जुलाई महीने में भारत द्वारा आयात होने वाले पाम ऑयल में गिरावट आई है। वहीं सोयाबीन तेल का आयात पिछले तीन साल में उच्चतम स्तर पर है। पाम ऑयल तेल के आयात में गिरावट की वजह इंपोर्ट कॉन्टैक्ट का रद्द होना है। वहीं सोयाबीन तेल का आयात इसलिए बढ़ा है कि जून महीने में आयातित होने वाले तेल में देरी हुई, जो जुलाई में आयात किया है। भारत के आयात में गिरावट का असर इंडोनेशिया और मलेशिया जैसे देशों पर पड़ेगा, जो पाम ऑयल के प्रमुख उत्पादक देश हैं।
रिपोर्ट के अनुमान के अनुसार, जुलाई में पाम ऑयल का आयात 10 फीसदी घटकर 8,58,000 मीट्रिक टन रह गया, जो जून के 11 महीने के उच्चतम स्तर से कम है। वहीं जुलाई में सोयाबीन तेल के आयात में 38 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। पिछले महीने सोयाबीन तेल का आयात बढ़कर 4,95,000 टन हो गया था। गुजरात के कांडला बंदरगाह पर जहाजों की बढ़ती संख्या के कारण सोयाबीन तेल की टैंकर देर से पहुंची है। यही वजह है कि सोयाबीन तेल के आयात में 38 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। सूरजमुखी तेल के आयात में भी 7 फीसदी की गिरावट आई है। यह घटकर 2,01,000 टन रह गया है।
पाम तेल आयात में गिरावट
जुलाई 2025 में भारत का पाम तेल आयात घटकर 8.58 लाख मीट्रिक टन रह गया, जो जून में दर्ज 11 महीनों के उच्चतम स्तर से कम है।
इस गिरावट का प्रमुख कारण आयात अनुबंधों का रद्द होना रहा।
इस कमी के चलते इंडोनेशिया और मलेशिया, जो दुनिया के सबसे बड़े पाम तेल उत्पादक देश हैं, वहां स्टॉक बढ़ने की आशंका है, जिससे मलेशियाई पाम तेल वायदा कीमतों पर दबाव पड़ सकता है।
सोयाबीन तेल आयात में तेज़ उछाल
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सोयाबीन तेल का आयात जुलाई में 38% बढ़कर 4.95 लाख टन हो गया, जो 2022 के बाद का सबसे उच्च स्तर है।
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यह वृद्धि इन कारणों से हुई:
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वैश्विक बाज़ार में प्रतिस्पर्धी मूल्य
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जून की विलंबित खेपें जो जुलाई में गुजरात के कांडला बंदरगाह पर पहुँचीं
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सोयाबीन तेल के इस उछाल ने पाम तेल की गिरावट की भरपाई की और कुल खाद्य तेल आयात को बढ़ावा दिया।
सूरजमुखी तेल का रुझान
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सूरजमुखी तेल का आयात जुलाई में 7% गिरकर 2.01 लाख टन रह गया।
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इसकी गिरावट के पीछे कारण रहे:
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कम मांग
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और मूल्य प्रतिस्पर्धा की कमी
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कुल खाद्य तेल आयात में वृद्धि
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भारत का कुल खाद्य तेल आयात जुलाई में 1.5% बढ़कर 15.3 लाख टन हो गया।
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यह नवंबर 2024 के बाद का सबसे ऊँचा स्तर है, जिसका मुख्य कारण सोयाबीन तेल के आयात में तेज़ वृद्धि है।
यह परिदृश्य भारत के तेल बाजार में बदलते आयात स्वरूप और वैश्विक कीमतों व आपूर्ति श्रृंखला के प्रभाव को दर्शाता है।


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