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देश का विदेशी मुद्रा भंडार 4.38 अरब डॉलर घटकर 690.72 अरब डॉलर पर

भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा जारी आँकड़ों के अनुसार, 22 अगस्त 2025 को समाप्त सप्ताह में भारत के विदेशी मुद्रा भंडार (Forex Reserves) में 4.38 अरब डॉलर की गिरावट दर्ज की गई और यह घटकर 690.72 अरब डॉलर पर पहुँच गया। यह गिरावट हाल ही में दर्ज उछाल के बाद आई है, जब सितंबर 2024 में भंडार अपने रिकॉर्ड उच्च स्तर 704.88 अरब डॉलर पर पहुँचा था।

भंडार के घटक

  1. विदेशी मुद्रा परिसंपत्तियाँ (FCAs)

    • सबसे बड़ा हिस्सा।

    • 3.65 अरब डॉलर की गिरावट के साथ 582.25 अरब डॉलर पर पहुँचा।

    • इसमें केवल अमेरिकी डॉलर ही नहीं बल्कि यूरो, पाउंड और येन जैसी प्रमुख मुद्राओं की चाल का भी प्रभाव होता है।

  2. स्वर्ण भंडार (Gold Reserves)

    • 665 मिलियन डॉलर की बढ़ोतरी दर्ज हुई।

    • अब कुल मूल्य 66.58 अरब डॉलर

    • यह बढ़ोतरी दर्शाती है कि भारत सुरक्षित निवेश (Safe-Haven Asset) के रूप में सोने में विविधीकरण जारी रखे हुए है।

  3. विशेष आहरण अधिकार (SDRs)

    • 46 मिलियन डॉलर की कमी।

    • कुल मूल्य घटकर 18.73 अरब डॉलर

  4. आईएमएफ रिज़र्व पोज़ीशन

    • 23 मिलियन डॉलर की हल्की कमी।

    • कुल मूल्य 4.73 अरब डॉलर

हाल के रुझान

  • 15 अगस्त 2025 को समाप्त सप्ताह में भंडार 1.48 अरब डॉलर बढ़कर 695.10 अरब डॉलर हुआ था।

  • मौजूदा गिरावट मुख्यतः विदेशी मुद्रा परिसंपत्तियों में उतार-चढ़ाव और अंतरराष्ट्रीय बाजार की गतिविधियों के कारण है।

  • इसके बावजूद, भारत का विदेशी मुद्रा भंडार अब भी विश्व में शीर्ष स्तरों में से एक है, जो बाहरी झटकों से बचाव का मजबूत आधार प्रदान करता है।

आरबीआई की भूमिका

भारतीय रिज़र्व बैंक समय-समय पर विदेशी मुद्रा बाजार में हस्तक्षेप करता है ताकि रुपया स्थिर रहे और अत्यधिक अस्थिरता को नियंत्रित किया जा सके। इसके लिए:

  • डॉलर की बिक्री की जाती है ताकि रुपया तेज़ी से न गिरे।

  • लिक्विडिटी प्रबंधन द्वारा बाजार को सुचारु बनाए रखा जाता है।

महत्वपूर्ण: RBI यह स्पष्ट करता है कि उसका उद्देश्य किसी विशिष्ट विनिमय दर (Exchange Rate) को तय करना नहीं है, बल्कि बाजार में व्यवस्थित कार्यप्रणाली (Orderly Operations) बनाए रखना है।

मज़बूत विदेशी मुद्रा भंडार का महत्व

  • मुद्रा स्थिरता सुनिश्चित करना, विशेषकर बाहरी संकटों में।

  • कच्चे तेल और आवश्यक वस्तुओं के आयात भुगतान का समर्थन।

  • विदेशी निवेशकों का विश्वास बनाए रखना

  • वैश्विक व्यापार अवरोध, शुल्क तनाव और पूँजी के बहिर्वाह (Capital Outflow) के दौरान सुरक्षा कवच प्रदान करना।

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