हर वर्ष 4 दिसंबर को अंतरराष्ट्रीय चीता दिवस मनाया जाता है। इसका उद्देश्य दुनिया के सबसे तेज़ भूमि प्राणी के संरक्षण के प्रति जागरूकता बढ़ाना है। इस दिवस की शुरुआत 2010 में अमेरिकी प्राणी विज्ञानी डॉ. लॉरी मार्कर ने की थी, जो चीता कंजर्वेशन फंड (CCF) की संस्थापक हैं। यह दिन न सिर्फ चीता प्रजाति, बल्कि उन सभी लोगों और परियोजनाओं को भी सम्मान देता है जो इनके संरक्षण में लगे हैं।
चीता लगभग 50 लाख वर्ष पुरानी प्रजाति है, जिसके विकास की शुरुआत मियोसीन युग में हुई थी। यह अपनी अद्भुत गति के लिए विश्व प्रसिद्ध है—चीता 0 से 112 किमी/घंटा तक सिर्फ 3 सेकंड में पहुँच सकता है।
हालांकि विकास के लंबे इतिहास के बावजूद आज चीते विलुप्ति के खतरे का सामना कर रहे हैं। दुनिया में केवल 6,500 से 7,100 चीते ही बचे हैं, अधिकतर अफ्रीका में। IUCN ने सभी उप-प्रजातियों को संवेदनशील (Vulnerable) जबकि उत्तर-पश्चिम अफ्रीकी और एशियाई चीतों को अत्यंत संकटग्रस्त (Critically Endangered) घोषित किया है।
भारत में चीते 1952 में आधिकारिक रूप से विलुप्त घोषित कर दिए गए थे—यह देश से गायब होने वाला एकमात्र बड़ा मांसाहारी था, जिसका कारण शिकार और आवास विनाश था। लेकिन अब प्रोजेक्ट चीता ने इस कहानी को बदल दिया है।
सितंबर 2022 में भारत ने एक महत्वाकांक्षी कदम उठाया—नामीबिया से 8 अफ्रीकी चीते मध्य प्रदेश के कूनो नेशनल पार्क में लाकर बसाए। इसके बाद दक्षिण अफ्रीका से 12 चीते 2023 में लाए गए।
शुरू में उनकी अनुकूलन क्षमता पर संदेह था, परंतु परियोजना ने अद्भुत सफलता दिखाई है।
भारत में कुल 32 चीते
इनमें से 21 शावक भारत में जन्मे
नवंबर 2025 में मुखी नामक भारत-जन्मी मादा ने 5 स्वस्थ शावकों को जन्म दिया
यह साबित करता है कि भारत के घास के मैदान चीतों के लिए उपयुक्त हैं
यह चरण केवल पुनर्वास से आगे बढ़कर प्राकृतिक प्रजनन तक पहुँच गया है—जो वैश्विक संरक्षण प्रयासों के लिए एक मॉडल बन सकता है।
प्रोजेक्ट चीता के तहत भारत में कई स्थान विकसित किए जा रहे हैं:
मुख्य स्थल; सबसे अधिक चीते यहीं हैं।
2025 में “धीरा” नामक पहला चीता यहाँ लाया गया।
अभी विकासाधीन; भविष्य में चीता संरक्षण के लिए नया केंद्र।
इन क्षेत्रों का उद्देश्य केवल संरक्षण ही नहीं, बल्कि पर्यावरण-पर्यटन को बढ़ावा देना भी है, ताकि समुदाय भी संरक्षण में भागीदार बनें।
हालाँकि दोनों पर धब्बे होते हैं, फिर भी इनमें महत्वपूर्ण अंतर हैं:
चेहरे के निशान: चीतों के चेहरे पर काले “टियर मार्क” होते हैं; तेंदुओं में नहीं।
शरीर: चीता पतला और ऊँचा, तेंदुआ भारी और मज़बूत।
नाखून: चीतों के नाखून आंशिक रूप से बाहर रहते हैं; तेंदुओं के पूरी तरह अंदर जाते हैं।
ध्वनि: चीते “चिरप” करते हैं; तेंदुए “गर्जना” करते हैं।
भारत के अलावा, प्राकृतिक आवास में चीते इन स्थानों पर मिलते हैं:
सेरेनगेटी (तंजानिया)
मासाई मारा (केन्या)
ओकावांगो डेल्टा (बोत्सवाना)
फिंडा व क्वांडवे रिज़र्व (दक्षिण अफ्रीका)
ह्वांगे (जिम्बाब्वे)
लेवा कंज़र्वेंसी (केन्या)
ये सभी क्षेत्र वैश्विक चीता संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
4 दिसंबर: अंतरराष्ट्रीय चीता दिवस
2010: शुरुआत डॉ. लॉरी मार्कर द्वारा
1952: भारत में चीते आधिकारिक रूप से विलुप्त घोषित
2022: 20 अफ्रीकी चीतों को कूनो में पुनर्वासित किया गया
2025: भारत में कुल 32 चीते, जिनमें 21 देशी-जन्मे
सभी उप-प्रजातियाँ IUCN द्वारा संवेदनशील, दो उप-प्रजातियाँ अत्यंत संकटग्रस्त
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