बहुप्रतीक्षित शिखर वार्ता रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बीच अलास्का के एंकोरेज स्थित एलमेंडॉर्फ-रिचर्डसन सैन्य अड्डे पर संपन्न हुई। लगभग तीन घंटे चली इस बैठक में रूस–यूक्रेन संघर्ष पर कोई ठोस समझौता तो नहीं हो सका, लेकिन दोनों नेताओं ने वार्ता को “रचनात्मक” करार देते हुए “महत्वपूर्ण प्रगति” का दावा किया और आगे की कूटनीतिक कोशिशों के लिए उम्मीद जताई।
वार्ता के केंद्र में यूक्रेन संकट
पुतिन की स्थिति
मीडिया से बातचीत में राष्ट्रपति पुतिन ने माना कि बैठक का मुख्य विषय यूक्रेन युद्ध रहा। उन्होंने इस संघर्ष को “त्रासदी” बताते हुए कहा कि वह शांति के पक्षधर हैं, लेकिन इसके लिए “मूल कारणों” का समाधान होना ज़रूरी है।
पुतिन ने ज़ोर दिया कि,
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टकराव से संवाद की ओर बढ़ना आवश्यक है।
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यूक्रेन और यूरोप को आगाह किया कि वे भविष्य की वार्ताओं को विफल न करें।
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उनका मानना है कि यदि 2022 में ट्रंप सत्ता में होते, तो यह युद्ध टल सकता था।
उन्होंने अगले शिखर सम्मेलन के लिए मास्को को संभावित स्थान के रूप में भी प्रस्तावित किया।
ट्रंप के बयान और भविष्य की दिशा
राष्ट्रपति ट्रंप ने बैठक को “बेहद उत्पादक” बताया और कहा कि भले ही कोई औपचारिक समझौता नहीं हुआ, लेकिन कई अहम मुद्दों पर सार्थक चर्चा हुई।
उनके मुख्य बयान थे,
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“हम वहां तक नहीं पहुँचे, लेकिन वहाँ तक पहुँचने की अच्छी संभावना है।”
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किसी भी समझौते से पहले नाटो सहयोगियों, यूक्रेन के राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की और अन्य साझेदारों से परामर्श करने का वादा।
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यह दोहराना कि “आख़िरी फैसला उन्हीं पर निर्भर है”—यानी यूक्रेन और अन्य पक्षों पर।
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उन्होंने स्पष्ट किया, “कोई समझौता तब तक नहीं है, जब तक कि समझौता हो नहीं जाता,” यानी उन्होंने सतर्क आशावाद बनाए रखा।
अलास्का शिखर सम्मेलन के कूटनीतिक निहितार्थ
यह बैठक अहम रही क्योंकि,
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यूक्रेन मुद्दे पर आमने-सामने चर्चा कर रहे दो महाशक्तियों के बीच प्रत्यक्ष संवाद हुआ।
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भविष्य में तनाव कम करने या संघर्षविराम की रूपरेखा तैयार करने की संभावना खुली।
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अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में ट्रंप की वापसी ने अमेरिकी विदेश नीति में बदलाव का संकेत दिया।
हालाँकि, किसी संयुक्त बयान या औपचारिक प्रतिबद्धता का अभाव तुरंत प्रगति पर सवाल खड़े करता है। संक्षिप्त प्रेस कॉन्फ्रेंस और मीडिया से सीमित बातचीत ने भी दोनों पक्षों की सतर्कता को दर्शाया।


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