भारतीय सेना को अपाचे हेलीकॉप्टरों की पहली खेप मिली

भारतीय सेना ने आधिकारिक रूप से अमेरिका से अपने पहले अपाचे AH-64E अटैक हेलीकॉप्टर के बैच को प्राप्त कर लिया है। यह शामिलीकरण सेना की एविएशन कोर की संचालनात्मक मारक क्षमता को बढ़ाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है और भारत की व्यापक रक्षा आधुनिकीकरण योजना के अनुरूप है।

पृष्ठभूमि:

अपाचे AH-64E एक युद्ध-परीक्षित, बहु-भूमिका अटैक हेलीकॉप्टर है, जिसे बोइंग कंपनी द्वारा विकसित किया गया है। भारतीय वायु सेना ने 2019 में पहले ही अपाचे हेलीकॉप्टर शामिल कर लिए थे, लेकिन यह पहली बार है जब भारतीय सेना को अपाचे हेलीकॉप्टर मिले हैं। इस सौदे को सरकार-से-सरकार (G2G) के आधार पर अमेरिका के साथ अंतिम रूप दिया गया था, जो भारत-अमेरिका के बीच मजबूत रक्षा सहयोग को दर्शाता है।

महत्त्व

इस कदम से भारत की भविष्य के संघर्षों, विशेषकर ऊँचाई वाले और सीमावर्ती क्षेत्रों में, तैयारियों को बल मिलता है। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने उल्लेख किया कि ये हेलीकॉप्टर सेना की रणनीतिक प्रतिक्रिया और वायु युद्ध क्षमता को मजबूत करेंगे, जो सैन्य आधुनिकीकरण के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।

उद्देश्य / लक्ष्य

अपाचे हेलीकॉप्टरों को शामिल करने का मुख्य उद्देश्य सेना को निकट वायु सहायता, एंटी-आर्मर ऑपरेशन और हवाई निगरानी जैसी क्षमताएं प्रदान करना है। ये हेलीकॉप्टर अग्रिम क्षेत्रों में जमीनी बलों के साथ तालमेल बनाकर आक्रामक अभियानों को समर्थन देंगे।

मुख्य विशेषताएं

अपाचे AH-64E हेलीकॉप्टर आधुनिक एवियोनिक्स, लक्ष्य अधिग्रहण प्रणाली, हेलफायर मिसाइल, स्टिंगर एयर-टू-एयर मिसाइल, और 30 मिमी चेन गन से लैस होते हैं। ये किसी भी मौसम में, दिन या रात, संचालन करने में सक्षम हैं और कठिन इलाकों व सीमा क्षेत्रों में उच्च फुर्ती और जीवित रहने की क्षमता प्रदान करते हैं।

प्रभाव

इन अपाचे हेलीकॉप्टरों के साथ, भारतीय सेना को महत्वपूर्ण युद्धक्षमता प्राप्त होती है। इनकी तैनाती से तेज़ आक्रमण क्षमता में सुधार होगा, वायु सहायता के लिए वायु सेना पर निर्भरता घटेगी, और रणनीतिक अभियानों में अधिक स्वायत्तता सुनिश्चित होगी। यह एक तकनीक-संचालित और आत्मनिर्भर रक्षा बल की ओर एक बड़ा कदम है।

आर्टिकल 67(ए) क्या है – भारत के उपराष्ट्रपति का इस्तीफा?

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 67(a) भारत के उपराष्ट्रपति के इस्तीफ़े के लिए कानूनी आधार प्रदान करता है। यह प्रावधान उस समय विशेष रूप से चर्चा में आया जब उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने अपने कार्यकाल के तीन वर्ष पूरे होने के बाद 21 जुलाई 2025 को इस्तीफ़ा दे दिया। यह प्रावधान देश के उच्चतम संवैधानिक पदों में से एक से त्यागपत्र देने की स्पष्ट प्रक्रिया सुनिश्चित करता है, जिससे संस्थागत निरंतरता और स्थायित्व बनाए रखने में सहायता मिलती है।

पृष्ठभूमि:

भारत के उपराष्ट्रपति देश के दूसरे सर्वोच्च संवैधानिक पदाधिकारी होते हैं और राज्यसभा के पदेन सभापति (ex-officio Chairman) के रूप में भी कार्य करते हैं। यह पद संविधान के अनुच्छेद 63 के अंतर्गत स्थापित किया गया है, जबकि इस्तीफ़े या पद से हटाने की शर्तें अनुच्छेद 67 में निर्धारित हैं। इस अनुच्छेद की धारा 67(a) विशेष रूप से इस्तीफ़े से संबंधित है, जो उपराष्ट्रपति को राष्ट्रपति को लिखित सूचना देकर पद से त्यागपत्र देने की अनुमति प्रदान करती है।

महत्व:

अनुच्छेद 67(a) का समावेश इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह स्वैच्छिक और पारदर्शी रूप से इस्तीफ़ा देने की एक स्पष्ट संवैधानिक व्यवस्था प्रदान करता है, जिससे उच्च पदों पर अनिश्चितता की स्थिति से बचा जा सके। यह संवैधानिक स्पष्टता सत्ता हस्तांतरण को सुचारु रूप से सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक है, विशेषकर राज्यसभा जैसे सदन में, जो भारत की द्विसदनीय संसदीय प्रणाली में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

अनुच्छेद 67 के प्रमुख प्रावधान:

अनुच्छेद 67 में तीन मुख्य उपबंध शामिल हैं:

  • उपबंध (a): उपराष्ट्रपति अपना इस्तीफ़ा राष्ट्रपति को लिखित पत्र देकर दे सकते हैं। राष्ट्रपति द्वारा स्वीकृति के साथ ही इस्तीफ़ा तुरंत प्रभाव में आ जाता है।

  • उपबंध (b): उपराष्ट्रपति को पद से हटाया भी जा सकता है, जिसके लिए राज्यसभा में बहुमत से एक प्रस्ताव पारित होना चाहिए और लोकसभा द्वारा भी सहमति दी जानी चाहिए। इस प्रक्रिया के लिए कम से कम 14 दिन का नोटिस आवश्यक होता है।

  • उपबंध (c): यदि उपराष्ट्रपति का कार्यकाल पाँच वर्ष पूर्ण हो जाए, तब भी तब तक पद पर बने रहते हैं जब तक उत्तराधिकारी पदभार ग्रहण नहीं कर लेता, जिससे संवैधानिक रिक्तता न हो।

उत्तराधिकार प्रक्रिया:

इस्तीफ़े के बाद, अनुच्छेद 68(2) के अनुसार, रिक्ति होने की तिथि से 60 दिनों के भीतर नए उपराष्ट्रपति का चुनाव आवश्यक होता है। यह चुनाव निर्वाचन आयोग द्वारा घोषित कार्यक्रम के अनुसार आयोजित किया जाता है। चुनाव में लोकसभा और राज्यसभा के निर्वाचित एवं मनोनीत सदस्य सम्मिलित होते हैं, और मतदान एकल संक्रमणीय मत प्रणाली के साथ आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के तहत होता है।

प्रभाव:

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का इस्तीफ़ा संविधान के अनुच्छेद 67(a) के यथार्थ उपयोग का एक उदाहरण प्रस्तुत करता है। जब तक नए उपराष्ट्रपति का निर्वाचन नहीं हो जाता, तब तक राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश नारायण सिंह कार्यवाहक अध्यक्ष के रूप में सदन की कार्यवाही संचालित करेंगे। यह घटनाक्रम भारत की संवैधानिक प्रणाली में प्रक्रियात्मक व्यवस्था की महत्ता को सुदृढ़ करता है।

बीसीसीआई भी होगा राष्ट्रीय खेल शासन विधेयक का हिस्सा

राष्ट्रीय खेल प्रशासन विधेयक, 2025 भारत के खेल प्रशासन में व्यापक बदलाव की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम है। इस विधेयक की प्रमुख विशेषताओं में भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (BCCI) को सूचना के अधिकार (RTI) अधिनियम के दायरे में लाना और उसे औपचारिक रूप से एक राष्ट्रीय खेल महासंघ (NSF) के रूप में मान्यता देना शामिल है। यह विधेयक सभी राष्ट्रीय खेल महासंघों में संरचनात्मक सुधार, अधिक पारदर्शिता और विवाद निवारण के लिए समुचित तंत्र स्थापित करने का प्रस्ताव रखता है।

पृष्ठभूमि:

भारत में खेल प्रशासन में सुधार की मांग कई वर्षों से जारी है। वर्ष 2010 में राष्ट्रीय खेल महासंघों (NSFs) को सूचना के अधिकार (RTI) अधिनियम के तहत “सार्वजनिक प्राधिकरण” घोषित किया गया था, लेकिन भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (BCCI) ने अपनी स्वायत्तता और सरकारी वित्त पोषण न मिलने का हवाला देते हुए इस दायरे से स्वयं को बाहर रखा। हालांकि, 2028 ओलंपिक में टी20 क्रिकेट के शामिल होने और भारत की 2036 ओलंपिक की मेज़बानी की आकांक्षा ने खेल संगठनों को अंतरराष्ट्रीय मानकों और जवाबदेही की दिशा में लाने को अनिवार्य बना दिया है।

महत्व:

यह विधेयक खेल प्रशासन में एक अहम बदलाव का संकेत देता है, जिसका उद्देश्य विशेष रूप से BCCI जैसे प्रभावशाली और समृद्ध निकायों में प्रशासनिक अपारदर्शिता को समाप्त करना है। BCCI को RTI अधिनियम के तहत लाकर सरकार उसकी कार्यप्रणाली में सार्वजनिक पारदर्शिता सुनिश्चित करना चाहती है। यह कदम इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि BCCI भले ही सरकारी अनुदान न लेता हो, लेकिन वह राष्ट्रीय क्रिकेट टीमों के चयन और विशाल धनराशि के प्रबंधन जैसी केंद्रीय भूमिका निभाता है।

उद्देश्य:

  • सभी खेल महासंघों को एकीकृत ढांचे के अंतर्गत कानूनी मान्यता प्रदान करना।

  • जवाबदेही बढ़ाने और कानूनी विवादों को कम करने हेतु संस्थागत सुधार लागू करना।

  • विवादों के समयबद्ध समाधान के लिए एक राष्ट्रीय खेल अधिकरण (National Sports Tribunal) की स्थापना।

  • खेल प्रशासन को ओलंपिक चार्टर के सिद्धांतों के अनुरूप बनाना।

  • बेहतर प्रशासन के माध्यम से भारत की 2036 ओलंपिक मेज़बानी की दावेदारी को सशक्त बनाना।

मुख्य विशेषताएं:

  • BCCI को राष्ट्रीय खेल महासंघ (NSF) के रूप में मान्यता दी जाएगी और इसे RTI अधिनियम के अंतर्गत लाया जाएगा।

  • खेल अधिकारियों की अधिकतम आयु सीमा 75 वर्ष तक बढ़ाई गई है, जिससे वर्तमान प्रशासकों को लाभ मिलेगा।

  • एक राष्ट्रीय खेल बोर्ड (National Sports Board – NSB) का गठन किया जाएगा, जो नियामक और निगरानी की शक्तियों से युक्त होगा।

  • सभी खेल संघों की संचालन समितियों में खिलाड़ियों के प्रतिनिधियों, महिलाओं और प्रतिष्ठित खिलाड़ियों की अनिवार्य भागीदारी सुनिश्चित की जाएगी।

  • राष्ट्रीय खेल अधिकरण (National Sports Tribunal) का गठन किया जाएगा, जिसकी अपील सर्वोच्च न्यायालय में की जा सकेगी।

  • चुनावों की निगरानी एक राष्ट्रीय खेल चुनाव समिति (National Sports Election Panel) द्वारा की जाएगी, जिसमें वरिष्ठ सेवानिवृत्त चुनाव अधिकारी शामिल होंगे।

  • शीर्ष पदाधिकारियों के लिए अधिकतम तीन कार्यकाल और 15 सदस्यीय कार्यकारिणी की सीमा तय की गई है, साथ ही कार्यकालों के बीच ‘कूलिंग ऑफ पीरियड’ भी अनिवार्य होगा।

प्रभाव:

इस विधेयक के लागू होने से खेल महासंघों की कार्यप्रणाली में पारदर्शिता में उल्लेखनीय वृद्धि होगी। BCCI के लिए यह सार्वजनिक जवाबदेही मानकों के अनुरूप एक संरचनात्मक बदलाव होगा। विधेयक का उद्देश्य खिलाड़ियों की भागीदारी बढ़ाना, लैंगिक संतुलन स्थापित करना और प्रशासनिक मानकों को सशक्त बनाना है, जिससे वैश्विक खेल मंच पर भारत की छवि और साख को मजबूती मिलेगी।

2030 तक भारत में शहरों में पैदा होगी 70% नौकरियां: विश्व बैंक

विश्व बैंक और भारत सरकार के आवास और शहरी कार्य मंत्रालय की ओर से तैयार एक ताजा रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि भारत के शहरी क्षेत्रों में 2030 तक 70% नई नौकरियां पैदा होंगी, लेकिन अगर समय रहते जलवायु परिवर्तन के अनुकूलन (climate change adaptation) पर निवेश नहीं हुआ, तो हर साल बाढ़ से 5 अरब डॉलर का नुकसान उठाना पड़ सकता है। रिपोर्ट के अनुसार, 2050 तक भारत की शहरी आबादी 951 मिलियन तक पहुंच जाएगी। बढ़ती आबादी और शहरीकरण के कारण देश के शहर दो बड़े झटकों – बाढ़ और अत्यधिक गर्मी – का सामना करेंगे, जो रोजगार और आर्थिक विकास को प्रभावित कर सकते हैं।

हर साल बाढ़ से 30 अरब डॉलर तक का नुकसान

रिपोर्ट के अनुसार, 2070 तक अगर अनुकूलन उपाय नहीं किए गए तो हर साल बाढ़ से 30 अरब डॉलर तक का नुकसान हो सकता है। 1983-1990 से 2010-2016 के बीच, भारत के 10 बड़े शहरों में खतरनाक गर्मी की स्थिति में 71% की वृद्धि दर्ज की गई है। शहरी हीट आइलैंड इफेक्ट (Urban Heat Island Effect) के कारण रात में भी गर्मी बढ़ जाती है, क्योंकि कंक्रीट की सड़कें और इमारतें गर्मी को रात में छोड़ती हैं।

रिपोर्ट के उद्देश्य:

इस रिपोर्ट का उद्देश्य निम्नलिखित बिंदुओं पर केंद्रित है:

  • भारत के प्रमुख शहरों की जलवायु संवेदनशीलता का मूल्यांकन करना

  • जलवायु प्रभावों के कारण होने वाली आर्थिक हानियों का आंकलन करना

  • आपदा-रोधी (resilient) बुनियादी ढांचे के लिए नीतिगत सिफारिशें प्रस्तुत करना

  • शहरी जलवायु आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए वित्तीय खाका तैयार करना

  • निम्न-कार्बन विकास और जलवायु-संवेदनशील शहरी योजना को प्रोत्साहित करना

प्रमुख निष्कर्ष और विशेषताएं:

  • वर्ष 2050 तक की शहरी अवसंरचना का लगभग 50% हिस्सा अभी निर्मित होना बाकी है, जो जलवायु अनुकूलता (climate resilience) को शामिल करने का एक महत्वपूर्ण अवसर प्रदान करता है।

  • शहरों को 2050 तक बुनियादी ढांचे और सेवाओं की कमी को दूर करने हेतु $2.4 ट्रिलियन से अधिक के निवेश की आवश्यकता होगी।

  • वर्तमान में बाढ़ से संबंधित वार्षिक आर्थिक नुकसान लगभग $4 अरब आँका गया है, जो 2030 तक बढ़कर $5 अरब तक पहुंच सकता है।

  • अर्बन हीट आइलैंड इफेक्ट के कारण शहरों के मध्य क्षेत्र आस-पास के इलाकों की तुलना में 3–4 डिग्री सेल्सियस अधिक गर्म हो रहे हैं।

लचीलापन (Resilience) के उदाहरण:

  • अहमदाबाद: हीट एक्शन प्लान के तहत समयपूर्व चेतावनी प्रणाली और हरित आवरण (ग्रीन कवर) को बढ़ावा दिया गया है।

  • कोलकाता: बाढ़ पूर्वानुमान और त्वरित चेतावनी प्रणालियों को अपनाया गया है।

  • इंदौर: आधुनिक कचरा प्रबंधन प्रणाली लागू की गई है, साथ ही हरित नौकरियों (ग्रीन जॉब्स) को प्रोत्साहित किया गया है।

  • चेन्नई: जोखिम-आधारित जलवायु कार्ययोजना तैयार की गई है, जो स्थानीय खतरों को ध्यान में रखते हुए उपायों को प्राथमिकता देती है।

श्रीलंका के वास्काडुवा में अशोक स्तंभ की प्रतिकृति का अनावरण किया गया

श्रीलंका के कालुतारा ज़िले स्थित प्रसिद्ध बौद्ध मंदिर वास्काडुवा श्री सुभूति विहाराय में 21 जुलाई 2025 को अशोक स्तंभ की एक प्रतिकृति का अनावरण किया गया। यह पहल भारत और श्रीलंका के बीच आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक कूटनीति का एक महत्वपूर्ण प्रतीक है, जो सम्राट अशोक के श्रीलंकाई बौद्ध धर्म में योगदान को मान्यता देती है। यह विकास क्षेत्र में बौद्ध विरासत और सांस्कृतिक संबंधों को बढ़ावा देने के लिए भारत के निरंतर प्रयासों को भी दर्शाता है।

पृष्ठभूमि:

अशोक स्तंभ की प्रतिकृति की आधारशिला 28 जनवरी 2024 को भारत के उच्चायुक्त श्री संतोष झा और IBC (इंटरनेशनल बुद्धिस्ट कॉन्फ्रेंस) के महासचिव श्रद्धेय शार्टसे खेंसुर जांगचुप चोदेन रिनपोछे द्वारा रखी गई थी। इस परियोजना को तिब्बती बौद्ध धर्मगुरु और लिंग रिनपोछे वंश के सातवें अवतार, महामहिम क्याबजे लिंग रिनपोछे द्वारा पूर्ण रूप से प्रायोजित किया गया। कोलंबो से मात्र 42 किलोमीटर दक्षिण में स्थित यह मंदिर भगवान बुद्ध के कपिलवस्तु अवशेषों को सुरक्षित रखता है और भारत-श्रीलंका बौद्ध सहयोग का एक प्रमुख केंद्र बन चुका है।

अशोक स्तंभ का महत्व:

अशोक स्तंभ सम्राट अशोक के बौद्ध धर्म में योगदान और भारत से बाहर बुद्ध के संदेश को फैलाने के उनके प्रयासों का कालातीत प्रतीक है। वास्काडुवे महिंदवंश महामहायक थेरो ने इस बात पर ज़ोर दिया कि श्रीलंका में बुद्ध शासन (बुद्ध सासना) की स्थापना में अशोक के योगदान — विशेषकर उनके पुत्र अरहंत महिंद और पुत्री अरहंत संघमित्त के माध्यम से — को ऐतिहासिक रूप से कम आंका गया है। इस स्तंभ की स्थापना उनके श्रीलंका की बौद्ध सभ्यता को आकार देने में किए गए महान योगदान को श्रद्धांजलि स्वरूप समर्पित है।

भारत की सांस्कृतिक कूटनीति पहलें:

अशोक स्तंभ का अनावरण भारत द्वारा साझा बौद्ध विरासत को बढ़ावा देने के व्यापक प्रयासों का एक हिस्सा है। प्रमुख पहलों में शामिल हैं:

  • भारत सरकार द्वारा 2020 में घोषित 1.5 करोड़ अमेरिकी डॉलर की सहायता राशि, जिसके अंतर्गत श्रीलंका के 10,000 बौद्ध मंदिरों और मठों को सौर विद्युतीकरण की सुविधा दी जा रही है।

  • वर्ष 2024 में पाली भाषा को शास्त्रीय भाषा का दर्जा प्रदान किया गया, जिसके तहत प्राचीन ग्रंथों के पुनर्प्रकाशन और विद्वानों के बीच आदान-प्रदान को प्रोत्साहित किया जा रहा है।

  • अनुराधापुरा के पवित्र नगर परिसर (Anuradhapura Sacred City Complex) के संरक्षण और देवनीमोरी (गुजरात), सारनाथ और कपिलवस्तु जैसी जगहों से भारत के पवित्र अवशेषों के श्रीलंका में प्रदर्शन हेतु भारत का सहयोग।

  • भारत द्वारा हांगकांग में बुद्ध के पवित्र अवशेषों की नीलामी रोकने हेतु कूटनीतिक हस्तक्षेप, जो धार्मिक धरोहरों की सुरक्षा और पुनःप्राप्ति के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।

आध्यात्मिक और द्विपक्षीय प्रभाव:

वास्काडुवा श्री सुभूति विहाराय को इसके ऐतिहासिक और आध्यात्मिक महत्व के कारण चुना गया। यह मंदिर भगवान बुद्ध के पवित्र अवशेषों को संजोए हुए है और इसके प्रमुख महायक थेरो भारत-श्रीलंका बौद्ध एकता के प्रबल समर्थक हैं। अशोक स्तंभ की स्थापना दोनों देशों के हज़ारों वर्षों पुराने सभ्यतागत संबंधों को प्रतीकात्मक रूप से और सशक्त बनाती है। इस आयोजन में भारत और श्रीलंका के गणमान्य व्यक्तियों की भागीदारी ने बौद्ध संस्कृति के संरक्षण और उत्सव के प्रति साझा प्रतिबद्धता को उजागर किया।

मार्च 2021 से मार्च 2025 तक सकल एनपीए घटकर 2.58% रह गया

भारत में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की सकल गैर-निष्पादित संपत्तियों (Gross NPAs) में उल्लेखनीय गिरावट दर्ज की गई है। मार्च 2021 में जहां यह अनुपात 9.11% था, वहीं मार्च 2025 तक घटकर मात्र 2.58% रह गया। इस बदलाव का श्रेय संस्थागत सुधारों, कड़े विनियामक ढांचे और बेहतर ऋण अनुशासन को दिया जा रहा है।

पृष्ठभूमि:

मार्च 2021 में सकल NPA ₹6.16 लाख करोड़ था, जो कि कुल अग्रिमों का 9.11% था। मार्च 2025 तक यह घटकर ₹2.83 लाख करोड़ (2.58%) रह गया, जिससे यह स्पष्ट होता है कि बैंकों की फंसी हुई ऋण समस्याओं का प्रभावी समाधान किया गया है। इस गिरावट में विधायी संशोधनों, सक्रिय समाधान प्रक्रिया और प्रभावशाली ऋण वसूली रणनीतियों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

प्रमुख सुधार और विनियामक उपाय

  • IBC में व्यापक सुधार: दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता (Insolvency and Bankruptcy Code – IBC) में किए गए बदलावों ने नियंत्रण डिफॉल्टर प्रमोटरों से हटाकर कर्जदाताओं को सौंप दिया, जिससे जानबूझकर डिफॉल्ट करने की प्रवृत्ति में कमी आई और ऋणों के समाधान की प्रक्रिया तेज़ हुई।
  • SARFAESI और DRT अधिनियम में संशोधन: संपत्ति वसूली को सशक्त बनाने हेतु संशोधन किए गए। ऋण वसूली अधिकरण (DRT) की न्यूनतम सीमा ₹10 लाख से बढ़ाकर ₹20 लाख की गई, जिससे बड़े मामलों को प्राथमिकता दी जा सके।
  • RBI की प्रूडेंशियल रूपरेखा: तनावग्रस्त ऋणों की समय रहते पहचान, सीमित समय में समाधान, और समय पर कार्रवाई करने वाले ऋणदाताओं को प्रोत्साहन देने पर ज़ोर दिया गया।

संस्थागत तंत्र

  • विशेषीकृत NPA प्रबंधन इकाइयाँ: बैंकों ने तनावग्रस्त ऋणों के लिए समर्पित विभाग बनाए, जिससे निगरानी और फॉलो-अप में सुधार हुआ।
  • बिज़नेस कॉरेस्पोंडेंट्स और फील्ड रिकवरी टीमें: ग्रामीण और दूरदराज़ क्षेत्रों में वसूली और समाधान की पहुंच बढ़ाई गई।
  • मूल्यांकन दिशा-निर्देश: RBI ने ₹50 करोड़ से अधिक की संपत्तियों के लिए स्वतंत्र और पेशेवर मूल्यांकन को अनिवार्य किया है, जिसमें पारदर्शिता सुनिश्चित करने हेतु दोहरी मूल्यांकन व्यवस्था भी शामिल है।

पारदर्शी संपत्ति निपटान और ई-नीलामी

RBI के निर्देश पर बैंक जब्त की गई संपत्तियों को ई-नीलामी के माध्यम से बेचते हैं, जिससे मूल्य की पारदर्शी खोज (price discovery) संभव होती है। बिक्री से पहले संपत्तियों का पुनर्मूल्यांकन पैनल में शामिल मूल्यांककों द्वारा किया जाता है ताकि उचित बाज़ार मूल्य सुनिश्चित हो सके।

गलत मूल्यांकन के विरुद्ध सुरक्षा उपाय

RBI के IRAC मानदंडों के अनुसार हर तीन वर्ष में संपत्तियों का पुनर्मूल्यांकन अनिवार्य है। जॉइंट लेंडर्स फोरम (JLF) दिशानिर्देश बैंकों को मूल्यांककों को जवाबदेह ठहराने और अनियमितताओं की रिपोर्ट इंडियन बैंक्स एसोसिएशन (IBA) को करने की शक्ति देते हैं, जिससे सुरक्षा मूल्यांकन की विश्वसनीयता में सुधार हुआ है।

भारत में बौद्धिक संपदा (आईपी) फाइलिंग में पांच वर्षों में 44% की बढोतरी

पिछले पाँच वर्षों में भारत में बौद्धिक संपदा (IP) पंजीकरण में 44% की वृद्धि दर्ज की गई है, जिसका श्रेय सरकार की नीतिगत सुधारों, शुल्क में रियायतों और IP सेवाओं के डिजिटलीकरण को जाता है। यह वृद्धि देश में बढ़ती जागरूकता, जीवंत स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र और भौगोलिक संकेतक (GI), पेटेंट तथा ट्रेडमार्क के माध्यम से स्वदेशी उत्पादों की रक्षा के प्रयासों को दर्शाती है।

पृष्ठभूमि:

वर्ष 2020–21 से 2024–25 के बीच कुल IP फाइलिंग 4.77 लाख से बढ़कर 6.89 लाख हो गई। इस दौरान सर्वाधिक वृद्धि भौगोलिक संकेतकों (380%) में देखी गई, इसके बाद डिज़ाइन (266%), पेटेंट (180%) और कॉपीराइट (83%) में वृद्धि दर्ज की गई। यह सरकार द्वारा नवाचार को बढ़ावा देने और बौद्धिक संपदा की सुरक्षा के लिए किए जा रहे सक्रिय प्रयासों को उजागर करता है।

प्रमुख सुधार और विशेषताएं

  • पेटेंट: केवल ऑनलाइन फाइलिंग, सरलीकृत फॉर्म 27, परीक्षण हेतु अनुरोध (Request for Examination) की समयसीमा 31 महीनों तक घटाई गई, और ई-नवीकरण पर 10% शुल्क में छूट।
  • ट्रेडमार्क: 74 फॉर्म को घटाकर 8 किया गया, साउंड मार्क्स के लिए एक्सप्रेस फाइलिंग की सुविधा, और Registered Users के लिए प्रक्रिया को सरल बनाया गया।
  • डिज़ाइन्स: लोकार्नो वर्गीकरण (Locarno Classification) को अपनाया गया और पूरी प्रक्रिया का डिजिटलीकरण किया गया।
  • कॉपीराइट: सॉफ्टवेयर से संबंधित नियमों को सरल किया गया और सोसाइटियों की पारदर्शिता को बढ़ाया गया।
  • भौगोलिक संकेतक (GI): प्राधिकृत उपयोगकर्ताओं के लिए पंजीकरण प्रक्रिया को आसान बनाया गया।

स्टार्टअप्स और MSMEs को समर्थन

शुल्क में कटौती:

  • पेटेंट में 80%

  • डिज़ाइन्स में 75%

  • ट्रेडमार्क में 50%
    संशोधित नियमों के तहत स्टार्टअप्स, MSMEs, महिला आवेदकों और सरकारी संस्थानों के लिए त्वरित परीक्षण (Expedited Examination) की सुविधा उपलब्ध कराई गई है।

डिजिटल परिवर्तन और नवाचार

अब 95% से अधिक IP फाइलिंग ऑनलाइन हो रही है।

AI आधारित ट्रेडमार्क सर्च, IP डैशबोर्ड, और ‘IP सारथी’ चैटबॉट की शुरुआत की गई है।

24×7 ई-फाइलिंग प्रणाली में रीयल-टाइम ट्रैकिंग, वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग, ई-प्रमाणपत्र, और SMS अलर्ट जैसी सुविधाएं शामिल हैं।

बौद्धिक संपदा जागरूकता और आउटरीच

  • राष्ट्रीय बौद्धिक संपदा जागरूकता मिशन (NIPAM): देश के सभी राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में 9500 कार्यक्रमों के माध्यम से 25 लाख से अधिक छात्रों तक पहुंच।
  • WIPO IP डायग्नॉस्टिक टूल: 5 भाषाओं में स्टार्टअप्स और MSMEs के लिए उपलब्ध।
  • SIPP योजना: स्टार्टअप्स को निशुल्क IP सहायता प्रदान करती है; अब इसे शैक्षणिक संस्थानों तक भी विस्तारित किया गया है।

मानव संसाधन और शिकायत निवारण

पेटेंट कार्यालय की क्षमता में 233% की वृद्धि हुई है — 2014 में 431 कार्मिकों से बढ़कर 2024 में 1433 हो गई।
शिकायत निवारण के लिए डेली ओपन हाउस कॉन्फ्रेंस और ओपन हाउस IT हेल्पडेस्क शुरू किए गए हैं।

भौगोलिक संकेतक (GI): तेज़ वृद्धि

कोविड के बाद GI पंजीकरण में तीव्र वृद्धि देखी गई, जो 2023–24 में 160 तक पहुंच गई। अब तक भारत में कुल 697 GI पंजीकृत किए जा चुके हैं, जो पारंपरिक और क्षेत्रीय उत्पादों की सुरक्षा के लिए एक मजबूत पहल को दर्शाता है।

नासा-इसरो का संयुक्त निसार मिशन 30 जुलाई को होगा लॉन्च

भारत 30 जुलाई 2025 को NASA-ISRO सिंथेटिक अपर्चर रडार (NISAR) उपग्रह का प्रक्षेपण करने जा रहा है। यह ISRO और NASA के बीच पहला संयुक्त पृथ्वी अवलोकन मिशन है, जिसे श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र (SDSC-SHAR) से GSLV-F16 रॉकेट के माध्यम से लॉन्च किया जाएगा। उपग्रह को 743 किमी की ऊंचाई पर 98.4° झुकाव वाले सन-सिंक्रोनस कक्षा (SSO) में स्थापित किया जाएगा, जिससे पृथ्वी की सतह का हर मौसम और प्रकाश परिस्थितियों में लगातार अवलोकन संभव होगा।

पृष्ठभूमि
NISAR मिशन ISRO और NASA के जेट प्रोपल्शन लेबोरेटरी (JPL) के बीच एक दशक से अधिक की तकनीकी साझेदारी का परिणाम है। इसमें NASA का L-बैंड रडार और ISRO का S-बैंड रडार एक ही उपग्रह पर एकीकृत किया गया है। NASA का 12-मीटर का फोल्ड होने वाला मेश रिफ्लेक्टर एंटीना और ISRO का संशोधित I3K उपग्रह बस इस सहयोग की तकनीकी श्रेष्ठता को दर्शाते हैं।

महत्व
NISAR अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष सहयोग में एक मील का पत्थर है और पृथ्वी अवलोकन की वैश्विक क्षमताओं में एक बड़ी छलांग है। यह पहला उपग्रह है जो नागरिक उपयोग के लिए ड्यूल-फ्रिक्वेंसी सिंथेटिक अपर्चर रडार (SAR) तकनीक का उपयोग करेगा। यह पृथ्वी की सतह पर एक सेंटीमीटर जितने सूक्ष्म परिवर्तनों का भी पता लगा सकता है, जिससे वैज्ञानिकों को जलवायु, पारिस्थितिकी तंत्र और प्राकृतिक आपदाओं की बेहतर समझ मिल सकेगी।

उद्देश्य
NISAR मिशन का मुख्य उद्देश्य पृथ्वी की सतह पर हर 12 दिन में उच्च-रिज़ॉल्यूशन, हर मौसम और दिन-रात का डेटा प्रदान करना है। यह प्राकृतिक आपदाओं की निगरानी, कृषि रुझानों का आकलन, आपदा प्रभाव का विश्लेषण और पारिस्थितिकीय व्यवधानों का अध्ययन करने में सहायक होगा। इसके वैज्ञानिक लक्ष्य ग्लेशियर की गति, ज़मीन धंसने, भू-गति, वनस्पति और मिट्टी की नमी में बदलाव को ट्रैक करना शामिल हैं।

प्रमुख विशेषताएँ

  • प्रक्षेपण यान: ISRO का GSLV-F16

  • प्रक्षेपण तिथि: 30 जुलाई 2025, शाम 5:40 बजे IST

  • उपग्रह का भार: 2392 किलोग्राम

  • कक्षा प्रकार: सन-सिंक्रोनस कक्षा (743 किमी)

  • रडार बैंड्स: L-बैंड (NASA) और S-बैंड (ISRO)

  • स्वाथ चौड़ाई: 242 किमी

  • तकनीक: स्वीपSAR तकनीक

  • पुनरावृत्ति चक्र: 12-दिवसीय वैश्विक कवरेज

अनुप्रयोग और प्रभाव
NISAR डेटा कई क्षेत्रों को लाभ पहुंचाएगा, जैसे:

  • आपदा प्रबंधन: भूस्खलन, भूकंप और बाढ़ मानचित्रण

  • जलवायु अनुसंधान: ध्रुवीय बर्फ की निगरानी और तूफानों का विश्लेषण

  • कृषि: मिट्टी की नमी और फसल की निगरानी

  • शहरी नियोजन: ज़मीन की गति और बुनियादी ढांचे की स्थिरता

  • पर्यावरण निगरानी: वन क्षेत्र में बदलाव और जल निकायों की गतिशीलता

इसकी हर मौसम में काम करने की क्षमता सरकारों और शोधकर्ताओं को नीति-निर्माण, संसाधन प्रबंधन और जलवायु लचीलापन रणनीतियाँ तैयार करने में मदद करेगी।

LIC का ‘बीमा सखी योजना’ के लिए ग्रामीण विकास मंत्रालय के साथ समझौता

भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआईसी) ने कहा कि उसने ग्रामीण क्षेत्रों में अपनी ‘बीमा सखी योजना’ को बढ़ावा देने के लिए ग्रामीण विकास मंत्रालय के साथ एक समझौता ज्ञापन (एमओयू) किया है। गोवा में 8-10 जुलाई को वित्तीय समावेशन पर आयोजित राष्ट्रीय सम्मेलन ‘अनुभूति’ के दौरान इस एमओयू पर हस्ताक्षर किए गए। एलआईसी ने बयान में कहा कि उसकी ‘बीमा सखी योजना’ बीमा वितरण क्षेत्र में महिलाओं की मौजूदगी को मजबूती देने के लिए बनाई गई है।

पृष्ठभूमि
भारतीय जीवन बीमा निगम (LIC), देश की प्रमुख जीवन बीमा कंपनी, लंबे समय से पूरे भारत में वित्तीय सुरक्षा की आधारशिला रही है। ग्रामीण भारत में मौजूद अपार संभावनाओं और महिला-नेतृत्वित विकास के महत्व को पहचानते हुए, LIC ने ‘बीमा सखी योजना’ की शुरुआत एक लक्षित पहल के रूप में की है। यह योजना, गरीबी उन्मूलन हेतु स्वरोजगार और कौशल विकास को प्रोत्साहित करने वाले दीनदयाल अंत्योदय योजना – राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (DAY-NRLM) के उद्देश्यों के साथ पूर्णतः मेल खाती है और इसी रणनीतिक समझौता ज्ञापन (MoU) का आधार बनती है।

महत्व
यह सहयोग ग्रामीण महिलाओं को औपचारिक वित्तीय प्रणाली में सक्रिय भागीदार के रूप में शामिल कर उन्हें सशक्त बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। प्रदर्शन-आधारित एजेंसी मॉडल के माध्यम से यह योजना महिलाओं को दीर्घकालिक आर्थिक स्वतंत्रता प्रदान करती है, ग्रामीण क्षेत्रों में बीमा कवरेज को बढ़ाती है, और वित्तीय समावेशन व महिला-नेतृत्वित उद्यमिता के सरकारी लक्ष्यों को मजबूती देती है। यह समझौता ग्रामीण भारत में आजीविका के विकल्पों का विस्तार कर घरेलू आय को बढ़ाने में भी सहायक सिद्ध होगा।

उद्देश्य

  • बीमा क्षेत्र में करियर के अवसर देकर ग्रामीण महिलाओं को सशक्त बनाना।

  • दूरस्थ क्षेत्रों में जीवन बीमा से संबंधित वित्तीय साक्षरता और जागरूकता को बढ़ाना।

  • ग्रामीण परिवारों की आय और आर्थिक लचीलापन सुधारना।

  • महिलाओं की औपचारिक वित्तीय सेवाओं में भागीदारी को बढ़ाने हेतु DAY-NRLM के लक्ष्यों से मेल करना।

प्रमुख विशेषताएँ

  • पात्रता: केवल महिलाएं ही बीमा सखी योजना में नामांकन कर सकती हैं।

  • वृत्तिका समर्थन: प्रदर्शन के आधार पर पहले वर्ष ₹7,000, दूसरे वर्ष ₹6,000 और तीसरे वर्ष ₹5,000 की सहायता राशि।

  • करियर पथ: नियमित LIC एजेंट की तरह सभी सुविधाएँ—कमीशन, प्रोत्साहन और मान्यता प्राप्त होती है।

  • NRLM से तालमेल: स्वयं सहायता समूहों (SHGs) और महिला सामूहिक संस्थाओं के साथ एकीकरण को प्रोत्साहन।

  • क्रियान्वयन सहयोग: ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा राज्यों में मौजूदा ग्रामीण विकास ढाँचों के माध्यम से कार्यान्वयन।

संजय कौल (IAS) ने गिफ्ट सिटी के एमडी और ग्रुप सीईओ का कार्यभार संभाला

वरिष्ठ भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) अधिकारी संजय कौल ने भारत के प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय सेवा केंद्र (आईएफएससी), गुजरात इंटरनेशनल फाइनेंस टेक-सिटी (गिफ्ट सिटी) के प्रबंध निदेशक और समूह सीईओ के रूप में आधिकारिक तौर पर कार्यभार संभाल लिया है। उनकी नियुक्ति भारत की वित्तीय अवसंरचना रणनीति की एक प्रमुख परियोजना, गिफ्ट सिटी के लिए एक महत्वपूर्ण नेतृत्व परिवर्तन का प्रतीक है। सार्वजनिक नीति, अवसंरचना, प्रौद्योगिकी और वित्त सहित विभिन्न क्षेत्रों में दो दशकों से अधिक के अनुभव के साथ, कौल के नेतृत्व से गिफ्ट सिटी के वैश्विक वित्तीय केंद्र बनने के दृष्टिकोण को गति मिलने की उम्मीद है।

गिफ्ट सिटी की पृष्ठभूमि
गुजरात इंटरनेशनल फाइनेंस टेक-सिटी (GIFT City), गांधीनगर, गुजरात में स्थित है और यह भारत का पहला परिचालित स्मार्ट सिटी तथा देश का पहला अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय सेवा केंद्र (IFSC) है। इसे एक वैश्विक वित्तीय और आईटी सेवा केंद्र के रूप में विकसित करने की कल्पना की गई थी, जिससे बैंकिंग, बीमा, परिसंपत्ति प्रबंधन और पूंजी बाजारों में अंतरराष्ट्रीय व्यापार को आकर्षित किया जा सके। अपनी स्थापना के बाद से, गिफ्ट सिटी ने निवेशों में वृद्धि, आधारभूत संरचना के उन्नयन और IFSC प्राधिकरण (IFSCA) जैसे निकायों की स्थापना के साथ उल्लेखनीय प्रगति की है।

संजय कौल के बारे में
संजय कौल 2001 बैच के आईएएस अधिकारी हैं, जिन्हें सार्वजनिक सेवा में अपने विविध अनुभव के लिए जाना जाता है। उन्होंने संस्कृति मंत्रालय में संयुक्त सचिव, गुजरात इनफॉर्मेटिक्स लिमिटेड और गुजरात पर्यटन निगम लिमिटेड जैसे संस्थानों में नेतृत्वकारी भूमिकाएँ निभाई हैं। मूल रूप से गुजरात से ताल्लुक रखने वाले कौल ने इलेक्ट्रॉनिक्स और कम्युनिकेशन में एनआईटी सूरत से इंजीनियरिंग की डिग्री और न्यूयॉर्क के सिराक्यूज़ यूनिवर्सिटी से सार्वजनिक नीति में डिग्री प्राप्त की है। उनका बहुआयामी अनुभव गिफ्ट सिटी की अंतरराष्ट्रीय और तकनीकी आकांक्षाओं को दिशा देने के लिए उपयुक्त माना जा रहा है।

नियुक्ति का महत्व
गिफ्ट सिटी को एक अग्रणी वैश्विक वित्तीय केंद्र के रूप में स्थापित करने के प्रयासों के बीच संजय कौल की नियुक्ति एक निर्णायक समय पर हुई है। बुनियादी ढांचे के विकास और तकनीक के एकीकरण में उनकी विशेषज्ञता गिफ्ट सिटी के रणनीतिक लक्ष्यों—विशेषकर फिनटेक, डिजिटल एसेट्स और हरित वित्त—के लिए सहायक सिद्ध होगी। वे तपन रे का स्थान ले रहे हैं, जिन्होंने 2019 से शहर को परिवर्तनशील विकास चरण में आगे बढ़ाया। कौल के नेतृत्व में गिफ्ट सिटी में नियामक नवाचार, विदेशी निवेश और संस्थागत विस्तार की संभावनाएँ और प्रबल हो सकती हैं।

आगे के प्रमुख उद्देश्य
संजय कौल के नेतृत्व में गिफ्ट सिटी के लिए प्रमुख लक्ष्यों में शामिल हैं:

  • अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों को आकर्षित करना और सीमा-पार व्यापार को प्रोत्साहित करना।

  • फिनटेक को बढ़ावा देना और प्रतिस्पर्धी नियामक ढाँचा तैयार करना।

  • हरित और सतत वित्त समाधान को बढ़ावा देना।

  • वैश्विक वित्तीय लेन-देन को सक्षम बनाने के लिए बुनियादी ढांचे का विस्तार करना।

  • वैश्विक वित्तीय पारिस्थितिकी तंत्र में भारत की स्थिति को सुदृढ़ करना।

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