श्रीलंका के वास्काडुवा में अशोक स्तंभ की प्रतिकृति का अनावरण किया गया

श्रीलंका के कालुतारा ज़िले स्थित प्रसिद्ध बौद्ध मंदिर वास्काडुवा श्री सुभूति विहाराय में 21 जुलाई 2025 को अशोक स्तंभ की एक प्रतिकृति का अनावरण किया गया। यह पहल भारत और श्रीलंका के बीच आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक कूटनीति का एक महत्वपूर्ण प्रतीक है, जो सम्राट अशोक के श्रीलंकाई बौद्ध धर्म में योगदान को मान्यता देती है। यह विकास क्षेत्र में बौद्ध विरासत और सांस्कृतिक संबंधों को बढ़ावा देने के लिए भारत के निरंतर प्रयासों को भी दर्शाता है।

पृष्ठभूमि:

अशोक स्तंभ की प्रतिकृति की आधारशिला 28 जनवरी 2024 को भारत के उच्चायुक्त श्री संतोष झा और IBC (इंटरनेशनल बुद्धिस्ट कॉन्फ्रेंस) के महासचिव श्रद्धेय शार्टसे खेंसुर जांगचुप चोदेन रिनपोछे द्वारा रखी गई थी। इस परियोजना को तिब्बती बौद्ध धर्मगुरु और लिंग रिनपोछे वंश के सातवें अवतार, महामहिम क्याबजे लिंग रिनपोछे द्वारा पूर्ण रूप से प्रायोजित किया गया। कोलंबो से मात्र 42 किलोमीटर दक्षिण में स्थित यह मंदिर भगवान बुद्ध के कपिलवस्तु अवशेषों को सुरक्षित रखता है और भारत-श्रीलंका बौद्ध सहयोग का एक प्रमुख केंद्र बन चुका है।

अशोक स्तंभ का महत्व:

अशोक स्तंभ सम्राट अशोक के बौद्ध धर्म में योगदान और भारत से बाहर बुद्ध के संदेश को फैलाने के उनके प्रयासों का कालातीत प्रतीक है। वास्काडुवे महिंदवंश महामहायक थेरो ने इस बात पर ज़ोर दिया कि श्रीलंका में बुद्ध शासन (बुद्ध सासना) की स्थापना में अशोक के योगदान — विशेषकर उनके पुत्र अरहंत महिंद और पुत्री अरहंत संघमित्त के माध्यम से — को ऐतिहासिक रूप से कम आंका गया है। इस स्तंभ की स्थापना उनके श्रीलंका की बौद्ध सभ्यता को आकार देने में किए गए महान योगदान को श्रद्धांजलि स्वरूप समर्पित है।

भारत की सांस्कृतिक कूटनीति पहलें:

अशोक स्तंभ का अनावरण भारत द्वारा साझा बौद्ध विरासत को बढ़ावा देने के व्यापक प्रयासों का एक हिस्सा है। प्रमुख पहलों में शामिल हैं:

  • भारत सरकार द्वारा 2020 में घोषित 1.5 करोड़ अमेरिकी डॉलर की सहायता राशि, जिसके अंतर्गत श्रीलंका के 10,000 बौद्ध मंदिरों और मठों को सौर विद्युतीकरण की सुविधा दी जा रही है।

  • वर्ष 2024 में पाली भाषा को शास्त्रीय भाषा का दर्जा प्रदान किया गया, जिसके तहत प्राचीन ग्रंथों के पुनर्प्रकाशन और विद्वानों के बीच आदान-प्रदान को प्रोत्साहित किया जा रहा है।

  • अनुराधापुरा के पवित्र नगर परिसर (Anuradhapura Sacred City Complex) के संरक्षण और देवनीमोरी (गुजरात), सारनाथ और कपिलवस्तु जैसी जगहों से भारत के पवित्र अवशेषों के श्रीलंका में प्रदर्शन हेतु भारत का सहयोग।

  • भारत द्वारा हांगकांग में बुद्ध के पवित्र अवशेषों की नीलामी रोकने हेतु कूटनीतिक हस्तक्षेप, जो धार्मिक धरोहरों की सुरक्षा और पुनःप्राप्ति के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।

आध्यात्मिक और द्विपक्षीय प्रभाव:

वास्काडुवा श्री सुभूति विहाराय को इसके ऐतिहासिक और आध्यात्मिक महत्व के कारण चुना गया। यह मंदिर भगवान बुद्ध के पवित्र अवशेषों को संजोए हुए है और इसके प्रमुख महायक थेरो भारत-श्रीलंका बौद्ध एकता के प्रबल समर्थक हैं। अशोक स्तंभ की स्थापना दोनों देशों के हज़ारों वर्षों पुराने सभ्यतागत संबंधों को प्रतीकात्मक रूप से और सशक्त बनाती है। इस आयोजन में भारत और श्रीलंका के गणमान्य व्यक्तियों की भागीदारी ने बौद्ध संस्कृति के संरक्षण और उत्सव के प्रति साझा प्रतिबद्धता को उजागर किया।

मार्च 2021 से मार्च 2025 तक सकल एनपीए घटकर 2.58% रह गया

भारत में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की सकल गैर-निष्पादित संपत्तियों (Gross NPAs) में उल्लेखनीय गिरावट दर्ज की गई है। मार्च 2021 में जहां यह अनुपात 9.11% था, वहीं मार्च 2025 तक घटकर मात्र 2.58% रह गया। इस बदलाव का श्रेय संस्थागत सुधारों, कड़े विनियामक ढांचे और बेहतर ऋण अनुशासन को दिया जा रहा है।

पृष्ठभूमि:

मार्च 2021 में सकल NPA ₹6.16 लाख करोड़ था, जो कि कुल अग्रिमों का 9.11% था। मार्च 2025 तक यह घटकर ₹2.83 लाख करोड़ (2.58%) रह गया, जिससे यह स्पष्ट होता है कि बैंकों की फंसी हुई ऋण समस्याओं का प्रभावी समाधान किया गया है। इस गिरावट में विधायी संशोधनों, सक्रिय समाधान प्रक्रिया और प्रभावशाली ऋण वसूली रणनीतियों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

प्रमुख सुधार और विनियामक उपाय

  • IBC में व्यापक सुधार: दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता (Insolvency and Bankruptcy Code – IBC) में किए गए बदलावों ने नियंत्रण डिफॉल्टर प्रमोटरों से हटाकर कर्जदाताओं को सौंप दिया, जिससे जानबूझकर डिफॉल्ट करने की प्रवृत्ति में कमी आई और ऋणों के समाधान की प्रक्रिया तेज़ हुई।
  • SARFAESI और DRT अधिनियम में संशोधन: संपत्ति वसूली को सशक्त बनाने हेतु संशोधन किए गए। ऋण वसूली अधिकरण (DRT) की न्यूनतम सीमा ₹10 लाख से बढ़ाकर ₹20 लाख की गई, जिससे बड़े मामलों को प्राथमिकता दी जा सके।
  • RBI की प्रूडेंशियल रूपरेखा: तनावग्रस्त ऋणों की समय रहते पहचान, सीमित समय में समाधान, और समय पर कार्रवाई करने वाले ऋणदाताओं को प्रोत्साहन देने पर ज़ोर दिया गया।

संस्थागत तंत्र

  • विशेषीकृत NPA प्रबंधन इकाइयाँ: बैंकों ने तनावग्रस्त ऋणों के लिए समर्पित विभाग बनाए, जिससे निगरानी और फॉलो-अप में सुधार हुआ।
  • बिज़नेस कॉरेस्पोंडेंट्स और फील्ड रिकवरी टीमें: ग्रामीण और दूरदराज़ क्षेत्रों में वसूली और समाधान की पहुंच बढ़ाई गई।
  • मूल्यांकन दिशा-निर्देश: RBI ने ₹50 करोड़ से अधिक की संपत्तियों के लिए स्वतंत्र और पेशेवर मूल्यांकन को अनिवार्य किया है, जिसमें पारदर्शिता सुनिश्चित करने हेतु दोहरी मूल्यांकन व्यवस्था भी शामिल है।

पारदर्शी संपत्ति निपटान और ई-नीलामी

RBI के निर्देश पर बैंक जब्त की गई संपत्तियों को ई-नीलामी के माध्यम से बेचते हैं, जिससे मूल्य की पारदर्शी खोज (price discovery) संभव होती है। बिक्री से पहले संपत्तियों का पुनर्मूल्यांकन पैनल में शामिल मूल्यांककों द्वारा किया जाता है ताकि उचित बाज़ार मूल्य सुनिश्चित हो सके।

गलत मूल्यांकन के विरुद्ध सुरक्षा उपाय

RBI के IRAC मानदंडों के अनुसार हर तीन वर्ष में संपत्तियों का पुनर्मूल्यांकन अनिवार्य है। जॉइंट लेंडर्स फोरम (JLF) दिशानिर्देश बैंकों को मूल्यांककों को जवाबदेह ठहराने और अनियमितताओं की रिपोर्ट इंडियन बैंक्स एसोसिएशन (IBA) को करने की शक्ति देते हैं, जिससे सुरक्षा मूल्यांकन की विश्वसनीयता में सुधार हुआ है।

भारत में बौद्धिक संपदा (आईपी) फाइलिंग में पांच वर्षों में 44% की बढोतरी

पिछले पाँच वर्षों में भारत में बौद्धिक संपदा (IP) पंजीकरण में 44% की वृद्धि दर्ज की गई है, जिसका श्रेय सरकार की नीतिगत सुधारों, शुल्क में रियायतों और IP सेवाओं के डिजिटलीकरण को जाता है। यह वृद्धि देश में बढ़ती जागरूकता, जीवंत स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र और भौगोलिक संकेतक (GI), पेटेंट तथा ट्रेडमार्क के माध्यम से स्वदेशी उत्पादों की रक्षा के प्रयासों को दर्शाती है।

पृष्ठभूमि:

वर्ष 2020–21 से 2024–25 के बीच कुल IP फाइलिंग 4.77 लाख से बढ़कर 6.89 लाख हो गई। इस दौरान सर्वाधिक वृद्धि भौगोलिक संकेतकों (380%) में देखी गई, इसके बाद डिज़ाइन (266%), पेटेंट (180%) और कॉपीराइट (83%) में वृद्धि दर्ज की गई। यह सरकार द्वारा नवाचार को बढ़ावा देने और बौद्धिक संपदा की सुरक्षा के लिए किए जा रहे सक्रिय प्रयासों को उजागर करता है।

प्रमुख सुधार और विशेषताएं

  • पेटेंट: केवल ऑनलाइन फाइलिंग, सरलीकृत फॉर्म 27, परीक्षण हेतु अनुरोध (Request for Examination) की समयसीमा 31 महीनों तक घटाई गई, और ई-नवीकरण पर 10% शुल्क में छूट।
  • ट्रेडमार्क: 74 फॉर्म को घटाकर 8 किया गया, साउंड मार्क्स के लिए एक्सप्रेस फाइलिंग की सुविधा, और Registered Users के लिए प्रक्रिया को सरल बनाया गया।
  • डिज़ाइन्स: लोकार्नो वर्गीकरण (Locarno Classification) को अपनाया गया और पूरी प्रक्रिया का डिजिटलीकरण किया गया।
  • कॉपीराइट: सॉफ्टवेयर से संबंधित नियमों को सरल किया गया और सोसाइटियों की पारदर्शिता को बढ़ाया गया।
  • भौगोलिक संकेतक (GI): प्राधिकृत उपयोगकर्ताओं के लिए पंजीकरण प्रक्रिया को आसान बनाया गया।

स्टार्टअप्स और MSMEs को समर्थन

शुल्क में कटौती:

  • पेटेंट में 80%

  • डिज़ाइन्स में 75%

  • ट्रेडमार्क में 50%
    संशोधित नियमों के तहत स्टार्टअप्स, MSMEs, महिला आवेदकों और सरकारी संस्थानों के लिए त्वरित परीक्षण (Expedited Examination) की सुविधा उपलब्ध कराई गई है।

डिजिटल परिवर्तन और नवाचार

अब 95% से अधिक IP फाइलिंग ऑनलाइन हो रही है।

AI आधारित ट्रेडमार्क सर्च, IP डैशबोर्ड, और ‘IP सारथी’ चैटबॉट की शुरुआत की गई है।

24×7 ई-फाइलिंग प्रणाली में रीयल-टाइम ट्रैकिंग, वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग, ई-प्रमाणपत्र, और SMS अलर्ट जैसी सुविधाएं शामिल हैं।

बौद्धिक संपदा जागरूकता और आउटरीच

  • राष्ट्रीय बौद्धिक संपदा जागरूकता मिशन (NIPAM): देश के सभी राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में 9500 कार्यक्रमों के माध्यम से 25 लाख से अधिक छात्रों तक पहुंच।
  • WIPO IP डायग्नॉस्टिक टूल: 5 भाषाओं में स्टार्टअप्स और MSMEs के लिए उपलब्ध।
  • SIPP योजना: स्टार्टअप्स को निशुल्क IP सहायता प्रदान करती है; अब इसे शैक्षणिक संस्थानों तक भी विस्तारित किया गया है।

मानव संसाधन और शिकायत निवारण

पेटेंट कार्यालय की क्षमता में 233% की वृद्धि हुई है — 2014 में 431 कार्मिकों से बढ़कर 2024 में 1433 हो गई।
शिकायत निवारण के लिए डेली ओपन हाउस कॉन्फ्रेंस और ओपन हाउस IT हेल्पडेस्क शुरू किए गए हैं।

भौगोलिक संकेतक (GI): तेज़ वृद्धि

कोविड के बाद GI पंजीकरण में तीव्र वृद्धि देखी गई, जो 2023–24 में 160 तक पहुंच गई। अब तक भारत में कुल 697 GI पंजीकृत किए जा चुके हैं, जो पारंपरिक और क्षेत्रीय उत्पादों की सुरक्षा के लिए एक मजबूत पहल को दर्शाता है।

नासा-इसरो का संयुक्त निसार मिशन 30 जुलाई को होगा लॉन्च

भारत 30 जुलाई 2025 को NASA-ISRO सिंथेटिक अपर्चर रडार (NISAR) उपग्रह का प्रक्षेपण करने जा रहा है। यह ISRO और NASA के बीच पहला संयुक्त पृथ्वी अवलोकन मिशन है, जिसे श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र (SDSC-SHAR) से GSLV-F16 रॉकेट के माध्यम से लॉन्च किया जाएगा। उपग्रह को 743 किमी की ऊंचाई पर 98.4° झुकाव वाले सन-सिंक्रोनस कक्षा (SSO) में स्थापित किया जाएगा, जिससे पृथ्वी की सतह का हर मौसम और प्रकाश परिस्थितियों में लगातार अवलोकन संभव होगा।

पृष्ठभूमि
NISAR मिशन ISRO और NASA के जेट प्रोपल्शन लेबोरेटरी (JPL) के बीच एक दशक से अधिक की तकनीकी साझेदारी का परिणाम है। इसमें NASA का L-बैंड रडार और ISRO का S-बैंड रडार एक ही उपग्रह पर एकीकृत किया गया है। NASA का 12-मीटर का फोल्ड होने वाला मेश रिफ्लेक्टर एंटीना और ISRO का संशोधित I3K उपग्रह बस इस सहयोग की तकनीकी श्रेष्ठता को दर्शाते हैं।

महत्व
NISAR अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष सहयोग में एक मील का पत्थर है और पृथ्वी अवलोकन की वैश्विक क्षमताओं में एक बड़ी छलांग है। यह पहला उपग्रह है जो नागरिक उपयोग के लिए ड्यूल-फ्रिक्वेंसी सिंथेटिक अपर्चर रडार (SAR) तकनीक का उपयोग करेगा। यह पृथ्वी की सतह पर एक सेंटीमीटर जितने सूक्ष्म परिवर्तनों का भी पता लगा सकता है, जिससे वैज्ञानिकों को जलवायु, पारिस्थितिकी तंत्र और प्राकृतिक आपदाओं की बेहतर समझ मिल सकेगी।

उद्देश्य
NISAR मिशन का मुख्य उद्देश्य पृथ्वी की सतह पर हर 12 दिन में उच्च-रिज़ॉल्यूशन, हर मौसम और दिन-रात का डेटा प्रदान करना है। यह प्राकृतिक आपदाओं की निगरानी, कृषि रुझानों का आकलन, आपदा प्रभाव का विश्लेषण और पारिस्थितिकीय व्यवधानों का अध्ययन करने में सहायक होगा। इसके वैज्ञानिक लक्ष्य ग्लेशियर की गति, ज़मीन धंसने, भू-गति, वनस्पति और मिट्टी की नमी में बदलाव को ट्रैक करना शामिल हैं।

प्रमुख विशेषताएँ

  • प्रक्षेपण यान: ISRO का GSLV-F16

  • प्रक्षेपण तिथि: 30 जुलाई 2025, शाम 5:40 बजे IST

  • उपग्रह का भार: 2392 किलोग्राम

  • कक्षा प्रकार: सन-सिंक्रोनस कक्षा (743 किमी)

  • रडार बैंड्स: L-बैंड (NASA) और S-बैंड (ISRO)

  • स्वाथ चौड़ाई: 242 किमी

  • तकनीक: स्वीपSAR तकनीक

  • पुनरावृत्ति चक्र: 12-दिवसीय वैश्विक कवरेज

अनुप्रयोग और प्रभाव
NISAR डेटा कई क्षेत्रों को लाभ पहुंचाएगा, जैसे:

  • आपदा प्रबंधन: भूस्खलन, भूकंप और बाढ़ मानचित्रण

  • जलवायु अनुसंधान: ध्रुवीय बर्फ की निगरानी और तूफानों का विश्लेषण

  • कृषि: मिट्टी की नमी और फसल की निगरानी

  • शहरी नियोजन: ज़मीन की गति और बुनियादी ढांचे की स्थिरता

  • पर्यावरण निगरानी: वन क्षेत्र में बदलाव और जल निकायों की गतिशीलता

इसकी हर मौसम में काम करने की क्षमता सरकारों और शोधकर्ताओं को नीति-निर्माण, संसाधन प्रबंधन और जलवायु लचीलापन रणनीतियाँ तैयार करने में मदद करेगी।

LIC का ‘बीमा सखी योजना’ के लिए ग्रामीण विकास मंत्रालय के साथ समझौता

भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआईसी) ने कहा कि उसने ग्रामीण क्षेत्रों में अपनी ‘बीमा सखी योजना’ को बढ़ावा देने के लिए ग्रामीण विकास मंत्रालय के साथ एक समझौता ज्ञापन (एमओयू) किया है। गोवा में 8-10 जुलाई को वित्तीय समावेशन पर आयोजित राष्ट्रीय सम्मेलन ‘अनुभूति’ के दौरान इस एमओयू पर हस्ताक्षर किए गए। एलआईसी ने बयान में कहा कि उसकी ‘बीमा सखी योजना’ बीमा वितरण क्षेत्र में महिलाओं की मौजूदगी को मजबूती देने के लिए बनाई गई है।

पृष्ठभूमि
भारतीय जीवन बीमा निगम (LIC), देश की प्रमुख जीवन बीमा कंपनी, लंबे समय से पूरे भारत में वित्तीय सुरक्षा की आधारशिला रही है। ग्रामीण भारत में मौजूद अपार संभावनाओं और महिला-नेतृत्वित विकास के महत्व को पहचानते हुए, LIC ने ‘बीमा सखी योजना’ की शुरुआत एक लक्षित पहल के रूप में की है। यह योजना, गरीबी उन्मूलन हेतु स्वरोजगार और कौशल विकास को प्रोत्साहित करने वाले दीनदयाल अंत्योदय योजना – राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (DAY-NRLM) के उद्देश्यों के साथ पूर्णतः मेल खाती है और इसी रणनीतिक समझौता ज्ञापन (MoU) का आधार बनती है।

महत्व
यह सहयोग ग्रामीण महिलाओं को औपचारिक वित्तीय प्रणाली में सक्रिय भागीदार के रूप में शामिल कर उन्हें सशक्त बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। प्रदर्शन-आधारित एजेंसी मॉडल के माध्यम से यह योजना महिलाओं को दीर्घकालिक आर्थिक स्वतंत्रता प्रदान करती है, ग्रामीण क्षेत्रों में बीमा कवरेज को बढ़ाती है, और वित्तीय समावेशन व महिला-नेतृत्वित उद्यमिता के सरकारी लक्ष्यों को मजबूती देती है। यह समझौता ग्रामीण भारत में आजीविका के विकल्पों का विस्तार कर घरेलू आय को बढ़ाने में भी सहायक सिद्ध होगा।

उद्देश्य

  • बीमा क्षेत्र में करियर के अवसर देकर ग्रामीण महिलाओं को सशक्त बनाना।

  • दूरस्थ क्षेत्रों में जीवन बीमा से संबंधित वित्तीय साक्षरता और जागरूकता को बढ़ाना।

  • ग्रामीण परिवारों की आय और आर्थिक लचीलापन सुधारना।

  • महिलाओं की औपचारिक वित्तीय सेवाओं में भागीदारी को बढ़ाने हेतु DAY-NRLM के लक्ष्यों से मेल करना।

प्रमुख विशेषताएँ

  • पात्रता: केवल महिलाएं ही बीमा सखी योजना में नामांकन कर सकती हैं।

  • वृत्तिका समर्थन: प्रदर्शन के आधार पर पहले वर्ष ₹7,000, दूसरे वर्ष ₹6,000 और तीसरे वर्ष ₹5,000 की सहायता राशि।

  • करियर पथ: नियमित LIC एजेंट की तरह सभी सुविधाएँ—कमीशन, प्रोत्साहन और मान्यता प्राप्त होती है।

  • NRLM से तालमेल: स्वयं सहायता समूहों (SHGs) और महिला सामूहिक संस्थाओं के साथ एकीकरण को प्रोत्साहन।

  • क्रियान्वयन सहयोग: ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा राज्यों में मौजूदा ग्रामीण विकास ढाँचों के माध्यम से कार्यान्वयन।

संजय कौल (IAS) ने गिफ्ट सिटी के एमडी और ग्रुप सीईओ का कार्यभार संभाला

वरिष्ठ भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) अधिकारी संजय कौल ने भारत के प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय सेवा केंद्र (आईएफएससी), गुजरात इंटरनेशनल फाइनेंस टेक-सिटी (गिफ्ट सिटी) के प्रबंध निदेशक और समूह सीईओ के रूप में आधिकारिक तौर पर कार्यभार संभाल लिया है। उनकी नियुक्ति भारत की वित्तीय अवसंरचना रणनीति की एक प्रमुख परियोजना, गिफ्ट सिटी के लिए एक महत्वपूर्ण नेतृत्व परिवर्तन का प्रतीक है। सार्वजनिक नीति, अवसंरचना, प्रौद्योगिकी और वित्त सहित विभिन्न क्षेत्रों में दो दशकों से अधिक के अनुभव के साथ, कौल के नेतृत्व से गिफ्ट सिटी के वैश्विक वित्तीय केंद्र बनने के दृष्टिकोण को गति मिलने की उम्मीद है।

गिफ्ट सिटी की पृष्ठभूमि
गुजरात इंटरनेशनल फाइनेंस टेक-सिटी (GIFT City), गांधीनगर, गुजरात में स्थित है और यह भारत का पहला परिचालित स्मार्ट सिटी तथा देश का पहला अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय सेवा केंद्र (IFSC) है। इसे एक वैश्विक वित्तीय और आईटी सेवा केंद्र के रूप में विकसित करने की कल्पना की गई थी, जिससे बैंकिंग, बीमा, परिसंपत्ति प्रबंधन और पूंजी बाजारों में अंतरराष्ट्रीय व्यापार को आकर्षित किया जा सके। अपनी स्थापना के बाद से, गिफ्ट सिटी ने निवेशों में वृद्धि, आधारभूत संरचना के उन्नयन और IFSC प्राधिकरण (IFSCA) जैसे निकायों की स्थापना के साथ उल्लेखनीय प्रगति की है।

संजय कौल के बारे में
संजय कौल 2001 बैच के आईएएस अधिकारी हैं, जिन्हें सार्वजनिक सेवा में अपने विविध अनुभव के लिए जाना जाता है। उन्होंने संस्कृति मंत्रालय में संयुक्त सचिव, गुजरात इनफॉर्मेटिक्स लिमिटेड और गुजरात पर्यटन निगम लिमिटेड जैसे संस्थानों में नेतृत्वकारी भूमिकाएँ निभाई हैं। मूल रूप से गुजरात से ताल्लुक रखने वाले कौल ने इलेक्ट्रॉनिक्स और कम्युनिकेशन में एनआईटी सूरत से इंजीनियरिंग की डिग्री और न्यूयॉर्क के सिराक्यूज़ यूनिवर्सिटी से सार्वजनिक नीति में डिग्री प्राप्त की है। उनका बहुआयामी अनुभव गिफ्ट सिटी की अंतरराष्ट्रीय और तकनीकी आकांक्षाओं को दिशा देने के लिए उपयुक्त माना जा रहा है।

नियुक्ति का महत्व
गिफ्ट सिटी को एक अग्रणी वैश्विक वित्तीय केंद्र के रूप में स्थापित करने के प्रयासों के बीच संजय कौल की नियुक्ति एक निर्णायक समय पर हुई है। बुनियादी ढांचे के विकास और तकनीक के एकीकरण में उनकी विशेषज्ञता गिफ्ट सिटी के रणनीतिक लक्ष्यों—विशेषकर फिनटेक, डिजिटल एसेट्स और हरित वित्त—के लिए सहायक सिद्ध होगी। वे तपन रे का स्थान ले रहे हैं, जिन्होंने 2019 से शहर को परिवर्तनशील विकास चरण में आगे बढ़ाया। कौल के नेतृत्व में गिफ्ट सिटी में नियामक नवाचार, विदेशी निवेश और संस्थागत विस्तार की संभावनाएँ और प्रबल हो सकती हैं।

आगे के प्रमुख उद्देश्य
संजय कौल के नेतृत्व में गिफ्ट सिटी के लिए प्रमुख लक्ष्यों में शामिल हैं:

  • अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों को आकर्षित करना और सीमा-पार व्यापार को प्रोत्साहित करना।

  • फिनटेक को बढ़ावा देना और प्रतिस्पर्धी नियामक ढाँचा तैयार करना।

  • हरित और सतत वित्त समाधान को बढ़ावा देना।

  • वैश्विक वित्तीय लेन-देन को सक्षम बनाने के लिए बुनियादी ढांचे का विस्तार करना।

  • वैश्विक वित्तीय पारिस्थितिकी तंत्र में भारत की स्थिति को सुदृढ़ करना।

जून में कोर सेक्टर की रफ्तार रही 1.7%

भारत के आठ प्रमुख बुनियादी ढाँचा उद्योगों ने जून 2025 में 1.7% की वृद्धि दर्ज की, जो मई के संशोधित 1.2% के आँकड़े की तुलना में मामूली वृद्धि है। जून 2024 की 5% वृद्धि दर से काफ़ी कम होने के बावजूद, यह वृद्धि तीन महीने के उच्चतम स्तर को दर्शाती है, जो औद्योगिक उत्पादन में मिले-जुले रुझान को दर्शाती है।

पृष्ठभूमि

कोर इंडस्ट्रीज सूचकांक (ICI) आठ प्रमुख बुनियादी ढांचा क्षेत्रों के प्रदर्शन को मापता है: कोयला, कच्चा तेल, प्राकृतिक गैस, रिफाइनरी उत्पाद, उर्वरक, इस्पात, सीमेंट और बिजली। ये क्षेत्र औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (IIP) के कुल भार में 40.27% का योगदान करते हैं। इस सूचकांक को वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय द्वारा जारी किया जाता है।

वर्तमान प्रदर्शन का अवलोकन

जून 2025 में आठ में से पाँच मुख्य बुनियादी ढांचा क्षेत्रों में उत्पादन में गिरावट दर्ज की गई:

  • कोयला: -6.8%

  • कच्चा तेल: -1.2%

  • प्राकृतिक गैस: -2.8%

  • उर्वरक: -1.2%

  • बिजली: -2.8%

हालांकि, रिफाइनरी उत्पादों में 3.4% की वृद्धि हुई, जबकि इस्पात और सीमेंट क्षेत्रों ने क्रमशः 9.3% और 9.2% की मजबूत वृद्धि दर्ज की। इन सकारात्मक क्षेत्रों ने अन्य क्षेत्रों की कमजोरी के बावजूद समग्र सूचकांक को ऊपर उठाने में मदद की।

त्रैमासिक प्रदर्शन

वित्त वर्ष 2025–26 की अप्रैल-जून तिमाही में मुख्य क्षेत्र ने केवल 1.3% की वृद्धि दर्ज की, जो पिछले वर्ष की समान अवधि में 6.2% की वृद्धि की तुलना में काफी कम है। यह मंदी औद्योगिक और बुनियादी ढांचा गतिविधियों में शुरुआती सुस्ती को दर्शाती है।

प्रभाव और महत्व

मुख्य क्षेत्र का प्रदर्शन समग्र औद्योगिक विकास का एक महत्वपूर्ण संकेतक है, जो प्रत्यक्ष रूप से जीडीपी अनुमान, मौद्रिक नीति निर्णयों, और निवेशक धारणा को प्रभावित करता है। ऊर्जा और उर्वरक उत्पादन में गिरावट कृषि और बिजली-निर्भर उद्योगों को प्रभावित कर सकती है, जबकि इस्पात और सीमेंट में वृद्धि निर्माण और बुनियादी ढांचा गतिविधियों में मजबूती का संकेत देती है।

चुनौतियाँ

बिजली और ऊर्जा से संबंधित क्षेत्रों में संकुचन से कुछ सतत चुनौतियाँ सामने आई हैं:

  • आपूर्ति श्रृंखला में बाधाएँ

  • वैश्विक कच्चे तेल की कीमतों में उतार-चढ़ाव

  • मानसून से जुड़ी बिजली मांग

  • उर्वरक क्षेत्र में कच्चे माल की उपलब्धता में रुकावट

इन मुद्दों पर नीति-निर्माताओं को ध्यान देना आवश्यक है ताकि मुख्य क्षेत्रों की गति को स्थिर किया जा सके।

भारत 23 साल बाद करेगा चेस वर्ल्ड कप की मेजबानी

भारत 30 अक्टूबर से 27 नवंबर 2025 तक अंतरराष्ट्रीय शतरंज की सबसे प्रतिष्ठित प्रतियोगिताओं में से एक, FIDE वर्ल्ड कप 2025 की मेज़बानी करेगा। इस संस्करण में 206 शीर्ष खिलाड़ी नॉकआउट प्रारूप में प्रतिस्पर्धा करेंगे, और यह टूर्नामेंट FIDE कैंडिडेट्स टूर्नामेंट 2026 में क्वालिफाई करने का एक महत्वपूर्ण मंच भी होगा।

पृष्ठभूमि

FIDE वर्ल्ड कप एक द्विवार्षिक शतरंज चैंपियनशिप है, जिसे फ़ेडेरेशन इंटरनेशनेल देस एके (FIDE) द्वारा आयोजित किया जाता है। यह प्रतियोगिता अपने कठिन और प्रतिस्पर्धात्मक प्रारूप के लिए जानी जाती है और FIDE विश्व शतरंज चैम्पियनशिप चक्र में क्वालिफाई करने का प्रमुख मार्ग मानी जाती है। इस टूर्नामेंट की प्रतिष्ठा लगातार बढ़ी है, क्योंकि इसमें दुनिया भर के शीर्ष खिलाड़ी भाग लेते हैं और हर मुकाबला उच्च दांव पर होता है।

प्रारूप और संरचना

  • टूर्नामेंट नॉकआउट फॉर्मेट में खेला जाएगा, जो 2021 से लागू है।

  • 206 खिलाड़ी भाग लेंगे।

  • शीर्ष 50 खिलाड़ियों को पहले राउंड में बाय मिलेगा।

  • हर राउंड तीन दिन तक चलेगा – 2 क्लासिकल गेम और 1 टाई-ब्रेक डे।

  • यह तेज़ और प्रतिस्पर्धात्मक ढांचा सुनिश्चित करता है कि हर मुकाबले में कोई दूसरी चांस नहीं होगी।

क्वालिफिकेशन मानदंड

खिलाड़ी कई चैनलों के माध्यम से क्वालिफाई करेंगे:

  • वर्तमान विश्व और महिला विश्व चैंपियन

  • FIDE वर्ल्ड कप 2023 के शीर्ष खिलाड़ी

  • महाद्वीपीय कोटा: अफ्रीका (3), अमेरिका (12), एशिया (35), यूरोप (30)

  • FIDE रेटिंग (जून 2025) में शीर्ष 13 खिलाड़ी जो अन्य तरीके से क्वालिफाई नहीं हुए

  • 2024 ओलंपियाड की शीर्ष 100 टीमें अपने 1-1 खिलाड़ी को नामित कर सकती हैं

  • FIDE अध्यक्ष और आयोजक द्वारा अतिरिक्त नामांकन

यह विविध क्वालिफिकेशन प्रणाली वैश्विक प्रतिनिधित्व और समावेशन को बढ़ावा देती है।

भारत की शतरंज में उभरती भूमिका

विश्वनाथन आनंद जैसे दिग्गजों की प्रेरणा से भारत अब एक वैश्विक शतरंज केंद्र बन चुका है।
मुख्य उपलब्धियाँ:

  • गुकेश डोम्मराजु, प्रग्गनानंधा आर, अर्जुन एरिगैसी जैसे युवा सितारे

  • 2024 शतरंज ओलंपियाड में ओपन और महिला दोनों वर्गों में ऐतिहासिक स्वर्ण पदक

  • FIDE रैपिड और ब्लिट्ज चैंपियनशिप में सफलता

  • FIDE ओलंपियाड 2022 और Tata Steel India जैसे मेगा इवेंट्स की मेज़बानी

FIDE वर्ल्ड कप 2025 की मेज़बानी भारत की वैश्विक शतरंज विकास में केंद्रीय भूमिका को और मजबूत करती है।

प्रभाव और भविष्य की दिशा

यह टूर्नामेंट:

  • भारत की खेल कूटनीति में प्रतिष्ठा बढ़ाएगा

  • पर्यटन, इन्फ्रास्ट्रक्चर, और स्थानीय भागीदारी को प्रोत्साहन देगा

  • देशभर के उभरते शतरंज खिलाड़ियों के लिए प्रेरणा बनेगा

  • FIDE द्वारा शतरंज दिग्गजों के साथ साइड इवेंट्स भी आयोजित किए जाएंगे, ताकि आम जनता की भागीदारी बढ़ सके।

विश्व मस्तिष्क दिवस 2025: थीम, इतिहास, महत्व

हर साल 22 जुलाई को मनाया जाने वाला विश्व मस्तिष्क स्वास्थ्य दिवस (World Brain Health Day) जीवन के सभी चरणों में मस्तिष्क स्वास्थ्य की सुरक्षा और उसे बेहतर बनाने की वैश्विक आवश्यकता की याद दिलाता है। यह दिवस वर्ल्ड फेडरेशन ऑफ न्यूरोलॉजी (WFN) द्वारा आयोजित किया जाता है, जिसका उद्देश्य न्यूरोलॉजिकल स्वास्थ्य पर ध्यान केंद्रित करना, समय रहते हस्तक्षेप की आवश्यकता को रेखांकित करना, और मस्तिष्क के अनुकूल जीवनशैली अपनाने को प्रोत्साहित करना है। जैसे-जैसे दुनियाभर में डिमेंशिया, स्ट्रोक, और पार्किंसन जैसी न्यूरोलॉजिकल बीमारियों के मामले बढ़ रहे हैं, यह दिवस व्यक्तियों और समुदायों को मस्तिष्क स्वास्थ्य को निजी और सार्वजनिक स्वास्थ्य की प्राथमिकता बनाने के लिए प्रेरित करता है।

विश्व मस्तिष्क स्वास्थ्य दिवस 2025 की थीम

विश्व मस्तिष्क स्वास्थ्य दिवस 2025 की थीम “सभी उम्र के लोगों के लिए ब्रेन हेल्थ” है। यह थीम भ्रूण से लेकर बुढ़ापे तक, सभी लोगों के दिमाग के स्वास्थ्य को बेहतर बनाए रखने के महत्व पर जोर देता है। इस थीम का उद्देश्य लोगों के बीच ब्रेन हेल्थ को लेकर जागरुकता बढ़ाना, लोगों को शिक्षित करना और सभी उम्र के लोगों में ब्रेन हेल्थ की सही देखभाल को लेकर पहुंच बनाना है।

इतिहास और पृष्ठभूमि

विश्व मस्तिष्क दिवस (World Brain Day) की शुरुआत 2014 में वर्ल्ड फेडरेशन ऑफ न्यूरोलॉजी (WFN) द्वारा की गई थी, जिसका उद्देश्य न्यूरोलॉजिकल समस्याओं के बारे में जागरूकता बढ़ाना और समय पर इलाज को प्रोत्साहित करना था। शुरूआत में यह दिवस व्यापक न्यूरोलॉजिकल विषयों को उजागर करता था, लेकिन 2023 से इसका फोकस “मस्तिष्क स्वास्थ्य और रोकथाम (Brain Health and Prevention)” की ओर केंद्रित हो गया। यह बदलाव केवल इलाज से आगे बढ़कर रोकथाम आधारित मस्तिष्क देखभाल को प्राथमिकता देने की दिशा में एक बड़ा कदम था।

मस्तिष्क स्वास्थ्य क्यों महत्वपूर्ण है

मस्तिष्क का स्वास्थ्य समग्र कल्याण, उत्पादकता और जीवन की गुणवत्ता के लिए अत्यंत आवश्यक है। मस्तिष्क से जुड़ी बीमारियां किसी व्यक्ति की कार्य करने, सोचने और सामाजिक संबंध निभाने की क्षमता को सीमित कर सकती हैं। विश्व मस्तिष्क स्वास्थ्य दिवस लोगों को यह समझने के लिए प्रेरित करता है कि खराब आहार, दीर्घकालिक तनाव, और बैठे रहने की जीवनशैली जैसे जोखिम कारकों से कैसे बचा जाए और मानसिक लचीलापन, न्यूरोप्लास्टिसिटी और जीवनभर की संज्ञानात्मक क्षमता को बनाए रखा जाए।

मस्तिष्क स्वास्थ्य सुधारने के लिए जीवनशैली में परिवर्तन

  1. गुणवत्तापूर्ण नींद को प्राथमिकता दें
    प्रतिदिन 7–9 घंटे की नींद जरूरी है, जिससे याद्दाश्त मजबूत होती है और मस्तिष्क से विषैले तत्व बाहर निकलते हैं। सोने से पहले स्क्रीन का उपयोग न करें और शांत, अंधेरे वातावरण में आराम करें।

  2. नियमित व्यायाम करें
    शारीरिक गतिविधि मस्तिष्क में रक्त संचार बढ़ाती है, याददाश्त को बेहतर बनाती है और संज्ञानात्मक ह्रास को धीमा करती है। आप वॉकिंग, योग, स्विमिंग या स्ट्रेंथ ट्रेनिंग चुन सकते हैं।

  3. मस्तिष्क के अनुकूल आहार लें
    ओमेगा-3 फैटी एसिड, एंटीऑक्सीडेंट और एंटी-इन्फ्लेमेटरी गुणों से भरपूर खाद्य पदार्थ जैसे अखरोट, बेरीज, हरी पत्तेदार सब्जियां और मछली खाएं। मेडिटेरेनियन डाइट विशेष रूप से लाभदायक मानी जाती है।

  4. मानसिक रूप से सक्रिय रहें
    पढ़ाई, पहेलियाँ हल करना या नई भाषा सीखना जैसे कार्य मस्तिष्क को सक्रिय रखते हैं और बढ़ती उम्र से होने वाली गिरावट को टालते हैं।

  5. दीर्घकालिक तनाव को नियंत्रित करें
    पुराना तनाव याददाश्त और भावनात्मक संतुलन को प्रभावित करता है। माइंडफुलनेस, मेडिटेशन या अपने पसंदीदा शौक के ज़रिए तनाव को संभालें।

  6. सामाजिक संबंध बनाए रखें
    नियमित और सार्थक संवाद अकेलेपन और डिप्रेशन से बचाता है, जो मस्तिष्क स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं। दोस्तों से मिलें, सामुदायिक गतिविधियों में भाग लें।

  7. शराब और धूम्रपान से बचें
    अल्कोहल और तंबाकू से दूरी बनाना स्मृति ह्रास, स्ट्रोक और मस्तिष्क क्षरण से बचाने में सहायक होता है।

  8. पर्याप्त पानी पिएं
    मस्तिष्क 75% पानी से बना होता है। हल्की डिहाइड्रेशन भी एकाग्रता और मूड पर असर डालती है। रोजाना 7–8 गिलास पानी जरूर पिएं और मीठे पेयों से बचें।

नाबार्ड ने पूरे किए 44 वर्ष: वित्तीय समावेशन की दिशा में निरंतर विस्तार

राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) ने हाल ही में अपना 44वां स्थापना दिवस मनाया, जिसमें ग्रामीण विकास, वित्तीय समावेशन और संस्थागत सशक्तिकरण के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को दोहराया गया। वर्ष 1982 में स्थापित नाबार्ड भारत के ग्रामीण परिदृश्य में सतत और समावेशी विकास को साकार करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। इस अवसर पर विभिन्न कार्यक्रमों, वृत्तचित्रों और प्रकाशनों का आयोजन किया गया, जिनमें बैंक की उपलब्धियों और भविष्य की प्राथमिकताओं को प्रदर्शित किया गया। विशेष रूप से आंध्र प्रदेश और अरुणाचल प्रदेश राज्यों में नाबार्ड द्वारा संचालित बुनियादी ढांचा विकास और ऋण पहलों को प्रमुखता से प्रस्तुत किया गया।

पृष्ठभूमि
राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) की स्थापना 12 जुलाई 1982 को बी. शिवरामन समिति की सिफारिशों के आधार पर एक शीर्ष विकास वित्तीय संस्था के रूप में की गई थी। इसे संसद के एक अधिनियम के माध्यम से इस उद्देश्य से स्थापित किया गया कि यह वित्तीय और गैर-वित्तीय हस्तक्षेपों के माध्यम से सतत और समान कृषि एवं ग्रामीण विकास को बढ़ावा दे। तब से, नाबार्ड सरकारी योजनाओं के कार्यान्वयन, ग्रामीण ऋण संस्थानों को पुनर्वित्त प्रदान करने और अपने विभिन्न कोषों जैसे ग्रामीण अवसंरचना विकास कोष (RIDF) के माध्यम से ग्रामीण अवसंरचना के समर्थन में एक प्रमुख एजेंसी बन गया है।

44वें स्थापना दिवस का महत्व
नाबार्ड के 44वें स्थापना दिवस ने बीते दशकों में संस्था के योगदान को रेखांकित करने और ग्रामीण भारत को रूपांतरित करने की इसकी नवप्रतिबद्धता को प्रदर्शित करने का मंच प्रदान किया। इस अवसर पर “रूट्स ऑफ चेंज” नामक एक लघु वृत्तचित्र और “निधि” नामक प्रकाशन का विमोचन किया गया, किसान उत्पादक संगठनों (FPOs) और हस्तशिल्पियों की प्रदर्शनी लगाई गई, साथ ही उत्कृष्ठ प्राथमिक कृषि साख समितियों (PACS) और जिला सहकारी केंद्रीय बैंकों (DCCBs) को सम्मानित किया गया। इस दिन ने सहकारी ऋण सुधार, डिजिटल सशक्तिकरण और जमीनी स्तर पर वित्तीय पहुंच के प्रति नाबार्ड की प्रतिबद्धता को उजागर किया।

प्रमुख उपलब्धियां
समारोह के दौरान, नाबार्ड के आंध्र प्रदेश क्षेत्रीय कार्यालय ने वर्ष 2024–25 के लिए ₹42,842 करोड़ के ऋण और ₹31.83 करोड़ की अनुदान सहायता के वितरण की घोषणा की। ये निधियां अवसंरचना विकास और संस्थागत क्षमता निर्माण के लिए थीं। ईस्ट गोदावरी, वेस्ट गोदावरी और नंद्याल जिलों में नए जिला विकास प्रबंधक (DDM) कार्यालयों का उद्घाटन स्थानीय स्तर पर नाबार्ड की उपस्थिति को मजबूत करने की दिशा में एक कदम था।

अरुणाचल प्रदेश में नाबार्ड ने ग्रामीण अवसंरचना विकास कोष (RIDF) के तहत 485 परियोजनाओं के लिए ₹4,613 करोड़ की स्वीकृति दी, जिससे ग्रामीण संपर्क, सिंचाई और आजीविका के अवसरों में सुधार हुआ। “सहकारिता एक बेहतर विश्व का निर्माण करती है” विषय पर एक जागरूकता कार्यक्रम भी आयोजित किया गया, जिसमें RBI, SIDBI, NCDC और स्थानीय सहकारी संघों समेत कई हितधारकों ने भाग लिया।

उद्देश्य और दृष्टिकोण
नाबार्ड का उद्देश्य ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सशक्त बनाना है, जिसके लिए यह ऋण पहुंच को सरल बनाता है, जलवायु-लचीली कृषि को बढ़ावा देता है और सहकारी संस्थाओं को मजबूत करता है। यह ग्रामीण ऋण प्रणाली में डिजिटल परिवर्तन, हितधारकों की क्षमता वृद्धि और अन्य सरकारी पहलों के साथ समन्वय को भी प्रोत्साहित करता है। इसकी दीर्घकालिक दृष्टि आत्मनिर्भर ग्रामीण समुदायों को विकसित करना है, जिसमें विशेष ध्यान पूर्वी और उत्तर-पूर्वी राज्यों पर केंद्रित है।

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