PAHAL (DBTL) योजना ने दक्षता, पारदर्शिता एवं उपभोक्ता-केंद्रित सुधार में योगदान दिया

एलपीजी की प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (PAHAL) योजना पारदर्शी और उपभोक्ता-केंद्रित सुधारों के साथ भारत के एलपीजी सब्सिडी तंत्र को लगातार मजबूत कर रही है। जनवरी 2015 में शुरू की गई इस योजना के तहत पूरे देश में घरेलू एलपीजी सिलेंडर एक समान खुदरा मूल्य पर बेचे जाते हैं, जबकि सब्सिडी सीधे उपभोक्ताओं के बैंक खातों में भेजी जाती है। यह मॉडल पारदर्शिता बढ़ाता है, लीकेज कम करता है और सब्सिडी वितरण को अधिक जवाबदेह बनाता है।

सब्सिडी वितरण में PAHAL योजना के मुख्य लाभ

सरकार ने यह सुनिश्चित करने के लिए लगातार सुधार किए हैं कि एलपीजी वितरण और नकद हस्तांतरण—दोनों—कुशल, समावेशी और विश्वसनीय रहें। आधार-आधारित सत्यापन, बायोमेट्रिक प्रमाणीकरण और डाटा शुद्धिकरण प्रक्रियाओं की मदद से PAHAL ने सब्सिडी लक्षित करने की क्षमता को मजबूत किया है, जिससे फर्जी, निष्क्रिय और डुप्लीकेट कनेक्शनों का उन्मूलन हुआ है। इससे सब्सिडी वाले सिलेंडरों के वाणिज्यिक उपयोग की ओर होने वाली चोरी में भारी कमी आई है।

PAHAL को मजबूत बनाने वाले प्रमुख सुधार

1. कॉमन एलपीजी डाटाबेस प्लेटफ़ॉर्म (CLDP) के माध्यम से डुप्लीकेशन हटाना

एकीकृत डाटाबेस डुप्लीकेट या धोखाधड़ी वाले कनेक्शनों की पहचान करने में मदद करता है। इसमें आधार, बैंक खाते, राशन कार्ड विवरण, अस्थायी पहचान संख्या, परिवार सूची और नाम-पता रिकॉर्ड का मिलान किया जाता है। इससे यह सुनिश्चित होता है कि प्रत्येक पात्र परिवार के पास केवल एक मान्य एलपीजी कनेक्शन हो।

2. डीबीटी योजनाओं के लिए आधार आधारित बायोमेट्रिक प्रमाणीकरण

बायोमेट्रिक प्रमाणीकरण से लाभार्थियों का वास्तविक समय में सत्यापन सुनिश्चित होता है। सरकार ने तेल विपणन कंपनियों को पीएमयूवाई और PAHAL लाभार्थियों का बायोमेट्रिक सत्यापन अनिवार्य रूप से कराने का निर्देश दिया है।
1 नवंबर 2025 तक, 69% पीएमयूवाई लाभार्थियों ने बायोमेट्रिक प्रमाणीकरण पूरा कर लिया है, जबकि नए पीएमयूवाई ग्राहकों को कनेक्शन मिलने से पहले यह प्रक्रिया पूरी करनी होती है।

3. अयोग्य और निष्क्रिय उपभोक्ताओं को हटाना

PAHAL के तहत डाटा-आधारित जाँचों से लॉन्च के बाद से अब तक 8.63 लाख पीएमयूवाई कनेक्शन अयोग्य पाए जाने पर समाप्त किए जा चुके हैं। जनवरी 2025 में जारी नई SOP के तहत वे उपभोक्ता जिन्‍होंने इंस्टॉलेशन के बाद कोई रिफिल नहीं लिया, उन्हें हटाने की प्रक्रिया शुरू की गई, जिसके परिणामस्वरूप 1 नवंबर 2025 तक 20,000 निष्क्रिय कनेक्शन समाप्त किए गए।

तृतीय-पक्ष मूल्यांकन में सकारात्मक प्रतिक्रिया

रिसर्च एंड डेवलपमेंट इनिशिएटिव (RDI) द्वारा किए गए स्वतंत्र मूल्यांकन में पाया गया कि 90% से अधिक उत्तरदाता PAHAL के तहत सब्सिडी रिफंड प्रक्रिया से संतुष्ट हैं।
अध्ययन ने सुझाव दिया कि:

  • भुगतान ढाँचा और मजबूत किया जाए

  • शिकायत निवारण प्रणाली को उन्नत किया जाए

  • कमजोर वर्गों को बेहतर तरीके से लक्षित किया जाए

  • सुरक्षा शिक्षा और जागरूकता बढ़ाई जाए, विशेष रूप से स्थानीय भाषाओं में

सरकार ने इन सुझावों को स्वीकार करते हुए सब्सिडी अंतरण प्रणाली, पारदर्शिता, जागरूकता और उपभोक्ता सुविधा को और सुदृढ़ किया है।

सुदृढ़ शिकायत निवारण तंत्र

सेवा गुणवत्ता सुधारने के लिए एलपीजी शिकायत निपटान प्रणाली में व्यापक सुधार किए गए हैं। अब उपभोक्ता शिकायत दर्ज कर सकते हैं:

  • टोल-फ्री हेल्पलाइन: 1800 2333 555

  • तेल विपणन कंपनियों की वेबसाइट और मोबाइल ऐप्स

  • CPGRAMS (केंद्रीकृत लोक शिकायत निवारण एवं निगरानी प्रणाली)

  • चैटबॉट, व्हाट्सऐप और सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म

  • MoPNG e-Seva चैनल

  • गैस रिसाव/दुर्घटना के लिए समर्पित हेल्पलाइन 1906

  • डिस्ट्रीब्यूटर कार्यालय

ऑनलाइन शिकायतों में उपभोक्ता अपनी सेवा संतुष्टि को रेट कर सकते हैं, और आवश्यकता पड़ने पर मामले को दोबारा खोलकर पुनरीक्षण भी करवा सकते हैं।

भारत की बिजली क्षमता 5.05 लाख मेगावाट पहुंची

भारत ने अपनी ऊर्जा संक्रमण यात्रा में एक बड़ा मील का पत्थर हासिल किया है। 31 अक्टूबर 2025 तक देश की कुल स्थापित बिजली उत्पादन क्षमता 5,05,023 मेगावाट तक पहुँच गई है। महत्वपूर्ण बात यह है कि अब गैर-जीवाश्म ईंधन क्षमता (2,59,423 मेगावाट) जीवाश्म-आधारित क्षमता (2,45,600 मेगावाट) से अधिक हो गई है, जो स्वच्छ ऊर्जा की ओर एक संरचनात्मक बदलाव को दर्शाती है।

इसमें नवीकरणीय स्रोतों से 2,50,643 मेगावाट शामिल हैं, जो 2030 तक 500 गीगावाट गैर-जीवाश्म क्षमता हासिल करने की भारत की प्रतिबद्धता की दिशा में मजबूत प्रगति का संकेत है।

स्वच्छ ऊर्जा विस्तार के पीछे नीति-गत प्रोत्साहन

नवीकरणीय ऊर्जा वृद्धि को तेज करने और ऊर्जा सुरक्षा, वहनीयता तथा डीकार्बोनाइजेशन को समर्थन देने के लिए सरकार ने कई उपाय लागू किए हैं। प्रमुख पहलें शामिल हैं:

  • पवन और सौर परियोजनाओं के लिए ISTS शुल्क माफी

  • टैरिफ-आधारित प्रतिस्पर्धी बोली नियम

  • वित्त वर्ष 2023-24 से 2027-28 तक प्रति वर्ष 50 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा की खरीद योजना

विदेशी निवेश को भी बढ़ावा दिया गया है, जिसमें स्वचालित मार्ग के तहत 100% FDI की अनुमति शामिल है। बड़े सौर पार्क, नए ट्रांसमिशन कॉरिडोर और ग्रीन एनर्जी कॉरिडोर परियोजनाएँ ग्रिड क्षमता बढ़ाने में महत्वपूर्ण योगदान दे रही हैं।

हाल की प्रमुख योजनाएँ जो नवीकरणीय क्षमता वृद्धि का नेतृत्व कर रही हैं

  • पीएम-कुसुम योजना

  • पीएम सूर्य घर मुफ्त बिजली योजना

  • उच्च दक्षता वाले सोलर पीवी मॉड्यूल का राष्ट्रीय कार्यक्रम

  • राष्ट्रीय ग्रीन हाइड्रोजन मिशन

  • ऑफशोर विंड परियोजनाओं के लिए व्यावहारिक अंतर (VGF) सहायता

RPO और RCO ढाँचे के तहत नवीकरणीय ऊर्जा उपभोग अनिवार्यता—और अनुपालन न करने पर दंड—नवीकरणीय अपनाने को और मजबूत बनाते हैं।

भारत ने जून 2025 में गैर-जीवाश्म स्रोतों से 50% स्थापित क्षमता का लक्ष्य अपने पेरिस समझौते के NDC लक्ष्य से पाँच वर्ष पहले ही प्राप्त कर लिया—यह राष्ट्र की स्वच्छ ऊर्जा यात्रा का ऐतिहासिक क्षण है।

भविष्य में विकास के लिए परमाणु ऊर्जा को एक प्रमुख स्तंभ के रूप में उभारना

सरकार ने आधार-लोड स्वच्छ ऊर्जा और दीर्घकालिक ऊर्जा सुरक्षा के लिए परमाणु ऊर्जा को एक महत्वपूर्ण तत्व के रूप में रेखांकित किया है। लक्ष्य है 2047 तक 100 गीगावाट परमाणु क्षमता हासिल करना।

इसके लिए प्रमुख कदम शामिल हैं:

  • 20,000 करोड़ रुपये का न्यूक्लियर एनर्जी मिशन, जिसका लक्ष्य छोटे मॉड्यूलर रिएक्टर (SMR) विकसित करना है

  • निजी क्षेत्र की भागीदारी आकर्षित करने के लिए कानूनी सुधार

  • औद्योगिक उपयोग के लिए स्वदेशी 220 मेगावाट भारत स्मॉल रिऐक्टर

  • यूरेनियम सुरक्षा को मजबूत करने के लिए अन्वेषण और ईंधन चक्र विकास

  • NPCIL-NTPC का संयुक्त उद्यम ASHVINI जो परमाणु परियोजनाओं के विस्तार पर केंद्रित है

भंडारण और ग्रिड स्थिरता उपाय

नवीकरणीय ऊर्जा को सपोर्ट करने के लिए सरकार ने BESS (बैटरी ऊर्जा भंडारण प्रणाली) के लिए VGF योजनाएँ स्वीकृत की हैं—13.22 GWh पर काम जारी है और जून 2025 में अतिरिक्त 30 GWh मंजूर किया गया।

साथ ही, ग्रिड की विश्वसनीयता के लिए 10 पंप्ड स्टोरेज परियोजनाएँ (11,870 मेगावाट) निर्माणाधीन हैं।

ऑफशोर विंड, हाइड्रोजन और उभरती प्रौद्योगिकियाँ

  • ऑफशोर विंड परियोजनाओं की स्थापना के लिए रणनीति जारी की गई है, शुरुआती 1 गीगावाट क्षमता के लिए VGF समर्थन के साथ।

  • राष्ट्रीय ग्रीन हाइड्रोजन मिशन का उद्देश्य कम से कम 5 MMT वार्षिक उत्पादन क्षमता स्थापित करना है, जिसमें 125 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा का समर्थन शामिल है। यह डीकार्बोनाइजेशन और ग्रीन जॉब्स को बढ़ावा देगा।

31 अक्टूबर 2025 तक स्थापित क्षमता की झलक

जीवाश्म ईंधन आधारित क्षमता – 2,45,600 मेगावाट

  • कोयला

  • लिग्नाइट

  • गैस

  • डीज़ल

गैर-जीवाश्म क्षमता – 2,59,423 मेगावाट

  • सौर ऊर्जा: 1,29,924 मेगावाट

  • पवन ऊर्जा: 53,600 मेगावाट

  • स्मॉल हाइड्रो, बायोमास, वेस्ट-टू-एनर्जी

  • परमाणु ऊर्जा: 8,780 मेगावाट

ISRO प्रमुख ने भारत के पहले निजी नेविगेशन केन्द्र ‘एसीईएन’ का शुभारंभ किया

भारत ने हाई-टेक नेविगेशन प्रणालियों में आत्मनिर्भरता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है। इसरो के चेयरमैन वी. नारायणन ने थिरुवनंतपुरम में अनंत सेंटर ऑफ एक्सीलेंस फॉर नेविगेशन (ACEN) का उद्घाटन किया। यह भारत का पहला निजी क्षेत्र का नेविगेशन नवाचार केंद्र है, जिसे अनंत टेक्नोलॉजीज़ ने स्थापित किया है।

यह केंद्र क्यों महत्वपूर्ण है?

नेविगेशन तकनीक मिसाइलों, विमानों, जहाजों, उपग्रहों और आधुनिक मशीनों की सफलता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
भारत ने अतीत में अनुभव किया है कि विदेशी GPS प्रणालियों पर निर्भरता, विशेषकर संघर्ष के समय, जोखिमपूर्ण हो सकती है।

ACEN का उद्देश्य इस समस्या का समाधान करना है—भारत के लिए मजबूत, विश्वसनीय और स्वदेशी नेविगेशन प्रणालियों का निर्माण सुनिश्चित करना।

अनंत टेक्नोलॉजीज़ के बारे में

  • स्थापना: 1992

  • कंपनी ने इसरो और DRDO की कई महत्वपूर्ण मिशनों में सहयोग दिया है।

  • यह प्रिसिशन सेंसर, एयरवर्थिनेस सर्टिफिकेशन, और सैटेलाइट व लॉन्च व्हीकल इंटीग्रेशन के कार्यों के लिए जानी जाती है।

विदेशी निर्भरता की समस्या

भारत के कई रक्षा नेविगेशन सिस्टम अब भी विदेशी कंपनियों द्वारा निर्मित और मरम्मत योग्य हैं।
जब कोई नेविगेशन यूनिट खराब होती है, तो उसे विदेश भेजना पड़ता है, जिससे:

  • मरम्मत में देरी

  • रक्षा तैयारी पर प्रभाव

जैसी समस्याएँ उत्पन्न होती हैं।

ACEN कैसे मदद करेगा?

नया केंद्र निम्न क्षेत्रों पर काम करेगा:

  • नेविगेशन सेंसर का पूर्ण स्वदेशी विकास

  • AI आधारित नेविगेशन फ्यूजन तकनीक

  • भारत की अपनी NavIC प्रणाली का उन्नत उपयोग

  • सभी प्रकार का MRO (Maintenance, Repair, Overhaul) कार्य देश के भीतर

इससे:

  • भारी लागत की बचत

  • समय की बचत

  • तकनीकी आत्मनिर्भरता

हासिल होगी।

भारत के 2035 विजन को समर्थन

भारत का विजन 2035 रक्षा, अंतरिक्ष और नागरिक क्षेत्रों में पूर्ण नेविगेशन क्षमता विकसित करने पर केंद्रित है।
ACEN इस लक्ष्य को समर्थन देता है और बढ़ावा देता है:

  • उद्योग

  • वैज्ञानिक समुदाय

  • विश्वविद्यालय

  • रक्षा और अंतरिक्ष एजेंसियों के बीच सहयोग को।

आत्मनिर्भर भारत को बढ़ावा

मजबूत, स्वदेशी नेविगेशन प्रणालियाँ राष्ट्रीय सुरक्षा और आर्थिक विकास के लिए आवश्यक हैं।
भारत का लक्ष्य है कि 2035 तक विश्व-स्तरीय, विश्वसनीय नेविगेशन प्रणालियाँ तैयार की जाएँ।

ACEN:

  • आयात में कमी

  • घरेलू उत्पादन में बढ़ोतरी

  • तकनीकी आत्मनिर्भरता को प्रोत्साहित करेगा।

इसरो चेयरमैन का संदेश

इसरो चेयरमैन वी. नारायणन ने कहा कि अनंत टेक्नोलॉजीज़ जैसी निजी कंपनियाँ भारत की नेविगेशन तकनीक को तेज गति से आगे बढ़ाएंगी। उन्होंने विश्वास जताया कि ऐसे प्रयास भारत को 2047 तक उन्नत तकनीक में वैश्विक नेतृत्व दिलाने में मदद करेंगे।

स्क्रोमिटिंग सिंड्रोम क्या है? बार-बार कैनाबिस सेवन का छिपा हुआ खतरा

दुनिया भर में कैनाबिस (गांजा) का उपयोग बढ़ता जा रहा है, लेकिन इसके साथ ही एक नई स्वास्थ्य समस्या सामने आ रही है, जिसे स्क्रोमिटिंग कहा जाता है। अस्पतालों में इस स्थिति से पीड़ित मरीजों की संख्या बढ़ रही है, खासकर वे लोग जो लंबे समय से नियमित रूप से कैनाबिस का सेवन कर रहे हैं। वैश्विक स्वास्थ्य संस्थाओं ने इसे मान्यता दी है, जिससे इसकी गंभीरता और जागरूकता की आवश्यकता और अधिक बढ़ गई है।

स्क्रोमिटिंग क्या है?

स्क्रोमिटिंग वास्तव में एक गंभीर बीमारी का अनौपचारिक नाम है, जिसे चिकित्सा भाषा में कैनाबिनॉइड हाइपरइमेसिस सिंड्रोम (Cannabinoid Hyperemesis Syndrome – CHS) कहा जाता है।
CHS से पीड़ित लोगों में:

  • तीव्र और अनियंत्रित उल्टी

  • गंभीर पेट दर्द

  • घंटों या कई दिनों तक रहने वाली मतली

जैसे लक्षण दिखाई देते हैं। ये लक्षण इतने भयावह हो सकते हैं कि मरीजों को कई बार आपातकालीन कक्ष (Emergency Room) का रुख करना पड़ता है।

स्वास्थ्य संस्थाओं द्वारा आधिकारिक मान्यता

CHS को अब विश्व भर की प्रमुख स्वास्थ्य एजेंसियों ने औपचारिक रूप से मान्यता दी है:

  • विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO):

    • ICD-10 में कोड: R11.16

    • ICD-11 में कोड: DD90.4

  • US CDC (रोग नियंत्रण एवं रोकथाम केंद्र):
    अमेरिका भर में CHS मामलों की निगरानी करता है।

यह मान्यता डॉक्टरों को बीमारी की पहचान, निगरानी और इसके प्रसार को समझने में मदद करती है।

लंबे समय तक कैनाबिस सेवन से CHS क्यों होता है?

अनुसंधान के अनुसार, बार-बार और लंबे समय तक कैनाबिस का सेवन CHS का मुख्य कारण है। मुख्य निष्कर्ष:

  • लक्षण चक्रों में आते हैं, जिससे मरीज बार-बार अस्पताल पहुंचते हैं

  • अधिकतर मरीज यह नहीं जानते कि उनकी समस्या का कारण कैनाबिस है

  • कुछ अध्ययनों से पता चला है कि दूषित (contaminated) कैनाबिस, विशेष रूप से Fusarium माइकोटॉक्सिन से संक्रमित, उल्टी को और गंभीर बना सकता है

बढ़ती सार्वजनिक स्वास्थ्य चिंता

स्क्रोमिटिंग तेजी से एक उभरती हुई स्वास्थ्य समस्या बन रहा है:

  • दैनिक उपयोगकर्ता और कम उम्र में कैनाबिस शुरू करने वाले लोग सबसे अधिक जोखिम में हैं

  • कई मामलों में मरीजों को आपातकालीन उपचार और अस्पताल में भर्ती की आवश्यकता पड़ती है

  • डॉक्टर सलाह देते हैं कि उपयोगकर्ताओं को इसके जोखिमों के बारे में शिक्षित किया जाए और उन्हें सेवन कम करने या रोकने में मदद दी जाए

जैसे-जैसे कैनाबिस अधिक शक्तिशाली और आसानी से उपलब्ध हो रहा है, CHS के बारे में सार्वजनिक जागरूकता अत्यंत आवश्यक है।

याद रखने योग्य मुख्य बातें

  • स्क्रोमिटिंग, CHS (Cannabinoid Hyperemesis Syndrome) का दूसरा नाम है

  • CHS को WHO की ICD-10 (R11.16) और ICD-11 (DD90.4) में सूचीबद्ध किया गया है

  • लंबे समय तक या दैनिक कैनाबिस सेवन इसका मुख्य जोखिम कारक है

  • दूषित कैनाबिस (Fusarium माइकोटॉक्सिन) लक्षणों को और गंभीर कर सकता है

IBTP प्रमुख प्रवीण कुमार ने बीएसएफ के महानिदेशक के रूप में अतिरिक्त प्रभार संभाला

इंडो-तिब्बती सीमा पुलिस (ITBP) के मौजूदा महानिदेशक प्रवीण कुमार ने अब सीमा सुरक्षा बल (BSF) के महानिदेशक का अतिरिक्त प्रभार भी संभाल लिया है। पूर्व BSF प्रमुख दलजीत सिंह चौधरी के सेवानिवृत्त होने के बाद उन्होंने यह जिम्मेदारी रविवार को ग्रहण की।

दिल्ली की बजाय रायपुर में हुआ कार्यभार संभालने का समारोह

  • यह जिम्मेदारी एक BSF कैंप में रायपुर (छत्तीसगढ़) में सौंपी गई।
  • आमतौर पर यह समारोह नई दिल्ली स्थित BSF मुख्यालय में होता है, लेकिन इस बार दोनों अधिकारी शुक्रवार से रविवार तक चल रहे DGs–IGs राष्ट्रीय पुलिस सम्मेलन में शामिल थे, इसलिए कार्यक्रम रायपुर में आयोजित किया गया।

गृह मंत्रालय का आदेश

  • शुक्रवार को गृह मंत्रालय (MHA) ने आदेश जारी कर प्रवीण कुमार को BSF महानिदेशक का अतिरिक्त प्रभार सौंपा।
  • वह यह जिम्मेदारी “स्थायी नियुक्ति होने तक या अगले आदेश तक” निभाएंगे।

प्रवीण कुमार: सेवा यात्रा और अनुभव

प्रवीण कुमार 1993 बैच के आईपीएस अधिकारी हैं और पश्चिम बंगाल कैडर से आते हैं।
ITBP के 35वें DG बनने (अक्टूबर 2024) से पहले उन्होंने कई महत्वपूर्ण भूमिकाएँ निभाईं:

  • 2009 से इंटेलिजेंस ब्यूरो (IB) में सेवा

  • नक्सल प्रभावित मिदनापुर रेंज में DIG के रूप में कार्य

  • चुनौतीपूर्ण क्षेत्रों में कई सुरक्षा अभियानों का नेतृत्व

ITBP प्रमुख रहते हुए उन्होंने 64वें Raising Day Parade (उधमपुर) में घोषणा की थी कि भारत-चीन सीमा पर 10 पूरी तरह महिला-स्टाफ वाली फॉरवर्ड पोस्ट्स बनाई जाएँगी। ये पोस्ट्स लद्दाख से अरुणाचल प्रदेश तक फैली 3,488 किमी लंबी सीमा की निगरानी करती हैं।

दलजीत सिंह चौधरी का कार्यकाल

दलजीत सिंह चौधरी, 1990 बैच के यूपी कैडर के आईपीएस अधिकारी, अगस्त 2024 में BSF DG बने थे। उनका कार्यकाल कई उल्लेखनीय उपलब्धियों के लिए याद किया जाता है:

  • पहलगाम आतंकी हमले के बाद ऑपरेशन सिंदूर का नेतृत्व

  • BSF का पहला ड्रोन स्क्वाड्रन और ड्रोन ट्रेनिंग स्कूल स्थापित

  • अधिक पदोन्नतियों को बढ़ावा दिया और उत्कृष्ट खिलाड़ियों को सम्मानित किया

  • मणिपुर के हिंसाग्रस्त इलाकों में कानून-व्यवस्था और आव्रजन ड्यूटी की समीक्षा

वे चार बार पुलिस गैलेंट्री मेडल प्राप्त कर चुके हैं, जो राष्ट्रीय सुरक्षा में उनके लंबे योगदान को दर्शाता है।

BSF के बारे में

सीमा सुरक्षा बल (BSF) भारत की सबसे बड़ी सीमा प्रहरी बलों में से एक है, जिसमें लगभग 2.70 लाख कर्मी शामिल हैं। यह बल पाकिस्तान और बांग्लादेश के साथ लगती अंतरराष्ट्रीय सीमाओं की सुरक्षा करता है। इसके अलावा, आवश्यकता पड़ने पर BSF आंतरिक सुरक्षा से संबंधित कार्यों में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

जानें क्यों मनाया जाता है World Computer Literacy Day

हर वर्ष 2 दिसंबर को विश्व कंप्यूटर साक्षरता दिवस (World Computer Literacy Day) मनाया जाता है, जिसका उद्देश्य डिजिटल शिक्षा, तकनीकी जागरूकता और कंप्यूटर कौशल तक समान पहुँच को बढ़ावा देना है। यह दिन हमें याद दिलाता है कि तेजी से डिजिटल हो रही दुनिया में डिजिटल विभाजन (Digital Divide) को पाटना समावेशी विकास के लिए अत्यंत आवश्यक है।

वैश्विक स्तर पर मनाया जाने वाला यह दिवस आर्थिक विकास, संचार, शिक्षा, रोजगार तथा नवाचार में कंप्यूटरों की परिवर्तनकारी भूमिका को भी रेखांकित करता है।

विश्व कंप्यूटर साक्षरता दिवस की उत्पत्ति

विश्व कंप्यूटर साक्षरता दिवस की शुरुआत वर्ष 2001 में NIIT लिमिटेड द्वारा की गई थी। NIIT एक भारतीय बहुराष्ट्रीय संगठन है जो शिक्षण और कौशल विकास में विशेषज्ञता रखता है। इस पहल का मुख्य उद्देश्य महिलाओं और बच्चों को कंप्यूटर शिक्षा प्रदान करना तथा तकनीक तक उनकी पहुँच बढ़ाना था।

समय के साथ इसका विस्तार होता गया, और NIIT के प्रयासों से यह दिवस 30 से अधिक देशों तक पहुँच चुका है। इसने दुनिया भर की सरकारों, संस्थानों और संगठनों को डिजिटल साक्षरता को बढ़ावा देने के लिए प्रेरित किया है।

2025 में यह दिवस क्यों महत्वपूर्ण है

कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI), डिजिटल बैंकिंग, ऑनलाइन सेवाओं, शिक्षा पोर्टल्स और रिमोट वर्क पर बढ़ती निर्भरता के साथ, कंप्यूटर कौशल अनिवार्य हो गए हैं। यह दिवस निम्न बिंदुओं को उजागर करता है:

  • डिजिटल समावेशन की तात्कालिक आवश्यकता

  • वंचित समुदायों को तकनीकी ज्ञान से सशक्त करने की जरूरत

  • सामाजिक प्रगति के लिए तकनीकी सशक्तिकरण का महत्व

यह यह भी स्वीकार करता है कि कंप्यूटर साक्षरता आर्थिक विकास, करियर अवसरों और वैश्विक संपर्क को बढ़ावा देती है।

इस दिवस को कैसे मनाएँ

लोग और संस्थाएँ इस दिन को विभिन्न तरीकों से मनाते हैं, जैसे:

  • कार्यशालाएँ और जागरूकता कार्यक्रम आयोजित करना

  • डिजिटल शिक्षा से जुड़ी चैरिटीज़ का समर्थन करना

  • छात्रों, बुजुर्गों या पहली बार कंप्यूटर सीखने वाले लोगों को प्रशिक्षण देना

  • ऑनलाइन सुरक्षा और जिम्मेदार डिजिटल व्यवहार से जुड़े अभियान चलाना

इन प्रयासों से यह संदेश मजबूत होता है कि सामूहिक प्रयास एक डिजिटल रूप से सशक्त समाज का निर्माण कर सकते हैं।

कैसे हुई इस दिन को मनाने की शुरुआत?

विश्व कंप्यूटर साक्षरता दिवस मनाने की शुरुआत N.I.I.T की 20वीं वर्षगांठ पर 2 दिसंबर 2001 को हुई थी। इस दिन संसद के सदस्यों को पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के सामने कंप्यूटर की शिक्षा दी गई थी। इसका उद्देश्य सभी तक कंप्यूटर साक्षरता पहुंचाना है।

IUSSP ने जीता संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या पुरस्कार

संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (UNFPA) इंडिया ने इंटरनेशनल यूनियन फॉर द साइंटिफिक स्टडी ऑफ पॉपुलेशन (IUSSP) को 2025 संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या पुरस्कार (संस्थागत श्रेणी) प्राप्त करने पर सम्मानित किया। यह सम्मान IUSSP के वैश्विक जनसंख्या विज्ञान में उत्कृष्ट शोध, क्षमता निर्माण, तथा साक्ष्य-आधारित नीति-निर्माण में योगदान को मान्यता देता है। यह felicitation भारतीय जनसंख्या अध्ययन संघ (IASP) के 46वें वार्षिक सम्मेलन के दौरान आयोजित किया गया, जिसमें भारत के जनसांख्यिकीय भविष्य पर महत्वपूर्ण चर्चाएँ हुईं।

IUSSP का वैश्विक योगदान

IUSSP, जिसकी अध्यक्षता (2022–2025) डॉ. शिरीन जेजीभॉय ने की, को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जनसंख्या विज्ञान, शोध सहयोग और जनसांख्यिकी विशेषज्ञों के वैश्विक नेटवर्क निर्माण में उल्लेखनीय योगदान के लिए सम्मानित किया गया।
डॉ. जेजीभॉय ने कहा कि “बदलती जनसांख्यिकीय परिस्थितियों—जैसे वृद्ध होती आबादी से लेकर जलवायु-जनित प्रवासन तक—स्वतंत्र और सशक्त शोध की आवश्यकता पहले से अधिक है।”

IASP सम्मेलन में भारत की युवा शक्ति पर फोकस

27–29 नवंबर 2025 को आयोजित IASP के 46वें वार्षिक सम्मेलन का थीम था—“पीपुल, प्लेनेट, प्रॉस्पेरिटी: डेमोग्राफिक ड्राइवर्स ऑफ इंडिया’s इंक्लूसिव ग्रोथ”

सम्मेलन में भारत की विशाल युवा आबादी का उपयोग समावेशी और सतत विकास के लिए कैसे किया जाए, इस पर विस्तृत चर्चा हुई। यह आयोजन IASP, राष्ट्रीय एटलस एवं थीमैटिक मैपिंग संगठन (NATMO) तथा भारतीय मानव विज्ञान सर्वेक्षण (AnSI) द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित किया गया।

सम्मान समारोह में विशेष अतिथि

सम्मान कार्यक्रम में निम्न प्रमुख हस्तियाँ उपस्थित रहीं:

  • प्रो. के. एन. सिंह, कुलपति, दक्षिण बिहार केंद्रीय विश्वविद्यालय (मुख्य अतिथि)

  • श्री विजय भारती, आईएएस, सचिव, पश्चिम बंगाल सरकार (गेस्ट ऑफ ऑनर)

  • प्रो. ए. पी. सिंह, महानिदेशक, राष्ट्रीय पुस्तकालय, कोलकाता (विशेष अतिथि)

UNFPA इंडिया प्रतिनिधि एंड्रिया एम. वोजनार ने मुख्य वक्तव्य दिया, जिसमें उन्होंने जनसंख्या गतिशीलता, जलवायु परिवर्तन और समान विकास के बीच संबंधों पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि भारत के पास अपनी विशाल युवा आबादी को सतत विकास के लिए एक जनसांख्यिकीय अवसर में बदलने का महत्वपूर्ण मौका है।

डेटा और सबूत-आधारित नीतियों का महत्व

सम्मेलन में यह रेखांकित किया गया कि भारत की जनसांख्यिकीय चुनौतियों से निपटने के लिए अधिकार-आधारित दृष्टिकोण अपनाना आवश्यक है। नीतियों का फोकस होना चाहिए:

  • प्रजनन स्वास्थ्य

  • युवाओं की भलाई

  • समावेशी और टिकाऊ विकास

इसके लिए सटीक और विश्वसनीय जनसांख्यिकीय डेटा तैयार करना अत्यंत महत्वपूर्ण है, ताकि ऐसी नीतियाँ बनाई जा सकें जो किसी को भी पीछे न छोड़ें।

UNFPA के बारे में

UNFPA संयुक्त राष्ट्र की यौन और प्रजनन स्वास्थ्य एजेंसी है। इसका उद्देश्य है कि हर गर्भावस्था इच्छा से हो, हर प्रसव सुरक्षित हो, और हर युवा अपनी पूरी क्षमता तक पहुँच सके। UNFPA प्रजनन अधिकारों, परिवार नियोजन, मातृ स्वास्थ्य, और व्यापक यौन शिक्षा को बढ़ावा देकर दुनिया भर में स्वस्थ, सशक्त और समानता-आधारित समाज बनाने में योगदान देता है।

भारत 2025-29 के कार्यकाल के लिए यूनेस्को के कार्यकारी बोर्ड में फिर से चुना गया

भारत ने एक बार फिर युनेस्को (UNESCO) के कार्यकारी बोर्ड में 2025–2029 अवधि के लिए सीट हासिल की है। यह उपलब्धि वैश्विक मंचों पर भारत की बढ़ती नेतृत्व क्षमता, शिक्षा–संस्कृति–विज्ञान–संचार जैसे क्षेत्रों में बहुपक्षीय सहयोग के प्रति उसकी प्रतिबद्धता और युनेस्को के एजेंडा में उसके सार्थक योगदान की अंतरराष्ट्रीय सराहना को दर्शाती है। यह घोषणा भारत के स्थायी प्रतिनिधि मंडल द्वारा की गई।

UNESCO Executive Board क्या है?

UNESCO के तीन संवैधानिक अंगों में से एक कार्यकारी बोर्ड संगठन के कामकाज के केंद्र में है। इसकी प्रमुख भूमिकाएँ शामिल हैं—

  • जनरल कॉन्फ़्रेंस द्वारा लिए गए निर्णयों की निगरानी

  • कार्य कार्यक्रम और बजट तैयार करना

  • रणनीति एवं नीतिगत दिशा तय करना

  • 58 सदस्य देशों से मिलकर बना यह बोर्ड सुनिश्चित करता है कि UNESCO के निर्णय प्रभावी ढंग से लागू हों।

भारत की वैश्विक भूमिका और महत्व

भारत का पुनर्निर्वाचन उसकी सॉफ्ट पावर, वैश्विक सहयोग और विकास-उन्मुख दृष्टिकोण की मान्यता है। भारत लंबे समय से UNESCO के कई महत्वपूर्ण विषयों को आगे बढ़ाता रहा है—

  • सभी के लिए शिक्षा और डिजिटल लर्निंग

  • अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर का संरक्षण

  • बहुभाषिकता और समावेशी संचार को बढ़ावा

  • विज्ञान एवं स्वदेशी ज्ञान प्रणालियों में सहयोग

  • सतत विकास, शांति और अंतरराष्ट्रीय साझेदारी

यह भारत की उस सोच को भी मजबूत करता है जिसमें मानव-केंद्रित और समावेशी विकास मॉडल को केंद्रीय स्थान दिया गया है।

यह उपलब्धि क्यों महत्वपूर्ण है?

कार्यकारी बोर्ड में भारत की मजबूत उपस्थिति से वैश्विक स्तर पर कई महत्वपूर्ण क्षेत्रों में उसका प्रभाव बढ़ेगा—

  • वैश्विक शिक्षा नीतियाँ, विशेषकर डिजिटल समानता और मूलभूत साक्षरता

  • भारतीय विरासत स्थलों को यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज में बढ़ती मान्यता

  • जलवायु परिवर्तन, सतत विकास और डिजिटल एथिक्स पर वैज्ञानिक सहयोग

  • मीडिया स्वतंत्रता, सूचना तक पहुँच और SDG-16 के उद्देश्यों को बढ़ावा

  • वैश्विक दक्षिण (South–South Cooperation) के देशों के लिए मजबूत आवाज

भारत की दृष्टि: मानव-केंद्रित और समावेशी विकास

भारत की विकास नीति निम्न सिद्धांतों पर आधारित है—

  • शिक्षा व डिजिटल पहुंच में समानता

  • विविध ज्ञान प्रणालियों व संस्कृति का संरक्षण

  • लैंगिक समानता और युवा सशक्तिकरण

  • सीमापार सहयोग व वैश्विक शांति की भावना

भारत मानता है कि जलवायु परिवर्तन, डिजिटल विभाजन और सांस्कृतिक एकरूपता जैसी चुनौतियों का सामना केवल साझी वैश्विक जिम्मेदारी से किया जा सकता है।

UNESCO में भारत के प्रमुख योगदान

भारत ने पहले भी UNESCO के कई महत्वपूर्ण कार्यक्रमों में योगदान दिया है—

  • MGIEP (महात्मा गांधी इंस्टीट्यूट ऑफ एजुकेशन फॉर पीस एंड सस्टेनेबल डेवलपमेंट) की स्थापना

  • रामप्पा मंदिर, कुम्भ मेला, कोलकाता की दुर्गा पूजा जैसे विश्व धरोहर स्थलों को मान्यता दिलाना

  • अंतरराष्ट्रीय मिलेट वर्ष 2023 को आगे बढ़ाना

  • विश्व दर्शन दिवस, मातृभाषा दिवस और शिक्षक दिवस जैसे अभियानों में सक्रिय भूमिका

पुनर्निर्वाचन से भारत को इन पहलों को और आगे ले जाने और नए क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने का अवसर मिलेगा।

मुख्य बिंदु 

  • संगठन: UNESCO

  • भूमिका: कार्यकारी बोर्ड सदस्य (2025–2029)

  • कुल सदस्य: 58

  • भारत का फोकस: शिक्षा, संस्कृति, विज्ञान, संचार व सूचना

  • बहुपक्षीय दृष्टिकोण: समावेशी, मानव-केंद्रित वैश्विक विकास

  • भारत द्वारा संचालित प्रमुख UNESCO परियोजनाएँ: MGIEP, विश्व धरोहर स्थल, डिजिटल लर्निंग, स्वदेशी संस्कृति संरक्षण

भारत-ADB के बीच 800 मिलियन डॉलर के तीन समझौते, जानें सबकुछ

भारत सरकार ने 29 नवंबर 2025 को एशियाई विकास बैंक (ADB) के साथ 800 मिलियन डॉलर से अधिक के ऋण और 1 मिलियन डॉलर के अनुदान सहित महत्वपूर्ण वित्तीय समझौतों पर हस्ताक्षर किए। यह धनराशि महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, गुजरात और असम में सतत विकास से जुड़े परियोजनाओं के लिए निर्धारित की गई है। इन समझौतों में अवसंरचना सुधार, स्वच्छ ऊर्जा को बढ़ावा, कौशल विकास और पर्यावरण संरक्षण का संतुलित समन्वय दिखाई देता है, जो इन राज्यों की आर्थिक और सामाजिक प्रगति को नई दिशा देने वाला है।

पृष्ठभूमि और संदर्भ

भारत और एशियाई विकास बैंक (ADB) के बीच दीर्घकालिक विकास साझेदारी समावेशी और सतत विकास पर आधारित रही है। हाल ही में हुए ये समझौते बिल्कुल समयानुकूल हैं, क्योंकि ये भारत की नीतिगत प्राथमिकताओं — नवीकरणीय ऊर्जा, स्मार्ट शहरी परिवहन, युवाओं के कौशल विकास और पारिस्थितिक पुनर्स्थापन — के साथ पूरी तरह मेल खाते हैं।
ADB का वित्तीय सहयोग भारत की परियोजना क्रियान्वयन क्षमता और विकास प्राथमिकताओं पर वैश्विक विश्वास को भी दर्शाता है।

परियोजना-वार अवलोकन

महाराष्ट्र: कृषि सौर ऊर्जाकरण

महाराष्ट्र के लिए 500 मिलियन डॉलर का ऋण महाराष्ट्र पावर डिस्ट्रीब्यूशन एन्हांसमेंट प्रोग्राम के तहत कृषि सौर ऊर्जाकरण को बढ़ावा देने के लिए दिया गया है। इस परियोजना का लक्ष्य 2028 तक लगभग 9 लाख किसानों को दिन के समय सौर ऊर्जा आधारित सिंचाई उपलब्ध कराना है, जिससे डीज़ल पर निर्भरता कम होगी और कृषि उत्पादकता बढ़ेगी।

मुख्य विशेषताएँ:

  • सबस्टेशनों और ट्रांसफॉर्मरों का उन्नयन

  • नई हाई- और लो-टेंशन लाइनों का निर्माण

  • 500 MWh बैटरी स्टोरेज क्षमता की स्थापना

यह पहल स्वच्छ ऊर्जा और कृषि लचीलापन बढ़ाने में महत्वपूर्ण कदम है।

मध्य प्रदेश: इंदौर मेट्रो रेल परियोजना

¥27.1 बिलियन (लगभग 190.6 मिलियन डॉलर) का ऋण इंदौर मेट्रो परियोजना को वित्तपोषित करेगा। इसमें 8.62 किमी लंबा भूमिगत कॉरिडोर और सात स्टेशन शामिल होंगे, जो शहर के प्रमुख हिस्सों को जोड़ते हुए हवाईअड्डे तक बेहतर कनेक्टिविटी प्रदान करेगा।

परियोजना से अपेक्षित लाभ:

  • शहरी जाम में कमी

  • बस और फीडर सेवाओं के साथ एकीकृत परिवहन

  • जनवरी 2030 से संचालन की संभावित शुरुआत

तेज़ी से बढ़ते शहर इंदौर के लिए यह एक महत्वपूर्ण शहरी गतिशीलता सुधार होगा।

गुजरात: कौशल विकास कार्यक्रम

गुजरात के लिए 109.97 मिलियन डॉलर का ऋण उच्च मांग वाले क्षेत्रों में कार्यबल को उन्नत बनाने पर केंद्रित है, जैसे—

  • आईटी और मैन्युफैक्चरिंग

  • लॉजिस्टिक्स और ऑटोमोबाइल

  • नवीकरणीय ऊर्जा, स्वास्थ्य सेवाएँ और एग्री-टेक

परियोजना के तहत:

  • 11 मेगा आईटीआई का उन्नयन

  • सेंटर ऑफ एक्सीलेंस की स्थापना

  • कौशल्या: द स्किल यूनिवर्सिटी (KSU) के साथ हब-एंड-स्पोक मॉडल का निर्माण

पाठ्यक्रम सीधे उद्योगों के सहयोग से तैयार किए जाएंगे ताकि युवाओं की रोजगार क्षमता बढ़ सके।

असम: वेटलैंड और मत्स्य क्षेत्र का रूपांतरण

असम के लिए 1 मिलियन डॉलर की तकनीकी सहायता अनुदान SWIFT परियोजना के लिए दी गई है। इसका उद्देश्य बिलों (वेटलैंड्स) का पुनर्जीवन और मछली पालन को टिकाऊ आजीविका प्रणाली में बदलना है।

परियोजना के लक्ष्य:

  • 4,000 हेक्टेयर से अधिक वेटलैंड मत्स्य क्षेत्रों का पुनर्स्थापन

  • स्वदेशी मछली उत्पादन में वृद्धि

  • भूजल पुनर्भरण और बाढ़ प्रबंधन में सुधार

  • स्थानीय शासन और मछुआ समुदाय की भागीदारी को सुदृढ़ करना

यह पहल पर्यावरण संरक्षण और आजीविका संवर्धन का उत्कृष्ट संयोजन प्रस्तुत करती है।

वैश्विक मंच पर भारतीय कॉफी का उदय

भारत की कॉफी यात्रा 1600 के दशक में शुरू हुई, जब सूफी संत बाबा बुद्धान यमन के मोचा बंदरगाह से सात कॉफी के बीज छुपाकर भारत लाए और उन्हें कर्नाटक के बाबा बुद्धान गिरी पहाड़ियों में रोप दिया। एक छोटे से प्रयोग के रूप में शुरू हुई यह खेती धीरे-धीरे एक मजबूत और टिकाऊ उद्योग में बदल गई, जो आज 20 लाख से अधिक लोगों की आजीविका का आधार है। वर्तमान में कॉफी लगभग 4.91 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में उगाई जाती है, मुख्यतः पश्चिमी और पूर्वी घाटों में, जहाँ इसे छायादार और पर्यावरण-अनुकूल प्रणाली के तहत उगाया जाता है। आज भारत विश्व में उत्पादन के मामले में सातवें स्थान पर है, वैश्विक कॉफी उत्पादन में 3.5% का योगदान करता है, और इसकी लगभग 70% कॉफी 128 देशों को निर्यात की जाती है।

भारत का कॉफी परिदृश्य: प्रमुख राज्य और किस्में

भारत में कॉफी की खेती मुख्य रूप से कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु में केंद्रित है, जो कुल उत्पादन का लगभग 96% हिस्सा देते हैं। वर्ष 2025–26 में कर्नाटक ने 2.8 लाख मीट्रिक टन से अधिक उत्पादन के साथ शीर्ष स्थान बनाए रखा। शेष उत्पादन आंध्र प्रदेश, ओडिशा और पूर्वोत्तर भारत जैसे गैर-पारंपरिक क्षेत्रों से आता है, जहाँ कॉफी आदिवासी आजीविका और पर्यावरण संरक्षण का नया साधन बन रही है।

भारत की विविध भौगोलिक स्थितियाँ विभिन्न प्रकार की कॉफी को जन्म देती हैं—

  • अरेबिका: ठंडे पहाड़ी इलाकों में उगती है।

  • रोबस्टा: गर्म, आर्द्र क्षेत्रों में पनपती है और वैश्विक बाजार में उच्च प्रीमियम प्राप्त करती है।

स्पेशलिटी और GI-टैग्ड कॉफी: वैश्विक पहचान

भारत को पाँच क्षेत्रीय और दो विशेष कॉफी प्रकारों के लिए भौगोलिक संकेत (GI) टैग प्राप्त हैं, जिससे इनकी बाजार कीमत बढ़ती है। इनमें शामिल हैं—

  • कूर्ग, चिकमगलूर व बाबा-बुढ़नगिरि अरेबिका कॉफी

  • वायनाड रोबस्टा कॉफी

  • अराकू वैली अरेबिका कॉफी

  • विशेष कॉफी: मॉनसून्ड मालाबार रोबस्टा, मैसूर नगेट्स एक्स्ट्रा बोल्ड, रोबस्टा कापी रॉयल

इन कॉफियों को उनकी सुगंध, कम अम्लता और जटिल स्वाद प्रोफाइल के लिए वैश्विक स्तर पर सराहा जाता है।

कॉफी बोर्ड: भारतीय कॉफी क्षेत्र की रीढ़

1942 के कॉफी एक्ट के तहत गठित कॉफी बोर्ड ऑफ इंडिया अनुसंधान, गुणवत्ता सुधार और निर्यात प्रोत्साहन का प्रमुख संस्थान है। यह इंटीग्रेटेड कॉफी डेवलपमेंट प्रोजेक्ट (ICDP) के माध्यम से बुनियादी ढाँचे के विकास का समन्वय करता है, जिसके मुख्य लक्ष्य हैं—

  • छोटे किसानों को सहायता

  • वैश्विक व्यापार मेलों में भागीदारी

  • भारतीय ब्रांडों को विदेशों में बढ़ावा

  • निर्यात प्रोत्साहन योजना के तहत माल ढुलाई सब्सिडी

बोर्ड का CCRI अनुसंधान केंद्र उच्च-उपज, कीट-प्रतिरोधी किस्में विकसित करता है और बेहतर खेती तकनीकें तैयार करता है।

कॉफी निर्यात: बढ़ती वैश्विक मांग

भारत कॉफी निर्यात में विश्व में पाँचवें स्थान पर है और वैश्विक निर्यात में लगभग 5% का योगदान देता है। FY 2024–25 में भारत के कॉफी निर्यात 1.8 बिलियन अमेरिकी डॉलर के रिकॉर्ड स्तर पर पहुँच गए, जिनमें से 38% हिस्सा इंस्टेंट कॉफी उत्पादों का था।

मुख्य निर्यात बाज़ार—

  • इटली (18.09%)

  • जर्मनी (11.01%)

  • बेल्जियम, रूस, यूएई

निर्यात में यह सफल वृद्धि किसानों की आय बढ़ाती है और भारत की ब्रांड पहचान को मजबूत करती है।

मुख्य व्यापार सुधार और समझौते

GST सुधार

कॉफी एक्सट्रैक्ट्स और इंस्टेंट कॉफी पर GST 18% से घटाकर 5% करने से कीमतें लगभग 12% कम हुईं और खपत तथा प्रतिस्पर्धा दोनों में बढ़ोतरी हुई।

भारत–यूके CETA

इस समझौते ने भारतीय इंस्टेंट और रोस्टेड कॉफी को ड्यूटी-फ्री पहुंच प्रदान की, जिससे यूरोपीय आपूर्तिकर्ताओं के मुकाबले प्रतिस्पर्धा बढ़ी।

भारत–EFTA TEPA

अक्टूबर 2025 से लागू यह समझौता स्विट्ज़रलैंड, नॉर्वे और आइसलैंड में भारतीय कॉफी पर आयात शुल्क समाप्त करता है, जिससे उच्च मूल्य वाले बाजार खुलते हैं।

कोरापुट कॉफी और TDCCOL: आदिवासी सशक्तिकरण

ओडिशा का कोरापुट जिला उच्च गुणवत्ता वाली अरेबिका कॉफी के लिए नया उभरता केंद्र है। TDCCOL (राज्य की आदिवासी सहकारी संस्था) के सहयोग से—

  • किसानों के घर-घर से खरीद और उचित मूल्य सुनिश्चित

  • 2019 में “कोरापुट कॉफी” ब्रांड लॉन्च

  • आदिवासी कॉफी संस्कृति को बढ़ावा देने हेतु 8 कैफ़े स्थापित

  • 2024 में दो फाइन कप अवार्ड प्राप्त

इन पहलों ने आदिवासी किसानों को सशक्त बनाया, पलायन कम किया और स्थानीय रोजगार बढ़ाया।

आगे का रास्ता: भारत की कॉफी का भविष्य

भारत का कॉफी बाजार 2028 तक 8.9% CAGR से बढ़ने की संभावना है। आउट-ऑफ-होम कैफ़े उद्योग 15–20% की वृद्धि के साथ $2.6–3.2 बिलियन तक पहुँच सकता है। कॉफी बोर्ड का लक्ष्य 2047 तक उत्पादन को 9 लाख टन तक तीन गुना करना है—जो उच्च गुणवत्ता और वैश्विक प्रतिस्पर्धा पर आधारित महत्वाकांक्षी भविष्य का संकेत है।

स्टैटिक GK पॉइंट्स

  • कॉफी बोर्ड ऑफ इंडिया: 1942 में कॉफी एक्ट VII के तहत गठन

  • बाबा बुद्धान: 1600 के दशक में यमन से कॉफी भारत लाए

  • GI-टैग्ड कॉफी: कूर्ग अरेबिका, वायनाड रोबस्टा, चिकमगलूर अरेबिका, अराकू वैली अरेबिका, बाबा-बुढ़नगिरि अरेबिका

  • स्पेशलिटी कॉफी: मॉनसून्ड मालाबार, मैसूर नगेट्स एक्स्ट्रा बोल्ड, रोबस्टा कापी रॉयल

  • भारत की रैंक: उत्पादन में 7वां, निर्यात में 5वां

  • शीर्ष उत्पादक राज्य: कर्नाटक

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