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मार्च 2021 से मार्च 2025 तक सकल एनपीए घटकर 2.58% रह गया

भारत में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की सकल गैर-निष्पादित संपत्तियों (Gross NPAs) में उल्लेखनीय गिरावट दर्ज की गई है। मार्च 2021 में जहां यह अनुपात 9.11% था, वहीं मार्च 2025 तक घटकर मात्र 2.58% रह गया। इस बदलाव का श्रेय संस्थागत सुधारों, कड़े विनियामक ढांचे और बेहतर ऋण अनुशासन को दिया जा रहा है।

पृष्ठभूमि:

मार्च 2021 में सकल NPA ₹6.16 लाख करोड़ था, जो कि कुल अग्रिमों का 9.11% था। मार्च 2025 तक यह घटकर ₹2.83 लाख करोड़ (2.58%) रह गया, जिससे यह स्पष्ट होता है कि बैंकों की फंसी हुई ऋण समस्याओं का प्रभावी समाधान किया गया है। इस गिरावट में विधायी संशोधनों, सक्रिय समाधान प्रक्रिया और प्रभावशाली ऋण वसूली रणनीतियों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

प्रमुख सुधार और विनियामक उपाय

  • IBC में व्यापक सुधार: दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता (Insolvency and Bankruptcy Code – IBC) में किए गए बदलावों ने नियंत्रण डिफॉल्टर प्रमोटरों से हटाकर कर्जदाताओं को सौंप दिया, जिससे जानबूझकर डिफॉल्ट करने की प्रवृत्ति में कमी आई और ऋणों के समाधान की प्रक्रिया तेज़ हुई।
  • SARFAESI और DRT अधिनियम में संशोधन: संपत्ति वसूली को सशक्त बनाने हेतु संशोधन किए गए। ऋण वसूली अधिकरण (DRT) की न्यूनतम सीमा ₹10 लाख से बढ़ाकर ₹20 लाख की गई, जिससे बड़े मामलों को प्राथमिकता दी जा सके।
  • RBI की प्रूडेंशियल रूपरेखा: तनावग्रस्त ऋणों की समय रहते पहचान, सीमित समय में समाधान, और समय पर कार्रवाई करने वाले ऋणदाताओं को प्रोत्साहन देने पर ज़ोर दिया गया।

संस्थागत तंत्र

  • विशेषीकृत NPA प्रबंधन इकाइयाँ: बैंकों ने तनावग्रस्त ऋणों के लिए समर्पित विभाग बनाए, जिससे निगरानी और फॉलो-अप में सुधार हुआ।
  • बिज़नेस कॉरेस्पोंडेंट्स और फील्ड रिकवरी टीमें: ग्रामीण और दूरदराज़ क्षेत्रों में वसूली और समाधान की पहुंच बढ़ाई गई।
  • मूल्यांकन दिशा-निर्देश: RBI ने ₹50 करोड़ से अधिक की संपत्तियों के लिए स्वतंत्र और पेशेवर मूल्यांकन को अनिवार्य किया है, जिसमें पारदर्शिता सुनिश्चित करने हेतु दोहरी मूल्यांकन व्यवस्था भी शामिल है।

पारदर्शी संपत्ति निपटान और ई-नीलामी

RBI के निर्देश पर बैंक जब्त की गई संपत्तियों को ई-नीलामी के माध्यम से बेचते हैं, जिससे मूल्य की पारदर्शी खोज (price discovery) संभव होती है। बिक्री से पहले संपत्तियों का पुनर्मूल्यांकन पैनल में शामिल मूल्यांककों द्वारा किया जाता है ताकि उचित बाज़ार मूल्य सुनिश्चित हो सके।

गलत मूल्यांकन के विरुद्ध सुरक्षा उपाय

RBI के IRAC मानदंडों के अनुसार हर तीन वर्ष में संपत्तियों का पुनर्मूल्यांकन अनिवार्य है। जॉइंट लेंडर्स फोरम (JLF) दिशानिर्देश बैंकों को मूल्यांककों को जवाबदेह ठहराने और अनियमितताओं की रिपोर्ट इंडियन बैंक्स एसोसिएशन (IBA) को करने की शक्ति देते हैं, जिससे सुरक्षा मूल्यांकन की विश्वसनीयता में सुधार हुआ है।

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