रौलाने महोत्सव: किन्नौर की शीतकालीन परियों को एक पवित्र श्रद्धांजलि

हिमाचल प्रदेश के किन्नौर की हिमचूमी घाटियों में, जहाँ हर पर्वत शिखर प्राचीन कथाओं की गूंज जैसा लगता है, वहाँ सर्दियों का एक जादुई उत्सव मनाया जाता है—रौलाने उत्सव। लोककथाओं, आध्यात्मिकता और सामुदायिक एकजुटता पर आधारित यह परंपरा सौनी परियों को विदाई देने का प्रतीकात्मक पर्व है—ऐसी रहस्यमयी देवियों को, जिनके बारे में माना जाता है कि वे कठोर सर्दियों में गाँववालों की रक्षा करती हैं। मुखौटा-नृत्यों, अनुष्ठानों और नागिन नारायण मंदिर में श्रद्धाभाव के साथ यह उत्सव मनाया जाता है, जिसे हिमाचल की सबसे प्राचीन और संरक्षित शीतकालीन परंपराओं में गिना जाता है।

जादुई संरक्षक: सौनी परियाँ कौन हैं?

स्थानीय कथा-परंपराओं में सौनी परियों को उज्ज्वल, कोमल और दिव्य रूपों में वर्णित किया गया है, जो सर्दियों के आगमन पर स्वर्गीय घास के मैदानों से उतरकर आती हैं। अदृश्य होते हुए भी उनका प्रभाव रोज़मर्रा की ज़िंदगी में महसूस किया जाता है—ठंडी हवा में अचानक गर्माहट आना, बर्फ़ीली रातों में घरों के आसपास सुकून भरी शांति, आदि।

बच्चों को कहा जाता है कि सौनी परियाँ रात में सोते हुए गाँववालों पर अदृश्य कंबल ओढ़ा देती हैं—लोककथा और मातृ-पितृ स्नेह का सुंदर मेल। वसंत के करीब आते ही ये परियाँ अपने रहस्यमयी लोकों में लौट जाती हैं और उसी अवसर पर रौलाने उत्सव मनाया जाता है।

रौला और रौलाने: केवल पात्र नहीं, पवित्र प्रतीक

उत्सव के केंद्र में दो पात्र होते हैं—रौला और रौलाने, जिन्हें प्रतीकात्मक दूल्हा–दुल्हन माना जाता है। लेकिन दोनों भूमिकाएँ पुरुष निभाते हैं, जिन्हें समुदाय की स्वीकृति और पुरखों की रीति से चुना जाता है। यह भूमिकाएँ अत्यंत पवित्र और जिम्मेदारीपूर्ण मानी जाती हैं।

रौला और रौलाने पारंपरिक किन्नौरी ऊनी वस्त्र, भारी आभूषण और विशिष्ट मुखौटे पहनते हैं। इन वेशभूषाओं का उद्देश्य केवल सजावट नहीं, बल्कि आध्यात्मिक रूपांतरण है—प्रतिभागियों को अपनी दैनिक पहचान से ऊपर उठकर दिव्य ऊर्जा का माध्यम बनने में सहायक।

गाँव की गलियों में उनका जुलूस हँसी, गीतों और आशीर्वादों से भरा होता है। माना जाता है कि रौला जितना जोर से हँसेगा, अगला फ़सल वर्ष उतना ही समृद्ध होगा—हास्य और आशा का अनूठा संयोजन।

नागिन नारायण मंदिर में पवित्र अनुष्ठान

उत्सव का हृदय प्राचीन नागिन नारायण मंदिर है, जहाँ धार्मिक अनुष्ठान अपनी चरम सीमा पर पहुँचते हैं। जैसे ही रौला और रौलाने मंदिर में प्रवेश करते हैं, वातावरण उत्सव से ध्यान में परिवर्तित हो जाता है।

मंदिर के भीतर वे धीमा, तालबद्ध नृत्य करते हैं—ऐसा माना जाता है कि यह नृत्य मानव और आध्यात्मिक लोकों को सामंजस्य में लाता है। यह नृत्य सिखाया नहीं जाता, बल्कि पीढ़ियों की स्मृतियों, आस्था और ‘सौनी’ की उपस्थिति को अनुभव करके किया जाता है।

गाँव के लोग मंत्रमुग्ध होकर कभी गुनगुनाते, कभी ताली बजाते, तो कभी मौन खड़े होकर इन अनुष्ठानों का साक्षी बनते हैं—जहाँ लोक-नाट्य, भक्ति और पूर्वजों की स्मृतियाँ एक हो जाती हैं।

सांस्कृतिक महत्व और प्रतीकात्मकता

रौलाने उत्सव केवल उत्सव नहीं, बल्कि इन भावों का जीवंत रूप है—

  • ऋतु परिवर्तन: सर्दियों की परियों को विदाई और वसंत का स्वागत

  • सामुदायिक पहचान: पीढ़ियों और जनजातियों को जोड़ने वाली परंपरा

  • आध्यात्मिक संवाद: अदृश्य संरक्षकों का सम्मान और उनसे जुड़ाव

  • सांस्कृतिक संरक्षण: पर्यटन से अछूता, केवल मौखिक परंपरा से जीवित उत्सव

आधुनिकता के बढ़ते प्रभाव के बीच रौलाने उत्सव किन्नौर के लोगों के लिए अपने रहस्यमय अतीत से जुड़ने का एक अटूट पुल बना हुआ है—फुसफुसाती कहानियों, पवित्र हँसी और सामूहिक विश्वास में सदियों से संरक्षित।

महत्वपूर्ण स्थैतिक तथ्य 

  • उत्सव का नाम: रौलाने उत्सव

  • स्थान: किन्नौर ज़िला, हिमाचल प्रदेश

  • मुख्य देवताएँ: सौनी परियाँ, नागिन नारायण

  • मुख्य अनुष्ठान स्थल: नागिन नारायण मंदिर

  • मुख्य पात्र: रौला और रौलाने (प्रतीकात्मक दूल्हा–दुल्हन; दोनों पात्र पुरुष निभाते हैं)

  • सांस्कृतिक समूह: किन्नौर की जनजातीय समुदाय

  • उत्सव का महत्व: शीतकालीन परियों को विदाई; ऋतु, आध्यात्मिकता और संस्कृति का उत्सव

  • विशिष्ट तत्व: मुखौटा-नृत्य, ऊनी पारंपरिक वेश, लोककथाएँ, अनुष्ठान-आधारित प्रदर्शन

सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड को सारंडा वन को वन्यजीव अभयारण्य घोषित करने का आदेश दिया

भारत के सबसे समृद्ध पारिस्थितिक क्षेत्रों में से एक के संरक्षण के उद्देश्य से सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड सरकार को सरंडा वन को वन्यजीव अभयारण्य घोषित करने का निर्देश दिया है। यह फैसला दुर्लभ जैव-विविधता, पारिस्थितिक महत्व और जनजातीय विरासत की रक्षा की आवश्यकता को रेखांकित करता है—विशेषकर बढ़ते विकासात्मक दबावों के बीच।

सरंडा वन: पूर्वी भारत का पारिस्थितिक रत्न

एशिया का सबसे बड़ा साल वन

झारखंड के पश्चिमी सिंहभूम ज़िले में स्थित सरंडा वन लगभग 820–900 वर्ग किलोमीटर तक फैला हुआ है। यह एशिया का सबसे बड़ा प्राकृतिक साल (Shorea robusta) वन माना जाता है और इसकी पहाड़ी-घाटी वाली भू-रचना के कारण इसे “सात सौ पहाड़ियों की भूमि” भी कहा जाता है।

वनस्पति, जीव-जंतु और संस्कृति में अत्यंत समृद्ध

छोटानागपुर जैव-भू-क्षेत्र में स्थित यह वन ओडिशा और छत्तीसगढ़ के वन क्षेत्रों से जुड़ा एक विशाल हरित पट्टा बनाता है। यह कई दुर्लभ और संकटग्रस्त प्रजातियों का महत्वपूर्ण आवास है, जैसे—

  • साल फ़ॉरेस्ट कछुआ (स्थानिक और संकटग्रस्त)

  • चार-सींग वाला हिरण

  • एशियाई पाम सिवेट

  • जंगली हाथी

साथ ही यह क्षेत्र हो, मुंडा और उराँव जैसे आदिवासी समुदायों का सांस्कृतिक व आजीविका केंद्र है, जो भोजन, ईंधन, औषधि और पारंपरिक आस्था के लिए इस वन पर निर्भर हैं।

अभयारण्य का दर्जा क्यों महत्वपूर्ण है

जैव-विविधता को कानूनी सुरक्षा

वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के तहत अभयारण्य बनने से औद्योगिक गतिविधियों, अवैध शिकार और आवास विनाश पर कड़े नियम लागू होंगे। यह विशेष रूप से खनन और अतिक्रमण से बढ़ते पर्यावरणीय खतरों के बीच अत्यंत आवश्यक है।

दुर्लभ प्रजातियों का संरक्षण

अभयारण्य का दर्जा हाथियों जैसे प्रवासी वन्यजीवों के गलियारों के वैज्ञानिक प्रबंधन को बेहतर करेगा। साथ ही साल फ़ॉरेस्ट कछुए जैसी कम प्रसिद्ध लेकिन अत्यंत महत्वपूर्ण प्रजातियों के संरक्षण को भी बढ़ावा मिलेगा।

जनजातीय अधिकार और सांस्कृतिक संरक्षण

अभयारण्य बनने से समुदाय-आधारित संरक्षण मॉडल को प्रोत्साहन मिलेगा। आदिवासी समुदाय सदियों से इन वनों के संरक्षक रहे हैं, इसलिए उनकी भागीदारी जैव-विविधता और सांस्कृतिक विरासत दोनों को संरक्षित करेगी।

खनन बनाम पर्यावरण: एक संवेदनशील संतुलन

सरंडा वन न केवल जैव-विविधता का केंद्र है, बल्कि यहाँ भारत के लगभग 26% लौह अयस्क भंडार भी मौजूद हैं। इसी कारण वर्षों से बड़े पैमाने पर खनन गतिविधियाँ होती रही हैं, जिन पर वनों की कटाई और पर्यावरणीय क्षरण के लिए सवाल उठते रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट का यह निर्देश संरक्षण को खनन के ऊपर प्राथमिकता देने का संकेत देता है और भविष्य की खनन स्वीकृतियों को प्रभावित कर सकता है।

महत्वपूर्ण स्थैतिक तथ्य 

  • स्थान: पश्चिमी सिंहभूम जिला, झारखंड

  • क्षेत्रफल: लगभग 820–900 वर्ग किलोमीटर

  • विशेष पहचान: एशिया का सबसे बड़ा साल वन

  • जैव-भू-क्षेत्र: छोटानागपुर पठार

  • संकटग्रस्त प्रजातियाँ: साल फ़ॉरेस्ट कछुआ, चार-सींग वाला हिरण, एशियाई पाम सिवेट, जंगली हाथी

  • जनजातीय समुदाय: हो, मुंडा, उराँव और संबंधित अन्य आदिवासी समूह

  • खनिज भंडार: भारत के 26% लौह-अयस्क भंडार

ओडिशा के दो समुद्र तटों को मिली अंतरराष्ट्रीय ब्लू फ्लैग प्रमाणन 2025-26

ओडिशा के सुनापुर और पुरी बीच को 2025-26 के लिए फिर से प्रतिष्ठित ‘ब्लू फ्लैग’ सर्टिफिकेशन मिला है। सुनापुर बीच को लगातार तीसरी बार यह सम्मान मिला है, जबकि पुरी का गोल्डन बीच सातवीं बार इस सूची में शामिल हुआ है। डेनमार्क की संस्था ‘फाउंडेशन फॉर एनवायर्नमेंटल एजुकेशन’ (FEE) यह सर्टिफिकेशन देती है। यह बताता है कि बीच साफ-सुथरे हैं, पर्यावरण के हिसाब से टिकाऊ हैं और पर्यटकों के लिए सुरक्षित हैं। पूरे देश में 13 बीचों को यह सर्टिफिकेशन मिला है, जिनमें से 12 को पूरी तरह से और एक (पुडुचेरी का ईडन बीच) को शर्त के साथ यह दर्जा मिला है। ओडिशा के दो बीचों को यह पूरी तरह से मिला है।

ब्लू फ्लैग प्रमाणन क्या है?

ब्लू फ्लैग डेनमार्क स्थित फ़ाउंडेशन फ़ॉर एनवायरनमेंटल एजुकेशन (FEE) द्वारा दिया जाने वाला एक वैश्विक ईको-लेबल है। यह समुद्र तटों, मरीना और सतत नौकायन पर्यटन स्थलों को दिया जाता है जो 33 कठोर मानकों का पालन करते हैं, जिनमें शामिल हैं—

  • जल गुणवत्ता

  • पर्यावरण प्रबंधन

  • सुरक्षा मानक

  • ईको-शिक्षा और जागरूकता

केवल वे तटीय क्षेत्र यह प्रमाणन प्राप्त करते हैं जो लगातार उच्च स्तर की स्वच्छता और सुरक्षा बनाए रखते हैं।

ओडिशा की बीच सफलता कहानी

सुनापुर बीच (गंजाम जिला)

  • लगातार तीसरे वर्ष प्रमाणित

  • स्वच्छ रेत, नदी-समुद्र संगम और समुदाय-आधारित संरक्षण प्रयासों के लिए प्रसिद्ध

  • नियमित कचरा ऑडिट, जल गुणवत्ता परीक्षण और बीच सफाई पर आधारित पर्यावरण-संवेदी डिज़ाइन

पुरी गोल्डन बीच

  • लगातार सातवीं बार ब्लू फ्लैग मान्यता

  • भारत के प्रमुख तीर्थ और पर्यटन स्थलों में से एक

  • समर्पित स्नान क्षेत्र, स्मार्ट कचरा निस्तारण प्रणाली और उच्च सुरक्षा मानक उपलब्ध

भारत की राष्ट्रीय स्थिति (2025–26)

  • भारत के 13 समुद्र तट ब्लू फ्लैग सूची में शामिल

  • इनमें से 12 को पूर्ण प्रमाणन मिला, जिनमें ओडिशा के सुनापुर और पुरी भी शामिल

  • सतत तटीय पर्यटन और ईको-सर्टिफिकेशन की दिशा में भारत के प्रयासों को मजबूती

सस्टेनेबल टूरिज़्म और स्थानीय भागीदारी

अधिकारियों ने सफलता का श्रेय स्थानीय समुदायों की भागीदारी, कचरा प्रबंधन प्रणाली के कठोर पालन और ग्रीन टूरिज़्म अवसंरचना में निवेश को दिया। सुनापुर में स्थानीय प्रशासन और ग्रामीणों के संरक्षण प्रयास विशेष रूप से उल्लेखनीय रहे।

दोनों समुद्र तटों पर उपलब्ध सुविधाएँ—

  • प्रशिक्षित लाइफगार्ड और पैरामेडिक्स

  • व्हीलचेयर-अनुकूल मार्ग

  • ज़ीरो लिक्विड डिस्चार्ज कचरा प्रबंधन प्रणाली

  • CCTV निगरानी और सुरक्षा व्यवस्था

  • पर्यावरण शिक्षा केंद्र

ये सुविधाएँ पर्यटकों को स्वच्छ, सुरक्षित और जागरूक अनुभव प्रदान करती हैं।

स्थैतिक तथ्य 

  • सुनापुर बीच: लगातार तीसरे वर्ष ब्लू फ्लैग प्रमाणित

  • पुरी गोल्डन बीच: लगातार सातवें वर्ष ब्लू फ्लैग प्रमाणित

  • ब्लू फ्लैग कार्यक्रम: फ़ाउंडेशन फ़ॉर एनवायरनमेंटल एजुकेशन (FEE) द्वारा संचालित

  • कवरेज मानदंड: जल गुणवत्ता, कचरा, सुरक्षा और जागरूकता सहित 33 बिंदु

  • भारत में ब्लू फ्लैग बीच (2025–26): 13 मान्यता प्राप्त, 12 पूर्ण रूप से प्रमाणित

  • सुनापुर स्थान: बहुड़ा नदी और बंगाल की खाड़ी का संगम क्षेत्र

जानें समुद्र के 6 किमी नीचे क्यों प्रयोगशाला बना रहा भारत

गहरे समुद्री विज्ञान को नई दिशा देने के साहसिक कदम के तहत भारत ने भारतीय महासागर की गहराई में 6,000 मीटर पर विश्व की सबसे गहरी पानी के नीचे अनुसंधान प्रयोगशाला स्थापित करने की योजना की घोषणा की है। यह अत्याधुनिक सुविधा भारत के विज़न 2047 का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होगी, जो स्वतंत्रता के 100 वर्षों के उपलक्ष्य में एक वैश्विक वैज्ञानिक उपलब्धि दर्ज करेगी।

परियोजना अवलोकन: दूरदृष्टि वाला महासागरीय अन्वेषण

गहरे समुद्र के इस आवास को अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) के महासागरीय संस्करण के रूप में विकसित करने की कल्पना की गई है। मिशन की शुरुआत 500 मीटर गहराई पर एक डेमोंस्ट्रेटर मॉड्यूल से होगी, जिसे इस तरह डिज़ाइन किया गया है कि तीन वैज्ञानिक 24 घंटे से अधिक समय तक पानी के नीचे रह सकें। इसका उद्देश्य जीवन-समर्थन प्रणालियों, दबाव सहनशीलता और तार्किक समर्थन तंत्रों का परीक्षण करना है।

जब यह डेमोंस्ट्रेटर सफल सिद्ध हो जाएगा, तब यह 6,000 मीटर गहराई पर पूर्ण-स्तरीय आवास का मार्ग प्रशस्त करेगा—जो समुद्री इतिहास में अब तक का सबसे गहरा मानव-संचालित अनुसंधान ढांचा होगा।

विशिष्ट डिज़ाइन विशेषताएँ और तकनीकी चमत्कार

गहरे समुद्री अनुसंधान प्रयोगशाला में कई अत्याधुनिक सुविधाएँ शामिल होंगी, जैसे—

  • दबाव-रोधी टाइटेनियम और कंपोज़िट संरचनाएँ, जो 6,000 मीटर की गहराई पर मौजूद 600 गुना वायुमंडलीय दबाव को सहन कर सकेंगी।

  • 360-डिग्री पारदर्शी अवलोकन पैनल, जिनके माध्यम से समुद्री जीवन की वास्तविक समय में निगरानी की जा सकेगी।

  • ऑक्सीजन नियंत्रण, तापमान प्रबंधन और स्वतंत्र प्रयोगशाला कक्ष, जो लंबे समय तक वैज्ञानिक कार्य में सहायक होंगे।

  • अनुसंधान पनडुब्बियों और आपूर्ति पोतों के लिए डॉकिंग बे, जिससे नियमित मिशनों और सामग्रियों की आपूर्ति संभव होगी।

  • पानी के भीतर संचार प्रणाली, जिसमें ध्वनिक संकेतों और फाइबर-ऑप्टिक लिंक का उपयोग किया जाएगा।

इन नवाचारों के माध्यम से लंबे समय तक तैनाती और निरंतर वैज्ञानिक अवलोकन संभव होगा—जो गहरे समुद्र के अन्वेषण की पद्धति को पूरी तरह बदल देगा।

वैज्ञानिक लक्ष्य और लाभ

गहरे समुद्री आवास का उद्देश्य उस रहस्यमयी महासागरीय दुनिया के रहस्यों को खोलना है, जो अब तक काफी हद तक अनछुई है। इसके प्रमुख शोध क्षेत्रों में शामिल हैं—

  • समुद्री जैव विविधता अध्ययन: दुर्लभ गहरे समुद्री जीवों की खोज।

  • दवा खोज: गहरे समुद्र के सूक्ष्मजीवों से जैव-सक्रिय यौगिकों की पहचान।

  • बायोटेक्नोलॉजी: अत्यधिक दाब व तापमान वाले वातावरण के लिए उपयुक्त एंज़ाइम और जीवों का उपयोग।

  • भूवैज्ञानिक अनुसंधान: समुद्र के भीतर टेक्टोनिक और ज्वालामुखीय गतिविधियों का अध्ययन।

  • मानव प्रदर्शन अध्ययन: अत्यधिक दबाव वाले वातावरण का मानव शरीर पर प्रभाव समझना।

यह परियोजना भारत को समुद्री जैव-सम्प्राप्ति (marine bioprospecting) और उपसतही भूविज्ञान अनुसंधान के अग्रणी देशों की श्रेणी में ला सकती है।

भारत का वैश्विक बढ़त: गहरे समुद्र विज्ञान में अग्रणी भूमिका

वर्तमान में विश्व में केवल एक सक्रिय पानी के भीतर अनुसंधान प्रयोगशाला है—एक्वेरियस रीफ बेस (USA)—जो मात्र 19 मीटर की गहराई पर कार्य करती है। इसके मुकाबले भारत की प्रस्तावित 6,000 मीटर गहराई वाली स्टेशन सभी मौजूदा सुविधाओं को बहुत पीछे छोड़ देगी और वैश्विक स्तर पर नए मानक स्थापित करेगी।

यह प्रयोगशाला भारत के व्यापक “समुद्रयान मिशन” को भी सुदृढ़ करती है, जिसके अंतर्गत मानव-संचालित पनडुब्बियाँ गहरे समुद्र का अन्वेषण करेंगी। यह परियोजना पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय की Deep Ocean Mission का महत्वपूर्ण हिस्सा है।

Static Facts

  • भारत बनाएगा: विश्व की सबसे गहरी पानी के भीतर प्रयोगशाला (6,000 मीटर)

  • पायलट मॉड्यूल की गहराई: 500 मीटर

  • पूर्ण तैनाती का लक्ष्य वर्ष: 2047 तक

  • तुलनात्मक अवधारणा: पानी के भीतर स्थित “इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन” जैसा मॉडल

  • मुख्य सामग्री: टाइटेनियम मिश्रधातु, कंपोज़िट प्रेशर हुल

  • मौजूदा वैश्विक मानक: एक्वेरियस रीफ बेस (19 मीटर, USA)

  • परियोजना का प्रमुख फोकस: गहरे समुद्र की जीवविज्ञान, भूविज्ञान, दवा खोज, उच्च-दबाव तकनीक

  • अंतर्गत: विज़न 2047 और डीप ओशन मिशन

नीतीश कुमार की Biography: जानें उनके जीवन और राजनीतिक सफर के बारे में

नीतिश कुमार भारतीय राजनीति के सबसे महत्वपूर्ण नेताओं में से एक हैं। उन्होंने कई वर्षों तक बिहार का नेतृत्व किया है और अपने शांत स्वभाव, दृढ़ निर्णयों और विभिन्न राजनीतिक दलों को साथ लाने की क्षमता के लिए जाने जाते हैं। वर्ष 2025 तक वे बिहार के मुख्यमंत्री और जनता दल (यूनाइटेड) के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। उनकी लंबी राजनीतिक यात्रा ने उन्हें राज्य ही नहीं, बल्कि राष्ट्रीय राजनीति में भी एक प्रभावशाली और निर्णायक आवाज़ के रूप में स्थापित किया है।

नीतीश कुमार का जन्म 1 मार्च, 1951 को बिहार के पटना जिले में बख्तियारपुर में हुआ था। उनके पिता कविराज राम लखन सिंह एक स्वतंत्रता सेनानी और आयुर्वेदिक वैद्य हुआ करते थे। वहीं, उनका माता का नाम परमेश्वरी देवी है। बचपन में नीतिश कुमार को मुन्ना कहकर पुकारा जाता था। नीतिश कुमार का विवाह 22 फरवरी 1973 को मंजू कुमारी सिन्हा के साथ हुआ था। उनके एक पुत्र निशांत कुमार है।

नीतिश कुमार: प्रारंभिक शिक्षा

नीतिश कुमार ने बख्तियारपुर के गणेश हाई स्कूल से अपनी प्रारंभिक शिक्षा पूरी की। इसके बाद उन्होंने पटना के बिहार कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग से 1972 में इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल की है। पढ़ाई के बाद उन्होंने राज्य के बिजली बोर्ड में काम किया, लेकिन यहां उनका मन नहीं लगा।

राजनीतिक करियर

उनका राजनीतिक जीवन 1974 और 1977 के बीच जेपी आंदोलन से शुरू हुआ, जो भ्रष्टाचार और सत्ता के दुरुपयोग के खिलाफ था। 1975 में आपातकाल के दौरान, उन्हें मीसा के तहत गिरफ्तार किया गया था। बाद में, वे समता पार्टी के संस्थापक सदस्यों में से एक बने और बिहार में सामाजिक परिवर्तन के लिए काम करते रहे।

नीतिश कुमार 1980 का दशक आते-आते बिहार की राजनीति में अपनी पहचान गढ़ चुके थे। ऐसे में उन्होंने 1985 में हरनौत विधानसभा से चुनाव जीतकर विधानसभा के सदस्य बने। वहीं, 1987 में वह युवा लोकदल के अध्यक्ष बने, तो 1989 में उन्हें जनता दल का महासचिव चुना गया।

नीतिश कुमार: मुख्यमंत्री के रूप में कार्यकाल

नीतीश कुमार पहली बार 2000 में बिहार के मुख्यमंत्री बने थे। तब से, उन्होंने कई बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली है, जिससे वे भारत के सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहने वाले मुख्यमंत्रियों में से एक बन गए हैं। नीतिश कुमार मार्च, 2000 में पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री बने। हालांकि, यह कार्यकाल सिर्फ 7 दिनों तक रहा, क्योंकि उनके पास बहुमत नहीं था। ऐसे में उन्हें अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा।

नीतिश कुमार ने साल 2005 के विधानसभा चुनाव में जीत हासिल की और दूसरी बार फिर से बिहार के मुख्यमंत्री बने। उन्होंने साल 2010 तक कार्यकाल संभाला। नीतिश ने अपना तीसरा कार्यकाल साल 2010 में शुरू किया। वहीं, साल 2015 में चौथा कार्यकाल, 2015 में ही पांचवा कार्यकाल और साल 2017 से छठा कार्यकाल पूरा किया। भारत में जब कोविड की दस्तक हुई, तो उन्होंने उस समय यानि कि 2020 में 7वां कार्यकाल शुरू किया, जबकि 2022 में 8वां कार्यकाल भी शुरू किया।

बिहार में कार्य और उपलब्धियाँ

नीतीश कुमार बिहार में शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा, कानून-व्यवस्था और बुनियादी ढाँचे में सुधार के लिए जाने जाते हैं। उनकी कुछ प्रमुख पहलों में शामिल हैं:

  • सड़कों और पुलों में व्यापक सुधार।
  • 1 लाख से ज़्यादा स्कूल शिक्षकों की नियुक्ति।
  • यह सुनिश्चित किया कि प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में डॉक्टर नियमित रूप से काम करें।
  • स्कूल जाने वाली लड़कियों को साइकिल देकर महिला निरक्षरता को कम किया।
  • अपराध नियंत्रण के लिए कड़े कदम उठाए।
  • राज्य के लोगों की औसत आय बढ़ाने में मदद की।

रोचक तथ्य

उनकी एक प्रसिद्ध योजना स्कूल जाने वाली लड़कियों को मुफ़्त साइकिल देना था। इस एक पहल ने बिहार में महिला साक्षरता में काफ़ी सुधार किया।

नीतीश कुमार की आयु

नीतीश कुमार का जन्म 1 मार्च, 1951 को हुआ था। 2025 तक, उनकी आयु 74 वर्ष है। अपनी उम्र के बावजूद, वे राजनीति में सक्रिय हैं और बिहार में एक महत्वपूर्ण नेता के रूप में कार्यरत हैं।

नीतीश कुमार की कुल संपत्ति

नीतीश कुमार की कुल संपत्ति लगभग ₹1.65 करोड़ है। उनकी संपत्ति में संपत्ति और बचत शामिल है, और उन पर कोई बड़ी देनदारी नहीं है। एक लंबे समय से राजनीतिक नेता होने के बावजूद, वे एक साधारण जीवन शैली जीने के लिए जाने जाते हैं।

थोक मुद्रास्फीति और गिरकर नकारात्मक क्षेत्र में पहुंची

अक्टूबर 2025 में भारत की थोक मुद्रास्फीति (WPI) और गहराई से नकारात्मक दायरे में चली गई, जो सितंबर के -0.13% की तुलना में घटकर -1.21% दर्ज हुई। वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के अनुसार, यह गिरावट मुख्य रूप से खाद्य पदार्थों, ईंधन, बिजली और बेसिक मेटल्स की कीमतों में भारी कमी के कारण हुई है।

थोक मुद्रास्फीति (WPI) क्या है?

  • WPI उन कीमतों में बदलाव को मापता है जो थोक स्तर पर, यानी व्यवसायों के बीच लेनदेन में होते हैं।
  • यह उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) से अलग है, जो खुदरा स्तर पर उपभोक्ताओं द्वारा चुकाई जाने वाली कीमतों में बदलाव को दर्शाता है।

अक्टूबर 2025 WPI डेटा: प्रमुख रुझान

  • WPI मुद्रास्फीति दर: -0.13% (सितंबर) से घटकर -1.21%

  • WPI फूड इंडेक्स: लगातार दूसरे महीने -5.00% की बड़ी गिरावट

  • प्राथमिक लेख (Primary Articles): -6.18% की तीव्र गिरावट

  • ईंधन और बिजली (Fuel & Power): -2.55% की डिफ्लेशन

  • निर्मित उत्पाद (Manufactured Products): 2.33% (सितंबर) से घटकर 1.54%

ये आंकड़े संकेत देते हैं कि थोक स्तर पर कीमतों में व्यापक कमी हो रही है, जिससे उत्पादन लागत भी प्रभावित हो रही है।

डिफ्लेशन के मुख्य कारण

  • सब्जियों एवं अनाज जैसी खाद्य वस्तुओं की कीमतों में तेज गिरावट

  • वैश्विक कच्चे तेल की कीमतों में कमी, जिससे ऊर्जा और खनिज तेल सेगमेंट प्रभावित

  • निर्माण और धातु उत्पादों की कीमतों में नरमी, कमजोर वैश्विक मांग के कारण

खुदरा मुद्रास्फीति (CPI) से संबंध

अक्टूबर 2025 में भारत की खुदरा मुद्रास्फीति (CPI) भी ऐतिहासिक स्तर पर गिरकर 0.25% दर्ज की गई।
WPI और CPI दोनों में गिरावट दिखाती है कि—

  • अर्थव्यवस्था में व्यापक स्तर पर मूल्य दबाव कम हो रहा है,
  • जिससे उत्पादकों के साथ-साथ उपभोक्ताओं को भी राहत मिल रही है।

स्टैटिक फैक्ट्स 

  • थोक मुद्रास्फीति (WPI), अक्टूबर 2025: -1.21%

  • फूड इंडेक्स डिफ्लेशन: -5.00%

  • प्राथमिक लेख डिफ्लेशन: -6.18%

  • ईंधन और बिजली डिफ्लेशन: -2.55%

  • निर्मित उत्पाद मुद्रास्फीति: 1.54%

  • खुदरा मुद्रास्फीति (CPI), अक्टूबर 2025: 0.25%

गरुड़-2025 वायु अभ्यास के लिए भारतीय वायुसेना का दल फ्रांस पहुंचा

भारत-फ्रांस रक्षा सहयोग का एक और महत्वपूर्ण अध्याय शुरू हुआ है, क्योंकि भारतीय वायुसेना (IAF) का दल फ्रांस के Mont-de-Marsan एयर बेस पहुँच चुका है। यहां 16 से 27 नवंबर 2025 तक होने वाले द्विवार्षिक द्विपक्षीय एयर एक्सरसाइज Garuda-2025 का आयोजन होगा। यह अभ्यास दोनों देशों के बीच बढ़ते सैन्य, तकनीकी और सामरिक सहयोग को दर्शाता है।

पृष्ठभूमि: Exercise Garuda और भारत-फ्रांस रणनीतिक सहयोग

  • 2003 में शुरू हुई यह द्विपक्षीय हवाई कवायद भारतीय वायुसेना और फ्रांसीसी एयर एंड स्पेस फोर्स को एक संयुक्त प्रशिक्षण मंच प्रदान करती है।

  • भारत और फ्रांस के बीच रक्षा तकनीक, विमानन सहयोग, सैन्य अनुसंधान और संयुक्त अभियानों में व्यापक रणनीतिक साझेदारी है।

  • Garuda-2025 का उद्देश्य संचालन क्षमता, संयुक्त योजना और सामरिक तालमेल को और मजबूत करना है।

Garuda-2025 में क्या होगा?

  • IAF अपने Su-30MKI लड़ाकू विमानों को तैनात करेगी, जबकि फ्रांस Rafale जेट्स के साथ अभ्यास में शामिल होगा।

  • मुख्य फोकस क्षेत्रों में शामिल होंगे:

    • इंटरऑपरेबिलिटी (पारस्परिक संगतता)

    • हवाई युद्धाभ्यास (Air Combat Manoeuvres)

    • हाई-इंटेंसिटी मिशन प्लानिंग

    • हवाई ईंधन भराई (Air-to-Air Refuelling)

    • सामरिक प्रशिक्षण और संयुक्त मिशन अभ्यास

  • यह अभ्यास दोनों वायु सेनाओं को एक-दूसरे की कार्यशैली, सिद्धांत और संचालन दृष्टिकोण को समझने में मदद करता है।

सामरिक महत्व 

  • भारत की हवाई शक्ति प्रक्षेपण क्षमता और अंतरराष्ट्रीय सैन्य-प्रशिक्षण अनुभव को मजबूत करता है।

  • भारत-फ्रांस रक्षा संबंधों को सुदृढ़ करता है, जहाँ फ्रांस भारत का एक विश्वसनीय रणनीतिक साझेदार है।

  • यूरोप और उससे आगे भारत की बढ़ती सैन्य उपस्थिति और एविएशन डिप्लोमेसी को संकेत देता है।

  • भारतीय पायलटों को फ्रांसीसी तकनीक, रणनीति, लॉजिस्टिक्स और प्रशिक्षण वातावरण का अनुभव मिलता है।

स्टैटिक फैक्ट्स 

  • अभ्यास का नाम: Exercise Garuda-2025

  • स्थान: Mont-de-Marsan Air Base, फ्रांस

  • अवधि: 16–27 नवंबर 2025

  • भारतीय बल: Indian Air Force (IAF)

  • फ्रांसीसी बल: French Air and Space Force

  • मुख्य शामिल विमान: Su-30MKI (भारत), Rafale (फ्रांस)

  • उद्देश्य: इंटरऑपरेबिलिटी बढ़ाना और रक्षा साझेदारी मजबूत करना

दिग्गज अभिनेत्री कामिनी कौशल का 98 साल की उम्र में निधन

भारतीय सिनेमा के स्वर्णिम युग की प्रतिष्ठित और दिग्गज अभिनेत्री कामिनी कौशल का 98 वर्ष की आयु में निधन हो गया। सात दशकों से अधिक के उनके शानदार फिल्मी करियर के साथ, उनका जाना हिंदी फिल्मों में स्त्री-चरित्रों की प्रस्तुति को नए आयाम देने वाली एक उल्लेखनीय यात्रा का अंत है।

प्रारंभिक करियर: डेब्यू से वैश्विक पहचान तक

कामिनी कौशल ने 1946 में बनी सामाजिक चेतना से ओत-प्रोत फिल्म “नीचा नगर” से करियर की शुरुआत की। यह फिल्म कान्स फिल्म फेस्टिवल के उद्घाटन संस्करण में पाम डी’ओर (सर्वश्रेष्ठ फिल्म) से सम्मानित हुई — यह उपलब्धि न सिर्फ उनके शानदार पदार्पण की गवाही थी, बल्कि भारतीय सिनेमा को भी वैश्विक मंच पर स्थापित करने वाली थी।

इसके बाद “दो भाई” (1947), “शहीद” (1948) जैसी फिल्मों में उन्होंने सहज अभिनय और शांत दृढ़ता के साथ महिला कलाकारों के लिए नए मानक स्थापित किए।

पीढ़ियों को जोड़ती एक अनंत कलाकार

कामिनी कौशल की फिल्मोग्राफी में 1940–50 के दशक की प्रमुख नायिका भूमिकाओं से लेकर बाद के वर्षों के यादगार चरित्र भूमिकाओं तक का अनूठा मिश्रण देखने को मिलता है। उन्होंने दिलीप कुमार, देव आनंद, राज कपूर, अशोक कुमार जैसे दिग्गजों के साथ काम किया और स्वर्णिम युग की प्रमुख नायिकाओं में शुमार रहीं।

1960 के दशक से उन्होंने चरित्र भूमिकाओं की ओर रुख किया, पर उनकी चमक कभी कम नहीं हुई। “गोदान”, “अर्जू”, और आधुनिक फिल्मों जैसे “कबीर सिंह” (2019) तथा “लाल सिंह चड्ढा” (2022) में भी उन्होंने गहराई, गरिमा और परिपक्वता से भरा अभिनय पेश किया।

कार्य नैतिकता और अभिनय दर्शन

कामिनी कौशल अपने अनुशासित कार्य-सैली, पात्र को गहराई से समझने पर जोर, और निर्देशक की दृष्टि से सामंजस्य बनाने के लिए जानी जाती थीं। वे स्वयं की आलोचना करने को भी महत्वपूर्ण मानती थीं, जिसने उन्हें बदलते सिनेमाई दौर में भी प्रासंगिक और सम्मानित बनाए रखा।

उनका कहना था कि उनकी लंबी उम्र का रहस्य था—“समय के साथ बदलना सीखो, लेकिन अपने मूल्यों से समझौता मत करो।”

विरासत: हिंदी सिनेमा की अमर ज्योति

कामिनी कौशल सिर्फ एक अभिनेत्री नहीं थीं — वे भारतीय सिनेमा के विकास की साक्षी और सहभागी दोनों थीं। स्वतंत्रता-उपरांत के यथार्थवादी सिनेमा से लेकर 1960 के दशक के मेलोड्रामा और आधुनिक फिल्मों के सूक्ष्म चरित्रों तक — उन्होंने हर दौर में अपनी अमिट छाप छोड़ी। सिनेमा के बाहर भी वे सामाजिक जिम्मेदारी, सांस्कृतिक संरक्षण और कलात्मक उत्कृष्टता की समर्थक थीं।

स्थैतिक तथ्य 

  • डेब्यू फिल्म: नीचा नगर (1946) – पाम डी’ओर विजेता

  • प्रमुख सह-कलाकार: दिलीप कुमार, राज कपूर, अशोक कुमार

  • प्रमुख फिल्में: दो भाई, जिद्दी, शहीद, नदिया के पार, अर्जू, गोदान

  • हालिया कार्य: कबीर सिंह (2019), लाल सिंह चड्ढा (2022)

  • सक्रिय वर्ष: 70 वर्ष से अधिक (1946–2025)

  • निधन के समय आयु: 98 वर्ष (जन्म: 1927)

हेनले पासपोर्ट इंडेक्स 2025: भारत 85वें स्थान पर, सिंगापुर फिर से सूची में शीर्ष पर

हेनली पासपोर्ट इंडेक्स 2025 जारी हो गया है, जो वैश्विक गतिशीलता और अंतरराष्ट्रीय यात्रा स्वतंत्रता में बदलते रुझानों को दर्शाता है। IATA (International Air Transport Association) के विशेष डेटा पर आधारित यह रैंकिंग 199 पासपोर्टों का मूल्यांकन करती है कि वे कितने देशों में बिना पूर्व-वीज़ा प्रवेश की सुविधा देते हैं। एशियाई देश—सिंगापुर, दक्षिण कोरिया और जापान—एक बार फिर शीर्ष पर हैं, जबकि भारत की रैंकिंग में गिरावट आई है। 2025 में भारत पाँच स्थान गिरकर 85वें पायदान पर आ गया है, और भारतीय पासपोर्ट धारकों को सिर्फ 57 देशों में वीज़ा-फ्री या वीज़ा-ऑन-अराइवल की सुविधा मिलती है।

2025 के टॉप 10 सबसे शक्तिशाली पासपोर्ट 

1. सिंगापुर – 193 गंतव्य
लगातार एक और वर्ष, सिंगापुर 193 देशों में वीज़ा-फ्री या वीज़ा-ऑन-अराइवल पहुँच के साथ दुनिया में पहले स्थान पर है। इसकी मज़बूत कूटनीति और स्थिर शासन इसे पासपोर्ट शक्ति का “गोल्ड स्टैंडर्ड” बनाते हैं।

2. दक्षिण कोरिया – 190 गंतव्य
दक्षिण कोरिया दूसरे स्थान पर है, जहाँ पासपोर्ट धारकों को 190 देशों तक पहुँच मिलती है। यह छात्रों, व्यवसायियों और यात्रियों के लिए बेहद उपयोगी पासपोर्ट माना जाता है।

3. जापान – 189 गंतव्य
लंबे समय तक शीर्ष पर रहने वाला जापान अब तीसरे स्थान पर है। जापानी पासपोर्ट धारकों को यूरोप और एशिया सहित 189 देशों में आसान यात्रा की सुविधा मिलती है।

4. यूरोपीय पावर ग्रुप (13 देश) – 187 गंतव्य
चौथे स्थान पर संयुक्त रूप से निम्न देश हैं:
बेल्जियम, डेनमार्क, फ़िनलैंड, फ़्रांस, जर्मनी, आयरलैंड, इटली, लक्समबर्ग, नीदरलैंड्स, स्पेन, स्विट्ज़रलैंड
इन देशों को यूरोपीय संघ और शेंगेन क्षेत्र की कूटनीतिक मजबूती का लाभ मिलता है।

5. ऑस्ट्रिया, ग्रीस, नॉर्वे, पुर्तगाल, स्वीडन – 186 गंतव्य
ये देश पाँचवें स्थान पर हैं और 186 देशों में वीज़ा-फ्री पहुँच प्रदान करते हैं।

6. हंगरी, माल्टा, न्यूज़ीलैंड, पोलैंड, स्लोवाकिया, स्लोवेनिया – 185 गंतव्य
छठवें स्थान पर, इन देशों को 185 देशों में स्वतंत्र यात्रा की सुविधा मिलती है। (न्यूज़ीलैंड को छोड़कर) इन सभी का लाभ EU सदस्यता से भी मिलता है।

7. ऑस्ट्रेलिया, क्रोएशिया, चेकिया, एस्टोनिया, यूएई, यूनाइटेड किंगडम – 184 गंतव्य
सातवें स्थान पर स्थित इन पासपोर्टों से 184 देशों में पहुँच मिलती है। खासतौर पर UAE ने अपनी कूटनीति और वैश्विक व्यापार विस्तार से तेजी से रैंक सुधारी है।

8. कनाडा और लातविया – 183 गंतव्य
कनाडा और लातविया आठवें स्थान पर हैं। कनाडा की मज़बूत द्विपक्षीय साझेदारियाँ और लातविया की EU सदस्यता इसकी प्रमुख वजह हैं।

9. लिकटेंस्टाइन और लिथुआनिया – 182 गंतव्य
छोटा देश होने के बावजूद लिकटेंस्टाइन का पासपोर्ट बेहद शक्तिशाली है। लिथुआनिया के साथ यह दोनों नौवें स्थान पर हैं।

10. आइसलैंड और मलेशिया – 181 गंतव्य
टॉप 10 की सूची को पूरा करते हुए, आइसलैंड और मलेशिया 181 देशों में वीज़ा-फ्री पहुँच प्रदान करते हैं। आइसलैंड को नॉर्डिक नेटवर्क का फायदा मिलता है, जबकि मलेशिया एशिया के सबसे मजबूत पासपोर्टों में शामिल है।

2025 में भारत की स्थिति: वैश्विक यात्रा स्वतंत्रता में गिरावट

2024 में 80वें स्थान पर रहने के बाद, भारत 2025 में 85वें स्थान पर आ गया है—जो भारतीय नागरिकों के अंतरराष्ट्रीय यात्रा स्वतंत्रता प्रयासों के लिए एक झटका माना जा रहा है।

वीज़ा-फ्री / वीज़ा-ऑन-अराइवल पहुंच: 57 देश
रैंकिंग परिवर्तन: पिछले वर्ष की तुलना में 5 स्थान नीचे

यह गिरावट प्रमुख रूप से इन कारणों से जुड़ी मानी जा रही है—

  • हाल के वर्षों में सीमित द्विपक्षीय वीज़ा समझौते

  • उभरते एशियाई और खाड़ी देशों की तुलना में धीमी कूटनीतिक प्रगति

  • “ग्लोबल ओपननेस गैप” का बढ़ना—जहाँ विकसित देश प्रवेश नियमों को सख्त कर रहे हैं, जिससे अन्य देशों की प्रतिक्रिया भी प्रभावित होती है

भारत की आर्थिक और भू-राजनीतिक शक्ति भले ही बढ़ी हो, लेकिन पासपोर्ट पावर उसकी वैश्विक आकांक्षाओं के अनुरूप नहीं बढ़ सकी है।

पासपोर्ट रैंकिंग क्यों महत्वपूर्ण होती है?

एक मजबूत पासपोर्ट के कई ठोस लाभ होते हैं—

  • पर्यटन, व्यवसाय, शिक्षा और आपातकालीन परिस्थितियों में सहज यात्रा

  • कम खर्च और कम नौकरशाही झंझट

  • विश्व मंच पर अधिक भरोसा और कूटनीतिक मान्यता

हैनली पासपोर्ट इंडेक्स यह बताने वाला एक प्रमुख संकेतक है कि किसी देश की विदेश नीति, व्यापारिक संबंध और वैश्विक प्रतिष्ठा उसके नागरिकों को कितनी वास्तविक सुविधाएँ प्रदान कर पाती हैं।

स्थैतिक तथ्य

  • रैंकिंग प्रणाली: हेनली पासपोर्ट इंडेक्स 2025

  • डेटा स्रोत: IATA

  • शीर्ष पासपोर्ट: सिंगापुर (193 देश)

  • भारत की रैंक: 85वां

  • भारत की पहुंच: 57 गंतव्य

  • अमेरिका की रैंक: 12वीं (मलेशिया के साथ) – पहली बार टॉप 10 से बाहर

  • विशेष रुझान: एशियाई पासपोर्टों का उभार; पश्चिमी देशों की ओपेननेस में कमी

  • इंडेक्स का दायरा: 199 पासपोर्ट, 227 गंतव्य

उपराष्ट्रपति सी.पी. राधाकृष्णन ने विशाखापत्तनम में 30वें CII साझेदारी शिखर सम्मेलन का उद्घाटन किया

कन्फेडरेशन ऑफ इंडियन इंडस्ट्री (CII) पार्टनरशिप समिट 2025 के 30वें संस्करण का उद्घाटन 14 नवंबर 2025 को आंध्र प्रदेश के विशाखापत्तनम में भारत के उपराष्ट्रपति सी. पी. राधाकृष्णन द्वारा किया गया। यह दो-दिवसीय समिट CII, DPIIT (Department for Promotion of Industry and Internal Trade), वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय तथा आंध्र प्रदेश सरकार के संयुक्त सहयोग से आयोजित की गई—जिसका उद्देश्य व्यापार, निवेश और प्रौद्योगिकी के भविष्य की दिशा तय करना है।

थीम और समिट का पैमाना

समिट का विषय है:

“टेक्नोलॉजी, ट्रस्ट और ट्रेड: नए भू-आर्थिक क्रम में दिशा-निर्देशन”

यह विषय बदलते वैश्विक आर्थिक परिदृश्य और उसमें भारत की बढ़ती भूमिका को दर्शाता है।
इसमें 77 देशों से 2,500+ प्रतिनिधियों के भाग लेने की उम्मीद है।

उद्घाटन संबोधन की प्रमुख बातें

उपराष्ट्रपति सी. पी. राधाकृष्णन ने अपने संबोधन में कहा कि—

  • भारत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में तेज़ी से एक वैश्विक आर्थिक महाशक्ति के रूप में उभर रहा है।

  • आंध्र प्रदेश का निवेश-अनुकूल वातावरण, विशेष रूप से मुख्यमंत्री एन. चंद्रबाबू नायडू की नेतृत्व क्षमता की सराहना की गई।

  • उन्होंने वैश्विक निवेशकों से भारत में निवेश का अवसर पकड़ने का आह्वान किया, क्योंकि भारत तेज़ी से स्टार्टअप हब और टेक-ड्रिवन इकॉनमी बनता जा रहा है।

आंध्र प्रदेश की निवेश रणनीति

मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने निवेश के लिए 10-सूत्रीय योजना प्रस्तुत की और बताया कि—

  • पिछले 17 महीनों में USD 20 बिलियन का निवेश आकर्षित किया गया है, जिससे 20 लाख नौकरियाँ पैदा हुई हैं।

  • अब राज्य का लक्ष्य है:

    • USD 0.5 ट्रिलियन निवेश

    • 50 लाख रोजगार

  • लंबी अवधि का लक्ष्य: अगले 10 वर्षों में USD 1 ट्रिलियन निवेश

लक्षित क्षेत्र:

ड्रोन, इलेक्ट्रॉनिक्स, एयरोस्पेस, सेमीकंडक्टर्स, डिफेंस, स्पेस।

उन्होंने कहा कि आंध्र प्रदेश ने “Ease of Doing Business” से आगे बढ़कर “Speed of Doing Business” को अपनाया है, जहाँ रियल-टाइम अप्रूवल और तेज़ प्रोजेक्ट क्रियान्वयन सुनिश्चित किया जा रहा है।

Static Facts 

  • कार्यक्रम: 30वां CII पार्टनरशिप समिट 2025

  • तारीख: 14–15 नवंबर 2025

  • स्थान: विशाखापत्तनम, आंध्र प्रदेश

  • मुख्य अतिथि: उपराष्ट्रपति सी. पी. राधाकृष्णन

  • थीम: “टेक्नोलॉजी, ट्रस्ट और ट्रेड: नए भू-आर्थिक क्रम में दिशा-निर्देशन”

  • आंध्र प्रदेश का निवेश लक्ष्य:

    • USD 0.5 ट्रिलियन निवेश

    • 50 लाख रोजगार

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