षपाती होने और वैश्विक मानवाधिकार उल्लंघनों को संबोधित करने में असफल होने का आरोप लगाया। अब अमेरिका सदस्य नहीं है, लेकिन पर्यवेक्षक के रूप में बना हुआ है।

यूएनआरडब्ल्यूए को वित्तपोषण बंद करना
अमेरिका ने यूएनआरडब्ल्यूए को वित्तपोषण बंद कर दिया, जो गाजा, पश्चिमी तट और पड़ोसी देशों में रहने वाले फिलिस्तीनी शरणार्थियों को सहायता प्रदान करता है। इजराइल ने आरोप लगाया था कि यूएनआरडब्ल्यूए में हामस के समर्थक शामिल हैं, जिसके परिणामस्वरूप वित्तपोषण में रुकावट आई। बाइडन प्रशासन ने पहले इस वित्तपोषण को फिर से शुरू किया था, लेकिन ट्रंप के आदेश से इसे फिर से बंद कर दिया गया।

यूनेस्को पर आलोचना
इस कार्यकारी आदेश में यूनेस्को में अमेरिकी भागीदारी की समीक्षा करने का निर्देश भी दिया गया है। “एंटी-अमेरिकन पक्षपाती” और वित्तपोषण में असमानता के आरोपों के कारण यह समीक्षा की जा रही है।

वैश्विक प्रतिक्रियाएं
यू.एन. के प्रवक्ता स्टेफान दुजारिक ने वैश्विक सुरक्षा के लिए अमेरिकी समर्थन के महत्व पर जोर दिया। अंतर्राष्ट्रीय संकट समूह के रिचर्ड गोवान ने इस निर्णय की आलोचना करते हुए कहा कि यह अमेरिकी निकासी संयुक्त राष्ट्र की विश्वसनीयता को कमजोर कर सकती है। अधिकारों के संगठनों जैसे एमनेस्टी इंटरनेशनल ने इस निर्णय की आलोचना करते हुए चेतावनी दी कि यह वैश्विक मानवाधिकार कार्यों को कमजोर कर सकता है।

अमेरिकी विदेश नीति पर प्रभाव
ट्रंप का यह निर्णय अमेरिकी भूमिका को वैश्विक शांति बनाए रखने, मानवाधिकारों और संघर्षों के समाधान में कम कर सकता है। अमेरिका संयुक्त राष्ट्र का सबसे बड़ा वित्तीय योगदानकर्ता है, और वित्तपोषण में परिवर्तन वैश्विक मानवीय प्रयासों में बदलाव ला सकता है।

यू.एन. की दक्षता पर अमेरिकी आलोचना
ट्रंप ने तर्क दिया कि संयुक्त राष्ट्र संघर्षों को हल करने और शांति स्थापित करने में अपनी पूरी क्षमता के साथ काम नहीं कर रहा है। उन्होंने विशेष रूप से यू.एन. सुरक्षा परिषद की आलोचना की, जो यूक्रेन और गाजा में संघर्षों को हल करने में असफल रही।

Summary/Static Details
Why in the news? ट्रंप ने यू.एन. मानवाधिकार परिषद से अमेरिका को बाहर निकाला, UNRWA के लिए वित्तपोषण को रोका।
Executive Order on U.N. Funding यू.एन. एजेंसियों में अमेरिकी वित्तपोषण और भागीदारी की समीक्षा।
Withdrawal from Human Rights Council अमेरिका अब वोटिंग सदस्य नहीं है, लेकिन पर्यवेक्षक के रूप में बना हुआ है।
Ceasing Funding to UNRWA यू.एन.आरडब्ल्यूए को अमेरिकी सहायता निलंबित।
Review of UNESCO Participation एंटी-अमेरिकन पक्षपाती के आरोपों के कारण यूनेस्को में अमेरिकी भागीदारी की समीक्षा।
Global Reactions यू.एन. अधिकारियों और अधिकार समूहों से मिश्रित प्रतिक्रियाएं, अमेरिकी प्रभाव कमजोर होने का डर।
Criticism of U.N. Efficiency ट्रंप ने गाजा और यूक्रेन जैसे वैश्विक संघर्षों को हल करने में यू.एन. की विफलता की आलोचना की।
U.S. Financial Contribution अमेरिका संयुक्त राष्ट्र के बजट का 22% प्रदान करता है, सबसे बड़ा योगदानकर्ता।

IOB कार्बन अकाउंटिंग के लिए वैश्विक साझेदारी में शामिल हुआ

भारतीय ओवरसीज बैंक (IOB) ने स्थिरता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए पार्टनरशिप फॉर कार्बन एकाउंटिंग फाइनेंशियल्स (PCAF) के हस्ताक्षरकर्ता के रूप में शामिल होने का निर्णय लिया है। यह कदम बैंक की उस प्रतिबद्धता को दर्शाता है, जिसमें वह अपनी वित्तपोषित गतिविधियों से संबंधित ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन को मापने और खुलासा करने के लिए प्रतिबद्ध है। इस पहल के साथ, IOB न केवल वित्तीय क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय सर्वोत्तम प्रथाओं के साथ अपने को संरेखित कर रहा है, बल्कि भारत के नेट-जीरो भविष्य की ओर यात्रा में अपनी भूमिका को भी मजबूत कर रहा है।

पार्टनरशिप फॉर कार्बन एकाउंटिंग फाइनेंशियल्स (PCAF) क्या है?
PCAF एक वैश्विक पहल है, जो वित्तीय संस्थानों को उनकी वित्तपोषण गतिविधियों से संबंधित कार्बन उत्सर्जन को मापने और खुलासा करने में मदद करती है। इस साझेदारी का उद्देश्य बैंकों और अन्य वित्तीय संस्थानों के लिए कार्बन पदचिह्नों को ट्रैक करने और रिपोर्ट करने के लिए एक मानकीकृत तरीका तैयार करना है। PCAF में शामिल होकर, IOB एक globally मान्यता प्राप्त GHG लेखांकन पद्धति को अपना रहा है, जो पारदर्शिता सुनिश्चित करता है और जलवायु परिवर्तन से लड़ने में योगदान करता है।

IOB की प्रतिबद्धता भारत के बैंकिंग क्षेत्र के लिए महत्वपूर्ण क्यों है?
IOB का PCAF में शामिल होने का निर्णय भारतीय बैंकिंग क्षेत्र में शुरुआती अपनाने वालों में इसे शामिल करता है, जिससे अन्य संस्थानों के लिए एक उदाहरण प्रस्तुत होता है। यह कदम बैंक की जलवायु जोखिमों को संबोधित करने की प्रतिबद्धता और भारत की हरित अर्थव्यवस्था की ओर संक्रमण में योगदान को प्रदर्शित करता है। जैसे-जैसे वित्तीय उद्योग स्थिरता पर अधिक ध्यान दे रहा है, IOB की इस वैश्विक पहल में भागीदारी यह साबित करती है कि वह केवल मुनाफे से परे जिम्मेदार बैंकिंग प्रथाओं को अपनाने के लिए प्रतिबद्ध है।

नेतृत्व का इस कदम पर क्या कहना है?
IOB के MD और CEO अजय कुमार श्रीवास्तव ने बैंक की स्थिरता को अपनी कार्यप्रणाली में एकीकृत करने की मजबूत प्रतिबद्धता व्यक्त की। उन्होंने जोर देकर कहा कि यह पहल केवल उत्सर्जन को घटाने के बारे में नहीं है, बल्कि बैंक की वित्तीय गतिविधियों को भारत के व्यापक पर्यावरणीय लक्ष्यों के साथ संरेखित करने के बारे में है। श्रीवास्तव के अनुसार, यह कदम IOB की भूमिका को मजबूत करेगा, जिससे एक स्थिर भविष्य की दिशा में मदद मिलेगी और देश के हरित परिवर्तन का समर्थन होगा।

यह कदम RBI के हालिया दिशा-निर्देशों से कैसे संबंधित है?
यह कदम भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) द्वारा जलवायु जोखिमों के खुलासे के लिए नए दिशा-निर्देश जारी करने के बाद आया है। RBI के दिशा-निर्देशों में वित्तीय संस्थानों से जलवायु परिवर्तन से संबंधित अपनी शासन व्यवस्था, जोखिम प्रबंधन और रणनीतियों की जानकारी प्रदान करने की आवश्यकता है। PCAF में शामिल होकर, IOB जलवायु-संबंधी वित्तीय जोखिमों को संबोधित करने और नवीनतम नियामक अपेक्षाओं के अनुसार अपनी कार्यप्रणाली सुनिश्चित करने की प्रतिबद्धता दिखा रहा है।

भारतीय बैंकों के लिए बड़ा परिपेक्ष्य क्या है?
IOB की प्रतिबद्धता भारत के बैंकिंग क्षेत्र में बढ़ती हुई प्रवृत्ति का हिस्सा है। सितंबर 2024 में, यूनियन बैंक ऑफ इंडिया ने PCAF के लिए साइन अप करने वाला पहला प्रमुख भारतीय बैंक बन गया। यह भारतीय बैंकिंग प्रणाली में जलवायु जोखिम प्रबंधन के बढ़ते महत्व को दर्शाता है। वैश्विक मानकों के साथ संरेखित होकर, IOB और अन्य बैंक भारत के व्यापक पर्यावरणीय, सामाजिक और शासन (ESG) उद्देश्यों में योगदान दे रहे हैं। यह सहयोग देश को इसके जलवायु लक्ष्य प्राप्त करने में मदद करता है, साथ ही जिम्मेदार निवेश प्रथाओं को बढ़ावा देता है।

 

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