सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (MoSPI) के अनुसार, भारत की बेरोज़गारी दर जुलाई 2025 में घटकर 5.2% पर आ गई। आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS) के ताज़ा आँकड़े बताते हैं कि ग्रामीण भारत रोजगार वृद्धि का मुख्य चालक रहा, जहाँ कृषि सबसे बड़ा नियोक्ता बनी हुई है, जबकि शहरी क्षेत्रों में सेवाक्षेत्र (Services Sector) रोजगार में अग्रणी रहा।
यह नतीजे नीति-निर्माताओं के लिए सकारात्मक संकेत हैं, जो अब ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में समावेशी रोजगार सृजन पर ज़ोर दे रहे हैं।
प्रमुख श्रम बल संकेतक
PLFS की त्रैमासिक बुलेटिन (अप्रैल–जून 2025) और मासिक बुलेटिन (जुलाई 2025) में भारत के रोजगार परिदृश्य की विस्तृत तस्वीर सामने आई।
त्रैमासिक रुझान (अप्रैल–जून 2025)
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श्रम बल भागीदारी दर (LFPR)
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कुल: 55%
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ग्रामीण: 57.1%
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शहरी: 50.6%
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कार्यकर्ता जनसंख्या अनुपात (WPR)
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कुल: 52%
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ग्रामीण: 54.4%
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शहरी: 47.1%
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बेरोज़गारी दर (UR)
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कुल: 5.4%
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ग्रामीण: 4.8%
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शहरी: 6.8%
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मासिक रुझान (जुलाई 2025)
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LFPR: 54.9% (जून के 54.2% से थोड़ा सुधार)
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बेरोज़गारी दर: 5.2% (जून के 5.6% से कम)
रोजगार संरचना – ग्रामीण बनाम शहरी
ग्रामीण क्षेत्र
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स्वरोज़गार का दबदबा: पुरुषों में 55.3% और महिलाओं में 71.6% स्वरोज़गार में।
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कृषि: अब भी सबसे बड़ा नियोक्ता, जो ग्रामीण निर्भरता को दर्शाता है।
शहरी क्षेत्र
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नियमित वेतनभोगी/तनख्वाहदार नौकरियों का वर्चस्व: पुरुषों में 47.5% और महिलाओं में 55.1% इस श्रेणी में।
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सेवाक्षेत्र अग्रणी: वित्त, आईटी, व्यापार और आतिथ्य (Hospitality) सबसे प्रमुख।
रोजगार में लैंगिक असमानताएँ
सर्वेक्षण ने रोजगार भागीदारी में लगातार लैंगिक अंतर को रेखांकित किया –
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महिला WPR: 31.6%
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पुरुष WPR: 73.1%
यह अंतर संरचनात्मक चुनौतियों को दर्शाता है, जैसे – औपचारिक नौकरियों तक सीमित पहुँच, सांस्कृतिक बाधाएँ और महिलाओं के लिए असमान अवसर।
नया PLFS पद्धति (2025 से लागू)
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प्रारंभ: जनवरी 2025
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विशेषता: मासिक, त्रैमासिक और वार्षिक स्तर पर ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों के आँकड़े।
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सर्वेक्षण कवरेज (अप्रैल–जून 2025): 1.34 लाख से अधिक परिवार और 5.7 लाख व्यक्ति।
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उद्देश्य: उच्च-आवृत्ति श्रम आँकड़े प्रदान करना ताकि वास्तविक समय में रोजगार बदलावों को ट्रैक किया जा सके और लक्षित हस्तक्षेपों के ज़रिये रोजगार सृजन की नीति बनाई जा सके।
नीतिगत महत्व और प्रभाव
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ग्रामीण लचीलापन: रोजगार वृद्धि कृषि व स्वरोज़गार की महत्ता को दर्शाती है।
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शहरी सेवाक्षेत्र पर निर्भरता: वैश्विक बाजार उतार-चढ़ाव के प्रति संवेदनशीलता को उजागर करती है।
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लैंगिक समावेशन: महिलाओं की कम भागीदारी को बढ़ाने के लिए विशेष नीतियों की आवश्यकता।
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डेटा-आधारित प्रशासन: मासिक और त्रैमासिक आँकड़े श्रम बाज़ार में बदलावों पर त्वरित नीति-निर्माण को संभव बनाएँगे।


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