भारतीय सिनेमा की विरासत को सम्मानित करने वाले इस भावपूर्ण क्षण में, गोवा के मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत ने 56वें इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल ऑफ इंडिया (IFFI) में वरिष्ठ सिनेमैटोग्राफर और फ़िल्ममेकर के. वैकुंठ के सम्मान में एक स्मारक डाक टिकट जारी किया। यह आयोजन पनजी, गोवा में हुआ और भारतीय सिनेमा में पाँच दशकों तक चले वैकुंठ के अमूल्य योगदान को औपचारिक रूप से श्रद्धांजलि दी गई।
भारतीय सिनेमा के दृश्य-शिल्पी: के. वैकुंठ
- मुख्यमंत्री सावंत ने कार्यक्रम में कहा कि के. वैकुंठ “वे कलाकार थे जिनके कैमरे ने क्लासिक भारतीय सिनेमा की दृश्य-भाषा को आकार दिया।”
- उन्होंने बताया कि वैकुंठ का काम केवल मनोरंजन तक सीमित नहीं था—उन्होंने भारतीय कहानी कहने की भव्यता और पात्रों की भावनात्मक गहराई दोनों को समान कुशलता से कैद किया।
- उनकी सिनेमैटिक शैली चमकदार दृश्य सौंदर्य और मानवीय संवेदनाओं के संतुलन के लिए जानी जाती है।
- गोवा के फिल्म-हब बनने से बहुत पहले ही वैकुंठ भारतीय सिनेमा में महत्वपूर्ण पहचान बना चुके थे, जिससे उनका योगदान और भी ज्यादा अर्थपूर्ण हो जाता है।
‘गोवा मार्चेस ऑन’ की स्क्रीनिंग: एक भूली-बिसरी धरोहर
कार्यक्रम की भावनात्मक गहराई बढ़ाने के लिए के. वैकुंठ की 1977 की डॉक्यूमेंट्री ‘Goa Marches On’ की विशेष स्क्रीनिंग की गई।
फिल्म ने गोवा के सांस्कृतिक विकास के दौर को सूक्ष्म दृष्टि से दर्शाया, जिससे युवा दर्शकों और अनुभवी सिने-प्रेमियों को वैकुंठ की गहरी समझ और कलात्मक दृष्टि देखने का अवसर मिला।
यह डॉक्यूमेंट्री वैकुंठ के गोवा से गहरे जुड़ाव की भी याद दिलाती है—एक ऐसा प्रदेश जो आज विश्वस्तरीय फिल्म फेस्टिवल की मेजबानी करता है, पर कभी फिल्म दुनिया की मुख्यधारा से दूर था।
पाँच दशकों की रचनात्मक यात्रा: 35+ फ़िल्में और अनगिनत डॉक्यूमेंट्री
अपने 50+ सालों के करियर में के. वैकुंठ ने:
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35 से अधिक फीचर फिल्मों
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अनेक विज्ञापनों
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और कई डॉक्यूमेंट्री फिल्मों
पर काम किया।
वे इन प्रसिद्ध फिल्मों से जुड़े रहे:
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मेरे अपने
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बंधन
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मौसम
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राज़
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परिचय
इन फिल्मों की व्यावसायिक सफलता से आगे, उनका सौंदर्यबोध और भावनात्मक गहराई वैकुंठ की सिनेमैटोग्राफी से और समृद्ध हुई।
एक महान कलाकार की विरासत
के. वैकुंठ का 9 फ़रवरी 2003 को निधन हुआ, परंतु उनकी कला आज भी नई पीढ़ी के फिल्मकारों को प्रेरित करती है। उनके सम्मान में जारी किया गया स्मारक डाक टिकट उनके योगदान की आधिकारिक और सांस्कृतिक मान्यता को दर्शाता है। IFFI जैसे अंतरराष्ट्रीय मंच पर यह सम्मान अतीत की महान विरासत को वर्तमान की रचनात्मक आकांक्षाओं से जोड़ देता है—यही के. वैकुंठ की स्थायी धरोहर है।


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