भारतीय रेलवे ने रचा इतिहास, पटरियों के बीच लगाए सोलर पैनल

भारतीय रेल ने सतत परिवहन नवाचार की दिशा में ऐतिहासिक कदम उठाते हुए देश की पहली हटाने योग्य (Removable) सौर पैनल प्रणाली का शुभारंभ किया है। यह प्रणाली वाराणसी स्थित बनारस लोकोमोटिव वर्क्स (BLW) में स्थापित की गई है। यह हरित ऊर्जा पहल भारतीय रेल की नवीकरणीय ऊर्जा और पर्यावरण-अनुकूल अवसंरचना के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाती है।

मुख्य विशेषताएँ

  • स्थान: बनारस लोकोमोटिव वर्क्स, वाराणसी

  • लंबाई: 70 मीटर ट्रैक क्षेत्र

  • पैनलों की संख्या: 28

  • क्षमता: 15 किलोवॉट पीक (kWp)

  • प्रकार: हटाने योग्य डिज़ाइन, जिससे रखरखाव और परिचालन लचीलापन संभव

  • प्रारंभ तिथि: 19 अगस्त 2025

यह अभिनव प्रणाली भारतीय रेलवे की कार्बन न्यूट्रल और नवीकरणीय ऊर्जा अपनाने की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान है।

माल परिवहन: भुज से नया नमक लॉजिस्टिक्स मार्ग

ग्रीन एनर्जी विकास के साथ-साथ भारतीय रेल ने माल ढुलाई नेटवर्क को भी मज़बूती दी है। 10 अगस्त 2025 को, पहली बार औद्योगिक नमक लदी रेल रेक को सानोसरा (भुज–नलिया सेक्शन) से दहेज के लिए रवाना किया गया।

मुख्य तथ्य

  • माल का प्रकार: औद्योगिक नमक

  • मात्रा: 3,851.2 टन

  • मार्ग: सानोसरा से दहेज (673.57 किमी)

  • आय: ₹31.69 लाख

  • लोडिंग तिथि: 9 अगस्त 2025

यह नया मार्ग गुजरात के नमक उद्योग के लिए नए व्यापारिक गलियारे खोलेगा और किफ़ायती माल ढुलाई में रेलवे की रीढ़ की भूमिका को और मजबूत करेगा।

नगदा–खाचरोद खंड में विद्युतिकरण की उपलब्धि

रेलवे अवसंरचना के क्षेत्र में एक और बड़ा कदम पश्चिम रेलवे ने उठाया है। रतलाम मंडल के अंतर्गत नगदा–खाचरोद खंड में भारत का पहला 2×25 kV इलेक्ट्रिक ट्रैक्शन सिस्टम चालू किया गया।

प्रमुख बिंदु

  • पावर ट्रांसफॉर्मर: दो Scott-Connected 100 MVA ट्रांसफॉर्मर

  • विशेषता: ओवरहेड उपकरण (OHE) को कुशल विद्युत आपूर्ति

  • नवाचार: भारत में पहली बार Scott Transformer Technology का प्रयोग

  • महत्त्व: ऊर्जा दक्षता बढ़ाना और उच्च-लोड गलियारों में ट्रांसमिशन लॉस कम करना

यह उपलब्धि भारत की अगली पीढ़ी की विद्युतीकरण रणनीति का हिस्सा है, जो रेलवे को और अधिक कुशल और पर्यावरण-अनुकूल बनाएगी।

अक्षय ऊर्जा दिवस 2025: इतिहास, महत्व और उत्सव

अक्षय ऊर्जा दिवस हर वर्ष 20 अगस्त को मनाया जाता है। इसका उद्देश्य नवीकरणीय ऊर्जा के महत्व को रेखांकित करना है, ताकि देश एक सतत और पर्यावरण-संवेदनशील भविष्य की ओर अग्रसर हो सके। यह दिन पूरे भारत में मनाया जाता है और इसका संबंध पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की जयंती से भी है। इस अवसर पर लोगों को सौर, पवन, बायोमास जैसी वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों को अपनाने के लिए जागरूक किया जाता है। बढ़ती ऊर्जा मांग और जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों के बीच, अक्षय ऊर्जा दिवस स्वच्छ ऊर्जा के प्रचार का एक महत्वपूर्ण प्रतीक बन गया है।

अक्षय ऊर्जा दिवस का इतिहास

  • 2004 में नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (MNRE) द्वारा शुरू किया गया।

  • इसका उद्देश्य जीवाश्म ईंधनों पर निर्भरता कम करना और नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा देना था।

  • पहला आयोजन नई दिल्ली में हुआ, जिसमें 12,000 से अधिक स्कूली बच्चों ने मानव श्रृंखला बनाकर ऊर्जा जागरूकता का संदेश दिया।

  • इस कार्यक्रम में तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह शामिल हुए। तभी से यह दिवस पूरे देश में स्वच्छ ऊर्जा कैलेंडर का अहम हिस्सा बन गया।

महत्व

  1. नवीकरणीय ऊर्जा का प्रचार – सौर, पवन, जल एवं बायोमास ऊर्जा को कोयला और पेट्रोलियम जैसे पारंपरिक स्रोतों की जगह अपनाने का संदेश।

  2. जन-जागरूकता – हरित ऊर्जा से होने वाले लाभ जैसे प्रदूषण में कमी, बेहतर स्वास्थ्य और आर्थिक बचत पर बल।

  3. युवा सहभागिता – युवाओं को ऊर्जा नवाचार और स्वच्छ प्रौद्योगिकी अपनाने के लिए प्रेरित करना।

  4. सरकारी योजनाओं को समर्थनराष्ट्रीय सौर मिशन और सतत विकास लक्ष्यों की दिशा में प्रगति को रेखांकित करना।

अक्षय ऊर्जा दिवस 2025 के आयोजन

  • विद्यालयों और महाविद्यालयों में प्रतियोगिताएँ व गतिविधियाँ

  • जागरूकता रैलियाँ

  • सरकार और गैर-सरकारी संगठनों की साझेदारी

Sadbhavana Diwas 2025: जानें क्यों मनाया जाता है सद्भावना दिवस?

सद्भावना दिवस हर साल 20 अगस्त को मनाया जाता है। यह दिन भारत के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की जयंती को समर्पित है। इसे साम्प्रदायिक सद्भावना दिवस (Communal Harmony Day) भी कहा जाता है। इस दिवस का उद्देश्य भारत की विविध धार्मिक, भाषायी और सांस्कृतिक समुदायों के बीच सद्भाव, सहिष्णुता और राष्ट्रीय एकता को प्रोत्साहित करना है। आज के समय में जब समाज में विभाजन और असंतोष दिखाई देता है, सद्भावना दिवस एकजुटता और शांतिपूर्ण सहअस्तित्व का आह्वान करता है।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

  • सद्भावना दिवस की शुरुआत भारत में साम्प्रदायिक सौहार्द और राष्ट्रीय एकता को बनाए रखने के लिए की गई थी।

  • 20 अगस्त की तिथि राजीव गांधी की जयंती को चिह्नित करती है, जो एक प्रगतिशील और समावेशी भारत की उनकी दृष्टि को दर्शाती है।

  • यह दिवस सभी समुदायों के बीच आपसी सम्मान, स्वीकार्यता और सहानुभूति को बढ़ावा देता है।

  • समय के साथ यह एक प्रतीकात्मक आयोजन बन गया है, जिसमें सरकारी संस्थाएँ, शैक्षणिक संस्थान और आम नागरिक सक्रिय रूप से भाग लेते हैं।

उद्देश्य

  1. शांति और सहिष्णुता का प्रसार – विभिन्न धार्मिक और सांस्कृतिक समूहों के बीच शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व को बढ़ावा देना।

  2. राष्ट्रीय एकता को मजबूत करना – विविधता में एकता को सुदृढ़ करना।

  3. साम्प्रदायिक तनाव कम करना – संवाद, सहानुभूति और शिक्षा के माध्यम से भेदभाव और पूर्वाग्रहों को कम करना।

  4. भाईचारे की भावना जगाना – सामाजिक एकजुटता और राष्ट्रीय विकास के प्रति सामूहिक जिम्मेदारी को प्रोत्साहित करना।

महत्व और प्रभाव

  • धर्मनिरपेक्षता और सामाजिक एकता – सभी समुदायों के प्रति समान सम्मान की लोकतांत्रिक भावना को सुदृढ़ करना।

  • साम्प्रदायिकता की रोकथाम – समाज को विभाजन और भेदभाव के खतरों से सचेत करना।

  • राजीव गांधी की विरासत को आगे बढ़ाना – शांति, विकास और राष्ट्रीय एकता के उनके आदर्शों को प्रोत्साहित करना।

  • राष्ट्र निर्माण – सभी नागरिकों में साझा पहचान और उद्देश्य की भावना का विकास करना।

लोकसभा ने असम में आईआईएम गुवाहाटी की स्थापना के लिए विधेयक पारित किया

लोकसभा ने भारतीय प्रबंधन संस्थान (संशोधन) विधेयक, 2025 पारित किया, जिसके तहत असम के गुवाहाटी में नए भारतीय प्रबंधन संस्थान (आईआईएम) की स्थापना का मार्ग प्रशस्त हुआ है। यह कदम पूर्वोत्तर भारत में प्रीमियर प्रबंधन शिक्षा का विस्तार करने की दिशा में एक बड़ा निर्णय माना जा रहा है और लंबे समय से चली आ रही क्षेत्रीय मांग को पूरा करता है।

विधेयक के मुख्य प्रावधान

यह विधेयक भारतीय प्रबंधन संस्थान अधिनियम, 2017 में संशोधन कर आईआईएम गुवाहाटी को राष्ट्रीय प्रबंधन संस्थानों की सूची में शामिल करता है। इसके विकास, आधारभूत संरचना और संचालन के लिए केंद्र सरकार ₹550 करोड़ का वित्तीय अनुदान प्रदान करेगी।

आईआईएम गुवाहाटी का महत्व

शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने इस विधेयक की अहमियत बताते हुए कहा कि—

  • गुवाहाटी पूर्वोत्तर का प्रमुख शैक्षिक और आर्थिक केंद्र है।

  • आईआईएम की स्थापना से इस क्षेत्र के युवाओं को समान अवसर और गुणवत्तापूर्ण प्रबंधन शिक्षा मिलेगी।

  • यह संस्थान क्षेत्रीय विकास के लिए उत्प्रेरक (catalyst) का कार्य करेगा और निवेश व प्रतिभा आकर्षित करेगा।

यह पहल केवल शैक्षिक आकांक्षाओं की पूर्ति ही नहीं बल्कि समावेशी राष्ट्रीय विकास और पूर्वोत्तर को देश की शीर्ष शैक्षणिक संरचना से जोड़ने की दृष्टि को भी मजबूत करती है।

आईआईएम: एक बढ़ता हुआ ब्रांड

  • देश में वर्तमान में 21 आईआईएम संचालित हो रहे हैं। वर्षों से ये संस्थान प्रबंधन शिक्षा में वैश्विक उत्कृष्टता के प्रतीक बने हैं और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इनकी माँग बढ़ रही है।
  • विशेष रूप से, भारत सरकार अगले महीने दुबई में आईआईएम कैंपस शुरू करने जा रही है, जो उच्च शिक्षा के वैश्वीकरण में भारत की बढ़ती भूमिका को दर्शाता है।

संसदीय परिप्रेक्ष्य

हालाँकि यह विधेयक पारित हो गया, लेकिन लोकसभा में इसे विपक्ष के हंगामे के बीच बिना बहस के ही मंजूरी मिली। बावजूद इसके, यह शिक्षा विस्तार को लेकर सर्वसम्मति जैसी राजनीतिक सहमति को दर्शाता है।

रणनीतिक और शैक्षिक प्रभाव

आईआईएम गुवाहाटी की स्थापना से—

  • पूर्वोत्तर भारत में प्रबंधन शिक्षा का ढाँचा मजबूत होगा।

  • दूरदराज़ और जनजातीय क्षेत्रों के युवाओं को पेशेवर शिक्षा में भागीदारी का अवसर मिलेगा।

  • असम व आसपास के राज्यों में नौकरी सृजन, शोध और नवाचार को बढ़ावा मिलेगा।

  • उद्यमिता और स्थानीय व्यापार को प्रबंधन ज्ञान से सहयोग मिलेगा।

भारत में मुख्य चुनाव आयुक्त को हटाने की प्रक्रिया को समझना

भारत के लोकतांत्रिक ढाँचे की निष्पक्षता बनाए रखने में मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) की अहम भूमिका होती है। भारत निर्वाचन आयोग (ECI) के प्रमुख के रूप में सीईसी स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों की निगरानी करते हैं। हाल के राजनीतिक विवादों और चुनावी गड़बड़ियों के आरोपों के बीच सीईसी को हटाने की प्रक्रिया को लेकर दिलचस्पी बढ़ी है। यह प्रक्रिया जानबूझकर कठिन बनाई गई है ताकि संस्था की स्वतंत्रता सुरक्षित रह सके।

संवैधानिक प्रावधान: अनुच्छेद 324(5) और हटाने की प्रक्रिया

भारतीय संविधान अनुच्छेद 324(5) के तहत सीईसी को विशेष सुरक्षा प्रदान करता है। इसके अनुसार:

  • सीईसी को केवल सिद्ध कदाचार (proven misbehaviour) या अक्षमता (incapacity) की स्थिति में ही हटाया जा सकता है।

  • संसद के दोनों सदनों में उपस्थित और मतदान करने वाले दो-तिहाई सदस्यों से प्रस्ताव पारित होना आवश्यक है।

  • जांच समिति द्वारा आधार स्थापित किए जा सकते हैं।

  • राष्ट्रपति को संसद की सिफारिश पर ही कार्य करना होगा, उनके पास कोई विवेकाधिकार नहीं है।

अब तक किसी भी मुख्य चुनाव आयुक्त को हटाया नहीं गया है, जो इस प्रावधान की गंभीरता और दुर्लभता को दर्शाता है।

2023 का अधिनियम: नियुक्ति और हटाने से जुड़े प्रावधान

मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त अधिनियम, 2023 ने पुराने 1991 के कानून को प्रतिस्थापित किया और नई व्यवस्था दी—

  • नियुक्ति प्रक्रिया: सीईसी और ईसी को राष्ट्रपति नियुक्त करते हैं, जो प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष के नेता और एक केंद्रीय मंत्री वाली चयन समिति की सिफारिश पर आधारित होती है।

  • खोज समिति: कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता में योग्य उम्मीदवारों की सूची तैयार करती है।

  • पात्रता: सचिव स्तर के पदों पर कार्य कर चुके और चुनाव प्रबंधन अनुभव रखने वाले अधिकारी।

  • कार्यकाल: अधिकतम 6 वर्ष या 65 वर्ष की आयु, जो भी पहले हो। पुनर्नियुक्ति नहीं।

  • वेतन व दर्जा: अब सीईसी का वेतन कैबिनेट सचिव के बराबर है (पहले यह सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के बराबर था)।

  • हटाना: अन्य चुनाव आयुक्तों को केवल सीईसी की सिफारिश पर ही हटाया जा सकता है, जिस पर आलोचना हुई है।

वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य

  • विपक्षी दलों ने निर्वाचन आयोग की निष्पक्षता पर प्रश्न उठाए हैं और सीईसी को हटाने के लिए प्रस्ताव लाने पर चर्चा की है।

  • 2023 अधिनियम में चयन समिति से भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) को बाहर करना आलोचना का विषय है। पहले न्यायपालिका की उपस्थिति से तटस्थता सुनिश्चित होती थी।

  • इस अधिनियम में सीईसी और ईसी के लिए सेवानिवृत्ति के बाद सरकारी पदों पर नियुक्ति पर कोई रोक नहीं है, जिससे उनकी दीर्घकालिक निष्पक्षता पर सवाल उठ रहे हैं।

  • इस अधिनियम की न्यायिक समीक्षा (judicial review) की मांग करते हुए याचिकाएँ सर्वोच्च न्यायालय में लंबित हैं।

परीक्षाओं के लिए महत्व

यह विषय प्रतिस्पर्धी परीक्षाओं और सिविल सेवा की तैयारी के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इसमें शामिल हैं:

  • संवैधानिक प्रावधान और “चेक्स एंड बैलेंसेज़”।

  • संवैधानिक संस्थाओं की संरचना और स्वतंत्रता

  • हाल के कानूनी सुधार और राजनीतिक बहसें

  • 2023 अधिनियम जैसी ऐतिहासिक विधायी पहल।

इस विषय की समझ से परीक्षार्थियों को कानून, राजनीति और लोकतांत्रिक संस्थाओं के आपसी संबंध को बेहतर समझने में मदद मिलेगी, जो सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्रों और साक्षात्कार दोनों के लिए अहम है।

प्रेस रजिस्ट्रार जनरल ने अख़बार और पत्रिका पंजीकरण को सरल बनाने हेतु ‘प्रेस सेवा’ पोर्टल लॉन्च किया

भारत में पारदर्शिता बढ़ाने और प्रक्रियागत देरी को कम करने के उद्देश्य से भारत के प्रेस रजिस्ट्रार जनरल (PRGI) ने ‘प्रेस सेवा’ पोर्टल लॉन्च किया है। यह डिजिटल सिंगल-विंडो प्लेटफ़ॉर्म देशभर में अख़बारों और पत्रिकाओं के पंजीकरण को सरल और तेज़ बनाने के लिए तैयार किया गया है। यह पहल सरकार के मीडिया गवर्नेंस के आधुनिकीकरण और प्रकाशकों के लिए ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस को बढ़ावा देने के प्रयासों का हिस्सा है।

पोर्टल का उद्देश्य और विशेषताएँ

भारत के प्रेस रजिस्ट्रार जनरल योगेश बावेजा द्वारा लॉन्च किया गया यह पोर्टल निम्नलिखित कार्यों को पूरा करने के लिए बनाया गया है—

  • अख़बार और पत्रिकाओं के पंजीकरण की प्रक्रिया को सरल बनाना।

  • आवेदन की जाँच और स्वीकृति को डिजिटल माध्यम से तेज़ करना।

  • निर्णय प्रक्रिया में पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ाना।

  • प्रकाशकों की लंबे समय से चली आ रही शिकायतों, जैसे देरी और बिचौलियों की समस्या, का समाधान करना।

नए सिस्टम के अनुसार, यदि 60 दिनों के भीतर प्राधिकरण की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आती है, तो आवेदन को स्वतः स्वीकृत (deemed approved) माना जाएगा। यह परंपरागत नौकरशाही बाधाओं से एक बड़ा बदलाव है।

प्रकाशकों के लिए प्रमुख लाभ

  • व्यवसाय में आसानी: एक ही प्लेटफ़ॉर्म पर आवेदन, स्पष्टीकरण और स्थिति अपडेट।

  • तेज़ प्रक्रिया: 60 दिनों के भीतर प्रतिक्रिया न मिलने पर स्वतः स्वीकृति।

  • बिचौलियों से मुक्ति: सीधे पोर्टल के उपयोग से डेटा सुरक्षा और लागत बचत।

  • बेहतर सहायता: आने वाले समय में हेल्पलाइन सेवा से प्रकाशकों को वास्तविक समय में मदद मिलेगी।

इससे छोटे, क्षेत्रीय और डिजिटल प्रकाशकों को विशेष लाभ होगा, जो अब तक कई प्रक्रियागत अड़चनों का सामना करते रहे हैं।

नीति और प्रशासनिक प्रभाव

यह डिजिटल पहल भारत में नियामकीय (regulatory) सुधारों की एक बड़ी दिशा को दर्शाती है, जहाँ नागरिक और उद्योग दोनों से जुड़े कार्यों को स्मार्ट गवर्नेंस मॉडल में बदला जा रहा है।

‘प्रेस सेवा’ पोर्टल सीधा जुड़ा है—

  • डिजिटल इंडिया मिशन से

  • ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस सुधारों से

  • और सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय की पारदर्शी शासन प्रणाली से

इससे सभी श्रेणी के प्रिंट मीडिया हितधारकों के लिए निष्पक्ष और समयबद्ध पंजीकरण सुनिश्चित होगा।

केंद्र ने 30 राज्यों में पीडीएस दक्षता बढ़ाने हेतु ‘अन्न-चक्र’ आपूर्ति श्रृंखला उपकरण लागू किया

भारत की खाद्य आपूर्ति प्रणाली को आधुनिक बनाने की दिशा में बड़ा कदम उठाते हुए भारत सरकार ने “अन्न-चक्र” आपूर्ति श्रृंखला अनुकूलन उपकरण को 31 लक्षित राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों (यूटी) में से 30 में लागू कर दिया है। इस डिजिटल पहल का उद्देश्य सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) को तकनीक आधारित लॉजिस्टिक्स के माध्यम से सुव्यवस्थित करना है। अनुमान है कि इससे हर साल लगभग ₹250 करोड़ की बचत होगी और पर्यावरणीय प्रभाव भी कम होगा।

“अन्न-चक्र” क्या है?

“अन्न-चक्र” एक रूट ऑप्टिमाइजेशन और लॉजिस्टिक्स प्रबंधन उपकरण है, जिसे पीडीएस लॉजिस्टिक्स और खाद्यान्न परिवहन की दक्षता बढ़ाने के लिए विकसित किया गया है। यह डाटा-आधारित एल्गोरिद्म का उपयोग कर परिवहन लागत घटाता है, डिलीवरी समय कम करता है और केंद्रीय गोदामों से उचित मूल्य की दुकानों तक व्यवस्थित आपूर्ति सुनिश्चित करता है।

पारंपरिक मैनुअल योजना की जगह स्वचालित रूट ऑप्टिमाइजेशन अपनाकर यह उपकरण अपव्यय रोकने, ईंधन बचाने और वास्तविक समय निर्णय-निर्माण में मदद करता है।

वर्तमान स्थिति

अगस्त 2025 तक, यह उपकरण निम्नलिखित 30 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में लागू किया जा चुका है—पंजाब, तेलंगाना, तमिलनाडु, राजस्थान, मिज़ोरम, बिहार, सिक्किम, गुजरात, आंध्र प्रदेश, नागालैंड, छत्तीसगढ़, गोवा, झारखंड, पश्चिम बंगाल, हिमाचल प्रदेश, मेघालय, असम, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश, दिल्ली, जम्मू-कश्मीर, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, अरुणाचल प्रदेश, लद्दाख, त्रिपुरा, केरल, कर्नाटक, हरियाणा और ओडिशा। केवल मणिपुर में यह अब तक लागू नहीं हो सका है।

“अन्न-चक्र” के प्रमुख लाभ

  1. लागत में बचत – हर साल लगभग ₹250 करोड़ की बचत, क्योंकि परिवहन लागत, ईंधन खपत और अनावश्यक रूट घटेंगे।

  2. पर्यावरणीय प्रभाव में कमी – ईंधन उपयोग घटने से CO₂ उत्सर्जन कम होगा, जिससे जलवायु परिवर्तन लक्ष्यों और सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) में योगदान मिलेगा।

  3. आपूर्ति श्रृंखला की पारदर्शिता – डिजिटल डैशबोर्ड और प्रेडिक्टिव एनालिटिक्स से स्टॉक मूवमेंट ट्रैक करना, देरी की आशंका पहचानना और खाद्यान्न लीकेज या डायवर्जन रोकना आसान होगा।

  4. समय पर वितरण – रूट और शेड्यूल ऑप्टिमाइजेशन से राशन समय पर, विशेषकर दूरस्थ और कठिन क्षेत्रों तक, पहुँच सकेगा।

पीडीएस के लिए रणनीतिक महत्व

भारत की पीडीएस प्रणाली लगभग 80 करोड़ से अधिक लोगों को कवर करती है, जो विश्व की सबसे बड़ी खाद्य सुरक्षा नेटवर्क में से एक है। इस प्रणाली की सफलता के लिए अनाज का प्रभावी और समयबद्ध वितरण अत्यंत आवश्यक है।

“अन्न-चक्र” की शुरुआत से—

  • लॉजिस्टिक व्यय घटाकर बेहतर वित्तीय प्रबंधन,

  • कमजोर वर्गों तक खाद्य पहुँच में सुधार,

  • प्रशासनिक स्तर पर निगरानी और लॉजिस्टिक साझेदारों के साथ तालमेल आसान होगा।

चुनौतियाँ और आगे की राह

हालाँकि यह परियोजना काफी आगे बढ़ चुकी है, फिर भी कुछ चुनौतियाँ बनी हुई हैं—

  • मणिपुर में पूर्ण एकीकरण अभी बाकी है, संभवतः स्थानीय लॉजिस्टिक कारणों से।

  • स्थानीय अधिकारियों और परिवहन ऑपरेटरों को डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म से परिचित कराने के लिए प्रशिक्षण जारी है।

  • निरंतर डाटा अपडेट और अवसंरचना समर्थन ज़रूरी है ताकि उपकरण का प्रदर्शन कायम रह सके।

चरणबद्ध विस्तार और क्षमता निर्माण कार्यक्रमों से यह पहल पूरे देश में स्थायी और व्यापक लाभ दे सकती है।

NABL ने ISO 15189:2022 के लिए नया मेडिकल एप्लिकेशन पोर्टल लॉन्च किया

भारत की स्वास्थ्य सेवा गुणवत्ता ढाँचे को मजबूत करने की दिशा में एक अहम कदम उठाते हुए नेशनल एक्रेडिटेशन बोर्ड फॉर टेस्टिंग एंड कैलिब्रेशन लेबोरेटरीज़ (NABL) ने आईएसओ 15189:2022 मानक के तहत आवेदन करने वाली प्रयोगशालाओं के लिए नया मेडिकल एप्लीकेशन पोर्टल लॉन्च किया है। यह डिजिटल पहल 19 अगस्त 2025 को आयोजित वर्चुअल कार्यक्रम “गोइंग लाइव” के दौरान पेश की गई। इसका उद्देश्य प्रयोगशाला मान्यता (accreditation) प्रक्रिया में पारदर्शिता, दक्षता और सहजता लाना है।

आईएसओ 15189:2022 क्या है और क्यों महत्वपूर्ण है?

आईएसओ 15189:2022 एक अंतरराष्ट्रीय मानक है जो चिकित्सा प्रयोगशालाओं के लिए गुणवत्ता और क्षमता संबंधी आवश्यकताओं को परिभाषित करता है। इस मानक के तहत मान्यता प्राप्त करने से यह सुनिश्चित होता है कि प्रयोगशालाएँ निदान परीक्षणों में सटीकता, विश्वसनीयता और सुरक्षा के साथ कार्य कर रही हैं। यह भारत की स्वास्थ्य सेवा प्रणाली की मजबूती के लिए अत्यंत आवश्यक है।

एनएबीएल द्वारा इस आवेदन प्रक्रिया का डिजिटलीकरण करने से भारत के स्वास्थ्य ढाँचे को कई लाभ होंगे—जैसे तेज़ मंजूरी, मानव-त्रुटियों में कमी और बेहतर अनुपालन।

पोर्टल की प्रमुख विशेषताएँ: दक्षता के लिए डिज़ाइन

नया एनएबीएल मेडिकल एप्लीकेशन पोर्टल चिकित्सा प्रयोगशालाओं के वास्तविक कार्यप्रवाह को ध्यान में रखकर तैयार किया गया है। इसकी मुख्य विशेषताएँ हैं:

  • पुनर्गठित आवेदन प्रक्रिया, जिससे फॉर्म भरना और स्थिति (status) ट्रैक करना आसान होगा।

  • मानकीकृत दस्तावेज़ टेम्पलेट्स, जो भ्रम और त्रुटियों को कम करेंगे।

  • विस्तृत प्री-रजिस्ट्रेशन चेकलिस्ट, जिससे प्रयोगशालाएँ आवेदन से पहले अपनी तैयारी सुनिश्चित कर सकें।

  • सरल और उपयोगकर्ता-अनुकूल इंटरफ़ेस, जिसमें स्पष्ट नेविगेशन होगा।

  • मल्टी-यूज़र एक्सेस सुविधा, जिससे लैब मैनेजर, क्वालिटी हेड जैसे अलग-अलग जिम्मेदार व्यक्ति सुरक्षित रूप से लॉगिन कर अपने कार्य पूरे कर सकेंगे।

क्यूसीआई (QCI) के चेयरपर्सन श्री जक्सय शाह के अनुसार, जिन नियमित गतिविधियों में पहले हफ़्तों या महीनों का समय लगता था, उन्हें अब मात्र 2–3 घंटे में पूरा किया जा सकेगा।

प्रयोगशालाओं और स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए लाभ

इस पोर्टल के लॉन्च से कई ठोस लाभ होंगे:

  • तेज़ी: आवेदन प्रक्रिया का शीघ्र निपटारा, जिससे मान्यता चक्र कम समय में पूरा होगा।

  • पारदर्शिता: हर चरण की रीयल-टाइम जानकारी प्रयोगशालाओं तक पहुँचेगी।

  • जवाबदेही: मल्टी-यूज़र एक्सेस के ज़रिए आंतरिक जाँच और दस्तावेज़ सत्यापन आसान होगा।

  • लागत प्रभावशीलता: डिजिटल प्रोसेसिंग से प्रशासनिक और लॉजिस्टिक खर्च घटेंगे।

  • राष्ट्रीय पहुँच: भारत के किसी भी हिस्से से लैब बिना क्षेत्रीय कार्यालयों पर निर्भर हुए सिस्टम का उपयोग कर पाएँगी।

आख़िरकार, इससे देश में मान्यता प्राप्त प्रयोगशालाओं की संख्या बढ़ेगी, निदान की विश्वसनीयता में सुधार होगा और मरीज़ों के लिए बेहतर स्वास्थ्य परिणाम सामने आएँगे।

World Mosquito Day 2025: जानें डेंगू और मलेरिया से बचाव की जरूरी सावधानियां

विश्व मच्छर दिवस प्रतिवर्ष 20 अगस्त को मनाया जाता है। इसका उद्देश्य मच्छरों से फैलने वाले रोगों के प्रति जागरूकता फैलाना तथा उनसे बचाव एवं नियंत्रण के उपायों को प्रोत्साहित करना है। यह दिन मच्छरों से होने वाली बीमारियों, जैसे मलेरिया, डेंगू, चिकनगुनिया और जीका वायरस, के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए समर्पित है।

World Mosquito Day की थीम

वर्ल्ड मच्छर दिवस 2025 की थीम है “अधिक समतापूर्ण विश्व के लिए मलेरिया के खिलाफ लड़ाई को तेज करना” (Accelerating the Fight Against Malaria for a More Equitable World)। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, हर साल करोड़ों लोग इन बीमारियों से प्रभावित होते हैं, इसलिए बचाव ही सबसे बड़ा उपाय है।

ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य

  • 20 अगस्त, 1897 को प्रसिद्ध ब्रिटिश चिकित्सक एवं वैज्ञानिक सर रोनाल्ड रॉस ने यह सिद्ध किया कि मादा एनोफिलीज़ मच्छर ही मलेरिया का वाहक है।
  • इस खोज ने चिकित्सा विज्ञान की दिशा ही बदल दी और मलेरिया नियंत्रण की नींव रखी।
  • इस महत्वपूर्ण योगदान के लिए रोनाल्ड रॉस को वर्ष 1902 में नोबेल पुरस्कार (चिकित्सा/शारीरिकी) से सम्मानित किया गया।
  • उनकी इस ऐतिहासिक खोज की स्मृति में प्रत्येक वर्ष 20 अगस्त को विश्व मच्छर दिवस मनाया जाता है।

उद्देश्य

  • मच्छरजनित रोगों के बारे में जनसाधारण को जागरूक करना।
  • रोग-नियंत्रण हेतु वैज्ञानिक अनुसंधान एवं चिकित्सा प्रयासों को प्रोत्साहन देना।
  • मच्छरों की रोकथाम एवं उन्मूलन संबंधी उपायों को लोकप्रिय बनाना।
  • वैश्विक स्तर पर मलेरिया उन्मूलन की दिशा में सहयोग सुनिश्चित करना।

भारत और मच्छरजनित रोग नियंत्रण

  • भारत लंबे समय से मलेरिया, डेंगू, फाइलेरिया और चिकनगुनिया जैसी बीमारियों से प्रभावित रहा है।
  • इसके नियंत्रण हेतु भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय वेक्टर जनित रोग नियंत्रण कार्यक्रम (NVBDCP) संचालित है।
  • भारत सरकार ने राष्ट्रीय मलेरिया उन्मूलन रूपरेखा 2016-2030 के अंतर्गत 2030 तक मलेरिया-मुक्त राष्ट्र बनने का लक्ष्य रखा है।

रोकथाम एवं नियंत्रण के उपाय

  • घर एवं आसपास पानी एकत्रित न होने देना।
  • मच्छरदानी, रिपेलेंट व जालीदार खिड़कियों का उपयोग।
  • जल-स्रोतों (कूलर, टंकी, गमले) की नियमित सफाई एवं जल-परिवर्तन।
  • सामुदायिक स्तर पर स्वच्छता अभियान तथा कीटनाशी छिड़काव।
  • जन-जागरूकता और स्वास्थ्य शिक्षा। 

डेंगू और मलेरिया से बचाव के आसान घरेलू नुस्खे

  • नीम का तेल और कपूर – नीम के तेल को पानी में मिलाकर कमरे में छिड़काव करने से मच्छर भागते हैं। कपूर जलाकर कमरे में रखने से भी मच्छर नहीं आते।
  • तुलसी का पौधा – घर में तुलसी लगाने से मच्छरों की संख्या कम होती है, क्योंकि इसकी खुशबू मच्छरों को पसंद नहीं आती।
  • लहसुन और पुदीना – लहसुन की गंध और पुदीने का तेल दोनों ही मच्छरों को दूर रखने में असरदार हैं।
  • सरसों और नारियल तेल – इन तेलों को मिलाकर शरीर पर लगाने से मच्छर काटने से बचते हैं।
  • नींबू और लौंग – नींबू के टुकड़ों में लौंग लगाकर कमरे में रखने से मच्छर पास नहीं आते।

मच्छरों से होने वाली बीमारियां

WHO की रिपोर्ट के मुताबिक, वेक्टर बोर्न डिजीज को मच्छरजनित रोग कहा जाता है। इसका मतलब है मच्छरों से होने वाले बुखार। ये एक संक्रामक रोग होता है जो हर साल दुनियाभर में 7,00,000 से ज़्यादा मौतों का कारण बनता है। इनमें सबसे ज्यादा तेजी से फैलने वाला बुखार मलेरिया है। मलेरिया से प्रतिवर्ष 608,000 से अधिक मौतें होती हैं, जिनमें भी 5 साल से कम आयु के बच्चे शामिल होते हैं। वहीं, डेंगू भी 132 देशों में लोगों को प्रभावित करने वाला बुखार है। डेंगू से हर साल लगभग 40,000 मौतें होती हैं। इसके अलावा, चिकनगुनिया, जीका फीवर, पीला बुखार, वेस्ट नाइल फीवर, जापानी एन्सेफलाइटिस और ओरोपोचे बुखार भी मच्छरों से होने वाले रोग हैं।

रूस 2036 तक शुक्र ग्रह के लिए वेनेरा-डी मिशन प्रक्षेपित करेगा

रूस ने आधिकारिक तौर पर यह घोषणा की है कि वह 2034 से 2036 के बीच वेनेरा-डी मिशन के माध्यम से शुक्र ग्रह (Venus) की खोज में वापसी करेगा। इस बहुप्रतीक्षित मिशन में एक लैंडर, ऑर्बिटल यान और गुब्बारा जांच यान (Balloon Probe) शामिल होंगे। यह रूस की दशकों बाद अंतरग्रहीय अन्वेषण (Interplanetary Exploration) में वापसी होगी और सोवियत काल के ऐतिहासिक वेनेरा कार्यक्रम को पुनर्जीवित करेगी।

यह पहल रूस के नए राष्ट्रीय अंतरिक्ष कार्यक्रम का हिस्सा है। स्पेस रिसर्च इंस्टीट्यूट (IKI) के ओलेग कोराबलेव के अनुसार, जनवरी 2026 से इस मिशन की प्रारंभिक डिज़ाइन पर काम शुरू होगा।

वेनेरा-डी मिशन क्या है?

वेनेरा-डी में “डी” का अर्थ है “डोल्गोज़िवुशाया” (लॉन्ग-लिव्ड / दीर्घजीवी)। इसका उद्देश्य शुक्र ग्रह के वातावरण, सतह और जलवायु तंत्र पर गहन वैज्ञानिक डेटा एकत्र करना है। यह सोवियत युग के वेनेरा और वेगा कार्यक्रमों के बाद रूस का सबसे बड़ा शुक्र अन्वेषण प्रयास होगा।

मिशन के घटक

  • लैंडर: सतह की संरचना, तापमान, दाब (Pressure) और संभव हो तो मिट्टी का विश्लेषण करेगा।

  • ऑर्बिटल यान: उच्च-रिज़ॉल्यूशन चित्र, वातावरण संबंधी अध्ययन और अन्य यंत्रों से डेटा एकत्र करेगा।

  • गुब्बारा जांच यान: शुक्र ग्रह के ऊपरी वातावरण में तैरता रहेगा और तापमान, हवाओं तथा रासायनिक संरचना को लंबे समय तक मापेगा।

समयरेखा और विकास

  • प्रारंभिक डिज़ाइन चरण: जनवरी 2026 से, अवधि 2 वर्ष

  • सहयोग: लावोच्किन एसोसिएशन (रूसी एयरोस्पेस कंपनी)

  • प्रक्षेपण खिड़की: 2034 से 2036 के बीच

  • लॉन्च वाहन: रूसी रॉकेट से प्रक्षेपण

शुक्र ग्रह की कठोर परिस्थितियों को देखते हुए यह डिज़ाइन और योजना चरण अत्यंत चुनौतीपूर्ण माना जा रहा है।

वैज्ञानिक लक्ष्य

  • वातावरण की गति (Atmospheric Dynamics) और बादलों की रसायन प्रक्रिया को समझना

  • ज्वालामुखीय गतिविधि (Volcanism) के वर्तमान या पूर्व संकेतों की जांच

  • जलवायु विकास का अध्ययन और पृथ्वी से तुलना

  • संभावित प्राचीन जीवन के संकेत या निवास योग्य परिस्थितियों का पता लगाना

वैश्विक परिप्रेक्ष्य

हाल के वर्षों में शुक्र ग्रह के प्रति रुचि बढ़ी है, खासकर फॉस्फीन गैस (संभावित जैव-चिह्न) की खोज संबंधी बहस के बाद।

  • NASA: VERITAS और DAVINCI+ मिशन

  • ESA (यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी): EnVision मिशन (2030 के शुरुआती दशक में)

  • रूस: वेनेरा-डी (2034–36)

इस तरह वेनेरा-डी विश्व स्तर पर शुक्र अन्वेषण की नई दौड़ में रूस की वापसी को दर्शाता है।

Recent Posts

about | - Part 139_12.1