रणनीतिक सैन्य निगरानी और तत्परता को सुदृढ़ करने के उद्देश्य से भारत सरकार ने वैश्विक वाणिज्यिक उपग्रह इमेजरी प्रदाताओं से बातचीत शुरू कर दी है। यह कदम मई 2025 में हुए ऑपरेशन “सिंदूर” के दौरान चीन द्वारा पाकिस्तान को लाइव सैटेलाइट डेटा मुहैया कराए जाने की खुफिया रिपोर्टों के बाद उठाया गया है। इस पहल का उद्देश्य भारत की मौजूदा क्षमताओं को उन्नत बनाकर रियल-टाइम, हाई-रिजोल्यूशन इमेजरी को रक्षा संचालन में एकीकृत करना है।
वर्तमान में भारतीय सशस्त्र बलों की निगरानी और इमेजिंग जरूरतों को कार्टोसैट और रिसैट जैसे स्वदेशी उपग्रह पूरा करते हैं। ये उपग्रह दुश्मन की गतिविधियों को ट्रैक करने और हमलों के परिणामों की पुष्टि करने में सक्षम हैं, लेकिन इनमें इमेजिंग की आवृत्ति और रिजोल्यूशन की कुछ सीमाएं हैं। हालिया भू-राजनीतिक घटनाओं, विशेषकर चीन द्वारा पाकिस्तान को उपग्रह डेटा उपलब्ध कराने की भूमिका, ने भारत के सैटेलाइट-आधारित निगरानी तंत्र को तत्काल उन्नत करने की आवश्यकता को उजागर किया है।
तेज़ गति से बदलते युद्धक्षेत्र की स्थितियों में रियल-टाइम, हाई-रिजोल्यूशन इमेजरी प्राप्त करना अत्यंत आवश्यक होता है। बेहतर दृश्यता से निर्णय लेने की गति, लक्ष्य की सटीकता और सैनिकों की गतिविधियों पर नज़र रखने की क्षमता बढ़ती है। मैक्सार टेक्नोलॉजीज जैसी अंतरराष्ट्रीय कंपनियों से सहयोग भारत की मौजूदा सीमाओं को पाट सकता है और संभावित संघर्षों में रणनीतिक बढ़त दे सकता है।
इस पहल के मुख्य लक्ष्य हैं:
वर्तमान क्षमताओं से परे निगरानी कवरेज का विस्तार
संघर्ष की स्थिति में समय पर कार्रवाई योग्य खुफिया जानकारी की उपलब्धता सुनिश्चित करना
स्वदेशी उपग्रह कार्यक्रमों को वाणिज्यिक रियल-टाइम इमेजरी समाधानों से पूरक बनाना
इस स्पेस बेस्ड सर्विलांस कार्यक्रम के तहत 2029 तक कुल 52 निगरानी उपग्रह प्रक्षेपित किए जाएंगे।
प्रारंभिक 21 उपग्रह इसरो द्वारा विकसित और प्रक्षेपित किए जाएंगे।
शेष 31 उपग्रह भारतीय निजी कंपनियों द्वारा बनाए जाएंगे।
रक्षा अंतरिक्ष एजेंसी (DSA) इन उपग्रहों का संचालन और निगरानी करेगी।
इस कार्यक्रम के लिए केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 2024 में $3.2 अरब (लगभग ₹26,500 करोड़) की मंजूरी दी थी।
विदेशी वाणिज्यिक संस्थाओं पर निर्भरता रणनीतिक जोखिम उत्पन्न कर सकती है।
वैश्विक कंपनियों के साथ भागीदारी के दौरान डेटा की सुरक्षा और गोपनीयता बनाए रखना अत्यावश्यक है।
स्वदेशी प्रणालियों में हर मौसम में संचालन और क्षेत्र पुनरावृत्ति समय जैसी तकनीकी बाधाएं अब भी चुनौती बनी हुई हैं।
यह पहल भारत की सुरक्षा नीति में एक महत्वपूर्ण परिवर्तन को दर्शाती है, जो तकनीकी सहयोग और स्वदेशी विकास दोनों को संतुलित करने की दिशा में उठाया गया है।
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