केंद्र सरकार ने कोहिमा स्थित नागा सॉलिडैरिटी पार्क में स्टेट-लेवल वाटरशेड महोत्सव 2025 और मिशन वाटरशेड पुनरुत्थान की शुरुआत की है। इस कार्यक्रम का उद्देश्य प्राकृतिक जल स्रोतों की सुरक्षा, मिट्टी के स्वास्थ्य में सुधार, और ग्रामीण समुदायों को बेहतर जल प्रबंधन के लिए सक्षम बनाना है। यह पारंपरिक जल प्रणालियों के महत्व को रेखांकित करता है और लोगों को दीर्घकालिक जल सुरक्षा के लिए मिलकर काम करने के लिए प्रेरित करता है।
मिशन वाटरशेड पुनरुत्थान के मुख्य उद्देश्य
मिशन वाटरशेड पुनरुत्थान का मुख्य लक्ष्य गाँवों को जल-सुरक्षित और पर्यावरणीय रूप से मजबूत बनाना है। यह मिशन विशेष रूप से निम्न बातों पर केंद्रित है:
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प्राकृतिक झरनों का पुनर्जीवन
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वाटरशेड संरचनाओं को बेहतर बनाना
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ग्रामीण क्षेत्रों में जल उपलब्धता बढ़ाना
इस मिशन में समुदाय की सहभागिता को भी बड़ी प्राथमिकता दी गई है, जहाँ ग्रामीण स्वयं जल स्रोतों के संरक्षण में नेतृत्व करते हैं। मनरेगा जैसी योजनाएँ इन प्रयासों को मज़बूत बनाती हैं क्योंकि वे रोजगार पैदा करती हैं और ग्रामीण आजीविका में सुधार लाती हैं।
सरकारी दृष्टिकोण
कार्यक्रम के शुभारंभ के दौरान ग्रामीण विकास और संचार राज्य मंत्री ने कहा कि जल सुरक्षा राष्ट्रीय प्राथमिकता है। उन्होंने नागालैंड की सामुदायिक संरक्षण परंपराओं की सराहना की और बताया कि प्राकृतिक संसाधनों का पुनर्जीवन पर्यावरण की रक्षा करने और भविष्य की जलवायु चुनौतियों से निपटने के लिए आवश्यक है।
नागालैंड में पीएमकेएसवाई के तहत प्रगति
नागालैंड ने प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (PMKSY) और वाटरशेड विकास कार्यक्रमों के तहत उल्लेखनीय उपलब्धियाँ हासिल की हैं। प्रमुख प्रगति इस प्रकार है:
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राज्य में 14 वाटरशेड परियोजनाएँ स्वीकृत
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₹140 करोड़ की मंजूरी, जिसमें से ₹80 करोड़ जारी
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555 जल-संग्रहण संरचनाओं की मरम्मत और सुदृढ़ीकरण
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120 प्राकृतिक झरनों का पुनर्जीवन
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6,500 से अधिक किसानों को लाभ
पूर्वोत्तर राज्यों को 90% केंद्रीय सहायता भी मिलती है, जिससे विकास कार्यों की गति तेज होती है।
राष्ट्रीय जल लक्ष्यों को कैसे समर्थन मिलता है?
भारत के पास दुनिया के कुल मीठे पानी का केवल लगभग 4% हिस्सा है, जबकि वह विशाल जनसंख्या का समर्थन करता है। इस वजह से PMKSY जैसे कार्यक्रम अत्यंत महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि वे जल संरक्षण, भूजल पुनर्भरण और बहु-फसल चक्रों को समर्थन देते हैं। ऐसे प्रयास गाँवों को जल संकट से निपटने, मिट्टी की नमी बढ़ाने और ग्रामीण क्षेत्रों को जलवायु-सहिष्णु बनाने में मदद करते हैं।


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