भारत ने रचा इतिहास, एजबेस्टन में पहली बार टेस्ट मैच में जीत दर्ज की

भारत ने 6 जुलाई 2025 को एजबेस्टन मैदान पर इंग्लैंड को हराकर टेस्ट क्रिकेट में पहली ऐतिहासिक जीत दर्ज की। यह जीत न सिर्फ भारत के इस मैदान पर अब तक के खराब रिकॉर्ड को तोड़ने वाली रही, बल्कि 336 रनों के रिकॉर्ड अंतर से मिली—जो कि किसी भी विदेशी टेस्ट में भारत की सबसे बड़ी जीत है। यह मैच खास बन गया आकाश दीप की शानदार गेंदबाज़ी के चलते, जिन्होंने इंग्लैंड में भारतीय गेंदबाज़ द्वारा अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया।

सात हारों के बाद पहली जीत

इस टेस्ट मैच से पहले, भारत ने एजबेस्टन में कुल 8 टेस्ट खेले थे, जिनमें से 7 हारे थे और 1 ड्रॉ रहा था। लेकिन 6 जुलाई 2025 को भारत ने यह सिलसिला तोड़ दिया। यह जीत इसलिए भी खास है क्योंकि यह पहली बार है जब भारत ने इंग्लैंड में कोई टेस्ट सीरीज़ हारने के बाद बराबरी की है। पहले जब भारत पहला मैच हारता था, तो अगला या तो हारता था या ड्रॉ कर देता था—लेकिन इस बार भारत ने वापसी करते हुए श्रृंखला बराबर की।

आकाश दीप का जादुई प्रदर्शन – 10 विकेट

आकाश दीप ने इस मैच में 187 रन देकर 10 विकेट लिए—जो कि इंग्लैंड में किसी भी भारतीय गेंदबाज़ का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन है। वे इंग्लैंड में टेस्ट मैच में 10 विकेट लेने वाले केवल दूसरे भारतीय गेंदबाज़ बने। पहले ऐसा कारनामा चेतन शर्मा ने 1986 में एजबेस्टन में ही किया था।
मोहम्मद सिराज के साथ मिलकर आकाश ने भारतीय पेस अटैक को और मज़बूत किया, और दोनों ने मिलकर 17 विकेट झटके—जो कि नए गेंदबाज़ों द्वारा भारत के लिए टेस्ट में संयुक्त सर्वाधिक है।

टेस्ट में बने ये बड़े रिकॉर्ड

  • 336 रनों से भारत की जीत: विदेशी धरती पर भारत की अब तक की सबसे बड़ी जीत। पिछला रिकॉर्ड 2019 में वेस्टइंडीज के खिलाफ 318 रनों से था।

  • इंग्लैंड के जैमी स्मिथ ने बनाए 272 रन—टेस्ट में किसी भी विकेटकीपर द्वारा तीसरा सर्वाधिक स्कोर।

  • भारत और इंग्लैंड के बीच इस टेस्ट में कुल 1692 रन बने, जो दोनों टीमों के बीच किसी भी टेस्ट मैच में अब तक का सर्वाधिक योग है (पहले रिकॉर्ड हेडिंग्ले में बना था)।

  • पहले दो टेस्ट में कुल 3365 रन बने, जो किसी भी द्विपक्षीय टेस्ट सीरीज़ के प्रारंभिक दो मैचों में सबसे ज्यादा रन हैं।

2000 रुपये के कुल 6,099 करोड़ रुपये के नोट अब भी चलन में: RBI

भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने जानकारी दी है कि ₹2000 मूल्य के नोटों में से अब भी ₹6,099 करोड़ प्रचलन में हैं। यह अपडेट उस घोषणा के दो साल बाद आया है, जब 19 मई 2023 को RBI ने इन उच्च मूल्यवर्ग के नोटों को प्रचलन से धीरे-धीरे वापस लेने का फैसला किया था। हालांकि, अधिकांश नोट वापस जमा हो चुके हैं, लेकिन एक छोटी मात्रा अब भी जनता के पास है।

RBI ने क्या कहा?

RBI द्वारा जारी ताज़ा आंकड़ों के अनुसार:

  • 19 मई 2023 को ₹2000 के कुल ₹3.56 लाख करोड़ मूल्य के नोट प्रचलन में थे।

  • अब तक इनमें से 98.29% नोट वापस लिए जा चुके हैं।

  • यानी, ₹6,099 करोड़ मूल्य के ₹2000 के नोट अभी भी जनता के पास प्रचलन में हैं।

RBI ने यह भी स्पष्ट किया कि ₹2000 के नोट अब भी कानूनी मुद्रा (legal tender) हैं— यानी उन्हें लेन-देन में इस्तेमाल किया जा सकता है।
हालाँकि, नए ₹2000 नोट अब नहीं छापे जा रहे और न ही बैंकों को जारी किए जा रहे हैं।

वापसी प्रक्रिया और विनिमय सुविधा

  • ₹2000 के नोट 7 अक्टूबर 2023 तक सभी बैंकों में जमा या विनिमय के लिए स्वीकार किए जा रहे थे।

  • इसके बाद, केवल RBI के 19 इश्यू कार्यालय ही इन्हें स्वीकार कर रहे हैं।

  • 9 अक्टूबर 2023 से RBI ने लोगों और कंपनियों को ये नोट अपने बैंक खातों में जमा करने के लिए सीधे स्वीकार करना शुरू किया।

  • साथ ही, इंडिया पोस्ट के ज़रिए भी कोई व्यक्ति ₹2000 के नोट पोस्ट ऑफिस से भेज कर RBI कार्यालय में अपने खाते में राशि जमा करवा सकता है।

₹2000 नोट वापसी का पृष्ठभूमि

  • ₹2000 का नोट नवंबर 2016 में पेश किया गया था, जब सरकार ने ₹500 और ₹1000 के पुराने नोटों का विमुद्रीकरण (Demonetisation) किया था।

  • लेकिन 19 मई 2023 को RBI ने इसे धीरे-धीरे प्रचलन से हटाने का निर्णय लिया।

  • इसका उद्देश्य था:

    • डिजिटल भुगतान को बढ़ावा देना

    • मुद्रा प्रबंधन को आसान बनाना

यह कदम विमुद्रीकरण नहीं था— क्योंकि ₹2000 के नोटों पर प्रतिबंध नहीं लगाया गया, बल्कि लोगों को बिना घबराहट के उन्हें जमा करने का समय दिया गया

यह जानकारी दर्शाती है कि देश में अधिकांश ₹2000 के नोट सिस्टम में लौट चुके हैं, और अब इनकी उपयोगिता सीमित रह गई है, हालांकि वे अब भी वैध और मान्य मुद्रा बने हुए हैं।

भारत 2024 में बना दुनिया का चौथा सबसे बड़ा बायोफ्यूल उपभोक्ता, चीन को पीछे छोड़ा

वर्ल्ड एनर्जी स्टैटिस्टिकल रिव्यू 2025 के अनुसार, भारत 2024 में बायोफ्यूल (जैव ईंधन) का चौथा सबसे बड़ा उपभोक्ता बन गया है, और उसने चीन को पीछे छोड़ दिया है। भारत की बायोफ्यूल खपत में एक साल में 40% की वृद्धि दर्ज की गई है, जो स्वच्छ ऊर्जा की दिशा में तेज़ प्रगति को दर्शाता है। यह लगातार दूसरा साल है जब भारत ने इस मामले में चीन को पीछे छोड़ा है, हालांकि उत्पादन के मामले में भारत अभी भी पीछे है।

भारत में तेजी से बढ़ रही है बायोफ्यूल खपत

2024 में भारत ने प्रतिदिन 77 हजार बैरल तेल समतुल्य (kbbloe/d) बायोफ्यूल का उपयोग किया, जो पिछले वर्ष की तुलना में बहुत अधिक था। वहीं चीन की खपत 60 kbbloe/d रही, जिसमें 18% की वृद्धि हुई।
एनर्जी इंस्टीट्यूट (EI) द्वारा KPMG और Kearney के सहयोग से तैयार की गई रिपोर्ट बताती है कि 2014 से 2024 के बीच भारत की बायोफ्यूल खपत हर साल औसतन 31.8% बढ़ी है।

बायोफ्यूल में एथेनॉल, बायोडीजल और सस्टेनेबल एविएशन फ्यूल्स शामिल हैं, जो प्राकृतिक स्रोतों (जैसे कृषि अपशिष्ट) से बनाए जाते हैं और प्रदूषण व कार्बन उत्सर्जन को कम करने में सहायक होते हैं।

उत्पादन में भारत अभी भी पीछे

हालांकि भारत की खपत चीन से ज़्यादा है, लेकिन बायोफ्यूल उत्पादन के मामले में चीन आगे है:

  • 2024 में भारत ने 70 kbbloe/d बायोफ्यूल का उत्पादन किया

  • जबकि चीन ने 106 kbbloe/d उत्पादन किया
    भारत का उत्पादन 2024 में 27% बढ़ा, और पिछले 10 वर्षों में औसतन 30.4% सालाना वृद्धि हुई है।
    चीन की उत्पादन दर धीमी रही, लेकिन 2024 में 31% की तेज़ वृद्धि देखी गई।

वैश्विक रुझान और बायोफ्यूल की भूमिका

2024 में वैश्विक स्तर पर बायोफ्यूल की मांग 2.2 मिलियन बैरल प्रतिदिन तक पहुंच गई, जो एक नया रिकॉर्ड है।

  • एशिया-प्रशांत क्षेत्र में सबसे अधिक वृद्धि (47 kbbloe/d)

  • इसके बाद उत्तर अमेरिका (42 kbbloe/d)

  • अमेरिका सबसे बड़ा उपभोक्ता रहा (856 kbbloe/d), फिर ब्राज़ील, इंडोनेशिया, भारत और चीन का स्थान रहा।

हालांकि स्वच्छ ऊर्जा का उपयोग बढ़ा है, फिर भी 2024 में वैश्विक CO₂ उत्सर्जन में 1% की वृद्धि हुई—यह लगातार चौथे वर्ष एक नया रिकॉर्ड बना।
विशेषज्ञों ने चेतावनी दी कि जहां एक ओर स्वच्छ ऊर्जा तेज़ी से बढ़ रही है, वहीं कोयले और जीवाश्म ईंधन का उपयोग भी रिकॉर्ड स्तर पर बना हुआ है, विशेषकर चीन, जो अकेले ही पूरी दुनिया से ज़्यादा कोयला इस्तेमाल करता है।

विशेषज्ञों की राय

रिपोर्ट में कहा गया:

चीन वैश्विक ऊर्जा परिदृश्य को आकार देने में अहम भूमिका निभा रहा है। वह कोयले के साथ-साथ सौर ऊर्जा और इलेक्ट्रिक वाहनों जैसे नवीकरणीय स्रोतों में भी अग्रणी है। यह दुनिया के मिश्रित ऊर्जा भविष्य को दर्शाता है।”

बायोफ्यूल को आने वाले समय में परिवहन और औद्योगिक क्षेत्रों में प्रदूषण घटाने के लिए एक महत्वपूर्ण समाधान माना जा रहा है।

विश्‍व बैंक ने भारत को विश्‍व के सर्वाधिक समानता वाले देशों में शामिल किया

वर्ल्ड बैंक द्वारा जारी जुलाई 2025 रिपोर्ट के अनुसार, भारत को 2025 के लिए चौथा सबसे समान (समानता वाला) देश घोषित किया गया है। गिनी इंडेक्स (Gini Index) के आधार पर भारत ने 25.5 स्कोर के साथ यह स्थान हासिल किया है, जो कि कई विकसित देशों से भी बेहतर है। यह एक बहुत बड़ा कदम है, खासकर भारत जैसे बड़े और विविधतापूर्ण देश के लिए, और यह दिखाता है कि सरकारी नीतियों और गरीबी उन्मूलन प्रयासों से ज़मीन पर बदलाव हो रहा है।

गिनी इंडेक्स और भारत की रैंकिंग को समझें

गिनी इंडेक्स किसी देश में आय (Income) के वितरण की समानता को मापता है।

  • 0 स्कोर का मतलब है पूरी तरह समानता

  • 100 स्कोर का मतलब है पूरी तरह असमानता

भारत का 25.5 स्कोर उसे दुनिया के सबसे समान देशों में शामिल करता है।
शीर्ष 3 देश:

  1. स्लोवाक गणराज्य (24.1)

  2. स्लोवेनिया (24.3)

  3. बेलारूस (24.4)

  4. भारत (25.5)

भारत की रैंकिंग अब चीन (35.7), अमेरिका (41.8) और सभी G7 और G20 देशों से बेहतर है।
2011 में भारत का स्कोर 28.8 था, यानी एक दशक में भारत ने निरंतर प्रगति की है।

तेजी से घटी गरीबी

भारत में समानता बढ़ने का मुख्य कारण है तेजी से घटती गरीबी दर
वर्ल्ड बैंक की “स्प्रिंग 2025 पॉवर्टी एंड इक्विटी ब्रीफ” के अनुसार:

  • 2011–12 में अत्यधिक गरीबी दर थी: 16.2%

  • 2022–23 में यह घटकर रह गई: 2.3%
    यानी 12 वर्षों में 17.1 करोड़ लोग गरीबी रेखा से बाहर आए।

नई वैश्विक गरीबी रेखा ($3/दिन) पर भी, भारत की गरीबी दर सिर्फ 5.3% है।

सरकारी योजनाएं जिन्होंने बड़ा असर डाला

भारत की आय समानता और गरीबी में गिरावट का श्रेय कई योजनाओं को जाता है:

  1. प्रधानमंत्री जन धन योजना (PM Jan Dhan Yojana)
    – अब तक 55.69 करोड़ से अधिक लोगों के बैंक खाते खुले।

  2. आधार और DBT (डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर)
    142 करोड़ आधार कार्ड जारी।
    – DBT से सरकार ने ₹3.48 लाख करोड़ की बचत की।

  3. आयुष्मान भारत योजना
    41.34 करोड़ कार्ड जारी।
    – प्रत्येक परिवार को ₹5 लाख तक का मुफ्त इलाज
    70 वर्ष से ऊपर के नागरिकों को विशेष लाभ।

  4. स्टैंड-अप इंडिया योजना
    SC/ST और महिला उद्यमियों को ऋण।
    – अब तक ₹62,807 करोड़ वितरित।

  5. प्रधानमंत्री विश्वकर्मा योजना
    29.95 लाख कारीगरों को औजार, प्रशिक्षण और ऋण सहायता।

  6. PMGKAY (निःशुल्क अनाज योजना)
    80.67 करोड़ लोगों को मुफ्त राशन मिला, खासकर COVID-19 जैसे संकट के समय।

निष्कर्ष

ये सभी योजनाएं वित्तीय समावेशन, स्वास्थ्य, खाद्य सुरक्षा और रोजगार सृजन को बढ़ावा देती हैं।
भारत की इस उपलब्धि से यह स्पष्ट होता है कि समर्पित नीति, डिजिटल साधन और जन-कल्याण की योजनाएं मिलकर वास्तविक सामाजिक बदलाव ला सकती हैं।

Athletics Championships 2029 और 2031 की मेजबानी के लिए बोली लगाएगा भारत

भारत ने 2029 और 2031 विश्व एथलेटिक्स चैंपियनशिप की मेज़बानी के लिए बोली लगाने की योजना की घोषणा की है। यह जानकारी एथलेटिक्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (AFI) के शीर्ष अधिकारी और वर्ल्ड एथलेटिक्स के उपाध्यक्ष अदिल सुमरीवाला ने 6 जुलाई 2025 को बेंगलुरु में दी। यह कदम भारत के 2036 ओलंपिक की मेज़बानी के दीर्घकालिक लक्ष्य का हिस्सा है। खेल की वैश्विक संचालन संस्था विश्व एथलेटिक्स सितंबर 2026 में 2029 और 2031 दोनों सत्र के मेजबान की घोषणा करेगी।

भारत की वैश्विक एथलेटिक्स मेज़बानी की रणनीति

भारत अब 2029 या 2031 में से किसी एक विश्व चैंपियनशिप के लिए रणनीतिक बोली (Strategic Bid) लगाने की तैयारी कर रहा है, यानी भारत दोनों में से कोई भी वर्ष मेज़बानी के लिए स्वीकार करने को तैयार है।

  • रुचि जताने की अंतिम तिथि: 1 अक्टूबर 2025

  • विस्तृत आवेदन की अंतिम तिथि: 1 अप्रैल 2026

  • अंतिम बोली दस्तावेज़ जमा करने की तिथि: 5 अगस्त 2026

  • मेज़बान की घोषणा: सितंबर 2026

क्यों 2031 भारत के लिए बेहतर अवसर हो सकता है?

भारत पहले केवल 2029 संस्करण के लिए बोली लगाने वाला था, लेकिन अब 2031 को भी शामिल कर रहा है क्योंकि:

  • 2025 की मेज़बानी टोक्यो (जापान) को

  • 2027 की मेज़बानी बीजिंग (चीन) को दी गई है

  • ऐसे में यदि 2029 भी एशिया को मिले, तो तीन बार लगातार एशिया में चैंपियनशिप आयोजित करना कठिन हो सकता है

इसलिए भारत को लगता है कि 2031 की मेज़बानी मिलने की संभावना अधिक वास्तविक है।

जूनियर और रिले प्रतियोगिताओं में भी रुचि

भारत ने 2028 जूनियर वर्ल्ड एथलेटिक्स चैंपियनशिप की मेज़बानी में भी रुचि दिखाई है। इसके मेज़बान की घोषणा दिसंबर 2025 में की जाएगी। भारत ने यह रुचि 2024 के अंत में वर्ल्ड एथलेटिक्स के अध्यक्ष सेबास्टियन को की भारत यात्रा के दौरान जताई थी।

इसके अलावा भारत वर्ल्ड एथलेटिक्स रिले की भी मेज़बानी करना चाहता है — 2026 में बोत्सवाना और 2028 में बहामास के बाद। यह दर्शाता है कि भारत अब नियमित रूप से अंतरराष्ट्रीय एथलेटिक्स आयोजनों की मेज़बानी करना चाहता है।

ब्राजील के रियो डी जेनेरियो में 17वें ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में शामिल हुए PM मोदी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 6–7 जुलाई 2025 को ब्राज़ील के रियो डी जेनेरियो में आयोजित 17वें ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में भाग लिया। इस सम्मेलन में ब्रिक्स देशों के नेताओं ने वैश्विक सुधारों, शांति और सुरक्षा, बहुपक्षीय सहयोग, तथा आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) की बढ़ती भूमिका जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा की। यह शिखर सम्मेलन इसलिए भी खास रहा क्योंकि इसका मुख्य उद्देश्य ग्लोबल साउथ को मजबूत आवाज देना और विश्व व्यवस्था को अधिक संतुलित और न्यायपूर्ण बनाना था।

वैश्विक शासन और सुरक्षा पर विशेष ध्यान

“वैश्विक शासन सुधार और शांति व सुरक्षा” पर आयोजित सत्र के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC), अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF), विश्व बैंक और विश्व व्यापार संगठन (WTO) जैसे वैश्विक संस्थानों में सुधार की आवश्यकता पर ज़ोर दिया। उन्होंने कहा कि ये संस्थाएं 20वीं सदी में बनी थीं, लेकिन आज की चुनौतियों का सामना करने के लिए इनका आधुनिकीकरण जरूरी है। प्रधानमंत्री मोदी ने शिखर सम्मेलन घोषणा पत्र में UN सुधारों को लेकर मिले मजबूत समर्थन के लिए अन्य नेताओं का धन्यवाद भी किया।

शांति और सुरक्षा के विषय पर बोलते हुए पीएम मोदी ने बढ़ते आतंकवाद पर गंभीर चिंता व्यक्त की। उन्होंने अप्रैल 2025 में पहलगाम में हुए आतंकी हमले का ज़िक्र करते हुए कहा कि यह सिर्फ भारत पर नहीं, बल्कि पूरी मानवता पर हमला था। उन्होंने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से आतंकवाद के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने और आतंकियों को शरण या समर्थन देने वालों को दंडित करने की अपील की।

प्रधानमंत्री ने ब्रिक्स देशों द्वारा हमले की निंदा किए जाने की सराहना की और ज़ोर देकर कहा कि आतंकवाद के मामले में “शून्य सहिष्णुता” (Zero Tolerance) अपनाई जानी चाहिए और कोई दोहरा मापदंड नहीं होना चाहिए।

वैश्विक संघर्षों के बीच संवाद का आह्वान

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने संबोधन में पश्चिम एशिया और यूरोप में जारी संघर्षों को गंभीर चिंता का विषय बताया। उन्होंने कहा कि भारत हमेशा से यह मानता रहा है कि विवादों का समाधान संवाद और कूटनीति के माध्यम से ही होना चाहिए। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि भारत किसी भी शांति प्रयास में योगदान देने के लिए तैयार है।

यह भारत की अंतरराष्ट्रीय भूमिका को एक स्थायी और विश्वसनीय शांति समर्थक के रूप में दर्शाता है।

बहुपक्षवाद को मजबूत करना और एआई को बढ़ावा देना

“बहुपक्षीय, आर्थिक-वित्तीय मामलों और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI)” पर आयोजित दूसरे सत्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि ब्रिक्स को वैश्विक परिवर्तन और अनिश्चितताओं से निपटने के लिए एकजुट रहना होगा। उन्होंने ब्रिक्स को और अधिक प्रभावशाली और मजबूत बनाने के लिए चार प्रमुख सुझाव प्रस्तुत किए:

  1. ब्रिक्स न्यू डेवलपमेंट बैंक को ऐसे प्रोजेक्ट्स को फंड देना चाहिए जो देशों की वास्तविक जरूरतों पर आधारित हों और दीर्घकालिक सफलता सुनिश्चित करें।

  2. ब्रिक्स को विज्ञान और अनुसंधान का साझा भंडार (Science and Research Repository) बनाना चाहिए, जो ग्लोबल साउथ के देशों को तकनीकी और वैज्ञानिक सहयोग दे सके।

  3. समूह को महत्वपूर्ण खनिजों की आपूर्ति शृंखलाओं (Critical Mineral Supply Chains) को सुरक्षित करना चाहिए ताकि जोखिम कम हो सकें।

  4. ब्रिक्स को उत्तरदायी एआई (Responsible AI) के लिए काम करना चाहिए, जहां नवाचार और शासन के बीच संतुलन बना रहे।

रियो डि जेनेरियो घोषणा पत्र पारित

शिखर सम्मेलन के अंत में सभी सदस्य देशों ने “रियो डि जेनेरियो घोषणा पत्र” को अपनाया, जिसमें वैश्विक सुधारों, शांति, प्रौद्योगिकी और वित्तीय विकास से जुड़े साझा लक्ष्यों को शामिल किया गया।

प्रधानमंत्री मोदी ने ब्राज़ील के राष्ट्रपति को सद्भावनापूर्ण स्वागत और सम्मेलन के सफल आयोजन के लिए धन्यवाद भी दिया।

ब्रिक्स ने रियो शिखर सम्मेलन में पहलगाम हमले की कड़ी निंदा की

ब्राज़ील के रियो डी जेनेरियो में 6–7 जुलाई 2025 को आयोजित 17वें ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में सदस्य देशों ने एकजुट होकर “रियो घोषणा पत्र” को अपनाया। इस दौरान ब्रिक्स देशों ने पहलगाम आतंकी हमले की कड़े शब्दों में निंदा की और आतंकवाद के प्रति भारत के “शून्य सहिष्णुता” (Zero Tolerance) के आह्वान का समर्थन किया। शिखर सम्मेलन में वैश्विक सुधारों की तात्कालिक आवश्यकता पर भी चर्चा की गई। यह सम्मेलन सुरक्षा, वैश्विक न्याय और समावेशिता जैसे मुद्दों पर ब्रिक्स देशों की बढ़ती एकता को दर्शाता है।

ब्रिक्स ने पहलगाम आतंकी हमले की कड़ी निंदा की

ब्रिक्स देशों ने 22 अप्रैल 2025 को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले को मानवता के खिलाफ अपराध बताया और इसकी कड़ी निंदा की। सदस्य राष्ट्रों ने आतंकवाद के प्रति भारत की “शून्य सहिष्णुता” (Zero Tolerance) की नीति का स्पष्ट समर्थन किया।

रियो घोषणा पत्र में कहा गया कि सीमापार आतंकवाद, आतंकी फंडिंग और आतंकियों के लिए सुरक्षित पनाहगाहों का वैश्विक स्तर पर विरोध होना चाहिए और इसमें कोई दोहरा मापदंड नहीं अपनाया जाना चाहिए। साथ ही, ब्रिक्स ने यह भी स्पष्ट किया कि प्रत्येक देश की यह प्रमुख जिम्मेदारी है कि वह अपने क्षेत्र के भीतर आतंकवाद को रोके, और यह कार्य अंतरराष्ट्रीय कानूनों के तहत किया जाए।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शिखर सम्मेलन में बोलते हुए सभी नेताओं का समर्थन के लिए धन्यवाद किया और आतंकवाद के खिलाफ कड़े वैश्विक कदमों की आवश्यकता पर ज़ोर दिया। उन्होंने यह भी याद दिलाया कि ग्लोबल साउथ, जिसमें भारत भी शामिल है, अक्सर आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में अपनाए गए दोहरे मापदंडों का सबसे बड़ा शिकार रहा है।

वैश्विक सुधारों के लिए पीएम मोदी की मजबूत पहल

17वें ब्रिक्स शिखर सम्मेलन (6–7 जुलाई 2025, रियो डी जेनेरियो, ब्राज़ील) के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने संबोधन में असमान वैश्विक व्यवस्था पर सवाल उठाया। उन्होंने कहा कि आज भी दुनिया के कई देश, विशेष रूप से ग्लोबल साउथ (अफ्रीका, एशिया और लैटिन अमेरिका) के राष्ट्र, महत्वपूर्ण वैश्विक निर्णयों से बाहर रखे जाते हैं।

मोदी ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC), विश्व व्यापार संगठन (WTO) और वैश्विक वित्तीय संस्थाओं में तत्काल सुधार की मांग की। उन्होंने इन संस्थाओं की तुलना AI के युग में टाइपराइटर से की और कहा कि जब तक वोटिंग अधिकारों, नेतृत्व भूमिकाओं और शासन ढांचे में बदलाव नहीं होंगे, ये संस्थाएँ पुरानी और अप्रभावी बनी रहेंगी।

प्रधानमंत्री ने ज़ोर दिया कि आज भी विश्व की दो-तिहाई आबादी को, विशेषकर अफ्रीका, एशिया और लैटिन अमेरिका में, वैश्विक संस्थानों में उचित प्रतिनिधित्व नहीं मिला है। यह केवल न्याय का मुद्दा नहीं है, बल्कि इन संस्थाओं को अधिक प्रभावी और विश्वसनीय बनाने का प्रश्न भी है।

इस शिखर सम्मेलन में नए सदस्यों का स्वागत, और स्वास्थ्य, जलवायु और प्रौद्योगिकी जैसे क्षेत्रों में नई पहलें शुरू की गईं। ब्रिक्स नेताओं ने एक समावेशी, न्यायपूर्ण और टिकाऊ विश्व व्यवस्था बनाने की प्रतिबद्धता दोहराई और वैश्विक सुधारों पर एकजुट रुख अपनाया।

न्यायपूर्ण विश्व के लिए एकजुट हुआ ब्रिक्स

ब्रिक्स शिखर सम्मेलन 2025 में नेताओं ने “रियो डी जेनेरियो घोषणा पत्र” को अपनाया, जिसमें संयुक्त राष्ट्र (UN) और विश्व व्यापार संगठन (WTO) जैसी वैश्विक संस्थाओं में बदलाव की मांग की गई। नेताओं ने कहा कि इन संस्थाओं को अधिक न्यायपूर्ण, लोकतांत्रिक और आज की दुनिया के अनुरूप होना चाहिए।

नेताओं ने निम्नलिखित क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने पर सहमति जताई:

  • राजनीति और सुरक्षा

  • अर्थव्यवस्था और व्यापार

  • संस्कृति और जन-से-जन संबंध

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इन विचारों का समर्थन करते हुए कहा कि ग्लोबल साउथ (एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के देश) को वैश्विक निर्णयों में बड़ी भागीदारी मिलनी चाहिए। उन्होंने यह भी ज़ोर दिया कि पुरानी संस्थाओं को आधुनिक चुनौतियों के अनुसार अपडेट करना अब समय की मांग है।

नए सदस्य और बड़ी पहलें

इस वर्ष का शिखर सम्मेलन खास रहा क्योंकि इंडोनेशिया आधिकारिक रूप से ब्रिक्स का पूर्ण सदस्य बन गया। साथ ही बेलारूस, नाइजीरिया, क्यूबा और वियतनाम सहित 11 नए देश ब्रिक्स साझेदार के रूप में शामिल हुए। यह विस्तार ब्रिक्स के बढ़ते वैश्विक प्रभाव और समर्थन को दर्शाता है।

ब्रिक्स नेताओं ने तीन नई पहलें भी घोषित कीं:

  1. ब्रिक्स जलवायु वित्त ढांचा (BRICS Climate Finance Framework)
    – पर्यावरण अनुकूल विकास के लिए देशों को आर्थिक सहायता प्रदान करना।

  2. वैश्विक एआई शासकीय वक्तव्य (Global AI Governance Statement)
    – आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के सुरक्षित और न्यायपूर्ण उपयोग के लिए दिशा-निर्देश।

  3. सामाजिक रूप से निर्धारित रोगों को समाप्त करने की साझेदारी
    – गरीबी और असमानता से जुड़े स्वास्थ्य संकटों से लड़ने के लिए साझा प्रयास।

विकासशील देशों के लिए मजबूत वैश्विक आवाज

ब्रिक्स नेताओं ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC), विश्व बैंक (World Bank) और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) जैसी वैश्विक संस्थाओं में सुधार की तत्काल आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि इन संस्थाओं को विकासशील देशों की जरूरतों और आकांक्षाओं को बेहतर ढंग से प्रतिबिंबित करना चाहिए। नेताओं ने निम्नलिखित बातों की मांग की:

  • न्यायपूर्ण मतदान अधिकार (Fairer Voting Rights)

  • महिलाओं और विभिन्न क्षेत्रों को नेतृत्व में समान भागीदारी

  • शक्तिशाली देशों द्वारा लगाए जाने वाले अनुचित प्रतिबंधों का अंत

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत की ओर से समावेशी बहुपक्षीयता (Inclusive Multilateralism) का समर्थन किया, जिसमें हर देश — बड़ा हो या छोटा — वैश्विक निर्णयों में अपनी भूमिका निभा सके

शांति, सुरक्षा और डिजिटल भरोसा

ब्रिक्स नेताओं ने वैश्विक शांति और सुरक्षा पर भी चर्चा की।

  • उन्होंने कहा कि संघर्षों का समाधान संवाद से होना चाहिए, हिंसा से नहीं

  • नेताओं ने आतंकवाद, आम नागरिक ढांचे की बर्बादी, और हानिकारक व्यापारिक कार्रवाइयों की कड़ी निंदा की।

डिजिटल दुनिया के संदर्भ में ब्रिक्स ने सहमति व्यक्त की कि:

  • साइबर सुरक्षा के लिए वैश्विक नियम तैयार किए जाएं

  • ऑनलाइन अपराधों को रोका जाए

  • इंटरनेट को खुला, सुरक्षित और स्थिर बनाए रखा जाए

भारत ने स्वास्थ्य अनुसंधान के लिए राष्ट्रीय बायोबैंक लॉन्च किया

केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने 6 जुलाई 2025 को नई दिल्ली स्थित CSIR-IGIB (इंस्टीट्यूट ऑफ जीनोमिक्स एंड इंटीग्रेटिव बायोलॉजी) में राष्ट्रीय बायोबैंक का उद्घाटन किया। यह नई सुविधा भारत भर के लोगों से स्वास्थ्य और आनुवंशिक (जेनेटिक) डेटा एकत्र करने में मदद करेगी। इसका उद्देश्य बीमारियों की समय रहते पहचान करना और भविष्य में प्रत्येक व्यक्ति के लिए व्यक्तिगत उपचार योजना (पर्सनलाइज़्ड ट्रीटमेंट) को संभव बनाना है।

भारत का पहला राष्ट्रीय बायोबैंक लॉन्च

“फीनोम इंडिया” परियोजना के तहत शुरू किया गया यह राष्ट्रीय बायोबैंक पूरे भारत से 10,000 लोगों का स्वास्थ्य, आनुवंशिक (जैविक), और जीवनशैली से जुड़ा डेटा संग्रह करेगा। यह बायोबैंक यूके बायोबैंक से प्रेरित है, लेकिन इसे विशेष रूप से भारत की विविध जनसंख्या को ध्यान में रखकर डिज़ाइन किया गया है। एकत्रित डेटा कैंसर, डायबिटीज़, हृदय रोगों और दुर्लभ आनुवंशिक बीमारियों जैसी समस्याओं को समझने में डॉक्टरों और वैज्ञानिकों की मदद करेगा।

कार्यक्रम के दौरान डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि जल्द ही ऐसा समय आएगा जब व्यक्तिगत स्वास्थ्य देखभाल — यानी इलाज व्यक्ति की जीवनशैली और जेनेटिक प्रोफ़ाइल के आधार पर — वास्तविकता बन जाएगा। उन्होंने यह भी कहा कि भारत का अपना डेटा देश के लिए बेहतर, तेज़ और अधिक प्रभावशाली इलाज विकसित करने में मददगार साबित होगा। यह कार्यक्रम नई दिल्ली स्थित CSIR-इंस्टीट्यूट ऑफ जीनोमिक्स एंड इंटीग्रेटिव बायोलॉजी (IGIB) में आयोजित किया गया।

भारत की विशिष्ट स्वास्थ्य जरूरतों को समझने में मदद

डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि भारतीयों को कुछ विशेष प्रकार की स्वास्थ्य चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जैसे कि सेंट्रल ओबेसिटी (पेट के आसपास मोटापा), जो अक्सर बाहर से दिखाई नहीं देता लेकिन स्वास्थ्य के लिए खतरनाक होता है। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय बायोबैंक ऐसे छिपे हुए स्वास्थ्य जोखिमों की पहचान करने और भारतीय शरीर की बनावट के अनुसार उपयुक्त समाधान तैयार करने में मदद करेगा।
इसके साथ ही उन्होंने वैज्ञानिकों, सरकारी विभागों और उद्योगों के बीच मजबूत साझेदारी की आवश्यकता पर बल दिया, ताकि शोध को व्यावहारिक उत्पादों और उपचारों में बदला जा सके।

CRISPR और अन्य उन्नत शोध क्षेत्रों में भारत की प्रगति

डॉ. सिंह ने CRISPR आधारित जीनोम संपादन (Genome Editing) के क्षेत्र में भारत में हो रहे कार्यों की सराहना की, खासकर सिकल सेल एनीमिया और लिवर फाइब्रोसिस जैसी बीमारियों के इलाज में। उन्होंने कहा कि भारत अब विज्ञान के क्षेत्र में पिछड़ने वाला देश नहीं रहा, बल्कि अब क्वांटम टेक्नोलॉजी, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI), और जीनोमिक मेडिसिन जैसे क्षेत्रों में नेतृत्व कर रहा है।
बायोबैंक से प्राप्त डेटा इन क्षेत्रों में भविष्य के अनुसंधानों को भी समर्थन देगा।

वैज्ञानिकों की प्रतिक्रियाएँ

  • डॉ. एन. कलैसेल्वी, महानिदेशक, CSIR ने बायोबैंक को एक “शिशु कदम” (baby step) कहा, लेकिन ऐसा जो आगे चलकर वैश्विक स्वास्थ्य अनुसंधान में नेतृत्व कर सकता है। उन्होंने भारत के विभिन्न क्षेत्रों और समुदायों से गहन और विस्तृत स्वास्थ्य डेटा एकत्र करने के महत्व को रेखांकित किया।

  • डॉ. सौविक मैती, निदेशक, CSIR-IGIB, ने संस्थान की जीनोमिक अनुसंधान यात्रा साझा की और बताया कि उन्होंने महिला स्वास्थ्य, COVID-19, दुर्लभ रोगों, और यहां तक कि स्पेस बायोलॉजी (अंतरिक्ष जीवविज्ञान) पर भी काम किया है।

इंडियन बैंक और पीएनबी ने बचत खातों में न्यूनतम बैलेंस न रखने पर लगने वाला जुर्माना हटाया

इंडियन बैंक और पंजाब नेशनल बैंक (PNB) ने बचत खातों में न्यूनतम बैलेंस न रखने पर लगने वाले जुर्माने को समाप्त कर दिया है। यह बदलाव जुलाई 2025 से प्रभावी हुआ है, जिसमें इंडियन बैंक ने 7 जुलाई से और पीएनबी ने 1 जुलाई से यह नियम लागू किया है। इस कदम का उद्देश्य बैंकिंग को देशभर के लोगों, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों और कम आय वर्ग के लिए अधिक सरल और सुलभ बनाना है।

खाताधारकों के लिए बड़ी राहत

7 जुलाई 2025 से इंडियन बैंक बचत खातों में न्यूनतम बैलेंस न रखने पर कोई जुर्माना नहीं वसूलेगा। इसी तरह, पीएनबी ने 1 जुलाई से ऐसे सभी शुल्क समाप्त कर दिए हैं। यह कदम छात्रों, वरिष्ठ नागरिकों, छोटे दुकानदारों और ग्रामीण परिवारों सहित कई तरह के ग्राहकों को लाभ पहुंचाएगा।

बैंकों का मानना है कि इन शुल्कों को हटाने से अधिक लोग बैंक खाते खोलने और उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित होंगे। यह वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देने की एक बड़ी पहल का हिस्सा है, जिसका उद्देश्य ज्यादा से ज्यादा लोगों को औपचारिक बैंकिंग प्रणाली से जोड़ना है।

उधारकर्ताओं के लिए सस्ती ब्याज दरें

न्यूनतम बैलेंस जुर्माना हटाने के साथ ही इंडियन बैंक ने अपने कर्ज पर ब्याज दरों में भी मामूली कटौती की है। 3 जुलाई 2025 से बैंक ने एक साल की एमसीएलआर (मार्जिनल कॉस्ट ऑफ फंड्स बेस्ड लेंडिंग रेट) को 5 बेसिस प्वाइंट घटाकर 9% कर दिया है। इसका लाभ नए ऋण लेने वाले ग्राहकों को मिलेगा, जिससे उन्हें ब्याज में थोड़ी बचत हो सकेगी।

कमजोर वर्गों को सहारा

पीएनबी ने कहा है कि न्यूनतम बैलेंस शुल्क हटाने से महिलाओं, किसानों और निम्न आय वर्ग के लोगों को विशेष राहत मिलेगी। इन वर्गों के लिए न्यूनतम बैलेंस बनाए रखना अक्सर चुनौतीपूर्ण होता है, और अब यह राहत उनके आर्थिक बोझ को कम करेगी।

पीएनबी के एमडी और सीईओ अशोक चंद्रा ने कहा,“हम मानते हैं कि इन शुल्कों को हटाने से ग्राहकों पर वित्तीय दबाव घटेगा और वे औपचारिक बैंकिंग प्रणाली में अधिक भागीदारी करेंगे।”

यह पहल समावेशी बैंकिंग को बढ़ावा देने की दिशा में एक सकारात्मक कदम मानी जा रही है, जिसका स्वागत देशभर में लाखों ग्राहक करेंगे।

विश्व जूनोसिस दिवस 2025: इतिहास, थीम और महत्व

दुनियाभर में हर साल 6 जुलाई को ‘विश्व जूनोसेस डे’ मनाया जाता है। इस दिन को मनाने का उद्देश्य जानवरों से इंसानों में फैलने वाली बीमारियों के प्रति जागरुकता पैदा करना है। इन बीमारियों को जूनोटिक रोग कहा जाता है। इसमें रेबीज, टीबी, स्वाइन फ्लू, और डेंगू जैसे रोग शामिल हैं। विश्व जूनोसिस दिवस हमें यह समझने में मदद करता है कि मानव और पशु स्वास्थ्य आपस में जुड़े हैं, और इन रोगों से बचाव के लिए सामूहिक प्रयास जरूरी हैं।

जूनोटिक रोग क्या हैं?

जूनोटिक रोग (Zoonotic Diseases) वे बीमारियाँ होती हैं जो जानवरों से मनुष्यों में फैलती हैं। इनके कारण बैक्टीरिया, वायरस, फंगी या परजीवी हो सकते हैं।
प्रमुख उदाहरण:

  • रेबीज़

  • कोविड-19

  • एवियन फ्लू (बर्ड फ्लू)

  • इबोला

  • सालमोनेला संक्रमण

संक्रमण के तरीके:

  • जानवरों को छूने से

  • संक्रमित कीड़ों के काटने से

  • असुरक्षित या अधपका मांस/दूध खाने से

WHO के अनुसार, 75% से अधिक नई मानव बीमारियाँ जानवरों से आती हैं।

शब्दों की समझ:

  • “Zoonosis” = रोग का नाम (जैसे रेबीज़)

  • “Zoonotic” = उस प्रकार की बीमारी का वर्णन (जैसे जूनोटिक वायरस)

इतिहास और उद्देश्य

6 जुलाई 1885 को महान वैज्ञानिक लुई पाश्चर (Louis Pasteur) ने पहली बार इंसान को रेबीज़ का सफल टीका दिया था। विश्व जूनोसिस दिवस उसी ऐतिहासिक घटना की स्मृति में हर साल मनाया जाता है।

उद्देश्य:

  • जूनोटिक रोगों के प्रति लोगों को जागरूक करना

  • मानव, पशु और पर्यावरण स्वास्थ्य के बीच संबंध को समझाना

  • One Health दृष्टिकोण को बढ़ावा देना

यह दिवस WHO, FAO, OIE और अन्य वैश्विक संस्थाओं द्वारा समर्थित होता है।

भारत में उठाए गए कदम

भारत सरकार द्वारा जूनोटिक रोगों से निपटने के लिए कई कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं:

  1. राष्ट्रीय पशु रोग नियंत्रण कार्यक्रम (NADCP)

    • ब्रूसेलोसिस और खुरपका-मुंहपका रोग रोकने के लिए

  2. मोबाइल पशु चिकित्सा इकाइयाँ (MVUs)

    • ग्रामीण इलाकों में समय पर पशु उपचार और रोगों की पहचान

  3. राष्ट्रीय वन हेल्थ कार्यक्रम (National One Health Programme)

    • इंसान और पशु स्वास्थ्य विशेषज्ञों के बीच समन्वय

  4. पशु जन्म नियंत्रण नियम 2023 (Animal Birth Control Rules)

    • आवारा जानवरों की नसबंदी और टीकाकरण (विशेषकर रेबीज़)

  5. टीकाकरण अभियान

    • पालतू और पालतू जानवरों के लिए नियमित टीकाकरण को बढ़ावा देना

आज की दुनिया में इसका महत्व

COVID-19 जैसी महामारियों के बाद यह स्पष्ट हो गया है कि मानव स्वास्थ्य, पशु स्वास्थ्य और पर्यावरण आपस में गहराई से जुड़े हैं।
विश्व जूनोसिस दिवस:

  • जन जागरूकता बढ़ाता है

  • स्वास्थ्य कर्मियों को प्रशिक्षित करने के लिए प्रेरित करता है

  • OpenWHO जैसे प्लेटफॉर्म पर प्रशिक्षण कार्यक्रमों को बढ़ावा देता है

One Health दृष्टिकोण को आज वैश्विक स्वास्थ्य रणनीति के रूप में अपनाया जा रहा है, ताकि भविष्य में जूनोटिक रोगों को रोका जा सके।

Recent Posts

about | - Part 204_12.1