कर्मचारियों को डिजिटल थकान (Digital Burnout) से बचाने के उद्देश्य से NCP की सांसद सुप्रिया सुले ने 6 दिसंबर 2025 को लोकसभा में राइट टू डिसकनेक्ट बिल, 2025 पेश किया। यह विधेयक कर्मचारियों को कानूनी अधिकार देता है कि वे ऑफिस समय के बाद या छुट्टियों पर काम से जुड़े कॉल, ईमेल और संदेशों का जवाब देने से इंकार कर सकें — और इसके लिए उन पर कोई अनुशासनात्मक कार्रवाई न की जाए।
यह बिल ऐसे समय आया है जब वर्क-फ्रॉम-होम और डिजिटल संचार ने निजी और पेशेवर जीवन की सीमाएँ धुंधली कर दी हैं, जिससे टेलीप्रेशर, तनाव, और नींद से जुड़ी समस्याएँ बढ़ रही हैं।
राइट टू डिसकनेक्ट बिल क्या है?
राइट टू डिसकनेक्ट बिल, 2025 का उद्देश्य कर्मचारियों को यह कानूनी अधिकार देना है कि वे आधिकारिक कार्य समय के बाहर ऑफिस की डिजिटल बातचीत से disconnect कर सकें। यह काम और निजी जीवन के बीच स्पष्ट सीमाएँ स्थापित करता है।
राइट टू डिस्कनेक्ट बिल में क्या है?
बिल में प्रावधान है कि किसी भी नॉन-कम्प्लायंस के लिए एंटिटीज (कंपनियों या सोसाइटीज) पर उनके एम्प्लॉइज की टोटल सैलरी का 1 परसेंट का जुर्माना लगाया जाना चाहिए। यह बिल हर एम्प्लॉई को काम से जुड़े इलेक्ट्रॉनिक कम्युनिकेशन से डिस्कनेक्ट करने का अधिकार देता है। इसका मतलब है कि कर्मचारी ऑफिस टाइम के बाद बॉस के फोन या ईमेल से मुक्त रहने का अधिकार देता है। सामान्य शब्दों में कर्मचारियों को ऑफिस टाइम के बाद बॉस के फोन या ईमेल का जवाब देने से कानूनी रूप से फ्री हो जाएंगे।
मुख्य प्रावधान (Key Provisions)
• कर्मचारियों को ऑफिस समय के बाद या छुट्टी के दिन आधिकारिक संदेशों या कॉल का जवाब देने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता।
• यदि कर्मचारी जवाब नहीं देते, तो उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होगी।
• यह नियम हर प्रकार के संचार पर लागू होगा — कॉल, टेक्स्ट, ईमेल, वीडियो मीटिंग आदि।
• आपातकालीन स्थिति के लिए कर्मचारी और नियोक्ता आपसी सहमति से नियम तय कर सकते हैं।
• यदि कर्मचारी ऑफिस समय के बाद काम करना चाहते हैं, तो उन्हें सामान्य वेतन दर पर ओवरटाइम भुगतान देने का सुझाव है।
प्रस्तावित दंड
बिल के अनुसार, यदि कोई संगठन इन नियमों का उल्लंघन करता है, तो उस पर कर्मचारी के कुल वेतन के 1% तक का जुर्माना लगाया जा सकता है। इसका उद्देश्य कंपनियों को ऑफिस आवर्स के बाद कर्मचारियों पर दबाव डालने से रोकना है।
आपातकालीन संचार नियम
बिल बिल्कुल कठोर नहीं है — यह वास्तविक आपात स्थितियों के लिए लचीला है। नियोक्ता और कर्मचारी आपसी सहमति से तय कर सकते हैं कि आपातकालीन स्थितियों में किस प्रकार का संचार स्वीकार्य होगा। कई कार्यस्थलों में इस उद्देश्य से एक समिति बनाने का प्रावधान है, जिससे कंपनी की आवश्यकताओं और कर्मचारियों की भलाई के बीच संतुलन बनाया जा सके।
यह बिल क्यों महत्वपूर्ण है?
बिल के साथ जारी वक्तव्य में डिजिटल ओवररीच के कई नकारात्मक प्रभावों का उल्लेख किया गया है, जैसे:
• नींद की कमी और थकान
• भावनात्मक थकावट और चिंता
• टेलीप्रेशर — तुरंत जवाब देने के दबाव का तनाव
• “इन्फो-ओबेसिटी” — अत्यधिक डिजिटल जानकारी का बोझ
भारत में 48 घंटे प्रति सप्ताह कार्य समय है — जो दुनिया के सबसे लंबे वर्कवीक में से एक है।
डिजिटल टूल्स ने काम आसान बनाया है, लेकिन इससे “हमेशा उपलब्ध” रहने की संस्कृति विकसित हो गई है, जो मानसिक स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है।
पृष्ठभूमि: दोबारा प्रयास
यह पहला मौका नहीं है जब सुप्रिया सुले ने यह मुद्दा उठाया है। इसके पहले एक समान बिल 2019 में पेश किया गया था, पर वह आगे नहीं बढ़ सका। महामारी के बाद रिमोट वर्किंग और डिजिटल कार्य-संस्कृति बढ़ने के कारण 2025 का संस्करण अधिक जरूरी और लोकप्रिय माना जा रहा है।
वैश्विक संदर्भ
दुनिया के कई देशों — जैसे फ्रांस, इटली, और फिलीपींस — ने पहले ही ऐसा कानून लागू किया है। फ्रांस ने 2017 में 50 से अधिक कर्मचारियों वाली सभी कंपनियों के लिए आफ्टर-ऑफिस संचार पर नीति बनाना अनिवार्य कर दिया था। भारत का प्रस्ताव अब वैश्विक ट्रेंड के अनुरूप है, जो डिजिटल युग में मानसिक स्वास्थ्य और निजी समय की रक्षा पर केंद्रित है।
संक्षिप्त मुख्य बिंदु
• बिल पेश करने वाली: सुप्रिया सुले, NCP सांसद
• तारीख: 6 दिसंबर 2025
• प्रकार: प्राइवेट मेंबर बिल
• उद्देश्य: ऑफिस समय के बाद काम से जुड़े संचार की उपेक्षा करने का कर्मचारियों का अधिकार
• दंड: कर्मचारी के कुल वेतन का 1%
• शामिल संचार: कॉल, टेक्स्ट, ईमेल, वीडियो कॉल
• आपातकालीन नियम: परस्पर सहमति के आधार पर


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