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विश्व आर्द्रभूमि दिवस 2023: जानें थीम, महत्व और इतिहास

विश्व आर्द्रभूमि दिवस 2023: जानें थीम, महत्व और इतिहास |_3.1

विश्व आर्द्रभूमि दिवस (World Wetlands Day) प्रत्येक साल 2 फरवरी को पूरी दुनिया में मनाया जाता है। इस दिवस का मुख्य उद्देश्य ग्लोबल वार्मिंग का सामना करने में आर्द्रभूमि जैसे दलदल तथा मंग्रोव के महत्व के बारे में जागरूकता फैलाना है।

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आर्द्रभूमि दुनिया के कुछ सबसे नाजुक और संवेदनशील पारिस्थितिक तंत्र हैं जो पौधों और जानवरों के लिए अद्वितीय आवासों का समर्थन करते हैं, तथा दुनिया भर में लाखों लोगों को आजीविका प्रदान करते हैं। इस दिवस का आयोजन लोगों और हमारे ग्रह हेतु आर्द्रभूमि की महत्त्वपूर्ण भूमिका के बारे में वैश्विक जागरूकता बढ़ाने हेतु किया जाता है।

 

विश्व आर्द्रभूमि दिवस थीम 2023

 

हर साल डब्ल्यूडब्ल्यूडी को आर्द्रभूमि के मूल्य के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए एक विशिष्ट विषय के साथ मनाया जाता है। इस वर्ष (World Wetlands Day) विश्व आर्द्रभूमि दिवस 2023 का विषय “वेटलैंड रेस्टोरेशन” है। इस साल का अभियान लोगों को आर्द्रभूमि के समर्थन में कार्रवाई करने के लिए प्रेरित करने पर है। आर्द्रभूमि गायब हो रही है और हमें वित्तीय, मानव और राजनीतिक संसाधनों का उपयोग करके उनके संरक्षण और बहाली में संलग्न होने की आवश्यकता है।

 

यह दिवस पहली बार कब मनाया गया?

 

विश्व आर्द्रभूमि दिवस पहली बार 02 फरवरी, 1997 को रामसर सम्मलेन के 16 वर्ष पूरे होने पर मनाया गया था। यह दिवस साल 1997 से प्रतिवर्ष मनाया जाता है। नमी या दलदली भूमि वाले क्षेत्र को आर्द्रभूमि या वेटलैंड कहा जाता है।

 

यह दिवस 2 फरवरी को ही क्यों मनाया जाता है?

 

02 फरवरी, 1971 को कैस्पियन सागर के तट पर ईरानी शहर रामसर में वेटलैंड्स पर कन्वेंशन को अपनाने की तारीख को चिह्नित करने हेतु यह दिवस मनाया जाता है। विश्व आर्द्रभूमि दिवस पहली बार साल 1997 में मनाया गया था।

 

आर्द्रभूमि क्या हैं?

 

आर्द्रभूमि एक ऐसा स्थान है जहां पौधे और पशु प्रजातियों की घनी विविधता पाई जाती है और ये जैव विविधता से भी समृद्ध होता हैं। ये ऐसे भूमि क्षेत्र हैं जो हमेशा या मौसम में संतृप्त या जलमंगन रहते हैं। आर्द्रभूमि जल को प्रदूषण से मुक्त बनाती है।

आर्द्रभूमि वह क्षेत्र है जो सालों भर आंशिक रूप से या पूर्णतः जल से भरा रहता है। भारत में आर्द्रभूमि ठंडे एवं शुष्क इलाकों से लेकर मध्य भारत के कटिबंधीय मानसूनी इलाकों तथा दक्षिण के नमी वाले इलाकों तक फैली हुई है।

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