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प्रसिद्ध कन्नड़ उपन्यासकार डॉ. एस. एल. भैरप्पा का 94 वर्ष की आयु में निधन

डॉ. एस. एल. भैरप्पा, भारत के सबसे प्रतिष्ठित और विचारोत्तेजक कन्नड़ लेखक, का 24 सितंबर 2025 को बेंगलुरु में 94 वर्ष की आयु में निधन हो गया। वे आयु संबंधी स्वास्थ्य समस्याओं के इलाज के दौरान एक निजी अस्पताल में दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया। इस साहित्यिक महापुरुष के निधन के साथ भारतीय साहित्य के एक समृद्ध और अक्सर विवादास्पद अध्याय का अंत हो गया। भैरप्पा के उपन्यासों ने लगातार सीमाओं को चुनौती दी, बौद्धिक विमर्श को प्रोत्साहित किया और भारतीय इतिहास, पहचान और सामाजिक संरचनाओं पर गंभीर विचार प्रस्तुत किए। उनका साहित्यिक योगदान छह दशकों से अधिक समय तक फैला और उन्होंने पाठकों और विद्वानों की कई पीढ़ियों को गहराई से प्रभावित किया।

साहित्यिक विरासत

डॉ. एस. एल. भैरप्पा ने 25 से अधिक उपन्यास लिखे, जिनमें से कई कन्नड़ साहित्य के केंद्र में बने हुए हैं और जिन्हें कई भारतीय एवं विदेशी भाषाओं में अनुवादित किया गया है।

प्रमुख कृतियाँ:

  • वंशवृक्ष

  • पर्व

  • दातु

  • गृहभंग

  • आवरण

  • नयी नेरालु

  • सार्थ

उनके उपन्यासों की विशेषता उनकी दार्शनिक गहराई, ऐतिहासिक आधार और उत्तेजक विषयों में थी। ये अक्सर भारतीय महाकाव्यों, परंपरा और आधुनिकता से जुड़े हुए थे। कई उपन्यासों को समालोचनात्मक रूप से प्रशंसित फिल्मों में रूपांतरित किया गया, जिससे उनका स्थान भारत के सांस्कृतिक परिदृश्य में और मजबूत हुआ।

पुरस्कार और सम्मान:
डॉ. भैरप्पा को उनकी साहित्यिक उत्कृष्टता और अडिग बौद्धिक सत्यनिष्ठा के लिए व्यापक रूप से सम्मानित किया गया।

  • पद्म भूषण – 2023 में भारत के उच्च नागरिक सम्मान में से एक

  • सरस्वती सम्मान – 2010 में उपन्यास मंद्र के लिए

  • साहित्य अकादमी फैलोशिप – 2015 में भारत की राष्ट्रीय साहित्य अकादमी द्वारा सर्वोच्च सम्मान

  • अनेक राज्य और राष्ट्रीय साहित्यिक पुरस्कार और मानद डॉक्टरेट

ये सम्मान केवल उनकी साहित्यिक प्रतिभा के लिए ही नहीं, बल्कि स्वतंत्रता पश्चात् भारत में सामाजिक-सांस्कृतिक विमर्श को आकार देने में उनके योगदान के लिए भी हैं।

मुख्य तथ्य:

  • नाम: डॉ. एस. एल. भैरप्पा

  • निधन तिथि: 24 सितंबर 2025

  • आयु: 94 वर्ष

  • प्रसिद्ध कृतियाँ: पर्व, आवरण, वंशवृक्ष, गृहभंग

  • मुख्य पुरस्कार: पद्म भूषण (2023), सरस्वती सम्मान (2010), साहित्य अकादमी फैलोशिप (2015)

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