कच्चे तेल की कीमतों में नरमी और वैश्विक व्यापारिक अनिश्चितताओं के बीच, भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) के गवर्नर संजय मल्होत्रा ने कहा है कि वित्त वर्ष 2025–26 (FY26) के दौरान भारत में मुद्रास्फीति (Inflation) लक्ष्य के अनुरूप रहने की उम्मीद है। उन्होंने 7 से 9 अप्रैल के बीच आयोजित मौद्रिक नीति समिति (Monetary Policy Committee – MPC) की बैठक के दौरान यह बात कही। मल्होत्रा ने बताया कि वर्तमान में मुद्रास्फीति को कम करने वाली शक्तियाँ (Disinflationary forces), मुद्रास्फीति बढ़ाने वाले जोखिमों की तुलना में अधिक प्रभावी हैं, जिससे विकास को समर्थन देने के लिए मौद्रिक नीति में ढील (Monetary easing) की गुंजाइश बनती है।
रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) ने अप्रैल 2025 की MPC बैठक के मिनट्स जारी किए, जिसमें खुलासा हुआ कि रेपो रेट में 25 आधार अंक की कटौती कर इसे 6% कर दिया गया और नीतिगत रुख को ‘तटस्थ’ से बदलकर ‘समर्थकारी’ (Accommodative) कर दिया गया। गवर्नर संजय मल्होत्रा ने कहा कि FY26 में मुद्रास्फीति लक्ष्य के अनुरूप रहेगी।
पृष्ठभूमि एवं मुख्य तथ्य
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सीपीआई (CPI) मुद्रास्फीति लक्ष्य: 4% ± 2% की सीमा
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वर्तमान CPI (मार्च 2025): 3.3% — अगस्त 2019 के बाद सबसे कम
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रेपो दर में कटौती: 25 आधार अंकों की कटौती से 6%
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नीतिगत रुख: ‘तटस्थ’ से ‘समर्थकारी’ में परिवर्तन
मौद्रिक नीति की प्रमुख बातें
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MPC ने लगातार दूसरी बार नीति दरों में कटौती का सर्वसम्मति से समर्थन किया।
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RBI का लक्ष्य है कि वैश्विक मंदी के बीच घरेलू मांग को प्रोत्साहित किया जाए।
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कच्चे तेल और वस्तुओं की कीमतों में गिरावट से CPI घटा।
वैश्विक व्यापार और टैरिफ का प्रभाव
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टैरिफ-जनित मुद्रा दबाव आयातित मुद्रास्फीति बढ़ा सकते हैं।
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लेकिन वैश्विक मंदी से कच्चे तेल व वस्तुओं की कीमतें नीचे आ सकती हैं, जिससे मुद्रास्फीति नियंत्रण में रह सकती है।
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अमेरिकी टैरिफ भारत के निर्यात और बाजार स्थिरता को प्रभावित कर सकते हैं।
MPC सदस्यों की राय
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संजय मल्होत्रा (गवर्नर): मुद्रास्फीति का दृष्टिकोण अनुकूल; घरेलू मांग वृद्धि का प्रमुख कारक।
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सौगत भट्टाचार्य: मध्यम मुद्रास्फीति के कारण “नीति नरमी” की गुंजाइश।
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एम. राजेश्वर राव: अमेरिकी टैरिफ से व्यापार और वित्तीय बाजार प्रभावित हो सकते हैं।
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राजीव रंजन: बाहरी झटके GDP को प्रभावित कर सकते हैं, लेकिन घरेलू मांग मजबूत।
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राम सिंह: खाद्य मुद्रास्फीति सकारात्मक, पर मौसम और वैश्विक जोखिम बने हुए हैं।
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नागेश कुमार: वैश्विक घटनाक्रमों की निगरानी ज़रूरी है जो विकास को प्रभावित कर सकते हैं।