वित्त वर्ष 2025–26 की पहली छमाही में कुल वार्षिक आवंटन का अधिकतम 60% खर्च की सीमा तय कर दी गई है। यह निर्णय केंद्र सरकार द्वारा योजना के नकदी प्रवाह (कैश फ्लो) को नियंत्रित करने की दृष्टि से लिया गया है, लेकिन इससे योजना की मांग-आधारित प्रकृति प्रभावित हो सकती है, खासकर जब पिछले वर्ष से ₹21,000 करोड़ की लंबित देनदारियां पहले से मौजूद हैं।
समाचार में क्यों?
वित्त मंत्रालय ने पहली बार मनरेगा पर मासिक/त्रैमासिक व्यय नियंत्रण (MEP/QEP) लागू किया है, जिसमें पहली छमाही में खर्च को वार्षिक बजट के 60% तक सीमित किया गया है। ग्रामीण विकास मंत्रालय ने शुरुआत में इसका विरोध किया था। उच्च श्रम मांग और लंबित भुगतानों के कारण इस निर्णय से ग्रामीण रोजगार सृजन पर असर पड़ सकता है।
मुख्य घटनाक्रम
बिंदु | विवरण |
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वार्षिक बजट (2025–26) | ₹86,000 करोड़ |
पहली छमाही व्यय सीमा | ₹51,600 करोड़ (60%) |
8 जून 2025 तक व्यय | ₹24,485 करोड़ (28.47%) |
लंबित भुगतान (2024–25 से) | ₹21,000 करोड़ |
लक्ष्यित श्रम बजट | 198.86 करोड़ मानव-दिवस |
पहली छमाही लक्ष्य | 133.45 करोड़ मानव-दिवस (67.11%) |
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शुरुआत: 2006–07 में 200 पिछड़े जिलों में
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2007–08 में 130 और जिलों में विस्तार
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2008–09 से पूरे भारत में लागू
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प्रत्येक ग्रामीण परिवार को 100 दिन का गारंटीकृत रोजगार
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कोविड-19 के दौरान अहम भूमिका; 2020–21 में 7.55 करोड़ परिवारों की भागीदारी
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2024–25 में भाग लेने वाले परिवार घटकर 5.79 करोड़ हुए
MEP/QEP क्या है?
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वित्त मंत्रालय द्वारा 2017 में शुरू की गई प्रणाली
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मंत्रालयों के बजट को मासिक या त्रैमासिक आधार पर बांटकर व्यय नियंत्रण
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नकदी प्रवाह प्रबंधन और अनावश्यक उधारी से बचाव
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अब तक मनरेगा को इसकी मांग-आधारित प्रकृति के कारण इससे मुक्त रखा गया था
महत्व और प्रभाव
सकारात्मक पहलू
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राजकोषीय अनुशासन को बढ़ावा
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रोजगार सृजन के लिए अग्रिम योजना संभव
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फंड के अनुचित संचय को रोकेगा
चिंताएं
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लंबित भुगतान के चलते मजदूरी में देरी या रोजगार में कटौती संभव
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योजना की मांग-आधारित आत्मा को क्षति
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कृषि के गैर-मौसम में ग्रामीण क्षेत्रों में राजनीतिक असंतोष की आशंका