शिक्षा मंत्रालय के अंतर्गत आने वाले भारतीय ऐतिहासिक अनुसंधान परिषद (ICHR) ने मध्यकालीन भारतीय डायनेस्टी पर एक प्रदर्शनी का आयोजन किया। इस प्रदर्शनी में 50 विभिन्न राजवंशों पर प्रकाश डाला गया। हालांकि, प्रदर्शनी में किसी भी मुस्लिम राजवंश (Dynasty) को शामिल नहीं किया गया था।
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बता दें कि प्रदर्शनी में देश के सभी कोनों से 50 राजवंशों को शामिल किया गया है, जिनमें अहोम, चोल, राठौड़, यादव और काकतीय शामिल हैं। यह उनके संस्थापकों, राजधानी शहरों, समयरेखा और वास्तुकला, कला, संस्कृति और प्रशासन जैसे क्षेत्रों में भारत में योगदान पर केंद्रित है। ICHR ने कहा है कि भारत के अनछुए अतीत से लोगों को अवगत कराने के उद्देश्य से जल्द ही देश भर के शिक्षण संस्थानों में प्रदर्शनी का आयोजन किया जाएगा।
मुख्य बिंदु
- आईसीएचआर ने ललित कला अकादमी में ‘मध्यकालीन भारत की महिमा: अज्ञात का प्रकटीकरण – भारतीय राजवंश, 8वीं-18वीं शताब्दी’ शीर्षक से प्रदर्शनी का आयोजन किया।
- प्रदर्शनी का उद्घाटन राज्य शिक्षा मंत्री डॉ. राजकुमार रंजन सिंह ने किया।
- बहमनी और आदिल शाही जैसे मुस्लिम राजवंश प्रदर्शनी का हिस्सा नहीं थे।
- इस प्रश् पर कि मुस्लिम राजवंश प्रदर्शनी का हिस्सा क्यों नहीं हैं, आईसीएचआर के सदस्य सचिव प्रोफेसर उमेश अशोक कदम ने कहा कि वह मुस्लिम राजवंशों को भारतीय राजवंशों के रूप में नहीं मानते हैं।
- कदम के अनुसार, मुस्लिम मध्य पूर्व से आए थे और उनका भारतीय संस्कृति से सीधा जुड़ाव नहीं था।
- यद्यपि इस्लामी राजवंश निस्संदेह भारतीय इतिहास का एक हिस्सा थे, कदम ने तर्क दिया कि अतीत पर मुगल या सल्तनत राजवंशों का प्रभुत्व नहीं होना चाहिए।
- कदम ने कहा, ‘इस्लाम और ईसाई धर्म मध्यकाल में भारत में आए और उन्होंने सभ्यता को उखाड़ फेंका और ज्ञान प्रणाली को नष्ट कर दिया।’
- आईसीएचआर के अनुसार, भारत के अतीत के बारे में लोगों को शिक्षित करने के इरादे से प्रदर्शनी जल्द ही पूरे देश में दिखाई जाएगी।
- प्रदर्शनी में अहोम, चोल, राठौर, यादव, काकतीय और अन्य राजवंशों को चित्रित किया गया है, जिसमें उनके संस्थापकों, राजधानी शहरों, तिथियों और भारत की वास्तुकला, कला, संस्कृति पर प्रकाश डाला गया है।
आईसीएचआर के बारे में
- यह केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय का एक स्वायत्त निकाय है।
- यह 1972 में सोसायटी पंजीकरण अधिनियम, 1860 के तहत स्थापित किया गया था।
- इसका उद्देश्य इतिहासकारों को एक साथ लाना और उनके बीच विचारों के आदान-प्रदान के लिए एक मंच प्रदान करना है।
- इसके अन्य उदेश्यों में इतिहास में अनुसंधान को बढ़ावा देना, गति देना और समन्वय करना है।
- यह एक द्विवार्षिक जर्नल – द इंडियन हिस्टोरिकल रिव्यू, और एक अन्य पत्रिका इतिहास हिंदी में प्रकाशित करता है।