संयुक्त राष्ट्र (UN) में भारत की मतदान प्रवृत्ति में हाल के वर्षों में उल्लेखनीय परिवर्तन देखने को मिला है। विशेष रूप से 2025 में मतदान से दूरी ऐतिहासिक उच्च स्तर पर पहुंच गई, जो भारत की विदेश नीति में एक नए चरण की शुरुआत को दर्शाता है। यह बदलाव एक ध्रुवीकृत वैश्विक व्यवस्था के प्रति भारत की रणनीतिक प्रतिक्रिया है, जिसमें वह अपनी रणनीतिक स्वायत्तता बनाए रखते हुए एक अधिक मुखर और संतुलित वैश्विक शक्ति के रूप में उभरने का प्रयास कर रहा है।
भारत ने 1946 से अब तक 5,500 से अधिक UN प्रस्तावों पर मतदान किया है, जिनमें समय के साथ उसका रुख काफी बदला है:
1946–1960 के दशक के अंत तक: अत्यधिक अस्थिर मतदान पैटर्न; ‘हाँ’ (Yes) मत 20% से 100% तक के बीच रहे, जबकि मतदान से दूरी में भारी उतार-चढ़ाव देखा गया।
1970–1994: अधिक स्थिरता के संकेत; ‘हाँ’ मत 74%–96% तक और मतदान से दूरी 8%–19% के बीच रही।
1995–2019: एक परिपक्व और स्थिर चरण; ‘हाँ’ मत 75%–83%, जबकि Abstentions 10%–17% के दायरे में रहे।
2019 के बाद: नया मोड़; 2025 तक ‘हाँ’ मत घटकर 56% रह गया, जबकि मतदान से दूरी बढ़कर 44% हो गई — 1955 के बाद का सबसे ऊंचा स्तर।
यह प्रवृत्ति भारत के एक गुटनिरपेक्ष पर्यवेक्षक से रणनीतिक रूप से स्वायत्त अभिनेता बनने की दिशा में संक्रमण को दर्शाती है, जो अपने हितों को प्राथमिकता देते हुए वैश्विक मंच पर अधिक परिपक्व और सुसंगत नीति अपना रहा है।
आज की वैश्विक व्यवस्था में प्रमुख शक्तियों—जैसे अमेरिका, चीन और रूस—के बीच गहरी विभाजक रेखाएं उभर चुकी हैं, जिससे संयुक्त राष्ट्र में आम सहमति बनाना कठिन हो गया है। भारत किसी एक खेमे में शामिल होने के बजाय तटस्थ रहने को प्राथमिकता देता है, जिससे उसकी स्वतंत्र विदेश नीति की छवि बनी रहती है।
आधुनिक UN प्रस्ताव अक्सर बहुआयामी और विरोधाभासी होते हैं, जिन्हें राजनयिक कभी-कभी “क्रिसमस ट्री प्रस्ताव” (Christmas trees) कहते हैं — यानी जिनमें हर किसी के लिए कुछ न कुछ जोड़ा गया होता है। ऐसे प्रस्तावों पर मतदान से दूरी अपनाकर भारत विवादास्पद या अस्पष्ट प्रावधानों का समर्थन या विरोध करने से बचता है।
आज के दौर में मतदान से दूरी को निर्णयहीनता नहीं, बल्कि भारत के संप्रभु राजनयिक विवेक का प्रतीक माना जाता है। इससे भारत अपनी रणनीतिक लचीलापन बनाए रखते हुए द्विपक्षीय हितों की रक्षा कर सकता है, बिना किसी प्रमुख सहयोगी देश को नाराज़ किए।
स्वतंत्रता का संकेत: मतदान से दूरी भारत की स्वतंत्र विदेश नीति और आधुनिक संदर्भ में गुटनिरपेक्षता के सिद्धांतों के साथ उसकी निरंतरता को दर्शाती है।
राजनयिक संतुलन साधना: भारत संवेदनशील वैश्विक मुद्दों जैसे रूस-यूक्रेन संघर्ष, म्यांमार संकट या इज़राइल-फिलिस्तीन विवाद पर पक्ष लेने से बचता है, जिससे संतुलन बनाए रखता है।
वैश्विक छवि पर जोखिम: हालांकि यह रणनीति भारत को लचीलापन देती है, लेकिन कुछ सहयोगी देशों द्वारा इसे मानवाधिकारों या सुरक्षा मामलों पर प्रतिबद्धता की कमी के रूप में भी देखा जा सकता है।
इस तरह, भारत की नई मतदान रणनीति एक परिपक्व, संतुलित और स्वायत्त विदेश नीति की ओर उसके संक्रमण को स्पष्ट रूप से दर्शाती है।
हालांकि विश्लेषण में किसी विशेष प्रस्ताव का नाम नहीं लिया गया है, भारत की मतदान से दूरी (abstention) की रणनीति कुछ प्रमुख अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर विशेष रूप से देखने को मिली है—
रूस-यूक्रेन युद्ध से जुड़े प्रस्तावों में
म्यांमार और चीन में मानवाधिकार उल्लंघन पर प्रस्तावों में
इज़राइल-फिलिस्तीन संघर्ष से संबंधित बहसों में
इन सभी मामलों में भारत ने मतदान से दूरी अपनाकर अपने प्रमुख रणनीतिक साझेदारों के साथ संबंध बनाए रखे, जबकि साथ ही साथ कुछ मुद्दों पर अपनी चिंताओं का संकेत भी दिया। यह संतुलन भारत के दीर्घकालिक कूटनीतिक हितों के अनुरूप है।
भारत की यह “रणनीतिक दूरी” की नीति निकट भविष्य में भी जारी रहने की संभावना है, विशेष रूप से तब तक जब तक भारत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) की स्थायी सदस्यता के लिए प्रयासरत है और एक मध्यम शक्ति (Middle Power) के रूप में अपनी भूमिका को मजबूत कर रहा है।
यह दृष्टिकोण भारत को वैश्विक संबंधों में एक संतुलनकारी शक्ति के रूप में स्थापित करता है — जो अंतरराष्ट्रीय मंचों पर सक्रिय रूप से भागीदारी करता है, लेकिन बिना किसी पक्षपात या संप्रभु हितों से समझौता किए।
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