स्वतः संज्ञान: सुप्रीम कोर्ट के स्ट्रीट डॉग्स मामले की व्याख्या

भारत में अदालतें जनहित की रक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। कई बार वे तब भी दखल देती हैं जब कोई औपचारिक याचिका दायर नहीं की गई होती—इसे स्वप्रेरणा से संज्ञान (Suo Moto Cognizance) कहते हैं। इसके तहत अदालतें स्वयं किसी मुद्दे पर कार्रवाई शुरू कर सकती हैं, खासकर तब जब मामला मौलिक अधिकारों या लोगों की सुरक्षा से जुड़ा हो।

हाल ही में इसका उदाहरण सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिल्ली-एनसीआर में आवारा कुत्तों की समस्या पर उठाया गया कदम है। बच्चों पर बढ़ते हमलों की खबर पढ़ने के बाद अदालत ने स्वप्रेरणा से संज्ञान लिया। इस लेख में इस अवधारणा को इसी मामले के जरिए समझाया गया है, जो परीक्षार्थियों के लिए उपयोगी है।

स्वप्रेरणा से संज्ञान क्या है?

Suo Moto लैटिन भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ है—“अपने ही बल पर”। भारतीय न्याय व्यवस्था में इसका मतलब है कि अदालत बिना किसी व्यक्ति या संस्था के पास आए, खुद ही कानूनी कार्यवाही शुरू कर सकती है।

संविधान में यह शक्ति दी गई है—

  • अनुच्छेद 32 – सुप्रीम कोर्ट को मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए।

  • अनुच्छेद 226 – हाई कोर्ट को समान शक्तियां।

यह शक्ति प्रायः जनहित, मानवाधिकार, पर्यावरण संरक्षण या सरकारी विफलताओं से जुड़े मामलों में इस्तेमाल की जाती है।

अदालतें यह शक्ति कब और क्यों इस्तेमाल करती हैं?

आमतौर पर अदालतें तब स्वप्रेरणा से संज्ञान लेती हैं जब—

  • कोई गंभीर सार्वजनिक समस्या हो, जिसे तुरंत ध्यान देने की आवश्यकता हो।

  • प्रभावित लोग इतने कमजोर, गरीब या अनजान हों कि अदालत तक न पहुंच पाएं।

  • सरकारी या सार्वजनिक संस्थाओं को जवाबदेह ठहराना जरूरी हो।

उदाहरण के तौर पर, कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने प्रवासी मजदूरों की सुरक्षा के लिए खुद मामला उठाया। पहले भी प्रदूषण, पुलिस हिरासत में मौत जैसे मामलों में यह शक्ति इस्तेमाल हुई है।

2025 का सड़क कुत्ता मामला: एक वास्तविक उदाहरण

28 जुलाई 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने “City hounded by strays, kids pay price” शीर्षक वाली खबर पढ़ी, जिसमें दिल्ली-एनसीआर में आवारा कुत्तों के हमलों के बढ़ते मामलों और बच्चों को हो रहे नुकसान का उल्लेख था।

मामले की गंभीरता देखते हुए, अदालत ने खुद संज्ञान लिया और स्वप्रेरणा से मामला दर्ज किया। 11 अगस्त 2025 को इस पर विस्तृत आदेश जारी किया गया।

सुप्रीम कोर्ट के आदेश

अदालत ने दिल्ली सरकार और नगर निकायों को निर्देश दिए—

  • 8 सप्ताह में दिल्ली-एनसीआर से सभी आवारा कुत्तों को पकड़कर हटाएं।

  • सभी कुत्तों का टीकाकरण और नसबंदी कर उन्हें आश्रयों में रखें, सड़कों पर न छोड़ें।

  • 1 सप्ताह में कुत्ता काटने की शिकायतों के लिए हेल्पलाइन शुरू करें।

  • सभी आश्रयों में सीसीटीवी कैमरे लगाएं ताकि उचित देखभाल सुनिश्चित हो।

  • कार्रवाई में बाधा डालने वालों के खिलाफ कानूनी कदम उठाएं।

अदालत ने स्पष्ट किया कि लोगों—विशेषकर बच्चों—की सुरक्षा अनुच्छेद 21 (जीवन का अधिकार) के तहत आती है।

प्रतिक्रियाएं और विवाद

जहां कई नागरिकों ने इस आदेश का स्वागत किया, वहीं पशु कल्याण संगठनों ने इसे अवैज्ञानिक और अमानवीय बताया। उनका कहना था कि सड़कों से कुत्तों को पूरी तरह हटाना अन्य समस्याएं पैदा कर सकता है और यह पशु संरक्षण कानूनों का उल्लंघन है।

दिल्ली में प्रदर्शन हुए, कुछ कार्यकर्ताओं को कुत्ता पकड़ने की कार्रवाई रोकने पर हिरासत में लिया गया। मुख्य न्यायाधीश ने संकेत दिया कि यदि जरूरत पड़ी तो आदेश की समीक्षा की जा सकती है।

यह मामला परीक्षार्थियों के लिए क्यों महत्वपूर्ण है

  • स्वप्रेरणा से संज्ञान का वास्तविक उदाहरण।

  • संवैधानिक प्रावधानों (अनुच्छेद 32 और 21) को जननीति और कानून-व्यवस्था से जोड़ता है।

  • अदालत द्वारा मानव सुरक्षा और पशु अधिकारों के बीच संतुलन साधने का उदाहरण।

  • वर्तमान घटनाओं, विधिक जागरूकता और UPSC/न्यायिक परीक्षा के लिए संभावित प्रश्न का स्रोत।

कैबिनेट ने ओडिशा, पंजाब और आंध्र प्रदेश में ₹4,600 करोड़ की सेमीकंडक्टर विनिर्माण परियोजनाओं को मंजूरी दी

भारत के चिप निर्माण पारिस्थितिकी तंत्र को बड़ी मजबूती देते हुए, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने ओडिशा, पंजाब और आंध्र प्रदेश में चार नए सेमीकंडक्टर निर्माण परियोजनाओं के लिए ₹4,600 करोड़ की मंजूरी दी है। ये परियोजनाएं इंडिया सेमीकंडक्टर मिशन (ISM) के तहत स्थापित की जाएंगी, जिससे स्वीकृत सेमीकंडक्टर परियोजनाओं की कुल संख्या 6 राज्यों में 10 हो जाएगी।

भारत का विस्तृत होता सेमीकंडक्टर पारिस्थितिकी तंत्र

  • कुल स्वीकृत परियोजनाएं: 10 (पहले की 6 परियोजनाओं सहित)

  • कुल निवेश: लगभग ₹1.60 लाख करोड़

  • प्रत्यक्ष रोजगार: 2,000 से अधिक कुशल पद

  • अप्रत्यक्ष रोजगार: सहायक उद्योगों में कई हजार और अवसर

  • लक्षित क्षेत्र: दूरसंचार, ऑटोमोबाइल, डेटा सेंटर, उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स, औद्योगिक स्वचालन, नवीकरणीय ऊर्जा और रक्षा

चार नई सेमीकंडक्टर परियोजनाएं

  1. SiCSem प्राइवेट लिमिटेड – ओडिशा

    • साझेदारी: क्लास-SiC वेफर फैब लिमिटेड, यूके

    • स्थान: इंफो वैली, भुवनेश्वर, ओडिशा

    • महत्व: भारत का पहला वाणिज्यिक सिलिकॉन कार्बाइड (SiC) कंपाउंड सेमीकंडक्टर फैब

    • क्षमता: 60,000 वेफर/वर्ष और 9.6 करोड़ पैकेजिंग यूनिट/वर्ष

    • उपयोग: रक्षा, इलेक्ट्रिक वाहन, रेलवे, डेटा सेंटर, सोलर इन्वर्टर, उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स

  2. 3D ग्लास सॉल्यूशंस इंक. – ओडिशा

    • प्रौद्योगिकी: वर्टिकली इंटीग्रेटेड एडवांस्ड पैकेजिंग और एम्बेडेड ग्लास सब्सट्रेट निर्माण

    • क्षमता: 69,600 ग्लास पैनल सब्सट्रेट/वर्ष और 5 करोड़ असेंबल यूनिट/वर्ष

    • उपयोग: उच्च-प्रदर्शन कंप्यूटिंग, AI, ऑटोमोबाइल, फोटोनिक्स, रक्षा

  3. ASIP टेक्नोलॉजीज – आंध्र प्रदेश

    • साझेदारी: APACT कंo लिमिटेड, दक्षिण कोरिया

    • क्षमता: 9.6 करोड़ यूनिट/वर्ष

    • उत्पाद: मोबाइल फोन, सेट-टॉप बॉक्स, ऑटोमोबाइल इलेक्ट्रॉनिक्स, उपभोक्ता उपकरणों के लिए सेमीकंडक्टर घटक

  4. कॉन्टिनेंटल डिवाइस इंडिया प्राइवेट लिमिटेड (CDIL) – पंजाब

    • स्थान: मोहाली (ब्राउनफील्ड विस्तार)

    • उत्पाद: उच्च-शक्ति उपकरण — MOSFETs, IGBTs, शॉट्की डायोड, ट्रांजिस्टर (सिलिकॉन और SiC)

    • क्षमता: 15.8 करोड़ यूनिट/वर्ष

    • उपयोग: इलेक्ट्रिक वाहन, नवीकरणीय ऊर्जा, पावर कन्वर्ज़न, संचार प्रणाली

परियोजनाओं का रणनीतिक महत्व

  • पहला SiC कंपाउंड फैब: उच्च-प्रदर्शन इलेक्ट्रॉनिक्स के लिए घरेलू आपूर्ति श्रृंखला को मजबूत करेगा।

  • संतुलित क्षेत्रीय विकास: पूर्व (ओडिशा), उत्तर (पंजाब) और दक्षिण (आंध्र प्रदेश) में विस्तार।

  • आयात में कमी: विदेशी सेमीकंडक्टर आयात पर निर्भरता घटेगी।

  • वैश्विक प्रतिस्पर्धा: भारत को एशिया में संभावित चिप निर्माण हब के रूप में स्थापित करेगा।

सहायक पारिस्थितिकी तंत्र और प्रतिभा विकास

सरकार एक मजबूत सेमीकंडक्टर डिज़ाइन पारिस्थितिकी तंत्र भी बना रही है—

  • 278 शैक्षणिक संस्थानों को R&D और डिज़ाइन पहलों के लिए समर्थन।

  • 72 चिप डिज़ाइन स्टार्टअप को प्रोत्साहन।

  • 60,000+ छात्रों को सेमीकंडक्टर उद्योग की आवश्यकताओं के अनुसार प्रशिक्षित किया गया।

UPSC की सौवीं वर्षगांठ: अनोखे अंदाज होगा शताब्दी का जश्न

संघ लोक सेवा आयोग (UPSC), जो भारत में वरिष्ठ सरकारी सेवाओं के लिए प्रमुख भर्ती संस्था है, अपनी स्थापना के 100 वर्ष पूरे होने का जश्न एक वर्ष लंबी शताब्दी वर्ष (Centenary Year) के रूप में मनाएगा। यह आयोजन 1 अक्टूबर 2025 से शुरू होकर 1 अक्टूबर 2026 को समाप्त होगा।

अध्यक्ष श्री अजय कुमार ने घोषणा की कि इस अवसर पर विशेष कार्यक्रम, एक स्मारक लोगो और नई सुधार पहलों की शुरुआत की जाएगी, जिनका उद्देश्य भर्ती प्रक्रिया में पारदर्शिता, निष्पक्षता और योग्यता-आधारित चयन को और मजबूत करना है।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
UPSC की जड़ें भारत शासन अधिनियम, 1919 और ली आयोग (1924) की सिफारिशों से जुड़ी हैं, जिसमें उच्च सिविल सेवाओं में भर्ती के लिए एक स्वतंत्र संस्था की आवश्यकता पर बल दिया गया था।

महत्वपूर्ण ऐतिहासिक पड़ाव:

  • 1 अक्टूबर 1926 – भारत में पब्लिक सर्विस कमीशन की स्थापना।

  • 1937 – भारत शासन अधिनियम, 1935 के तहत इसका नाम बदलकर फेडरल पब्लिक सर्विस कमीशन किया गया।

  • 26 जनवरी 1950 – भारत के संविधान (अनुच्छेद 315) के तहत इसका नाम संघ लोक सेवा आयोग कर दिया गया।

दशकों से UPSC ने योग्यता-आधारित भर्ती का प्रहरी बनकर भारत के प्रशासनिक ढांचे को आकार देने में अहम भूमिका निभाई है।

शताब्दी वर्ष की मुख्य झलकियां
इस उत्सव में परंपरा और आधुनिकता का संतुलित मिश्रण होगा—

  • विशेष लोगो और टैगलाइन का शुभारंभ, जो UPSC की 100 वर्षों की राष्ट्र सेवा का प्रतीक होगी।

  • भर्ती और परीक्षा प्रक्रियाओं में नए सुधार, ताकि निष्पक्षता, दक्षता और पहुंच को बढ़ाया जा सके।

  • कर्मचारियों की भागीदारी, ताकि समारोहों में संस्थान में कार्यरत लोगों के विचार भी शामिल हों।

  • जन-संपर्क कार्यक्रम, जिनमें UPSC की विरासत और राष्ट्र-निर्माण में इसकी भूमिका को प्रदर्शित किया जाएगा।

UPSC की विरासत और भूमिका
पिछले एक शताब्दी से UPSC ईमानदारी, निष्पक्षता और पेशेवर उत्कृष्टता का प्रतीक रहा है। इसने—

  • देश की सबसे प्रतिस्पर्धी परीक्षाओं का आयोजन किया।

  • विविध पृष्ठभूमियों से आने वाले अभ्यर्थियों को समान अवसर प्रदान किए।

  • प्रशासनिक जरूरतों के अनुरूप खुद को ढालते हुए संवैधानिक मूल्यों को कायम रखा।

अध्यक्ष श्री अजय कुमार ने कहा कि शताब्दी वर्ष गर्व से पीछे देखने, सुधार के लिए आत्ममंथन करने और अगले 100 वर्षों की उत्कृष्टता की योजना बनाने का समय है।

ऑस्ट्रेलिया अगले महीने की संयुक्त राष्ट्र महासभा में फिलिस्तीनी राज्य को मान्यता देगा

विदेश नीति में एक बड़े बदलाव के तहत, ऑस्ट्रेलिया सितंबर 2025 में होने वाले 80वें संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) सत्र में औपचारिक रूप से फ़िलिस्तीन को एक स्वतंत्र राज्य के रूप में मान्यता देगा। प्रधानमंत्री एंथनी अल्बनीज़ ने 11 अगस्त 2025 को इस निर्णय की घोषणा करते हुए कहा कि इसका उद्देश्य दो-राष्ट्र समाधान के लिए अंतरराष्ट्रीय समर्थन बढ़ाना, गाज़ा में युद्धविराम को प्रोत्साहित करना और बंधकों की रिहाई को आगे बढ़ाना है।

ऐतिहासिक और कूटनीतिक पृष्ठभूमि

  • इज़राइल–फ़िलिस्तीन संघर्ष सात दशकों से अधिक समय से चला आ रहा है, जिसकी जड़ें भूमि, संप्रभुता और सुरक्षा से जुड़े विवादों में हैं।

  • दो-राष्ट्र समाधान—अर्थात स्वतंत्र इज़राइली और फ़िलिस्तीनी राज्यों की स्थापना—संयुक्त राष्ट्र, अरब लीग और कई पश्चिमी शक्तियों द्वारा समर्थित केंद्रीय ढांचा रहा है।

  • पश्चिमी देशों में फ़िलिस्तीन को मान्यता देने की प्रक्रिया धीमी रही है, हालांकि हाल ही में फ़्रांस, ब्रिटेन और कनाडा ने भी इसी तरह की मंशा जताई है।

  • 138 से अधिक संयुक्त राष्ट्र सदस्य देश पहले ही फ़िलिस्तीन को एक संप्रभु राष्ट्र के रूप में मान्यता दे चुके हैं।

ऑस्ट्रेलिया की घोषणा
प्रधानमंत्री अल्बनीज़ के अनुसार:

  • मान्यता सितंबर 2025 के यूएनजीए सत्र के दौरान दी जाएगी।

  • यह मान्यता फ़िलिस्तीनी प्राधिकरण (PA) की निम्नलिखित शर्तों पर आधारित होगी:

    • भविष्य की शासन व्यवस्था में हमास की कोई भूमिका नहीं होगी।

    • शासन सुधार और आम चुनाव कराए जाएंगे।

    • प्रस्तावित फ़िलिस्तीनी राज्य का निरस्त्रीकरण।

निर्णय के पीछे तर्क

  • गाज़ा पर सैन्य नियंत्रण को लेकर इज़राइल को बार-बार चेतावनी दी गई थी।

  • ऑस्ट्रेलिया ने अवैध बस्तियों के विस्तार, विलय की धमकियों और इज़राइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू द्वारा फ़िलिस्तीनी राष्ट्र को अस्वीकार करने की निंदा की।

  • अल्बनीज़ ने ज़ोर दिया कि हिंसा के चक्र को समाप्त करने के लिए राजनीतिक समाधान आवश्यक है।

क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रियाएं

  • इज़राइल – इस कदम का विरोध करने की संभावना, इसे अपनी सुरक्षा नीति के लिए चुनौती के रूप में देख सकता है।

  • अरब लीग – हमास के शासन को समाप्त करने की दिशा में उठाए गए कदमों का स्वागत।

  • न्यूज़ीलैंड – विदेश मंत्री विंस्टन पीटर्स ने कहा कि देश अगले महीने अपनी स्थिति की समीक्षा करेगा।

  • वैश्विक संदर्भ – गाज़ा के मानवीय संकट को लेकर बढ़ती अंतरराष्ट्रीय नाराज़गी के बीच यह कदम इज़राइल पर कूटनीतिक दबाव को और बढ़ाएगा।

महत्व क्यों है

  • कूटनीतिक गति – ऑस्ट्रेलिया उन पश्चिमी देशों के बढ़ते समूह में शामिल हो रहा है, जो फ़िलिस्तीन को मान्यता देने की ओर बढ़ रहे हैं।

  • इज़राइल पर दबाव – बस्तियों के विस्तार को रोकने और शांति वार्ता फिर से शुरू करने की वैश्विक मांग को मजबूती।

  • फ़िलिस्तीनी सुधार का अवसर – सशर्त मान्यता फ़िलिस्तीनी प्राधिकरण को शासन सुधार के लिए प्रोत्साहित करेगी।

  • हमास का अलगाव – राजनीतिक प्रक्रिया से उग्रवादी समूहों को बाहर रखने पर अंतरराष्ट्रीय सहमति को बल।

UIDAI ने डेटा-आधारित नवाचारों के माध्यम से आधार की मज़बूती, सुरक्षा और विश्वसनीयता बढ़ाने हेतु ISI के साथ 5-वर्षीय अत्याधुनिक अनुसंधान एवं विकास समझौते पर हस्ताक्षर

भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (यूआईडीएआई) ने आधार की सुरक्षा, विश्वसनीयता और तकनीकी क्षमताओं को और सशक्त बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम उठाया है। इसके तहत यूआईडीएआई ने भारतीय सांख्यिकी संस्थान (आईएसआई) के साथ पाँच वर्ष का अनुसंधान एवं विकास (आर एंड डी) समझौता किया है। यह समझौता दुनिया की सबसे बड़ी डिजिटल पहचान प्रणालियों में से एक, आधार, में डेटा-आधारित नवाचार को नई ऊंचाइयों पर ले जाने के उद्देश्य से किया गया है।

यह समझौता 12 अगस्त 2025 को हस्ताक्षरित हुआ, जिसमें अत्याधुनिक तकनीकों—जैसे बायोमेट्रिक्स, धोखाधड़ी का पता लगाना, डेटा विश्लेषण और एल्गोरिथ्म उन्नयन—पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा, ताकि 130 करोड़ से अधिक नागरिकों के लिए आधार की प्रभावशीलता और भरोसेमंदता को बढ़ाया जा सके।

समझौते के मुख्य फोकस क्षेत्र
यह बहुआयामी साझेदारी कई उच्च-प्राथमिकता क्षेत्रों को कवर करेगी, जिनमें शामिल हैं—

  • बायोमेट्रिक लाइवनेस डिटेक्शन टूल का विकास, ताकि स्पूफिंग और पहचान धोखाधड़ी रोकी जा सके।

  • बेहतर सटीकता और गति के लिए उन्नत बायोमेट्रिक मिलान एल्गोरिथ्म

  • सांख्यिकीय और एआई मॉडल का उपयोग कर धोखाधड़ी और असामान्यता का पता लगाना

  • उच्च-जोखिम नामांकन या अपडेट श्रेणियों की पहचान, ताकि यूआईडीएआई समय रहते संभावित कमजोरियों को चिह्नित कर सके।

  • समझौते की अवधि के दौरान संयुक्त रूप से पहचाने गए अन्य प्राथमिक परियोजनाएं।

आधार के लिए इसका महत्व
आधार भारत में डिजिटल पहचान सत्यापन का एक महत्वपूर्ण ढांचा बन चुका है, जो बैंकिंग, कल्याणकारी योजनाओं, स्वास्थ्य सेवाओं और दूरसंचार जैसे क्षेत्रों में अहम भूमिका निभा रहा है। लेकिन बढ़ते डिजिटल खतरों और गोपनीयता संबंधी चिंताओं के बीच, इस प्रणाली की अखंडता, सटीकता और धोखाधड़ी-रोधी क्षमता सुनिश्चित करना पहले से कहीं अधिक जरूरी हो गया है।

यूआईडीएआई–आईएसआई सहयोग इन चुनौतियों से निपटने के लिए वैज्ञानिक-आधारित समाधान पेश करेगा। उदाहरण के लिए, बायोमेट्रिक स्पूफिंग आधार सत्यापन के लिए एक गंभीर खतरा रहा है। लाइवनेस डिटेक्शन टूल विकसित करके यह सुनिश्चित किया जा सकेगा कि बायोमेट्रिक डेटा (जैसे फिंगरप्रिंट या आईरिस स्कैन) किसी जीवित व्यक्ति से ही लिया जाए, न कि किसी प्रतिकृति या फोटो से।

भारतीय सांख्यिकी संस्थान (आईएसआई) की भूमिका
सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (MoSPI) के तहत स्थापित आईएसआई सांख्यिकी, कंप्यूटर विज्ञान और डेटा विज्ञान में अग्रणी शोध संस्थान है। इसका बेंगलुरु केंद्र गणितीय मॉडलों के शासन और तकनीकी प्रणालियों में वास्तविक उपयोग के लिए प्रसिद्ध है।

इस सहयोग के माध्यम से यूआईडीएआई, आईएसआई की शैक्षणिक गहराई और व्यावहारिक विशेषज्ञता का लाभ उठाकर आधार को एक अगली पीढ़ी का, बुद्धिमान, अनुकूलनीय और सुरक्षित पहचान प्लेटफ़ॉर्म बनाने की दिशा में आगे बढ़ रहा है।

SHRESTH: भारत का पहला राज्य स्वास्थ्य नियामक उत्कृष्टता सूचकांक

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने 12 अगस्त 2025 को SHRESTH – स्टेट हेल्थ रेगुलेटरी एक्सीलेंस इंडेक्स लॉन्च किया, जो भारत के सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रशासन में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है। यह देश में अपनी तरह की पहली राष्ट्रीय पहल है, जिसका उद्देश्य एक पारदर्शी और डाटा-आधारित ढांचे के माध्यम से राज्य स्तरीय दवा नियामक प्रणालियों का मूल्यांकन और सुदृढ़ीकरण करना है।

यह कार्यक्रम भारत में दवाओं की गुणवत्ता, सुरक्षा और प्रभावशीलता पर बढ़ते जोर को दर्शाता है और यह सुनिश्चित करने के लिए सरकार की प्रतिबद्धता को दोहराता है कि देश के हर नागरिक—स्थान की परवाह किए बिना—को सुरक्षित और प्रभावी दवाएं मिलें।

पृष्ठभूमि: SHRESTH की आवश्यकता क्यों पड़ी
भारत का औषधि क्षेत्र दुनिया के सबसे बड़े क्षेत्रों में से एक है और वैश्विक स्तर पर सस्ती दवाएं उपलब्ध कराने के कारण इसे “फार्मेसी ऑफ द वर्ल्ड” कहा जाता है।
हालांकि, राज्य स्तर पर नियामक क्षमता में काफी अंतर देखा गया है। दवा निर्माण की निगरानी, लाइसेंसिंग और वितरण में राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों की अग्रणी भूमिका को देखते हुए, मानकीकृत मूल्यांकन और समान प्रक्रियाओं की आवश्यकता महसूस हुई।
टीकों के लिए भारत को WHO ML3 स्टेटस मिलने जैसी पिछली सफलताओं ने दवा विनियमन में भी ऐसे ही सुधारों के लिए आधार तैयार किया।

SHRESTH क्या है?
SHRESTH का पूरा नाम है State Health Regulatory Excellence Index। यह राज्यों के लिए एक वर्चुअल गैप असेसमेंट टूल के रूप में कार्य करेगा।

इसके अंतर्गत:

  • राज्यों के दवा नियामक प्राधिकरणों के प्रदर्शन का बेंचमार्क तैयार किया जाएगा।

  • मानव संसाधन, बुनियादी ढांचा, लाइसेंसिंग, निगरानी और त्वरित प्रतिक्रिया में कमियों की पहचान होगी।

  • राज्यों को वैश्विक मानकों के अनुरूप मॅच्योरिटी सर्टिफिकेशन की ओर मार्गदर्शन मिलेगा।

ढांचा एवं क्रियान्वयन

  • केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (CDSCO) SHRESTH की निगरानी करेगा।

  • राज्यों को दो श्रेणियों में बांटा जाएगा:

    1. मैन्युफैक्चरिंग स्टेट्स – 5 थीम्स के तहत 27 सूचकांक पर मूल्यांकन:

      • मानव संसाधन

      • बुनियादी ढांचा

      • लाइसेंसिंग गतिविधियां

      • निगरानी गतिविधियां

      • त्वरित प्रतिक्रिया क्षमता

    2. मुख्यतः वितरण वाले राज्य/केंद्र शासित प्रदेश – समान मानकों पर 23 सूचकांक पर मूल्यांकन।

डेटा सबमिशन एवं रैंकिंग प्रक्रिया:

  • राज्य हर माह की 25 तारीख तक डेटा जमा करेंगे।

  • अगले माह की 1 तारीख को मेट्रिक्स का स्कोर तैयार होगा।

  • पारदर्शिता के लिए रैंकिंग सभी राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों को साझा की जाएगी।

सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए महत्व
केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव स्मिता पुन्या सलिला श्रीवास्तव ने कहा कि दवाओं की गुणवत्ता सार्वजनिक स्वास्थ्य की पहली सुरक्षा पंक्ति है। SHRESTH का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि भारत में बनी दवाओं पर दुनिया भरोसा करे—और यह भरोसा देश के नागरिकों से शुरू हो।

यह सूचकांक:

  • नियामक प्रणालियों को मजबूत करेगा।

  • दवाओं में उपभोक्ताओं का विश्वास बढ़ाएगा।

  • ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट के एक समान क्रियान्वयन को सुनिश्चित करेगा।

  • राज्यों के बीच बेस्ट प्रैक्टिस साझा करने को बढ़ावा देगा।

SHRESTH से जुड़ी अन्य पहलें
मंत्रालय ने साथ ही घोषणा की:

  • Not of Standard Quality (NSQ) डैशबोर्ड का विस्तार सभी राज्यों तक।

  • राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन, विषय – दवा नियामक प्रणाली।

  • नियामक कर्मचारियों के लिए संयुक्त प्रशिक्षण और ऑडिट।

  • राज्यों की प्रणालियों को अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप करने के लिए क्षमता-विकास कार्यशालाएं।

शुभमन गिल और सोफिया डंकले ने जीता जुलाई का ‘ICC प्लेयर ऑफ द मंथ’ का खिताब

अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (ICC) ने जुलाई 2025 के लिए शुभमन गिल को पुरुष खिलाड़ी ऑफ द मंथ और सोफिया डंकले को महिला खिलाड़ी ऑफ द मंथ चुना है, उनके अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शानदार प्रदर्शन की मान्यता में।

पुरुष खिलाड़ी ऑफ द मंथ – शुभमन गिल (भारत)

कप्तान के रूप में दमदार डेब्यू सीरीज़
अपनी पहली टेस्ट सीरीज़ में भारत के कप्तान के रूप में शुभमन गिल ने इंग्लैंड के खिलाफ एंडरसन–तेंदुलकर ट्रॉफी में बेहतरीन बल्लेबाज़ी प्रदर्शन किया, जो 2–2 की बराबरी पर समाप्त हुई। उन्होंने इंग्लैंड के बेन स्टोक्स और दक्षिण अफ्रीका के वियान मुल्डर को पछाड़कर यह पुरस्कार जीता।

शानदार बल्लेबाज़ी आँकड़े (जुलाई 2025)

  • रन: 3 टेस्ट में 567

  • औसत: 94.50

  • शतक: 3 (जिसमें एक दोहरा शतक शामिल)

  • पूरी सीरीज़: 5 टेस्ट में 754 रन – प्लेयर ऑफ द सीरीज़

टूटे रिकॉर्ड

  • इंग्लैंड में दोहरा शतक लगाने वाले पहले भारतीय कप्तान।

  • इंग्लैंड में किसी भारतीय का सर्वाधिक टेस्ट स्कोर (269)।

  • सचिन तेंदुलकर का एशिया से बाहर सर्वोच्च विदेशी स्कोर पार किया।

  • एक ही टेस्ट में 430 रन – इतिहास में दूसरा सबसे बड़ा व्यक्तिगत योग।

महिला खिलाड़ी ऑफ द मंथ – सोफिया डंकले (इंग्लैंड)

लगातार मैच जिताने वाले प्रदर्शन
इंग्लैंड की बल्लेबाज़ सोफिया डंकले ने भारत के खिलाफ शानदार प्रदर्शन के दम पर अपना पहला ICC महिला खिलाड़ी ऑफ द मंथ पुरस्कार जीता। उन्होंने सोफी एक्लेस्टोन और गैबी लुईस को पीछे छोड़ा।

मुख्य योगदान

T20I सीरीज़:

  • 75 रन (53 गेंदों) की पारी से 6 रन की करीबी जीत में योगदान।

  • अंतिम T20I में 46 रन (30 गेंदें) बनाकर आखिरी गेंद पर जीत दिलाई।

  • कुल: 144 रन, औसत: 36, स्ट्राइक रेट: 134.57।

ODI सीरीज़:

  • पहले ODI में 83 रन।

  • वर्षा प्रभावित दूसरे ODI में नाबाद।

  • तीसरे ODI में रन आउट होने से पहले 34 रन।

  • कुल: 126 रन, औसत: 63, स्ट्राइक रेट: 91.97।

पुराने वाहन प्रतिबंध पर सुप्रीम कोर्ट की राहत: पर्यावरण बनाम नागरिक अधिकार

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में दिल्ली–राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCR) के वाहन मालिकों को अस्थायी राहत देते हुए पुराने वाहनों पर लगे प्रतिबंध के तात्कालिक प्रवर्तन पर रोक लगा दी है। यह राहत निम्न श्रेणी के वाहनों के लिए लागू होगी:

  • 10 साल से पुराने डीज़ल वाहन

  • 15 साल से पुराने पेट्रोल वाहन

यह आदेश तब तक प्रभावी रहेगा, जब तक अदालत दिल्ली सरकार द्वारा दायर उस याचिका पर सुनवाई पूरी नहीं कर लेती, जिसमें मौजूदा प्रतिबंध की समीक्षा की मांग की गई है।

पृष्ठभूमि: प्रतिबंध क्यों लगाया गया था

  • 2015 में राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) ने दिल्ली–NCR में पुराने वाहनों पर पूर्ण प्रतिबंध (ब्लैंकेट बैन) लगाया, ताकि गंभीर वायु प्रदूषण को नियंत्रित किया जा सके।

  • ब्लैंकेट बैन का मतलब है—एक ऐसा नियम जो बिना किसी अपवाद के सभी पर लागू हो। इस मामले में, सभी 10 साल से पुराने डीज़ल वाहन और 15 साल से पुराने पेट्रोल वाहन, उनकी वास्तविक प्रदूषण उत्सर्जन या स्थिति की परवाह किए बिना, प्रतिबंधित कर दिए गए।

  • 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने इस निर्णय को बरकरार रखते हुए इसे कानूनी रूप से लागू करने योग्य बना दिया।

दिल्ली सरकार का रुख
दिल्ली सरकार का तर्क है कि यह उम्र-आधारित प्रतिबंध अब पुराना और अनुचित है, और जिम्मेदार वाहन मालिकों के लिए व्यावहारिक कठिनाइयां पैदा कर रहा है। उनका मानना है कि:

  • प्रदूषण स्तर का आकलन वैज्ञानिक तरीके से, वास्तविक उत्सर्जन के आधार पर होना चाहिए, केवल वाहन की उम्र से नहीं।

  • तकनीकी प्रगति, जैसे:

    • BS-VI उत्सर्जन मानक

    • व्यापक PUC (प्रदूषण नियंत्रण प्रमाणपत्र) कवरेज

    • उत्सर्जन मानकों की कड़ी निगरानी
      उम्र-आधारित पूर्ण प्रतिबंध को अनावश्यक बनाती है।

  • वर्तमान नीति को बदलकर एक ग्रेडेड, तकनीकी-आधारित नीति लानी चाहिए, जिसमें ध्यान दिया जाए:

    • वास्तविक उत्सर्जन स्तर

    • वाहन की माइलेज और स्थिति

    • नियमित फिटनेस टेस्ट

    • सीएनजी या इलेक्ट्रिक कन्वर्ज़न जैसी रेट्रोफिटिंग विकल्पों पर

दिल्ली सरकार की अदालत से मांग

  • केंद्र या वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (CAQM) को इस प्रतिबंध की प्रासंगिकता पर वैज्ञानिक अध्ययन कराने का निर्देश।

  • ऐसी संतुलित नीति बनाना, जो पर्यावरण की रक्षा करे और नागरिकों के अधिकारों का सम्मान भी।

सुप्रीम कोर्ट के अंतरिम आदेश का महत्व

  • फिलहाल, कानूनी उम्र सीमा से अधिक पुराने वाहनों के मालिकों के खिलाफ कोई दंडात्मक कार्रवाई (जैसे जुर्माना, वाहन ज़ब्ती) नहीं होगी।

  • यह मामला पर्यावरण कानून में नीति निर्माण के लिए व्यापक प्रभाव डाल सकता है, और यह दिखाता है कि कानूनी ढांचे को तकनीकी प्रगति और सामाजिक वास्तविकताओं के अनुसार कैसे बदला जा सकता है।

परीक्षा दृष्टि से महत्व
यह मामला जीवंत उदाहरण है:

  • पर्यावरणीय शासन बनाम व्यक्तिगत अधिकार

  • पुरानी नीतियों में संशोधन या पुनर्मूल्यांकन में न्यायिक समीक्षा की भूमिका

  • भारत में प्रमाण-आधारित नीति निर्माण की आवश्यकता

MERITE: तकनीकी शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए केंद्र ने शुरू की नई योजना

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बहु-विषयक शिक्षा एवं अनुसंधान सुधार तकनीकी शिक्षा योजना (MERITE) को मंजूरी दे दी है। यह ₹4,200 करोड़ की केंद्रीय क्षेत्र योजना है, जिसका उद्देश्य भारत में तकनीकी शिक्षा की गुणवत्ता, समानता और सुशासन में सुधार करना है। यह योजना 2025-26 से 2029-30 तक पांच वर्षों में लागू होगी और इसके तहत 275 संस्थानों — 175 इंजीनियरिंग कॉलेज और 100 पॉलिटेक्निक संस्थान — को शामिल किया जाएगा।

वित्तपोषण और क्रियान्वयन

  • कुल व्यय: ₹4,200 करोड़

  • विश्व बैंक सहायता: ₹2,100 करोड़ का ऋण

  • अवधि: 5 वर्ष (2025–2030)

  • कवरेज: सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के सरकारी इंजीनियरिंग एवं पॉलिटेक्निक संस्थान

  • मुख्य साझेदार: आईआईटी, आईआईएम, एआईसीटीई, एनबीए और अन्य नियामक संस्थाएं

योजना के प्रमुख उद्देश्य

  • अनुसंधान और नवाचार को बढ़ावा देना:

    • अनुसंधान केंद्र, इनक्यूबेशन सेंटर और नवाचार प्रयोगशालाएं स्थापित करना

    • उद्योग–शैक्षणिक संस्थान सहयोग को मजबूत करना

  • रोज़गार क्षमता में सुधार:

    • पाठ्यक्रम को उद्योग की आवश्यकताओं के अनुसार अद्यतन करना

    • इंटर्नशिप, स्किल लैब और मेकर स्पेस की शुरुआत

    • भाषा एवं संचार कार्यशालाएं आयोजित करना

  • सुशासन और गुणवत्ता आश्वासन को सुदृढ़ करना:

    • मान्यता और गुणवत्ता के लिए ढांचा विकसित करना

    • महिला संकाय पर विशेष ध्यान देते हुए शैक्षणिक प्रशासकों को प्रशिक्षित करना

  • बहु-विषयक शिक्षा को प्रोत्साहन:

    • तकनीकी पाठ्यक्रमों में बहु-विषयक कार्यक्रमों के लिए दिशा-निर्देश तैयार करना

    • इंजीनियरिंग, प्रबंधन और अन्य विषयों के बीच सहयोग को बढ़ावा देना

प्रमुख अपेक्षित परिणाम
शिक्षा मंत्रालय के अनुसार, यह योजना —

  • 7.5 लाख से अधिक विद्यार्थियों को लाभान्वित करेगी

  • तकनीकी संस्थानों की मान्यता दर में वृद्धि करेगी

  • तकनीकी पाठ्यक्रमों को बाजार के अनुरूप आधुनिक बनाएगी

  • संकाय के अनुसंधान उत्पादन और उद्योग–शैक्षणिक संबंधों को मजबूत करेगी

  • राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को शिक्षा के डिजिटल परिवर्तन के लिए तैयार करेगी

सरकारी वक्तव्य
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे भारत में “अनुसंधान, नवाचार और स्किलिंग को बड़े पैमाने पर बढ़ावा देने वाला कदम” बताया।
शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने कहा कि MERITE सरकार की “भारत की शिक्षा प्रणाली में परिवर्तन और क्रांति लाने की प्रतिबद्धता” को दर्शाता है।
केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा कि यह नीति हस्तक्षेप राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के अनुरूप है।

पृष्ठभूमि और आवश्यकता
विश्व बैंक की 2023 की मूल्यांकन रिपोर्ट में भारतीय इंजीनियरिंग संस्थानों में कम अनुसंधान उत्पादन और कमजोर नवाचार संबंधों की पहचान की गई थी। MERITE योजना इन चुनौतियों को सीधे संबोधित करती है, जिसमें अनुसंधान सुविधाओं के लिए धन, संकाय विकास कार्यक्रम और उद्योग साझेदारी को बढ़ावा शामिल है।

रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता बढ़ाने के लिए दो और रक्षा औद्योगिक गलियारों की घोषणा

रक्षा उत्पादन में भारत की आत्मनिर्भरता (आत्मनिर्भर भारत) को मजबूत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए, सरकार आने वाले महीनों में दो नए रक्षा औद्योगिक गलियारों की स्थापना करने जा रही है — एक महाराष्ट्र में और दूसरा असम में। यह निर्णय 2018 में शुरू किए गए उत्तर प्रदेश और तमिलनाडु के दो मौजूदा गलियारों की सफलता के बाद लिया गया है, जिन्होंने उल्लेखनीय प्रगति दर्ज की है।

पृष्ठभूमि: भारत में रक्षा औद्योगिक गलियारे
रक्षा औद्योगिक गलियारों की अवधारणा 2017–18 में पेश की गई थी, ताकि रक्षा विनिर्माण और नवाचार के लिए विशेष केंद्र विकसित किए जा सकें। इसके उद्देश्य थे —

  • स्वदेशी उत्पादन को बढ़ावा देना: आयात पर निर्भरता कम कर मजबूत घरेलू विनिर्माण आधार बनाना।

  • नवाचार को प्रोत्साहन: उन्नत रक्षा तकनीकों में अनुसंधान एवं विकास को बढ़ाना।

  • रोज़गार सृजन: विनिर्माण, इंजीनियरिंग और सहायक सेवाओं में रोजगार उपलब्ध कराना।

  • सहयोग को बढ़ावा देना: सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों (PSUs), निजी कंपनियों, स्टार्टअप्स और शैक्षणिक संस्थानों को एक मंच पर लाना।

  • निवेश आकर्षित करना: घरेलू और विदेशी पूंजी को आमंत्रित करना।

  • निर्यात क्षमता: भारत को वैश्विक रक्षा निर्यातक के रूप में स्थापित करना।

मौजूदा गलियारे: सफलता की कहानियां

  • उत्तर प्रदेश रक्षा गलियारा

    • नोड्स: लखनऊ, कानपुर, झांसी, चित्रकूट, अलीगढ़, आगरा

    • मजबूती: औद्योगिक बुनियादी ढांचा, कुशल जनशक्ति और उत्कृष्ट संपर्क व्यवस्था।

  • तमिलनाडु रक्षा गलियारा

    • नोड्स: चेन्नई, होसुर, कोयंबटूर, सलेम, तिरुचिरापल्ली (त्रिची)

    • मजबूती: मजबूत विनिर्माण आधार, कुशल कार्यबल और बंदरगाह तक पहुंच।

नए गलियारे: महाराष्ट्र और असम

  • महाराष्ट्र गलियारा

    • प्रस्तावित तीन औद्योगिक क्लस्टर:

      1. संभाजीनगर–अहिल्यानगर–पुणे

      2. नाशिक–धुले

      3. नागपुर

    • यह राज्य के मौजूदा औद्योगिक ढांचे, विशेषकर ऑटोमोबाइल और प्रिसीजन इंजीनियरिंग क्षेत्र की क्षमता पर आधारित होगा।

  • असम गलियारा

    • स्थान अभी तय नहीं हैं, लेकिन मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा 2025 की शुरुआत से इस परियोजना के लिए सक्रिय रूप से प्रयासरत हैं।

    • यह गलियारा —

      • पूर्वी सीमा क्षेत्र की रक्षा आवश्यकताओं को पूरा करेगा।

      • पूर्वोत्तर में आर्थिक अवसर पैदा करेगा।

      • मेक इन इंडिया पहल को मजबूती देगा।

रक्षा उत्पादन में मौजूदा उपलब्धियां
वित्त वर्ष 2024–25 में भारत का वार्षिक रक्षा उत्पादन ₹1,50,590 करोड़ के सर्वकालिक उच्च स्तर पर पहुंच गया, जो पिछले वर्ष की तुलना में 18% अधिक और 2019–20 की तुलना में 90% वृद्धि है।

  • सार्वजनिक क्षेत्र का योगदान: 77% (डीपीएसयू और अन्य पीएसयू)

  • निजी क्षेत्र का योगदान: 23% (पिछले वर्ष के 21% से अधिक)

नए गलियारों का सामरिक महत्व

  • संतुलित क्षेत्रीय विकास: पश्चिम (महाराष्ट्र) और पूर्व (असम) के गलियारे उत्तर–दक्षिण नेटवर्क को पूरक करेंगे।

  • बढ़ी हुई रक्षा क्षमता: सामरिक सीमाओं और परिचालन कमांड के निकटता से लाभ।

  • निजी क्षेत्र को प्रोत्साहन: विनिर्माण और नवाचार में भागीदारी बढ़ेगी।

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