आर्मेनिया और अज़रबैजान ने लगभग चार दशकों से चले आ रहे नागोर्नो-कराबाख संघर्ष को समाप्त करने के लिए शांति संधि के मसौदे पर सहमति बना ली है। यह समझौता 13 मार्च 2025 को अंतिम रूप दिया गया, जिससे दक्षिण काकेशस क्षेत्र में स्थिरता स्थापित करने की दिशा में एक बड़ा कदम उठाया गया है। हालांकि, अज़रबैजान ने संधि पर हस्ताक्षर करने से पहले आर्मेनिया के संविधान में संशोधन की मांग की है, जिससे इसकी आधिकारिक स्वीकृति की समय-सीमा पर अनिश्चितता बनी हुई है।
समझौते के प्रमुख बिंदु
संघर्ष की पृष्ठभूमि
- नागोर्नो-कराबाख संघर्ष 1980 के दशक के अंत में शुरू हुआ, जब इस क्षेत्र ने, जो अधिकांशतः जातीय आर्मेनियाई आबादी वाला था, अज़रबैजान से अलग होने की कोशिश की और आर्मेनिया ने उसका समर्थन किया।
- यह संघर्ष दो युद्धों और दोनों देशों में जनसंख्या विस्थापन का कारण बना।
- सितंबर 2023 में, अज़रबैजान ने बलपूर्वक नागोर्नो-कराबाख क्षेत्र पर कब्जा कर लिया, जिससे 1 लाख से अधिक जातीय आर्मेनियाई शरणार्थी आर्मेनिया में शरण लेने को मजबूर हुए।
शांति समझौता
- 13 मार्च 2025 को आर्मेनिया और अज़रबैजान ने शांति संधि के मसौदे को अंतिम रूप दिया।
- आर्मेनिया के विदेश मंत्रालय ने पुष्टि की कि समझौता हस्ताक्षर के लिए तैयार है और इसकी तारीख और स्थान तय करने के लिए परामर्श प्रस्तावित किए हैं।
- अज़रबैजान के विदेश मंत्रालय ने भी मसौदे पर संतोष व्यक्त किया।
हस्ताक्षर की शर्तें
- अज़रबैजान चाहता है कि आर्मेनिया अपने संविधान में संशोधन करे, क्योंकि अज़रबैजान का दावा है कि मौजूदा संविधान में अज़रबैजान पर परोक्ष क्षेत्रीय दावे निहित हैं।
- आर्मेनिया ने इस आरोप से इनकार किया है, लेकिन प्रधानमंत्री निकोल पशिनयान ने यह स्वीकार किया है कि संविधान में संशोधन जनमत संग्रह के माध्यम से किया जा सकता है, हालांकि इसके लिए कोई तारीख तय नहीं हुई है।
भू-राजनीतिक प्रभाव
- इस समझौते के तहत किसी तीसरे पक्ष की सेना को आर्मेनिया-अज़रबैजान सीमा पर तैनात नहीं किया जाएगा।
- इसका असर निम्नलिखित पर पड़ेगा:
- यूरोपीय संघ निगरानी मिशन, जिसका बाकू विरोध करता है।
- रूसी सीमा रक्षकों पर, जो आर्मेनिया की सीमा के कुछ हिस्सों में तैनात हैं।
चुनौतियाँ और भविष्य की संभावनाएँ
- समझौते के बावजूद तनाव अभी भी बना हुआ है। जनवरी 2025 में अज़रबैजान के राष्ट्रपति इल्हाम अलीयेव ने आर्मेनिया पर “फासीवादी खतरा” होने का आरोप लगाया था।
- दोनों देशों का उद्देश्य अपने 1,000 किलोमीटर लंबे सीमा क्षेत्र का सामान्यीकरण और गैर-सैन्यीकरण करना है।
इस समझौते से दक्षिण काकेशस में दीर्घकालिक शांति स्थापित होने की उम्मीद है, लेकिन इसके क्रियान्वयन में अभी भी कई राजनीतिक और संवैधानिक चुनौतियाँ बनी हुई हैं।