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अंत्योदय दिवस 2023: इतिहास और महत्व

अंत्योदय दिवस 2023: इतिहास और महत्व |_3.1

अंत्योदय दिवस भारत में एक वार्षिक उत्सव है जो श्रद्धेय भारतीय नेता पंडित दीन दयाल उपाध्याय की जयंती के रूप में मनाया जाता है। यह दिन भारत के राजनीतिक इतिहास में सबसे प्रभावशाली शख्सियतों में से एक का सम्मान करते हुए, उनके जीवन और स्थायी विरासत को श्रद्धांजलि के रूप में कार्य करता है। पंडित दीनदयाल उपाध्याय न केवल भारतीय जनसंघ (बीजेएस) के सह-संस्थापक थे, बल्कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से जुड़े एक गहन विचारक भी थे।

भारत में, पंडित दीनदयाल उपाध्याय (Pandit Deendayal Upadhyaya) की जयंती को चिह्नित करने के लिए हर साल 25 सितंबर को अंत्योदय दिवस (Antyodaya Diwas) मनाया जाता है। अंत्योदय का अर्थ “गरीब से गरीब व्यक्ति का उत्थान” या “अंतिम व्यक्ति का उत्थान” है। पं. दीनदयाल उपाध्याय के जन्मदिन के मौके पर हर साल अंत्योदय दिवस के रूप में मनाते हैं।

 

अंत्योदय दिवस का महत्त्व

अंत्योदय मिशन की भावना का लक्ष्य अंतिम व्यक्ति तक पहुंचना है, और इसलिए, इस दिन का आदर्श वाक्य भारत के सभी गरीबों और ग्रामीण युवाओं की मदद करना और उन्हें राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय रोजगार के अवसर खोजने में मदद करना है।

 

पंडित दीनदयाल उपाध्याय के बारे में

साल 1916 में मथुरा में पैदा हुए पंडित दीनदयाल उपाध्याय भारतीय जनसंघ के प्रमुख नेताओं में से एक थे, जिनसे बाद में भाजपा का उदय हुआ। वे साल 1953 से साल 1968 तक भारतीय जनसंघ के नेता रहे। दीनदयाल उपाध्याय एक मानवतावादी, अर्थशास्त्री, पत्रकार, दार्शनिक और सक्षम राजनेता थे। दीनदयाल उपाध्याय ने सिविल सेवा परीक्षा उत्तीर्ण की थी। हालाँकि, वह सेवा में शामिल नहीं हुए और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के स्वयंसेवक बन गए। साल 1940 के दशक में, दीनदयाल उपाध्याय ने हिंदुत्व राष्ट्रवाद की विचारधारा के प्रसार के लिए उत्तर प्रदेश के लखनऊ से एक मासिक पत्रिका ‘राष्ट्र धर्म (Rashtra Dharma)’ का शुभारंभ किया। बाद में, उन्होंने ‘पांचजन्य’, एक साप्ताहिक पत्रिका और एक दैनिक, ‘स्वदेश’ शुरू किया।
दीनदयाल उपाध्याय 11 फरवरी, 1968 की तड़के उत्तर प्रदेश के मुग़लसराय रेलवे स्टेशन के पास रहस्यमय परिस्थितियों में मृत पाए गए थे। बाद में, केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने पाया कि उन्हें लुटेरों ने मार दिया था।

 

प्रारंभिक जीवन और आरएसएस से जुड़ाव

पंडित दीनदयाल उपाध्याय अपने मामा की देखरेख में एक ब्राह्मण परिवार में पले-बढ़े। उनकी शैक्षिक यात्रा में सीकर में हाई स्कूल और पिलानी, राजस्थान में इंटरमीडिएट शिक्षा शामिल थी। उन्होंने कानपुर के सनातन धर्म कॉलेज से बीए की डिग्री हासिल करना शुरू किया, लेकिन अपनी पढ़ाई जारी नहीं रख पाए। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के साथ उनका जुड़ाव 1937 में तब शुरू हुआ जब वे सनातन धर्म कॉलेज में पढ़ रहे थे। एक सहपाठी द्वारा आरएसएस से परिचय कराने के बाद, उन्हें सभाओं के दौरान आरएसएस के संस्थापक केबी हेडगेवार के साथ बौद्धिक चर्चा में शामिल होने का सौभाग्य मिला।

 

अंत्योदय दिवस: इतिहास

भारत सरकार द्वारा 25 सितंबर, 2014 को पंडित दीनदयाल उपाध्याय की 98 वीं जयंती के अवसर पर ‘अंत्योदय दिवस’ की घोषणा की गई थी। पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने ही अंत्योदय का नारा दिया था। पंडित दीनदयाल उपाध्याय कहते थे कि कोई भी देश अपनी जड़ों से कटकर कभी भी विकास नहीं कर सका है। पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी में संगठन का अद्वितीय और अद्भुत कौशल था। यह दिन मोदी सरकार द्वारा 25 सितंबर 2014 को घोषित किया गया था और आधिकारिक तौर पर 2015 से मनाया जा रहा है।

 

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