भारत ने 2008 बैच की भारतीय विदेश सेवा अधिकारी एलियावती लोंगकुमर को उत्तर कोरिया (North Korea) के लिए अपना नया राजदूत नियुक्त किया है। यह नियुक्ति चार वर्षों के अंतराल के बाद प्योंगयांग (Pyongyang) में उच्चस्तरीय राजनयिक प्रतिनिधित्व की बहाली को दर्शाती है। इससे पहले दिसंबर 2024 में भारत ने अपनी बंद पड़ी एंबेसी को दोबारा खोला था, जो हिंद-प्रशांत क्षेत्र में बदलते भू-राजनीतिक समीकरणों के बीच सतर्क राजनयिक पुनर्संपर्क की शुरुआत मानी जा रही है।
क्यों चर्चा में?
भारत ने 2021 के बाद पहली बार उत्तर कोरिया में पूर्ण राजदूत नियुक्त किया है। यह कदम भारत की बदलती विदेश नीति प्राथमिकताओं, क्षेत्रीय रणनीतिक चिंताओं, और मानवीय सहायता व वैश्विक प्रतिबंधों के बीच संतुलन साधने की कोशिश को दर्शाता है।
नई राजदूत
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एलियावती लोंगकुमर वर्तमान में पराग्वे में कार्यवाहक प्रमुख (Charge d’Affaires) हैं।
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अब वे उत्तर कोरिया की राजधानी प्योंगयांग में राजदूत का कार्यभार संभालेंगी।
एंबेसी पुनः खोलना
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भारत ने जुलाई 2021 में COVID-19 महामारी के कारण प्योंगयांग स्थित दूतावास को अस्थायी रूप से बंद कर दिया था।
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दिसंबर 2024 में इसे फिर से खोल दिया गया।
पूर्व राजदूत
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अतुल मल्हारी गोटसुरवे 2021 में एंबेसी बंद होने से पहले उत्तर कोरिया में भारत के अंतिम राजदूत थे।
राजनयिक पृष्ठभूमि
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भारत ने 2017 में उत्तर कोरिया के साथ व्यापार को संयुक्त राष्ट्र प्रतिबंधों के अनुरूप निलंबित कर दिया था, लेकिन राजनयिक संबंध नहीं तोड़े।
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भारत उत्तर कोरिया द्वारा पाकिस्तान की मिसाइल परियोजना को समर्थन देने को लेकर सतर्क रहा है।
भारत-उत्तर कोरिया सहयोग
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भारत ने उत्तर कोरिया को मानवीय सहायता (खाद्य सामग्री, दवाएं) प्रदान की हैं।
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उत्तर कोरियाई राजनयिकों और वैज्ञानिकों को प्रशिक्षण भी देता है।
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2018 में जनरल वी.के. सिंह की यात्रा एक दुर्लभ उच्चस्तरीय संपर्क थी।
रणनीतिक महत्व
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यह नियुक्ति भारत की स्वतंत्र विदेश नीति की दिशा को रेखांकित करती है।
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पूर्वी एशिया में भारत की कूटनीतिक उपस्थिति को मजबूत करती है।
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मानवीय हितों, गैर-प्रसार (non-proliferation), और क्षेत्रीय सुरक्षा के बीच संतुलन बनाती है।